सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 20)

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सुलभ ने बदली लाखों लोगों की जिंदगियां

मल ट्रांसप्लांट बचा सकता है कई बीमारियों से

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आम आदमी की उड़ान

फसल बीमा योजना

sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

वर्ष-2 | अंक-20 | 30 अप्रैल - 06 मई 2018

डॉ. सैयद कल्बे सादिक

एक समाज सुधारक जो सबसे अलग है डॉ. सैयद कल्बे सादिक अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान, विचारक, सुधारक, शिक्षाविद और सिद्धांतवादी हैं

वे

एसएसबी ब्यूरो

शायद दुनिया में एकमात्र मुस्लिम मौलवी हैं, जो पूरे दृढ़विश्वास के साथ सभी धर्मों और विचारों के प्रति आदर का उपदेश देते हैं और यह बताते हैं कि सभी धर्म मनुष्यों को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की ओर ले जाते हैं। 1 जनवरी, 1936 को ‘नवाबों के शहर’ लखनऊ में एक प्रतिष्ठित अथनाशिया मुस्लिम परिवार जो ‘खानदान-ए-इज्तिहाद’ (इस्लामिक न्यायशास्त्र का परिवार) के नाम से प्रसिद्ध है, में पैदा हुए डॉ. सैयद कल्बे सादिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित शिया मुस्लिम मौलवी, इस्लामी विद्वान, सामाजिक सुधारक, शिक्षाविद और मानव मूल्यों के प्रचारक हैं। अपने स्कूल के दिनों से ही डॉ. सादिक एक बुद्धिमान छात्र थे और हर दिन 18 घंटे अध्ययन करते थे। वे इस्लामी विद्वानों के साथ चर्चा और शिक्षण के लिए लखनऊ के पुराने शहर के नक्खास स्थित

छावनी इलाके में जाते थे। उनके पिता स्वर्गीय मौलाना कल्बे हुसैन और चाचा मौलाना कल्बे आबिद प्रमुख इस्लामी विद्वान थे और अपने समय के महान वक्ता थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक प्रसिद्ध मदरसा सुल्तान-उल-मदरिस से पूरी की। उनके परिवार के एक बुजुर्ग बताते हैं, ‘वे अपने शुरूआती छात्र दिनों से ही एक बड़े तैराक और किताबी-कीड़ा थे।’ इस्लामिक विद्वानों के एक प्रसिद्ध परिवार में पैदा हुए डॉ. सादिक हमेशा इस्लामिक शिक्षाओं की किताबों से चिपके रहते थे। साथ ही वह धर्म के रूप में इस्लाम और कुरान जैसे विषयों पर परिवार में अपने बुजुर्गों के साथ तकरीर किया करते थे। वह अपने छात्र दिनों से ही मुहर्रम के दौरान शोक सत्र में शांतिपूर्वक अपने पिता और चाचा के साथ रहते थे और एक महान वक्ता बनने के लिए ‘ज्ञान और संवाद’ कौशल हासिल किया। बाद में वे स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने के लिए अलीगढ़

खास बातें एक प्रतिष्ठित धार्मिक परिवार ‘खानदानए-इज्तिहाद’ से ताल्लुक रखते हैं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व जीवन के उनके बुनियादी सिद्धांतों में से एक है वे शिया हैं, लेकिन उनके प्रशंसकों में सभी धर्मों के अनुयायी शामिल हैं


02 04 मुस्लिम विश्वविद्यालय चले गए। उन्होंने 1971 मंे अपना स्नातकोत्तर अरबी साहित्य में किया और इस्लामिक न्यायशास्त्र का अध्ययन किया। डॉ. सादिक ने लखनऊ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। अपने पिता और चाचा की मृत्यु के बाद डॉ. सादिक ने पारिवारिक विरासत को संभालना शुरू किया। उन्होंने मुहर्रम के दौरान मजलिस का ऐहतराम करना शुरू किया। इस्लामिक शिक्षाओं पर शानदार पकड़ और आध्यात्मिकता के उच्च मानकों के साथ उनके बेहतरीन संवाद कौशल ने बहुत कम समय में ही उन्हें दुनिया भर में सबसे प्रसिद्ध शिया मुस्लिम मौलवी बना दिया। व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति डॉ. सादिक ने एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका के अधिकांश देशों का विश्व सम्मेलनों में भाग लेने के लिए दौरा किया। यहां उन्होंने इस्लाम और उनकी शिक्षाओं पर भाषण दिया और अक्रिय-विश्वास एकता (inertfaith unity), सहयोग, आध्यात्मिकता के उच्च मानकों, नैतिक मूल्यों और समझ का प्रचार किया। अपने देश में वे गरीब मुस्लिम छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए अग्रणी मुस्लिम विद्वान और सुधारक के रूप में उभरे। वे अक्सर कहते हैं, ‘यह मेरे जीवन का मिशन है। अल्लाह ने मुझे जमीनी स्तर पर काबिल लोगों के साथ ज्ञान साझा करने के लिए शिक्षित किया है।’ उन्होंने गरीब मुस्लिम परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल और उनके पुनर्वास को बढ़ावा देने के लिए 1984 में तौहीदुल मुसलमीन ट्रस्ट (टीएमटी) की स्थापना की। उन्होंने मुसलमानों को शिक्षित करने, उन्हें सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के अपने जीवन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए अकेले ही, स्कूलों, कॉलेजों, संस्थानों और धर्मार्थ चिकित्सा कॉलेजों और अस्पतालों की श्रृंखला खोल दी। मानवाधिकारों को लेकर लगातार सक्रिय रहने वाले 82 वर्षीय डॉ. सादिक दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय को तकलीफ देने वाले विवादित मुद्दों पर अपने मौलिक और प्रगतिशील विचारों के लिए जाने जाते हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के वरिष्ठ-उपाध्यक्ष के रूप में वे हमेशा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए खड़े रहे और तीन-तलाक, हलाला, बहुविवाह और गैर-मुद्दों पर फतवा जारी करने की प्रथाओं का जोर-शोर से विरोध करते रहे। देश में मुस्लिम महिलाओं के वैवाहिक अधिकारों की रक्षा के लिए 2004 में एआईएमपीएलबी द्वारा पेश किए गए ‘मॉडल निकाहनामा’ के पीछे उनका ही हाथ था। एक स्थानीय पत्रकार एस. कुमार कहते हैं, ‘मुझे अभी भी याद है जब 1991 में पहली बार मैंने उनसे मुलाकात की थी, उन्होंने निकाहनामा को तैयार करने के बारे में बात की। उन्हें एआईएमपीएलबी के भीतर कई चुनौतियों और विपक्ष का सामना करना पड़ा, लेकिन आखिरकार उन्होंने बोर्ड को इसे 2004 में लागू करने के लिए

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मुस्लिम समुदाय के कड़े ऐतराज के बावजूद उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को शुक्रवार, ईद और अन्य अवसरों पर मस्जिद में ‘नमाज’ देने की अनुमति देकर लखनऊ में एक अनोखी शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई आश्वस्त किया। एआईएमपीएलबी अब मोदी सरकार के तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रस्तावित अधिनियम के मद्देनजर, मुस्लिम महिलाओं को अधिक वैवाहिक अधिकार देने के लिए डॉ. सादिक द्वारा तैयार ‘मॉडल निकाहनामा’ में संशोधन कर रहा है।’ एआईएमपीएलबी ने उनके ‘मॉडल निकाहनामा’ में एक नए खंड को जोड़कर संशोधन पेश किया है, जिसके अनुसार अब पति तीन बार, तलाक-तलाक-तलाक या तीन तलाक एक बार में बोलकर 'तलाक-ए-बिद्दत' का उपयोग नहीं कर पाएगा। अपने मुस्लिम समुदाय के लोगों के कड़े ऐतराज के बावजूद उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को शुक्रवार, ईद और अन्य अवसरों पर मस्जिद में ‘नमाज’ देने की अनुमति देकर लखनऊ में एक अनोखी शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शुरुआत में, मस्जिद के दरवाजे सिर्फ शिया मुस्लिम महिलाओं के लिए ही खोले गए थे, लेकिन बाद में बड़ी संख्या में हिजाब पहने हुए सुन्नी और ईद पर ईदगाह में नमाज पढ़ती हुई अन्य मुस्लिम संप्रदाय की महिलाओं की यह एक नियमित विशेषता बन गई।

मुस्लिम महिलाओं को लैंगिक समानता के अधिकारों, मुसलमानों द्वारा परिवार नियोजन को अपनाने, एक सच्चे मुस्लिम द्वारा सिर्फ एक विवाह करना, पोलियो ड्रॉप्स जैसे विषयों पर उनके मौलिक विचारों ने उनके समुदाय के भीतर कट्टरपंथी ताकतों और मुस्लिम बोर्ड से हमेशा उनके लिए नाराजगी पैदा की।

डॉ. कल्बे सादिकः शांति और सद्भाव के लिए लगातार प्रयासरत

वे अक्सर एआईएमपीएलबी द्वारा तीन तलाक, चार विवाह, परिवार नियोजन और लैंगिक समानता के अधिकार जैसे मुद्दों पर उठाए गए कदम के खिलाफ चले जाते थे। लेकिन अगर कोई भारतीय मुस्लिम दुनिया में विकास का बारीकी से अध्ययन करता है तो डॉ. सादिक हमेशा अपने निरंतर प्रयासों और दृढ़ तरीकों के माध्यम से बहुमत के साथ अधिकतर मुद्दों पर विजयी होते प्रतीत होते हैं। एआईएमपीएलबी मुस्लिम बच्चों को पोलियो की बूंदे पिलाने का विरोध कर रहा था। लेकिन हाल ही में यहां तक कि मौलानाओं ने समुदाय के


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हिंदू धर्म के साथ उनका मिलन

वे श्री श्री रविशंकर को अपना ‘अाध्यात्मिक गुरु’ मानते हैं। वे हिंदू धर्म को सबसे सरल लेकिन दार्शनिक और आध्यात्मिक तरीके से समझाते हुए कहते हैं कि मैं उनके उस तरीके से बहुत प्रभावित हूं, जब वह एक मुस्कराहट के साथ आर्ट ऑफ लिविंग के बारे में अपने सबसे बेहतर संदेशों को व्यक्त करते हैं

‘ज

ब तक मुझे हिंदू धर्म के बारे में पता नहीं चल गया, तब तक मैं इससे नफरत करता आया था। यह बिलकुल प्राकृतिक था। जब कोई व्यक्ति किसी चीज के बारे में कुछ भी नहीं जानता तो वह उससे नफरत करता है।’ एक बार डॉ. कल्बे सादिक ने आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के सामने इसे स्वीकार किया था। हिंदू धर्म के साथ उनका मिलन काफी दिलचस्प है। वह साझा करते हैं कि एक बार ईरान से प्रसिद्ध मौलानाओं का उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि मंडल लखनऊ पहुंचा और उन्होंने प्रमुख हिंदू साधु-संतों से मिलने में गहरी दिलचस्पी दिखाई, जो उन्हें हिंदू धर्म सिखा

सकते हों। ‘मैं उन्हें दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक वाराणसी ले गया। हिंदू धर्म के बारे में जानने के लिए काशी से बेहतर कौन सी जगह होगी। साथ ही ईरान के मौलानाओं को हिंदू धर्म सिखाने के लिए एक पारंगत व्यक्ति भी काशी से बेहतर कहीं नहीं मिल सकता’, उन्होंने यह बातें श्री श्री रविशंकर को बैठक के दौरान बताईं। वे कहते हैं, ‘मैं काशी के एक प्राचीन मंदिर में प्रतिनिधिमंडल को ले गया। वे मंदिरों की दीवारों पर अंकित संस्कृत भाषा के शब्दों को देख आश्चर्यचकित हो गए। जब मैंने उनसे कहा कि वे हिंदू धार्मिक पाठ्यपुस्तक भगवद् गीता से लिए गए ‘श्लोक’ हैं, तो उनमें से एक ने मुझसे एक ‘श्लोक’

श्री श्री रविशंकर और कल्बे सादिक एक आयोजन में साथ-साथ

का अनुवाद फारसी में करने का अनुरोध किया। जब मैंने 'श्लोक' में से एक का अनुवाद किया, तो उन्होंने उल्लास में कहा......ओह, यह तो कुरान की आयत है।’ यह वही दिन था जब डॉ. सादिक ने हिंदू धर्म के बारे में जानने के लिए एक उत्सुकता विकसित की। उन्होंने हिंदू धर्म के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए हिंदू दर्शन पर बहुत सारे शोध कार्य किए, साथ ही उपनिषद, वेद, गीता और कई अन्य हिंदू धर्म ग्रंथों को पढ़ा। वह साझा करते हुए कहते हैं, ‘मेरी दुश्मनी प्यार में बदल गई.....हिंदू धर्म की ओर अज्ञानता के रूप में मेरी शत्रुता, हिंदू धर्म, संस्कृति और इसकी समृद्ध परंपराओं के लिए प्यार में बदल गई।’ अपनी अधिकांश सार्वजनिक बैठकों और

उपदेशों में, वह अक्सर अपने समुदाय के सदस्यों को अन्य धर्मों का सम्मान करने और इस्लाम या किसी अन्य धर्म के नाम पर नफरत और सामाजिक बुराइयों को फैलाने वाले कुछ मुट्ठी भर लोगों से दूर रहने के लिए गीता और वेदों से उद्धरण देते हैं। वे श्री श्री रविशंकर को अपना ‘अध्यात्मिक गुरु’ मानते हैं। वे हिंदू धर्म को सबसे सरल लेकिन दार्शनिक और आध्यात्मिक तरीके से समझाते हुए कहते हैं कि मैं उनके उस तरीके से बहुत प्रभावित हूं, जब वह एक मुस्कराहट के साथ आर्ट ऑफ लिविंग के बारे में अपने सबसे बेहतर संदेशों को व्यक्त करते हैं और दर्शकों को मंत्र-मुग्ध छोड़ जाते हैं।

डॉ. सादिक स्पष्ट रूप से कहते हैं कि देश में मुसलमानों के सामने समस्याएं आ रही हैं, क्योंकि बोर्ड और उनके धार्मिक प्रमुखों ने धार्मिक मामलों में तर्क के आवेदनों के लिए दरवाजे बंद कर दिए हैं

सर्वधर्म सद्भाव के एक कार्यक्रम में विभिन्न धर्मों-पंथों के गुरूओं के साथ डॉ. सादिक

सदस्यों से बच्चों की सुरक्षा के लिए पोलियो की बूंदों को पिलाने के लिए अपील जारी की। बोर्ड ने परिवार नियोजन का भी विरोध किया था और कहा था कि बच्चे अल्लाह का आशीर्वाद हैं, लेकिन अब अधिकतर मुस्लिम परिवार देश में जन्म नियंत्रण विधियों को अपना रहे हैं।

एआईपीएमपीएलबी के वरिष्ठ-उपाध्यक्ष होने के बावजूद, वे अक्सर भारत में मुसलमानों की दुर्दशा के लिए उलेमाओं और बोर्ड को दोषी ठहराते हैं। लखनऊ में एक बार ‘इस्लाम बनाम मुस्लिम’ पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था, ‘वे अभी भी पिछले युग में रह रहे

हैं और समुदाय को आगे बढ़ाने के लिए उनमें विजन की कमी है।’ वह शायद भारत में एकमात्र मुस्लिम मौलवी हैं जिसने फतवा पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। वह कहते हैं, ‘फतवा ने इस्लामी शिक्षाओं, कुरान और समुदाय के सदस्यों को अपमानित किया है। कोई भी छोटा उलेमा किसी भी विषय पर, जिसका कि उसे ज्ञान तक नहीं है, फतवा जारी कर देता है और ऐसा करने के लिए इस्लाम के तहत उसे कोई अधिकार नहीं है।’ डॉ. सादिक ने ‘फतवा कारखाने’ पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार से हस्तक्षेप की मांग की। उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार फतवा पर प्रतिबंध लगाती है तो मैं सरकार का समर्थन करने वाला पहला व्यक्ति रहूंगा।’ उन्होंने देश में मुस्लिमों से संबंधित मुद्दों पर कठोर रुख लेने के लिए एआईएमपीएलबी को खुले तौर पर कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह कहते हैं, ‘बोर्ड को शरीयत

आवेदन अधिनियम, 1937 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था, साथ ही इसका उद्देश्य देश के मुसलमानों को उनसे संबंधित विषयों पर मार्गदर्शन करना भी था। लेकिन, कुछ समय बाद ही, यह अपने रास्ते से विचलित हो गया है और समुदाय के सदस्यों को भ्रमित और गुमराह कर छोड़ गया।’ डॉ. सादिक स्पष्ट रूप से कहते हैं कि देश में मुसलमानों के सामने समस्याएं आ रही हैं, क्योंकि बोर्ड और उनके धार्मिक प्रमुखों ने धार्मिक मामलों में तर्क के आवेदनों के लिए दरवाजे बंद कर दिए हैं। वह कहते हैं, ‘परिवर्तन और प्रगतिशील सोच किसी भी धर्म या विश्वास के लिए एक प्राकृतिक कानून है। लेकिन बोर्ड और उलेमा ने इसके लिए दरवाजे बंद कर दिए हैं। वे अभी भी उन प्रथाओं से चिपके हुए हैं जो अनावश्यक हैं और अब मनुष्यों के लिए इनका कोई मूल्य नहीं है।’


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प्रोफाइल: डॉ. सैयद कल्बे सादिक • डॉ. सैयद कल्बे सादिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध एक इस्लामी विद्वान, विचारक, सुधारक, शिक्षाविद और सिद्धांतवादी व्यक्ति हैं। • उन्हें हिंदू और मुसलमानों और शिया और सुन्नी के बीच सांप्रदायिक सद्भावना का एक बहुत बड़े घटक माने जाते हैं • उनका जन्म 22 जून, 1939 को लखनऊ में एक प्रतिष्ठित अथनाशिया मुस्लिम परिवार में हुआ था, जिसे ‘खानदान-ए इज्तिहाद’ के नाम से जाना जाता है। • उन्होंने साल 1971 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अरबी साहित्य में स्नातकोत्तर किया और इस्लामी न्यायशास्त्र का अध्ययन किया। डॉ. सादिक ने लखनऊ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। • अरबी के अलावा, डॉ सादिक उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और हिंदी भाषाओं में भी निपुणता रखते हैं। • 18 अप्रैल 1984 को, उन्होंने जरूरतमंद और गरीब छात्रों को शैक्षणिक सहायता और छात्रवृत्ति देने के लिए तौहीदुल मुस्लिमीन ट्रस्ट (टीएमटी) की स्थापना की। • वह विशेष रूप से परियोजना "टीएमटी के मुफ्त शिक्षा कार्यक्रम" से जुड़े हुए हैं जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, परिवहन, ड्रेस, स्टेशनरी, किताबें इत्यादि प्रदान करता है। यह हमारे समाज के सबसे योग्य और वंचित छात्रों के लिए बिल्कुल मुफ्त होता है( • उनके सक्षम मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण के तहत चल रही शैक्षिक, धर्मार्थ और रचनात्मक परियोजनाओं में शामिल हैं: (1) तौहीदुल मुस्लिमीन ट्रस्ट (टीएमटी), लखनऊ (2) यूनिटी कॉलेज, लखनऊ (3) यूनिटी मिशन स्कूल, लखनऊ (4) यूनिटी टेक्निकल स्कूल, लखनऊ (5) यूनिटी पब्लिक स्कूल, इलाहाबाद (6) एमयू कॉलेज, अलीगढ़ (7) यूनिटी कंप्यूटर सेंटर, लखनऊ (8) लखनऊ, जौनपुर, जलालपुर, इलाहाबाद, बाराबंकी, मोरादाबाद और अलीगढ़ आदि में यूनिटी मुफ्त शिक्षा कार्यक्रम (9) हिजा चैरिटेबल अस्पताल, लखनऊ (10) टीएमटी मेडिकल सेंटर, शिकारपुर, यूपी (11) टीएमटी की विधवा की पेंशन योजना (12) टीएमटी की अनाथों के लिए शैक्षिक प्रायोजन योजना (13) लखनऊ के विश्व प्रसिद्ध गुफरान माब के इमाम बरगाह का पुनर्निर्माण और विस्तार (14) विश्व प्रसिद्ध मरसिया लेखक और मरसिया खवान हजरत मीर अनीस, लखनऊ के मकबरे का पुनर्निर्माण और नवीनीकरण • वह लखनऊ के प्रसिद्ध इरा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के अध्यक्ष भी हैं। यह मेडिकल कॉलेज बहुत ही कम दरों पर अपनी उत्कृष्ट चिकित्सा सुविधाओं के लिए जाना जाता है। वे कई उदाहरणों का हवाला देते हैं कि कैसे हिंदू समाज सुधारकों ने 'सती प्रथा' और "बाल विवाह" पर प्रतिबंध लगा दिया और कैसे अन्य धर्मों ने समाज में प्रचलित सामाजिक बुराइयों को खत्म करने की आवश्यकता और समय के अनुसार परिवर्तनों को अपनाया। उन्होंने एक बार कहा था, ‘वे (उलेमा) मुस्लिम समाज की प्रगति और सुधार के लिए इन बदलावों की अनुमति नहीं दे रहे हैं, क्योंकि इससे उनकी दुकाने बंद हो जाएंगी।’ पवित्र कुरान से उद्धृत करते हुए वह कहते हैं

कि पत्नी को रूमाल से मारना जायज है। ‘क्या मुस्लिम, इस्लाम और कुरान के सच्चे अनुयायी की तरह अपनी पत्नियों को मारने के लिए रूमाल का उपयोग करते हैं? मैंने ऐसे मामले भी देखे हैं जहां मुस्लिमों ने अपनी पत्नियों से हिंसक सलूक भी किया है। तो कुरान और इस्लाम की शिक्षा कहां है?’, वह ताना मारते हुए पूछते हैं। डॉ. सादिक ने हमेशा आतंकवाद और तथाकथित इस्लामी जिहाद के साथ इसके लिंक की निंदा की है। उन्होंने संघ परिवार के इन आरोपों

को सिरे से खारिज कर दिया कि ‘सभी दाढ़ी वाले मुस्लिम आतंकवादी होते हैं।’ वह अपने एक व्याख्यान में कहते हैं, ‘एक मुस्लिम जो किसी को मारता है वह मुसलमान नहीं है। और सभी मुस्लिम दाढ़ी भी नहीं रखते हैं। जब इस्लाम हिंसा और हत्याओं का न तो प्रचार करता है और न ही अनुमति देता है तो एक आतंकवादी मुसलमान कैसे हो सकता है? इस्लाम में प्रतिक्रियावादी ताकतों के लिए कोई जगह नहीं है। इस्लाम मुसलमानों को काफिरों या आस्था न रखने वालों को मारने

की अनुमति नहीं देता है। यदि यह मामला होता तो इस्लामिक देशों द्वारा कई विश्व युद्धों को लड़ा जा चुका होता जो अब दूसरे देशों के साथ विभिन्न धर्मों के अनुयायी बन कर रह रहे हैं।’ वह इसका कारण बताते हुए कहते हैं, ‘मुसलमानों को अल-कायदा, आईएसआईएस आदि जैसे कुछ इस्लामी संगठनों द्वारा 'भावनात्मक वस्तु' के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को इसे समझना चाहिए और उनके भावनात्मक ब्लैकमेलिंग को पकड़ना चाहिए।


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नरम भाषी, सौम्य और एक साधारण जीवन जाने वाले डॉ. सादिक उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, अरबी और फारसी पर बेहतरीन पकड़ रखते हैं। वह इन पांच भाषाओं में दुनिया भर में अपने व्याख्यान और उपदेश देते हैं अगर यह सच होता तो कोई भी मुस्लिम अध्ययन नहीं कर रहा होता, न ही कोई मुस्लिम गैर-इस्लामी देशों में काम करता क्योंकि वे इस्लाम में विश्वास नहीं करते और कफिर समझते।’ उन्होंने आगे कहा कि आज मुस्लिम मक्का, मदीना, नजाफ और करबाला से प्रशंसनीय शिक्षाओं को ग्रहण करने के बजाय शिया, सुन्नी, वहाबी, बरेलवी, देवबंदी और अन्य संप्रदायों के बीच विभाजित हैं। यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है और मुस्लिम समुदाय को कहीं भी आगे नहीं ले जाएगा। डॉ. सादिक ने आगे कहते हैं कि यहूदीवाद इरान से मिटा दिया गया, लेकिन फिर भी प्रगतिशील दृष्टिकोण और सामुदायिक भावना के कारण यहूदी दुनिया भर में दुनिया भर में पनपे और संवरे। वह भविष्यवाणी करते हुए कहते हैं, ‘कोई भी धर्म या विश्वास पृथ्वी से मिटा दिया जाएगा यदि उसकी विचारधारा में समय की आवश्यकताओं के अनुसार और जो लोग उसका पालन करते हैं उनकी आवश्यकताओं के अनुसार, परिवर्तनों को नहीं अपनाया गया।’ वह अक्सर कुरान को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि एक अपराधी मुस्लिम नहीं हो सकता है और एक मुस्लिम अपराधी नहीं हो सकता। ‘कोई भी शख्स जो, आतंकवादी हमलों या किसी भी माध्यम से किसी भी धर्म या विश्वास के किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को छीन लेता है, रिश्वत स्वीकार करता है, अत्याचार करता है, किसी की संपत्ति हड़प लेता है ... मुस्लिम नहीं हो सकता है,’ उन्होंने हमेशा मुसलमानों से ऐसे लोगों को समुदाय से उखाड़ फेंकने के लिए कहा। आतंकवाद को लेकर अपनी राय रखते हुए वे कहते हैं, ‘मुसलमानों को भावनात्मक ब्लैकमेलिंग की वजह से इन संगठनों द्वारा पेश किए जाने वाले मुसलमानों या इस्लामी जिहाद से आतंकवाद का कोई लेना-देना नहीं है। वे पैगंबर मोहम्मद के समय भी थे। उन्होंने एक दरार पैदा की जो अब तक जारी है क्योंकि शिया और सुन्नी शांति और सह-अस्तित्व के लिए पैगंबर मोहम्मद और इमाम अली की शिक्षाओं को भूल गए हैं। अगर हम इन छोटी संख्या के लोगों को अपने कृत्यों में सफल होने की इजाजत दे देते हैं तो दुनिया को और भी विभाजित किया जाएगा।’ नरम भाषी, सौम्य और एक साधारण जीवन जाने वाले डॉ. सादिक उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, अरबी और फारसी पर बेहतरीन पकड़ रखते हैं। वह इन पांच भाषाओं में दुनिया भर में अपने व्याख्यान और उपदेश देते हैं।

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शिया-सुन्नी संवाद

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मौलाना कल्बे सादिक शिया-सुन्नी एकता के साथ-साथ हिंदू-मुस्लिम संवाद के समर्थक हैं

या-सुन्नी संबंधों को सुधारने की महत्वपूर्ण आवश्यकता, कल्बे सादिक के लेखनों और भाषणों के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। कई अन्य शिया उलेमाओं के विपरीत, कल्बे सादिक ने इमाम हुसैन की शहादत मनाने के लिए मुहर्रम के महीने में आयोजित पारंपरिक मजलिस का उपयोग शिया और सुन्नी के बीच बेहतर संबंधों की आवश्यकता पर बार-बार बोलकर किया। प्रायः उनकी मजलिस में शिया और सुन्नी दोनों साथ-साथ शामिल होते हैं। उनके व्याख्यान विशेष रूप से शिया को लेकर किसी भी संकीर्ण दायरे में नहीं होते हैं। वह लगातार कुरान को डॉ. कल्बे सादिकः विवादों को संवाद के जरिए निपटाने पर यकीन संदर्भित करते हैं, साथ ही उन परंपराओं को जो पैगंबर से नहीं करते हैं और इसके बजाय, मुस्लिम एकता भी संप्रदायों से संबंधित हों, उन्हें स्वयं को सिर्फ जुड़ी हैं और जिन्हें शिया और सुन्नी दोनों स्वीकार के लिए बार-बार कुरान का जिक्र करते हैं। एक मुस्लिम मानना चाहिए। करते हैं, वह समकालीन महत्व की इन दोनों मजलिस में वह दावा करते हैं कि शिया और शिया-सुन्नी एकता के मामले सहित कल्बे घटनाओं को जोड़ते हैं। सुन्नी का 97 फीसदी धार्मिक विश्वास एक जैसा सादिक के भाषण की एक केंद्रीय विशेषता है – कल्बे सादिक बार-बार जोर देते हैं कि है और यह आम धारणाएं हैं जो कि मुस्लिम अदल या इंसाफ (न्याय) की धारणा। वह कुरान मजलिस के दो बुनियादी उद्देश्य हैं: सूचित सार्वभौमिकता का आधार होना चाहिए। उनका को यह कहते हुए उद्धृत करते हैं कि पैगम्बर करना और सुधार करना। दूसरे शब्दों में, मजलिस तर्क है कि वे सभी जो एक ईश्वर, पैगंबर मुहम्मद के उत्तराधिकारियों, पवित्र किताबों और कानूनों का उद्देश्य इस्लाम के सच्चे अर्थ के साथ-साथ और कुरान में विश्वास करते हैं, और जो विश्वास (शरीयत) को भेजने में खुदा का उद्देश्य केवल लोगों की मान्यताओं और प्रथाओं को सुधारने के समान पंथ को साझा करते हैं (कोई खुदा नहीं एक था: अन्याय को खत्म करना और खुदा के के लिए ज्ञान प्रदान करना है। कल्बे सादिक की है, लेकिन खुदा और मुहम्मद, खुदा के पैगंबर सभी प्राणियों के अधिकारों को सुनिश्चित करना। मजलिस आम तौर पर समकालीन चिंताओं, जैसे हैं) को मुस्लिम माना जाना चाहिए, भले ही उनके धर्म का उद्देश्य लोगों को केवल भगवान की शिया-सुन्नी संघर्ष, हिंदू-मुस्लिम संघर्ष, आधुनिक अन्य कितने भी मतभेद हों। पूजा करने के लिए निर्देश देना नहीं है, बल्कि शिक्षा और महिलाओं के अधिकारों के मुद्दों पर वह शिया और सुन्नी और विभिन्न संप्रदायों समान रूप से, समाज में प्यार और न्याय को बात करती है। व इन दो प्रमुख समूहों में से प्रत्येक के भीतर, बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करना भी है। वह कहते मजलिस हमेशा कुरान से एक हैं कि इस्लाम सिखाता है कि ‘भगवान एक मजलिस में वह दावा करते हैं कि शिया विशेष मुद्दे से संबंधित एक कविता के प्राणियों के अधिकार’ (हकूक उलके साथ शुरू होती है, जिसे तब उस और सुन्नी का 97 फीसदी धार्मिक विश्वास एक इबाद) उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने वक्त के मुद्दे के साथ उस कविता जैसा है और यह आम धारणाएं हैं जो कि मुस्लिम कि ‘भगवान के अधिकार’ (हकूक को जोड़कर विस्तारित किया जाता अल्लाह)। वह आगे कहते हैं कि यदि सार्वभौमिकता का आधार होना चाहिए है। यह चर्चा मजलिस का प्रमुख भाग किसी को भी दोनों के बीच चुनाव का है। कई अन्य शिया उलेमाओं की मजलिस के मतभेदों से इनकार नहीं करते हैं, लेकिन वह जोर सामना करना पड़ता है, तो सबको पूर्व वाले का विपरीत, इमाम हुसैन की परेशानियों और पैगंबर देते हैं कि ये अपेक्षाकृत महत्वहीन हैं। इसीलिए, ही चयन करना चाहिए, क्योंकि ‘भगवान के के परिवार (अहल अल-बैत) का वर्णन केवल उनके मतभेदों के बावजूद, वे कहते हैं कि उन्हें प्राणियों को अपने अधिकारों’ का सम्मान करने कल्बे सादिक की मजलिस का एक हिस्सा है, मुसलमानों के रूप में खुद को और एक दूसरे की आवश्यकता है, जबकि भगवान को कुछ भी जो अक्सर व्याख्यान की अवधि के आधे से कुछ को पहचानना चाहिए। वह अपने श्रोताओं को नहीं चाहिए। वह कहते हैं कि भगवान उसके कम का होता है। याद दिलाते हैं कि 'सुन्नी', 'शिया', 'देवबंदी', पापों को माफ नहीं करेगा, अगर कोई ‘हकूक शिया-सुन्नी एकता के लिए कल्बे सादिक 'बरेलवी', 'अहल-ए हदीस', विभिन्न समकालीन उल-इबाद’ का उल्लंघन करता है। का मामला, जैसा कि उनकी मजलिस में व्यक्त मुस्लिम संप्रदायों के नामों का उल्लेख कुरान में उन्हीं के शब्दों में, ‘न्याय के दिन पर, किसी किया गया है, मुख्य रूप से कुरान से लिए गए नहीं किया गया है। कुरान में ‘सच्चे विश्वासियों’ की प्रार्थना और अनुष्ठान पूजा किसी व्यक्ति के तर्कों पर आधारित है। वह जानबूझकर शिया और को ही बस 'मुस्लिम' के रूप में पहचाना गया है। लिए किसी भी तरह से मददगार नहीं होगी जो सुन्नी समूहों के बीच धार्मिक मतभेदों का जिक्र इसीलिए, वे कहते हैं, मुस्लिम, चाहे वे किसी दूसरों के अधिकारों से टकराता है।’


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आवरण कथा

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अयोध्या विवाद पर उनके विचार

योध्या विवाद पर अपने विचारों के लिए आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों द्वारा अक्सर डॉ. सादिक की आलोचना की जाती है। उन्होंने हमेशा यह कहा कि मुसलमानों को अयोध्या में जमीन के विवादित टुकड़े को राम मंदिर के निर्माण के लिए हिंदुओं को समर्पित कर देना चाहिए। उनका तर्क है, “हमें उनके विश्वास का सम्मान करना चाहिए कि उनके भगवान (भगवान राम) वहां पैदा हुए थे और साधारणतया वे भी हमारे धार्मिक स्थलों से जुड़े हमारे भरोसे में विश्वास करते हैं।” वह हमेशा मुसलमानों को विवादित मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सलाह देते हैं, प्राथमिकता से अदालत के बाहर ही। अब जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में अंतिम निर्णय के लिए है, मुस्लिम को उनकी सलाह:- “यदि सर्वोच्च न्यायालय

द्वारा बाबरी मस्जिद का फैसला मुस्लिमों के खिलाफ आता है तो उन्हें बिना किसी प्रतिक्रिया के इसे शांतिपूर्वक स्वीकार करना चाहिए। और यदि फैसला उनके पक्ष में जाता है तो उन्हें भूमि को, हिंदुओं को उनका दिल जीतने और भारत में दोनों समुदायों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए सौहार्दपूर्ण संकेत के रूप में सौंप देनी चाहिए।”

पूर्व आरएसएस प्रमुख के साथ डॉ. सादिक

गाय का दूध अमृत है, लेकिन इसका मांस कई बीमारियों का स्रोत होता है। अपनी मजलिस के दौरान, वह हमेशा मुसलमानों को गाय की हत्या से दूर रहने और उसका मांस न खाने के लिए सलाह देते रहते हैं उन्होंने हमेशा राजनैतिक नेताओं, विभिन्न समुदायों के धार्मिक प्रमुखों और विभिन्न धर्मों और विश्वास रखने वाले लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे। वह आरएसएस के पूर्व प्रमुख के.सी. सुदर्शन से लेकर आध्यात्मिक नेता श्री श्री रविशंकर और इस्लामिक राज्यों के नेताओं से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया भर के अन्य देशों के नेताओं के साथ मंच साझा कर चुके हैं और करते हैं। विचारों और जीवन में बेहद शालीन होने के बाद भी, डॉ. सादिक हमेशा भगवा ब्रिगेड या किसी दुनिया के किसी अन्य कोने से बिना किसी तर्क या कारण के अपने समुदाय पर हो रहे हमले से रक्षा के लिए खड़े हो जाते हैं। उन्होंने, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा मुस्लिमों को हिन्दुओं में धर्मांतरित करने वाले अभियान ‘घर-वापसी’ और ‘भारत एक हिंदू राष्ट्र’ बनाने के उनके सपने को न्यायसंगत दिखाने के खिलाफ बात की। जब मुस्लिमों ने आरएसएस की हिंदू-राष्ट्र की अवधारणा का विरोध किया, तब कुछ बीजेपी नेताओं और आरएसएस ने मुस्लिमों को सुझाव दिया कि वे पाकिस्तान या अन्य जगहों पर जाकर बसें, तब डॉ. सादिक ने कहा था, “मैं इस देश के लोगों का धन्यवाद करता हूं जिन्होंने हमें कई शताब्दियों पहले आश्रय दिया था। हमने 1947 में विभाजन के बाद भी यहीं रहना चुना। इस देश का नागरिक होने के नाते और सदियों से इस देश

में हमारे पूर्वजों के रहने के नाते, यह हमारी भी मातृभूमि है। हम मुस्लिम अपनी मातृभूमि भारत की किसी भी अलगाववादी ताकतों से रक्षा करेंगे, चाहे वह आंतरिक हो या बाहरी।” उन्होंने घरवापसी या धर्मांतरण पर नाराजगी जताते हुए कहा, “मैं मोहन भागवत और अन्य आरएसएस संगठनों को चुनौती देता हूं कि सच्चे भारतीय मुसलमानों पर हाथ साफ करने से पहले आईएस, आईएसआईएस, अल-कायदा, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन, इंडियन मुजाहिदीन और अन्य आतंकवादी संगठनों के आतंकवादियों का धर्मांतरण करें।” जबकि भारत गाय-संरक्षण के नाम पर बहुत अधिक रक्तपात का सामना कर चूका है, डॉ. सादिक ने देश में मुसलमानों को गाय के मांस का उपभोग नहीं करने के लिए अपील अपील जारी की थी। गाय-सरंक्षण के एक प्रचंड समर्थक के रूप में वह हदीस से उद्धृत करते हुए कहते हैं कि पैगंबर मोहम्मद ने घोषित किया था कि गाय का मांस कई बीमारियों का स्रोत है और मुसलमानों को गोमांस खाने से मना कर दिया था। गाय की हत्या पर हिंदू संगठनों की आपत्ति से सहमती जताते हुए उन्होंने कहा, “गाय का दूध अमृत है, लेकिन इसका मांस कई बीमारियों का स्रोत होता है।” अपनी मजलिस के दौरान, वह हमेशा मुसलमानों को गाय की हत्या से दूर रहने और उसका मांस न खाने के लिए सलाह देते

एक धार्मिक आयोजन में तकरीर करते हुए डॉ. सादिक

रहते हैं। लेकिन साथ ही, वह मुस्लिम समुदाय की देशभक्ति पर संदेह करने वाले हुए भगवा बिग्रेड पर भारी रोष प्रकट करते हैं। वह कहते हैं, ‘भारत हमारी मातृभूमि है और मुस्लिम अपनी मातृभूमि से उतना ही प्यार करते हैं जितना कि कोई दूसरा जो इस देश का हिस्सा है। जो लोग हमारी देशभक्ति पर संदेह करते हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि कोई भी मुसलमान अपनी मां और मातृभूमि से नफरत नहीं कर सकता है जहां वह पैदा हुआ और पला-बढ़ा।’ हाल ही में, डॉ. सादिक को एयर एम्बुलेंस से दिल्ली के मेदांता अस्पताल ले जाया गया, जब वह बहुत तेज पेट-दर्द की शिकायत के बाद बेहोश हो गए। उनकी आंत की सर्जरी की गई। जब वह मेदांता में स्वास्थ्य-लाभ कर रहे थे, तो घर पर न केवल बड़ी संख्या में उनके अनुयायियों, बल्कि सभी समुदायों के सदस्यों और विभिन्न राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं द्वारा प्रार्थना की जा रही है।

इस्लामी गणराज्य ईरान के मिशन दूतावास के उप-प्रमुख मसूद रेजवानियन ने उनके स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिए मेदांता का दौरा किया। वह ईरान के सर्वोच्च नेता और सबसे सम्मानित शिया मुस्लिम धार्मिक प्रमुख अयातुल्ला खमेनी की ओर से एक व्यक्तिगत संदेश भी लेकर आए। अपना व्यक्तिगत दूत भेजकर डॉ. सादिक का हाल पूछते हुए अयातुल्ला खमेनी मेसेज भेजते हैं, “आज की दुनिया में, डॉ. कल्बे सादिक, समुदाय के एक शीर्ष धार्मिक नेता और सबसे प्रशंसित सामाजिक कार्यकर्ता और सुधारक हैं। वह केवल मुस्लिमों के ही नहीं, बल्कि दुनिया के सभी समुदायों के मसीहा हैं। हम सभी उनकी शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ के लिए प्रार्थना करते हैं।” उनके बेटे कल्बे हुसैन कहते हैं, “अस्पताल में प्रतिष्ठित डॉक्टरों द्वारा व्यक्तिगत ध्यान देने के अलावा, इन प्रार्थनाओं और ‘दुआओं’ जो कि दुनिया भर से आ रही हैं, ने मेरे पिता को उनकी गंभीर स्थिति से ठीक होने में बहुत मदद की है।”


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जागरुकता

किताबों पर चाइल्डलाइन हेल्पकेयर महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी द्वारा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय को दिए गए सुझाव के बाद अनोखी पहल

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चंद्राणी बनर्जी

ष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने छठी से लेकर 12वीं कक्षा की सभी पाठ्य पुस्तकों के पीछे के कवर पर चाइल्डिलाइन (1098)-बच्चों के लिए 24x7 हेल्पलाइन और पॉक्सो ई-बॉक्स के संबंध में जानकारी प्रकाशित की है। सुरक्षा-शिकायतों के संभावित प्रकारों के संबंध में जानकारी से बच्चों को लैस करने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय और एनसीईआरटी से इस सूचना को प्रकाशित करने का अनुरोध किया था। पिछले वर्ष मेनका गांधी ने प्रकाश जावडेकर से पॉक्सो ई-बॉक्स और चाइल्डलाइन 1098 को एनसीईआरटी प्रकाशनों, स्कूलों में बच्चों के यौन उत्पी1ड़न के बारे में शिक्षाप्रद फिल्मों के प्रदर्शन के जरिए लोकप्रिय बनाने और सहायक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए कड़े नियम लागू करने का

अनुरोध किया था। महिला और बाल विकास मंत्री मेनका संजय गांधी ने उनके सुझाव को लागू करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्री और एनसीईआरटी को धन्यवाद दिया और कहा कि माता-पिता तथा अभिभावकों को बच्चों और उनके व्यवहार तथा किसी भी संदिग्ध स्थिति के बारे में सतर्क रहना चाहिए और इसकी जानकारी तत्काल चाइल्डलाइन नंबर 1098 और पॉक्सो ई-बॉक्स को देनी चाहिए। सुलभ से बात करते हुए तानिया अमीर ने कहा कि इस पहल से मंत्री काफी उत्सुक थीं कि हर किसी को इसके बारे में पता होना चाहिए, अब उनके लिए ये सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। यदि आवश्यक हो तो इसके माध्यम से हर कोई सिर्फ एक साधारण नंबर डायल करके बच्चे या साथी छात्रों की मदद के लिए पहुंच सकता है। इन पाठ्यक्रम पुस्तकों के जरिए जानकारी 15 लाख स्कूलों के करीब 26 करोड़ स्कूली छात्रों तक पहुंचने की उम्मीद है। एनसीईआरटी को भी सलाह

दी गई है कि इस मुद्दे पर सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में भी अध्याय हो सकता है। यह जानकारी 12वीं कक्षा तक दी जा सकती है जिसका युवा मस्तिष्क पर अच्छा असर पड़ेगा। इन पुस्तकों के रूप में जानकारी एनसीईआरटी की पुस्तकों के जरिए 10 लाख अध्यापकों साथ ही साथ परिवार के सदस्यों और बच्चों की देख-रेख करने वालों के लिए भी उपलब्ध होगी। इस उपयोगी जानकारी से देश में बच्चों की सुरक्षा और उन्हें अधिकार संपन्न बनाने के लिए एक माहौल बनने की उम्मीद है। बच्चों को जब आसान तरीके से यह जानकारी मिलेगी तो कम से कम उचित हद तक संभावित दुर्व्यवहारियों को भी उन तक पहुंचने से रोका जा सकता है। तानिया अमीर ने कहा कि मंत्री ने इस विचार के बारे में सोचा और जितनी जल्दी हो सके उसे वास्तविक बनाना चाहती थीं। हालांकि इसके लिए वह आगे बढ़ीं और इसे लागू करने के लिए थोड़े समय में ही सभी चीजों को व्यवस्थित किया। बैक कवर में बाल हेल्पलाइन और अन्य महत्वपूर्ण चीजों के बारे में जानकारी होगी, जो बच्चों को सुरक्षित बनाएगी। इन किताबों में चाइल्डलाइन-1098

पर जानकारी होगी, यह संकट के समय में बच्चों के लिए एक राष्ट्रीय 24 घंटे की टोल-फ्री आपातकालीन फोन सेवा है। बच्चों के लिए जारी की गई ये हेल्पलाइन वर्तमान में पूरे देश के 412 स्थानों में पर काम कर रही है। अप्रैल 2016 से मार्च 2017 के दौरान चाइल्डलाइन को 1.45 करोड़ कॉल मिले और अप्रैल-नवंबर 2017 के दौरान 78 लाख से ज्यादा कॉल प्राप्त हुए। चाइल्डलाइन टेली-काउंसिलिंग या शारीरिक बचाव के माध्यम से परेशानियों में बच्चों को सहायता प्रदान करती है। पॉक्सो ई-बॉक्सप बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की आसान और प्रत्यक्ष जानकारी देने और अपराधी के खिलाफ पॉक्सोख कानून 2012 के अंतर्गत समय पर कार्यवाही के लिए एक ऑनलाइन शिकायत प्रबंध प्रणाली है। पॉक्सो ई-बॉक्सा की शुरुआत मेनका संजय गांधी ने 26 अगस्त 2016 को की थी। तानिया अमीर ने कहा कि मंत्रालय एक छात्र के दिन-प्रतिदिन के जीवन के अन्य पहलुओं पर भी काम कर रहा है, जिससे उन्हें सुरक्षित और निर्भिक महसूस कराया जा सके। यह योजना मंत्रालय की तरफ से बनाए गए अन्य पहलों के बीच एक नया कदम है।

सूखे बुंदेलखंड का नादिया गांव हरा-भरा

पीएम मोदी के 'वन ड्रॉप मोर क्रॉप' के संदेश को को सार्थक बनाने में जुटे हैं टीकमगढ़ के दो किसान

ध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड क्षेत्र में यूं तो कई किलोमीटर तक वीरान खेत नजर आते हैं, मगर टीकमगढ़ जिले के नादिया गांव में अमरचंद प्रजापति के खेतों में हरियाली छाई है। यह ऐसा किसान है, जो एक एकड़ में पपीता और सब्जियां उगाकर सालाना पांच लाख रुपए से ज्यादा कमाई कर रहा है। अमरचंद प्रजापति और नाथूराम कुशवाहा मिलकर एक एकड़ जमीन पर पपीता, मिर्ची, टमाटर, बैगन वगैरह की खेती कर किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं। ये किसान बहुत कम पानी का उपयोग कर अपनी आजीविका चलाने में कामयाब हो रहे हैं। अमरचंद बताते हैं कि उन्होंने एक एकड़ क्षेत्र में 20 से ज्यादा कतारों में पपीता लगाए हैं, वहीं बीच के

हिस्से में मिर्ची, टमाटर और बैंगन उगाया है, इससे उन्हें सालाना पांच लाख से ज्यादा की आमदनी हो जाती है। इतना ही नहीं, वे यह सारी फसल बहुत कम पानी का उपयोग कर उगाते हैं। नाथूराम के मुताबिक, वे दिनभर में इन फसलों की मुश्किल से आठ सौ लीटर पानी से सिंचाई करते हैं। उनके ट्यूबवेल में पानी बहुत कम है, इसके बावजूद डिप सिंचाई का उन्हें भरपूर लाभ मिल रहा है। कम पानी में भी वे अच्छी फसल ले रहे हैं। अमरचंद के खेत में पहुंचकर दूर से पपीते के पेड़ नजर आते हैं और जमीन में काली पॉलीथिन बिछी नजर आती है। पॉलीथिन के नीचे मिट्टी की क्यारी बनी हुई है और उस पर ट्यूब बिछी हुई है। इस ट्यूब से हर पेड़ के करीब पानी का रिसाव होता

है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और ऊपर पॉलीथिन होने के कारण पानी वाष्पीकृत होकर उड़ नहीं पाता। लिहाजा, कम पानी में ही पेड़ों की जरूरत पूरी हो जाती है। नाथूराम की मानें तो पपीता की अच्छी पैदावार हो तो एक कतार से ही 50 हजार रुपए का पपीता सालभर में निकल आता है। एक एकड़ में बीस कतारें हैं, इस तरह अच्छी पैदावार होने पर सिर्फ पपीता से ही 10 लाख रुपए कमाए जा सकते हैं। इसके अलावा अन्य सब्जियों से होने वाली आय अलग है। अमरचंद और नाथूराम एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वन ड्रॉप मोर क्रॉप' के संदेश को सफल बनाने में लगे हैं, वहीं जैविक खाद का उपयोग करने में भी पीछे नहीं हैं। (आईएएनएस)


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आयोजन

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सुलभ ने बदली लाखों लोगों की जिंदगियां नेहरु स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय (एनएमएमएल) द्वारा आयोजित ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत ‘राष्ट्र निर्माण में योगदान’ विषय पर सुलभ प्रणेता डॉ. विन्द्वेश्वर पाठक का व्याख्यान

टू-पिट पोर फ्लश टॉयलेट तकनीक के बारे में एनएमएमएल के उप निदेशक डॉ. रवि के. मिश्रा को जानकारी देते हुए डॉ. पाठक।

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अयोध्या प्रसाद सिंह

बतक हर भारतीय अपने आचरण में स्वच्छता नहीं लाएगा, स्वच्छ भारत अभियान सफल नहीं हो सकता। यह तथ्य है कि जो राष्ट्र स्वच्छता के महत्व को स्वीकार करता है, वह तेजी से विकास करता है और राष्ट्र जल्द ही संपन्न राष्ट्र बन जाता है। सुलभ हमेशा से ही स्वच्छता के इस महत्व को समझता और समझाता आया है। सुलभ की पहलों और अविष्कारों के बिना शायद भारत ऐसा नहीं होता जैसा आज दिखता है, लेकिन अभी हमें और लंबा सफर तय

खास बातें

स्थापना के बाद से ही सुलभ राष्ट्रनिर्माण के कार्य में लगा हुआ है मैला ढोने वालों की जिंदगियों में सुलभ ने लाया परिवर्तन स्वच्छ भारत के लिए पिछले 50 सालों से सुलभ कर रहा है कार्य

गांधी जी ऐसे पहले व्यक्ति थे जिनका ध्यान स्कैवेंजर्स की दुर्दशा की ओर गया था। वह चाहते थे कि स्कैवेंजर्स अपने इस अमानवीय कार्य से मुक्त हों और उम्मीद जताई कि उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा की बहाली के साथ, समाज में अन्य लोगों की बराबरी पर उन्हें लाया जाए करना है, जिसमें राष्ट्र के सभी लोगों का योगदान जरुरी है।' यह बातें सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्द्वेश्वर पाठक ने नई दिल्ली स्थित नेहरु स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय (एनएमएमएल) द्वारा आयोजित ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत ‘राष्ट्र निर्माण में योगदान’ विषय पर परिचर्चा में कहीं। नेहरु स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. रवि के. मिश्रा ने परिचर्चा की अध्यक्षता की। डॉ. पाठक ने इस परिचर्चा में स्वच्छ भारत अभियान में सुलभ के योगदान के बारे में लोगों को बताया। इस अवसर पर राष्ट्र निर्माण में योगदान को लेकर लोगों ने डॉ. पाठक से सवाल भी पूछे जिनका उन्होंने बड़ी तन्मयता से जवाब भी दिया।

सुलभ के बिना भारत ऐसा नहीं होता

राष्ट्र निर्माण में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के योगदान पर बात करते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि स्वच्छता के मानकों को अर्जित किए बना आप बेहतर राष्ट्र नहीं बना सकते। उन्होंने कहा कि उनकी संस्था

सुलभ इंटरनेशनल इस क्षेत्र में पिछले 50 सालों से काम कर रही है। उन्होंने कहा, '1970 में मैंने सुलभ शौचालय संस्थान की स्थापना की, जिसे अब एक गैर-लाभकारी स्वैच्छिक सामाजिक सेवा संगठन के रूप में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन के नाम से जाना जाता है। तब से लगातार यह संस्था ऐसे सामाजिक मुद्दों पर काम कर रही है जिन पर समाज में बात भी नहीं की जाती थी।' उन्होंने सुलभ की यात्रा की शुरुआत पर प्रकाश डालते हुए कहा, 'पटना में, गांधी संग्रहालय भवन में बिहार गांधी जन्म शताब्दी उत्सव समिति से संबंधित एक कार्यालय था। इस समिति का गठन 1969 में महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष के उत्सव की तैयारी करने के लिए किया गया था। यहीं पर मैं सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करता था। यहां मुझसे शुष्क शौचालयों को साफ कर मानव मल को सिर पर ढोने वाले स्कैवेंजर्स की प्रतिष्ठा और मानवाधिकारों की बहाली के लिए काम करने को कहा गया। तब, मैंने पहली बार समाज के इस

तबके की दुर्दशा देखी। यहीं पर काम करते हुए मैंने स्कैवेंजरों की कॉलोनी में गया और तीन महीने तक वहां रहा। इस दौरान मुझे उनके जन्म, संस्कृति, मूल्यों, नैतिकता आदि के बारे में पता चला। मैं उनके साथ रहता था, बातचीत करता था और उन्हें शाम को पढ़ाया करता था। तभी मैं बेहतर तरीके से उनके दुःख-दर्द को समझ सका।

बद से बदतर थी उनकी जिंदगी

डॉ. पाठक ने कहा कि गांधी जी ऐसे पहले व्यक्ति थे जिनका ध्यान स्कैवेंजर्स की दुर्दशा की ओर गया था। वह चाहते थे कि स्कैवेंजर्स अपने इस अमानवीय कार्य से मुक्त हों और उम्मीद जताई कि उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा की बहाली के साथ, समाज में अन्य लोगों की बराबरी पर उन्हें लाया जाए। स्वच्छता के लिए जीवन भर प्रयासरत रहे गांधी जी ने एक बार कहा था कि देश की राजनीतिक स्वतंत्रता की तुलना में स्वच्छता अधिक महत्वपूर्ण है। गांधी जी ने एक बार यह भी कहा था कि भारतीय अंग्रेजों की गोली खा सकते हैं, लेकिन अछूतों का छुआ खाना नहीं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मैला ढोने वाले लोग यानी स्कैवंेजर्स कितनी बुरी जिंदगी जी रहे थे। उन्होंने बताया कि घायल बच्चे को लोगों ने इसीलिए नहीं बचाया क्योंकि वह अछूत था। इस तरह की जिंदगी जीने वाले लोगों को नई बेहतर जिंदगी देना बहुत मुश्किल था और इसके लिए जरुरी था कि कुछ ऐसे काम हों जिससे अछूतों


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शौचालयों का अभाव और इससे संबंधित जन-स्वास्थ्य की समस्याओं से होनेवाला नुकसान उस मूल्य से अधिक है, जो इन समस्याओं को ठीक करने में खर्च होंगे। इसीलिए हम लगातार इस समस्या पर काम कर रहे हैं और इन्हें हल करने के तरीके खोज रहे हैं- डॉ. पाठक को जीविकोपार्जन के नए रास्ते मिलें और समाज उन्हें स्वीकार कर सके।

सुलभ ने दिखाई राह

डॉ. पाठक के बताया कि साल 1970 में सुलभ की स्थापना के साथ ही इस दिशा में काम शुरू हुआ।1970 में, मैंने दो गड्ढे वाले पोर फ्लश के कई डिजाइनों का आविष्कार कर उन्हें विकसित किया, जिसे बाद में सुलभ शौचालय के रूप में लोकप्रिय बनाया। यहीं से मैला ढोने वालों की समस्या के अंत की शुरुआत हुई, क्योंकि सुलभ शौचालय सस्ते थे और हर कोई इन्हें अपने यहां बनवा सकता था। सबसे खास बात यह थी कि इन्हें हाथों से साफ करने की जरूरत नहीं थी। यहां मल खाद में परिवर्तित हो जाता है जो खेती-किसानी के काम आता है। इसके बाद सुलभ ने मैला ढोने वाले परिवारों को अन्य कामों में पारंगत बनाना शुरू किया जिससे कि उन्हें रोजी-रोटी कमाने के अन्य साधन मिल सकें।

सुलभ ने बदली तस्वीर

डॉ. पाठक ने आगे कहा कि आज सुलभ स्वच्छता आंदोलन के तहत हमने 15 लाख से ज्यादा घरेलू सुलभ शौचालय बनाए हैं। वहीं 60 लाख से ज्यादा सरकारी शौचालय सुलभ के डिजाइन पर बनाए गए हैं। जबकि 8500 से ज्यादा सुलभ के सार्वजनिक

सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक अपनी जिंदगी के विशिष्ट अनुभवों और संघर्षों के बारे में बताते हुए।

शौचालय बने हुए हैं, वहीं 640 कस्बों को मैला ढोने से मुक्त बनाया जा चुका है। जबकि 2 करोड़ से ज्यादा लोग रोजाना सुलभ शौचालयों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमने लाखों लोगों को मैला ढोने से मुक्त कराकर रोजगार के साधन भी मुहैया कराए हैं। यही हमारा राष्ट्र निर्माण में योगदान है।

विश्व ने सुलभ को स्वीकारा

डॉ. पाठक ने बताया कि समाज ने जो लकीर खींची, हमने उससे बड़ी लकीर खींच दी। और समाज को

बेहतर बनाने के लिए काम करने लगे। इस को भारत के साथ-साथ पूरे विश्व ने भी स्वीकारा है। बीबीसी ने सुलभ के अाविष्कारों को दुनिया के बेस्ट इन्वेंशन सूची में रखा। बीबीसी ने कहा था कि सुलभ के इस आविष्कार से मैला ढोने और खुले में शौच की प्रथा से मुक्ति मिलेगी। इसके आलावा समय-समय पर यूएन और विश्व की अन्य बड़ी संस्थाओं ने सुलभ की तारीफ कर उसके काम को मानवीय मूल्यों के लिए अपरिहार्य बताया है, साथ ही कई बड़े पुरस्कारों से नवाजा भी है।

आंबेडकर और गांधी के सपनों को जीना

डॉ. पाठक के अनुसार सुलभ आंबेडकर और गांधी, दोनों के सपनों को पूरा कर रहा है। आंबेडकर ने कहा था कि समाज में किसी के लिए भेदभाव नहीं होना चाहिए, सभी एक साथ खा सकें, एक कुएं से पानी निकाल सकें, एक साथ रह सकें, तभी राष्ट्र बेहतर बन सकता है। इसीलिए सुलभ ने मेल-जोल के लिए ‘कास्ट बाय चॉइस’ पहल शुरू की जिसके तहत भेदभाव खत्म करने की कोशिश की गई है। वहीं गांधी के सपनों का भारत जिसमें मैला ढोने से मुक्त समाज की परिकल्पना की गई थी, सुलभ पूरी कर रहा है।

विश्व-बैंक की रिपोर्ट

राजस्थान के अलवर की पुनर्वासित महिला स्कैवेंजर्स और ओडीएफ गांव हिरमाथल की महिलाओं की सामूहिक तस्वीर।

डॉ. पाठक ने विश्व-बैंक एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि भारत शौचालयों

के अभाव के कारण प्रत्येक वर्ष अपने सकल घरेलू उत्पाद का 6.4 फीसदी नुकसान उठाता है। स्वच्छता की कमी के चलते भारत में ही प्रतिदिन 1,000 बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इन सभी तथ्यों से स्पष्ट है कि शौचालयों का अभाव और इससे संबंधित जन-स्वास्थ्य की समस्याओं से होने वाला नुकसान उस मूल्य से अधिक है, जो इन समस्याओं को ठीक करने में खर्च होंगे। इसीलिए हम लगातार इस समस्या पर काम कर रहे हैं और इन्हें हल करने के तरीके खोज रहे हैं।‘स्वच्छ भारत अभियान’ के पीछे का उद्देश्य स्पष्ट रूप से ऐसी समस्याओं पर काबू पाना है और सुलभ पूरी तरह से इस अभियान के साथ है।

शौचालय और साफ पानी से गरीबी होगी खत्म

डॉ. पाठक ने कहा कि वह गांधी के विचारों से हमेशा सहमत रहे हैं और इसीलिए समाज के निचले तबके के लिए काम कर रहे हैं। गांधी के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ही स्वच्छता पर इतना ध्यान दिया है, इसीलिए वह स्वच्छ भारत अभियान को हर कदम पर समर्थन देते हैं। उन्होंने यूएन की एक रिपोर्ट से सहमति जताते हुए कहा कि पूरी दुनिया में 1 अरब 30 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, यदि उन्हें शौचालय और साफ पानी मुहैया कराया जाए तो गरीबी को जल्द ही खत्म किया जा सकता है। भारत में भी 30 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, यदि उनको शौचालय और साफ पानी मुहैया हो तो गरीबी खत्म की जा सकती है। सुलभ इस दिशा में भी काम कर रहा है।


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विशेष

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मल ट्रांसप्लांट बचा सकता है कई बीमारियों से मल ट्रांसप्लांट लगभग 90 फीसदी तक असरदार है। हो सकता है कि ये जीवाणुओं के लिए दवाओं का भविष्य हो यानी इंसान के शरीर में जीवाणु के कारण होने वाली समस्या पहचानना और फिर उसका इलाज करना

एसएसबी ब्यूरो

ल ट्रांसप्लांट यानी एक व्यक्ति का मल दूसरे व्यक्ति के शरीर में डालना शायद मेडिकल प्रक्रियाओं में सबसे बदबूदार और अजीब प्रक्रिया होगी। जाहिर है इसे अंजाम देना भी उतना ही मुश्किल होता होगा। लेकिन सवाल है कि ऐसा किया ही क्यों जाता है? क्या इससे हमारे पाचन तंत्र को कोई फायदा हो सकता है? क्या इससे किसी की जिंदगी बचाई जा सकती है?

खास बातें सी. डिफिसाइल के संक्रमण से बचाव में कारगर है मल ट्रांसप्लांट अमरीका में खुला है मल रखने और ट्रांसप्लांट के लिए देने वाला बैंक वैज्ञानिक सीधे मल के बैक्टीरिया का कॉम्बिनेशन ट्रांसप्लांट करने में जुटे

ये प्रक्रिया सबित करती है कि जीवाणुओं की हमारे शरीर में बड़ी अहम भूमिका होती है। इनसे हमारी सेहत की दशा और दिशा जुड़ी होती है। हमारी आंत की दुनिया में अलग-अलग प्रजातियों के जीवाणु पाए जाते हैं और ये सभी एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इनका संपर्क हमारे ऊतकों से भी होता है। जिस तरह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को दुरुस्त रखने में जंगल और बारिश की भूमिका होती है वैसे ही हमारी अंतड़ियों में भी एक पारिस्थितिकी तंत्र काम करता है जिससे चीजें नियंत्रण में रहती हैं। लेकिन कोलस्ट्रिडियम डिफिसाइल (सी. डिफिसाइल) एक ऐसा जीवाणु है जो हमारी आंत पर अपना नियंत्रण कर लेता है। ये बैक्टीरिया एंटिबायटिक दवाई लेने वाले व्यक्ति पर हमला करता है और पेट की समस्याएं पैदा कर सकता है। आधुनिक समय में एंटिबायटिक दवाइयां किसी चमत्कार से कम नहीं हैं, लेकिन ये जंगल की आग की तरह अच्छे और बुरे दोनों जीवाणुओं को नष्ट कर देती हैं नतीजतन पेट के भीतर सी. डिफिसाइल के पनपने के लिए जमीन तैयार हो जाती है।

सी. डिफिसाइल का संक्रमण होने पर व्यक्ति को दिन में कई बार पतले दस्त हो सकते हैं और कभी-कभी मल में खून भी आ सकता है। साथ ही घातक संक्रमण होने पर पेट में दर्द और बुखार हो सकता है। इसके इलाज के लिए जो विकल्प मौजूद हैं उनमें सबसे बेहतर है एंटीबायटिक जो फिर से सी. डिफिसाइल संक्रमण के लिए रास्ता बनाती है। यानी यह एक ऐसा कुचक्र है, जिसमें व्यक्ति आसानी से ओर बार बार फंसता है। मल का ट्रांसप्लांट या फिर कहें 'मल में मौजूद बैक्टीरिया के ट्रांसप्लांट' के जरिए मरीज की आंतों

मल का ट्रांसप्लांट या फिर कहें 'मल में मौजूद बैक्टीरिया के ट्रांसप्लांट' के जरिए मरीज की आंतों में फिर से अच्छे बैक्टीरिया डाले जा सकते हैं जिनसे स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है

में फिर से अच्छे बैक्टीरिया डाले जा सकते हैं जिनसे स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। इस काम के लिए आम तौर पर व्यक्ति के रिश्तेदार के मल का इस्तेमाल किया जाता है। ये माना जाता है कि उनके पेट में समान बैक्टीरिया होंगे। इसके लिए एक नमूना तैयार किया जाता है जिसे पानी में मिलाया जाता है। कुछ अन्य तकनीक में मल को हाथ से मिलाया जाता है, जबकि कुछ मामलों में एक ब्लेंडर का इस्तेमाल किया जाता है। इसे दो तरीकों से मरीज के शरीर के भीतर पहुंचाया जाता है, एक मुंह के जरिए या फिर मलद्वार के जरिए। सिर्फ सी. डिफिसाइल के इलाज के लिए ही नहीं मल ट्रांसप्लांट का का उपयोग अन्य बीमारियों केलिए भी संभव है। क्योंकि लगभग सभी बीमारियों में हमारे इंसानी शरीर और शरीर में मौजूद जीवाणु के


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विशेष

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मल के सहारे माओ की जासूसी

स्टॉलिन ने दूसरे देश के नेताओं की जासूसी का नया तरीका खोजा था। यह तरीका था एस नेता के मल की जांच। मल के सहारे माओ की जासूसी का राज अब खुल चुका है

ल के सहारे क्या जासूसी संभव है। आप कहेंगे नहीं। लेकिन रूस के कॉमरेड जोसेफ स्टॉलिन ने माओ की जासूसी मल के सहारे ही की। इतना ही नहीं इस मल जासूसी के लिए उन्होंने बाकायदा एक एक विभाग ही बना रखा था, जिसका काम नेताओं के मल चुपके से उठाना और जांच कर निष्कर्ष निकालना था। एक पूर्व सोवियत एजेंट ने कहा है कि उन्हें सबूत मिले हैं कि कम्यूनिस्ट नेता जोसेफ स्टालिन ने माओ त्से तुंग की जासूसी की थी। और तो और माओ के व्यक्तित्व को समझने के लिए उनके मल की परीक्षा के लिए स्टालिन ने एक गुप्त प्रयोगशाला

भी बनाई थी। गंभीरता को देंखे तो ये एक अहम राज था, लेकिन एक बदबूदार प्रयोग भी था। रूसी समाचार पत्रों के मुताबिक साल 1940 में स्टालिन की खुफिया पुलिस ने लोगों के मल की परीक्षा के लिए एक विशेष विभाग बनाया था। इसका लक्ष्य था, विदेशी नेताओं के मल की जांच करना। दूसरे शब्दों में इसे मल के जरिए जासूसी कहा जा सकता है, लेकिन यह काफी महंगा तरीका था। पूर्व सोवियत एजेंट इगोर अटामानेनको ने ये खुलासे किए हैं। वे दावा करते हैं कि रूसी खुफिया विभाग के पुराने दस्तावेजों पर शोध करते

वक्त उन्हें इस अलग तरह के प्रोजेक्ट की जानकारी मिली। उन्होंने एक अखबार को बताया, 'उन दिनों रूस में ,खुफिया विभाग के पास आजकल की तरह सुनने वाले यंत्र नहीं हुआ करते थे, इसीलिए हमारे विशेषज्ञ व्यक्ति की सूचना निकालने के लिए सबसे महंगे तरीके अपनाते थे।' अटामानेनको ने कहा है कि स्टालिन के वफादार सेवक लावरेंटी बेरिया को इस गुप्त प्रयोगशाला का प्रमुख बनाया गया था। संदर्भ में अटामानेनको ने बताया, 'उदाहरण के लिए यदि वे मल में अधिक मात्रा में एमीनो एसिड ट्रिप्टोफैन पाते तो वह व्याख्या करते कि वह व्यक्ति शांत और मिलनसार होगा। और यदि मल में कम पोटैशियम की मात्रा पाते तो उसे डरे हुए और इंसोमीनिया से जोड़ कर देखा जाता।' अटामानेनको ने दावा किया है दिसंबर 1949 में चीन के साम्यवादी नेता माओ त्से तुंग के मास्को दौरे पर रूस के गुप्तचरों ने उनके व्यक्तित्व आंकने के लिए इस सिस्टम का प्रयोग किया था। इसके लिए कथित रूप से विशेष शौचालय को सीवर की जगह एक गुप्त बक्से से जोड़ा गया था। 10 दिनों के लिए माओ के लिए

खाने के सामान और पानी का अच्छी व्यवस्था की गई थी और उनके मल को तेजी से परीक्षा के लिए उठा लिया जाता था। मल के परीक्षण की जांच के बाद ही स्टालिन उनके साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने पर राजी हुए थे। पत्रकार और इतिहासकार डेविड हालबेस्टॉम के लिखे 'द कोल्डेस्ट विंटर' के अनुसार- 'जब माओ पहली बार मॉस्को पहुंचे उन्होंने कहा कि चीन रूस के साथ समझौता करना चाहता है, लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनके साथ वैसा ही व्यवहार हो जैसा अपने समान लोगों के साथ किया जाता है।' जबकि उन्हें रोज एक पाठ पढ़ाया जाता था। उलम के शब्दों में, 'वे मेहमान की शक्ल में एक कैदी' की तरह थे। इतना कि वे दीवारों पर चीखते थे और उन्हें यकीन था कि स्टालिन ने दीवारों पर जासूसी संत्र लगाए हैं। वे कहते थे, 'मैं यहां खाने और मल त्यागने के सिवा अन्य कई काम के लिए आया हूं।' रूस के सबसे लोकप्रिय दैनिक अखबार कोस्मोल्स्काया प्राव्दा के अनुसार स्टालिन के उत्तराधिकारी निकिता ख्रुस्चेव ने इस प्रोजेक्ट को खत्म कर प्रयोगशाला को बंद कर दिया।

हमें अब पता है कि इसके जरिए किस तरह के जीवाणु शरीर में डाले जाते हैं और इसीलिए यदि आपके पास कोई ऐसा मिश्रण है जो सुरक्षित साबित हो चुका है तो इस समस्या से निपटा जा सकता है - डॉ. ट्रेवोर लॉली

बीच के संबंध को जांचा जाता है। सी. डिफिसाइल के कारण आंत में सूजन, पेट की बीमारी, मधुमेह और पार्किंसंस की बीमारी हो सकती है। इस कारण कैंसर की दवा का असर भी कम हो सकता है और व्यक्ति को डिप्रेशन और ऑटिज्म हो सकता है। लेकिन इसका मतलब ये भी है कि मल के ट्रांसप्लांट के नतीजे हमेशा सकारात्मक ही होंगे। साल 2015 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार एक महिला में उनकी बेटी के मल का ट्रांसप्लांट किया गया जिसके बाद उनका वजन 16 किलो तक बढ़

गया और उन्हें मोटा करार दिया गया। एक मोटे इंसान का मल किसी चूहे में ट्रंसप्लांट करके उसे मोटा या पतला बनाया जा सकता है। हालांकि अभी भी इस बात को लेकर सहमति नहीं बन पाई है कि ऐसा ही नतीजा इंसानों में आएगा या नहीं। साथ ही इस ट्रांसप्लांट के साथ खतरनाक बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु के ट्रांसप्लांट होने का अधिक जोखिम भी होता है। यही कारण है कि वैज्ञानिकों की कोशिश है कि सीधे मल ट्रांसप्लांट करने की बजाय बैक्टीरिया का कॉम्बिनेशन

ट्रांसप्लांट किया जा सके। अमरीका के वॉशिंगटन में पेसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेटरी में माइक्रोबियल इकोलॉजिस्ट डॉ. जेनट जेनसन उस टीम का हिस्सा थीं जो ये साबित करने की कोशिश कर रही थीं कि मल ट्रांसप्लंट काम कर सकता है। उनकी 61 साल की मरीज लगातार आठ महीनों तक पेट की समस्या और दस्त से परेशान रहीं और इस कारण उनका 27 किलो वजन कम हो गया। डॉ. जेनसन कहती हैं कि वो सी. डिफिसाइल के संक्रमण से परेशान हो चुकी थीं और वो मौत की कगार पर पहुंच गई थीं। उन पर कोई एंटीबायटिक असर नहीं कर रहा था। आखिरकार उनके शरीर में उनके पति से लिया गय स्वस्थ मल ट्रांसप्लांट किया गया। डॉ जेनसन ने बताया कि उन्हें अपनी सफलता पर हैरानी हुई। वे कहती हैं, 'आश्चर्यजनक तौर पर दो दिन के बाद वे सामान्य हो गई और उनका पेट भी सही हो गया। वे ठीक हो गई थीं।' परीक्षणों में पता चला है कि ये प्रक्रिया लगभग 90 फीसदी तक असरदार हो सकती है।

इस तकनीक में सकारात्मक नतीजे आने से कुछ लोगों को ख़ुद से अपने शरीर पर ये प्रक्रिया आजमाने का उत्साह मिला है। अमरीका में ओपनबायोम जैसे समूहों का गठन किया गया है जो मल रखने और ट्रांसप्लांट के लिए बांटने का एक सार्वजनिक बैंक है। वेलकम सेंगर इंस्टीट्यूट के डॉ. ट्रेवोर लॉली कहते हैं आने वाले समय के लिए ऐसे इलाज को और अधिक परिष्कृत किया जाना चाहिए। वो कहते हैं, 'मल का ट्रांसप्लांट किया जाना एक नए तरह की प्रक्रिया है और जब आप पहली बार कोई दवा तैयार करते हैं तो ये जरूरी है कि मरीज की सुरक्षा को पहली प्राथमिकता दी जाए।' 'हमें अब पता है कि इसके जरिए किस तरह के जीवाणु शरीर में डाले जाते हैं और इसीलिए यदि आपके पास कोई ऐसा मिश्रण है जो सुरक्षित साबित हो चुका है तो इस समस्या से निपटा जा सकता है।' हो सकता है कि ये जीवाणुओं के लिए दवाओं का भविष्य हो यानी इंसान के शरीर में जीवाणु के कारण होने वाली समस्या पहचानना और फिर उसका इलाज करना।


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जल संरक्षण

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मरुभूमि में पानीदार इजराइल

इजराइल, फिलीस्तीन और जॉर्डन तीन देशों की जीवन रेखा जॉर्डन नदी है। लेकिन गलत प्रबंधन और इच्छा शक्ति की कमी की वजह से फिलीस्तीन और जॉर्डन जल संकट से जूझ रहे हैं और दूसरी तरफ सबसे कम जल स्त्रोत होने के बावजूद इजराइल न सिर्फ हरा भरा है, बल्कि वह दूसरे देशों को पानी बेच भी रहा है

खास बातें जल संकट में घिरे फिलीस्तीन में जल जनित बीमारियों का प्रकोप पानी के कारण जॉर्डन से दूसरे देश जा रहे हैं लोग जल प्रबंधन तकनीक के सहारे इजराइल में फैली हरियाली

फि

एसएसबी ब्यूरो

लीस्तीन में पानी का संकट कुदरती नहीं है। हालांकि फिलिस्तीन की सरकार, अंतरराष्ट्रीय समुदाय, यहां तक की वहां का साहित्य भी यह कहता है कि फिलिस्तीन का जल संकट, क्षेत्रीय जलवायु की देन है। असल में फिलिस्तीन का जल संकट, इजरायली किबुत्जों द्वारा फिलिस्तीन के जल स्त्रोतों पर नियंत्रण के कारण है। फिलिस्तीन के पश्चिमी तट के साझे स्त्रोतों का 85 प्रतिशत पानी इजरायली ही उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने ऑक्युपाइड पैलस्टिन टेरीटरी (ओपीटी) के इलाके के लोगों को जलापूर्ति के लिए, इजरायल पर निर्भर रहने को मजबूर कर दिया है। एक ओर ग्रामीण फिलिस्तीनियों को बहता पानी नसीब तक नहीं है। दूसरी ओर फिलिस्तीन में बाहर से आकर बसे इजरायलियों के पास बड़े-बड़े फार्म, हरे-भरे गार्डन और स्वीमिंग पूल हैं। सिंचाई हेतु पर्याप्त

पानी है। दोहन के लिए मशीनें हैं। पानी को लेकर इजरायल और फिलिस्तीन के बीच एक समझौता हुआ था ‘ओस्लो एकॉर्ड’। इस एकॉर्ड के मुताबिक, फिलिस्तीन के पश्चिमी तट के जल स्त्रोतों में 80 प्रतिशत पर इजरायल का नियंत्रण रहेगा। यह समझौता अस्थाई था। किंतु इस समझौते को हुए आज 20 साल हो गए। आज फिलिस्तीनियों की तुलना में इज़यरायली लोग चार गुना अधिक पानी का उपभोग कर रहे हैं, बावजूद इसके फिलिस्तीन कुछ नहीं कर पा रहा है। पानी के लिए यह फिलिस्तीन की बेबसी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दखल से एक द्विपक्षीय समझौता हुआ भी तो यह महज एक

कमर्शियल डील है। यह समझौता इजरायल को किसी भी तरह बाध्य नहीं करता कि वह पश्चिमी तटीय फिलिस्तीन के जल संकट के निदान के लिए कुछ आवश्यक ढांचागत उपाय करे। यह समझौता, फिलिस्तीन प्राधिकरण को सिर्फ एक छूट देता है कि वह चाहे तो इजरायल से 32 मिलियन क्युबिक मीटर तक पानी खरीद सकता है। इसमें से 22 मिलियन क्युबिक पश्चिमी तटीय इलाके को 3.3 सिकिल प्रति क्युबिक मीटर के हिसाब से मिलेगा। शेष 10 मिलियन क्युबिक मीटर गाजा पट्टी के लिए, 3.2 सिकिल प्रति क्युबिक मीटर की दर से। 3.3 सिकिल यानी 0.9 डॉलर। इन कारणों से फिलिस्तीनी जो पानी पी रहे

फिलिस्तीनी जो पानी पी रहे हैं, वह विषैली और अशुद्धियों से भरा हुआ है। वे किडनी में पथरी जैसी कई जलजनित बीमारियों के शिकार हैं। उनका ज्यादातर पैसा, समय और ऊर्जा इलाज कराने में जा रहे हैं

हैं, वह विषैली और अशुद्धियों से भरा हुआ है। वे किडनी में पथरी जैसी कई जलजनित बीमारियों के शिकार हैं। उनका ज्यादातर पैसा, समय और ऊर्जा इलाज कराने में जा रहे हैं। फिलिस्तीनियों के पास जमीन है, लेकिन वे इतनी सूखी और रेगिस्तानी हैं कि वे उनमें कम पानी की फसलें भी नहीं उगा सकते। वे मांसाहारी हैं, लेकिन मांस उत्पादन के लिए भी तो पानी चाहिए। यही वजह है कि फिलिस्तीनी, एक दुःखी खानाबदोश की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। वे किसी तरह अपने ऊंट और दूसरे मवेशियों के साथ घुमक्कड़ी करके अपना जीवन चलाते हैं। पहले मवेशी को बेचकर, कुछ हासिल हो जाता था। फिलिस्तीनी कहते हैं कि अब तो वह समय भी नहीं रहा। फिलिस्तीन सरकार ने सामाजिक और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए जरूर कुछ किया है। किंतु वह अपर्याप्त है। खानाबदोश फिलिस्तीनियों को खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा की कितनी जरूरत है; यह बात आप इसी से समझ सकते हैं कि अपनी जरूरत पूरी करने के लिए वे कभी-कभी लूट भी करने लगे हैं। मजबूरी में उपजी इस नई हिंसात्मक प्रवृति के कारण वे कभी-कभी सीरियाई सुन्नी और फिलिस्तीनी शिया के बीच संघर्ष का हिस्सा भी बन जाते हैं। हकीकत यह है कि शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता है जिस दिन पानी के लिए इजरायली और फिलिस्तीनी के बीच मारपीट न होती हो। किंतु दोनो देशों की सरकारें आपसी जल विवाद के त्वरित समाधान के लिए कोई संजीदगी नहीं दिखा रही हैं। वह इसीलिए कि न तो दोनो देशों की सरकारें एकदूसरे पर भरोसा करती हैं और न ही लोग। अतः सबसे पहले जरूरी है कि दोनों देश की सरकारें और लोग आपस में सकारात्मक संवाद के मौके बढ़ाएं। सकारात्मक संवाद बढ़ने से ही विश्वास बढ़ता


30 अप्रैल - 06 मई 2018

इजराइल, दुनिया का ऐसा देश है, जिसने पानी के लिए अपना प्रबंधन कौशल, इंजीनियरिंग, संसाधन तथा सामरिक व सांस्कृतिक शक्ति.. सब कुछ समर्पित भाव से झोंक दिया है है और विश्वास के बिना फिलिस्तीन के जल संकट का कोई समाधान नहीं निकल सकता। जब सकारात्मक संवाद शुरु होगा, तो पानी इंजीनियरिंग, तकनीक और अनुशासित उपयोग के मामले में फिलिस्तीन को सिखाने के लिए इजरायल के पास बहुत कुछ है। फिलिस्तीन उससे सीख सकता है। इसी साझी सकारात्मकता से इस क्षेत्र में जल संतुलन कायम होगा। इसी से इस क्षेत्र में शांति बहाल होगी। इजराइल और जॉर्डन के बीच पानी का विवाद बहुत पुराना है। यह विवाद, जॉर्डन नदी के रेपेरियन राइट से जुड़ा है। लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, इजराइल और कुछ हिस्सा फिलिस्तीन का.. कायदे से जॉर्डन नदी के पानी के उपयोग में इन सभी की हकदारी है। ताजे जल निकासी तंत्र की बात करें तो खासकर इजराइल, जॉर्डन और फिलिस्तीन के लिये जॉर्डन नदी का विशेष महत्त्व है। लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि जॉर्डन के पानी पर सबसे बड़ा कब्जा, इजराइल का है। इजराइल ने फिलिस्तीन के राष्ट्रीय प्राधिकरण को पानी देने से साफ-साफ मना कर रखा है। दुनिया के 195 देशों में से करीब-करीब 150 देश ऐसे हैं, जिनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वहां पानी का कोई संकट नहीं है। पानी के संकट के कारण आई अस्थिरता ही आगे चलकर अन्य, सामाजिक, आर्थिक और सामरिक समस्याओं के रूप में उभरी है और आगे भी उभरेंगी। इजराइल ने 156 मील लंबी जॉर्डन नदी पर एक बांध बना रखा है। यह बांध, जॉर्डन की ओर बहकर जाने वाले पानी को रोक देता है। इजराइल यह सब इसके बावजूद करता है, जबकि जॉर्डन और उसके बीच पानी को लेकर 26 फरवरी, 2015 को हस्ताक्षरित एक औपचारिक द्विपक्षीय समझौता अभी अस्तित्व में है। इस समझौते के तहत पाइप लाइन के जरिए रेड सी को डेड सी से जोड़ने तथा एक्युबा गल्फ में खारे पानी को मीठा बनाने के एक संयंत्र को लेकर सहमति भी शामिल है। ताजा पानी मुहैया कराने तथा तेजी से सिकुड़ते डेड सी की

दृष्टि से इस समझौते का महत्व है। आलोचना करने वालों का कहना है कि ऐसा कोई समझौता तब तक प्रभावी नहीं हो सकता, जब तक कि इजराइल द्वारा की जा रही पानी की चोरी रुक न जाए। इजराइल द्वारा की जा रही पानी की इस चोरी ने जॉर्डन की खेती और उद्योग दोनों को नुकसान पहुंचाया है। जॉर्डन के पास घरेलू उपयोग के लिए भी कोई बहुत पानी नहीं है। इसीलिए जॉर्डन में भी लोगों ने पहले पानी के लिए संघर्ष किया और फिर अपना देश छोड़कर स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड और बेल्जियम चले गए। हालांकि, जॉर्डन के लोग यह भी महसूस करते हैं कि समझौते के बावजूद, जल संकट बरकरार रहने वाला है। वे मानते हैं कि इसका पहला कारण, जॉर्डन में भी गर्मी तथा मौसमी बदलाव की बढ़ती प्रवृत्ति है। इसकी वजह से जॉर्डन में भूमि कटाव और गाद में बढ़ोत्तरी हुई है। दूसरा वे मानते हैं कि यदि वे प्रदूषित पानी को साफ कर सकें, तो उनके पास उपयोगी पानी की उपलब्धता बढ़ सकती है। किंतु उनके पास इसकी तकनीकी का अभाव है। वर्षाजल का उचित संचयन और प्रबंधन वहां कारगर हो सकता है। किंतु जॉर्डन के इंजीनियर, छोटी परियोजनाओं में रुचि नहीं लेते। उनकी ज्यादा रुचि, नदी घाटी आधारित बड़ी बांघ परियोजनाओं में रहती है। लोग आगे आएं तो यह हो सकता है। किंतु खुद के पानी प्रबंधन के लिए उनमें प्रेरणा का अभाव है। जॉर्डन में पानी पर सरकार का अधिकार है। लोगों के बीच पानी प्रबंधन की स्वस्फूर्त प्रेरणा के अभाव के पीछे एक कारण यह भी दिखता है। सरकार और समाज के बीच पुल बने, तो प्रेरणा को जमीन पर उतारने में सफलता मिल सकती है। जॉर्डन चाहे, तो इजराइल के पानी प्रबंधन से सीख ले सकता है। किंतु दो देशों के बीच विश्वास का अभाव यहां भी आड़े आता है। लेकिन इजराइल में जॉर्डन जैसी स्थिति नहीं है। वह जल संरक्षण तकनीकों के बारे में अपने नागरिकों को लगातार शिक्षित करता रहता है।

जल संरक्षण

विविध भूगोल तथा विविध आर्थिक परिस्थितियों के कारण भारत जैसे देश के लिए यह भले ही कारगर न हो, लेकिन इजराइल ने पानी के केंद्रीत और वास्तविक मूल्य आधारित प्रबंधन को अपनाया है। इजराइल सरकार ने वहां जल नियंत्रकों की नियुक्ति की है। इजराइल ने खारे पानी को मीठा बनाने की तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया है। हालांकि यह बेहद महंगी तकनीक है; फिर भी इजराइल ने इसे अपनाया तो इसके पीछे एक कारण है। इजराइल जानता है कि उसके पास पानी का अपना एकमात्र बड़ा जलस्रोत, गलिली सागर है। उसके पास कोई अन्य स्थानीय विकल्प नहीं है। इजराइल की एक-तिहाई जलापूर्ति, गलिली सागर से ही होती है। खारे को मीठा बनाने की तकनीक के मामले में इजराइली संयंत्रों की खूबी यह है कि वे इतनी उम्दा ऊर्जा क्षमता व दक्षता के साथ संचालित किए जाते हैं कि खारे पानी को मीठा बनाने की इजराइली लागत, दुनिया के किसी भी दूसरे देश की तुलना में कम पड़ती है। गौर करने की बात है कि इजराइल में घरेलू जरूरत के पानी की मांग में से 60 प्रतिशत की पूर्ति, इस प्रक्रिया से मिले मीठे पानी से ही हो जाती है। जॉर्डन नदी के पानी को वह पूरी तरह पेयजल की मांग पूरी करने के लिए सुरक्षित रखता है। इजराइल ने अपने देश में एक बार उपयोग किए जा चुके कुल पानी में से 80 प्रतिशत को पुनः शुद्ध करने की क्षमता हासिल कर ली है। इजराइल अपने समस्त सीवेज वाटर का उपचार करता है। वह ऐसे कुल उपचारित सीवेज जल में से 85 प्रतिशत का उपयोग खेती-बागवानी में करता है और 10 प्रतिशत का इस्तेमाल नदी प्रवाह को बनाए रखने व जंगलों की आग बुझाने के लिए करता है तथा 05 फीसदी पानी समुद्र में छोड़ देता है। इजराइल में उपचारित जल का कृषि में उपयोग इसीलिए भी व्यावहारिक हो पाया है, क्योंकि इजराइल में 270 किबुत्ज हैं। सामूहिक खेती आधारित बसावटों को इजराइल में 'किबुत्ज' कहते हैं। सामूहिक खेती आधारित बसावटों का यह चलन, इजराइल में अनोखा है। यह चलन, पुनर्चक्रित जल की आपूर्ति को व्यावहारिक बनाने में मददगार साबित हुआ है। इजराइल ने सिंचाई तकनीक के क्षेत्र में जो इनोवेशन किए हैं, उनकी खूबी सिर्फ यह नहीं है

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कि वे पानी की बर्बादी रोकते हैं अथवा कम पानी में फसल तैयार कर देते हैं। उनकी खूबी यह है कि वे फसल के उत्पादन की मात्रा व गुणवत्ता को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। उनके ये नवाचार ऐसे बीजों से भी संबंध रखते हैं, जो कि कम ताजे पानी में भी बेहतर उत्पाद दे पाते हैं। इजराइल ऐसे बीजों को तैयार करने वाला दुनिया का अग्रणी देश है। इजराइल का जलापूर्ति प्रबंधन सीखने लायक है। इजराइल ने पानी पाइपलाइनों की लीकेज रोकने के बेहतरीन प्रबंध किए हैं। इजराइल ने पानी को प्रबंधन की दृष्टि से तीन श्रेणियों में बांटा है - ए, बी और सी। वर्षाजल और नदियों के बहते जल को ‘ए’ श्रेणी में रखा है। नगरों को आपूर्ति किए जा रहे ताजे जल यानी नदी जल की पाइप अलग है और इनका रंग भी अलग। ये नीले रंग की हैं। खेती में उपयोग के लिए भेजे जा रहे पुनर्चक्रित जल की पाइपों का रंग भूरा है। उद्योग के पुनर्चक्रित पानी को उपयोग के लिए उद्योगों को ही भेजा जाता है। उद्योग को जाने वाले पुनर्चक्रित जल की पाइपों का रंग, लाल रखा गया है। कह सकते हैं कि इजराइल, दुनिया का ऐसा देश है, जिसने पानी के लिए अपना प्रबंधन कौशल, इंजीनियरिंग, संसाधन तथा सामरिक व सांस्कृतिक शक्ति.. सब कुछ समर्पित भाव से झोंक दिया है। उसके इस समर्पण का ही परिणाम है कि कुल इजराइली भूगोल में से 60 प्रतिशत मरुभूमि होने तथा 1948 की तुलना में आज 10 गुना आबादी हो जाने के बावजूद, इजराइल के पास आज उसकी जरूरत से इतना ज्यादा पानी है कि वह अपने पड़ोसियों को पानी बेचता है। पानी की तकनीकी बेचने का इजराइली व्यापार भी आज करीब 2.2 अरब डॉलर प्रतिवर्ष का है। इजराइल मलिन जल को उपचारित करते हुए वह शुद्धता के उच्चतम मानकों की अनदेखी नहीं करता है। इस बारे में वहां अनुशासन है। भारत की कई कंपनियों ने इजराइल के पानी प्रबंधन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यदि भारत चाहे तो देश का पानी प्रबंधन, दुनिया को राह दिखाने वाला बन सकता है। यह प्यासे को पानी पिलाने का ही काम नहीं, दुनिया में अमन और शांति बहाल करने का भी काम होगा। भारत की सरकार और समाज को इस बारे में संजीदगी से सोचना चाहिए।


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गुड न्यूज

30 अप्रैल - 06 मई 2018

कर्ज के जरिये अदा हो रहा सद्भाव का फर्ज

मुस्लिम को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी ने ब्याजमुक्त कर्ज देकर हजारों हिंदू परिवार के जीवन में बदलाव लाया है

मु

इमरान खान

सलमान बिरादरी में भाईचारा व सामूहिकता आम बात है मगर मुस्लिम समुदाय के संगठनों द्वारा हिंदुओं के जीवन में बदलाव लाने की मिसालें निस्संदेह बदले हुए समाज में सांप्रदायिक सद्भाव को मजूबती प्रदान करती है। ऐसी ही एक मिसाल बिहार के पटना में देखने को मिली, जहां मुस्लिम को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी ने ब्याजमुक्त कर्ज देकर हजारों हिंदू परिवार के जीवन में बदलाव लाया है। कमला देवी, पंकज कुमार, गीता देवी और संजय सिंह उन्हीं परिवारों से आते हैं, जिनको अलखर को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी लिमिटेड ने रोजी-रोटी के लिए अपना कारोबार खड़ा करने के लिए ब्याजमुक्त ऋण प्रदान किया। करीब 9,000 हिंदुओं को इस सोसायटी ने कारोबार खड़ा करने के लिए ऋण प्रदान किया है। इनमें में

ज्यादातर लोग वेंडर, छोटे कारोबारी, पटरियों पर दुकान चलाने वाले, सीमांत किसान और महिलाएं हैं। पटना के मिरशिकर टोली में दुकान चलाने वाली कमला ने कहा, "मैं सड़क किनारे पटरियों पर आलू और प्याज बेचती थी। इसके लिए 2,000 से 5,000 रुपए साहूकारों से सूद पर कर्ज लेती थी और उनके कर्ज तले हमेशा दबे रहती थी। लेकिन कुछ साल पहले जब मुझे किसी ने कहा कि अल खर सोसायटी बिना ब्याज के ऋण देता है तो हैरान हो गई।" दुकान चलाने के लिए उसने सबसे पहले सोसायटी से 10,000 रुपए कर्ज लिया। उसके बाद उसने सोसायटी से 20,000 रुपए से 50,000 रुपए तक ऋण लिया। कमला ने कहा, "सोसायटी से कर्ज लेकर मैंने छोटे से खोमचे की दुकान से अपना कारोबार बढ़ाकर थोक की दुकान खोल ली।" कमला के पास अब इतने पैसे हैं कि वह अपने

दो बेटों की पढ़ाई की व्यवस्था खुद कर पा रही है। उसका एक बेटा इंजीनिरिंग कॉलेज में पढ़ता है और दूसरा बीएड कर रहा है। अलखर सोसायटी ने पिछले एक दशक में इस्लामिक मूल्यों का पालन करते करीब 20,000 लोगों को 50 करोड़ रुपए का कर्ज प्रदान किया है। इनमें ज्यादातर वे लोग शामिल हैं जो रोजी-रोटी चलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। सोसायटी के लाभार्थियों में तकरीबन 50 फीसदी हिंदू हैं। जाहिर है कि अलखर धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर जरूरतमंदों की मदद करता है। कमला की तरह गीता देवी ने भी सड़क किनारे सब्जियों की अपनी छोटी दुकान की जगह अब बड़ी सी दुकान खोल ली है। उसने अपने बेटे को भी सब्जी की एक दुकान खुलवा दिया है। गीता ने बताया, "अलखर सोसायटी के संपर्क में आने के बाद मेरी जिंदगी बदल गई। इसने हमें सम्मान की जिंदगी जीने में मदद की। हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए ब्याजमुक्त कर्ज भगवान का वरदान ही है। यहां बैंकों की तरह कर्ज मिलने की कोई अनिश्चिता नहीं होती है।" मंजू देवी ने पिछले पांच साल में अपने बच्चों की सालाना फीस भरने के लिए अलखर से 20,000 रुपए कर्ज लिया। उसके पति सड़क किनारे दुकान चलाते हैं। कमला ने कहा कि वह अपनी कमाई में से कुछ पैसे किस्त के रूप में अलखर सोसायटी को भुगतान करती है जिससे कर्ज उतर जाए। संजय सिंह ने कहा कि छोटी दुकान करने वालों को कर्ज देने में बैंकों की कोई दिलचस्पी नहीं होती है। उन्होंने कहा, "बैंक कर्ज पर ब्याज तो लेता ही है। साथ ही, कर्ज लेने के लिए इतने सारे दस्तावेज भरने की जरूरत होती है कि गरीब आदमी परेशान

हो जाता है।" संजय के पास कपड़े की छोटी सी दुकान है, जो उनकी पत्नी चलाती है और वह साइकिल पर घूम-घूम कर कपड़े बेचते हैं। अलखर सोसायटी से करीब एक दशक से जुड़े अवकाश प्राप्त बैंक अधिकारी शमीम रिजवी ने बताया, "ब्याजमुक्त कर्ज भले ही मुस्लिम परंपरा हो, क्योंकि इस्लाम में ब्याज को अनुचित माना जाता है। मगर यह (अलखर) न सिर्फ मुस्लिम, बल्कि सबको ब्याजमुक्त कर्ज देता है।" अलखर सोसायटी के प्रबंध निदेशक नैयर फातमी ने बताया कि ब्याजमुक्त कर्ज की आमपसंदी बढ़ रही है। उन्होंने कहा, "जिनकी पहुंच बैंक तक नहीं हो पाती है उनके लिए पांच से 10,000 रुपए की छोटी रकम भी काफी अहम होती है। ब्याजमुक्त कर्ज पाने वाले लोगों में करीब 50 फीसदी हिंदू हैं। ज्यादातर लोग अपनी रोजीरोटी चलाने के लिए कर्ज लेते हैं जिससे उनका सशक्तीकरण हो रहा है।" अलखर सोसायटी ब्याजमुक्त कर्ज प्रदान करने वाली एक सफल माइक्रोफायनेंस संस्था की मिसाल है, जिसने हजारों लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाई है। सोसायटी ने छोटी सी निधि से काम शुरू किया था और इसके पास शुरुआत में पटना स्थित एक छोटे से दफ्तर में सिर्फ दो कर्मचारी थे। मगर आज संस्था में 100 कर्मचारी काम करते हैं। इन कर्मचारियों के वेतन, दफ्तर का किराया और अन्य खर्च के लिए यह कर्ज लेने वालों से नाममात्र का सेवा प्रभार लेता है। मुस्लिम समुदाय के कुछ पढ़े-लिखे लोगों के साथ वर्ष 2000 के आरंभ में इस संगठन की नींव पड़ी थी। संगठन का मकसद धर्म, जाति और वर्ग की परवाह किए बगैर जरूरतमंद लोगों को आर्थिक मदद करना है।

15 मई से मणिपुर में चॉपर सेवा लागू मणिपुर के दूर दराज के क्षेत्रों को इंफाल और अन्य शहरों से जोड़ने के लिए सरकार जल्द ही हेलीकॉप्टर सेवा शुरू करने वाली है

राजीव

णिपुर राज्य में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए अगले महीने से हेलीकॉप्टर सेवाओं को लागू करने की योजना बना रहा है। पहले चरण में इंफाल- मोरेह और इंफाल- तमेंगलोंग-जिरीबाम सेक्टर शामिल होंगे, जबकि दूसरे चरण में इंफालतिपाइमुख, इंफाल-हेंगलेप, इंफाल-थानलॉन और

इंफाल-परबंग सेक्टर शामिल होंगे। मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने हाल ही में राज्य विधानसभा को सूचित किया था कि इस कार्यक्रम में दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों को सीमावर्ती राज्य से संचार अंतर को खत्म करने के लक्ष्य के साथ केंद्रित

किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हालांकि इस सेवा के लिए किराया अभी तक तय नहीं किया गया है, संभवतः किराया प्रति सीट 7000 रुपए हो सकता है। हालांकि इस सेवा का लाभ लेने की वास्तविक लागत करीब 2500 रुपए होगी, क्योंकि किराए में 75 प्रतिशत हिस्सा केंद्र का होगा। 22,347 वर्ग किलोमीटर के कुल क्षेत्रफल के साथ मणिपुर, उत्तर में नागालैंड, दक्षिण में मिजोरम, पश्चिम में असम और पूर्व में म्यांमार से घिरा है। यह खराब सड़क और रेल कनेक्टिविटी के साथ एक भूमिबद्ध राज्य है। संचार की सीमित रेखाएं स्थानीय

समूहों के लिए अतिसंवेदनशील हैं, जो अक्सर राज्य में आवश्यक वस्तुओं की कमी पैदा करती हैं। मणिपुर में दूरदराज के क्षेत्रों को ग्रामीण कनेक्टिविटी योजना के तहत हेलीकॉप्टर से जोड़ने और सभी राज्यों में समान सेवाएं प्रदान करने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है। राज्य के स्वामित्व वाले पवन हंस लिमिटेड (पीएचएल) ने पूर्वोत्तर में सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड जैसे राज्यों में यात्री सेवाओं, चिकित्सा निकासी और वीआईपी परिवहन के लिए हेलीकॉप्टर तैनात किए हैं।


30 अप्रैल - 06 मई 2018

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स्वास्थ्य

महिलाओं को योग से निरोग बना रहीं आनंदी

योग गुरु बाबा रामदेव के शिविर में योग सीख कर आनंदी न स्वयं निरोह हुईं बल्कि अपने योग ज्ञान से दूसर महिलाओं को भी निरोग बना रही हैं

श में भले ही 'योगगुरु' के रूप में बाबा देश-विदे रामदेव को प्रसिद्धि मिली हो लेकिन बिहार के

नवादा में 'योगगुरु' के रूप में एक ऐसी महिला चर्चित हैं जिन्हें बीमारियों के कारण उनके पांच बेटों ने उन्हें छोड़ दिया था। आज यह महिला न केवल योग के कारण पूरी तरह स्वस्थ हैं, बल्कि पिछले सात वर्षो से अन्य महिलाओं को भी योग की शिक्षा देकर उन्हें स्वस्थ रहने के गुर सिखा रही हैं। बिहार के नवादा जिला मुख्यालय के गोला रोड की रहने वाली 69 वर्षीय आनंदी देवी ने बताया कि करीब 10-12 वर्ष पूर्व उनका वजन करीब 85 किलोग्राम था। उनके शरीर में कमर दर्द, गठिया, ट्यूमर और कब्ज जैसी बीमारियां घर कर गई थीं। उस समय मोटापे के कारण उन्हें कुछ दूरी तक पैदल चलना भी दूभर हो गया था। इस बीमारी से तंग आनंदी जहां खुद परेशान थीं, वहीं इस हालत में उनके बेटों ने भी उनका साथ छोड़ दिया। इसी दौरान उन्हें किसी ने 'योग से निरोग' होने की बात बताई। उन्होंने बताया, "इसी बीच मुझे पटना के गांधी मैदान में योगगुरु बाबा रामदेव के योग शिविर

आयोजित होने की जानकारी मिली और वहां जाकर पति दीपनारायण प्रसाद के साथ एक सप्ताह प्राणायाम और योगासन सीखा।" आनंदी कहती हैं कि योग ने उन्हें नई जिंदगी दे दी। पटना के गांधी मैदान में योग सीखकर वे प्रतिदिन प्राणायाम और योगसान सहित कई आसन करने लगीं और धीरे-धीरे उनकी बीमारी भी दूर होती चली गई। वे कहती हैं कि आज न केवल उनका वजन घटा है, बल्कि वह पूरी तरह से निरोग भी हैं। खुद योग से निरोग हुई आनंदी इस मूलमंत्र को केवल अपने तक सीमिति नहीं रखना चाहती थीं। इसीलिए उन्होंने आसपास की महिलाओं को भी योग सिखाने का बीड़ा उठाया। वे कहती हैं कि जिंदगी के अंतिम क्षण तक वे महिलाओं को योग सिखाती रहेंगी। उन्होंने कहा, "वर्ष 2010 से मैं नवादा शहर और इसके आसपास के मुहल्लों की महिलाओं को मुफ्त में योग सिखा रही हूं। बीमारी से जूझते-जूझते मैं खुद को मरा हुआ मानने लगी थी। लेकिन योग ने मुझे नया जीवन दिया। यह नया जीवन दूसरों के जीवन देने के लिए हैं, इस कारण मैं ज्यादा से ज्यादा

लोगों को योग से मदद पहुंचाऊंगी।" आनंदी बताती हैं कि वे अब तक 1500 से ज्यादा महिलाओं को योग सिखा चुकी हैं। वे आज भी प्रतिदिन सुबह दो-तीन घंटे योग सिखाती हैं। उनके शिष्यों में न केवल नवादा के विभिन्न मोहल्लों की कामकाजी महिलाएं हैं, बल्कि इसमें गृहणियां भी शामिल हैं। वे बताती हैं, "प्रारंभ में मैं अकेले योग करती थी। इसके बाद एक-दो और महिलाएं आने लगीं, फिर एक टोली बन गई। अब नवादा के गांधी मैदान में मैं शिविर लगाती हूं, जिसमें न केवल महिलाएं बल्कि पुरुष भी आने लगे हैं।" योग के प्रति इस समर्पण को देखते हुए पतंजलि

योग समिति ने आनंदी देवी को महिला पतंजलि योग समिति का सह जिला प्रभारी बनाया है। 'योगगुरु' के नाम से चर्चित आनंदी के प्रयास का फल भी आसपास की महिलाओं को मिल रहा है। गोलारोड की रहने वाली 55 वर्षीय मीना देवी कमर और घुटने के दर्द से परेशान थीं। मीना कहती हैं कि 'योगगुरु' आनंदी ने उन्हें योग सिखाया और उन्हें प्रतिदिन योग करने की सलाह दी। आज उनका यह दर्द काफी हद तक कम हो गया है। उनके पति दीपनारायण भी कहते हैं कि आनंदी के खुद के प्रयास ने परिवार के तिरस्कार को सम्मान में बदलवा दिया है। (आईएएनएस)

डायबिटीज से लड़ने के लिए नया डिजिटल टूल

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जॉर्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं ने ‘इंपैक्ट डायबिटीज’ नामक एक ऐसा ही ऐप्प लॉन्च किया है जिसके सहारे ग्रामीण इलाकों में मधुमेह पीड़ितों के ईलाज में आसानी होगी

मीण क्षेत्रों में जहां स्वास्थ्य सेवाओं और डॉक्टरों की कमी है, वहां डिजिटल टूल डायबिटीज जैसी बीमारियों की पहचान और उनके उपचार में मददगार हो सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में डायबिटीज के मरीजों की पहचान और उनके प्रभावी उपचार के लिए ‘इंपैक्ट डायबिटीज’ नामक एक ऐसा ही ऐप्प लॉन्च किया गया है। यह ऐप्प ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मी या आशा कार्यकर्ताओं के लिए है, जो स्वास्थ्यकर्मियों के अनुभव और समुदाय की जरूरतों के बारे में उन कार्यकर्ताओं की जानकारियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। ऐप्प की मदद से ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मी या आशा कार्यकर्ताओं को डायबिटीज जांच, आहार एवं जीवन शैली संबंधी परामर्श, रेफरल और मरीजों की निगरानी में मदद मिल सकती है। ‘इंपैक्ट डायबिटीज’ ऐप्प को नई दिल्ली स्थित जॉर्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं ने बनाया है। इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर विवेकानंद झा के मुताबिक “भारत में करीब पांच करोड़ लोग टाइप-2 मधुमेह से ग्रस्त हैं और यह

आंकड़ा हर साल बढ़ रहा है। यह ऐप्प दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को समय पर दिशा-निर्देशों के मुताबिक किफायती हेल्थकेयर सेवाएं मुहैया कराने में मददगार हो सकता है। इस ऐप्प के उपयोग से जानलेवा जटिलताओं और डायबिटीज के कारण होने वाली मौतों के जोखिम को कम करने में भी मदद मिल सकती है।” जांच के दौरान बीमारी से संबंधित केस-हिस्ट्री ली जाती है और शुगर तथा रक्त की जांच की जाती है। इसके साथ-साथ वजन और लंबाई को भी दर्ज किया जाता

है। इन तथ्यों को ऐप्प में दर्ज किया जाता है और मरीज के डायबिटीज से ग्रस्त होने का पता लगाया जाता है। जांच में जो लोग अधिक जोखिम से ग्रस्त पाए जाते हैं, उन्हें डॉक्टर के पास भेजा जाता है और उपचार का नियमित फॉलो-अप भी किया जाता है। प्रोफेसर झा के अनुसार “यह पहल हमारे इंस्टीट्यूट के स्मार्ट हेल्थ कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसके तहत सामुदायिक महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं या आशा को प्रशिक्षित किया जाएगा। ये कार्यकर्ता लोगों को डायबिटीज के बारे में जागरूक करेंगे और आंकड़ो को ऐप्प में दर्ज करेंगे। ऐप्प की मदद से इस बात की भी निगरानी की जाएगी कि डायबिटीज ग्रस्त लोगों द्वारा उनके परामर्श पर किस हद तक अमल किया जा रहा है।” स्मार्ट हेल्थ कार्यक्रम की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया में एनएएसडब्ल्यू हेल्थ के आर्थिक सहयोग से

वर्ष 2013 में हुई थी। ऑस्ट्रेलिया में इस कार्यक्रम को लंबी बीमारी से ग्रस्त स्थानीय आदिवासियों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए शुरू किया गया था। स्मार्ट हेल्थ कार्यक्रम इंडोनेशिया और थाईलैंड समेत भारत के कई हिस्सों में कार्यरत है। हाइपरटेंशन, मानसिक स्वास्थ्य, डायबिटीज, किडनी एवं हृदय संबंधी बीमारियों की पहचान और मरीजों की देखभाल में जुटी हुई है। एनएसडब्ल्यू के प्रमुख ग्लेडिस बेरेजिक्लिअन ने इस ऐप्प को लॉन्च करते हुए कहा कि “ग्रामीण भारत में करीब 2.5 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं, जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में लोगों तक किफायती, प्रमाणिक और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित हो जाए तो ग्रामीण स्वास्थ्य में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिल सकता है।” प्रोफेसर ओपी कालरा के अनुसार “गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी को देखते हुए यह सही दिशा में उठाया गया कदम है, जो डायबिटीज से लड़ने में मददगार हो सकता है।” (इंडिया साइंस वायर)


16 खुला मंच

30 अप्रैल - 06 मई 2018

ब्लैक कलर भावनात्मक रूप से बुरा होता है, लेकिन हर ब्लैक-बोर्ड छात्रों की जिंदगी ब्राइट बनाता है

प्रियंका तिवारी

अभिमत

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (3 मई पर विशेष)

‘विंडहोक घोषणा’ और मौजूदा पत्रकारिता

- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

प्रदूषण और अस्थमा

देश में 50 फीसदी से ज्यादा मरीज सांस से जुड़ी किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होने के कारण डॉक्टर के पास जाते हैं

वि

श्व अस्थमा दिवस प्रत्येक वर्ष मई महीने के पहले मंगलवार को मनाया जाता है। वर्ष 1998 में पहली बार बार्सिलोना, स्पेन सहित 35 देशों में विश्व अस्थमा दिवस मनाया गया। विश्व अस्थमा दिवस का आयोजन हर वर्ष ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (जीआईएनए) द्वारा किया जाता है। चूंकि आम लोगों से लेकर चिकित्सा जगत तक जिन बीमारियों को लेकर सबसे ज्यादा चिंता है, उसमें अस्थमा शामिल है, लिहाजा यह दिन भारत सहित पूरे विश्व में अस्थमा की चुनौती से रणनीतिक स्तर पर निपटने की पहल को कारगर बनाने की अहम कोशिश है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में दमा से प्रतिवर्ष 2,50,000 लोगों की मौत हो जाती है। इस बीमारी से भारत में प्रतिवर्ष 57,500 लोगों की मौत होती है। भारत में लगभग 3.5 करोड़ लोग दमा से पीड़ित हैं, जिसमें लगभग 40 प्रतिशत मरीज अनियंत्रित अस्थमा से ग्रस्त हैं, जबकि 60 प्रतिशत मरीज आंशिक रूप से नियंत्रित दमा से ग्रस्त हैं। बात भारत की चल रही है तो जानना दिलचस्प है कि देश में 50 फीसदी से ज्यादा मरीज सांस से जुड़ी किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होने के कारण डॉक्टर के पास जाते हैं। यह खुलासा बीते साल एक शोध अध्ययन में हुआ। दरअसल, एक दिन में हमें अपने फेफड़े और शरीर के दूसरे अंगों को ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए दस हजार लीटर हवा की जरूरत पड़ती है और ऐसे में दूषित हवा न केवल लोगों को बीमार कर रही है, बल्कि और अंग भी प्रभावित हो रहे हैं। इस बीच, बच्चों में अस्थमा अटैक तेजी से बढ़ रहा है और इसकी बड़ी वजह प्रदूषण ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ही एक और रिपोर्ट से देश में प्रदूषण की बढ़ी भयावहता जाहिर हुई है। इसके मुताबिक विश्व की 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 13 भारत में मौजूद हैं, जिसमें देश की राजधानी दिल्ली की नाम सबसे ऊपर है। देश में इन दिनों स्वच्छता को लेकर जागरूकता आई है, उम्मीद है कि यह जागरूकता देश में अस्थमा की चुनौती से भी निपटने में कामयाब होगी।

टॉवर फोनः +91-120-2970819

(उत्तर प्रदेश)

लेखिका युवा पत्रकार हैं और देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार रखती हैं

दो सदी लंबी यात्रा के दौरान हिंदी पत्रकारिता ने संघर्ष और चुनौतियों के कई दौर देखे हैं। मौजूदा दौर की चुनैतियां नई तरह की और बहुस्तरीय हैं, अच्छी बात यह है कि इससे विवेकपूर्ण तरीके से जूझने की तैयारी शुरू हो गई है

दु

निया भर में पिछले कुछ सालों में पत्रकारों पर हो रहे हमलों में तेजी आई है। कुछ लोग इसे ‘पोस्ट ट्रूथ’ के नाम से उभरे ग्लोबल फिनोमेना के तौर पर देखते हैं, जिसमें मीडिया के लोकतांत्रिक आलोचकीय विवेक पर हर तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं, साथ ही उस पर प्रहार लगातार हो रहे हैं। ये प्रहार सत्ता और समाज की उन दक्षिणपंथी कही जानेवाली ताकतों की तरफ से किए जा रहे हैं, जो विसम्मति या असहमति को अपने वैचारिक प्रसार के लिए चुनौती मानते हैं। प्रत्येक वर्ष 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1993 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह प्रेस की स्वतंत्रता के सिद्धांत, प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवादाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है। गत वर्ष विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश

था- ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस एक आजाद एवं जीवंत प्रेस के प्रति हमारे अविश्वसनीय समर्थन को दोहराने का दिन है जो लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है। आजकल के दौर में सोशल मीडिया संपर्क के एक सक्रिय माध्यम के रूप में उभरी है और इससे प्रेस की आजादी को और बल मिला है।’ तीन मई को ‘विंडहोक घोषणा’, जो कि प्रेस की स्वतंत्रता से संबंधित सिद्धांतों का ब्यौरा है, की वर्षगांठ के तौर पर भी मनाया जाता है। वर्ष 1991 में इसी दिन अफ्रीका के पत्रकारों ने इस घोषणा पत्र को अंतिम रूप दिया था। इस तिथि को प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए चुनौतियों का सामना करते हुए बेहतरीन काम करने वाले पत्रकारों या संगठनों को यूनेस्को गुलेरमो कानो प्रेस फ्रीडम पुरस्कार भी यूनेस्को द्वारा प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार 1997 से प्रदान किया जा रहा है। इस पुरस्कार को देने का निर्णय समाचार जगत से जुडे 14 पेशेवरों की सिफारिश के आधार पर किया जाता है। प्रेस

तीन मई को ‘विंडहोक घोषणा’, जो कि प्रेस की स्वतंत्रता से संबंधित सिद्धांतों का ब्यौरा है, की वर्षगांठ के तौर पर भी मनाया जाता है। वर्ष 1991 में इसी दिन अफ्रीका के पत्रकारों ने इस घोषणा पत्र को अंतिम रूप दिया था


30 अप्रैल - 06 मई 2018 की स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन और यूनेस्को के सदस्य देश इसके लिए पत्रकारों या संगठनों के नाम सुझाते हैं। यह पुरस्कार कोलंबिया के पत्रकार गुलेरमो कोना इसाजा के सम्मान में दिया जाता है। अवैध तरीके से नशे का कारोबार करने वालों के खिलाफ लिखने के कारण 17 दिसंबर, 1986 को बगोटा में गुलेरमो की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस दिन यूनेस्को मीडिया पेशेवरों, प्रेस फ्रीडम ऑर्गनाइजेशन और यूएन एजेंसीज के साथ मिलकर विश्व भर में प्रेस की स्वतंत्रता के समक्ष आने वाली चुनौतियों को लेकर परिचर्चा भी करता है। इसके लिए हर वर्ष एक विषय का चुनाव किया जाता है और उसी के आधार पर चर्चा की जाती है इसी तरह दो नवंबर को हर साल संयुक्त राष्ट्र की तरफ से पत्रकारों पर हिंसक हमलों के खात्मे और इस तरह की दमनात्मक कार्रवाइयों के खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। 2013 में जब संयुक्त राष्ट्र ने यह फैसला लिया तो उसके पहले विश्व मीडिया जगत के साथ सिविल सोसायटी ने इस बात पर चिंता जताई थी कि मीडिया संस्थानों के साथ पत्रकारों पर बढ़ रहे हमले उस लोकतांत्रिक आजादी को कमजोर करने जैसा है, जिससे लोकतंत्र ही नहीं, बल्कि मानवाधिकार से जुड़ी अस्मिता को अक्षुण्ण बनाए रखने में मदद मिलती है। इसीलिए कुछ वर्ष पूर्व तीन मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव बान की मून ने कहा भी कि दुनिया भर में पत्रकारों के खिलाफ हिंसक हमले जिस तरह बढ़ रहे हैं, वे हमें उस प्रवृति के प्रति सावधान कर रहे हैं, जिनके तेजी से उभरने का मतलब आलोचना और सूचना के सार्वजनिक स्पेस को कम करते जाना है, उसके लिए जरूरी निर्भीकता को प्रभावित करना है। दुनिया में पत्रकारिता का इतिहास कई स्तरों पर विभाजित है। कोई इसे रोम से मानता है, तो वहीं कोई इसे 15वीं शताब्दी में जर्मनी के गुटनबर्ग की प्रिंटिंग मशीन की शुरुआत से माना जाता है। जहां तक दुनिया के पहले अखबार का प्रश्न है तो उसकी शुरुआत यूरोप से ही हुई। दरअसल, 16वीं शताब्दी के अंत में, यूरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में, व्यापारी योहन कारोलूस ने रईस ग्राहकों को सूचना-पत्र लिखवा कर प्रकाशित करता था। बाद में उसने छापे की मशीन खरीद कर 1605 में समाचार-पत्र छापा। उस समाचार-पत्र का नाम था ‘रिलेशन’। यही विश्व का प्रथम मुद्रित समाचार-पत्र माना जाता है। बात करें भारत की तो यहां पत्रकारिता का इतिहास कम से कम दो सदी पुराना है। भारत में पत्रकारिता की शुरुआत 1780 में हुई जब प्रथम मुद्रित अंग्रेजी समाचार ‘कलकत्ता जेनरल एडवरटाइजर’ का प्रकाशन आरंभ हुआ। इस पत्र की शुरुआत जेम्स ऑगस्टस हिक्की नाम के अंग्रेज ने की थी और उसी के नाम से इसका नाम ‘हिक्की गजट’ पड़ गया। 1780 से 1818 तक भारतीय पत्रकारिता पर केवल अंग्रेज ही छाए रहे और इस अवधि में जितने पत्र निकले वे सभी अंग्रेजी में ही थे। भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों का इतिहास 1818 से प्रारंभ होता है। भारतीय भाषाओं के पत्रों में निकले ‘दिग्दर्शन’ और ‘समाचार दर्पण’, ये

भारत में हिंदी पत्रकारिता के इतिहास पर नजर डालें तो 30 मई का दिन सबसे गौरवशाली दिन है। दरअसल, इसी दिन हिंदी के पहले अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ की पहली प्रति निकली थी। कह सकते हैं कि यह दिन हिंदी पत्रकारिता का जन्म दिवस है दोनों बांग्ला समाचार पत्र थे। ‘दिग्दर्शन’ मासिक था, जबकि ‘समाचार दर्पण’ साप्ताहिक। बांग्ला के बाद गुजराती भाषा ने पत्रकारिता के क्षेत्र में जोर पकड़ा। पहला गुजराती पत्र ‘बंबई समाज’ था, जो 1823 में प्रकाशित हुआ। हिंदी का प्रथम पत्र 1826 में निकला जिसका नाम ‘उदन्त मार्तण्ड’ था। मराठी का पहला पत्र ‘बम्बई दर्पण’ 1832 में निकला। भारत में फारसी-पत्रकारिता की शुरुआत 1818 में हुई थी। बताया जाता है कि बांग्ला साप्ताहिक ‘समाचार दर्पण’ का एक फारसी संस्करण भी इसी के साथ निकला था। यदि भारत में हिंदी पत्रकारिता के इतिहास पर नजर डालें तो 30 मई का दिन सबसे गौरवशाली दिन है। दरअसल, इसी दिन हिंदी के पहले अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ की पहली प्रति निकली थी। कह सकते हैं कि यह दिन हिंदी पत्रकारिता का जन्‍मदिवस है। हिंदी के प्रथम समाचार पत्र का प्रकाशन मई, 1826 में कोलकाता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। इस अखबार के संपादक जुगलकिशोर शुक्ल थे। उन्होंने ही वर्ष 1826 में कलकता के कोलू टोला मोहल्ले की 37 नंबर आमड़ तल्ला गली से ‘उदन्त मार्तण्ड’ निकाला। हिंदी के लिए यह बड़ी ही गौरव की बात थी कि उस समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे, लेकिन हिंदी में एक भी पत्र नहीं था। ऐसे में ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रकाशन ने पूरे देश को भाषा के एक नए सूत्र में पिरोने की शुरुआत की। यह पत्र हर मंगलवार पुस्तकाकार छपता था। इसके कुल 79 अंक ही प्रकाशित हुए और अपने निकलने से तकरीबन डेढ़ साल बाद दिसंबर, 1827 ई को इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा। इसे बंद करने की सबसे मुख्य वजह आर्थिक

थी। इतिहासकारों के मुताबिक कंपनी सरकार ने मिशनरियों के पत्र को तो डाक आदि की सुविधा दी थी, लेकिन ‘उदंन्त मार्तण्ड’ को यह सुविधा नहीं मिली। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय पत्रकारिता जनता के प्रति उत्तरदायित्व की भावना को लेकर नए युग में प्रवेश करती है। जनता और शासक के बीच विरोध खत्म हुआ। इससे सरकार और प्रेस के संबंधों का नया अध्याय शुरू हुआ। 1956 में राज्य पुनर्गठन कमीशन की रिपोर्ट के बाद प्रादेशिक भाषा-भाषी पत्रों की संख्या और प्रभाव में भी अभिवृद्धि हुई। विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में अमृत बाजार पत्रिता, मलयालम मनोरमा, महाराष्ट्र टाइम्स, प्रजावाणी, तांती, हिंद समाचार आदि उत्कृष्ट कोटि के पत्र प्रकाशित हो रहे थे। आजादी की लड़ाई के अंतिम चरण में खासतौर पर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय प्रेस इमरजेंसी अधिनियम तथा युद्धकालीन आदेशों के अंतर्गत राष्ट्रीय समाचार पत्रों को बुरी तरह कुचला गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय समाचार पत्रों ने खुली हवा में सांस ली। तब से भारतीय पत्रकारिता में अबाध गति से उन्नति हुई है। प्रारंभ में विकास की धारा विच्छिन्न थी। कई कठोर नियम उस समय उठा लिए गए थे। कागज आरंभ से उपलब्ध होने लगे थे। मगर इस प्रगति के बाद भी यह स्पष्ट था कि प्रेस का पूरा प्रभाव जम नहीं पाया था, क्योंकि वर्षों तक उसकी व्यवहारिक क्षमताएं तथा तकनीकी उपलब्धियां विकसित नहीं हो पाई थीं। 1952-54 में बने प्रेस कमीशन द्वारा छोटे समाचार-पत्रों की जांच समिति भी नियुक्त की गई। प्रेस कमीशन की रिपोर्ट प्रत्येक भारतीय पत्रकार के लिए धर्मग्रंथ की तरह महत्वपूर्ण सिद्ध हुई। उसमें भारतीय प्रेस के अनेक पहलुओं पर विचार किया गया। छोटे पत्रों की जांच समिति ने 1966 में अपनी

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रिपोर्ट प्रस्तुत की। 1972 में भारतीय समाचार पत्रों की अर्थ व्यवस्था के सभी व्यवस्था के सभी तथ्यों की जांच करने के लिए एक और समिति गठित की गई। उसने सात मार्च 1975 को संसद में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। प्रेस कमीशन के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जी. एस. राजाध्यक्ष थे। प्रथम कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उसमें मुख्य यह थे कि भारतीय प्रेस अनेक स्वामित्वाधिकारों के अंतर्गत विकसित हो। प्रेस रजिस्ट्रार की नियुक्ति की जाए, जो भारतीय समाचार पत्रों के कामों का सर्वेक्षण करे। तथा एक प्रेस काउंसिल की नियुक्ति की जाए। कुल मिलाकर कमीशन के सुझाव एक स्वास्थ्य प्रेस के विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने गए। प्रेस कमीशन और छोटे पत्रों की जांच समिति ने प्रशंसनीय कार्यों के बाद भी भारतीय प्रेस सहमे से थे। अखबारी कागज की कमी ने प्रेस के विकास में बड़ा अवरोध उत्पन्न किया। हालांकि इधर कागज अधिक प्राप्त होने के कारण यह स्थिति कुछ भी हो गई थी। अलबत्ता कागज के मोर्चे पर आई अनुकूलता दूसरे मार्चों पर नहीं दिखती है। 2017 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मीडिया वॉचडॉग ‘द हूट’ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि महज 16 महीनों में भारत में पत्रकारों पर 54 हमले दर्ज करवाए गए, टीवी समाचार चैनलों के कम से कम तीन प्रतिबंध के मामले सामने आए, 45 इंटरनेट बंद किए गए और 45 व्यक्तियों और समूहों के खिलाफ राजद्रोह के मामले दर्ज हुए हैं। ‘द हूट’का यह अध्ययन जनवरी 2016 से अप्रैल 2017 तक भारत में प्रेस स्वतंत्रता के स्तर का मूल्यांकन करता है और सामान्य सामाजिक स्वतंत्रता पर संबंधित प्रतिबंधों का विश्लेषण करता है। सबसे अहम बात है कि इन तमाम मामलों में अपराधी बिना किसी सजा के बच जाते हैं। दिलचस्प है कि 2014 में ऐसे 114 मामलों में से केवल 32 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। बात मौजूदा स्थिति की करें तो एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि माफिया के साथ सरकार के आपराधिक संबंधों और गड़बड़ियों को उजागर करने वाले पत्रकारों पर हमले किए जा रहे हैं। गिल्ड ने प्रेस नोट जारी कर इन दोनों घटनाओं पर कार्रवाई की मांग की है। साफ है कि देश में पत्रकारिता को लेकर जोखिम लगातार बढ़ता जा रहा है। ‘रिपोर्टर्स विडआउट बार्डर्स’ द्वारा 2017 में प्रकाशित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के 180 देशों में भारत 136 वें स्थान पर है। इससे पहले भारत तीन स्थान ऊपर था। इस रिपोर्ट में भारत में कम होती स्वतंत्रता के बारे में बताया गया है। इसका कारण लोगों के सूचना पाने के आधार पर प्रतिबंध, इंटरनेट के इस्तेमाल और साथ ही ऑनलाइन या कई और व्यक्तिगत प्रतिबंध है। प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों को कार्य करने की आजादी को लेकर के लिए मौजूदा दौर वाकई आत्मचिंतन का है। वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने इस आत्मचिंतन से खुद को जोड़ते हुए कहा है कि यह आत्मचिंतन पत्रकार के साथ सरकार और समाज के हर तबके को निजी और सामूहिक स्तर पर करनी चाहिए।


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हाथी सबका साथी

भारतीय जीवन और परंपरा में हाथियों का महत्व पौराणिक काल से रहा है। इसी कारण भारत सरकार ने भी हाथी को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा दे रखा है। 12 अगस्त, 2017 को जारी भारत सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हाथियों की कुल संख्या 27,312 दर्ज की गई है। हाथियों की सुरक्षा को जहां क्रूर वन-तस्करों से भारी खतरा है, वहीं आम जीवन में हाथियों को लेकर प्रेम और सद्भाव की परंपरा आज भी कायम है

फोटो : ​िशप्रा दास


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पौराणिक मान्यता के अनुसार हाथी का जन्म आकाशीय जल से हुआ है। यही वजह है कि हाथी को जल और समृद्धि के जीवंत प्रतीक के तौर पर देखने की परंपरा हमारे यहां सदियों से है। हाथियों को लेकर बढ़ी क्रूरता जहां चिंता बढ़ाने वाली है, वहीं इसकी देखभाल और उनसे प्यार करने वाले भी कम नहीं हैं

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आम आदमी की उड़ान

देश का एविएशन सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है। घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या 28 प्रतिशत बढ़कर रिकार्ड 1.15 करोड़ के पार पहुंच गई है

खास बातें उड़ान योजना से देश के एविएशन सेक्टर में बड़ा उछाल आईजीआई एशिया का सबसे बड़ा हवाई अड्डा बना आईजीआई पर हर दिन आते हैं 6 करोड़ यात्री

एसएसबी ब्यूरो

र आम आदमी की यह इच्छा होती है कि वह भी अमरों की तरह हवाई जहाज में उड़े। सरकार ऐसे तमाम लोगों की इस इच्छा को पूरा करने के लिए सतत प्रयासरत है। सरकार लगातार देश के छोटे शहरों में हवाई सेवाएं उपलब्ध कराने और आम लोगों को भी सस्ते टिकट देने का प्रयास कर रही है, ताकि देश का कॉमन मैन आसानी से हवाई यात्रा कर सके। सरकार की इस पहल का नतीजा भी अब दिखने लगा है। सिविल एविएशन मिनिस्ट्री के आंकड़ो के अनुसार पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में इस साल मार्च में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या 28.03 प्रतिशत बढ़कर रिकॉर्ड एक करोड़ 15 लाख 80 हजार के पार पहुंच गई। पिछले साल मार्च में घरेलू मार्गों पर हवाई यात्रियों की संख्या 90 लाख 45 हजार थी। जारी आंकड़ो के अनुसार साल के पहले 3 महीने में जनवरी से मार्च के बीच हवाई यात्रियों की संख्या 23.87 फीसदी बढ़कर 3 करोड़ 37 लाख 90 हजार पर पहुंच गई। पिछले साल जनवरी-मार्च में यह संख्या दो करोड़ 72 लाख 79 हजार रही थी। आंकड़ो से साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद देश का एविएशन सेक्टर भी उड़ान भर रहा है। सबसे अहम बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी का सपना था कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई यात्रा कर सके, और उनका यह सपना भी अब पूरा हो रहा है। सरकार ने हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण, नए एयरपोर्ट के निर्माण

और देश के छोटे शहरों को नए हवाई मार्गों से जोड़ने के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किया है। भारत बीते साल लगातार तीसरी बार दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता घरेलू विमानन बाजार बना रहा। अंतरराष्ट्रीय हवाई परिवहन संघ (आईएटीए) ने कहा है कि 2017 में भारत यात्रियों की संख्या (आरपीके) में 7.6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। यह दस साल के 5.5 प्रतिशत औसत से अधिक है। आईएटीए की रिपोर्ट के अनुसार घरेलू विमानन बाजार ने 17.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। लगातार तीसरे साल इसमें वृद्धि दर्ज हुई है। प्रधानमंत्री मोदी हमेशा से इसके पक्षधर रहे हैं कि विमानों के यात्री किराए में कमी हो और यह आम लोगों की पहुंच में हो। इसी मकसद से उन्होंने पिछले वर्ष उड़ान योजना शुरू की थी। प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि देश के छोटे शहरों में हवाई सेवाएं उपलब्ध हों और आम लोगों को भी सस्ते टिकट मिलें, जिससे वो हवाई यात्रा कर सकें। प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल का नतीजा भी अब दिखने लगा है। सिविल एविएशन मिनिस्ट्री के आंकड़ो के अनुसार 2016-17 में 15.84 करोड़ लोगों ने हवाई यात्रा की है। यह संख्या 2015-16 में हवाई यात्रा करने वालों की संख्या 13.49 करोड़ से 2.35 करोड़ अधिक है। गौरतलब है कि इससे

पहले 2014-15 में 11.58 करोड़ लोगों ने हवाई जहाज में यात्रा की थी। आंकड़ो से साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद देश का एविएशन सेक्टर भी उड़ान भर रहा है। सबसे अहम बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी का सपना था कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई यात्रा कर सके, और उनका यह सपना भी अब पूरा हो रहा है। उड़ान योजना 15 जून 2016 को जारी राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति यानी एनसीएपी की एक प्रमुख घटक है। इसके तहत करीब 500 किलोमीटर के लिए एक ‘फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट’ विमान से एक घंटे की यात्रा या किसी हेलीकॉप्टर से आधे घंटे की यात्रा का हवाई किराया 2500 रुपए होगा। इसके साथ ही इस योजना के तहत देश के छोटे शहरों को हवाई मार्ग से जोड़ा जा रहा है। इस योजना के तहत देशभर में 141 नए हवाई रूट चिन्हित किए गए हैं। नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय अब इन नए मार्गों पर हवाई जहाज चलाने की योजना पर काम कर रहा है। कई रूट ऐसे हैं, जिन पर विमानों का परिचालन शुरू भी कर दिया गया है। कम किराये के कारण विमान सेवा कंपनियों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए वॉयेबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) के रूप में सरकार क्षतिपूर्ति देती है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने भी इसके

‘उड़ान’ योजना का दूसरा चरण शुरू हो गया है। छोटे शहरों को विमान नेटवर्क से जोड़ने वाली इस योजना में 60 नए शहरों से विमान सेवा शुरू होने वाला है

लिए हवाई अड्डा शुल्क माफ कर दिया है। वहीं सुरक्षा, बिजली तथा अग्निशमन सुविधाएं भी राज्य सरकारें नि:शुल्क दे रही है। प्रधानमंत्री ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश में शिमला के जुब्बड़हट्टी एयरपोर्ट से सस्ती हवाई सेवा ‘उड़ान’ की शुरुआत की थी। इसके तहत शिमला से दिल्ली के लिए पहली फ्लाइट ने उड़ान भरी थी। इस अवसर पर उन्होंने कहा ”मैं चाहता हूं कि हवाई जहाज में हवाई चप्पल वाले लोग दिखाई दें।” उन्होंने कहा कि दुनिया में हवाई सफर का सबसे ज्यादा स्कोप भारत में है और इस क्षेत्र में हमारी सरकार लगातार कार्य कर रही है। ढाई हजार रुपए में 500 किलोमीटर की एयर ट्रैवल वाली ये क्षेत्रीय संपर्क योजना अपने मूल उद्देश्य ‘उड़े देश का आम आदमी’ के लक्ष्य के साथ पहली उड़ान भरी। प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले धारणा थी कि हवाई यात्रा राजा-महाराजा का ही विषय है। इसीलिए एयर इंडिया का लोगो भी ‘महाराजा’ ही था। उन्होंने कहा कि अटल जी की सरकार के समय मैंने राजीव प्रताप जी से कहा कि ये लोगो बदलकर महाराजा के लोगो की जगह कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण का कॉमनमैन क्यों नहीं लग सकता। उनका ये सपना पूरा हुआ इसके लिए उन्हें बेहद खुशी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में पहली बार एविएशन पॉलिसी बनाने का सौभाग्य उनकी सरकार को मिला है और अब हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाई यात्रा कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम टैक्सी से सफर करें तो 8-10 रुपए प्रति किलोमीटर का खर्च आता है और शिमला आने में समय करीब 10 घंटे लगते हैं। लेकिन इस पॉलिसी से खर्च सिर्फ 6 या 7 रुपए ही होगा। उन्होंने टूरिज्म को सबसे तेजी से ग्रोथ करने वाला इंडस्ट्री बताते हुए कहा कि नॉर्थ ईस्ट जो जाता है वह बार-बार जाना चाहता है। लेकिन कनेक्टिविटी के अभाव में वह ऐसा नहीं कर पाता। इस योजना से सिर्फ यात्रा


30 अप्रैल - 06 मई 2018 की सुविधा ही नहीं, बल्कि दो संस्कृतियां भी जुड़ती हैं। देश के एक कोने को दूसरे से जोड़ने का काम इससे हो रहा है। ‘उड़ान’ योजना का दूसरा चरण शुरू हो गया है। छोटे शहरों को विमान नेटवर्क से जोड़ने वाली इस योजना में 60 नए शहरों से विमान सेवा शुरू होने वाला है। इन शहरों से विमान सेवा शुरू करने के लिए नागरिक उड्डयन विभाग पहले ही मंजूरी दे चुका है। उड़ान योजना के लिए कुल 15 विमान सेवा व हेलिकॉप्टर सेवा प्रदाताओं को 325 मार्गों का आवंटन किया गया। इसके तहत कुल 109 हवाई अड्डों और हेलिपोर्ट को जोड़ा जाएगा। इनमें 60 से अभी नियमित उड़ानों का संचालन नहीं होता है, जबकि 13 ऐसे हवाई अड्डे और हेलिपोर्ट हैं जहां से अभी एक सप्ताह में 14 से कम उड़ानों का संचालन होता है।

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केरल का कन्नूर, पंजाब का भटिंडा, राजस्थान का बिकानेर, जैसलमेर, पश्चिम बंगाल से कूच बिहार और बर्णपुर शामिल हैं। इसके अलावा बिहार के 2014-15 11.58 करोड़ दरभंगा और झारखंड का बोकारो, दुमका, उत्तराखंड के 2015-16 13.49 करोड़ पिथैरागढ़, अल्मोड़ा, हल्दवानी, हरिद्वार, मसूरी, नैनीताल, रामनगर, श्रीनगर तो महाराष्ट्र के 2016-17 15.84 करोड़ कोल्हापुर, शोलापुर, जलगांव से नियमित उड़ानें शुरू होंगी। बीते वर्ष के आरंभ में जहां उड़ान के दूसरे चरण में 31 हेलिपोर्टों से भी देश में नियमित विमान सेवा वाले हवाई अड्डों की सेवाएं शुरू करने के प्रस्ताव आए। जिन शहरों से संख्या करीब 75 थी, उड़ान के पहले दो चरणों उड़ान के तहत सेवाएं शुरू होंगी, उनमें अरुणाचल में ही इसके बढ़कर 150 से अधिक हो जाने की प्रदेश में पस्सीघाट, ईटानगर, तेजू, जीरो, असम उम्मीद है। का जोरहट, तेजपुर, मणिपुर का जिरिबम, पाबुंग, दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई गुजरात का कांडला, पोरबंदर, हरियाणा का अड्डा सालाना 6 करोड़ या इससे ज्यादा यात्रियों हिसार, हिमाचल प्रदेश का कसौली मंडी, शिमला, की आवाजाही वाले दुनिया के 20 हवाई अड्डों जम्मू-कश्मीर का करगिल, कनार्टक का हुबली, में शामिल हो गया है। वर्ष 2017 में पहली बार

हवाई यात्रियों की संख्या

आईजीआई हवाई अड्डे पर यात्रियों की संख्या 6 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई। यह मुकाम हासिल करने वाला यह भारत ही नहीं, दक्षिण एशिया का भी इकलौता एयरपोर्ट है। पिछले सप्ताह विमानन क्षेत्र की सलाह एवं अनुसंधान संस्था सेंटर फॉर एविएशन की जारी एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई। अगले कुछ सालों में मुंबई भी इस क्लब में शामिल होने की उम्मीद है। सीट क्षमता के हिसाब से दिल्ली हवाई अड्डा दुनिया में 14वें नंबर पर है। यह आंकड़ा प्रति सप्ताह हवाई अड्डे से जाने वाली उड़ानों में उपलब्ध कुल सीटों की संख्या के अनुसार होता है। नए साल के पहले सप्ताह 1 से 7 जनवरी के दौरान आईजीआई की सीट क्षमता 15,30,021 थी। इस मामले में 23,30,043 सीटों के साथ दुबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहले स्थान पर है। इसके बाद शीर्ष 5 में क्रमश: बीजिंग कैपिटल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, अटलांटा हार्ट्सफील्डजैक्सन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, लॉस एंजिल्स अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और टोक्यिो हनेदा हवाई अड्डा शामिल है।

बाघ, तेंदुए क्यों कर रहे मानव पर हमला?

सिकुड़ते वन्य क्षेत्र के कारण बाघों और तेंदुए लोगों पर हमला कर रहे हैं। ऐसा लोगों के जंगलों में प्रवेश करने और इन जानवरों के लिए कोई और रास्ता नहीं छोड़ने की वजह से हुआ

त्तर प्रदेश के दुधवा-पीलीभीत क्षेत्र में वर्ष 2000 से 2013 के बीच बाघों और तेंदुओं के हमले में कम से कम 156 लोगों की मौत या वे घायल हुए। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसा लोगों के जंगलों में प्रवेश करने और इन जानवरों के लिए कोई और रास्ता नहीं छोड़ने की वजह से हुआ। 5000 वर्ग किलोमीटर में फैले दुधवा-पीलीभीत क्षेत्र में चार महत्वपूर्ण रिजर्व हैं, जिनमें दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, कतरनीघाट और किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और पीलीभीत टाइगर रिजर्व प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों में मनुष्य और बाघों के बीच संघर्ष चरम पर है। ये सभी जंगल गांव से घिरे हुए हैं, लेकिन पीलीभीत में बाघों के हमले में सबसे ज्यादा लोग मरे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, "पीलीभीत में इस वर्ष मार्च में कम से कम छह लोगों की मौत की पुष्टि हुई है और 2017 में पांच विभिन्न बाघों द्वारा 21 लोग मारे गए थे। एक बाघ को नरभक्षी घोषित किया गया था और फरवरी 2017 में लखनऊ चिड़ियाघर भेजा गया था।" 'लिविंग विद द वाइल्ड : मिटिगेशन कंफ्लिक्ट बिटवीन ह्यूमंस एंड बिग कैट स्पीशीज इन उत्तर प्रदेश' नामक रिपोर्ट में लोगों की मौत की वैकल्पिक वजह बताई गई है और तेंदुए

की खराब रोशनी वाली 'कहानी' को खारिज कर दिया। उत्तर प्रदेश वन विभाग और वाइल्ड लाइफ ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) की संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है, "आश्चर्यजनक तरीके से, बाघ वनक्षेत्र या अपने जंगल के किनारों, खासकर गन्ने के खेत में जहां बाघ प्राय: रहने लगे हैं, में लोगों पर हमला करते हैं।" रिपोर्ट के अनुसार, "अधिकतर हमले 'दिन में' होते हैं, जिसमें बताया गया है सात से 70 वर्ष की आयु के लोगों पर हुए हमले दुर्घटनावश आमने-सामने

आ जाने की वजह से होते हैं।" रिपोर्ट के अनुसार, "क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले में, वर्ष 2006 और 2012 के बीच 90.1 प्रतिशत मामले तेंदुए और बाघों के हैं। अन्य 9.9 प्रतिशत संघर्ष के मामले भालू, हाथी और मगरमच्छ द्वारा हुए हैं।" व्यवहार शास्त्र और पशुओं के व्यवहार के बारे में अध्ययन करने के बाद रिपोर्ट में बताया गया है, "बाघ भी चयनित आयु वर्गो के लोगों पर हमला नहीं करते हैं। हालांकि 50 प्रतिशत तेंदुए बच्चों और छोटे पशुओं जैसे भेड़, बकरी पर हमला करते हैं, जबकि बाघ बड़े जंतुओं जैसे भैंसों, घोड़ों और गायों पर हमला करते हैं।" डब्ल्यूटीआई के मानववन्यजीव संघर्ष में कमी लाने के विभाग के प्रमुख और रिपोर्ट के मुख्य निर्माता डॉ. मयूख चटर्जी ने कहा, "बाघों के मामलों में, अधिकतर लोग लकड़ी इकट्ठा करने जंगल जाते हैं और तभी संघर्ष होता है। ऐसे भी कई मामले हैं जहां बाघों ने मानवों के आवास में प्रवेश कर मानवों की हत्या की है, लेकिन यह काफी कम है।" रिपोर्ट के अनुसार, बाघों द्वारा 87 प्रतिशत हमले जंगलों, इसके आस-पास और गन्ने के

खेतों में किए गए हैं, जबकि 13 प्रतिशत हमले गांवों और घरों के पास किए गए। चटर्जी के अनुसार, बाघों की तुलना में तेंदुओं ने जंगलों और इसके आस-पास केवल 7.94 प्रतिशत हमले किए। रिपोर्ट के अनुसार, ‘तेंदुओं ने इस दौरान 92.1 प्रतिशत हमले गांव या इसके आसपास किए। इनमें से तेंदुओं ने 47.6 प्रतिशत हमले लोगों के घरों या घरों के आस-पास किए। तेंदुओं ने वहीं 15.87 प्रतिशत हमले गांव के अंदर किए, वहीं कृषि भूमि क्षेत्र में 28 प्रतिशत हमले किए।’ रिपोर्ट के अनुसार, ‘“2000 से 2013 के बीच बाघों के हमले में कम से कम 49 लोग मारे गए और 24 घायल हुए। वहीं तेंदुओं के हमले में 14 लोग मारे गए और 49 घायल हुए।” उत्तर प्रदेश को छोड़कर पूरे भारत में 2015-16 के दौरान 32 लोग मारे गए और 2016-17 में 13 लोगों की मौत हुई। पीलीभीत में जहां राष्ट्रीय औसत से ज्यादा बाघों और मानवों के संघर्ष के मामले सामने आए हैं, बड़े जंगली किनारों को कृषि के लिए प्रयोग किया जा रहा है। अवैध कब्जा इस क्षेत्र का बड़ा मुद्दा है। आधिकारिक रिकार्ड के अनुसार, ‘जनवरी 2017 तक जंगलों के 14.84 लाख हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जा किया गया, जिसमें से उत्तरप्रदेश में 22,869 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा किया गया।’ ठंड के मौसम में अक्टूबर से फरवरी माह के दौरान बाघों ने मानवों पर ज्यादा हमले किए, क्योंकि इस दौरान लोग लकड़ी इकट्ठा करने जंगल क्षेत्र में जाते हैं। (आईएएनएस)


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गुड न्यूज

30 अप्रैल - 06 मई 2018

एड्स प्रशिक्षण मॉड्यूल सुरक्षा बल कोहिमा में शुरू राजीव

गालैंड सरकार ने कानून प्रवर्तन एजेंसी और विश्वास-आधारित संगठनों (एफबीओ) के लिए एचआईवी और एड्स पर प्रशिक्षण मॉड्यूल लॉन्च किया है। यह पैकेज कृपा फाउंडेशन, नागालैंड द्वारा फैमिली हेल्थ इंटरनेशनल (एफएचआई) 360 और नागालैंड स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी (एनएसएसीएस) के साथ तैयार किया गया है। इस मॉड्यूल का लक्ष्य राज्य की पुलिस बल और चर्च श्रमिकों को एचआईवी और एड्स के सामूहिक प्रतिक्रिया के लिए सशक्त बनाना है। इसके साथ ही सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना, मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और रोग से जुड़े कलंक और भेदभाव को दूर करना भी इसका मुख्य उदेश्य है। उद्घाटन समारोह में मुख्य सचिव ने कहा कि जब वह राज्य स्वास्थ्य विभाग में सेवारत थे, तब पंद्रह साल पहले एचआईवी और एड्स को लेकर दृष्टिकोण काफी अलग था। उन्होंने कहा कि प्रारंभ में चर्च एचआईवी और एड्स को किसी व्यक्ति के पापों के साथ जोड़कर देखता था, लेकिन अब चर्च ने अपने दरवाजे जागरूकता पैदा करने के लिए खोल दिए हैं। उन्होंने याद दिलाया कि एचआईवी और एड्स का मुद्दा देश के लिए अभी भी एक बड़ी चुनौती है। हालांकि इस बीमारी से निपटने के लिए रणनीतियों को बदलने की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है, क्योंकि समय के साथ नई चुनौतियों

नगालैंड में एड्स के बढ़ते खतरे को रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने एचआईवी और एड्स पर प्रशिक्षण मॉड्यूल लॉन्च किया है

नगालैंड की जनसंख्या लगभग 20 लाख है और साल 1999 से 2018 के बीच 10,16,700 रक्त नमूनों की जांच की गई है। उसमें से लगभग 22,878 रक्त नमूनों को सकारात्मक पाया गया का भी उदय हुआ है। उन्होंने कृपा फाउंडेशन और अन्य एजेंसियों को कमजोर समूहों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी। पुलिस महानिदेशक रुपिन शर्मा का मानना था कि विभिन्न शैक्षणिक कार्यक्रमों के कारण एचआईवी और एड्स वाले लोगों के खिलाफ भेदभाव कुछ हद तक कम हो गया है, लेकिन अभी भी कुछ जगहों पर भेदभाव की भावना कायम है। उन्होंने महसूस किया कि यही वह जगह है, जहां कानून प्रवर्तन एजेंसियां काम आ सकती हैं। उन्होंने एचआईवी और एड्स से निपटने के लिए पुलिस की दो भूमिकाएं, एक प्रशिक्षण मॉड्यूल के उपभोक्ता के रूप में और दूसरी सुविधाकार की

भूमिका निभाते हुए रेखांकित की। नगालैंड बैपटिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) के रेव डॉ. मेचीहोल सावी ने स्वीकार किया कि चर्च ने काफी समय से ही एचआईवी और एड्स को "पापी मानव जाति पर भगवान के फैसले की बीमारी" के रूप में देखता था और इसीलिए इस मुद्दे के निकारण के लिए खुद को दूर ही रखता था। उन्होंने कहा कि चर्च खुद को हमेशा के लिए इस समुदाय से अलग नहीं कर सकता और इसीलिए हमें इस मुद्दों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। कृपा फाउंडेशन नागालैंड के निदेशक अबू मेरे ने प्रकाश डाला कि कृपा 'परियोजना सूर्योदय'

को लागू करने के लिए एफएचआई 360 और अमेरिका स्थित सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के साथ साझेदारी कर रही है, जिसके तहत विश्वास आधारित संगठनों (एफबीओ) और कानून प्रवर्तन एजेंसी को एचआईवी और एड्स के प्रति संवेदनशील बनाना और उनके लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करना जैसे कुछ कार्य किए जा रहे हैं। नागालैंड में वयस्कों के बीच एचआईवी की प्रसार दर 0.76 प्रतिशत है। नगालैंड की जनसंख्या लगभग 20 लाख है और साल 1999 से 2018 के बीच 10,16,700 रक्त नमूनों की जांच की गई है। उसमें से लगभग 22,878 रक्त नमूनों को सकारात्मक पाया गया। नगालैंड में 91 प्रतिशत मामलों में, वायरस ट्रांसमिशन का मार्ग असुरक्षित यौन संबंध है, खासकर 25 से 34 वर्ष के आयु वर्ग के बीच यह मामला अधिक देखने को मिला है। इसके अलावा 14 साल से कम उम्र के बच्चों में एचआईवी की प्रसार दर 6 प्रतिशत है, जबकि 15 से 24 वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं मं् यह 15 प्रतिशत है। पूर्वोत्तर के कई राज्य इस घातक बीमारी से पीड़ित हैं। साल 1999 और 2018 के बीच हुए एक अध्ययन में पाया गया कि मणिपुर के वयस्कों में एचआईवी प्रसार देश के उच्चतम दर 1.06 प्रतिशत पर है। पूरे देश में 21.1 लाख पीएलएचआईवी मामले हैं और उनमें से 82 प्रतिशत मामले नौ राज्यों- आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और राजस्थान के खाते में हैं।

चित्रकूट पुलिस ने बेटी पर दिखाई ममता

गरीब परिवार की बेटी के पास पढ़ाई जारी रखने का कोई साधन नहीं रहा, तो वो पुलिस के पास गई। पुलिस ने उसकी पढ़ाई की जिम्मेदारी लेकर उसकी राह आसान कर दी

र्थिक तंगी के चलते एक बेटी की पढ़ाई बंद हो गई, तो वह चित्रकूट के मानिकपुर थाने के 'समाधान दिवस' कार्यक्रम में पहुंच गई। वहां उसने अपनी दास्तान सुनाई तो वहां मौजूद अपर पुलिस अधीक्षक ने दरियादिली दिखाते हुए उसकी आगे की पढ़ाई का खर्च उठाने की जिम्मेदारी ले ली।पुलिस के इस मानवीय कार्य की सराहना पूरे प्रदेश में हो रही है। चित्रकूट जिले के मानिकपुर थाने में पुलिस समाधान दिवस में आए लोगों की समस्या का निस्तारण करने में मशगूल थी, इसी बीच सकरौंहा गांव की एक बेटी पहुंची। उसने अपने पिता की गरीबी के चलते आगे की पढ़ाई न कर पाने का दुखड़ा रोया। वहां मौजूद अपर पुलिस अधीक्षक बलवंत चौधरी ने तत्काल उस बेटी की आगे की

पढ़ाई का खर्च उठाने की जिम्मेदारी ले ली। इतना ही नहीं, थानाध्यक्ष्स केपी दुबे ने उसे बाजार से नए कपड़े भी खरीद कर दिए। सकरौंहा गांव के रामदीन कुशवाह मामूली खेतिहर किसान हैं। उन्होंने अपनी बेटी कोमल को इंटरमीडिएट तक पढ़ाया, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते आगे की पढ़ाई नहीं करा सके। इतना ही नहीं, वे अपनी बेटी के लिए दो साल से एक जोड़ी कपड़ा भी नहीं खरीद सके हैं। कोमल पढ़-लिख कर कुछ बनना चाहती है, लेकिन वह मजबूर थी। जब कुछ समझ में नहीं आया तो वह पुलिस के समाधान दिवस में पहुंच गई, जहां उसकी समस्या का समाधान हो गया। पुलिस के मानवीय दृष्टिकोण और बेटी की पढ़ने की ललक से रामदीन बेहद खुश हैं। वे कहते

हैं कि पुलिस ने बेटी को पढ़ाया तो वे उसे पुलिस में ही भर्ती कराना चाहेंगे, ताकि वह बहन-बेटियों के साथ हो रहे अन्याय, अत्याचार को रोक सके। कोमल से जब पूछा गया तो उसने 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ' का नारा ही बदल दिया और नया नारा दिया- 'बेटी पढ़ाओ, दुष्कर्मी भगाओ'। उसने कहा कि वह आईएएस या आईपीएस अधिकारी बनना चाहेगी और दुष्कर्मियों से बड़ी सख्ती से निपटेगी। अपर पुलिस अधीक्षक बलवंत चौधरी ने कहा, "बेटी कोमल का परिवार बेहद गरीब है और उसमें पढ़-लिख कर कुछ बनने की तमन्ना है। अब वह पुलिस विभाग की बेटी है और हमारा विभाग उसकी आगे की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाएगा।" (आईएएनएस)


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जेंडर

रानी दास

अब वृंदावन ही है मेरा घर- रानी दास कम उम्र में शादी और फिर पति की मृत्यु से परेशानियों में घिरी रानी की जिंदगी वृंदावन की शारदा आश्रम में आकर न सिर्फ बदल गई बल्कि यहां उन्हें खासा सुकून भी ​महसूस ​होता है

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स्वस्तिका त्रिपाठी

श्चित रूप से मेरी भी कई इच्छाएं अपूर्ण थीं, लेकिन वह सब अब अतीत की बात है। आप लोगों ने भी लोगों को बदलते देखा होगा और अपनी इच्छाओं और सपनों को दफनाते देखा होगा। यह कहानी है वृंदावन के शारदा आश्रम में रहने वाली रानी दास की। रानी, जिसका अर्थ होता है 'क्वीन' या किसी रियासत की मालकिन। एक रानी के पास सब कुछ होता है और उसके लिए अपूर्ण इच्छाओं की कल्पना करना मुश्किल ही नहीं, नामुकिन होता है, लेकिन नाम में क्या रखा है। हालांकि नाम के हिसाब से इसे सच भी होना चाहिए, लेकिन वास्तविकता इससे परे है। क्योंकि बंगाल की रहने वाली रानी दास का जीवन एक रानी के की तरह होना सिर्फ एक कल्पना मात्र हो सकता है, वास्तविकता नहीं। हालांकि रानी अब उत्तर प्रदेश के वृंदावन में रहना पसंद करती हैं, लेकिन मूल रूप से रानी दास पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के इंग्लिश बाजार की रहने वाली हैं। रानी की शादी कम उम्र में ही हो गई थी, लेकिन उनको कोई संतान नहीं हुई। उनके परिवार में पति के अलावा कई रिश्तेदार भी थे। पैसे तो बहुत नहीं थे, लेकिन साथ रहने और परिवार चलाने के लिए पर्याप्त थे। रानी को पता ही नहीं था कि शादी के तीन साल के भीतर ही उसका जीवन एक नया मोड़ लेने वाला था। अचानक रानी के पति की मृत्यु हो गई और वह विधवा बन गई। पति की मृत्यु के बाद रानी का जीवन पहले की तरह नहीं रहा। इसके अलावा रानी के घर में उसके पति ही एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति थे, जिसकी वजह से उनके परिवार को गरीबी का सामना करना पड़ा। रानी कहती हैं कि पति के चले जाने के बाद वह अपने रिश्तेदारों के भरोसे रह रही थी, लेकिन आप कब तक रिश्तेदारों पर निर्भर रह सकते हैं? और इसके साथ ही जैसे- जैसे दिन गुजरते गए, उनके रिश्तेदार भी कम होने लगे। अब इस तरह किसी और के भरोसे रहना रानी के लिए काफी दुखदाई होने लगा था। रानी के गांव में एक दिन वृंदावन के लोगों का एक समूह आया, जो लोगों को बता रहे थे कि यदि आप लोग भजन-कीर्तन करते हैं तो वृंदावन आपके लिए सबसे उपयुक्त जगह है। उन्होंने बताया कि वृंदावन के मंदिरों द्वारा एक विशाल 'भजनमंडली' बनाई गई है, जिसमें विधवा माताएं-बहनें भजन गाती हैं। इसके साथ ही उन्हें 'प्रसाद' के रूप में मुफ्त भोजन के साथ-साथ उनकी औषधीय जरूरतों के लिए भी कुछ राशि प्रदान की जाती है।

लाल बाबा हमारे प्रत्येक सुख-दुख का ख्याल रखते हैं। वे हमें चावल, दाल, सब्जियां और कुछ पैसे भी देते हैं ताकि हम अपना बचा बाकी जीवन सुकून से जी सकें रानी ने सोचा कि मुझे भी भगवान कृष्ण की पवित्र धरती पर जाना चाहिए और अपने बाकी बचे जीवन को बिताना चाहिए। रानी भी भजन गाने के बदले में मिलने वाले भोजन और दवाओं के बारे में जानकर काफी प्रसन्न थी और उसे अपने बाकी के बचे जीवन को जीने के लिए नई दिशा मिल गई थी। रानी भी दूसरे ग्रामीणों के साथ मालदा से वृंदावन की यात्रा पर निकल पड़ी। रानी का कहना है कि वह वृंदावन के शारदा आश्रम में अपने ही जैसी ही दूसरी विधवा माताओं के साथ रहती हैं। वह कहती हैं कि हम अपनी दिनचर्या के अनुसार आश्रम में काम करते हैं और शाम को सभी एक मंदिर में भजन गाते हैं। वहां उन्हें जो प्रसाद मिलता है, उसे हम सभी भगवान कृष्ण और राधा रानी के आशीर्वाद के रूप में उसे ग्रहण करते हैं। रानी बताती हैं कि मैं विवाह के तीन साल बाद ही वृंदावन आ गई थी। यहां रहते हुए अब 15 साल हो गए है। वह कहती हैं कि किसी भी स्थान पर रम जाने के लिए 15 साल काफी लंबा समय होता है। अब मुझे यहां रहने की आदत हो गई है और यहां

से कहीं जाने का मन नहीं होता है। वह बताती हैं कि सभी दिन एक जैसे या हमेशा अच्छे नहीं हो सकते हैं। रानी बताती है कि जब कभी पैसे खत्म हो जाते हैं या तबीयत खराब हो जाती है, उस दौरान यहां रहना काफी कष्टकारी हो जाता है। वह कहती हैं कि जब भी ऐसे दिन उसके दरवाजे पर दस्तक देते हैं तो रानी खुद को हमेशा याद दिलाती है कि आराम और इच्छाएं एक नौजवान व्यक्ति के हिस्से में होता है। अब उनकी वह उम्र नहीं रही। ऐसा नहीं है कि रानी की कभी भी विलासिता का जीवन जीने की इच्छा नहीं थी, बल्कि वह भी एक विवाहित महिला की तरह ही सपने देखती थीं। रानी कहती हैं कि सपने और इच्छाएं तो थीं, लेकिन अब उन सपनों के बारे में सोचने का समय चला गया है। निश्चित रूप से मेरी भी अपूर्ण इच्छाएं थीं, लेकिन वह सब अब अतीत में दफन हो चुकी हैं। आप लोगों ने भी लोगों को बदलते देखा होगा। अपनी इच्छाओं को दफनाते देखा होगा। हां यह एक अलग बात है कि जब एक व्यक्ति पंद्रह या सोलह वर्ष का होता है तो उसकी बहुत सारी इच्छाएं होती

हैं। लेकिन जब वही व्यक्ति 35 या 40 वर्ष की उम्र में आता है तो चीजें बदल जाती हैं। वह कहती हैं कि सपने और इच्छा रखना एक अलग बात है, लेकिन उसे हासिल करना दूसरी बात होती है। इसीलिए एक गरीब व्यक्ति ज्यादा इच्छाएं नहीं पाल सकता है, क्योंकि वह उसे पूरा ही नहीं कर पाएगा। रानी कहती हैं कि अब वह अपने इस सादगी के जीवन से बहुत खुश हैं, क्योंकि वृंदावन में उनकी और उनके जैसी तमाम विधवा महिलाओं की देखभाल का जिम्मा 'लाल बाबा' (सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक) ने उठाया है। वह कहती हैं कि लाल बाबा हमारे प्रत्येक सुख-दुख का ख्याल रखते हैं। वे हमें चावल, दाल, सब्जियां, कपड़े और कुछ पैसे भी देते हैं ताकि हम अपने बचे बाकी जीवन सुकुन से जी सकें। हम लाल बाबा के बहुत आभारी हैं, जो उन्होंने हम विधवा औरतों के दर्द को समझा ही नहीं, बल्कि उसके निवारण के लिए सराहनीय कदम भी उठाए हैं। रानी कहती है कि उनके भतीजी और भतीजे हैं, जिन्हें वह समय-समय पर देखने जाती हैं, लेकिन वह उनके साथ 10 दिनों से ज्यादा नहीं रह पाती हैं और वह वृंदावन वापस लौट आती हैं। वह बताती हैं कि मैं वृंदावन में ही समय बिताउंगी, क्योंकि मुझे यहां भगवान की भक्ति करके सुकुन मिलता है। मैं अपने घर वापस नहीं जाना चाहती, अब वृंदावन ही मेरा 'घर' है!


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मिसाल

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बेजुबानों की आवाज

विद्या सेल्फ हेल्फ ग्रुप स्त्री के माध्यम से महिलाओं को घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ने में सहायता प्रदान करती हैं

तमिलनाडु की लड़की को मिलेगा अमेरिकी पुरस्कार

अपने लगातार प्रयासों से भानुप्रिया ने समाज में फैले विश्वास और अंधविश्वासों को हिला कर रख दिया

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जी. उलगनाथन

वर्षीय महिला विद्या गायकवाड दूसरों के लिए एक उदाहरण हैं, जिन्होंने राख से गुलाब बनाया और अपने सफल करियर का निर्माण किया। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने न सिर्फ अपना जीवन सफल बनाया, बल्कि वह दूसरी महिलाओं की भी मदद स्त्री स्वयं सहायता समूह के माध्यम से करती हैं। विद्या की यह यात्रा बहुत लंबी है। अपमानजनक शादी से बाहर निकलने के बाद विद्या मैसूर के टी नरसिपुर से बेंगलुरू चली गईं और वहीं अपने पड़ोस के बच्चों को पढ़ाने लगी। उसी समय उन्होंने बेंगलुरू विश्वविद्यालय से इंगलिश में पोस्ट ग्रेजुएशन (एमए) की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उन्होंने बिदादी फर्स्ट ग्रेड कॉलेज में एक सहायक शिक्षक के रूप में काम करना शुरू कर दिया। विद्या शाम को अपने क्षेत्र की घरेलू महिलाओं की मदद करने लगी, तब उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि उन महिलाओं में से कई अपने जीवन घरेलू हिंसा की शिकार थीं। विद्या कहती हैं कि यह सब देख कर हमने इनके लिए कुछ करने का फैसला लिया। मैंने अपने मन में घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ने की योजना बनाई और तय किया कि इन महिलाओं को किसी भी तरह की हिंसा के आगे झुकने नहीं देंगे। मेरा मानना है कि एक मजबूत महिला अपने लिए खड़ी हो सकती है, लेकिन एक सशक्त महिला दूसरों के लिए भी खड़ी हो सकती है। विद्या ने उन्हें पढ़ाने और लिखने के अलावा अपने अधिकारों के बारे में शिक्षित करना शुरू किया

और उन्हें घरेलू हिंसा के विभिन्न रूपों से भी अवगत कराया। इनमें से कुछ महिलाओं की सहायता से उन्होंने पीड़ित महिलाओं की सहायता करने के लिए स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) शुरू किया। इस प्रकार जून 2011 में स्त्री का जन्म हुआ। विद्या के जीवन संघर्ष पर एक सफल फिल्म बन सकती है। वह मैसूर के टी नरसिपुर में गजानन गायकवाड और विनोद गायकवाड के घर पैदा हुई थी। वह महज ग्यारह महीने की थी जब उनकी मां का देहांत हो गया। हालांकि उनके पिता के पास एक छोटी सी चाय की दुकान थी। इस वजह से विद्या ने गरीबी को बचपन से देखा था। विद्या ने एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और खेल के मैदान में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। 21 साल की उम्र में वह एमए करना चाहती थी, लेकिन उनके बुजुर्ग पिता ने उम्र में बड़े आदमी से विद्या की शादी कर दी। शादी के बाद विद्या पेरियापटना में अपने ससुराल चली गई। शादी के कुछ ही दिन बीते थे कि दहेज के लिए उनके ससुराल वालों ने उनका उत्पीड़न करना शुरू कर दिया। विद्या के पति और ससुराल के अन्य सदस्यों ने शारीरिक और मानसिक रूप से उनके साथ दुर्व्यवहार करने लगे। एक साल बाद भी विद्या के साथ घरेलू हिंसा बंद नहीं हुआ। इसकी वजह से विद्या को गर्भपात तक का सामना भी करना पड़ा। इसके बाद विद्या ने इस अपमानजनक शादी से निकलने का फैसला किया। विद्या को अपने पिता और भाई-बहनों से कोई समर्थन नहीं मिला। उसके बाद उन्होंने अपने पति को तलाक दिया और अपने सपनों को पूरा करने के लिए बेंगलुरु चली आई। उसे पता नहीं था कि एक दिन वह बेजुबानों की आवाज बन जाएंगी।

विद्या के प्रयासों में आशावादी फाउंडेशन के साथ काम करने वाली एक मनोवैज्ञानिक डॉ. शुभा का ठोस समर्थन मिला। विद्या और डॉ. शुभा के अलावा अब उनके समूह में 16 सदस्य हैं, जो सभी घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की मदद करती हैं। स्त्री, असुरक्षित या हिंसक वातावरण से महिलाओं को बचाने और एक अस्थायी आश्रय में पुनर्वास के लिए काम करती है। यह कमजोर महिलाओं को वित्तीय सहायता या व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करती है। जब एक महिला परेशानी में पड़ती है और अपनी समस्या के बारे में स्त्री को रिपोर्ट करती है, तब संस्था के सदस्य उस महिला को उसके अधिकारों को समझने और न्यायिक प्रक्रिया शुरू करने में मदद करने के लिए कानूनी सलाह लेने में उसकी सहायता करती है। डॉ. शुभा परामर्श और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास के साथ इन महिलाओं को भी मदद करते हैं। स्त्री उन महिलाओं की पहचान करता है, जो अपमानजनक संबंधों में सिर्फ अपने पतियों पर वित्तीय निर्भरता के कारण या बच्चों की वजह से रहती हैं। स्त्री से महिलाओं को विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षित करने की सुविधा मिलती है और उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद मिलती है। स्त्री में साप्ताहिक जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, जहां आत्म-रक्षा, कामुकता और प्रजनन अधिकार सहित महिलाओं के अधिकार, प्रभावी संचार और सौंदर्य संबंधी विषयों पर चर्चा की जाती है। प्रत्येक मामले में परामर्श और प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के अलावा, नियमित रूप से उस मामले पर निगरानी रखी जाती है, जब तक न्याय नहीं मिल जाता है।

एसएसबी ब्यूरो

स भानुप्रिया तिरुवरूर जिले के नीदामंगलम के पास पश्चिम कल्हेरी में पंचायत यूनियन मिडिल स्कूल की कक्षा आठ की छात्रा हैं। भानुप्रिया को अपने गांव में माहवारी के साथ जुड़े विश्वासों और अंधविश्वासों के खिलाफ लड़ने के लिए व्यक्तिगत श्रेणी में 8वें वार्षिक प्रामेरिका स्पिरिट ऑफ कम्यूनिटी अवार्ड्स (एसओसीए) की विजेता घोषित किया गया है। इस अवार्ड कार्यक्रम को डीएचएफएल प्रामेरिका लाइफ इंश्योरेंस (डीपीएलआई) द्वारा आयोजित किया जा रहा है। भानुप्रिया ने अपने गांव में इसके लिए जागरूकता रैलियां की, सड़क पर नाटकों का प्रदर्शन किया और इतना ही नहीं उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में काम करने वाले एक डॉक्टर को अपने गांव के लोगों और स्कूल की लड़कियों को शिक्षित करने के लिए आमंत्रित किया। अपने लगातार प्रयासों के माध्यम से ही इस युवा लड़की ने समाज में फैले विश्वास और अंधविश्वासों को हिला कर रख दिया। मीडिया रिलीज के अनुसार अनूप पब्बी ने आठवें वार्षिक प्रामेरिका स्पिरिट ऑफ कम्यूनिटी अवार्ड्स (एसओसीए) में कहा कि गुरुग्राम में डीएचएफएल प्रामेरिका लाइफ इंश्योरेंस (डीपीएलआई) द्वारा आयोजित एक समारोह में सामुदायिक सेवा के क्षेत्र में अपने असाधारण प्रयासों के लिए 29 स्कूलों के छात्रों को सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि इन फाइनलिस्ट को 4,000 से अधिक एप्लिकेशन के जरिए चुना गया था। भानुप्रिया और दिल्ली पब्लिक स्कूल की एक अन्य छात्रा इशिता मंगल को भी अपनी सामुदायिक पहल के लिए व्यक्तिगत श्रेणी में शीर्ष सम्मान प्राप्त हुआ। दोनों विजेताओं को स्वर्ण पदक, 'सर्टिफिकेट ऑफ एक्सीलेंस', प्रत्येक को 50,000 रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा।


30 अप्रैल - 06 मई 2018

शक्तिशाली बनेंगे तो दिमाग भी होगा तेज

किसान अब कर सकेंगे वैज्ञानिकों से 'अहम' संवाद

ऑस्ट्रेलिया के वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का यह दावा है कि शारीरिक रूप से मजबूत व्यक्ति का दिमाग में मजबूत और क्रियाशील होता है

मुबई के छह छात्रों ने 'अहम' नामक ऐसा एप्प बनाया है जिसके सहारे किसान वैज्ञानिकों से सीधा संवाद कर पाएंगे

गर आप यह सोचते हैं कि जिम में पसीना बहाने से सिर्फ आपकी शारीरिक शक्ति बढ़ती है तो आपको सोचने की जरूरत है। करीब पांच लाख लोगों पर किए गए शोध में खुलासा हुआ है कि शक्तिशाली लोग मस्तिष्क संबंधी कामकाज में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इस शोध का प्रकाशन 'सिजोफ्रेनिया बुलेटिन' नामक पत्रिका में किया गया है। शोध में कहा गया है कि आपकी मांसपेशीय शक्ति भुजा की ताकत से आंकी जाती है, जो आपके स्वस्थ दिमाग का संकेत देता है। ऑस्ट्रेलिया के वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय के एनआईसीएच स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के शोध के सह-लेखक जोसेफ फिर्थ ने कहा, "हमारा शोध इस बात की पुष्टि करता है कि मजबूत लोग वास्तव में बेहतर कामकाजी दिमाग रखते हैं।" ब्रिटेन के 475,397 प्रतिभागियों के आंकड़ो का

उपयोग करते हुए इस नए शोध से पता चलता है कि औसत रूप से बलवान लोगों ने दिमागी कामकाज परीक्षणों में बेहतर प्रदर्शन किया। इन परीक्षणों में प्रतिक्रिया की गति, तर्क संबंधी समस्याओं का हल व स्मृति से जुड़े अलग-अगल तरह के प्रशिक्षण शामिल थे। (आईएएनएस)

भारतवंशी छात्र ने जियोपार्डी कॉलेज क्विज जीती

भरतीय मूल के अमेरिकी छात्र किशोर ध्रुव गौर ने एक लाख डॉलर की जियोपार्डी कॉलेज क्विज प्रतियोगिता जीती

भा

रतीय मूल के एक अमेरिकी किशोर ध्रुव गौर ने एक लाख डॉलर की जियोपार्डी कॉलेज क्विज चैम्पियनशिप जीत ली है। आईवी लीग ब्राउन विश्वविद्यालय के प्रथम वर्ष के छात्र ने टीवी पर प्रसारित हुए अमेरिका के सबसे लोकप्रिय क्विज शो के कॉलेज संस्करण के दो दिन चलने वाले अंतिम चक्र को शुक्रवार को जीत लिया।

सेमीफाइनल में उसने एक अन्य भारतवंशी छात्र ऋषभ जैन को हराकर फाइनल में प्रवेश किया था। इसके अलावा गौर ने राष्ट्रीय स्तर की कॉलेज प्रवेश परीक्षा स्कॉलेस्टिक एप्टीट्यूड टेस्ट में पूर्णाक 1600 में 1600 अंक प्राप्त किए थे। जियोपार्डी की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में गौर ने कहा है, "मैं जीती हुई धनराशि को सुरक्षित रखूंगा और भविष्य में ग्रेड स्कूल या किसी अन्य योजना में उसे खर्च करूंगा।" उन्होंने कहा, "मेरा छोटा भाई निवेश का इच्छुक है, इसीलिए कुछ धनराशि मैं उसे दूंगा, जिसे वह शेयर बाजार में निवेश करेगा।" साल 2017 में एक भारतीय विराज मेहता तीसरे स्थान पर रहे थे। इसके अलावा विनीता कैलाशनाथ एक मात्र भारतवंशी हैं, जिन्होंने कॉलेज चैंपियनशिप जीती थी। यह चैंपियनशिप साल 2001 में हुई थी। हाइस्कूल के छात्रों की चैंपियनशिप में शरत नारायण ने 2016 में एक लाख डॉलर का इनाम जीता था। इससे पहले दो अन्य भारतीय-अमेरिकी छात्रों ने टीन चैम्पियनशिप जीती थी। (आईएएनएस)

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विज्ञान

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बाइल फोन ऐप्लीकेशन का उपयोग कर अब किसान चैटबोट का इस्तेमाल कर अपनी फसलों से संबंधित सवाल सीधा वैज्ञानिकों से पूछ सकेंगे और वैज्ञानिक उनके सवालों का जवाब देने के लिए लाइव उपलब्ध होंगे। मुंबई के विवेकानंद एजुकेशन सोसायटी के इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी के छह विद्यार्थियों ने आयोजित हेकाथन में 'अहम'

नामक ऐप्प बनाया। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की ओर से 28 नोडल सेंटर्स पर आयोजित प्रतियोगिता में विद्यार्थियों को उनके दिए गए विषय पर 36 घंटों के भीतर ऐप्प बनाना था। इस ऐप्प टीम की सदस्य दीपा नारायणन ने बताया, "हमारा ऐप्प मूल रूप से एरोमेटिक और मेडिसिनल प्लांट की जानकारी देने के लिए है। लोगों को कपास, दलहन जैसी फसलों की जानकारी है लेकिन एरोमेटिक व मेडिसिनल प्लांट के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं है।" ऐप्प पर खास फसलों के लिए उपयुक्त जमीन के प्रकार, मौसम, जलवायु और समय के बारे में जानकारी है। ऐप्प पर बाजार की भी जानकारी है जिससे किसान बीते व आने वाले समय में फसल की मांग के बारे में जान सकते हैं। (आईएएनएस)

नए ग्रहों की खोज में जुटा नासा का अंतरिक्ष यान

नासा ने नई दुनिया की खोजने के लिए नवीनतम अंतरिक्ष यान भेजा है, जिसका नाम ‘एसीई प्लांट सर्वे सैटेलाइट’ या ‘टायस’ है

ना

सा के अनुसार, यह ग्रहों की खोज करने के लिए पहला मिशन है, जिसे अंतरिक्ष एक्स फाल्कन नौ रॉकेट के माध्यम से फ्लोरिडा से रवाना किया गया है। विशेषज्ञों की रुचि भूजल ग्रहों में है, जहां संभावित रूप से जीवन मौजूद हो सकता है। टैसिस एक ओर तो आकाश के विशाल हिस्से की खोज करके जमीन जैसे नए ग्रहों की खोज करेगा, तो दूसरी ओर उन ग्रहों के केंद्रीय सितारे (सूर्य) को खोजेगा। इस प्रकार, टैसिस दो साल तक पृथ्वी से निकट और उज्ज्वल सितारों की पारगमन के माध्यम से समीक्षा करेगा।

इससे पहले यह उपग्रह अपने 6 थ्रेशर जलाकर चंद्रमा तक पहुंच जाएगा, और कुछ हफ्तों में चंद्रमा के ऊतक में प्रवेश करेगा। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में सैटेलाइट पर काम करने वाले मुख्य वैज्ञानिक जॉर्ज रिकर कहते हैं कि यह पृथ्वी के पास अपनी सबसे अच्छी विस्तृत छवियां लाएगा, और इससे पहले यह संभव नहीं था। अपने दो साल के सर्वेक्षण के दौरान, अंतरिक्ष यान आकाश को 26 टुकड़ों में विभाजित करेगा और उनकी समीक्षा करेगा। इसमें चार उन्नत वाइड फील्ड कैमरे हैं, जो आकाश के 85 प्रतिशत भाग को खंगालेंगे। जब रिमोट सौर प्रणाली में ग्रह अपने मुख्य सूर्य या सितारों से गुजरते हैं, तो इसे पारगमन कहा जाता है, जो सितारों की रोशनी को कम करता है। विशेषज्ञ जो इस गुणवत्ता पर विचार कर रहे हैं, ने 3700 नए ग्रहों की खोज की है और ऊतक भी एक ही रणनीति का उपयोग करेंगे। टैसिस अंतरिक्ष यान 30 से 100 वर्षीय ग्रहों को खोजने के लिए एक प्रमुख कार्य करेगा, फिर स्पेक्ट्रो स्कॉपी में और अन्य तरीकों से, ग्रह की गुणवत्ता, मात्रा या संभावित वातावरण की समीक्षा की जाएगी। (एजेंसी)


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पुस्तक अंश

30 अप्रैल - 06 मई 2018

फसल बीमा योजना

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में किसान महासम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए संचालन दिशानिर्देशक पुस्तिका जारी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

सल बीमा योजना का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों के परिणामस्वरूप अधिसूचित फसलों में से किसी की विफलता की स्थिति में किसानों को बीमा कवरेज और वित्तीय सहायता प्रदान करना है। साथ ही किसानों की आय को बेहतर करना और इस प्रकार खेती में उनकी निरंतरता सुनिश्चित करना भी इसका उद्देश्य है। वहीं

किसानों को नवीन और आधुनिक कृषि प्रथाओं को अपनाने और कृषि क्षेत्र के लिए ऋण प्रवाह सुनिश्चित करना भी सरकार की प्राथमिकता में इस योजना को लेकर शामिल है। यह योजना कृषि विभाग के समग्र मार्गदर्शन और नियंत्रण के तहत चयनित बीमा कंपनियों द्वारा बहु-एजेंसी ढांचे के माध्यम से लागू की जाएगी।

मेरा यह विश्वास है कि किसानों के कल्याण से प्रेरित, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसानों के जीवन में एक सशक्त परिवर्तन लाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


मृदा स्वास्थ्य कार्ड लॉन्च

30 अप्रैल - 06 मई 2018

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पुस्तक अंश

जन-भागीदारी

मृ

राजस्थान के श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ में एक समारोह के दौरान कृषि कर्मण पुरस्कार देते करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

दा स्वास्थ्य कार्ड योजना, राज्य सरकारों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करने और सेवा वितरण में सुधार के लिए डेटाबेस विकसित करने में सहायता प्रदान करेगी। यह अभी चल रही योजनाओं को, तेजी से और कम लागत वाली डायग्नोस्टिक तकनीकों, मृदा के स्वास्थ्य पर जोर देने से, उत्पादकता में वृद्धि होगी। साथ ही कृषि क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और किसान समृद्ध हो जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मोबाइल प्रयोगशालाओं, पोर्टेबल (उठा सकने योग्य) मृदा परीक्षण किट और निर्दिष्ट (रेफरल) प्रयोगशालाओं के संदर्भ में उन्हें और मजबूत और बेहतर बनाती है। यह पोषक तत्वों की कमियों के जांच और प्रबंधन में वैज्ञानिक विशेषज्ञता के साथ बेहतर और योजनाबद्ध दिशानिर्देश प्रदान करती है। इस योजना के तहत, सरकार किसानों को मृदा कार्ड जारी करने की योजना बना रही है जिसमें किसानों को उत्पादकता में सुधार लाने के लिए विवेकपूर्ण सलाह दी जाएगी। साथ ही व्यक्तिगत खेतों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों और उर्वरकों के लिए फसल-वार सलाह दी जाएगी।

न भागीदारी (पीपुल्स पार्टनरशिप) योजना, सरकार और देश के लोगों के बीच एक ऐसी साझेदारी की परिकल्पना करती है जिससे यह भारत के संविधान में स्थापित लोकतांत्रिक सिद्धांतों की सबसे बड़ी संपत्ति के रूप में उभरकर सामने आएगी। इस पहल को सभी स्तरों पर शासन में व्यापक नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किया गया है। पहल की नींव ‘सबका साथ - सबका विकास’ (सामूहिक प्रयास, समावेशी विकास) के सिद्धांत में निहित है जो मोदी सरकार के विकास दर्शन

का केंद्र है। इसका निर्दिष्ट उद्देश्य, अधिक पारदर्शिता लाना और सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता और वितरण के सुधार के संदर्भ में उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना है। बाजार और औद्योगिक संघों के प्रतिनिधियों के अलावा, नागरिक-सरकारी साझेदारी के इस प्रचार में नगर निगम, राज्य और केंद्र सरकार के विभागों में नौकरशाही की सक्रिय भागीदारी की जरुरत बताई गई है। इसका उद्देश्य "शासकों और शासित" के बीच की दूरी को समाप्त करना है जो कि औपनिवेशिक साम्राज्यवाद की विरासत है।

जन भागीदारी, हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी संपत्ति है। चाहे यह माईगोव(MyGov) हो, या नागरिकों के पत्र, या फिर ‘मन की बात’ हो या लोगों के साथ संचार ... हर दिन जन भागीदारी बढ़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


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पुस्तक अंश

30 अप्रैल - 06 मई 2018

स्वर्ण योजना

5 नवंबर, 2015: नई दिल्ली में स्वर्ण योजना के शुभारंभ पर एक संप्रभु बॉन्ड पेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

22 जनवरी, 2016: उत्तर प्रदेश के लखनऊ में भारतीय माइक्रो क्रेडिट द्वारा आयोजित रिक्शा संघ कार्यक्रम में लाभार्थियों को विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाएं वितरित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

सामाजिक सुरक्षा योजनाएं

9 मई, 2015: कोलकाता के नजरूल मंच पर बंगाल के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की उपस्थिति में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभार्थियों को बीमा पॉलिसी देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

5 नवंबर, 2015: नई दिल्ली में स्वर्ण योजना का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

पीएम लाइफ इंश्योरेंस स्कीम

अगर एक ऐसे शब्द में नरेंद्र मोदी के बचपन की विशेषताओं को समेटें और जो बाकी जिंदगी भी उनके साथ रहा, तो यह है संकट में लोगों की ‘सेवा’ करना। पिछले कुछ वर्षों में, उन्होंने एक अनोखा रास्ता अख्तियार किया है जो उन्हें मानवता की सेवा के लिए एक बड़े मिशन की तलाश में पूरे भारत में ले गया।

पीएम सुरक्षा बीमा योजना

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना एक 'सुरक्षा ढाल' है। यह मुश्किल समय में गरीबों को बचाने की हमारी प्रतिबद्धता का हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


30 अप्रैल - 06 मई 2018

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खेल

फिटनेस साथ रहने तक लड़ती रहूंगी : मैरीकॉम राघ्ट्रमंडल खेलों में स्वर्णपदक जीतने वाली मैरीकॉम लंदन ओलंपिक में गोल्डेन पंच लगाना चाहती हैं

खुश हूं 12 साल का सूखा खत्म कर पाया

रा

ष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पांच बार की विश्व चैंपियन महिला मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम ने कहा है कि फिटनेस साथ रहने तक वह देश के लिए खेलती रहेंगी। 35 वर्षीय मैरीकॉम ने आस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने 48 किलोग्राम भार वर्ग के लाइट फ्लाइवेट वर्ग में उत्तरी आयरलैंड की क्रिस्टिना ओ हारा को मात दी थी। मैरीकॉम ने कहा, ‘मैंने संन्यास के बारे में कभी बात नहीं की। ये सब अफवाह है। मेरा अगला लक्ष्य ओलंपिक स्वर्ण है। मैं हारूं या जीतू, यह अलग बात है, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मैं कड़ी मेहनत कर रही हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। इस चीज को हम अपने दिमाग से निकाल दें। जब तक मेरी शरीर इजाजत देती रहेगी तब तक मैं मुक्केबाजी जारी रखूंगी।’ मैरीकॉम तीन बच्चों की मां हैं और इसके अलावा वह राज्य सभा सांसद भी हैं, इसीलिए वे काफी व्यस्त रहती हैं। लेकिन उन्होंने अपने प्रदर्शन से दिखा दिया है कि उनमें अभी मुक्केबाजी बाकी है। मैरीकॉम ने कहा, ‘राष्ट्रमंडल खेलों को मैंने एक चुनौती के रूप में लिया और इसमें सफल रही। इस पदक को हासिल करने के लिए मैंने काफी ट्रेनिंग की। मेरा मानना है कि

कॉमनवल्थ गेम्स में स्वर्ण पर निशाना साधने वाले संजीव राजपूत को यह लक्ष्य पाने में 12 साल लग गए, लेकिन अब उनके निशाने पर एशियाई खेलों में स्वर्णिम निशाना लगाने का है

मेरी सफलता ही मेरे आलोचकों के लिए जवाब है।’ राष्ट्रमंडल खेलों के बाद अब अगस्त में इंडोनेशिया में एशियाई खेलों का आयोजन होना है जहां वह 51 किलोग्राम भार वर्ग के फ्लाइवेट वर्ग में हिस्सा लेंगी। लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता मैरीकॉम ने कहा, ‘एशियाई खेल काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। इसमें मैं हायर वेट वर्ग में हिस्सा लूंगी। भार वर्ग कोई भी हो, मुझे इसके लिए तैयार रहना होगा और अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान लगाना होगा।’ भारतीय कोचिंग स्टाफ के स्तर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘हाई परफार्मेंस मैनेजर राफेले बेरगामास्को और उनके निजी कोच छोटे लाल यादव दोनों काफी अच्छे कोच हैं। राफेल अनुभवी हैं और छोटे लाल युवा हैं, जिन्हें उनके कोचिंग स्टाफ से काफी कुछ सिखने को मिल सकता है। यदि ये दोनों इसी तरह से अपना काम करते रहे, तो भारत को विदेशी कोच की जरुरत नहीं पड़ेगी।’ महिला मुक्केबाज ने भारतीय मुक्केबाजी की बेंच स्ट्रेंथ को लेकर कहा, ‘भारत के पास महिला मुक्केबाजी में काफी बड़ा बेंच स्ट्रेंथ है। मैंने इसमें काफी युवाओं को आते देखा है। इसके लिए मैं भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) को धन्यवाद देना चाहती हूं, जिन्होंने इंडिया ओपन जैसे अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों (आईएएनएस) का आयोजन किया।’

स्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में खेले गए 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में अपना 12 साल का स्वर्ण का सूखा खत्म कर भारत के निशानेबाज संजीव राजपूत बेहद खुश हैं। उनका मानना है कि उन्हें उनके इंतजार का फल मिला है। संजीव ने पुरुषों की 50 मीटर राइफल-3 पोजीशंस स्पर्धा में गेम रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता। संजीव ने 454.5 का स्कोर करते हुए गेम रिकार्ड के साथ स्वर्ण पर कब्जा जमाया। संजीव इससे पहले मेलबर्न में 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य और फिर 2014 में ग्लास्गों में खेले गए राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीत चुके थे। इस साल आखिरकार उन्होंने सोने पर निशाना लगाते हुए अपना सपना पूरा किया। भारत लौटने के बाद संजीव ने में कहा, ‘बहुत अच्छा लग रहा है क्योंकि 12 साल हो गए मैं इंतजार पर इंतजार कर रहा था। क्या होता है कि आप प्वांइट के अंतर से चूक जाते हो। स्वर्ण, रजत और कांस्य के बीच में अंतर सिर्फ दशमलव अंकों का रहता है। उसको अंतत: खत्म करके मैंने स्वर्ण जीता। इस बात की खुशी है।’ संजीव ने क्वालीफिकेशन में 1180 के गेम रिकार्ड के साथ पहला स्थान हासिल करते हुए फाइनल में जगह बनाई थी। संजीव ने फाइनल में 150.5 के स्कोर के साथ शुरूआत की। इसके बाद वह प्रोन राउंड में 306.9 के स्कोर के साथ दूसरे नंबर पर रहे। भारतीय निशानेबाज ने फिर लगातार अंक बटोरकर स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया। इन 12 सालों में संजीव ने काफी आलोचना भी झेली, लेकिन वह इसे जिंदगी का हिस्सा मानते हुए

आगे बढ़ते चले गए। बकौल संजीव, "यह जिंदगी का हिस्सा है, यह चलता रहता है। कोई भी इससे अछूता नहीं रह सकता।" संजीव ने जब 2006 में कांस्य जीता था तब भारत में निशानेबाजी इस स्तर पर नहीं थी जिस स्तर पर आज है। इस बदलाव पर 37 साल के संजीव कहते हैं, ‘समय के साथ बदलना सफलता की कुंजी है। आप बदल रहे हो तभी आप आगे रह पाओगे। यह अच्छा है कि हम बदले हैं और सुधार करते हुए इस मुकाम पर पहुंचे हैं कि ज्यादा से ज्यादा पदक जीत रहे हैं।’ संजीव के नाम एशियाई खेलों में भी रजत और कांस्य हैं। उनकी कोशिश आने वाले एशियाई खेलों में भी पदक के रंग को बदलने की होगी। उन्होंने कहा, ‘मैं अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करूंगा। कुछ तकनीकी चीजें हैं मैं उन पर काम करूंगा आने वाले विश्व कप के बाद मैं उन पर काम कर सुधार करूंगा।’ संजीव तकनीकी के अलावा मानसिक तैयारी पर भी जोर देते हैं। उन्होंने कहा, ‘मानसिक तैयारी के लिए मैं अपने कोचों के साथ चर्चा करता रहता हूं। जो भी कुछ होता है वो आपके अंदर होता है। आप अपने आप पर नियंत्रण पा रहे हो अपने आप को ढाल पा रहे हो तो अच्छा कर पा रहे तो यह आपके लिए अच्छा होता है।’ अपने शांत व्यक्तित्व के बारे मे संजीव कहते हैं, ‘मैं शुरू से ही शांत हूं। जो लोग मुझे जानते हैं वो जानते हैं कि मैं शुरू से ही शांत रहने वाला इंसान हूं।’ (आईएएनएस)


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सा​िहत्य

30 अप्रैल - 06 मई 2018

सफलता का राज

कविता

एक नया सवेरा अरुण राठी

इस नए सवेरे ने मुझे मेरे गहरे सपने से जगाया है। आज तोड़ दूंगा इन गहरे सपनों की जंजीरों को, क्योंकि इस नए सवेरे के साथ जिंदगी में कुछ करने का ख्याल मन में आया है। आज फिर एक नया सवेरा आया है। कौन रोक सकेगा मेरे ये बढ़ते हुए कदम, क्योंकि सूरज की उस पहली किरण ने आज मुझे जगाया है। आज फिर एक नया सवेरा आया है। ये नया सवेरा एक उम्मीद की किरण लेकर आया है। ना जाने क्यों इस उम्मीद के साथ जिंदगी में आगे बढ़ने का ख्याल मन में आया है। आज फिर एक नया सवेरा आया है। इस उम्मीद की किरण के साथ जल जाऊंगा लेकिन अपने कदम आगे ही आगे बढाउंगा। ले आऊंगा रोशनी हर उस अंधेरे कोनें में जहाँ मैंने हतास खुद को पाया है। क्योकि आज फिर एक नया सवेरा आया है। सूरज की उस पहली किरण के साथ एक कदम आज फिर मैने आगे बढ़ाया है। न जाने क्यों आज मेरा दिल खुशी से मुस्कुराया है। आज फिर एक नया सवेरा आया है। उस पहली किरण ने रास्ता मुझे दिखाया है। कुछ करने का ख्याल मन में आज फिर से आया है। खुशी खुशी मैने अपना कदम आगे बढ़ाया है। आज फिर एक नया सवेरा आया है।

क बार एक लड़का गर्मी की छुट्टियां बिताने अपने दादाजी के पास गांव आया। एक दिन जब वह अपने दादाजी के साथ बैठा था तो उसने अपने दादाजी से एक सवाल पूछा कि सफलता का राज क्या है? इस पर दादाजी ने उसे पास ही की एक नर्सरी में जाकर वहां से दो पौधे खरीद लाने को कहा। उन्होंने एक पौधा घर के अंदर और एक पौधा घर के बाहर लगाने को कहा। उस लड़के ने ऐसा ही किया। बाद में दादाजी ने अपने पोते से पूछा तुम्हे क्या लगता है, इन पौधों में से सबसे अधिक सफल कौन होगा। लड़के ने जवाब दिया कि घर के अंदर जो पौधा लगाया है वो ज्यादा सफल होगा, क्योकि वो प्राकृतिक खतरों से बचा रहेगा, जबकि बाहर जो पौधा लगाया गया है, उसको काफी चीजों से खतरा

क्या है खुश रहने का राज

क गांव में महान ऋषि रहते थे। लोग उनके पास अपनी कठिनाईयां लेकर आते थे और ऋषि उनका मार्गदर्शन करते थे। एक दिन एक व्यक्ति ऋषि के पास आया और ऋषि से एक प्रश्न पूछा, ‘गुरुदेव मैं यह जानना चाहता हूं कि हमेशा खुश रहने का राज क्या है?’ ऋषि ने उससे कहा कि ‘तुम मेरे साथ जंगल में चलो, मैं तुम्हे

खुश रहने का राज बताता हूं।’ ऐसा कहकर ऋषि और वह व्यक्ति जंगल की तरफ चलने लगे। रास्ते में ऋषि ने एक बड़ा सा पत्थर उठाया और उस व्यक्ति से कहा कि इसे पकड़ो और चलो। उस व्यक्ति ने पत्थर को उठाया और वह ऋषि के साथ साथ जंगल की तरफ चलने लगा। कुछ समय बाद उस व्यक्ति के हाथ में दर्द होने लगा, लेकिन वह चुप रहा और चलता रहा। लेकिन जब चलते हुए बहुत समय बीत गया। जब उस व्यक्ति से दर्द सहा नहीं गया तो उसने ऋषि से कहा कि उसे दर्द हो रहा है, तो ऋषि ने कहा

है। दादाजी अपने पोते की बात सुनकर मुस्कुरा दिए। कुछ दिनों बाद लड़का वापस शहर चला गया। कुछ साल बाद जब वह लड़का वापस दादाजी से मिलने अपने गांव आया तो उसने अपने दादाजी से पौधों के बारे में पूछा। दादाजी ने उसे घर के अंदर लगाया गया पौधा दिखाया। वह पौधा अब एक बहुत बड़ा पौधा बन चुका था। लड़के ने अपने दादाजी की और देखते हुए कहा, मैंने कहा था ना कि यही पौधा ज्यादा सफल होगा। वैसे बाहर वाले पौधाे​ें का क्या हुआ। दादाजी उसे बाहर लेकर आए तो लड़का हैरान रह गया। बाहर वाला पौधा अब एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था। उसने दादाजी से पूछा कि यह कैसे संभव हुआ। बाहर वाला पौधा एक बड़ा पेड़ बना गया और अंदर वाला पौधा उतना विकसित नहीं हो पाया। दादाजी ने उसे बताया की जीवन में खतरों से जूझकर ही सफलता हासिल होती है। सफलता का राज यही है। कहानी का तर्क यही है कि मुश्किलों का सामना करने वालों को ही सफलता मिलती है।

सोमलता कि इस पत्थर को नीचे रख दो। पत्थर को नीचे रखने पर उस व्यक्ति को बड़ी राहत महसूस हुई। तभी ऋषि ने कहा कि यही है खुश रहने का राज। उस व्यक्ति ने कहा कि मुझे कुछ समझ नहीं आया गुरुदेव। ऋषि ने कहा, जिस तरह इस पत्थर को कुछ मिनट तक हाथ में रखने पर थोड़ा सा दर्द होता है और अगर इसे एक घंटे तक हाथ में रखें तो थोड़ा ज्यादा दर्द होता है और इसे और ज्यादा समय तक उठाए रखेंगे तो दर्द बढ़ता जाएगा, उसी तरह दुखों के बोझ को जितने ज्यादा समय तक उठाए रखेंगे उतने ही ज्यादा हम दुखी और निराश रहेंगे। यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों के बोझ को एक मिनट तक उठाये रखते हैं या उसे जिंदगी भर अगर तुम खुश रहना चाहते हो तो दुख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और हो सके तो उसे उठाओ ही नहीं।

दिव्या

इसीलिए कहा गया है! लहरों से डरकर नदियां पार नहीं होतीं, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

कविता

अकेला

सुनीता

यह मत कहो कि जग में, था अकेला लाखों में काम आता है, सूरमा अकेला।। आकाश में करोड़ों हैं, तारे टिमटिमाते। अंधेरा जग का हरता है, चंद्रमा अकेला।। सब जीव-जंतुओं पर जमा के, धाक अपनी। स्वाधीन सिंह वन में है, घूमता अकेला।। होते है ओखली में, अनगिनत धन दाने। लेकिन सभी असुरों का दल मिटाकर। हनुमान राम दल, तो वापिस चला अकेला।। जापान में सजाकर, आजाद हिंद सेना। जौहर सुभाष नेता, दिखला गया अकेला।। था कुल जगत विरोधी​ी, तिस पर स्वामी दयानंद। वैदिक धर्म का झंडा, फहरा गया अकेला।। यह मत कहो कि जग में, कर सकता क्या अकेला। लाखों में काम आता है, सूरमा अकेला।।


30 अप्रैल - 06 मई 2018

आओ हंसें

कलम और किडनी

कुछ बच्चे परीक्षा में 8-10 कलम लेकर जाते हैं। ... पर अगर परीक्षा के दौरान गलती से एक कलम मांग लो तो एेसा मुंह बनाते हैं, जैसे किसी ने किडनी मांग लिया हो।

आ गया यमराज

गरीब आदमी : एेसी जिंदगी से तो मौत भली है। यह सुनते ही यमराज आ गया और बोला कि मैं तुम्हारी जान लेने आया हूं। गरीब आदमी : लो भाई, यो तो हद हो गई। ...तो क्या अब गरीब आदमी मजाक भी नहीं कर सकता है।

सु

जीवन मंत्र आदमी घर बदलता है, रिश्ते बदलता है दोस्त बदलता है, फिर भी परेशान रहता है क्योंकि वह खुद को नहीं बदलता है

सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजेता को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

डॉक्टर : अब खतरे से बाहर हैं, फिर भी आप इतना डर क्यों रहे हैं। मरीज : मुझे जिस ट्रक ने धक्का मारा था, उसके पीछे लिखा था‘जिंदगी रही तो फिर मिलेंगे।’

महत्वपूर्ण दिवस

• 1 मई अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस • 3 मई विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस • 6 मई मोतीलाल नेहरू जयंती मई का पहला रविवार: विश्व हास्य दिवस

सुडोकू-19 का हल विजेता का नाम

विकास शर्मा

मई का पहला मंगलवार: विश्व अस्थमा दिवस

बाएं से दाएं

वर्ग पहेली - 20

वर्ग पहेली-19 का हल

1.तिलांजलि (4) 5.अग्निकण, जलता हुआ कोयला (2) 6.तरंग (3) 7.अयोग्य(4) 8.गुम (3) 9.भीगा हुआ (2) 10.अचानक (5) 12.रोज (2) 13.तो (2) 14.स्वामी (2) 16.आने वाले कल के पहले वाला दिन (2) 17.शोभित (5) 18.अचंभित, हैरान (2) 19.मादा टिटहरी (3) 20.नमस्कार, स्वागत (उर्दू) (4) 21.चढ़ाव, स्वर में ऊँचाई की ओर जाना (3) 23.कुत्ता (2) 24.सैलानी (4)

ऊपर से नीचे

डोकू -20

रंग भरो

मौत का डर

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इंद्रधनुष

1.टिकैत (3,2) 2.लोहा (2) 3.द्वार (2) 4.एक फूल (3) 5.मरसिया (4) 7.सरदार, अगुआ (3) 8.गुम (3) 11.निषेध, मना करना (3) 12.समुदाय, निवास, विभाग (3) 14.कृतज्ञ (2) 15.सुंदर, मन को अच्छा लगनेवाला (5) 16.आना (4) 17.रस, झोल (3) 19.धुमस (3) 21.एक भारतीय जाति (2) 22.मोटी रोटी (2)

कार्टून ः धीर


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न्यूजमेकर भक्ति शर्मा

30 अप्रैल - 06 मई 2018

ग्राम विकास की ‘भक्ति’ अमेरिका से लौटी युवती ने सरपंच बनकर बदल दी अपने गांव की तस्वीर

मेरिका के टेक्सास शहर में अच्छी नौकरी छोड़ लौटी एक युवती ने ग्राम प्रधान बनकर अपने गांव की तस्वीर बदल दी है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 20 किलोमीटर दूर बरखेड़ी अब्दुल्ला ग्राम पंचायत की सरपंच भक्ति शर्मा की। भक्ति का नाम देश की 100 लोकप्रिय महिलाओं में शामिल है। भक्ति की उम्र महज 28 वर्ष है। वह फर्राटेदार अंग्रेजी तो बोलती ही है, साथ ही निडर होकर अधिकारियों से भी मिलती-जुलती है। उसकी कोशिश रहती है कि हर सरकारी योजना का लाभ उनके पंचायत के लोगों को मिले। भक्ति ने राजनीति शास्त्र से एमए किया है और अभी वह वकालत की पढ़ाई कर रही हैं। भक्ति के कई शौक पुरुषों जैसे हैं। उसे ट्रैक्टर चलाना, पिस्टल रखना, अपनी गाड़ी से सड़कों पर फर्राटे भरना,

किसी भी अधिकारी से बेधड़क बात करना पसंद है। ओडीएफ हो चुकी बरखेड़ी अब्दुल्ला पंचायत में आदर्श आंगनबाड़ी से लेकर हर गली में सोलर स्ट्रीट लाइटें हैं। भक्ति बताती है, ‘सरपंच बनते ही सबसे पहला काम हमने गांव में हर बेटी के जन्म पर 10 पौधे लगाना और उसकी मां को अपनी दो महीने की तनख्वाह देने का फैसला लेकर किया। पहले साल 12 बेटियां पैदा हुई, मां अच्छे से अपना खानपान कर सके इसीलिए अपनी यानि सरपंच की तनख्वाह ‘सरपंच मानदेय’ के नाम से शुरू की।’ बरखेड़ी पहली ऐसी पंचायत बनी जहां हर किसान को उसका मुआवजा मिला। यहां हर ग्रामीण के पास राशनकार्ड, बैंक अकाउंट, मृदा स्वास्थ्य कार्ड है। इस समय पंचायत का कोई भी बच्चा कुपोषित नहीं है। यहां महीने में दो से तीन बार फ्री में हेल्थ कैंप लगता है।

इंद्रजीत सिंह

रा

बेटियों की ‘उड़ान’

राजस्थान के इस डीएम ने बेटियों की शिक्षा के लिए जुटाए 8 करोड़ रुपए

जस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के जिलाधिकारी इंद्रजीत सिंह ने बालिका शिक्षा पर जोर देते हुए ‘उड़ान’ नाम के अभियान की शुरुआत की। इस अभियान के तहत हर ग्राम पंचायत में शिक्षा चौपाल लगती है, जिसमें ग्रामीणों सहित जिलाधिकारी भी शामिल होते हैं। जनता के सहयोग से इस अभियान को गति देने के लिए अब तक आठ करोड़ रुपए इकट्ठा हो चुके हैं। बेटियों को बेहतर शिक्षा मिल सके इसके लिए किसी ने अपनी बकरी बेचकर पैसे दिए तो किसी ने अपने बेटे का मृत्युभोज न कराकर पैसे दिए, तो किसी ने मजदूरी करके पैसे जमा किए। जिलाधिकारी के प्रयासों से शुरू हुआ यह अभियान आज जनमानस का हिस्सा बन गया है। यहां के आदिवासी लोग अब अपनी बेटियों को स्कूल भेजने लगे हैं। सरकारी विद्यालयों की शिक्षा प्रणाली बेहतर हो इसे अपनी जिम्मेदारी मानने लगे हैं।

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

सिंह की कोशिशों का नतीजा है कि अब चित्तौड़गढ़ के सरकारी विद्यालयों में कान्वेंट स्कूलों के बच्चे भी आने लगे हैं। इंद्रजीत सिंह बताते हैं, ‘वैसे तो यह जिला डेवलप है, लेकिन यहां स्कूल जाने में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या बहुत कम है। ये संख्या मैं बढ़ाना चाहता था, कुछ प्रशासनिक अधियारियों और आम जनमानस की सहभागिता से इस मुद्दे पर मैंने बातचीत की। आखिर यहां के लोग बेटियों को स्कूल क्यों नहीं भेजते इसकी कई वजहें निकलकर आईं। उनको ध्यान में रखते हुए एक कार्ययोजना बनाई गई जिसमें शिक्षा चौपाल करने की बात हुई।’ सिंह आगे बताते हैं, ‘अब तक 100 ग्राम पंचायतों में सभी के सहयोग से आठ करोड़ की धनराशि इकट्ठा हो गई है। इसमें दो करोड़ नगद जमा हुआ और छह करोड़ लोगों ने देने की घोषणा की है, जो जल्द ही जमा हो जाएगा।’

अनाम हीरो किरण वर्मा

रण

लाफ कि खि े क ट क ं स रक्त

रक्तदान के संकट को दूर करने के लिए ऐप्प विकसित करने वाले किरण वर्मा इस बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 6000 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर चुके हैं

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रत में हर साल 12,000 से भी ज्यादा लोग खून की कमी के चलते अपनी जान गंवा देते हैं जबकि 6,00,000 यूनिट खून ब्लड बैंक और अस्पतालों के बीच तालमेल न होने के कारण बर्बाद हो जाता है। इस अंतर को खत्म करने और लोगों को रक्तदान के बारे में जागरूक करने के लिए 33 साल के किरण वर्मा निकल पड़े हैं एक लंबे सफर पर। ‘सिंप्ली ब्लड’ के संस्थापक किरण ने इसी साल 26 जनवरी से अपना सफर श्रीनगर की लाल चौक से शुरू किया। श्रीनगर से चलकर अब तक वे 6000 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर चुके हैं। वे अब तक उदयपुर, वडोदरा, चेन्नै और बेंगलुरु की यात्रा कर चुके हैं। इन दिनों वे केरल में हैं। उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को रक्तदान के लिए बनाए गए डेटाबेस से जोड़ने का है, जिससे की जरूरत के समय पर खून मिल सके। वे कहते हैं कि वह अपने सफर के दौरान कम से कम 1.5 लाख लोगों को डेटाबेस से जोड़ना चाहते हैं। वह लोगों को रक्तदान को व्यापार बना चुके लोगों से बचने के लिए भी सतर्क करते हैं। किरण हमेशा से समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। वे बताते हैं कि पहली बार उन्होंने अपने शिक्षक को जरूरत पड़ने पर खून दिया था, यह सोचकर कि उन्हें मार्क्स अच्छे मिलेंगे लेकिन शिक्षक के परिवार का व्यवहार देखकर उनका रक्तदान के प्रति नजरिया बदल गया। उसके बाद से वह रक्तदान करते हैं और अपनी जानकारी लोगों को देते हैं ताकि खून की जरूरत पड़ने पर वह मदद कर सकें। किरण ने गत वर्ष जनवरी में ‘सिंप्ली ब्लड’ शुरू किया। इस ऐप के जरिए डोनर्स का डेटाबेस रखने के अलावा सबसे नजदीकी डोनर का पता भी लगाती है। इससे जरूरतमंद व्यक्ति को सीधे अपने नजदीकी डोनर के बारे में पता चल जाता है। लॉन्च होने के बाद से यह ऐप 11 देशों में 2,000 डोनेश्नस का जरिया बन चुका है।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 20


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