सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 43)

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सम्मान

सम्मान

अमेरिका

प्रधानमंत्री मोदी बने चैंपियन ऑफ द अर्थ

'स्वच्छता के पितामह' को ‘लीजेंड पुरस्कार’

विकास की अस्वच्छ विडंबना डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

बदलते भारत का साप्ताहिक

वर्ष-2 | अंक-43 |08 - 14 अक्टूबर 2018

गांधी जयंती के अवसर पर पुनर्वासित स्कैवेंजर्स के साथ डॉ. विन्देश्वर पाठक, राम बहादुर राय, अमोला पाठक, एनके जानी और डॉ. भास्कर चटर्जी

बापू को श्रद्धांजलि

गांधी जयंती के मौके पर सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक ने पूर्व स्कैवेंजर्स, विधवा माताओं, बच्चों और पूरे सुलभ परिवार सहित समाज के हर तबके के साथ दिल्ली में महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की


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आवरण कथा

अयोध्या प्रसाद सिंह

दि ईश्वर को ढूंढना है, तो जून की दोपहरी में खेत में काम करते मजदूर के माथे पर छलके पसीने की बूंदों में उसे ढूंढो।’ गांधी की इन पंक्तियों से गांधीवादी दर्शन में श्रम के महत्व का पता चलता है। शायद गांधी इसी श्रम शक्ति को दरिद्र नारायण की संज्ञा देते हैं और इस श्रमिक को हरिजन अर्थात हरि (ईश्वर) का जन का कहते हैं। सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने गांधी के इन विचारों को उनके स्वच्छता संबंधी विचारों से जोड़ते हुए गांधीवाद को एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया है। चूंकि गांधी स्वच्छता को सर्वाधिक महत्व देते थे और उनके मुताबिक, हर छोटे से बड़े व्यक्ति को, अमीर को गरीब को स्वयं की और अपने आसपास की सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसीलिए गांधी जयंती के मौके पर सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक पुनर्वासित स्कैवेंजर्स, विधवा माताओं, बच्चों और पूरे सुलभ परिवार सहित समाज के हर तबके के साथ दिल्ली में राजघाट स्थित गांधी की समाधि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। डॉ. पाठक ने राजघाट

खास बातें बापू की समाधि पर सुलभ प्रणेता ने दी श्रद्धांजलि गांधी के विचारों को पूरे भारत में पहच ुं ाएगा सुलभ डॉ. पाठक की किताब 'रोड टू फ्रीडम' ने शोध के नए रास्ते दिखाए

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पर बच्चों को संदेश देते हुए गांधी के विचारों सत्य और अहिंसा को आत्मसात कर आगे बढ़ने के लिए कहा। साथ ही उन्होंने राजघाट पर एलान किया कि 150 वीं गांधी जयंती तक सुलभ के लोग पूरे भारत में घूम-घूमकर गांधी के स्वच्छता संबंधी दर्शन और उनके विचारों को लोगों तक पहुंचाएंगे। इस अवसर पर सुलभ ने दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब एनेक्सी में गांधी विचार और उनके दर्शन पर एक संगोष्ठी भी आयोजित की। इस संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय मुख्य अतिथि थे। लिविंग स्टैच्यू ऑफ गांधी के नाम से प्रसिद्ध कैसर एनके जानी विशिष्ठ अतिथि के रूप में आमंत्रित थे, तो वहीं रिटायर्ड आईएस अधिकारी भास्कर चटर्जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षीय भूमिका संभाली।

देश में बही स्वच्छता की धारा

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने इस मौके पर सुलभ आंदोलन और गांधी के विचारों को एक-दूसरे से जोड़ते हुए कहा कि स्वच्छता गांधी के दिल के बहुत करीब थी, जिसने आज बेहद मजबूत और प्रभावी क्रांति का आकार ले लिया है। स्वच्छता और सफाई की धारा देश में तेजी से बह रही है। इससे पहले 'सफाई' विषय केवल घरेलू चर्चाओं तक ही सीमित था, लेकिन आज यह पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुका है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सुलभ को जाता है। जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक, देश में कई प्रधानमंत्री हुए, लेकिन हाथों में झाड़ू पकड़ कर सड़कों पर सफाई करते हुए स्वच्छता को गले से लगाने वाले सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी हैं। जब देश का प्रधानमंत्री देश से स्वच्छता के लिए अपील करता है, तो वह सीधे पूरी जनता को महात्मा गांधी से जोड़ रहा होता है। भारतवासी स्वच्छता अभियान में भाग लेकर महात्मा गांधी के 150 वीं जयंती वर्ष का हिस्सा बनने के लिए उत्साहित हैं और लोगों में यह प्रेरणा गांधीवाद

1970 में, मैंने दो गड्ढे वाले पोर फ्लश के कई डिजाइनों का आविष्कार कर उन्हें विकसित किया, जिसे बाद में सुलभ शौचालय के रूप में लोकप्रिय बनाया। यहीं से मैला ढोने वालों की समस्या के अंत की शुरुआत हुई- डॉ. पाठक के स्रोत डॉ. विन्देश्वर पाठक से आई है। डॉ. पाठक ने पुराने शब्दों पर नए अर्थ चढ़ाए हैं, जिससे गांधी दर्शन को समझने में मदद मिली है।

'रोड टू फ्रीडम' ने सिखाया भारत में शोध कैसे हो

रामबहादुर राय ने कहा कि जैसा डॉ. पाठक खुद कहते हैं कि उनकी किताबें स्वयं बोलती हैं। डॉ. पाठक की किताब 'रोड टू फ्रीडम' इस बात की सबसे बड़ी गवाह है। शोध कार्य कैसे किया जाना चाहिए, इसका यह किताब सबसे अच्छा उदाहरण है। इस किताब में गांवों में हाथों से मैला ढोने वाली कुप्रथा और इससे जुड़े मुद्दों से लेकर इसके समाधानों तक, सब कुछ शामिल है। उन्होंने कहा कि एक समय था जब पाठक जी को अक्सर सामाजिक और पा​िरवारिक विषमताओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन डॉ. पाठक उन लोगों के खिलाफ कभी कोई हिंसक कार्रवाई नहीं करते थे, बल्कि वह एक सच्चे गांधीवादी की तरह कानून का दरवाजा खटखटाते थे। उन्होंने कई मामलों को झेला और कानूनी लड़ाई लड़ी और इस सबके बीच उन्होंने सिखाया कि सच्चाई की हमेशा जीत होती है। उन्होंने अहिंसा को भी एक नई परिभाषा दी। उस परिभाषा को 'रोड टू फ्रीडम' के साथ समझा जा सकता है।

वर्तमान में सिर्फ दो ही गांधीवादी

रामबहादुर राय ने कहा कि जिन लोगों को वास्तव में गांधी के नजदीक समझा जाता है, वही असली गांधीवादी है। और आज दुनिया दो ही लोगों को गांधी के सबसे नजदीक पाती है – डॉ. विन्देश्वर

पाठक और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। गांधी हमेशा जीवित रहेंगे क्योंकि वह भारत की आत्मा हैं, भारत की आवाज हैं और भारत के लिए एक ऐसे प्रेरणा स्रोत हैं जो पूरी दुनिया को मानवता सिखाता है। सिर्फ पुस्तकों को पढ़कर स्वच्छता को नहीं अपनाया जा सकता है। यह जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है जिसे गांधी ने सिखाया और डॉ. विन्देश्वर पाठक और प्रधानमंत्री मोदी ने आगे बढ़ाया। ताकि 2019 में गांधी के सपने को उनकी 150 वीं जयंती पर हासिल पूरा किया जा सके, इसके लिए हम सभी को आगे आने की जरूरत है। यह गांधी को हमारी सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलि होगी।

डॉ. पाठक हैं आज के गांधी

लिविंग स्टैच्यू ऑफ महात्मा गांधी के नाम से प्रसिद्ध और धारावाहिकों व फिल्मों में गांधी की भूमिका निभा चुके अभिनेता और कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कैसर एनके जानी समारोह में विशेष आकर्षण का केंद्र रहे। महात्मा गांधी के रूप में आए कैसर जानी ने गांधी की वेशभूषा में मौजूदा सामाजिक परिदृश्य और गांधी की प्रासंगिकता पर विस्तार से अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, ‘मैं अक्सर विदेश की यात्रा पर रहता हंू और लगभग विशेष और प्रासंगिक स्थानों पर महात्मा गांधी की मूर्ति है। इस पूरी दुनिया में कोई भी विश्वविद्यालय या पुस्तकालय ऐसा नहीं है, जहां महात्मा गांधी पर कोई पुस्तक न हो। गांधी को छोड़कर, इस तरह का सम्मान कभी किसी को नहीं दिया गया है। लेकिन दुख की बात है कि एक तरफ बापू देश के सबसे सम्मानित व्यक्तित्व हैं, लेकिन साथ ही वह सबसे गलत समझे जाने वाले व्यक्ति भी हैं, उनकी बातों को सबसे अधिक गलत तरीके


08 - 14 अक्टूबर 2018 से पेश किया जाता है। शायद ऐसे लोगों ने गांधी को गहराई से नहीं पढ़ा है।’ 40 बार से अधिक गांधी की भूमिका निभा चुके एनके जानी ने डॉ. विन्देश्वर पाठक की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह भले ही बापू की तरह दिखते हों, लेकिन असली गांधी वास्तव में उनके पास बैठे डॉ. विन्देश्वर पाठक हैं जिन्होंने बापू को आज के हिसाब से व्यावहारिक रूप दिया है। मैं पाठक जी में बहुत सारे बापू देखता हूं। गांधी की सादगी, ईमानदारी, विनम्र व्यवहार सब कुछ डॉ. पाठक में समाहित है। वह गांधी के असली वंशज है और आज के महात्मा गांधी हैं।

गांधी के सिद्धांतों को आधुनिक युग में बनाया व्यवहारिक

सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने इस मौके पर महात्मा गांधी को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि जब मैंने 1970 में सुलभ की स्थापना की थी, तो मैंने गांधी के द्वितीय सिद्धांतों से गांधी के मूलभूत सिद्धांतों को अलग कर दिया। गांधी के मूलभूत सिद्धांत हैं – सच्चाई, अहिंसा, ईमानदारी और सत्यनिष्ठा, नैतिकता और धर्माचरण, दूसरों के लिए प्यार और करुणा, भाषण और कार्रवाई में कोई अंतर नहीं, स्वच्छता, अस्पृश्यता का उन्मूलन, गांव विकास, लघु और कुटीर उद्योग, सभी धर्मों का समान आदर आदि। ये सभी गांधी के मूलभूत सिद्धांत हैं। गांधी के द्वितीय सिद्धांत हैं – खाद्य आदतें अर्थात मनपसंद खाना, कपड़े पहनने की पसंद, जीवन शैली चुनने की स्वतंत्रता, भाषा, विश्वास और विचारों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। गांधीवादी मौलिक सिद्धांतों में से मैंने पहले सच्चाई और दूसरे अहिंसा को अपनाया। मेरा मानना है कि गांधी के मूलभूत

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सिद्धांतों को सबको अपनाना चाहिए, लेकिन द्वितीय सिद्धांतों को लेकर लोगों के लिए स्वतंत्रता होनी चाहिए, यही गांधी भी चाहते थे। किसी के ऊपर कुछ भी थोपा नहीं जाना चाहिए। हमने गांधीवाद को नए सिरे से परिभाषित किया है और उसे व्यवहारिक रूप देकर लोगों के लिए आसान बनाया है। डॉ. पाठक ने कहा कि मैंने समाज में हर निर्माण और पुनर्निर्माण के लिए अहिंसा का उपयोग किया है। हमने अपनी अहिंसा के सहारे किसी का भी नुकसान नहीं किया है और न ही किसी धर्म को नीचा दिखाने के लिए किताबें फाड़ी हैं। हमने गांधीवाद का सहारा लेते हुए लोगों के सामने हाथ जोड़कर स्वच्छता अपनाने की विनती की है।

सुलभ के मूल में गांधीवाद

डॉ. पाठक ने बताया कि सुलभ यात्रा के बीज गांधी के सिद्धांतों से ही पड़े हैं और सुलभ की शुरुआत भी गांधी विचारों से हुई थी। उन्होंने अपनी सुलभ यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा, “पटना में, गांधी संग्रहालय भवन में बिहार गांधी जन्म शताब्दी उत्सव समिति से संबंधित एक कार्यालय था। इस समिति का गठन 1969 में महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष के उत्सव की तैयारी करने के लिए किया गया था। यहीं पर मैं सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करता था। यहां मुझसे शुष्क शौचालयों को साफ कर मानव मल को सिर पर ढोने वाले स्कैवंेजर्स की प्रतिष्ठा और मानवाधिकारों की बहाली के लिए काम करने को कहा गया। तब, मैंने पहली बार समाज के इस तबके की दुर्दशा देखी। यहीं पर काम करते हुए मैं स्कैवेंजरों की कॉलोनी में गया और तीन महीने के लिए वहां रहा। इस दौरान मुझे उनके जन्म, संस्कृति, मूल्यों, नैतिकता आदि के बारे में

पता चला। मैं उनके साथ रहता था, बातचीत करता था और उन्हें शाम को पढ़ाया करता था। तभी मैं बेहतर तरीके से उनके दुःख -दर्द को समझ सका।”

गांधी के विचारों से ही सुलभ की स्वीकार्यता

डॉ. पाठक ने बताया कि साल 1970 में सुलभ की स्थापना के साथ ही इस दिशा में काम शुरू हुआ। 1970 में, मैंने दो गड्ढे वाले पोर फ्लश के कई डिजाइनों का आविष्कार कर उन्हें विकसित किया, जिसे बाद में सुलभ शौचालय के रूप में लोकप्रिय बनाया। यहीं से मैला ढोने वालों की समस्या के अंत की शुरुआत हुई, क्योंकि सुलभ शौचालय सस्ते थे और हर कोई इन्हें अपने यहां बनवा सकता था। सबसे खास बात यह थी कि

150वीं गांधी जयंती के लिए सुलभ की खास तैयारी

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19 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती होगी। इसको खास तरीके से मनाने और अधिक से अधिक देश और समाज के निर्माण में योगदान देने के लिए डॉ. पाठक ने कहा कि सुलभ के लोग पूरे भारतवर्ष में गांव-गांव घूमेंगे

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और लोगों से हाथ जोड़कर गांव के विकास में योगदान देने के लिए निवेदन करेंगे। स्वच्छता से लेकर सामाजिक कर्तव्यों का निर्वहन कर हर कोई इसमें योगदान दे सकता है। सुलभ की कई टीमें भारतभर का दौरा करेंगी और

लोगों को स्वच्छता कार्यक्रमों और सरकार की इससे संबंधित योजनाओं से जोड़ेगी। लोगों को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और स्वच्छता अभियान से जोड़ने के लिए खास तरीके अपनाए जाएंगे।

इन्हें हाथों से साफ करने की जरूरत नहीं थी। यहां मल खाद में परिवर्तित हो जाता है जो खेती-किसानी के काम आता है। इसके बाद सुलभ ने मैला ढोने वाले परिवारों को अन्य कामों में पारंगत बनाना शुरू किया जिससे कि उन्हें रोजी-रोटी कमाने के अन्य साधन मिल सकें। सुलभ को अपने पहले काम के लिए जिसमें दो शौचालय बनवाने थे, 500 रुपए मिले थे। लेकिन ईमानदारी और निष्ठा से अब सुलभ संगठन आज करोड़ों की परियोजनाओं के कार्यान्वयन का संचालन कर रहा है।

स्वच्छता उद्यमों के लिए भी सामाजिक दायित्व है

कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के भारत में जनक और कार्यक्रम के संचालक और अध्यक्ष रिटायर्ड आईएस अधिकारी डॉ. भास्कर चटर्जी ने इस मौके पर कहा कि डॉ. पाठक को किसी की प्रशंसा की आवश्यकता नहीं, क्योंकि उनका काम खुद ही सारी कहानी कह देता है। डॉ. पाठक ने गांधी के हर मापदंड को भरपूर जिया है और सब पर खरे उतरे हैं। चटर्जी ने बताया कि जब वह निजी कंपनियों के सामाजिक दायित्व पर शोध कर रहे थे तो उन्होंने इससे जुड़े एक विधेयक में धारा 135 में कंपनियों के सामाजिक दायित्व (सीएसआर) को जोड़ा। इस पर संसद में लगभग 7 घंटे बहस हुई और या इसे पास कर दिया गया। इसके अंतर्गत कंपनियां अपने मुनाफे में से 2 फीसदी रकम सामाजिक कार्यों पर खर्च करेंगी, स्वच्छता भी इसमें एक अहम कड़ी है। उन्होंने कहा कि इन कार्यों को अंजाम देने के लिए वह डॉ. पाठक से बहुत प्रभावित थे।

गांधी के कदमों पर चलकर बने आधुनिक गांधी

सुलभ इंटरनेशनल के वरिष्ठ सलाहकार अनित दत्त मिश्र ने इस अवसर पर कहा कि आज से 50 साल पहले जब महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी मनाई गई थी, तब डॉ. विन्देश्वर पाठक गांधी के एक नए अवतार के रूप में उभरे थे। अब जब हम बापू की 150 वीं वर्षगांठ समारोह के लिए तैयार हो रहे हैं, तो डॉ. पाठक ने यह सुनिश्चित करने का वादा किया है कि कोई भी गरीब और भूखा न रहे। और यदि कोई


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गांधी के सपने हो रहे साकार

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14 में मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्ररेणा लेकर स्वच्छता अभियान शुरू किया। भारत सरकार के इस मुहिम के फलस्वरूप आम लोगों में साफ-सफाई को लेकर काफी जागरूकता आई है। इसका परिणाम यह है कि पिछले चार सालों में देश भर में 9 करोड़ से ज्यादा शौचालय बन चुके हैं और इनकी पहुंच 30 फीसदी से बढ़कर 90 फीसदी इलाकों तक हो चुकी है। 20 राज्यों सहित 430 से अधिक जिले और साढ़े चार लाख गांव खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। बचे हुए कार्य को सरकार इस एक साल में पूरा करके महात्मा गांधी की 150 वीं जन्म जयंती पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए प्रतिबद्ध है।

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गांधीवाद और सुलभवाद

लभ प्रणेता डॉ. पाठक ने आसान शब्दों में समझाते हुए कहा कि गांधीवाद का अर्थ है दूसरों की सहायता करना है। जिस इंसान के पास परेशानी में फंसे इंसान की सहायता करने के लिए बड़ा दिल है, वही गांधीवादी है। गांधी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे’ भी यही संदेश देता है। सुलभ प्रणेता के अनुसार हर समस्या का हल जो खुद निकाले वही गांधीवादी है। सुलभ ने भी अपने दर्शन में इसी गांधीवाद को समाहित किया है।

हमने अपनी अहिंसा के सहारे किसी का भी नुकसान नहीं किया है और न ही किसी धर्म को नीचा दिखाने के लिए किताबें फाड़ी हैं। हमने गांधीवाद का सहारा लेते हुए लोगों के सामने हाथ जोड़कर स्वच्छता अपनाने के लिए विनती की- डॉ. पाठक

ऐसा है, तो तुरंत उसका निदान किया जाए। गांधी एक रचनात्मक आत्मा थी। जो भी उनके संपर्क में आया, वह महान व्यक्तित्व बन गया। ऐसा कहा जाता है कि जो भी गांधी द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलता है, वह महान बन जाता है। डॉ. पाठक अगले गांधी बन गए, क्योंकि वह गांधी के कदमों पर चले और उन्होंने कई आविष्कार किए। गांधी कभी कठोर नहीं रहे, बल्कि उन्होंने लोगों को अपने हिसाब से काम करने की आजादी दी, डॉ. पाठक वही गांधी हैं। जब हम भारत में गांधी के प्रभाव की बात करते हैं तो ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जो गांधी से प्रभावित न हो। आज का भारत गांधी का भारत है और गांधी के नाम का मतलब ही भारत हो जाता है। उनके इस प्रभाव को समझने के लिए, हमें उनके दर्शन और सिद्धांत को समझने की जरूरत है। गांधी बहुआयामी थे। वह हर परिप्रेक्ष्य में महान थे। उनका रास्ता आसान नहीं है।

गांधी और डॉ. पाठक के विचारों से बना है ‘सुलभवाद’

मिश्र ने कहा कि सुलभ सादगी का नाम है और सुलभ क्रांति अहिंसा का प्रमुख अंग बन चुकी है। गांधी एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूर्ण विचारधारा है। इसी प्रकार, डॉ. विन्देश्वर पाठक सिर्फ एक

व्यक्तित्व नहीं है, बल्कि एक पूरी विचार प्रक्रिया है जिसे हम 'सुलभवाद' के रूप में जानते हैं। हमें गांधी से चार चीजें महत्वपूर्ण चीजें सीखने की जरूरत है – आत्म-नियंत्रण, आत्मनिर्भरता, आत्म-मर्यादा, आत्म सम्मान। इस अवसर पर सुलभ संस्था के वरिष्ठ सदस्य अवधेश शर्मा ने कहा कि डॉ. पाठक ने कई लोगों के जीवन को

बदला है। गांधी जो काम अपने जीवनकाल में पूरा नहीं कर पाए, उसे सुलभ संस्थापक डॉ. पाठक पूरा कर रहे हैं। गांधी ने कहा था कि दृष्टिकोण बदलो, डॉ पाठक ने पूर्व स्कैवेंजर्स महिलाओं और वृंदावन की विधवाओं सहित जाने कितने लोगों के जीवन का दृष्टिकोण बदला है। गांधी होने का मतलब है कि प्राचीन ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में ढाला जाए। साथ ही गांधीवाद का अर्थ है कि जीवन के मूलभूत सिद्धांतों से कभी समझौता न किया जाए, और हमें डॉ पाठक से यह सब सीखने की जरूरत है। डॉ. पाठक ने गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि दी है।

एक ही जीवन में जिए दो जीवन

राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली पूर्व स्कैवेंजर उषा शर्मा ने गांधी को श्रद्धांजलि को देते हुए अपनी मार्मिक कहानी सुनाई। उषा ने कहा कि उन्होंने गांधी को तो नहीं देखा है, लेकिन डॉ. पाठक ही उनके लिए गांधी है, उनके पिता हैं। उन्होंने कहा कि एक पिता ने उन्हें मैला ढोना सिखाया तो दूसरे ने मैला छुड़ाया। उन्होंने बताया कि 15 साल पहले वह मैला ढोया करती थी, लेकिन 2003 में सुलभ अंतरराष्ट्रीय सामाजिक सेवा संगठन ने उन्हें मैला ढोने की अमानवीय प्रथा से मुक्ति दिलाई। आज वो इसी संगठन में अध्यक्ष हैं और देश-विदेश के कई बड़े मंचों से लोगों को संबोधित कर चुकी हैं। अब वे कईं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर छूआछूत और महिला सशक्तीकरण जैसे मुद्दों को उठा रही हैं। वे कहती हैं कि उन्होंने एक ही जीवन

में 2 जीवन जिए हैं। पहले कोई उनकी परछाईं के नजदीक भी नहीं आता था ,लेकिन अब सभी उनके साथ बैठकर खाना खाते हैं।

गांधी पर फोटो प्रदर्शनी बनी विशेष आकर्षण

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के उपलक्ष्य में सुलभ इंटरनेशनल ने गांधी जी के जीवन दर्शन पर आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी भी लगाई। इस प्रदर्शनी को देखने के लिए लोगों में विशेष उत्साह रहा। इस प्रदर्शनी में महात्मा गांधी के बचपन, उनकी विदेश यात्रा और आंदोलनों से संबंधित छायाचित्र, गांधी साहित्य एवं उनके लिखे हुए पत्र की छायाप्रति प्रदर्शित किए गए।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और सम्मान

गांधी जयंती पर सुलभ पब्लिक स्कूल के बच्चों और शिक्षकों द्वारा कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए गए। इसमें मैला ढोने की कुप्रथा के ऊपर प्रस्तुत नाटक ने लोगों को भावुक कर दिया। सुलभ के एग्जक्यूटिव डायरेक्टर एस चटर्जी ने कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में मौजूद सभी गणमान्य अथितियों को शाल ओढ़ाकर व प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया। साथ ही कार्यक्रम में आए अतिथियों को गांधी के ऊपर विशेष किताब और डॉ. विन्देश्वर पाठक द्वारा लिखित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बायोग्राफी ‘मेकिंग ऑफ लीजेंड’ भी भेंट के रूप में दी गई।


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प्रधानमंत्री मोदी बने चैंपियन ऑफ द अर्थ प्रधानमंत्री मोदी को सतत विकास, जलवायु परिवर्तन पर अनुकरणीय नेतृत्व और सकारात्मक कदम उठाने के लिए संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार ‘चैंपियंस ऑफ अर्थ’ प्रदान किया गया

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धानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) का सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ’ अवॉर्ड प्रदान किया गया। प्रवासी भारतीय केंद्र में उन्हें यह अवॉर्ड संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने प्रदान किया। पीएम मोदी को यह अवॉर्ड पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया है। उन्हें सतत विकास, जलवायु परिवर्तन पर अनुकरणीय नेतृत्व और सकारात्मक कदम उठाने के लिए यह अवॉर्ड दिया गया है। उन्हें यूएन का यह सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार भारत को 2022 तक एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक से मुक्त कराने के संकल्प और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के कुशल नेतृत्व के लिए प्रदान किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर कहा कि यह सम्मान पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भारत की सवा सौ करोड़ जनता की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। उन्होंने कहा, ’यह भारत की उस नित्य नूतन, चिर पुरातन परंपरा का सम्मान है, जिसने प्रकृति में परमात्मा को देखा और जिसने सृष्टि के मूल में पंचतत्व के अधिष्ठान का आह्वान किया है।’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘पर्यावरण और आपदा सीधे तौर पर जुड़े हैं। अगर संस्कृति के केंद्र में पर्यावरण नहीं है तो आपदा को रोका नहीं जा सकता। जब मैं ‘सबका साथ’ कहता हूं तो इसमें

यह भारत की उस नित्य नूतन, चिर पुरातन परंपरा का सम्मान है, जिसने प्रकृति में परमात्मा को देखा और जिसने सृष्टि के मूल में पंचतत्व के अधिष्ठान का आह्वान किया है- नरेन्द्र मोदी प्रकृति भी शामिल होती है।’ पीएम मोदी ने कहा, ‘यह भारत के जंगलों में बसे उन आदिवासी भाइयों का सम्मान है जो अपने जीवन से ज्यादा जंगलों को प्यार करते हैं। यह भारत के उन मछुआरों का सम्मान है, जो समुद्र और नदियों से उतना ही लेते हैं, जितना अर्थ उपार्जन के लिए जरूरी है। यह भारत के उन करोड़ों किसानों का सम्मान है, जिनके लिए ऋतु चक्र ही जीवन चक्र है। यह भारत की उस नारी का सम्मान है, जो पौधे में भी परमात्मा का रूप देखती है।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लिए ये दोहरे सम्मान का अवसर इसीलिए भी है कि कोच्चि एयरपोर्ट को भी अवार्ड मिले हैं। उन्होंने कहा कि ये सस्टेनेबल एनर्जी को लेकर हमारी वचनबद्धता का प्रतीक है। इस अवसर पर मैं उन सभी साथियों संस्थाओं को बधाई देता हूं जिनको अलग-अलग श्रेणियों में ये पुरस्कार मिला है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं पर्यावरण और प्रकृति को लेकर भारतीय दर्शन की बात इसीलिए करता हूं क्योंकि क्लाइमेट और केलेमिटी का

कल्चर से सीधा रस्ता है। क्लाइमेट की चिंता जब तक कल्चर का हिस्सा नहीं होती तब तक कैलेमिटी से बच पाना मुश्किल है। पीएम मोदी ने कहा कि पर्यावरण के प्रति भारत की संवेदना को आज विश्व स्वीकार कर रहा है। ये हजारों वर्षों से हमारी जीवन शैली का हिस्सा रहा है। हम उस समाज का हिस्सा हैं जहां सुबह उठने से पहले धरती माता से क्षमा मांगते हैं क्योंकि वहां हम अपना बोझ धरती पर रखते हैं। पीएम मोदी ने कहा, ’आज दुनिया भारत के योगदान को स्वीकार कर रही है। हजारों वर्षों से पर्यावरण सुरक्षा हमारी जिंदगी का हिस्सा है। भारत में लोग उठने से पहले धरती को प्रणाम करते हैं क्योंकि हम उनपर अपना भार डालने वाले हैं। भूमि की हम पूजा करते हैं।’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमने प्रकृति को हमेशा सजीव माना है और सहज जीव भी माना है। प्रकृति के साथ इस भावात्मक रिश्ते के साथ ही पूरे ब्रह्मांड की भलाई की कामना की जाती है।... जब स्वयं ईश्वर को अपना परिचय देना होता है तो वह यह कहते हैं कि मैं ही जलाशय हूं, मैं ही

नदी हूं, मैं ही समंदर हूं।’ प्रधानमंत्री मोदी ने ‘क्लाइमेट जस्टिस’ का मुद्दा उठाते हुए कहा कि सबको गरिमापूर्ण जीवन देना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने कहा, ’भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। हर साल करोड़ों लोग भीषण गरीबी से बाहर आ रहे हैं। विकास की रफ्तार को तेज करने के लिए हम समर्पित हैं। इसीलिए नहीं कि हमें किसी से मुकाबला करना है, बल्कि हमें सबको गरिमापूर्ण जीवन देना है, जो हमारा कर्तव्य है।’ पीएम मोदी ने कहा, ‘सूखे और बाढ़ की गंभीरता साल दर साल बढ़ रही है और इससे सबसे ज्यादा परेशान गरीब हो रहा है, जिसके पास सीमित संसाधन हैं। बहुत बड़ी आबादी को प्रकृति पर बोझ डाले बिना विकास की रफ्तार से कदमताल के लिए सहारा की जरूरत है, हाथ बढ़ाने की जरूरत है। मैंने पेरिस में क्लाइमेट जस्टिस का जिक्र किया।...मुझे खुशी है कि पेरिस समझौते में दुनिया ने इस बात को माना है और ‘क्लाइमेट जस्टिस’ को लेकर प्रतिबद्धता जताई। लेकिन जमीन पर उतारने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।’ पीएम मोदी ने कहा, ‘रोजगार का एक बड़ा हिस्सा गांव से जुड़ा है तो मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस के हब शहर हैं। हमारे गांव हमेशा से ही पर्यावरण के प्रति सचेत रहे, वे प्रकृति से जुड़े रहे। बीते 4 दशकों में हमारे गांवों ने इस शक्ति का और विस्तार किया है। गांवों में भी बॉयोवेस्ट को ऊर्जा में बदलने के प्रयास शुरू हुए हैं।... ऑर्गेनिक खेती और सॉइल हेल्थ कार्ड को बढ़ावा दिया जा रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘जब हम इंडस्ट्री और मैन्यूफैक्चरिंग की बात करते हैं कि ‘जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट’ हमारा मंत्र है। जब हम खेती की बात करते हैं तो ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ हमारा मंत्र है।’ प्रधानमंत्री मोदी ने सौर ऊर्जा और स्वच्छ ईंधन की दिशा में सरकार की पहल का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘आज भारत में 100 स्मार्ट सिटीज का काम तेजी से चल रहा है।’ प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि एयर पलूशन को कम करने के लिए प्रोग्राम चल रहा है। वाहनों के लिए बीएस4 से सीधे बीएस-6 मानक का ईंधन लागू किया गया है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के लिए हमारी प्रतिबद्धता पहले से भी और बढ़ी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारा प्रयास है कि अगले 2 सालों में उत्सर्जन का लेवल 2005 के लेवल से 25 प्रतिशत कम हो। उन्होंने कहा, ’पर्यावरण के प्रति लगाव हमारी आस्था के साथ-साथ आचरण में भी परिलक्षित हो रहा है। भारत 2022 तक सिंगल यूज वाले सभी तरह के प्लास्टिक से मुक्त होगा।’


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सम्मान

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‘स्वच्छता के पितामह’ को ‘लीजेंड पुरस्कार’

डॉ. पाठक के काम ने लाखों वंचितों के जीवन में बड़ा बदलाव पैदा किया है और देश में स्वच्छता संबंधी बुनियादी ढांचे को सुधारने के उनके प्रयासों ने भी बड़ा काम किया है

की आवश्यकता होती है। इस तरह की सोच, चाहे मूल-प्राचीन हो या आधुनिक, चाहे पूर्वी हो या पश्चिमी होने के बावजूद, मुझे गले लगाने को विवश करती है। इस प्रकार, मैं एक परंपरावादी और आधुनिकतावादी दोनों हूं, पूरी तरह से एक ऐसा सामाजिक व्यक्ति जिसकी जड़ें भारतीय मिट्टी में समाई हुई है, लेकिन उसने अपने दरवाजे और खिड़कियां हर आधुनिक सोच के लिए खुली रखी हैं।’ कुछ लोग कहते हैं कि समाज के हर तबके के लिए प्यार और करुणा के मेरे आदर्श ने मुझे असंभव चीजों को भी करने का अधिकार दे दिया है- जैसे कि मैला ढोने वालों को इस घृणित कार्य से मुक्त कराना और विधवाओं के दुःख भरे जीवन में खुशियां भरना। वैसे भी, मैं लोगों के प्यार और करुणा के बिना कुछ भी बेहतर करने में सक्षम नहीं होता। मैं अपने दिल की गहराई से एक ऐसा भारतीय वातावरण चाहता हूं जो स्वस्थ हो, सामंजस्यपूर्ण हो और प्रेम और करुणा से भरा हुआ हो। इस समारोह में डॉ. पाठक को प्रसिद्ध चेंज मेकर्स (जो बदलाव लाए) डॉ. एमएस स्वामीनाथन और डॉ. भास्कर चटर्जी के साथ सम्मानित किया गया।

‘सु

उरूज फातिमा

लभ स्वच्छता आंदोलन के पितामह’ डॉ. विन्देश्वर पाठक, सही मायने में एक सच्चे लिविंग लीजेंड हैं। वह पिछले पांच दशकों से अपने जीवन को स्वच्छता आंदोलन के लिए समर्पित कर देने की वजह से देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने मैनुअल स्कैवेंजर्स (मैला ढोने वाले) के मानवाधिकारों के लिए अथक काम किया है, जो शुष्क शौचालयों को साफ करते हैं और भारत की जाति-आधारित व्यवस्था के सबसे निचले स्तर से आते हैं, जिनमें भी ज्यादातर महिलाएं हैं। फिनोवेशन ने अपने 10 वें फाउंडेशन दिवस समारोह में नई दिल्ली के होटल हयात रीजेंसी में सुलभ स्वच्छता और सामाजिक आंदोलन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक को ‘द लीजेंड अवार्ड’ से सम्मानित किया। डॉ. पाठक को यह सम्मान देश में स्वच्छता के बुनियादी ढांचे को सुधारने और शौचालय की सुविधा देश में अधिकतर जगहों तक पहुंचाने के लिए दिया गया है। पुरस्कार प्राप्त करते हुए डॉ. पाठक ने इस अवसर पर कहा कि मुझे विश्वास है कि जो व्यक्ति

एक सच्चे लिविंग लीजेंड

भारत की सांस्कृतिक बहुलता की अपनी समझ के आधार पर, मैंने समस्याओं के समाधान के लिए एक आदर्शवादी और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश की है। समाज के सभी वर्गों को एक साथ लेकर कट्टरपंथी चीजों को एक सुधारवादी खांचे में ढालने की कोशिश की है- डॉ. पाठक आपकी प्रशंसा कर रहा है वह उस व्यक्ति से बड़ा है जिसकी सराहना की जा रही है। ऐसा इसीलिए है क्योंकि लोगों के काम की सराहना और उन्हें ऊपर उठाना बहुत मुश्किल है। मेरे इस विशेष पुरस्कार और प्रशंसा के योग्य होने पर विचार करने के लिए फिनोवेशन परिवार, विशेष रूप से इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. सौमित्र चक्रवर्ती, और इसकी विशिष्ट ज्यूरी का आभारी हूं। डॉ. पाठक ने कहा, ‘मैं दिल से सम्मानित महसूस कर रहा हूं और मैं उन्हें आश्वस्त करना चाहता हूं कि यह पुरस्कार मानवता और स्वच्छता के लिए और अधिक काम करने की मेरी भावना और प्रतिबद्धता को मजबूत करेगा।’ उन्होंने आगे कहा, ‘भारत की सांस्कृतिक बहुलता की अपनी समझ के आधार पर, मैंने

समस्याओं के समाधान के लिए एक आदर्शवादी और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश की है। समाज के सभी वर्गों को एक साथ लेकर कट्टरपंथी चीजों को एक सुधारवादी खांचे में ढालने की कोशिश की है। मैं एक तरह का आलोचनात्मक परंपरावादी हूं, क्योंकि मैं अपनी परंपरा के मूल्यों का आभारी हूं जो हमारे बीच प्यार, करुणा और मानवता को बढ़ाता है। लेकिन परंपरा में समाई समाज को तोड़ने वाली रुढ़िवादी व्यवस्था से शर्मिंदा हो जाता हूं जो हमें विभाजन की ओर ले जाती है। मुझे लगता है कि अंतर्निहित मानसिकता और सामाजिक पूर्वाग्रह को बदलना मुश्किल है, लेकिन अतीत में ही रहना एक खतरनाक जीवन है। जीवंत और रचनात्मक होने के लिए, व्यक्ति और समाज को नए विचारों और नई गतिविधियों

फिनोवेशन के सीईओ डॉ. सौमित्र चक्रवर्ती ने इस मौके पर कहा, ‘यदि आप इन तीनों व्यक्तियों को देखें, तो आपको एक ऐसे युग का एहसास होगा जहां कोई सोशल मीडिया नहीं था। उन्होंने वास्तव में सभी बाधाओं के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया। प्रतिरोध की उस प्रक्रिया और उस दौरान दिखाए गए उत्साह व साहस को मनाने के लिए ही आज हम इकट्ठा हुए हैं।’ सौमित्र चक्रवर्ती ने कहा कि डॉ. पाठक के काम ने उन लाखों वंचित गरीबों के जीवन में महत्वपूर्ण अंतर पैदा किया है, जिनके पास व्यक्तिगत शौचालयों की सुविधा नहीं थी और जो मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में काम करते हुए समाज में भेदभाव का सामना करते थे। उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक का मानना है कि एक ऐसी सामाजिक प्रणाली जो समावेशी नहीं है, उसे बदला जाना चाहिए। वह राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान चलाते हैं, जो मैला ढोने वालों की दुर्दशा को उजागर करता है, साथ ही वह लंबे समय से समाज में उपेक्षित विधवाओं की स्थिति बदलने के लिए काम कर रहे हैं ताकि वे समाज में आम लोगों की तरह जीवन जी सकें और जिंदगी के रंग देख सकें।


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सम्मान

डॉ. पाठक को ‘लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड’

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पीएचडी चेंबर ने डॉ. पाठक को ‘पीएचडी एनुअल अवार्ड्स फॉर एक्सीलेंस 2018’ से सम्मानित किया ‘लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड’ के अतिरिक्त अन्य पुरस्कार भी प्रदान किए गए। ‘गुड कॉरपोरेट सिटिजन अवार्ड’ से पावरग्रिड को सम्मानित किया गया। गेल एवं डाबर इंडिया लिमिटेड को ‘अवार्ड फॉर आउटस्टैंडिंग कॉन्ट्रीब्यूशन टू सोशल वेलफेयर’ सम्मानित किया गया। वहीं वरुण बेवरेजेस लिमिटेड के अध्यक्ष रविकांत जायपुरा को ‘डिस्टिंग्विश्ड एंटरप्रेन्योरशिप अवार्ड’ तथा ‘लक्ष्यम’ के संस्थापक राशि आनंद को ‘स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड फॉर सोशल वर्क बाइ ए वुमन से सम्मानित किया गया। इस सम्मान समारोह के ज्यूरी सदस्य के तौर पर मौजूद थे न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर, मीरा शंकर, भारतीय राजनयिक, वी.के. मल्होत्रा, पूर्व सचिव, कानून एवं न्याय मंत्रालय तथा एच.के. दुआ राज्य सभा सांसद।

प्रेरणा का मेरा स्रोत

डॉ. भास्कर चटर्जी ने अपने भाषण के दौरान पिछले 50 वर्षों में डॉ. पाठक द्वारा किए गए निःस्वार्थ काम की सराहना की और कहा, ‘आप सीएसआर की मेरी पूरी यात्रा में प्रेरणा थे और हैं। आपके साथ एक मंच साझा करके और पुरस्कार ग्रहण करके विशेषाधिकार महसूस करता हूं। डॉ. पाठक ने स्वच्छता के क्षेत्र में देश का नेतृत्व किया। महात्मा गांधी के साथ डॉ. पाठक का संबंध लगभग प्राकृतिक है। महात्मा गांधी जो कार्य शुरू किया, डॉ. पाठक ने उसे आगे बढ़ाया है। वह एक सच्चे गांधीवादी हैं।’

भारतीय हरित क्रांति के पिता

मकबू सांबशिवन स्वामीनाथन (जन्म 7 अगस्त 1925) भारत की हरित क्रांति के जनक हैं। वह एक प्रसिद्ध आनुवांशिकी विज्ञानी और अंतरराष्ट्रीय प्रशासक है। हरित क्रांति के अंतर्गत गरीब किसानों के खेतों में गेहूं और चावल के रोपण की उच्च पैदावार वाली किस्में लगाई गईं। स्वामीनाथन को भारत में गेहूं की उच्च पैदावार वाली किस्मों को शुरू करने और आगे बढ़ाने में उनके नेतृत्व और सफलता के लिए ‘भारतीय हरित क्रांति के जनक’ के रूप में जाना जाता है।

कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के सूत्रधार

डॉ. भास्कर चटर्जी को हमारे देश में ‘कॉरर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर)’ के सूत्रधार के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अप्रैल, 2010 में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसई) के लिए सीएसआर दिशानिर्देश तैयार करने और जारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद, उन्होंने 2013 के कंपनी अधिनियम में धारा 135 को शामिल करने और उसके बाद के नियमों के निर्माण में एक प्रमुख भूमिका भी निभाई। आज, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स (आईआईसीए) के डीजी और सीईओ के रूप में, वह कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (एनएफसीएसआर) के लिए राष्ट्रीय फाउंडेशन का नेतृत्व करते हैं। इनोवेशन फाइनेंस एडवाइजर प्राइवेट लिमिटेड (फिनोवेशन) एक वैश्विक परामर्श कंपनी है, जो कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) और सस्टेनेबिलिटी पर जोर सहित ‘सामाजिक विकास क्षेत्र’ के कई विषयों में काम कर रही है।

एसएसबी ब्यूरो

देश के व्यापार की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए जो नियम बाधक बन रहे हैं, उसे बंद करने की आवश्यकता है। मैंने पीएचडी चेंबर से भी कहा है कि वे उन नियमों को रेखांकित करे ताकि व्यापार की प्रक्रिया सहज हो सके।’ केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने ये बातें पीएचडी एनुअल अवार्ड्स फॉर एक्सीलेंस 2018’ प्रदान किए जाने के अवसर पर कहीं। नई दिल्ली के अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में पीएचडी चेंबर द्वारा आयोजित इस सम्मान समारोह में देश के कई विशिष्ट हस्तियों को विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देने के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया। इससे पूर्व पीएचडी चेंबर के अध्यक्ष अनिल खेतान ने केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु और अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर सुलभ इंटरनेशलन सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक को ‘लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। डॉ. पाठक के पूर्व हीरो ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. बृजमोहन लाल मुंजाल, ई.आइ. एच. लिमिटेड के कार्यकारी अध्यक्ष पी.आर. एस. ओबराय, डी.एम.आर.सी. के पूर्व प्रबंध निदेशक डॉ. ई. श्रीधरन तथा अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. प्रताप सी. रेड्डी भी ‘लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किए जा चुके हैं। सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक पिछले 50 वर्षों से स्वच्छता के साथ-साथ अन्य सामाजिक क्षेत्रों में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं और अपने सामाजिक कार्यों हेतु ‘स्टॉकहोम वाटर प्राइज’, ‘23वें निक्की एशिया प्राइज फॉर कल्चर एंड

कम्युनिटी’ जैसे 100 से भी अधिक उल्लेखनीय पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके हैं। देश की दो सबसे बड़ी चुनौतियों, अस्वच्छता एवं अस्पृश्यता की समाप्ति के लिए उन्होंने कई तकनीकों का आविष्कार किया। इन आविष्कारों का ही परिणाम है कि आज ‘सुलभ’ स्वच्छता एवं शौचालय का पर्याय बन चुका है।


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स्वच्छता

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समाज में स्वच्छ भारत मिशन की क्रांतिकारी भूमिका

गांधीजी की 150 वीं जयंती समारोह की शुरुआत के लिए नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन का आयोजन किया गया। प्रधानमंत्री ने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए 124 देशों के कलाकारों द्वारा तैयार 'वैष्णव जन' का अंतरराष्ट्रीय संस्करण लॉन्च किया

रा

उरूज फातिमा

ष्ट्रपिता महात्मा गांधी का गहरा विश्वास था कि स्वच्छता, ईश्वरीयता के आगे है और भारत के लोगों की बेहतरी के लिए राष्ट्रीय प्रगति का मार्ग भी है। वे कहते थे कि हम अशुद्ध शरीर के साथ भगवान का आशीर्वाद प्राप्त नहीं कर सकते हैं और न ही अशुद्ध मन से भगवान को पाया जा सकता है। बापू को श्रद्धांजलि देने के लिए उनके कदमों पर चलना होगा और स्वच्छता के मंत्र का पालन करना होगा। महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती समारोह की शुरूआत करने के लिए, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय द्वारा आयोजित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मलेन (एमजीआईएससी) का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा दिल्ली में किया गया। संयोग से यह स्वच्छ भारत मिशन की भी चौथी वर्षगांठ का अवसर था। एमजीआईएससी 4 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन था, जो लगभग 68 देशों के 53 स्वच्छता मंत्रियों और 200 से अधिक प्रतिनिधियों को एक साथ एक मंच पर लाया, जिसमें दुनिया भर के डब्लूएएसएच (वाश - जल, स्वच्छता और

स्वच्छ भारत अभियान पुरुषों और महिलाओं के दुर्लभ उत्साह, दूरदर्शिता, सामाजिक सहानुभूति और नागरिक होने के गर्व जैसी सामान्य भारतीयों की असाधारण विशेषताओं के दम पर आगे बढ़ा है- रामनाथ कोविंद स्वच्छता) से संबंधित नेता शामिल हैं। पिछले चार वर्षों में, ग्रामीण स्वच्छता कवरेज ने अक्टूबर, 2014 में 39 प्रतिशत से बढ़कर आज 90 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी की है, जिसमें स्वच्छता को लेकस्र व्यवहार परिवर्तन कार्यान्वयन का प्रमुख केंद्र रहा है। स्थाई विकास लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए 2030 तक दुनिया की समृद्धि के लिए गरीबी को समाप्त कर सभी के लिए सामान अवसर की बात कही गई है।

स्वच्छ भारत मिशन एक क्रांति है

4 दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि स्वच्छ भारत एक जन आंदोलन बन गया है और यह क्रांति सही समय पर हो रही है। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा

कि 2030 तक दुनिया के कई भागों में पर्याप्त और समान स्वच्छता एवं लोगों को स्वस्थ बनाने का लक्ष्य हासिल करना खासा चुनौतीपूर्ण है। राष्ट्रपति ने कहा कि स्वच्छता में सुधार और खुले में शौच की बुराई को खत्म करने के व्यापक प्रभाव हैं। वे बेहद अहम सामाजिक और आर्थिक निवेश हैं। उचित शौचालय और उपयुक्त स्वच्छता तथा स्वास्थ्य प्रक्रियाओं के अभाव से कुपोषण और जीवन पर्यंत नुकसान जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं। इसीलिए भारत जैसे देश में मानव पूंजी और हमारी जनसंख्या की सुरक्षा तथा हमारे बच्चों को स्वर्णिम भविष्य देने के लिए स्वच्छ भारत जैसे अभियान खासे अहम हैं। बालिकाओं के लिए अलग शौचालय के अभाव में किसी भी लड़की को विद्यालय नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसी घटनाएं हमारे सामूहिक विवेक पर सवालिया निशान की तरह

होंगी। राष्ट्रपति ने कहा कि स्वच्छ भारत समाज में क्रांतिकारी भूमिका निभा रहा है। लोगों को एकजुट करने, जनांदोलन और राष्ट्रीय लक्ष्य के रूप में यह पूर्ण प्रतिबद्धता के समान है। स्वच्छ भारत अभियान हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। भारत 2 अक्टूबर, 2019 को खुले में शौच से पूरी तरह से मुक्त होने की दिशा में बढ़ रहा है। हम गांधी जी को 150वें जन्मदिन पर दिया जाने वाला सबसे अच्छा उपहार हो सकता है। राष्ट्रपति ने कहा कि स्वच्छ भारत अभियान पुरुषों और महिलाओं के दुर्लभ उत्साह, दूरदर्शिता, सामाजिक सहानुभूति और नागरिक होने के गर्व जैसी सामान्य भारतीयों की असाधारण विशेषताओं के दम पर आगे बढ़ा है। व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर उन्होंने अपने पड़ोस, अपने गांवों और अपने कस्बों व शहरों को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए काम किया है। हर जगह, हर दिन, सभी लोगों और परिवारों ने अपने साथी नागरिकों को व्यवहार में बदलाव के लिए प्रेरित किया। हमारे स्वच्छता चैंपियन देश के सभी धर्मों, समाज के सभी तबकों, सभी समुदायों और सभी सामाजिक एवं आर्थिक समूहों से आते हैं। 68 भागीदार देशों के मंत्रियों और प्रतिनिधिमंडलों


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स्वच्छता

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बापू के आदर्श स्वच्छता के लिए प्रेरित करते हैं: मोदी

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स्वच्छ भारत सामाजिक परिवर्तन के लिए पूरी दुनिया में कहीं भी सबसे बड़ी पहल में से एक है, यह हमेशा से एक योजना से बढ़कर था। यह व्यवहार परिवर्तन के लिए एक आंदोलन था और जैसा कि हम जानते हैं कि व्यवहार में बदलाव करना मुश्किल होता है- यूरी अफनासेव को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि स्वच्छ भारत के साथ हमारी सफलताएं, स्वच्छता के क्षेत्र में हमारी उपलब्धियां, हमारी व्यवस्थाएं और तंत्र उन सभी के लिए उपलब्ध हैं जिनकी उन्हें जरूरत है। स्वच्छता में सुधार एक लक्ष्य या एक या अन्य देश का लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह मानवता की नियति है। राष्ट्रपति ने अपर्याप्त स्वच्छता की समस्या से पार पाने के लिए पांच महत्वपूर्ण विषय सुझाए, जिन्हें देश अपना सकते हैं। ये हैं- सुनिश्चित करें कि लोग स्वच्छता कार्यक्रमों की योजना बनाने, क्रियान्वयन और प्रबंधन की अगुआई करें; प्रभावी और कुशलता से सेवा देने के लिए बेहतर और किफायती प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल; स्वच्छता आंदोलन के वित्तपोषण और उसे टिकाऊ बनाने के लिए वित्तपोषण के नए साधन तैयार करना; सरकार में स्वच्छता कार्यक्रम तैयार करने, लागू करने और निगरानी की क्षमताएं विकसित करना।

वैश्विक समस्या से समाधान तक

संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधि यूरी अफनासेव ने स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति की सराहना की और कहा,

"स्वच्छ भारत सामाजिक परिवर्तन के लिए पूरी दुनिया में कहीं भी सबसे बड़ी पहल में से एक है, यह हमेशा से एक योजना से बढ़कर था। यह व्यवहार परिवर्तन के लिए एक आंदोलन था और जैसा कि हम जानते हैं कि व्यवहार में बदलाव करना मुश्किल होता है। यह सरकार, नागरिक समाज, एनजीओ और सह-भागीदारों और नागरिकों के बीच एक अनुकरणीय साझेदारी का प्रदर्शन करता है। राजनीतिक नेतृत्व और कार्रवाई के इस रूपांतरण ने पिछले चार वर्षों में लगभग 400 मिलियन लोगों को शौचालय की सुविधा और स्वच्छता प्रदान की है। यह मिशन दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए एक सबक के साथ एक महत्वपूर्ण मॉडल के रूप में कार्य कर रहा है। चार वर्षों में भारत वैश्विक समस्या का हिस्सा होने से वैश्विक समाधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने में कामयाब रहा है। यह समय की कमी के कारण एक प्रेरणादायक उपलब्धि है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर ने इस मौके पर कहा, ‘सम्मेलन

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा गांधी के आदर्शों से हर मुश्किल आसान है। उन्होंने कहा कि एमजीआईएससी एक 4 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन रहा है, जो दुनिया भर के स्वच्छता मंत्रियों और अन्य नेताओं को वाश (जल, स्वच्छता और साफ-सफाई) के लिए एकजुट किया। प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेज के साथ एक डिजिटल प्रदर्शनी का दौरा किया। मंच पर गणमान्य व्यक्तियों ने महात्मा गांधी पर स्मारक डाक टिकट और महात्मा गांधी के पसंदीदा भजन - ‘वैष्णव जन तो’ पर आधारित एक सीडी जारी की। इस अवसर पर स्वच्छ भारत पुरस्कार भी प्रदान किए गए। अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री मोदी ने महात्मा गांधी द्वारा स्वच्छता पर दिए गए बल का उल्लेख किया। उन्होंने 1945 में प्रकाशित महात्मा गांधी के ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ का उल्लेख किया, जिसमें ग्रामीण स्वच्छता एक महत्वपूर्ण विषय थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर अशुद्ध वातावरण को साफ का नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने औपनिवेशिक भारत में कहा था कि स्वच्छता, राजनीतिक स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है। गांधीजी की खुले में शौच से मुक्त भारत की परिकल्पना अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वास्तविकता में बदल रही है।’ इस अवसर पर केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, ‘स्वच्छ भारत मिशन केवल आधारभूत प्रक्रिया

नहीं किया जाता है, तो ऐसी स्थिति को बढ़ावा मिलता है, जहां कोई भी व्यक्ति उन परिस्थितियों को स्वीकार करना शुरू कर देता है। इसके विपरीत, अगर कोई व्यक्ति अपने आस-पास की गंदगी को साफ करता है, तो वह ऊर्जा प्राप्त करता है, और वह स्वयं मौजूदा प्रतिकूल परिस्थितियों को स्वीकार नहीं करता है। उन्होंने कहा कि यह महात्मा गांधी की प्रेरणा ही थी, जिसने स्वच्छ भारत मिशन को बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी से प्रेरित होकर भारतीयों ने स्वच्छ भारत मिशन को दुनिया का सबसे बड़ा जन आंदोलन बना दिया है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण स्वच्छता, जो 2014 में 38 प्रतिशत थी, अब 94 प्रतिशत तक पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि अब 5 लाख से ज्यादा गांव खुले में शौच (ओडीएफ) से मुक्त हैं। उन्होंने कहा कि भारत सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। उन्होंने दुनिया को स्वच्छ बनाने में "4 पी" – राजनीतिक नेतृत्व, सार्वजनिक निधि, साझेदारी और जनता की भागीदारी के महत्व पर प्रकाश डाला। नहीं है। यह कुछ और है, इसमें गतिशील बदलाव हैं क्योंकि इसमें व्यवहारिक परिवर्तन शामिल हैं। महात्मा गांधी के बाद हमारे प्रधानमंत्री मोदी के अलावा भारत में कोई नेता नहीं है जिसने स्वच्छता के मुद्दे पर इतनी बड़ी पहल की हो और इसे वैश्विक स्तर ले गया हो।’ पेयजल और स्वच्छता मंत्री उमा भारती ने उद्घाटन संबोधन के दौरान कहा, ‘सम्मलेन में हमारा उद्देश्य यही बताना है कि स्वच्छता


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स्वच्छता

08 - 14 अक्टूबर 2018

2030 एजेंडा के लिए स्वच्छता: अंतोनियो गुतेरेस

ब बात स्वच्छता की होती है तो महात्मा गांधी अपने समय से काफी आगे थे, क्योंकि वह बहुत सारे विषयों पर सोचते थे। उन्होंने सभी के लिए स्वच्छता का अधिकार मांगा। और उन्होंने हर किसी से उस अधिकार के लिए सम्मान की मांग की। यह सिर्फ अब तक का सबसे बड़ा निवेश नहीं है, बल्कि दुनिया भर के इस क्षेत्र में लोगों के आंदोलन का सबसे बड़ा अभियान है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस महत्वपूर्ण मुद्दे के साथ मिलकर देखना प्रेरणादायक है। दुनिया भर में अनुमानित 2.3 अरब लोगों के पास अभी भी बुनियादी स्वच्छता सुविधाएं नहीं हैं। मेरा मानना है कि भारत में जो हो रहा है वह आंकड़ो को तेजी से बदल रहा है। सभी लोगों को सुरक्षित पानी और स्वच्छता का अधिकार है। यदि हम एक स्वस्थ ग्रह पर बेहतर समाज बनाना चाहते

मायने रखती है। यह गरीबी में कमी और टिकाऊ विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। यह आर्थिक विकास और पर्यावरणीय गिरावट का मुकाबला करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। हमें तत्काल विश्व की स्वच्छता आवश्यकता के लिए दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है और इसे केवल एक साथ काम करके ही हासिल किया जा सकता है।’ इस अवसर पर चंपारण अभियान के दस्तावेज के रूप में ‘चंपारण का स्वच्छागृह’ नामक पुस्तक लांच की गई। उमा भारती ने इस पुस्तक की पहली

हैं और सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं, तो हमें तत्काल इस मुद्दे का समाधान करना होगा जैसा कि भारत में इसका समाधान हो रहा है। मैं खुले में शौच से मुक्त प्रोग्राम के लिए भारत की सराहना करता हूं और मैं उन सभी सरकारों को बधाई देता हूं जिन्होंने इन योजनाओं पर सहमति व्यक्त की है और खुले में शौच से मुक्त भारत के लिए बजट आवंटित किए हैं।

प्रति भारत के राष्ट्रपति को प्रस्तुत की। सम्मेलन के पहले दिन अर्थात 29 सितंबर 2018 को एक तकनीकी सत्र आयोजित किया गया, जिसका विषय ‘प्रौद्योगिकी और स्वच्छता में नवाचार’ था। इस सत्र में, प्रतियोगिता के फाइनल प्रतिभागियों ने नवाचारकर्ताओं और स्वच्छता विशेषज्ञों की सम्मानित जूरी के सामने अपने इनोवेशन (नवाचार) प्रस्तुत किए। सुलभ स्वच्छता और सामाजिक आंदोलन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर भी सम्मानित ज्यूरी में शामिल थे, उनके अलावा आरए माशेलकर, अध्यक्ष

स्वच्छ हरियाणा

रियाणा को ‘स्वच्छ भारत’ अभियान के चार साल पूरे होने के मौके पर सर्वश्रेष्ठ राज्य का पुरस्कार दिया गया। स्वच्छ भारत को लेकर प्रधानमंत्री के नाम स्कूली छात्र-छात्राओं के लिखे तीन सर्वश्रेष्ठ पत्रों को भी पुरस्कृत किया गया। प्रधानमंत्री मोदी और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने ये पुरस्कार प्रदान किए। स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण के आधार पर हरियाणा को सर्वश्रेष्ठ राज्य का पुरस्कार मिला। देश में हरियाणा राज्य पहला ऐसा

राज्य बन गया है जिसे सबसे स्वच्छ राज्य का पहला ग्रामीण पुरस्कार दिया गया। माता अमृतानंदमयी पीठ को स्वच्छ भारत कोष में सबसे ज्यादा 1.4 करोड़ डालर के योगदान के लिए सम्मानित किया गया। स्वच्छ भारत समर इंटर्नशिप में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए मणिपुर के डॉन बोस्को कालेज की टीम और नेहरू युवा केंद्र संगठनों को कर्नाटक के उडुपी स्थित समृद्धि महिला मंडली को पुरस्कार प्रदान किए गए।

हमें तत्काल विश्व की स्वच्छता आवश्यकता के लिए दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है और इसे केवल एक साथ काम करके ही हासिल किया जा सकता है- उमा भारती उच्च स्तरीय तकनीकी समिति, एमडीडब्ल्यूएस, भारत; रॉबर्ट चेम्बर्स, प्रोफेसर, आईडीएस, ससेक्स विश्वविद्यालय, यूनाइटेड किंगडम; सू कोटेस, उप कार्यकारी निदेशक, डब्ल्यूएसएससीसी और पीटर हार्वे, चीफ, जल, स्वच्छता और शिक्षा केंद्र,

यूनिसेफ भी सम्मानित जूरी में शामिल थे। सम्मेलन के दूसरे दिन, स्वच्छता मंत्रियों सहित 116 विदेशी प्रतिनिधियों ने महात्मा गांधी के जीवन और कार्य से संबंधित चुनिंदा साइटों का ‘गांधी ट्रेल’ पर दौरा किया।


08 - 14 अक्टूबर 2018

मकान निर्माण में होगा प्लास्टिक का इस्तेमाल

कंक्रीट में 10 प्रतिशत बालू के बजाय प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से भारतीय सड़कों पर पड़े रहने वाले प्लास्टिक के कचरे को कम किया जा सकता है

भा

रत में हर साल बड़ी मात्रा में प्लास्टिक का कचरा निकलता है जिसका फिर से इस्तेमाल नहीं होता। अब एक अध्ययन के अनुसार निर्माण कार्य में बालू के बजाय प्लास्टिक का आंशिक तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है और यह देश में सतत निर्माण कार्य के लिए एक संभावित समाधान है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ और भारत में गोवा इंजिनियरिंग कॉलेज के संयुक्त शोध में यह पाया गया कि कंक्रीट में 10 प्रतिशत बालू के बजाय प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से भारतीय सड़कों पर पड़े रहने वाले प्लास्टिक के कचरे को कम किया जा सकता है और देश में रेत की कमी से निपटा जा सकता है। मुख्य शोधकर्ता डॉ. जॉन ओर ने कहा, ‘आम तौर पर जब आप कंक्रीट में प्लास्टिक जैसी मानव निर्मित वस्तु मिलाते हैं तो उसकी मजबूती थोड़ी कम हो जाती है, क्योंकि प्लास्टिक सीमेंट में

उस तरह जुड़ नहीं पाता जैसे कि रेत जुड़ती है।’ उन्होंने कहा, ‘यहां पर मुख्य चुनौती यह थी कि मजबूती में कमी नहीं आए और इस लक्ष्य को हमने हासिल किया। इसके अलावा, इसे सार्थक बनाने के लिए प्लास्टिक की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना था। निर्माण के कुछ क्षेत्रों में यह सामग्री काम की है। इससे प्लास्टिक को रिसाइकल नहीं कर पाने और बालू की मांग को पूरा करने जैसे मुद्दों से निपटने में मदद मिल सकती है।’ यह शोध इस महीने जर्नल ‘कंसट्रक्शन ऐंड बिल्डिंग मटिरियल्स’ में प्रकाशित हुआ है और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समिति ने एटलस अवॉर्ड के लिए इसका चयन किया है। शोध दल ने विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक का अध्ययन किया, यह जाना कि क्या उनका चूरा बनाया जा सकता है और बालू के स्थान पर इस्तेमाल किया जा सकता है। (एजेंसी)

विज्ञान

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अंतरिक्ष की तकनीक से कैसे बदली रोजमर्रा की जिंदगी नासा ने एक लॉन्च की है। इस साइट के जरिए यूजर जान सकेंगे कि कैसे अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम करने वाली एजेंसी ने लोगों के जीवन को बदला

मेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक इंटरैक्टिव वेबसाइट लॉन्च की है। इस साइट के जरिए यूजर जान सकेंगे कि कैसे अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम करने वाली एजेंसी ने लोगों के जीवन को बदला। रोजमर्रा के जीवन में काम आनेवाली चीजें जैसे वॉटर प्यूरिफायर और सेल्फी कैमरा को बेहतर बनाने में अंतरिक्ष तकनीक ने मदद की। ऐसे कई और रोचक तथ्य इस वेबसाइट पर बहुत सरल तरीके से समझाया गया है। वेबसाइट में दिखाए गए कुछ बायप्रॉडक्ट ऐसे कमर्शल उत्पाद हैं, जिनमें नासा की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। ऐसी तकनीक जो मुख्य रूप से अंतरिक्ष के अध्ययन और उसे खंगालने के लिए बनाए गए थे, उनका इस्तेमाल मानव जीवन को सरल बनाने के लिए किया गया। ‘नासा होम ऐंड सिटी’ में 130 बायप्रॉडक्ट तकनीकों को दिखाया गया है, जिन्होंने रोजाना इस्तेमाल में आने वाली वस्तुओं को बेहतर बनाया है। नासा के स्पेस टेक्नॉलजी मिशन डायरेक्टरेट के कार्यकारी असोसिएट ऐडमिनिस्ट्रेटर जिम रॉयटर ने कहा, ‘हमारी अंतरिक्ष की तकनीक

पृथ्वी पर लगातार जीवन में सुधार कर रही है।’ उन्होंने कहा, ‘नासा होम एंड सिटी लोगों के लिए खोज का स्थान है, खास तौर पर छात्रों के लिए। ऐसे लोग जो यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि अंतरिक्ष की खोज से उनका क्या ताल्लुक है, उनके लिए ही यह वेबसाइट है।’ इन बाय-प्रॉडक्ट में अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विशेष तौर बनाए गए जल को साफ करने की प्रणाली को दिखाया गया है। इसमें सिल्वर आयन तकनीक पानी को साफ करने के साथ ही इसे हल्का करती है और फिल्टरिंग यूनिट्स में बैक्टीरिया पनपने से रोकती है। इन दिनों निर्माता घरेलू प्यूरीफायर में इसी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। (एजेंसी)

कैंसर का पता लगाने वाला उपकरण विकसित

वैज्ञानिकों ने कैंसर का पता लगाने वाला एक उपकरण विकसित किया है जो कि एक लंच बॉक्स के आकार का है

नेवाले वक्त में कैंसर का पता लगाना आसान होगा। इसकी वजह है वैज्ञानिकों द्वारा की गई लंच बॉक्स के साइज वाली नई खोज। दरअसल, वैज्ञानिकों ने कैंसर का पता लगाने वाला एक उपकरण विकसित किया है जो कि एक लंच बॉक्स के आकार का है। इसका इस्तेमाल विश्व के दूरदराज वाले इलाकों के इस बीमारी का

त्वरित और सटीक तरीके से पता लगाने में किया जा सकता है। कापोसी सारकोमा (केएस) एक तरह का कैंसर होता है जो रक्त वाहिकाओं में होता है। यह आमतौर पर त्वचा, मुंह में या आंतरिक घाव के रूप में उभरता है। इसका जल्द पता लगाने के बेहतर परिणाम होते हैं। विकासशील देशों में ऐसा हमेशा संभव नहीं होता क्योंकि वहां

पैथालॉजिकल जांच में एक से दो हफ्ते का वक्त लग जाता है। इस उपकरण ‘टीआईएनवाई' का असल फायदा यह है कि यह बिजली, सूरज आदि

से गर्मी एकत्रित करके उसे जांच में इस्तेमाल के लिए इस्तेमाल कर सकता है। यह उपकरण बिजली के अस्थाई रूप से कटने पर भी काम करते रहता है। (एजेंसी)


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पुस्तक अंश

11 गांधी जी अपनी तरुणाई में इंग्लैंड पहुंचे थे। मकसद तो उच्च शिक्षा हासिल करना था, पर खान-पान से लेकर पोशाक तक हर बात के लिए वहां उन्हें एक दुविधा, एक आंतरिक संघर्ष की स्थिति से गुजरना पड़ा। पर इन सारे दुविधा-संघर्ष के बीच ही एक सशक्त और दृढ़ संकल्पी मोहनदास भी जन्म ले रहा था

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विलायत का जीवन

प्रथम भाग 14. मेरी पसंद

डॉक्टर मेहता सोमवार को मुझसे मिलने विक्टोरिया होटल पहुंचे। वहां उन्हें हमारा नया पता मिला, इससे वे नई जगह आकर मिले। मेरी मूर्खता के कारण जहाज मे मुझे दाद हो गई थी। जहाज में खारे पानी से नहाना होता था। उसमें साबुन घुलता था। लेकिन मैंने तो साबुन का उपयोग करने में सभ्यता समझी। इससे शरीर साफ होने के बदले चीकट हो गया। उससे दाद हो गई। डॉक्टर को दिखाया। उन्होंने एसेटिक एसिड दी। इस दवा ने मुझे रुलाया। डॉक्टर मेहता ने हमारे कमरे वगैरह देखे और सिर हिलाया, ‘यह जगह काम की नहीं। इस देश में आकर पढ़ने की अपेक्षा यहां के जीवन और रीतिरिवाज का अनुभव प्राप्त करना ही अधिक महत्वपूर्ण है। इसके लिए किसी परिवार में रहना जरूरी है। पर अभी तो मैंने सोचा है कि तुम्हें कुछ तालीम मिल सके, इसके लिए मेरे मित्र के घर पर रहो। मैं तुम्हें वहां ले जाऊंगा।’ मैंने आभारपूर्वक उनका सुझाव मान लिया। मैं मित्र के घर पहुंचा। उनके स्वागत-सत्कार में कोई कमी नहीं थी। उन्होंने मुझे अपने सगे भाई की तरह रखा, अंग्रेजी रीति-रिवाज सिखाए, यह कह सकता हूं कि अंग्रेजी में थोड़ी बातचीत करने की आदत उन्हीं ने डलवाई। मेरे भोजन का प्रश्न बहुत विकट हो गया। बिना नमक और मसालोंवाली साग-सब्जी रुचती नहीं थी। घर की मालकिन मेरे लिए कुछ बनाए तो क्या बनाए? सवेरे तो ओटमील (जई का आटा) की लपसी बनती। उससे पेट कुछ भर जाता। पर दोपहर और शाम को मैं हमेशा भूखा रहता। मित्र मुझे रोज मांस खाने के लिए समझाते। मैं प्रतिज्ञा की आड़ लेकर चुप हो जाता। उनकी दलीलों का जवाब देना मेरे बस का न था। दोपहर को सिर्फ रोटी, पत्तों-वाली एक भाजी और मुरब्बे पर गुजर करता था। यही खुराक शाम के लिए भी थी। मैं देखता था कि रोटी के तो दो-तीन टुकड़े लेने की रीत है। इससे अधिक मांगते शरम लगती थी। मुझे डटकर खाने की आदत थी। भूख तेज थी और खूब खुराक चाहती थी। दोपहर या शाम को दूध नहीं मिलता था। मेरी यह हालत देखकर एक दिन मित्र चिढ़ गए और बोले, ‘अगर तुम मेरे सगे भाई हो तो तो मैं तुम्हें निश्चय ही वापस भेज देता। यहां की हालत जाने बिना निरक्षर माता के सामने की गई प्रतिज्ञा का मूल्य ही क्या? वह तो प्रतिज्ञा ही नहीं कही जा सकती। मैं तुमसे कहता हूं कि कानून इसे प्रतिज्ञा नहीं मानेगा। ऐसी प्रतिज्ञा से चिपटे रहना तो निरा अंधविश्वास कहा जाएगा और ऐसे अंधविश्वास में फंसे रहकर तुम इस देश से अपने देश कुछ भी न ले जा सकोगे। तुम तो

कहते हो कि तुमने मांस खाया है। तुम्हें वह अच्छा भी लगा हैं। जहां खाने की जरूरत नहीं थी, वहां खाया और जहां खाने की खास जरूरत है, वहां छोड़ा। यह कैसा आश्चर्य है।’ मैं टस से मस नहीं हुआ। ऐसी बहस रोज हुआ करती। मित्र मुझे जितना समझाते मेरी ढृढ़ता उतनी ही बढ़ती जाती। मैं रोज भगवान से रक्षा की याचना करता और मुझे रक्षा मिलती। मैं नहीं जानता था कि ईश्वर कौन है। पर रंभा की दी हुई श्रद्धा अपना काम कर रही थी। एक दिन मित्र ने मेरे सामने बेंथम का ग्रंथ पढ़ना

शुरू किया। उपयोगितावाद वाला अध्याय पढ़ा। मैं घबराया। भाषा ऊंची थी। मैं मुश्किल से समझ पाता। उन्होंने उसका विवेचन किया। मैंने उत्तर दिया , ‘मैं आपसे माफी चाहता हूं। मैं ऐसी सूक्ष्म बातें समझ नहीं पाता। मैं स्वीकार करता हूं कि मांस खाना चाहिए, पर मैं अपनी प्रतिज्ञा का बंधन तोड़ नहीं सकता। उसके लिए मैं कोई दलील नहीं दे सकता। मुझे विश्वास है कि दलील में मैं आपको कभी जीत नहीं सकता। पर मूर्ख समझकर अथवा हठी समझकर इस मामले में मुझे छोड़ दीजिए। मैं आपके प्रेम को समझता हूं। आपको मैं अपना परम हितैषी मानता हूं। मैं यह भी देख रहा हूं कि

मित्र मुझे रोज मांस खाने के लिए समझाते। मैं प्रतिज्ञा की आड़ लेकर चुप हो जाता। उनकी दलीलों का जवाब देना मेरे बस का न था। दोपहर को सिर्फ रोटी, पत्तों-वाली एक भाजी और मुरब्बे पर गुजर करता था


08 - 14 अक्टूबर 2018

आपको दुख होता है, इसी से आप इतना आग्रह करते हैं। पर मैं लाचार हूं। मेरी प्रतिज्ञा नहीं टूट सकती।’ मित्र देखते रहे। उन्होंने पुस्तक बंद कर दी। ‘बस, अब मैं बहस नहीं करूंगा,’ यह कहकर वे चुप हो गया। मैं खुश हुआ। इसके बाद उन्होंने बहस करना छोड़ दिया। पर मेरे बारे मे उनकी चिंता दूर न हुई। वे बीड़ी पीते थे, शराब पीते थे। लेकिन मुझसे कभी नहीं कहा कि इनमें से एक का भी मैं सेवन करूं। उलटे, वे मुझे मना ही करते रहे। उन्हें चिंता यह थी कि मांसाहार के अभाव में मैं कमजोर हो जाऊंगा और इंग्लैंड में निश्चिंततापूर्वक रह न सकूंगा। इस तरह एक महीने तक मैंने नौसिखुए के रूप में उम्मीदवारी की। मित्र का घर रिचमंड में था, इसीलिए मैं हफ्ते में एक या दो बार ही लंदन जा पाता था। डॉक्टर मेहता और भाई दलपतराम शुक्ल ने सोचा कि अब मुझे किसी कुटुंब में रहना चाहिए। भाई शुक्ल ने केन्सिग्टन में एक एंग्लोइंडिन का घर खोज निकाला। घर की मालकिन एक विधवा थी। उससे मैं मांस-त्याग की बात कही। वृद्धा ने मेरी सार-संभाल की जिम्मेदारी ली। मैं वहां रहने लगा। वहां भी मुझे रोज भूखा रहना पड़ता था। मैंने घर से मिठाई वगैरह खाने की चीजें मंगाई थी, पर वे अभी आई नहीं थी। सब कुछ फीका लगता था। बुढ़िया हमेशा पूछती, पर वह करे क्या? तिस पर मैं अभी तक शरमाता था। बुढ़िया के दो लड़कियां थी। वे आग्रह करके थोड़ी अधिक रोटी देती। पर वह बेचारी क्या जानें कि उनकी समूची रोटी खाने पर ही मेरा पेट भर सकता था? लेकिन अब मैं होशियारी पकड़ने लगा था। अभी पढ़ाई शुरू नहीं हुई थी। मुश्किल से समाचार पत्र पढ़ने लगा था। यह भाई शुक्ल का प्रताप हैं। हिंदुस्तान में मैंने समाचार पत्र कभी पढ़े नहीं थे। पर बराबर पढ़ते रहने के अभ्यास से उन्हें पढ़ते रहने का शौक पैदा कर सका था। ‘डेली न्यूज’, ‘डेली टेलीग्राफ’ और ‘पेलमेल गजेट’ इन पत्रों को सरमय निगाह से देख जाता था। पर शुरू-शुरू में तो इसमें मुश्किल से एक घंटा खर्च होता होगा। मैंने घूमना शुरू किया। मुझे निरामिष अर्थात अन्नाहार देने वाले भोजनगृह की खोज करनी थी। घर की मालकिन मे भी कहा था कि खास लंदन में ऐसे गृह मौजूद हैं। मैं रोज दस-बारह मील चलता था। किसी मामूली से भोजनगृह में जाकर पेटभर रोटी खा लेता था। पर उससे संतोष न होता था। इस तरह भटकता हुआ एक दिन मैं फैरिंग्डन स्ट्रीट पहुंचा और वहां 'वेजिटेरियन रेस्त्रां' (अन्नाहारी भोजनालय) का नाम पढ़ा। मुझे वह आनंद हुआ, जो बालकों को मनचाही चीज मिलने से होती है। हर्ष-विभोर होकर अंदर घुसने से पहले मैंने दरवाजे के पास शीशेवाली खिड़की में बिक्री की पुस्तकें देखीं। उनमें मुझे सॉल्ट की ‘अन्नाहार की हिमायत’ नामक पुस्तक दिखी। एक शिलिंग में मैंने वह पुस्तक खरीद ली और फिर भोजन करने बैठा। विलायत में आने के बाद यहां पहली बार भरपेट भोजन मिला। ईश्वर ने मेरी भूख मिटाई।

सॉल्ट की पुस्तक पढ़ी। मुझ पर उसकी अच्छी छाप पड़ी। इस पुस्तक को पढ़ने के दिन से मैं स्वेच्छापूर्वक, अन्नाहार में विश्वास करने लगा। माता के निकट की गई प्रतिज्ञा अब मुझे आनंद देने लगी और जिस तरह अब तक मैं यह मानता था कि सब मांसाहारी बने तो अच्छा हो और पहले केवल सत्य की रक्षा के लिए और बाद में प्रतिज्ञा-पालन के लिए ही मैं मांस-त्याग करता था और भविष्य में किसी दिन स्वयं आजादी से, प्रकट रूप में मांस खाकर दूसरों को खानेवालों के दल में सम्मिलित करने की मांग रखता था, इसी तरह अब स्वयं अन्नाहारी रहकर दूसरों को वैसा बनाने का लोभ मुझ में जागा।

15. ‘सभ्य’ पोशाक में

अन्नाहार पर मेरी श्रद्धा दिन पर दिन बढ़ती गई। सॉल्ट की पुस्तक में आहार के विषय में अधिक पुस्तकें पढ़ने की मेरी जिज्ञासा को तीव्र बना दिया। जितनी पुस्तकें पढ़ने को मुझे मिलीं, मैंने खरीद ली और पढ़ डाली। उनमें हार्वर्ड विलियम्स की ‘आहार-नीति’ नामक पुस्तक में अलग-अलग युगों के ज्ञानियों, अवतारों और पैगंबरों के आहार का और आहार-विषयक उनके विचारों का वर्णन किया गया हैं। पैथागोरस, ईसा मसीह इत्यादि को उसनें केवल अन्नाहारी सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। डॉक्टर मिसेस एना किंग्सफर्ड की ‘उत्तम आहार की रीति’ नामक पुस्तक भी आकर्षक थी। साथ ही, डॉ. एलिंसन के आरोग्य-विषयक लेखों ने भी इसमें अच्छी मदद की। वे दवा के बदले आहार के हेरफर से ही रोगी को नीरोग करने की पद्धति का समर्थन करते थे। डॉ. एलिंसन स्वयं अन्नाहारी थे और बीमारों को केवल अन्नाहार की सलाह देते थे। इन पुस्तकों के अध्ययन का परिणाम यह हुआ कि मेरे जीवन में आहार-विषयक प्रयोगों ने महत्त्व का स्थान प्राप्त कर लिया। आरंभ में इन प्रयोगों में आरोग्य की दृष्टि मुख्य थी। बाद में धार्मिक दृष्टि सर्वोपरि बनी। इस बीच मेरे मित्र को तो मेरी चिंता बनी ही रही। उन्होंने प्रेमवश यह माना कि अगर मैं मांस नहीं खाऊंगा तो कमजोर हो जाऊंगा। यही नहीं, बल्कि मैं बेवकूफ बना रहूंगा क्योंकि अंग्रेजों के समाज में घुलमिल ही न सकूंगा। वे जानते थे कि मैं अन्नाहारविषयक पुस्तकें पढ़ता रहता हूं। उन्हें डर था कि इन पुस्तकों के पढ़ने से में भ्रमित चित्त बन जाऊंगा, प्रयोगों में मेरा जीवन व्यर्थ चला जाएगा। मुझे जो करना है, उसे मैं भूल जाऊंगा और ‘पोथी-पंडित’ बन बैठूंगा। इस विचार से उन्होंने मुझे सुधारने का एक आखिरी प्रयत्न किया। उन्होंने मुझे नाटक दिखाने के लिए न्योता। वहां जाने से पहले मुझे उनके साथ हॉबर्न भोजन-गृह में भोजन करना था। मेरी दृष्टि में यह गृह एक महल था। विक्टोरिया होटल छोड़ने के बाद ऐसे गृह में जाने का मेरा यह पहला अनुभव था। विक्टोरिया होटल का अनुभव तो निकम्मा था, क्योंकि ऐसा मानना होगा कि वहां मैं बेहोशी की हालत में था। सैकड़ों के बीच हम दो मित्र एक मेज के सामने बैठे। मित्र ने पहली प्लेट मंगाई। वह ‘सूप’ की थी। मैं परेशान हुआ। मित्र से क्या पूछता? मैंने परोसने वाले

पुस्तक अंश

को अपने पास बुलाया। मित्र समझ गए। चिढ़ कर पूछा, ‘क्या हैं?’ मैंने धीरे से संकोचपूर्वक कहा, ‘मैं जानना चाहता हूं कि इसमे मांस हैं या नहीं।’ ‘ऐसे गृह में यह जंगलीपन नहीं चल सकता। अगर तुम्हें अब भी किच-किच करनी हो तो तुम बाहर जाकर किसी छोटे से भोजन-गृह में खा लो और बाहर मेरी राह देखो।’ मैं इस प्रस्ताव से खुश होकर उठा और दूसरे भोजनलय की खोज में निकला। पास ही एक अन्नाहारवाला भोजन-गृह था। पर वह तो बंद हो चुका था। मुझे समझ न पड़ा कि अब क्या करना चाहिए। मैं भूखा रहा। हम नाटक देखने गए। मित्र ने उक्त घटना के बारे में एक शब्द भी मुंह से न निकाला। मेरे पास तो कहने को था ही क्या? लेकिन यह हमारे बीच का अंतिम मित्र-युद्ध था।

वायलिन शिक्षिका के घर वायलिन लेकर पहुंचा। उन्हें जिस दाम भी बिके, बेच डालने की इजाजत दे दी। उनके साथ कुछ मित्रता- सा संबंध हो गया था। इस कारण मैंने उनसे अपने मोह की चर्चा की। नाच आदि के जंजाल से निकल जाने की मेरी बात उन्होंने पसंद की

न हमारा संबंध टूटा, न उसमें कटुता आई। उनके सारे प्रयत्नों के मूल मे रहे प्रेम को मैं पहचान सका था। इस कारण विचार और आचार की भिन्नता रहते हुए भी उनके प्रति मेरा आदर बढ़ गया। पर मैंने सोचा कि मुझे उनका डर दूर करना चाहिए। मैंने निश्चय किया कि मैं जंगली नहीं रहूंगा। सभ्यता के लक्षण ग्रहण करूंगा और दूसरे प्रकार के समाज में समरस होने योग्य बनकर अपनी अन्नाहार की अपनी विचित्रता को छिपा लूंगा। इस ‘सभ्यता’ को सीखने के लिए अपनी सामर्थ्य से परे का और छिछला रास्ता पकड़ा। विलायती होने पर भी बंबई के कटे-सिले कपड़े अच्छे अंग्रेज समाज में शोभा नहीं देंगे, इस विचार से मैंने आर्मी और नेवी के स्टोर में कपड़े सिलवाए। उन्नीस शिलिंग की (उस जमाने के लिहाज से तो यह कीमत बहुत ही कही जाएगी) चिमनी टोपी सिर पर पहनी। इतने से संतोष न हुआ तो बांड स्ट्रीट, जहां शौकिन लोगों के कपड़े सिलते थे, दस पौंड में शाम की पोशाक सिलवाई। भोले और बादशाही दिलवाले बड़े भाई से मैंने दोनों जेबों में लटकने लायक सोने की एक बढिया चेन मंगवाई और वह मिल भी गई। बंधी-बंधाई टाई पहनना शिष्टाचार में शुमार न था, इसीलिए टाई बांधने की कला हस्तगत की। देश में आइना हजामत के दिन ही देखने को मिलता था, पर यहां तो बड़े आइने के सामने खड़े रहकर ठीक से टाई बांधने में और बालों मे सीधी मांग निकालने में रोज लगभग दस मिनट तो बरबाद होते ही थे। बाल

13 मुलायम नहीं थे, इसीलिए उन्हें अच्छी तरह मुड़े हुए रखने के लिए ब्रश (झाडू ही समझिए!) के साथ रोज लड़ाई चलती थी। टोपी पहनते तथा निकालने समय हाथ तो मानो मांग को सहेजने के लिए सिर पर पहुंच ही जाता था। बीच-बीच में, समाज में बैठे-बैठे मांग पर हाथ फिराकर बालों को व्यवस्थित रखने की एक और सभ्य क्रिया बराबर ही रहती थी। पर इतनी टीमटाप ही काफी न थी। अकेली सभ्य पोशाक से सभ्य थोड़े ही बना जा सकता था? मैंने सभ्यता के दूसरे कई बाहरी गुण भी जान लिए थे और मैं उन्हें सीखना चाहता था। सभ्य पुरुष को नाचना जानना चाहिए। उसे फ्रेंच अच्छी तरह जान लेनी चाहिए, क्योंकि फ्रेंच इंग्लैंड के पड़ोसी फ्रांस की भाषा थी और यूरोप की राष्ट्रभाषा भी थी और मुझे यूरोप में घूमने की इच्छा थी। इसके अलावा सभ्य पुरुष को लच्छेदार भाषण करना भी आना चाहिए। मैंने नृत्य सीखने का निश्चय किया। एक सत्र में भर्ती हुआ। एक सत्र के करीब तीन पौंड जमा किए। कोई तीन हफ्तों में करीब छह सबक सीखे होंगे। पैर ठीक से तालबद्ध पड़ते नहीं थे। पियानो बजता था, पर क्या कह रहा है, कुछ समझ में न आता था। ‘एक, दो, एक’ चलता, पर उनके बीच का अंतर तो बाजा ही बताता था, जो मेरे लिए अगम्य था। तो अब क्या किया जाए? अब तो बाबाजी की बिल्ली वाला किस्सा हुआ। चूहों को भगाने के लिए बिल्ली, बिल्ली के लिए गाय, यों बाबाजी का परिवार बढ़ा, उसी तरह मेरे लोभ का परिवार बढ़ा। वायलिन बजाना सीख लूं तो सुर और ताल का ख्याल हो जाए। तीन पौंड वायलिन खरीदने मे गंवाए और कुछ उसकी शिक्षा के लिए भी दिए। भाषण करना सीखने के लिए एक तीसरे शिक्षक का घर खोजा। उन्हें भी एक गिन्नी तो भेंट की ही। बेल 'स्टैंडर्ड एलोक्युशनिस्ट' पुस्तक खरीदी। पिट का एक भाषण सुनना शुरू किया। इन बेल साहब ने मेरे कान ने बेल (घंटी) बजाई। मैं जागा। मुझे कौन इंग्लैंड में जीवन बिताना हैं? लच्छेदार भाषण करना सीखकर मैं क्या करूंगा? नाच-नाचकर मैं सभ्य कैसे बनूंगा? वायलिन तो देश में भी सीखा जा सकता हैं। मै तो विद्यार्थी हूं। मुझे विद्या-धन बढ़ाना चाहिए। मुझे अपने पेशे से संबंध रखने वाली तैयारी करनी चाहिए। मै अपने सदाचार से सभ्य समझा जाऊं तो ठीक है, नहीं तो मुझे यह लोभ छोड़ना चाहिए। इन विचारों की घुन में मैंने उपर्युक्त आशय के उद्गारोंवाला पत्र भाषण-शिक्षक को भेज दिया। उनसे मैंने दो या तीन पाठ ही पढे थे। नृत्य-शिक्षिका को भी ऐसा ही पत्र लिखा। वायलिन शिक्षिका के घर वायलिन लेकर पहुंचा। उन्हें जिस दाम भी बिके, बेच डालने की इजाजत दे दी। उनके साथ कुछ मित्रता- सा संबंध हो गया था। इस कारण मैंने उनसे अपने मोह की चर्चा की। नाच आदि के जंजाल से निकल जाने की मेरी बात उन्होंने पसंद की। सभ्य बनने की मेरी यह सनक लगभग तीन महीने तक चली होगी। पोशाक की टीपटाप तो बरसों चली। पर अब मैं विद्धार्थी बना। (अगले अंक में जारी)


14 स्मार्टफोन से चलेगी अल्ट्रासाउंड मशीन यूबीसी के इंजीनियरों ने बैंडऐड से भी छोटा अल्ट्रासाउंड ट्रांसडुसर विकसित किया है जिसे स्मार्ट फोन से भी चलाया जा सकता है

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निवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया (यूबीसी) के इंजीनियरों ने एक नया अल्ट्रासाउंड ट्रांसडुसर, या प्रोब विकसित किया है। यह किसी बैंड-ऐड से भी छोटा है। यह पोर्टेबल और वेयरेबल है और इसे स्मार्टफोन से भी संचालित किया जा सकता है। यह अल्ट्रासाउंड स्कैनर की लागत को चमत्कारिक रूप से कम कर सकता है, जो कि 100 डॉलर जितना हो सकता है। परंपरागत अल्ट्रासाउंड स्कैनर्स पाइजॉइलेक्ट्रिक क्रिस्टल्स से शरीर के अंदर की तस्वीरें उतारते हैं और उन्हें कंप्यूटर को सोनोग्राम बनाने के लिए भेजते हैं। शोधकर्ताओं ने पाइजॉइलेक्ट्रिक क्रिस्टल्स को पॉलिमर रेसिन से बने छोटे वाइब्रेटिंग ड्रम्स से बदल दिया, जिसे पॉलीसीएमयूटीज (पॉलिमर कैपेसिटिव माइक्रो-मशींड अल्ट्रासाउंड ट्रांसडुसर्स) कहते हैं, जिसका उत्पादन सस्ता है। शोध प्रमुख और यूबीसी के डॉक्टोरल छात्र कार्लोस गेर्राडो ने बताया, ‘ट्रांसडुसर ड्रम्स सामान्यत कठोर सिलिकन सामग्री से बनाया जाता है, जिसके लिए महंगी पर्यावरण नियंत्रित विनिर्माण प्रकिया की जरूरत होती है, और इससे अल्ट्रासाउंड में इनके उपयोग में बाधा आती है।’ गेर्राडो ने आगे कहा, ‘पॉलिमर रेसिन के इस्तेमाल से हम पॉलीसीएमयूटीज का उत्पादन फैब्रिकेशन के बहुत कम चरणों में बेहद कम उपकरणों के साथ कर सकते हैं, जिससे इसकी लागत काफी कम हो जाएगी।’ शोध के सह-लेखक और इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजिनियरिंग के प्रोफेसर एडमंड क्रेटु का कहना है कि नए डिवाइस द्वारा निकाला गया सोनोग्राम पांरपरिक डिवाइसों जितना ही या उससे अधिक स्पष्ट होता है। उन्होंने कहा, ‘हमारे ट्रांसडुसर को चलने के लिए महज 10 वोल्ट बिजली की जरूरत होती है, इसीलिए इसे स्मार्टफोन से भी चलाया जा सकता है, जो कि बिजली से वंचित क्षेत्रों या दूरदराज के क्षेत्रों के लिए काफी काम का साबित हो सकता है।’ यह शोध पत्र माइक्रोसिस्टम एंड नैनोइंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित किया गया है। (एजेंसी)

विज्ञान

08 - 14 अक्टूबर 2018

नासा ने बनाया स्पेशल तकिया

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अंतरिक्ष यात्रियों को अलग-अलग तापमान में होने वाली दिक्कत ध्यान में रखते हुए नासा ने खास सिराहना तैयार किया है

सा ने एक स्पेशल तकिया बनाया है, जो गहरी नींद लाने में मदद करता है। साथ ही, पसीना भी सोखता है। नासा ने यह तकिया खास तौर पर अंतरिक्ष यात्रियों को अलग-अलग तापमान में होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बनाया है। इसकी कीमत 99 डॉलर (7100 रुपए) से शुरू होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह तकिया दो तरह का है। पहली कैटेगरी में हिब्र नाम का तकिया है, जिसकी कीमत 99 डॉलर (7100 रुपए) रखी गई है। इस तकिए में पसीना सोखने वाली फोम का इस्तेमाल किया गया है। वहीं, दूसरी कैटेगरी में जीक नाम का तकिया आता है। 200 डॉलर (करीब 14 हजार रुपए) वाले इस तकिए में स्लीप सेंसर, स्पीकर और वाइब्रेटर दिया गया है, जो तेज खर्राटे लेने पर यूजर को धीरे से जगा देता है। नासा के मुताबिक, यह तकिया न तो ज्यादा मोटा बनाया गया है और न ही ज्यादा पतला। ऐसे में यूजर को इस तकिए से किसी भी तरह की परेशानी नहीं होती। (एजेंसी)

बॉडी टेम्परेचर रेगुलेट करने वाला ऑउटलास्ट मैटेरियल

प्रीमियम डक डाउन

वजन एडजेस्ट करने वाली नैनो ट्यूब्स

दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री सफाई अभियान शुरू समुद्र को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए विश्व का सबसे बड़ा 'ओशन क्लीनअप' अभियान लॉन्च किया गया

मुद्र में प्लास्टिक और प्रदूषण के खतरे को कम करने के लिए दुनियाभर में कई प्रयोग हो रहे हैं। समंदर को साफ करने और प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए विश्व का सबसे बड़ा 'ओशन क्लीनअप' अभियान लॉन्च किया गया है। इस अभियान की शुरुआत करनेवाले हैं मूल रूप से डच

बोयान स्लाट। संस्था की शुरुआत उन्होंने 18 साल की उम्र में की थी। बोयान बताते हैं कि 8 साल पहले वह जब 16 साल के थे तब उन्होंने से ग्रीस की यात्रा की थी। उन्होंने कहा, ग्रीस जाने के रास्ते में मुझे मछलियों से ज्यादा तो प्लास्टिक पानी में नजर आ रहा था और यह मेरे लिए बहुत दुखद था। पिछले 8 साल से मैं इस पर काम कर रहा हूं कि समुद्र से अधिक से अधिक प्लास्टिक कैसे निकाला जा सके। बोयान और उनकी टीम 8 साल से इस दिशा में काम कर रही है। इसके लिए 2000 फुट के यू आकार वाले कलेक्शन सिस्टम को लॉन्च किया गया है। इसके जरिए कैलिफॉर्निया से हवाई तक के समुद्र क्षेत्र 600,000 वर्ग किलोमीटर से कचड़े को निकालकर पानी को साफ किया जाना है। बोयान की टीम का लक्ष्य है कि हर साल समुद्र से 50 टन के करीब कचड़ा निकाला जा सके। साथ ही उनकी प्लास्टिक और समुद्र से निकाले गए कचड़े को रीसाइकल करने की भी योजना है। 16 साल की उम्र में बोयान ने जो सपना देखा आज उससे बहुत से लोग जुड़ गए हैं। इस वक्त

उनकी संस्था में 80 लोग स्वैच्छिक तौर पर काम कर रहे हैं। बोयन और उनकी टीम का कहना है कि समुद्र को प्रदूषण और प्लास्टिक मुक्त बनाकर इसे समुद्री जीवों के लिए सुरक्षित रखने के लिए हम ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ काम करना चाहते हैं। (एजेंसी)


08 - 14 अक्टूबर 2018

कैंसर का इलाज हुआ आसान

वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से पता लगाया है कि कैंसर कैसे बढ़ता है। इससे डॉक्टरों को मदद मिलेगी कि वो मरीजों के लिए सबसे प्रभावशाली इलाज कैसे शुरू करें

लं

दन के इंस्टिट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च (आईसीआर) और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की टीम ने मिलकर एक नई तकनीक की खोज की है- रिवॉल्वर (रिपीटेड इवोल्यूशन ऑफ कैंसर)। कैंसर के दौरान डीएनए में आए बदलावों के पैटर्न को यह तकनीक रिकॉर्ड करती है और इस जानकारी को भविष्य में होने वाले अनुवांशिक बदलावों को समझने के लिए इस्तेमाल करती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ट्यूमर में लगातार आते बदलाव कैंसर के इलाज में एक बड़ी चुनौती थी। एक कैंसर 'ड्रग रेसिस्टेंट' हो सकता है, यानी कैंसर पर दवाई का असर बंद हो जाता है।

हालांकि, अगर डॉक्टर ये पता लगा सकें कि ट्यूमर कैसे विकसित होगा तो वो इसके बढ़ने से पहले ही या इसके ड्रग रेसिस्टेंट होने से पहले ही इलाज शुरू कर सकते हैं। टीम को ट्यूमर में बारबार आने वाले परिवर्तनों और कैंसर से बच जाने के बीच भी संबंध मिला है। इस तकनीक से डीएनए परिवर्तन के दोहराव का पैटर्न, कैंसर का पता लगाने में मदद कर सकता है और फिर इलाज भी उसी के मुताबिक होगा। उदाहरण के तौर पर, शोधकर्ताओं को पता चला कि जैसे ब्रेस्ट ट्यूमर में ट्यूमर को रोकने वाले पी53 प्रोटीन की जीन में चूक होती है जिसके बाद क्रोमोजोम 8 में बदलाव होते हैं तो ऐसे मरीज कम

नंबर है स्टेबल तो उतर सकता है चश्मा

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विज्ञान

बच पाते हैं। रिसर्च टीम ने एक नई मशीनी तकनीक बनाई है जो एक जैसे मरीजों के ट्यूमर की जानकारी बताती है। शोधकर्ताओं ने फेफड़ों, स्तन, गुर्दे और आंतों के कैंसर के लिए पिछले अध्ययनों के 178 रोगियों के 768 ट्यूमर सैंपल का इस्तेमाल किया और प्रत्येक ट्यूमर के डेटा का इस्तेमाल कैंसर का पता लगाने और हर कैंसर के परिवर्तनों की तुलना करने के लिए किया। पैटर्न का पता लगाकर और उसे कैंसर बायोलॉजी पर उपलब्ध जानकारी से जोड़कर वैज्ञानिक ट्यूमर के विकास का पता लगा सकते हैं। इस रिसर्च टीम के प्रमुख डॉक्टर एंड्रिया सोट्टोरिवा ने बताया कि इस तकनीक से उम्मीद है कि डॉक्टर कैंसर के 'ट्रंप कार्ड' को हटाने में कामयाब हो जाएंगे यानी अब तक कैंसर किस तरह बढ़ेगा ये मालूम करना मुश्किल था। उन्होंने कहा कि इस तकनीक से भविष्य में थोड़ा झांकने में मदद मिलेगी और कैंसर की शुरुआती स्टेज पर ही हस्तक्षेप कर सकते हैं और यह पता लगा सकते हैं कि कैंसर में आगे क्या होने वाला है। एजेंसी इंस्टीट्यूट ऑफ़ कैंसर रिसर्च के प्रोफ़ेसर पॉल वर्कमैन ने कहा, "कैंसर का विकास हमारे लिए इसके इलाज में सबसे बड़ी चुनौती थी" "अगर हम पहले ही पता लगा सकें कि ट्यूमर कैसे बढ़ेगा तो ड्रग रेसिस्टेंस होने से पहले ही हम इलाज में ज़रूरी बदलाव कर सकते हैं यानी कैंसर से एक क़दम आगे रहे सकते हैं." (एजेंसी)

चंद्रमा पर जाने वाला यात्री जापानी

स्पेसएक्स ने कहा कि बिग फाल्कन रॉकेट से चंद्रमा पर उड़ान भरने वाला पहले यात्री जापान के युसाकू माएजावा होंगे

मेरिका की निजी अंतरिक्ष कंपनी स्पेसएक्स ने घोषणा की कि जापानी अरबपति युसाकू माएजावा चंद्रमा पर जाने वाला पहला पर्यटक होगा। स्पेसएक्स ने को ट्वीट कर कहा कि बिग फाल्कन रॉकेट से चंद्रमा पर उड़ान भरने वाला निजी यात्री फैशन उद्यमी और वैश्विक मान्यता प्राप्त कला संग्राहक युसाकू माएजावा हैं। युसाकू (42) जापान की सबसे बड़ी ऑनसाइन फैशन रिटेलर जोजो के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। युसाकू को समकालीन कला संग्राहक के रूप में भी जाना जाता है। उनका टोक्यो में कन्टेंपररी आर्ट फाउंडेशन है, जहां पाब्लो पिकासो, एंडी वॉरहोल, अलेक्जेंडर काल्डर और जीन-मिशेल बास्कियाट जैसे विभिन्न प्रसिद्ध चित्रकारों की कलाकृतियां हैं। उन्होंने ट्विटर और इंस्टाग्राम पर घोषित किया कि वह चंद्रमा की यात्रा पर अपने साथ कलाकारों का एक समूह ले जाने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा, "मैंने चंद्रमा पर कलाकारों के साथ जाने का फैसला लिया है। मैं जानना चाहता हूं कि वे वहां पर क्या देखेंगे? क्या महसूस करेंगे और क्या बनाएंगे?" (आईएएनएस)

लेजिक और स्माइल ऐसी तकनीक है जो चश्मे उतारने में काफी कारगर साबित हो रही है

श्मा पहनते-पहनते आप उब गए हों, तो आपके लिए यह एक अच्छी खबर है। सेंटर फॉर साइट के चीफ डॉक्टर महिपाल सचदेव का कहना है लेजिक और स्माइल ऐसी तकनीक है जो चश्मे उतारने में काफी कारगर साबित हो रही है। यह तकनीक इस्तेमाल तभी होती है जब मरीज के आंखों का नंबर स्टेबल यानी स्थिर हो जाता है और उसकी उम्र कम से कम 20 साल हो। डॉक्टर कुछ टेस्ट के बाद इस तकनीक का इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं। डॉक्टर सचदेव ने कहा कि लेजिक 25 साल पुरानी तकनीक है, जो पूरे विश्व में इस्तेमाल हो

रही है। 98 पर्सेंट मरीज इससे खुश होते हैं। यह दो प्रकार का होता है। एक ब्लेड वाला जिस पर 45 हजार का खर्च होता है और दूसरा ब्लेड फ्री वाला जिस पर 70 से 80 हजार का खर्च होता है। आजकल स्माइल तकनीक ऐसी है जो सबसे लेटेस्ट है और यह लेजिक की तुलना में काफी बेहतर साबित हो रही है। इसमें फ्लैप बनाने की जरूरत नहीं होती है और यह ब्लेड फ्री है। इसके बाद मरीज बॉक्सिंग से लेकर हर प्रकार की ऐक्टिविटी कर सकता है, इसमें कोई दिक्कत नहीं होती है। यही वजह है कि अब लोग इसे ज्यादा अपना रहे हैं।

खास बात यह है कि लेजिक में जहां चीरा 22 एमएम का होता है वह इसमें केवल 2 एमएम का ही होता है, जिससे रिकवरी भी बेहतर होती है। यह माइनस 10 तक का चश्मा उतारने में सक्षम है और विजन की रिकवरी भी जल्दी होती है। इसमें सिंगल लेजर के जरिए ट्रीटमेंट किया जाता है। ऑपरेशन के

बाद लेजिक में चीरा बड़ा होने की वजह से आंख में ड्राइनेस होती है। वहीं इसमें यह ड्राइनेस भी कम हो जाती है। लेजिक की तुलना में इसका आउटकम और बेहतर हो गया है। हालांकि यह लेजिक की तुलना में थोड़ा महंगा है। इस पर लगभग 1.30 लाख तक का खर्च आता है। (एजेंसी)


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08 - 14 अक्टूबर 2018

हिंसक क्रांति हमेशा किसी न किसी तरह की तानाशाही लेकर आई है। क्रांति के बाद धीरे-धीरे एक नया विशेषाधिकार प्राप्त शासकों एवं शोषकों का वर्ग खड़ा हो जाता है – जयप्रकाश नारायण

रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी

कें

अभिमत

नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री

बापू के सपनों को पूरा करेगा एकजुट भारत

21वीं सदी में भी महात्मा गांधी के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे और वे ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, जिनका सामना आज विश्व कर रहा है

सरकार ने रबी की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में रिकॉर्ड 21 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है

द्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने, फसल की उचित कीमत दिलाने और फसल की लागत को कम करने में लगी हुई है। बीते चार वर्षों में मोदी सरकार ने किसान कल्याण को लिए अनेक कदम उठाए हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही खरीफ की फसलों की एमएसपी डेढ़ गुना से अधिक करने बाद मोदी सरकार ने रबी की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी बढ़ाने का एलान किया है। सरकार के ताजा फैसले के मुताबिक गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 105 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा दिया गया है, वहीं चने की एमएसपी 220 रुपए प्रति क्विंटल, मसूर की 225 रुपए प्रति क्विंटल और सरसों की एमएसपी प्रति क्विंटल 200 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाई गई है। इस तरह सरकार ने रबी की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में रिकॉर्ड 21 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है। सरकार के इस फैसले से देश के किसानों को 62,635 करोड़ रुपए का फायदा होगा। मौजूदा फसल वर्ष में न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का फैसला कृषि लागत एवं कीमत आयोग (सीएसीपी) के सुझाव पर लिया गया है। गौरतलब है कि इससे पहले भी कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों की दशा सुधारने को लेकर अपनी प्राथमिकता दोहराई है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध मोदी सरकार ने पिछले महीने ही नई अनाज खरीद नीति को मंजूरी दी है। केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ (पीएम-आशा) के तहत राज्यों को एक से ज्यादा स्कीमों का विकल्प दिया जाएगा। अगर बाजार की कीमतें समर्थन मूल्य से नीचे जाती हैं तो सरकार एमएसपी को सुनिश्चित करेगी और किसानों के नुकसान की भरपाई भी करेगी। यह स्कीम राज्यों में तिलहन उत्पादन के 25% हिस्से पर लागू होगी।

टॉवर फोनः +91-120-2970819

(उत्तर प्रदेश)

म अपने प्यारे बापू की 150वीं जयंती के आयोजनों का शुभारंभ कर रहे हैं। बापू आज भी विश्व में उन लाखों-करोड़ों लोगों के लिए आशा की एक किरण हैं, जो समानता, सम्मान, समावेश और सशक्तीकरण से भरपूर जीवन जीना चाहते हैं। विरले ही लोग ऐसे होंगे, जिन्होंने मानव समाज पर उनके जैसा गहरा प्रभाव छोड़ा हो। महात्मा गांधी ने भारत को सही अर्थों में सिद्धांत और व्यवहार से जोड़ा था। सरदार पटेल ने ठीक ही कहा था,‘भारत विविधताओं से

भरा देश है। इतनी विविधताओं वाला कोई अन्य देश धरती पर नहीं है। यदि कोई ऐसा व्यक्ति था, जिसने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष के लिए सभी को एकजुट किया, जिसने लोगों को मतभेदों से ऊपर उठाया और विश्व मंच पर भारत का गौरव बढ़ाया, तो वे केवल महात्मा गांधी ही थे। उन्होंने इसकी शुरुआत भारत से नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका से की थी। बापू ने भविष्य का आकलन किया और स्थितियों को व्यापक संदर्भ में समझा। वे अपने सिद्धांतों के प्रति अपनी अंतिम सांस तक प्रतिबद्ध रहे।’

आइए, हम इस बात पर विचार करें कि कस ै े हमारे क्रियाकलाप भावी पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और हरित वातावरण बनाने में योगदान दे सकते हैं। करीब आठ दशक पहले जब प्रदूषण का खतरा इतना बड़ा नहीं था, तब महात्मा गांधी ने साइकिल चलाना शुरू किया था


08 - 14 अक्टूबर 2018

महात्मा गांधी आज ज्यादा प्रासंगिक

21वीं सदी में भी महात्मा गांधी के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे और वे ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, जिनका सामना आज विश्व कर रहा है। एक ऐसे विश्व में जहां आतंकवाद, कट्टरपंथ, उग्रवाद और विचारहीन नफरत देशों और समुदायों को विभाजित कर रही है, वहां शांति और अहिंसा के महात्मा गांधी के स्पष्टत: आह्वान में मानवता को एकजुट करने की शक्ति है। ऐसे युग में जहां असमानताएं होना स्वाभाविक है, बापू का समानता और समावेशी विकास का सिद्धांत विकास की आखिरी पायदान पर रह रहे लाखों लोगों के लिए समृद्धि के एक नए युग का सूत्रपात कर सकता है। एक ऐसे समय में, जब जलवायु-परिवर्तन और पर्यावरण की रक्षा का विषय चर्चा के केंद्रीय बिंदु में है, दुनिया को गांधी जी के विचारों से सहारा मिल सकता है। महात्मा गांधी ने एक सदी से भी अधिक समय पहले 1909 में मनुष्य की आवश्यकता और उसके लालच के बीच अंतर स्पष्ट किया था। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय संयम और करुणा-दोनों के अनुपालन करने की सलाह दी और स्वयं इनका पालन करके मिसाल कायम करते हुए नेतृत्व प्रदान किया। वे अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे और आसपास के वातावरण की स्वच्छता सुनिश्चित करते थे। वे यह सुनिश्चित करते थे कि पानी कम से कम बर्बाद हो और अहमदाबाद में उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि दूषित जल साबरमती के जल में न मिले। कुछ ही समय पहले महात्मा गांधी द्वारा लिखित एक सारगर्भित, समग्र और संक्षिप्त लेख ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया। 1941 में बापू ने ‘रचनात्मक कार्यक्रम : उसका अर्थ और स्थान’ नाम से एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने 1945 में उस समय बदलाव भी किए थे, जब स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर एक नया उत्साह था। उस दस्तावेज में बापू ने विविध विषयों पर र्चचा की थी जिनमें ग्रामीण विकास, कृषि को सशक्त बनाने, साफ-सफाई को बढ़ावा देने, खादी को प्रोत्साहन देने, महिलाओं का सशक्तीकरण और आर्थिक समानता सहित अनेक विषय शामिल थे। मैं अपने प्रिय भारतवासियों से अनुरोध करूंगा कि वे गांधी जी के ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ को पढ़ें (इसका मुद्रित संस्करण और इंटरनेट पर भी यह आसानी से उपलब्ध है) यह ऑनलाइन एवं ऑफलाइन उपलब्ध है। हम कैसे गांधी जी के सपनों का भारत बना सकते हैं, इस कार्य के लिए इसे पथ-प्रदर्शक बनाएं। ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ के बहुत से विषय आज भी प्रासंगिक हैं और भारत सरकार ऐसे बहुत से बिंदुओं को पूरा कर रही है, जिनकी चर्चा पूज्य बापू ने सात दशक पहले की थी, लेकिन जो आज तक पूरे नहीं हुए।

स्वच्छ और हरित वातावरण बनाएं

गांधी जी के व्यक्तित्व के सबसे खूबसूरत आयामों में से एक बात यह थी कि उन्होंने प्रत्येक भारतीय को इस बात का अहसास दिलाया था कि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने एक अध्यापक, वकील, चिकित्सक, किसान, मजदूर, उद्यमी, सभी में आत्मविश्वास की भावना भर दी

खुला मंच

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हम अपने क्रियाकलापों से अपने साथी भारतीयों की मदद कर रहे हैं।

स्वच्छता का दायरा 95 फीसदी तक

थी कि जो कुछ भी वे कर रहे हैं, उसी से वे भारत के स्वाधीनता संग्राम में योगदान दे रहे हैं। उसी संदर्भ में आइए, हम उन कामों को अपनाएं जिनके लिए हमें लगता है कि गांधी जी के सपनों को पूरा करने के लिए हम इन्हें कर सकते हैं। भोजन की बर्बादी को पूरी तरह बंद करने जैसी साधारण- सी चीज से लेकर अहिंसा और अपनेपन की भावना को अपनाकर इसकी शुरुआत की जा सकती है। आइए, हम इस बात पर विचार करें कि कैसे हमारे क्रियाकलाप भावी पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और हरित वातावरण बनाने में योगदान दे सकते हैं। करीब आठ दशक पहले जब प्रदूषण का खतरा इतना बड़ा नहीं था, तब महात्मा गांधी ने साइकिल चलाना शुरू किया था। जो लोग उस समय अहमदाबाद में थे, इस बात को याद करते हैं कि गांधी जी कैसे गुजरात विद्यापीठ से साबरमती आश्रम साइकिल से जाते थे। असल में मैंने पढ़ा है कि गांधी जी के सबसे पहले विरोध प्रदर्शनों में वह घटना शामिल है, जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में उन कानूनों का विरोध किया जो लोगों को साइकिल का उपयोग करने से रोकते थे। कानून के क्षेत्र में एक समृद्ध भविष्य होने के बावजूद जोहान्सबर्ग में आने-जाने के लिए गांधी जी साइकिल का प्रयोग करते थे। ऐसा कहा जाता है कि जब एक बार जोहान्सबर्ग में प्लेग का प्रकोप हुआ तो गांधी जी एक साइकिल से सबसे ज्यादा पीड़ित स्थान पर पहुंचे और राहत कार्य में जुट गए। क्या आज हम इस भावना को अपना सकते हैं?

गांधी जी अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे और आसपास के वातावरण की स्वच्छता सुनिश्चित करते थे। वे यह सुनिश्चित करते थे कि पानी कम से कम बर्बाद हो और अहमदाबाद में उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि दूषित जल साबरमती के जल में न मिले ये त्योहारों का समय है और पूरे देश में लोग नये कपड़े, उपहार, खाने की चीजें और अन्य वस्तुएं खरीदेंगे। ऐसा करते समय हमें गांधी जी की एक बात को ध्यान में रखना चाहिए, जो कि उन्होंने हमें एक ताबीज के रूप में दी थी। आइए, हम इस बात पर विचार करें कि कैसे हमारे क्रियाकलाप अन्य भारतीयों के जीवन में समृद्धि का दीया जला सकते हैं! चाहे वे खादी के उत्पाद हों, या फिर उपहार की वस्तुएं या फिर खाने पीने का सामान, जिन भी चीजों का वे उत्पादन करते हैं, उन्हें खरीद कर एक बेहतर जिंदगी जीने में हम अपने साथी भारतीयों की मदद करेंगे। हो सकता है कि हमने उन्हें कभी देखा न हो और हो सकता है कि शेष जीवन में भी हम उनसे कभी न मिलें। लेकिन बापू को हम पर गर्व होगा कि

पिछले चार वर्षो में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के जरिए 130 करोड़ भारतीयों ने महात्मा गांधी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की हैं। ‘स्वच्छ भारत अभियान’, जिसके चार वर्ष आज पूरे हो रहे हैं। प्रत्येक भारतीय के कठोर परिश्रम के कारण यह अभियान आज एक ऐसे जीवंत जन-आंदोलन के रूप में बदल चुका है, जिसके परिणाम सराहनीय हैं। साढ़े आठ करोड़ से ज्यादा परिवारों के पास अब पहली बार शौचालय की सुविधा है। चालीस करोड़ से ज्यादा भारतीयों को अब खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़ता है। चार वर्षों के छोटे से कालखंड में स्वच्छता का दायरा 39% से बढ़कर 95% पर पहुंच गया है। 21 राज्य और संघशासित क्षेत्र और साढ़े चार लाख गांव अब खुले में शौच से मुक्त हैं। ‘‘स्वच्छ भारत अभियान’ आत्मसम्मान और बेहतर भविष्य से संबद्ध है। यह उन करोड़ों महिलाओं के भले की बात है, जो हर सुबह खुले में दैनिक-र्चया से निवृत्त होते समय मुंह छुपाती थीं। मुंह छुपाने की यह समस्या अब इतिहास बन चुकी है। साफ-सफाई के अभाव में जो बच्चे बीमारियों के शिकार बनते थे; वे उनके लिए शौचालय वरदान बना है। कुछ दिन पहले राजस्थान के एक दिव्यांग भाई ने मेरे ‘मन की बात’ कार्यक्रम’ के दौरान मुझे फोन किया था। उन्होंने बताया था कि वे दोनों आंखों से देखने में लाचार थे, लेकिन जब उन्होंने अपने घर में खुद का शौचालय बनवाया तो उनकी जिंदगी में कितना बड़ा सकारात्मक बदलाव आया। उनके जैसे अनेक दिव्यांग भाई और बहन हैं, जो कि सार्वजनिक स्थलों और खुले में शौच जाने की असुविधा से मुक्त हुए हैं। जो आशीर्वाद उन्होंने मुझे दिया, वह मेरी स्मृति में हमेशा के लिए अंकित रहेंगे। आज बहुत बड़ी संख्या उन भारतीयों की है, जिन्हें स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने का सौभाग्य नहीं मिला। हमें उस समय देश के लिए जीवन बलिदान करने का अवसर तो नहीं मिला, लेकिन अब हमें हर हाल में देश की सेवा करनी चाहिए और ऐसे भारत का निर्माण करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए, जैसे भारत का सपना हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने देखा था।

‘वैष्णव जन तो तेने कहिये...’

आज गांधी जी के सपनों को पूरा करने का एक बेहतरीन अवसर हमारे पास है। हमने काफी कुछ किया है और मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में हम और बहुत कुछ करने में सफल रहेंगे। ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर परायी जाणे रे’, ये बापू की सबसे प्रिय पंक्तियों में से एक थी। इसका अर्थ है कि भली आत्मा वह है, जो दूसरों के दुख का अहसास कर सके। यही वह भावना थी जिसने उन्हें दूसरों के लिए जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। हम एक सौ तीस करोड़ भारतीय आज उन सपनों को पूरा करने के लिए मिलकर काम करने पर प्रतिबद्ध हैं, जो बापू ने देश के लिए देखे और जिसके लिए उन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया था।


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फोटो फीचर

08 - 14 अक्टूबर 2018

कोलकाता

शक्ति अराधना की तैयारी दुर्गा और काली पूजा से जुड़ी पारंपरिक श्रद्धा कोलकाता की एक एेसा विशेषता है जिसे यहां के जीवन और संस्कार में कोई भी अनुभव कर सकता है

फोटोः जयराम


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फोटो फीचर

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व्यक्तित्व

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फाहियान

भारत की पहली लिपिबद्ध यात्रा खास बातें

फाहियान पहला ऐसा विदेशी यात्री था, जिसने अपनी भारत यात्रा का वर्णन लिपिबद्ध किया

फाहियान को ‘फाशियान’ भी कहा गया, जिसका अर्थ धर्म की दीप्ति है फाहियान जब चीन लौटे उस वक्त उनकी उम्र 77 वर्ष थी

एसएसबी ब्यूरो

बौद्ध धर्मग्रंथों के अध्ययन और संग्रह के लिए संस्कृत भाषा सीखी

सा से बहुत पहले ही भारत की सभ्यता, संस्कृति, कला, धर्म, नीति आदि की ख्याति विदेशों में फैल चुकी थी। विभिन्न देशों से शिक्षार्थी, शोधार्थी ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा से दुर्गम यात्राएं करके भारत आते थे। इसी क्रम में चौथी शताब्दी में चीन से फाहियान नाम का एक बौद्ध भिक्षु भारत आया था। फाहियान का हमारे लिए अत्यधिक महत्व इसलिए है क्योंकि वह पहला विदेशी यात्री था, जिसने अपनी भारत यात्रा का वर्णन लिपिबद्ध किया।

पाटलिपुत्र पहुंचे। फिर वे दक्षिण में श्रीलंका भी गए। हर जह से एकत्रित बौद्ध ग्रंथ और प्रतिमाएं लेकर वे समुद्री रास्ते से श्रीलंका से पूर्व को निकले, जहां एक भयंकर तूफान ने उनके जहाज को भटका दिया और 100 दिनों तक सागर में भटककर वे जावा द्वीप (आधुनिक इंडोनेशिया) पर जा पहुंचें। वहां से वे आगे निकले और चीन के आधुनिक शानदोंग प्रांत में लाओशान पहुंचे। फिर शानदोंग की उस समय की राजधानी चिंगझोऊ नगर में उन्होने एक वर्ष तक रूककर अपने साथ लाइ गई सामग्री को संगठित और अनुवादित किया।

चीन में बौद्ध धर्म

चीनी साहित्य के अनुसार ईसा से भी 67 वर्ष पूर्व चीन सम्राट मिंगटो ने एक स्वप्न देखा था कि उसके महल के ऊपर कोई तप्त कांचनवर्ण देवपुरुष मंडरा रहा है, इसके बाद उसने मंत्रियों से स्वप्न के विषय में विचार विमर्श किया तथा उनके परामर्श पर भारत से कश्यप मातंग और धर्मरक्षक नामक दो आचार्यों को चीन बुलबाया जिन्होंने बौद्ध धर्मग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया तथा वहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया। बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के साथ भारत और चीन के मध्य गुरु-शिष्य के रूप में संबंध सुदृढ़ होते गए। फाहियान की भारत यात्रा इसी सुदृढ़ता की देन है।

अपूर्ण लगा और वे पूर्ण ग्रंथों की खोज में भारत चल पड़े। उस वक्त उनकी उम्र 65 वर्ष थी। वे पैदल ही मध्य एशिया होते हुए शेनशेन, दूनहुआंग, खोटान और पेशावर के रास्ते 402 ई. में भारत पहुंचे थे।

बौद्ध भिक्षु था फाहियान

77 वर्ष की उम्र में लौटे चीन

‘सेही’ मूल नामवाले फाहियान को ‘फाशियान’ भी कहा गया है, जिसका अर्थ धर्म की दीप्ति है। फाहियान भारत की यात्रा पर आने वाले पहले चीनी भिक्षु, यात्री और अनुवादक थे, जिनका लक्ष्य यहां से बौद्ध ग्रंथ एकत्रित करके उन्हें चीन ले जाना था। फाहियान का जन्म चीन के पिंगग्यांग में 337 ईस्वी में हुआ था। वे बौद्ध अनुयायी थे और उन्होंने छोटी उम्र में ही घर त्यागकर संन्यास ले लिया था। उन्होंने बौद्ध ग्रंथों का गहन अध्ययन किया था। अपने अध्ययन में अपूर्णता जानकर उनकी इच्छा हुई कि भारत जाकर ओर बौद्ध ग्रंथों की तलाश करें। चीन में ‘विनय पटिक’ का उपलब्ध संस्करण भी उन्हें

फाहियान का जन्म चीन के पिंगग्यांग में 337 ईस्वी में हुआ था। वे बौद्ध अनुयायी थे और उन्होंने छोटी उम्र में ही घरर त्यागकर संन्यास ले लिया था

फाहियान की यात्रा के समय भारत में गुप्त राजवंश के चंद्रगुप्त का काल था और चीन में जिन राजवंश का शासन था। वे जब चीन लौटे उस वक्त 77 वर्ष के थे। 414 ई. में उन्होंने अपनी यात्रा का वृतांत ‘बौद्ध राज्यों का अभिलेख’ नाम से लिखा, जिसे आज ‘फाहियान की यात्राएं’ नाम से जाना जाता है।

संस्कृत भी सिखी

यात्रा के के दौरान उन्होंने उद्दियान, गांधार, तक्षशिला, उच्छ, मथुरा, वाराणसी, गया आदि का परिदर्शन किया। पाटलिपुत्र में तीन वर्ष तक अध्ययन करने के बाद दो वर्ष उसने ताम्रलिप्ति में भी बिताए।

यहां वह धर्म सिद्धांतों तथा चित्रों की प्रतिलिपि तैयार करता रहा। यहां से उसने सिंहल की यात्रा की और दो वर्ष वहां भी बिताए। फिर वे यवद्वीप (जावा) होते हुए 412 ई. में शांतुंग प्रायद्वीप के चिंगचाऊ स्थान में उतरे। अत्यंत वृद्ध हो जाने पर भी वे अपने पवित्र लक्ष्य की ओर लगातार अग्रसर होते रहे। चीन में चिएन कांग (नैनकिंग) पहुंचकर वह बौद्ध धर्मग्रंथों के अनुवाद के कार्य में संलग्न हो गए। अन्य विद्वानों के साथ मिलकर उसने कई ग्रंथों का अनुवाद किया, जिनमें से मुख्य हैं- परिनिर्वाणसूत्र और महासंगिका विनय के चीनी अनुवाद।

सिल्क रूट

फाहियान चीन से सिल्क रूट से भारत आए। उन्होंने अपने यात्रा-वृतांत में रास्ते में आने वाले कई मध्य एशियाई देशों के बारे में लिखा है। सर्द रेगिस्तानों और विषम पहाड़ी दर्रों से गुजरते हुए वे भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तरी क्षेत्र में दाखिल हुए और

सफर और अध्ययन साथ-साथ

फाहियान ने नालंदा में बुद्ध के शिष्य सारिपुत्र की अस्थियों पर निर्मित स्तूप का उल्लेख किया है। इसके बाद वे राजगृह, बोधगया एवं सारनाथ की यात्रा के बाद वापस पाटलिपुत्र आया, जहां कुछ समय बिताने के बाद स्वदेश लौट गया। इस दौरान फाहियान ने लगभग 6 वर्ष सफर में एवं 6 वर्ष अध्ययन में बिताया। पाटिलपुत्र में संस्कृत के अध्ययन हेतु उन्होंने 3 वर्ष व्यतीत किए।

चंद्रगुप्त द्वितीय का शासन

फाहियान ने अपने समकालीन भारतीय नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के नाम की चर्चा न करते हुए भी उनकी धार्मिक सहिष्णुता की नीति एवं कुशल प्रशासन की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। उनके अनुसार उस समय जनता सुखी थी और कर का भार कम था। शारीरिक दंड एवं मृत्युदंड का प्रचलन नहीं था, क्योंकि अर्थदंड ही पर्याप्त होता था।

तत्कालीन समाज का वर्णन

गुप्तकालीन भारतीय समाज पर प्रकाश डालते हुए फाहियान ने कहा है कि लोग अतिथि परायण होते थे। भोजन में लहसून, प्याज, मदिरा, मांस, मछली


08 - 14 अक्टूबर 2018

पीएम मोदी के गृहनगर भी गए थे

‘वे गुजरात में मेरे गृहनगर भी आए थे। उनके कार्यों से आज हमें ज्ञात होता है कि वहां एक बौद्ध मठ हुआ करता था’ –नरेंद्र मोदी

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धानमंत्री 2015 में भारत-चीन व्यापार फोरम की बैठक में शिरकत करने शंघाई गए थे। वहां उनके दिए संबोधन को भारतचीन के सांस्कृतिक संबंध को लेकर काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। चीनी मीडिया में पीएम मोदी के संबोधन की खासतौर पर विशेष चर्चा हुई थी। प्रधानमंत्री ने अन्य बातों के अलावा अपने भाषण में इस बात का जिक्र किया कि अपनी भारत यात्रा के दौरान फाहियान गुजरात में उनके जन्मस्थान वड़नगर भी गए थे। पीएम मोदी के ही शब्दों में, ‘चीन से भारत आए यात्री फाहियान और ह्वेनसांग जैसे प्रसिद्ध विद्वानों ने भारतीयों को चीन की बुद्धिमत्तात के कई रहस्यों का पाठ पढ़ाया। इसके अलावा उन्हों ने भारत में कई रहस्योंन का पता लगाया। वे गुजरात में मेरे गृहनगर भी आए थे। उनके कार्यों से आज हमें ज्ञात होता है कि वहां एक बौद्ध मठ हुआ करता था। ह्वनेसांग जब अपने देश चीन लौटे तो वे अपने साथ संस्कृ्त के ग्रंथ और बौद्धिक ज्ञान की पुस्त कें लेकर आए। दोनों देशों की पारंपरिक चिकित्सा‍प्रणालियां प्राकृतिक तत्वोंु पर आधारित हैं और उनमें बहुत समानता है।’

का प्रयोग नहीं करते थे। फाहियान ने कई अस्पृश्य जातियों का भी उल्लेख किया है, जिनका एक तरह से सामाजिक बहिष्कार किया जाता था। वैश्य जाति की प्रशंसा फाहियान ने इसलिए की, क्योंकि इस जाति ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार एवं भिक्षुओं के विश्राम हेतु मठों के निर्माण में काफी धन व्यय किया था।

उन्नत आर्थिक दशा

गुप्तकालीन आर्थिक दशा पर प्रकाश डालते हुए फाहियान ने कहा है कि उस समय साधारण क्रयविक्रय में कौड़ियों का प्रयोग होता था। उस समय भारत का व्यापार उन्नत दशा में था। फाहियान ने उस दौर में भारत में बड़े-बड़े जहाजों के चलाए जाने की भी बात कही है। उनके वर्णन के अनुसार वह स्वयं स्वदेश वापस जाते समय एक बड़े जहाज में बैठ कर ताम्रलिप्ति बंदरगाह से प्रस्थान किया था। फाहियान ने अपने समकालीन भारतीय सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय के विषय में बताया है कि वे विद्धानों के संरक्षक थे। फाहियान ने मंजुश्री नाम के विद्धान का वर्णन भी किया है। धार्मिक स्थित के बारे में फाहियान ने लिखा है कि उस समय अनेक प्रकार के धर्म एवं विचारधाराएं प्रचलन में थीं। इनमें सर्वाधिक

प्रकाश उन्होंने बौद्ध धर्म पर डाला है। फाहियान ने भारत में वैशाख की अष्टमी को एक महत्त्वपूर्ण उत्सव मनाए जाने की बात कही हैं। उनके अनुसार

व्यक्तित्व

चाणक्य के जवाब से अभिभूत रह गए फाहियान

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फाहियान से संक्षिप्त मुलाकत में ही चाणक्य ने अपनी और अपने मार्गदर्शन में चल रहे चंद्रगुप्त के राज की उच्च नौतिकता से परिचित कराया

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हियान की भारत यात्रा को लेकर कई तरह के कथा प्रसंग सुनने में आते हैं। ऐसे ही एक रोचक प्रसंग में बताया गया है एक बार एक चीनी यात्री फाहियान चाणक्य से मिलने आया। वह चंद्रगुप्त के राज्य की खुशहाली का राज जानना चाहता था। चाणक्य की मेज पर दो मोमबत्तियां थीं, जिसमें एक जल रही थी। चाणक्य मोमबत्ती के प्रकाश में कुछ लिखने का काम कर रहे थे। फाहियान के आने पर उन्होंने जलती हुई मोमबत्ती को बुझा दिया और दूसरी जला ली। यह देखकर फाहियान ने पूछा- ‘महाराज, आपने ऐसा क्यों किया?’ चाणक्य ने जवाब दिया- ‘पहली मोमबत्ती राजा के कोष से प्राप्त हुई थी, जिसे जलाकर मैं राजकाज कर रहा था। अब मैं आपसे व्यक्तिगत बात कर रहा हूं, इसीलिए अपनी व्यक्तिगत मोमबती जला ली।’ चाणक्य का यह उत्तर सुनकर फाहियान ने कहा- ‘मुझे जवाब मिल गया। जहां आपके जैसे ईमानदार मंत्री हों, वहां की प्रजा कैसे खुशहाल न होगी!’

फाहियान ने अपने समकालीन नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के नाम की चर्चा न करते हुए भी उनकी धार्मिक सहिष्णुता की नीति एवं कुशल प्रशासन की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है चार पहिए वाले रथ पर कई मूर्तियों को रख कर जुलूस निकाला जाता था। फाहियान के दिए गए विवरण से यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि चंद्रगुप्त द्वितीय का समय शांति एवं ऐश्वर्य का समय था।

दिलचस्प यात्रा विवरण

फाहियान के विवरण में बौद्ध मठों, बौद्ध मिथकों आदि का तो प्रमाणिक वर्णन मौजूद है ही, इसके अलावा भी उन्होंने कई दिलचस्प विवरण दिए हैं| गोबी मरुस्थल का वर्णन करते हुए फाहियान ने लिखा है- ‘बुरी आत्माओं और गरम हवाओं का घर, जहां रास्ते के चिन्ह के रूप में केवल मृतकों की हड्डिया हैं। हवा में कोई पंछी नही है और न ही जमीन पर कोई जानवर।’ अफगानिस्तान से गुजरते हुए उन्होंने इसे मुस्लिम बाहुल्य वाला इलाका बताया है। चीन वापसी के उनकी यात्रा भी रोमांच भरी रही। गंगा डेल्टा से वे एक व्यापारिक जहाज में

सवार होकर सीलोन (श्रीलंका) रवाना हुए। वे 14 दिन में वहां पहुंच गए। उन्होंने यहां से भी बौद्ध धर्म से संबंधित ग्रंथ जुटाए। वे दो साल तक यहां रहे और उन सभी धर्मग्रंथों का अनुवाद किया जो अभी तक चीन के लिए अज्ञात थे। जब वे सीलोन से चीन के लिए रवाना हुए तो समुद्र में उन्हें उतने ही खतरों का सामना करना पड़ा, जितने भारत आते समय रेगिस्तान और हिमालय में उठाने पड़े थे। भयंकर समुद्री तूफान उनके जहाज को उड़ाकर एक टापू पर ले गया, जो संभवत: जावा था। यहां से वे एक जहाज पर सवार हुए, जो कैंटन जा रहा था, लेकिन इसे भी तूफान उड़ा ले गया और दक्षिण चीन बंदरगाह पर उतरने की बजाय उन्हें शैनडोंग प्रायद्वीप पर उतरना पड़ा। इस यात्रा में फाहियान को 200 दिन समुद्र में बिताने पड़े। जो तथ्य उपलब्ध हैं उनके मुताबिक अनुमानित 442 ईस्वी में उनकी मृत्यु हुई।


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स्वच्छता

08 - 14 अक्टूबर 2018

अमेरिका

विकास की अस्वच्छ विडंबना अमेरिका में न्यूयॉर्क जैसे शहर कचरा निपटान के बड़े संकट से गुजर रहे हैं, वहीं वहां के गांवों में सीवर लाइन जैसी व्यवस्था की आज भी कमी है

एसएसबी ब्यूरो

मेरिका में स्वच्छता की स्थिति कैसी है, इस सवाल का जवाब तलाशने पर कई दिलचस्प और चौंका देने वाले तथ्य सामने आते हैं। इसी वर्ष कुछ माह पहले आई एक खबर के मुताबिक जिसमें ट्रेनों में भरकर इंसानी मल ले जाने की खबर अमेरिका से आई। इस खबर के मुताबिक, अमेरिका के अलबामा राज्य के छोटे से कस्बे पैरिश में करीब 45 लाख किलो इंसानी मल डंप किया गया है। यह मल दर्जन भर ट्रेनों में

भरकर यहां लाया गया। इससे पैरिश कस्बे में रहने वाले 982 लोगों का चारों तरफ फैल रही बदबू से जीना मुहाल हो गया है। यह इंसानी मल पैरिश में एडंसविले इलाके में एक निजी लैंडफिल साइट पर डंप किया गया है। जबकि इस वर्ष जनवरी में ही पैरिश के नजदीक स्थित एक अन्य कस्बे वेस्ट जैफरसन के लोगों ने अदालत में याचिका दाखिल कर प्राइवेट कंपनी द्वारा सीवेज उनके कस्बे में लाने का विरोध किया था। याचिका में कहा गया था कि कस्बे के निवासी तेज दुर्गंध से परेशान हैं। इस पर अदालत ने वेस्ट जैफरसन कस्बे के पक्ष में फैसला सुनाया। जब अदालत ने वेस्ट जैफरसन कस्बे के पक्ष में फैसला सुनाया, तब तक इंसानी मल भरकर ट्रेनें न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी से निकल चुकी थी। इस पर इन ट्रेनों को पैरिश के नजदीक स्थित एडम्सविले इलाके के रेल यार्ड में खाली कर दिया गया। जहां पर सीवेज डंप किया गया, उस जगह के नजदीक स्थानीय लोगों का बेसबॉल ग्राउंड है, जिससे कस्बे के युवा खेल भी नहीं पा रहे हैं और बदबू के साथ जीने को मजबूर हैं। पैरिश कस्बे की मेयर का कहना है कि इस बदबू के कारण वह अपने घर के आंगन में नहीं बैठ पा रहे हैं। बच्चे बाहर नहीं जा पा रहे हैं। पैरिश के लोगों का कहना है कि सीवेज डंप करने वाली कंपनी ने पहले यहां सीवेज डंप करने से इनकार कर दिया था, लेकिन एक बार फिर से कंपनी ने यहीं पर सीवेज डंप कर दिया। साफ है कि अमेरिका अपने तीव्र विकास और विश्व का

खास बातें ट्रेनों में भरकर डंपिंग के लिए ले जा रहे इंसानी मल अमेरिका गांवों में स्वच्छता की बुनियादी सुविधाओं की कमी स्मार्ट पब्लिक टॉयलेट के मामले में अमेरिका से आगे है भारत सबसे समर्थ और शक्तिशाली राष्ट्र बने रहने के विरोधाभासों को झेलने के लिए आज अभिशप्त है।

सबसे अस्वच्छ न्यूयार्क

अमेरिका के प्रमुख शहर न्यूयॉर्क का नाम सुनते ही वॉल स्ट्रीट की गगनचुंबी इमारतों से लेकर टाइम स्क्वायर के चमकते हुए विज्ञापन की तस्वीर सामने आती है। फैशन, फ़ूड और एंटरटेनमेंट से चमचमाते इस शहर को लेकर एक एजेंसी ने चौंका देने वाला खुलसा किया है। आज आलम यह है कि न्यूयॉर्क जैसा शहर भले ही फैशन या मनोरंजन में आगे हो लेकिन स्वच्छता के मामले में सबसे पीछे है। अमेरिका में न्यूयॉर्क सबसे गंदा शहर है और


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स्वच्छता

कॉन्टैक्ट लेंस से 20 हजार किलो कूड़ा

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क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आपके खाने में कॉन्टैक्ट लेंस का प्लास्टिक मिला हुआ है? अमेरिका में बिना सोचे समझे लेंस को कहीं भी फेंक देने से यह नौबत आई है। में ही हर साल कॉन्टैक्ट लेंस के कारण 40 करोड़ टूथब्रश के बराबर प्लास्टिक का कूड़ा जमा हो रहा है। क्योंकि ये पानी में घुल सकते हैं, ऐसे में ये समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा को तेजी से बढ़ा रहे हैं। प्लास्टिक की किसी भी कण को तब माइक्रो-प्लास्टिक कहा जाता है जब उसका व्यास पांच मिलीमीटर से कम होता है। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में अपने शोध के नतीजे बताते हुए रॉल्ड हैल्डन ने बताया, ‘अमेरिका में हर साल अरबों की संख्या में

या सिंक में बहाते हैं। सीवेज के साथ ये वॉटर वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट पहुंचते हैं। यहां ये छोटे-छोटे कणों में जरूर टूट जाते हैं लेकिन विघटित नहीं हो पाते हैं। सीवेज के पानी से खाद बनाने का काम भी किया जाता है। इसका मतलब है कि लेंस का प्लास्टिक खाद में और वहां से खेतों की जमीन और फिर हमारे खाने के अंदर पहुंच जाता है। इसके अलावा जब सीवेज के पानी को समुद्र में बहाया जाता है, तो मछलियां और छोटे समुद्री

कॉन्टैक्ट लेंस पानी में बहा दिए जाते हैं। इनसे सालाना 20,000 किलो कूड़ा जमा होता है।’ हैल्डन का कहना है कि उन्होंने खुद अपने व्यस्क जीवन का अधिकतर हिस्सा कॉन्टैक्ट लेंस के साथ बिताया है और उन्हें शोध के लिए प्रोत्साहन भी यहीं से मिला, क्योंकि उनके मन में यह सवाल उठा कि जो कॉन्टैक्ट लेंस फेंक दिए जाते हैं, उनका आखिर होता क्या है। उन्होंने पाया कि अमेरिका में साल भर में केवल कॉन्टैक्ट लेंस की पैकिंग से ही 1.3 करोड़ किलो कूड़ा जमा हो जाता है। साथ ही रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि कॉन्टैक्ट लेंस इस्तेमाल करने वाले 15 से 20 फीसदी लोग इन्हें टॉयलेट

जीव इस प्लास्टिक को खाना समझ कर खा लेते हैं। इस तरह से ये खाद्य श्रृंखला में पहुंच जाता है। जब इंसान मछली खाते हैं, तो ये प्लास्टिक उनके शरीर के अंदर भी पहुंच जाता है। ऐसे में हैल्डन और उनकी टीम की सलाह है कि लोग कॉन्टैक्ट लेंस को बहाने की जगह उन्हें अलग से प्लास्टिक के कूड़े के साथ फेंके ताकि उसे रिसाइकल किया जा सके। अपने शोध में उन्होंने यह भी पाया है कि कॉन्टैक्ट लेंस बनाने वाली कंपनियां पैकेजिंग पर ठीक से लोगों को इस बारे में नहीं बताती हैं कि लेंस को बहाना पर्यावरण के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है। इसे भी बदलने की जरूरत है।

अमेरिका में ही हर साल कॉन्टैक्ट लेंस के कारण 40 करोड़ टूथब्रश के बराबर प्लास्टिक का कूड़ा जमा हो रहा है। क्योंकि ये पानी में घुल सकते हैं, ऐसे में ये समुद्रों में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा को तेजी से बढ़ा रहे हैं

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गदौड़ की इस दुनिया में हर चीज अब डिस्पोजेबल बनने लगी है यानी एकदो बार इस्तेमाल किया और फिर फेंक दिया, फिर चाहे चाय कॉफी के कप हों या फिर सफाई के लिए इस्तेमाल होने वाले दस्ताने। यही हाल कॉन्टैक्ट लेंस का भी है। एक ही लेंस को बार- बार इस्तेमाल करने की जगह अब लोग डिस्पोजेबल लेंस लगाना अमेरिका में लोग बेहतर समझते हैं। जाहिर है कि इनका रखरखाव नहीं करना पड़ता है। इनकी सफाई पर ध्यान नहीं देना पड़ता है। अगर लगाते हुए ये हाथों से फिसल जाएं, तो ढूंढने

देश की बाकी किसी भी जगह की तुलना में यहां सबसे ज्यादा कीड़े-मकोड़े और कूड़ा पाया जाता है। अमेरिका की साफ-सफाई सेवा कंपनी ‘बिजी बी’ ने सरकारी आंकड़ो की समीक्षा के आधार पर यह बात कही है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के आंकड़ों के अनुसार, इस रिपोर्ट में कीड़े मकोड़ों और कूड़ा करकट के आधार पर समूचे अमेरिका के 40 शहरों को सूचीबद्ध किया गया है। ‘बिग एप्पल’ के उपनाम से प्रचलित न्यूयॉर्क शहर को बिजी बी के सबसे ज्यादा गंदे शहरों की सूची में 427.9 के अंकों के साथ शीर्ष स्थान मिला। लॉस एंजेलिस 317.8

अमेरिका में न्यूयॉर्क सबसे गंदा शहर है और देश की बाकी किसी भी जगह की तुलना में यहां सबसे ज्यादा कीड़े-मकोड़े और कूड़ा पाया जाता है

की भी जरूरत नहीं। क्योंकि ये पानी में घुल जाते हैं, इसीलिए वॉशबेसिन में बस पानी चला देना ही काफी होता है। एक बार इस्तेमाल करने के बाद जब इन्हें बदलने की बारी आती है, तब भी लोग यही करते हैं। या तो इन्हें टॉयलेट में फ्लश कर देते हैं या पानी में बहा देते हैं। घर में इनसे कूड़ा जमा नहीं होता। इसीलिए ये काफी सहूलियत भरा लगता है। लेकिन समुद्र में इनसे जितना कूड़ा जमा हो रहा हैं, वो हैरान करने वाला है। अमेरिका में कॉन्टैक्ट लेंस पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि अकेले अमेरिका

अंक के साथ दूसरे स्थान पर रहा। रिपोर्ट के अनुसार, न्यूयॉर्क में करीब 90 लाख 4000 घरों के पास की सड़कों या संपत्तियों पर कूड़ा रहता है और लगभग 23 लाख घरों में चूहे या कॉकरोच पाए गए। न्यूयॉर्क जनसंख्या घनत्व के मामले में भी पहले स्थान पर है, जिसमें प्रति वर्ग मील मंस 28,000 लोग रहते हैं।

अमेरिका से आगे भारत

भारत में इन दिनों जिस तेजी से स्वच्छता अभियान चल रहा है, उसकी चर्चा अमेरिका सहित पूरी दुनिया में है। हालिया एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के लोग भले ही स्मार्ट शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते हों, लेकिन उसकी चर्चा अब अमेरिका तक में हैं और अब तो न्यूयार्क में नई दिल्ली की तर्ज पर ही स्मार्ट शौचालय बनाने की मांग उठने लगी है। न्यूयॉर्क के नागरिकों ने अपने मेयर बिल द ब्लासियो को एक पत्र लिखकर एनडीएमसी की स्मार्ट शौचालय की तरह ही न्यूयॉर्क में शौचालय बनाने का प्रस्ताव रखा है। दरअसल, न्यूयॉर्क में पब्लिक शौचालय की


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स्वच्छता

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अमेरिका के गांवों तक पहुंचा सुलभ एक बड़ी पहल करते हुए सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक किफायती और सर्वाधिक उपयोगी माने गए सुलभ तकनीक पर आधारित टू पिट पोर फ्लश मॉडल के शौचालय बनवाने की पहल में जुटे हैं

न्यूयॉर्क में खासतौर से भीड़-भाड़ वाले इलाकों में पब्लिक शौचालय बहुत कम है। कई इलाकों में शौचालय है ही नहीं। बताया जाता है कि वहां 100 से भी कम पब्लिक टॉयलेट हैं

मेरिका के गांवों में स्वच्छता की स्थिति अच्छी नहीं है। सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने इस दिशा में एक बड़ी पहल करते हुए सुलभ तकनीक पर आधारित किफायती और सर्वाधिक उपयोगी टू पिट पोर फ्लश मॉडल के शौचालय अमेरिकी गांवों में बनवाने की पहल में जुटे हैं।

डॉ. पाठक बताते हैं कि अमेरिका के अधिकतर गांवों में सीवर लाइन की सुविधा नहीं है। सुलभ शौचालय जैसी सुविधा नहीं है। इसे देखते हुए वहां के अधिकारियों ने उनसे संपर्क किया था। उन्होंने बताया कि अमेरिका के कई गांवों का सर्वे संस्था के लोग कर चुके हैं। वहां के लोगों को जब सुलभ शौचालय के बारे में

पेयजल स्रोत

स्वच्छ या शोधित

पेयजल और स्वच्छता

शहरी : 100% आबादी ग्रामीण : 100% आबादी कुल : 100% आबादी

अस्वच्छ या अशोधित

जानकारी दी गई तो वे बहुत उत्साहित हुए। सभी चाहते हैं कि जल्द से जल्द संस्था काम करे। इससे पूर्व खासतौर पर कई अफ्रीकी देशों में सुलभ तकनीक से शौचालय बनवाए गए हैं, जिससे वहां के लोग काफी प्रभावित हैं। जाहिर है कि एक जगह का काम देखकर दूसरी जगह के लोग आगे आ रहे हैं।

शहरी : 00% आबादी ग्रामीण : 00% आबादी कुल : 00% आबादी (2015 तक अनुमानित)

स्वच्छ व उन्नत

शहरी : 99.4% आबादी ग्रामीण : 98.2% आबादी कुल : 99.2% आबादी

अस्वच्छ या पारंपरिक

शहरी : 0.6% आबादी ग्रामीण : 1.8% आबादी कुल : 0.8% आबादी (2015 तक अनुमानित)

स्वच्छता सुविधाएं

स्रोत : सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक (जनवरी, 2018)

स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। न्यूयॉर्क में खासतौर से भीड़-भाड़ वाले इलाकों में पब्लिक शौचालय बहुत कम है। कई इलाकों में शौचालय है ही नहीं। बताया जाता है कि वहां 100 से भी कम पब्लिक टॉयलेट हैं। जबकि न्यूयॉर्क दुनिया का सबसे मार्डन सिटी माना जाता है। वहां कोई मोबाइल ऐप्प बेस्ट सुविधा भी मौजूद नहीं है, जिससे टूरिस्टों को यह पता चल सके कि कौन से इलाके में शौचालय मौजूद है। जबकि एनडीएमसी ने जो करीब 15 स्मार्ट शौचालय विभिन्न जगहों पर बनाए हैं। वे जीपीएस युक्त मोबाइल ऐप्प से कनेक्ट हैं। रफी मार्ग, जनपथ, कनॉट प्लेस, चाणक्यपुरी आदि इलाकों में ये स्मार्ट शौचालय हैं। स्मार्ट शौचालयों में एटीएम, पेयजल, फूड स्टॉल के अलावा मेडिकल सुविधाएं जनसुविधाएं भी मौजूद हैं। तत्कालीन केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने स्मार्ट शौचालयों को अपने घरों के शौचालयों से बेहतरीन करार दिया था। एनडीएमसी इलाके की करीब 400 शौचालयों को 311 मोबाइल बेस्ट ऐप्प सेवा से लैस किया है। मोबाइल ऐप्प के जरिए अपने नजदीकी शौचालय का पता आसानी से लगा सकते हैं। इस एप का सबसे अधिक फायदा विदेशी पर्यटकों को हो रहा है। एनडीएमसी अपने सभी शौचालयों को पीपीपी मॉडल पर बनाया है। एक शौचालय को बनाने में करीब 8 से 10 लाख रुपए खर्च आते हैं। इसके तहत शौचालय की मरम्मत आदि का खर्च निजी एजेंसी करेगी। 7 वर्ष की लीज की अवधि खत्म होने के बाद ये शौचालय एनडीएमसी के हो जाएंगे। शौचालयों के विज्ञापनों में होने वाली कमाई में भी कुछ शेयर एनडीएमसी को देना होता है।


08 - 14 अक्टूबर 2018

पुस्तक समीक्षा

लेखक-पत्रकार अमरेंद्र राय अपनी पुस्तक ‘गंगा तीरे’ में क ऐसे यात्री की तरह दिखते हैं, जो गंगा को उसके प्रवाह में ही नहीं, मन से लेकर परंपरा तक पर छाए उसके प्रभाव के रूप में भी देखता है

दु

प्रेम प्रकाश

निया भर में नदियों के साथ संस्कृति का एक सजल पक्ष सामान्य रूप से जुड़ा है। नदियों का यह सजल पक्ष उस हस्तक्षेप का भी नाम है, जो जीवन और संस्कार को दूर तक प्रभावित करती है। लेखक-पत्रकार अमरेंद्र राय की पुस्तक ‘गंगा तीरे’ इसी हस्तक्षेप के दिलचस्प सांस्कृतिक धरातलों और विवरणों की खोज है। इस पूरी पुस्तक में राय एक ऐसे यात्री की तरह दिखते हैं, जो गंगा को उसके प्रवाह में ही नहीं, मन से लेकर परंपरा तक पर छाए उसके प्रभाव के रूप में भी देखता है। कमाल यह कि यह देखना भी बहुत प्रयासपूर्व नहीं, बल्कि स्वाभाविक मालूम पड़ता है। गंगा को भजने और गाने की परंपरा देश में नई नहीं है। जो नया है, वह है गंगा के नाम पर सांस्कृतिक पाखंड और वितंडा, जिसमें आस्था किसी भाव का नहीं, बल्कि एक नकारात्मक नारे का नाम है, सामाजिक बिखराव में जुटी मंशा का नाम है। अमरेंद्र राय की गंगा को लेकर आस्था इस पाखंड से जहां मुक्त है, वहीं वह व्यक्ति और

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समीक्षा पुस्तक लेखक मूल्य प्रकाशक

शब्दों में उतरी गंगा

समाज के बीच एक सांस्कृतिक प्रवाह के रूप में गंगा की बार-बार शिनाख्त करते हैं। उन्होंने पुस्तक की प्रस्तावना में कहा भी है- ‘पिछले 60 साल से गंगा से नजदीक का वास्ता रहा है। इस कारण गंगा के किनारे रहने वाले लोगों को नजदीक से देखा है, उनकी संस्कृति को नजदीक से समझा है।’ ‘गंगा तीरे’ पुस्तक छह सर्गों में पूरी होती हैदो-दो गंगा, वाराणसी में गंगा, हिमालय में गंगा, गंगोत्री से गोमुख में गंगा, गंगा यात्रा- गोमुख से देवप्रयाग तक भागीरथी, देवप्रयाग से प्रयागराज तक गंगा, प्रयाग से पटना तक गंगा और पटना से गंगासागर तक गंगा। प्रसिद्ध पर्यावरणविद अनुपम मिश्र गंगा को लेकर चर्चा में कई मौकों पर कहते थे कि गंगा और उससे जुड़ी संस्कृति, उसके कारण बनती-बदलती लोक परंपरा में हम जब भी गोता लगाएंगे तो पाएंगे कि गंगाजल सिर्फ हमारी प्यास और आचमन के लिए ही नहीं है, बल्कि इससे भारतीय लोकजीवन ने वह सामासिक संस्कार पाया है, जिसमें एक तरह श्रम और खेती की हरित परंपरा है, तो वहीं मिट्टी और प्रकृति के साथ सानिध्य की एक बड़ी सांस्कृतिक ललक भी है। आज इस परंपरा

और ललक की पहचान कहीं न कहीं उस संकट के समाधान का भी प्रयास है, जो जल संकट और हरित भूमि को लेकर हमारे सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी है? ‘दो-दो गंगा’ सर्ग में राय के गांव और उसके आसपास के जीवन की झांकी है। इस जीवन में उत्तर भारतीय ग्रामीण जीवन को अगड़ा-पिछड़ा का अगर अलगाव नजर आता है तो इसके साथ पानी को लेकर कम से कम मनमानी का सबक भी दिखता है। यही नहीं, गंगा अपनी प्रकृति और प्रवाह से जीवन संस्कार से लेकर हमारी भाषा तक को किस तरह समृद्ध करती है, उसकी भी चर्चा यहां है। राय एक जगह कहते हैं, ‘करीब वाली गंगा को छाड़न कहते हैं और दूर वाली गंगा को बहरी। भोजपुरी जानने वाले लोग छाड़न का मतलब खूब समझते हैं। मैंने भी छाड़न शब्द बचपन से सुना है।’ गंगा को लेकर यह शाब्दिक विमर्श हमें अनजाने ही इस बात से भी कहीं न कहीं आगाह करता है कि हमारे व्यवहार और अभिव्यक्ति के शब्द अगर मौलिक सजलता से समृद्ध नहीं रहेंगे, तो उनकी शुष्कता हमारे जीवन और जीवन मूल्यों को भी शुष्क करेंगे।

गंगा तीरे अमरेंद्र कुमार राय 150 रुपए राष्ट्रीय पुस्तक न्यास

गंगा का जिक्र आते ही वाराणसी का चित्र मन में सबसे पहले उभरता है। कवि केदारनाथ सिंह मानते थे कि बनारस पर लिखी उनकी कविता उनके मन के सबसे करीब है। केदार जी की तरह अमरेंद्र राय को भी बनारस में गंगा में डुबकी लगाने का वर्षों मौका मिला। संयोग से ये साल उनकी तरुणाई के भी रहे। बनारस में गंगा न सिर्फ प्रशांत प्रवाह में है बल्कि इसका विस्तार वहां के जीवन में स्पष्ट दिखता है। ‘वाराणसी में गंगा’ की चर्चा करते हुए राय कहते हैं, ‘बनारस में गंगा आमतौर पर शांति से बहती है। स्नान करने का जो मजा यहां आता है, कहीं और नहीं। जितने घाट बनारस में हैं, उतने किसी और शहर में गंगा के किनारे नहीं हैं। इसीलिए बनारस को घाटों का शहर कहा जाता है। बनारस में एक और खासियत मैंने देखी। यहां के लोगों का गंगा के प्रति अच्छा-खासा लगाव है। यहां गंगा में स्नान करने स्थानीय लोग ज्यादा हैं। हरिद्वार या प्रयागराज में स्नान करने वाले ज्यादातर लोग बाहरी होते हैं।’ आगे चलकर जब ‘प्रयाग से पटना तक गंगा’ का जिक्र आता है तो राय ने इस बात को बहुत खूबसूरती के साथ दर्ज किया है कि गंगा की धारा और उससे जुड़ी आस्था का भावनात्मक पक्ष इतना कारुणिक है कि कोई चाहे तो कह सकता है कि साहित्य और लोकभाषा में भावों के मानवीकरण के जितने प्रयोग गंगा को लेकर हुए हैं, वैसा शायद नील और वोल्गा को लेकर भी शायद ही हुए हों। अमरेंद्र राय लिखते हैं, ‘गंगा का मन काशी से आगे बढ़ने का नहीं होता। पर उसे आगे तो बढ़ना ही है। वरना भगीरथ के पुरखों का उद्धार कैसे होगा। वह यहां से धीरे-धीरे आगे बढ़ती है।’ इसी सर्ग में वे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की भी चर्चा करते हैं, जो कुछ समय तक गाजीपुर में आकर रहे थे। यहीं रहकर उन्होंने ‘मानसी’ और ‘नौका डूबी’ की रचना की थी। पुस्तक के अन्य सर्ग भी इसी तरह दिलचस्प हैं। राय के गंगा तीरे की यात्रा में कई ऐसे अनाम किरदार हैं, जो अपने समय में अपने आसपास के जीवन और संस्कार का प्रतिनिधित्व करते हैं। कहीं कोई बाबा हैं तो कहीं कोई पढ़ा-लिखा तर्कशील युवक। गांव कस्बों की महिलाओं के साथ गीतगौनी और लोक शब्दों और मुहावरों की भी यात्रा है यह पुस्तक। अच्छी बात एक यह भी है कि गंगा को लेकर अपनी शब्द यात्रा राय काफी अंतरंगता के कारण पूरी करते हैं। इस अंतरंगता को बनाए रखने के लिए उन्होंने भाषागत शैली के साथ अलग से कोई प्रयोग करने के बजाय इसे सामान्य और बोलचाल जैसा रहने दिया है। इस कारण यह एक पत्रकार के बजाए एक किस्सागो की किताब ज्यादा लगती है। पहली बार हाथ में लेने के बाद कम ही लोग ऐसे होंगे जो इस किताब को पूरा न पढ़ना चाहें। ‘गंगा तीरे’ का लेखन, उसकी विषयवस्तु और उसका पाठ तीनों मिलकर एक रचनात्मक और एक संतृप्त करने वाले संतोष को जन्म देते हैं।


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पुस्तक अंश

फ्रांस

08 - 14 अक्टूबर 2018

मेरी फ्रांस, जर्मनी और कनाडा की यात्रा भारत के आर्थिक एजेंडे का समर्थन करने और हमारे युवाओं के लिए नौकरियां पैदा करने के खास उद्देश्य पर केंद्रित है। इस यात्रा में हम भारत-फ्रांस आर्थिक सहयोग को मजबूत बनाने पर चर्चा करेंगे और पेरिस से बाहर स्थित कुछ उच्च तकनीक औद्योगिक इकाइयों का दौरा करेंगे। जर्मनी में, चांसलर मेर्केल और मैं संयुक्त रूप से हनोवर मेस्से का उद्घाटन करेंगे, जहां भारत एक पार्टनर कंट्री यानी साझेदार देश है। कनाडा के साथ संबंधों को बढ़ाने और बेहतर बनाने के लिए उत्सुक हूं, साथ ही और कनाडा के नेताओं, उद्योग प्रमुखों और प्रवासियों से बातचीत को लेकर भी उत्साहित हूं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्वीट्स

10 अप्रैल, 2015: फ्रांस की राजधानी पेरिस के एलिस पैलेस में पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रैंकोइस होलैंड के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

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धानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फ्रांस यात्रा का ऐतिहासिक पल 11 अप्रैल, 2015 को आया, जब फ्रांस सरकार के साथ लंबे समय से लंबित 126 लड़ाकू राफेल विमानों की आपूर्ति के सौदे को रद्द करते हुए, मोदी सरकार ने 36 तैयार राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए। साथ ही महाराष्ट्र के जैतापुर में स्थगित परमाणु परियोजना को तेजी से ट्रैक पर लाने निर्णय भी लिया गया।

चूंकि मेक-इन-इंडिया यात्रा का विषय था, इसीलिए दोनों देशों ने 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें नागरिक परमाणु ऊर्जा, शहरी विकास, रेलवे और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्र शामिल थे। मोदी ने टूलूज में एयरबस असेंबली लाइन ‘जीन-लुक लारगारदेरे’ कारखाने का दौरा किया। उन्होंने पेरिस में कैरोउसेल डु लौवर में एक स्वागत समारोह में भारतीय समुदाय को भी संबोधित किया।

10 अप्रैल, 2015: पेरिस के यूनेस्को परिसर में महर्षि अरबिंदो की मूर्ति को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

फ्रांस के न्यूवे-चैपल में प्रथम विश्व युद्ध मेमोरियल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी


जर्मनी

08 - 14 अक्टूबर 2018

पुस्तक अंश

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कनाडा के टोरंटो में एयर इंडिया मेमोरियल साइट पर पुष्पांजलि अर्पित करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

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हनोवर के मेयर को मधुबनी पेंटिंग भेंट करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

न देशों की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का अगला पड़ाव 12 अप्रैल को जर्मनी था। जर्मनी में, प्रधानमंत्री ने चांसलर एंजेला मार्केल के साथ एक व्यापार मेला हनोवर मेस्से का उद्घाटन किया। चांसलर मार्केल के साथ चर्चा में पीएम मोदी ने भारत और जर्मनी के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया। जर्मन सीईओज के साथ एक गोलमेज बैठक में, उन्होंने कहा कि उद्योग प्रमुखों को ‘पुरानी धारणाओं’ पर नहीं जाना

चाहिए, बल्कि खुद भारत आकर ‘नियामक वातावरण’ में हुए बदलाव को महसूस करना चाहिए। अनिवासी भारतीयों के साथ बातचीत करते हुए मोदी ने कहा कि भारत में वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की क्षमता है और अनिवासियों को भारत और जर्मनी के बीच एक पुल के रूप में कार्य करना होगा। इस यात्रा के सबसे महत्वपूर्ण परिणामों में, शिक्षा और शहरी विकास में सहयोग और भारत और यूरोपीय संघ के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) शामिल था।

जर्मनी के हनोवर में कुलेमानस्ट्रैसे स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल के साथ हनोवर मेस्से टेक्नोलॉजी मेले में स्थित भारतीय बूथ का भ्रमण करते हुए

हमने भारतीय विकास इंजन को फिर से सक्रिय किया है। हमारी अर्थव्यवस्था की विश्वसनीयता फिर से बहाल हुई है। भारत तेजी से वृद्धि और विकास के लिए एक

बार फिर से तैयार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जर्मनी के एक दैनिक ‘फ्रैंकफर्टर ऑल्गेमेइन जीइटंग’ में एक ओपेड लेख

मोदी की जर्मनी यात्रा जर्मन कंपनियों के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगी जो वर्तमान में भारत भर में विकसित होने वाली बुनियादी ढांचा से जुड़ी परियोजनाओं

की विस्तृत श्रृंखला में शामिल हो जाएंगी। इसमें हाई-स्पीड रेल नेटवर्क, औद्योगिक गलियारे और स्मार्ट शहरों समेत कई योजनाएं शामिल हैं। राजीव विश्वास, एशिया-पैसिफिक चीफ इकोनोमिस्ट, एनालिटिक्स फर्म आईएचएस


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खेल

08 - 14 अक्टूबर 2018

पद से बड़ा कद बिहार के मुंगेर जिला पुलिस बल की आरक्षी रंजीता ने अपनी मेहनत और जज्बे की बदौलत मात्र 32 साल की उम्र में एक बड़ी मिसाल पेश की है

मनोज पाठक

मतौर पर माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके पद से होती है, मगर बिहार के मुंगेर जिला पुलिस बल की आरक्षी (कांस्टेबल) रंजीता ने इसे गलत साबित कर दिया। रंजीता ने अपनी मेहनत और जज्बे की बदौलत मात्र 32 साल की उम्र में खुद का कद अपने पद से बड़ा कर लिया है। बिहार के भोजपुर जिले की रहने वाली रंजीता सिंह मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जब कांस्टेबल के पद पर नियुक्त हुई थीं, तब यह कोई नहीं जानता था कि वह इस क्षेत्र में एक बेमिसाल कहानी रच डालेंगी। भारतीय महिला फुटबॉल टीम

खास बातें

भारतीय महिला फुटबॉल टीम की सदस्य रह चुकी हैं रंजीता 10 साल से बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दे रही हैं इन दिनों 35 आदिवासी बच्चों को प्रशिक्षित कर रही हैं

की सदस्य रह चुकीं रंजीता पिछले 10 साल से बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दे रही हैं। अब यहां से प्रशिक्षित खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम में अपनी जगह बना रहे हैं। रंजीता मुंगेर जिला पुलिस बल में वर्ष 2008 में कांस्टेबल के तौर पर शामिल हुई थीं। उनके लिए यह जगह नई नहीं थी, क्योंकि पिता की नौकरी के दौरान वह कुछ समय तक उनके साथ यहां रह चुकी थीं। उन्होंने बताया, "जब मैं छोटी थी तो गंगा किनारे छोटे बच्चों को लोगों का सामान ढोते देखती थी। इसके बदले मिले पैसों से बच्चे नशा किया करते थे। कांस्टेबल की नौकरी मिलने के बाद मैंने इन बच्चों को इकट्ठा किया और इनका नामांकन स्कूल में कराया। कुछ दिन बाद उन्हें फुटबॉल का प्रशिक्षण देना शुरू किया। उसके बाद से यह काम बदस्तूर जारी है।" मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए रंजीता ने उन्हें फुटबॉल का प्रशिक्षण देना शुरू किया और बाद में उन्हें पढ़ाई से भी जोड़ा। कूड़ा-कचरा बीनने वाले बच्चों को साथ लेकर रंजीता ने 'चक दे फुटबॉल क्लब' बनाया, जिसमें न सिर्फ बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दिया, बल्कि सुबह और शाम में एक निजी शिक्षक की मदद से उन्हें ट्यूशन भी देना शुरू किया। विकास, भोला, अमरदीप सहित लगभग आधे दर्जन बच्चे आज दानापुर आर्मी ब्याज और साईं सेंटर का हिस्सा बन चुके हैं। रंजीता के इस कार्य

मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए रंजीता ने उन्हें फुटबॉल का प्रशिक्षण देना शुरू किया और बाद में उन्हें पढ़ाई से भी जोड़ा। कूड़ा-कचरा बीनने वाले बच्चों को साथ लेकर रंजीता ने 'चक दे फुटबॉल क्लब' बनाया में उनकी सहेली सुषमा बेसरा भी हाथ बंटा रही हैं। रंजीता इन दिनों भागलपुर के मिर्जाचौकी क्षेत्र के 35 आदिवासी बच्चों को प्रशिक्षित कर रही हैं। इन्हें वे मुंगेर स्थित अपने आवास पर नि:शुल्क आवासीय सुविधा तक उपलब्ध करा रही हैं। रंजीता बताती हैं कि मुंगेर के चार बच्चे पिछले वर्ष राष्ट्रीय फुटबॉल अंडर-13 टीम में, जबकि दो बच्चे राष्ट्रीय फुटबॉल टीम अंडर-19 में चयनित हुए हैं। सबसे बड़ी बात है कि रंजीता ने पुलिस में अपनी ड्यूटी करते हुए इन बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दिया है। रंजीता ऐसे बच्चों को प्रशिक्षण देती हैं जो आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हैं। बकौल रंजीता, "इस काम के लिए मुझे न तो किसी औद्योगिक घराने से कोई मदद मिली और न ही सरकार से। अपने वेतन और समय-समय पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मदद से ही बच्चों को प्रशिक्षण दे रही हूं। उन्हें खेल सामग्री भी समय-समय पर पुलिस अधिकारी ही उपलब्ध कराते हैं।" रंजीता प्रशिक्षण के दौरान अपने बच्चों को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की उस पंक्ति को जरूर याद कराती हैं, जिसमें उन्होंने ऊंचे सपने देखने की बात कही थी। पिछले दिनों राज्य के पुलिस महानिदेशक

अभयानंद ने अपने मुंगेर दौरे के दौरान रंजीता से मुलाकात की थी। पुलिस महानिदेशक ने इस काम के लिए शाबाशी देते हुए रंजीता को पांच हजार रुपए का पुरस्कार दिया था। पिछले महीने रंजीता को भागलपुर में तिलकामांझी राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया है। बिहार पुलिस अकादमी के महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय और तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य नलिनी कांत झा ने उसके कार्यो की सराहना की है। रंजीता इन कामों में मदद के लिए सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार कुमार कृष्णन की भी तारीफ करती हैं। रंजीता कहती हैं, "मुझे खुशी है कि मैं ऐसे बच्चों के लिए कुछ बेहतर कर पा रही हूं। मैंने फुटबॉल खेल के माध्यम से ही पुलिस की नौकरी हासिल की। आज जिला व राज्य को बेहतर फुटबॉल खिलाड़ी देने का प्रयास कर रही हूं।" रंजीता को इस काम में अपने परिजनों का भी सहयोग मिलता है। वह कहती हैं, "मेरे फैशन डिजाइनर पति रौशन राज भी इस कार्य से प्रसन्न हैं। वे जब भी यहां आते हैं, इन बच्चों की जरूरतों के बारे में पूछकर उसे पूरा करने की कोशिश करते हैं।"


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कही-अनकही

रीवा आई थी राज कपूर की बारात राज कपूर का विवाह तत्कालीन रीवा के आईजी करतार नाथ मल्होत्रा की बेटी कृष्णा मल्होत्रा के साथ संपन्न हुआ था। रीवा शहर को आज भी बॉलीवुड के ग्रेट शौमैन को अपना दामाद बनाने पर फख्र है

खास बातें कृष्णा और राज ने रीवा की स्मृति में बेटी का नाम रीमा रखा जिस बंगले में शादी हुई, वहां आज कृष्णा-राज कपूर ऑडिटोरियम पहली बार पिता पृथ्वीराज कपूर अपने बेटों को लेकर गए थे रीवा

समृति में ऑडिटोरियम

रा

एसएसबी ब्यूरो

ज कपूर के बारे में ये बात कम ही लोग जानते हैं कि वे मध्य प्रदेश के दामाद थे। ग्रेट शोमैन स्वर्गीय राज कपूर की रीवा से भावनात्मक स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। राज कपूर का विवाह तत्कालीन रीवा आईजी करतार नाथ मल्होत्रा की बेटी कृष्णा मल्होत्रा के साथ संपन्न हुआ था। रीवा से राज कपूर के रिश्ते की नींव महज 20 साल की उम्र में जुड़ गई थी। रीवा के कलाप्रेमियों को उस दौर के रंगमच से रूबरू कराने के लिए पृथ्वीराज कपूर की नाटक कंपनी इस शहर में पहुंची थी। उनके साथ दोनों बेटे राज कपूर और शम्मी कपूर भी थे। शम्मी उस समय 15 साल के और राज कपूर 20 साल के थे।

रंगमंच से मंडप तक

पृथ्वीराज कपूर की इस रंगमंचीय यात्रा ने कपूर खानदान से रीवा का रिश्ता प्रगाढ़ कर गई। उस वक्त करतार सिंह रीवा के आईजी थे। पृथ्वीराज कपूर उनके अतिथि बन गए। मेहमाननवाजी से शुरू हुआ पहचान का सिलसिला आगे चलकर रिश्ते में बदल गया। करतार नाथ सिंह की बेटी कृष्णा कपूर का राज कपूर से ब्याह तय हुआ। भारतीय सिनेजगत के ग्रेट शोमैन राज कपूर की बारात रीवा आई थी। ब्याह सरकारी बंगले में ही हुआ। बाराती रॉयल मेंशन (स्वागत भवन) में रूके थे। इस तरह रीवा का रिश्ता बॉलीवुड के उस महान परिवार से जुड़ गया, जिसकी हर पीढ़ी बड़े परदे पर धूम मचा रही हैं। हाल में जब कृष्णा कपूर का निधन

राज कपूर और कृष्णा जिस बंगले में परिणय सूत्र में बंधे थे, उसे अब ‘कृष्णाराज कपूर ऑडिटोरियम’ का रूप दे दिया गया है। इस ऑडिटोरियम का उद्घाटन इसी वर्ष जून में कपूर परिवार के सदस्यों की मौजूदगी में हुआ हुआ तो बॉलीवुड के साथ रीवा के लोग भी अपनी बेटी के निधन पर काफी दुखी थे।

बेटी का नामकरण

बहुत कम लोगों को जानकारी है कि राज कपूर और कृष्णा कपूर ने अपनी बेटी का नाम रीवा से प्रभावित होकर रीमा रखा था। माना जाता है कि इस शहर की

स्मृतियों को संजोए रखने के लिए बेटी को यह नाम दिया गया था। कृष्णा मल्होत्रा के भाई ख्याति प्राप्त कलाकार प्रेमनाथ और राजेंद्र नाथ मल्होत्रा थे। इन कलाकारों और रीवा से राज कपूर के साथ ही उनके छोटे भाई शम्मी कपूर का आत्मीय रिश्ता जुड़ गया था। शम्मी कपूर ने तैराकी और घुड़सवारी रीवा में ही सीखी थी।

राज कपूर और कृष्णा जिस बंगले में परिणय सूत्र में बंधे थे, उसे अब ‘कृष्णा-राज कपूर ऑडिटोरियम’ का रूप दे दिया गया है। इस ऑडिटोरियम का उद्घाटन इसी वर्ष जून में कपूर परिवार के सदस्यों की मौजूदगी में हुआ। राज कपूर स्मृति दिवस पर ऑडिटोरियम के लोकार्पण समारोह में मध्य प्रदेश के उद्योग मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने कहा, ‘रीवा वालों ने आज साबित कर दिया कि वे रिश्ते बनाते हैं तो रिश्ते निभाते भी हैं। स्वर्गीय राज कपूर का विवाह रीवा में जिस बंगले से हुआ था, वहीं पर कृष्णा-राज कपूर ऑडिटोरियम का भव्य शुभारंभ हो रहा है।’ प्रदेश के उद्योग मंत्री ने कहा कि जिस तरह लता मंगेशकर व किशोर कुमार के नाम पर इंदौर और खंडवा में राष्ट्रीय पुरस्कार देने के लिए समारोह होते हैं, उसी तरह रीवा में अभिनय तथा निर्देशन के क्षेत्र का राज कपूर राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाए और यह समारोह रीवा में आयोजित हो। विंध्य क्षेत्र में फिल्मों की शूटिंग की अपार संभावना है। शुक्ल ने कहा कि ऑडिटोरियम विंध्य की कलाओं, लोक नाट्य को नया आयाम देगा। रीवा की पहचान सफेद शेर के उद्भव स्थल के रूप में थी, लेकिन रीवा राज कपूर की ससुराल भी है। राज कपूर रीवा की ब्रांडिंग में सहायक साबित होंगे। समारोह के मुख्य अतिथि अभिनेता रणधीर कपूर ने भावपूर्ण उद्बोधन में कहा, ‘रीवा के लोगों ने मेरे माता-पिता के नाम पर ऑडिटोरियम बनाकर हमें सबसे बड़ी सौगात दी है। इसके लिए मेरा पूरा परिवार ही नहीं, पूरा फिल्म उद्योग रीवा और विशेषकर उद्योग मंत्री शुक्ल के आभारी हैं।’ इस समारोह में सुप्रसिद्ध गायक सुरेश वाडेकर ने मधुर गीत प्रस्तुत किए। अभिनेता अन्नू कपूर व अन्य कलाकारों ने भी रंगारंग प्रस्तुतियां दी।


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सुलभ संसार

सुलभ अतिथि

बुरकिना फासो जल एवं स्वच्छता मंत्री नियोगा एंबोराइस ओड्रेगो उनकी पत्नी ओड्रेगो केंड्रिब्योगो इवाओगो जोसेन के साथ बुरकिना फासो सरकार के कई अधिकारियों के सुलभ

असम की प्रसिद्ध कवयित्री, कहानीकारउपन्यासकार और स्तंभ लेखिका बबिता कोमल और उनके कारोबारी पति आशीष जैन के साथ बीडी इंडिया

08 - 14 अक्टूबर 2018

ग्राम आगमन पर सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक के साथ अलवर की पुनर्वासित स्कैवेंजर्स और वृंदावन की विधवा माताओं ने गर्मजोशी के साथ स्वागत किया।

प्राइवेट लिमिटेड, गुरुग्राम के प्रोडक्ट मैनेजर डॉ. डेविड ने सुलभ ग्राम के दौरे के दौरान यहां चल रही विभिन्न गतिविधियों में दिलचस्पी ली।

सकारात्मक सोच

सुनीता मिश्रा

क बार की बात है किसी राज्य में एक राजा था जिसका केवल एक पैर और एक आंख थी। उस राज्य में सभी लोग खुशहाल थे, क्योंकि राजा बहुत बुद्धिमान और प्रतापी था। एक बार राजा के विचार आया कि क्यों खुद की एक तस्वीर बनवाई जाए। फिर क्या था, देश विदेशों से चित्रकारों को बुलवाया गया और एक से एक बड़े चित्रकार राजा के दरबार में आए। राजा ने उन सभी से हाथ जोड़कर आग्रह किया कि वो

उसकी एक बहुत सुंदर तस्वीर बनाएं जो राज महल में लगाई जाएगी। सारे चित्रकार सोचने लगे कि राजा तो पहले से ही विकलांग हैं फिर उनकी तस्वीर को बहुत सुंदर कैसे बनाया जा सकता है, ये तो संभव ही नहीं है और अगर तस्वीर सुंदर नहीं बनी तो राजा गुस्सा होकर दंड देगा। यही सोचकर सारे चित्रकारों ने राजा की तस्वीर बनाने से मना कर दिया। तभी पीछे से एक चित्रकार ने अपना हाथ खड़ा किया और बोला कि मैं आपकी बहुत सुंदर तस्वीर बनाऊंगा जो आपको पसंद आएगी। फिर चित्रकार जल्दी से राजा की आज्ञा लेकर तस्वीर बनाने में जुट गया।

स्विस मिडिया के अर्नोड रॉबर्ट, श्री शंकराचार्य संस्कृति विश्वविद्यालय, कोचीन के 30 छात्रों

का समूह और कुछ अन्य आगंतुकों ने सुलभ ग्राम का दौरा किया।

लेखक और श्रवण कला के विश्व प्रसिद्ध जानकार सुसान पार्टनो, मनोचिकित्सक लू एेन, नुक्कड़ कला और ध्यान गुरु हयात अमीरी,

शांति प्रशिक्षक अगस्टिन वेलिएथ और नॉन वायलेंस मिशन फाउंडेशन, जेनेवा के अध्यक्ष (भारत) ने सुलभ ग्राम का दौरा किया।

काफी देर बाद उसने एक तस्वीर तैयार की जिसे देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और सारे चित्रकारों ने अपने दांतों तले उंगली दबा ली। उस चित्रकार ने एक ऐसी तस्वीर बनाई जिसमें राजा एक पैर को

मोड़ कर जमीन पर बैठा है और एक आंख बंद करके अपने शिकार पर निशाना लगा रहा है। राजा ये देखकर बहुत प्रसन्न हुआ कि उस चित्रकार ने राजा की कमजोरियों को छिपा कर कितनी चतुराई से एक सुंदर तस्वीर बनाई। राजा ने उसे खूब इनाम दिया । तो मित्रों, क्यों ना हम भी दूसरों की कमियों को छुपाएँ, उन्हें नजरअंदाज करें और अच्छाइयों पर ध्यान दें। इस कहानी से ये भी शिक्षा मिलती है कि कैसे हमें नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोचना चाहिए और किस तरह हमारी सकारात्मक सोच हमारी समस्याओं को हल करती है।


आओ हंसें

मैगी वापस नहीं

एक सुंदर लड़की परचून की दुकान पर गई। दुकान पर बनिए का सुंदर बेटा बैठा था। लड़की दुकान के पास जाकर थोड़ा शरमाई और प्यार से बोली: मझे तुमसे कुछ कहना है। लड़का: क्या? लड़की: मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो। तुम बहुत सुंदर भी हो। लड़का – तुम कुछ भी बोलो बहन जी, पर मैं मैगी का खुला पैकेट वापस नहीं करूंगा।

जीवन मंत्र

सु

डोकू -43

गरीब की आंखों में आशा, अमीर की आंखों में घमंड होता है

रंग भरो सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

महत्वपूर्ण तिथियां

• 8 अक्टूबर भारतीय वायु सेना दिवस, मुश ं ी प्रेमचंद स्मृति दिवस • 9 अक्टूबर विश्व डाक दिवस • 9 - 14 अक्टूबर राष्ट्रीय डाक सप्ताह • 10 अक्टूबर राष्ट्रीय डाक दिवस, चरखा दिवस, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस • 11 अक्टूबर लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती • 12 अक्टूबर विश्व दृष्टि दिवस, राममनोहर लोहिया स्मृति दिवस

बाएं से दाएं

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इंद्रधनुष

08 - 14 अक्टूबर 2018

1. समय (3) 3. मोम और तेल का मिश्रण (5) 6. मंजूर (3) 8. सुंदर (4) 10. झगड़ा, मनमुटाव (4) 11. नासिका (2) 13. बहुत ऊँचा मंच (3) 15. मस्जिद की प्रार्थना (3) 17. हाथ (2) 19. प्रयोजन, कामना, इच्छा (4) 20. परीश्रम (4) 23. कुशलता (3) 24. आनंद करने वाला (5) 25. बिलकुल (3)

सुडोकू-41 का हल विजेता का नाम जावेद इब्राहिम उत्तर प्रदेश

वर्ग पहेली-41 का हल

ऊपर से नीचे

1. ठिकाना (3) 2. चित्र (3) 3. मयूर (2) 4. छज्जे के नीचे वाली खिड़की (5) 5. आँख (3) 7. अभिलाषा (3) 9. नमकीन अचार (3) 12. उड़ीसा का एक शहर (3) 14. ऐसा कैदी जिसको किसी से मिलने की मनाही होती है (5) 16. मक्खन (3) 18. रमापति, भगवान विष्णु (3) 19. एक फूल जिसकी शराब बनती है (3) 21. गला (3) 22. तलहटी (3) 23. ग्रास (2)

कार्टून ः धीर

वर्ग पहेली - 43


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न्यूजमेकर

अनाम हीरो

08 - 14 अक्टूबर 2018

ऋतु सेन

स्वच्छता की ऋतु

एक कर्मठ आईएएस अधिकारी के रूप में ऋतु सेन ने महिलाओं की मदद से छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में जो स्वच्छता अभियान शुरू किया, वह आज एक प्रभावी मॉडल की शक्ल ले चुका है

स वर्ष भी स्वच्छता के क्षेत्र में नए प्रयोग के लिए छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर को पहला पुरस्कार मिला था। इससे पहले देश में दो लाख आबादी वाले शहरों की स्वच्छता में गत वर्ष अंबिकापुर जब पूरे देश में पहला शहर बना

तो उसके साथ वहां उल्लेखनीय कार्य करने वाली एक आईएस अधिकारी का नाम भी चर्चा में आया। यह अधिकारी हैं ऋतु सेन। अंबिकापुर को यह सम्मान दिलाने में तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सेन का दो वर्ष लंबा परिश्रम शामिल था। उन्होंने आमिर

गीता गोपीनाथन

अर्थशास्त्र की गीता

भारतीय मूल की गीता गोपीनाथ को आईएमएफ का प्रमुख अर्थशास्त्री नियुक्त किया गया है

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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में भारतीय मूल की प्रोफेसर गीता गोपीनाथ को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का प्रमुख अर्थशास्त्री नियुक्त किया गया है। वह मौरी ओब्सफेल्ड की जगह लेंगी। गीता गोपीनाथ इस वक्त हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्टडीज ऑफ इकनॉमिक्स में प्रोफेसर हैं। उन्होंने इंटरनेशनल फाइनेंस और मैक्रो इकनॉमिक्स में रिसर्च की है। आईएमएफ की प्रमुख क्रिस्टीन लगार्डे ने गीता गोपीनाथ की नियुक्ति की जानकारी देते हुए कहा, ‘गीता दुनिया के बेहतरीन अर्थशास्त्रियों में से एक हैं। उनके पास शानदार अकादमिक ज्ञान, बौद्धिक क्षमता और व्यापक अंतरराष्ट्रीय अनुभव है।’ आईएमएफ में इस पद पर पहुंचने वाली गीता दूसरी भारतीय हैं। उनसे पहले भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी आईएमएफ में प्रमुख अर्थशास्त्री रह चुके हैं। केरल सरकार ने गीता को पिछले साल राज्य का वित्तीय सलाहकार नियुक्त किया था। गीता का जन्म केरल में ही हुआ था। गीता अमेरिकन इकोनामिक्स रिव्यू की सह-संपादक और नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनामिक्स रिसर्च (एनबीइआर) में इंटरनेशनल फाइनेंस एंड मैक्रोइकनॉमिक की सह-निदेशक भी हैं। गीता ने व्यापार और निवेश, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट, मुद्रा नीतियां, कर्ज और उभरते बाजार की समस्याओं पर लगभग 40 रिसर्च लेख लिखे हैं। गीता ने ग्रेजुएशन तक की शिक्षा भारत में पूरी की है।

खान के शो ‘सत्यमेव जयते’ के एक एपिसोड से प्रभावित होकर यह निर्णय लिया था। उन्होंने इस एपिसोड में शामिल केसी श्रीनिवासन से संपर्क किया और फिर उनके सहयोग से ‘सॉलिड एंड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट’ के लिए एक कार्ययोजना बनाई। इसके लिए उन्होंने अंबिकापुर के आसपास की 430 महिलाओं का एक समूह बनाया और उन्हें ट्रेनिंग दिलाई। ऋतु की प्रेरणा से महिलाओं द्वारा शुरू की गई स्वच्छता की संस्कृति आज भी अंबिकापुर में प्रभावी दिख रही है। वे कचरा प्रबंधन ही नहीं करतीं हैं, बल्कि इससे उन्हें हर माह आय भी प्राप्त होती है। इन महिलाओं को बताना नहीं पड़ता है कि उन्हें

न्यूजमेकर

क्या करना है। महिलाएं सुबह निकलती हैं और हर घर से सूखा और गीला कचरा लेती हैं। फिर उसे कचरा निस्तारण केंद्र पहुंचाकर उसकी छंटाई करती हैं। गीले कचरे से खाद और बायो गैस बनने लगा है और ठोस कचरे की संसाधन के रूप में बिक्री होने लगी है। इस कार्य को देखने और समझने के लिए देश के विभिन्न गांवों के जनप्रतिनिधि और अधिकारी अंबिकापुर आने लगे हैं। अंबिकापुर के इस मॉडल को पूरे छत्तीसगढ़ में लागू किया गया है। बेहतर कचरा प्रबंधन के साथ अंबिकापुर में स्वच्छता को लेकर जो जागरुकता आई है, उस कारण अंबिकापुर नगर निगम को लगातार दो बार स्कॉच अवार्ड भी मिल चुका है।

मुजीब-उर-रहमान

इंसानियत का रहमान

परीक्षा दे रही मां के बच्चे को दुलारते पुलिसकर्मी को सोशल मीडिया की सलामी

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लिस को लेकर आमतौर पर लोगों में शिकायत ही रहती है। पर यह पूरा सच नहीं है। आज भी खाकी वर्दी में कई एेसे लोग हैं, जो न सिर्फ अपना फर्ज ईमानदरी से निभा रहे हैं, बल्कि वे मानवता के लिहाज से भी आदर्श पेश कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल होने के बाद ऐसे ही पुलिसकर्मी हैं मुजीब-उररहमान। रहमान तेलांगाना में हेड कांस्टेबल हैं। तेलंगाना में जब एक महिला अपने बच्चे के साथ परीक्षा देने पहुंची, तो वहां ड्यूटी पर रहमान ने उसके बच्चे को संभाला। उनकी ये तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हो गई। इस फोटो में रहमान एक बच्चे को दुलारते दिख रहे हैं। तेलंगाना के महबूनगर की जिला पुलिस प्रमुख आईपीएस अफसर रेमा राजेश्वरी ने सबसे पहले ट्विटर पर फोटो शेयर की है। उन्होंने बताया कि रहमान की ड्यूटी महबूनगर के बॉयज जूनियर कॉलेज में लगी थी, जबां एससीटीपीसी की परीक्षा हो रही थी। रेमा द्वारा पोस्ट की गई रहमान की फोटो 24 घंटे से कम में ही वायरल हो गई है। फोटो को अब तक ढाई हजार लोग रिट्वीट कर चुके हैं और 10 हजार लोगों ने इसे लाइक किया है। लोगों ने इस पुलिस कांस्टेबल को सलाम किया है और उनके इस भाव के लिए उनकी तारीफ की है।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 43


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