सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 22)

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मिसाल

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सामाजिक सुधार का ग्रीन ब्रिगेड

संग्रहालय

संस्कृति व विरासत का अनमोल खजाना

24 पुस्तक अंश

कौशल भारत योजना

26

कही-अनकही

29

लता ने माना अपना मॉडल

sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

वर्ष-2 | अंक-22 | 14 - 20 मई 2018

अल्पसंख्यक कल्याण का

स्वर्णिम दौर सबका साथ सबका विकास महज एक नारा नहीं, देश के सम्यक विकास का मूल मंत्र है और इसे जानने-समझने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय एक बेहतर कसौटी है, जिस पर केंद्र सरकार के कल्याण कार्यक्रमों को आसानी से परखा जा सकता है


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आवरण कथा

14 - 20 मई 2018

खास बातें ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मंत्र से अल्पसंख्यक कल्याण जनविकास योजना का दायरा 196 जिलों से बढ़कर 308 जिलों तक सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यकों की भागीदारी 5 से 9 प्रतिशत हुई

मु

एसएसबी ब्यूरो

ख्तार अब्बास नकवी का कद और साख भारतीय राजनीति में अगर लगातार बढ़ता गया है, तो इसके पीछे उनकी राजनीतिक सिद्धांतप्रियता, लोक कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता के अलावा उनकी समृद्ध पृष्ठभूमि का बड़ा हाथ है। नकवी 1974 के जयप्रकाश आंदोलन के उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें 1975 में आपातकाल के दौरान तब की सरकार ने जेल में डाल दिया था। राजनीति के क्षेत्र में इसे नकवी का क्रांतिकारी आगाज भी कह सकते हैं। नकवी के राजनीतिक गुरु समाजवादी नेता राजनारायण थे। गौरतलब है कि राजनारायण को उनके दौर में ही जनता ने ‘लोकबंधु’ के नाम से पुकारने लगी थी, जो उनकी जनपक्षधरता की राजनीति की बड़ी मिसाल है। चुनावी राजनीति में शुरुआती असफलता के बाद नकवी राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर तब पहली बार चमके जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री बनाया गया। मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार में नकवी अल्पसंख्यक कार्य मंत्री हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मंत्र पर काम कर रही है। इसी सोच के सरकार अल्पसंख्यक समाज के विकास और बेहतर जीवन के लिए एक के बाद एक कई योजनाएं ला रही है। अल्पसंख्यकों के कल्याण और समावेशी विकास के लिए अलग से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय पहले से है। नरेंद्र मोदी सरकार ने इस मंत्रालय की भूमिका और सार्थकता को नए सिरे से रेखांकित किया है। मौजूदा सरकार की दृष्टि और पहल का असर है कि बिना तुष्टीकरण के पूरे देश में अल्पसंख्यकों की स्थिति लगातार सुधरती जा रही है। आज अगर अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को कामकाज के लिहाज से सरकार के बेहतरीन मंत्रालयों में से एक माना जाता है, तो इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी के साथ इस मंत्रालय को प्रबल निष्ठा और कुशलता के साथ संभाल रहे मुख्तार अब्बास नकवी को जाता है।

बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रम का विस्तार

हाल ही में पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय

कैबिनेट की बैठक में कई जन-हितकारी फैसले लिए गए। इनसे जहां एक तरफ अल्पसंख्यकों का सामान्य रूप से लाभ पहुंचेगा, वहीं उनकी तरक्की के लिए अलग से भी कई अहम फैसले लिए गए। केंद्रीय कैबिनेट ने बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (एमएसडीपी) को प्रधानमंत्री जनविकास कार्यक्रम (पीएमजेवीके) के रूप में नामकरण करने और पुनर्गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने इसे 14वें वित्तू आयोग की शेष अवधि के दौरान जारी रखने को भी मंजूरी दे दी है। केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों के कल्याण की इस योजना का दायरा 196 जिलों से बढ़ाकर 308 जिलों में करने को स्वीकृति दी है। इसके लिए पिछले साल बजट में 3,972 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, जिसे 201920 तक खर्च होना है। अभी यह प्रोग्राम 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू है, जिसका विस्तार अब 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किया जाएगा। जिन राज्यों के ज्यादा से ज्यादा जिलों को इस कार्यक्रम के तहत लाभ मिलेगा, उनमें उत्तर प्रदेश (43), महाराष्ट्र (27), कर्नाटक, बंगाल और राजस्थान (16-16), गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, केरल (13-13), तमिलनाडु (12), मध्य प्रदेश

मोदी सरकार के आने से पहले वर्ष 2014 में सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यकों की भागीदारी मात्र पांच फीसदी थी। पर 2017 में यह भागीदारी बढ़कर नौ फीसदी से भी अधिक हो गई (8), हरियाणा और मणिपुर (7-7) और पंजाब (2) शामिल हैं। इस कार्यक्रम के तहत अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में स्कूल, छात्रावास आदि का निर्माण तथा अन्य विकास योजनाओं को चलाया जाएगा। इसके तहत 33 फीसदी से 40 फीसदी संसाधन खासतौर पर महिला केंद्रित परियोजनाओं के लिए आवंटित किया जाएगा।

सरकारी नौकरी में भागीदारी

मोदी सरकार के आने से पहले वर्ष 2014 में सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यकों की भागीदारी मात्र पांच फीसदी थी। पर 2017 में यह भागीदारी बढ़कर नौ फीसदी से भी अधिक हो गई। यह अल्पसंख्यकों के बीच आई जागरुकता की बड़ी मिसाल है, वहीं यह इस बात का सबूत भी है कि अल्पसंख्यकों के बीच न सिर्फ शिक्षा हासिल करने को लेकर ललक बढ़ी है, बल्कि वे अपनी इस ललक को उच्च शिक्षा और

रोजगार और रोजगार के मौके

योजनाएं सीखो और कमाओ उस्ताद नई मंजिल गरीब नवाज कौशल विकास योजना कुल लाभार्थी

रोजगार परक कौशल विकास कार्यक्रम 2014 के बाद 2014 से पहले 3,17,290 20,164 19,704 0 1,00,000 0 1,06,600 0 5,43,594 20,164

उससे आगे सम्मानित सेवाओं से जुड़ने तक जारी रखने को लेकर उत्सुक हैं।

सिविल सेवा में सर्वाधिक अल्पसंख्यक

सिविल सेवा परीक्षा में अल्पसंख्यक वर्ग के सफल उम्मीदवारों की संख्या में लगभग 90 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इस वर्ष सिविल सेवा में 120 से ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के युवा चयनित हुए हैं, जिनमें से 52 मुस्लिम समुदाय से हैं। आजादी के बाद पहली बार अल्पसंख्यक समुदाय के इतने उम्मीदवार सिविल सेवा में चयनित हुए हैं।

सीखो और कमाओ योजना

अल्पसंख्यक समुदाय के रोजगार के लिए सरकार ‘सीखो और कमाओ’ योजना लेकर आई। इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं की योग्यता, बाजार में संभावना को देखते हुए उनकी कौशल क्षमता को और बढ़ाना है, ताकि अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं को बेहतर रोजगार प्राप्त हो सके। इस योजना के तहत कम से कम 75 प्रतिशत प्रशिक्षुओं का रोजगार सुनिश्चित किया गया है और इसमें से कम से कम 50 प्रतिशत नियोजन संगठित क्षेत्र में होगा। योजना का कार्यान्वयन केरल सहित पूरे देश में चुनिंदा परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों (पीआईएज) के माध्यम से किया जाता है। 2017 तक अकेले केरल से 1700 अल्पसंख्यक युवाओं को पीआईएज ने प्रशिक्षित किया है।


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आवरण कथा

नगीने की तरह हैं नकवी

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शायराना और चुटीले अंदाज में अपनी बात कहने वाले मुख्तार अब्बास नकवी मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री हैं। उनका निजी जीवन और सियासी सफरनामा साधारण के असाधारण में बदलने की दिलचस्प दास्तान है

मतौर पर सवालों के जवाब या अपनी बात शायराना अंदाज में करने वाले भारत सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की शख्सियत का ही यह कमाल है कि न सिर्फ उनके समर्थक बल्कि अन्य लोग भी उनकी तारीफ ही करते हैं। वैसे भी वे एक ऐसे राजनेता हैं, जो जरूरतमंदों की मदद के लिए हर संभव तैयार रहते हैं। यह भी कि जरूरी नहीं कि कोई फरियाद लेकर आने वाले उनके क्षेत्र या सूबे का ही हो, बल्कि वे हर समय हर किसी की मदद के लिए तत्पर दिखते हैं। मददगार के साथ मिलनसार होने की उनकी खासियत ने ही उन्हें आज उन राजनेताओं की कतार में लाकर खड़ा कर दिया है, जो मशहूर तो हैं ही, साथ ही कामयाब भी माने जाते हैं। पर यह सब नकवी की जिंदगी में रातोरात नहीं हुआ, इसके पीछे उनका लंबा संघर्ष भी है। इलाहाबाद के हंडिया तहसील में प्रतापपुर ब्लॅाक पड़ता है। यहीं एक छोटा सा गांव है भदारी। इस गांव में अख्तारुल हसन एक पारखी रत्न व्यापारी थे। वे बरेली में रत्नों का व्यापार करते थे। उन्हीं के घर में 15 अक्टूबर 1957 को मुख्तार के रूप में एक अनमोल रत्न ने जन्म लिया। आज मुख्तार अब्बास नकवी के पिता तो दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके इस पैतृक गांव में परिजन उनकी यादें संजोए हुए हैं। नकवी मुहर्रम के साथ गांव-इलाके के किसी बड़े कार्यक्रम पर घर आना नहीं भूलते हैं। उनके भाई हैदर बताते हैं कि वे आज भी जब घर आते हैं तो राजनीतिक सितारा बनकर नहीं, बल्कि नकवी के रूप में सबका दुलारा ही बनकर आते हैं और वैसे ही जमीन पर बैठकर साथ खाना और हंसना होता है। जैसे बचपन से होता आया है।

ऐसे सीखी राजनीति

पार्टी से जुड़े होने के साथ ही राजनारायण से स्कूल लाइफ खत्म होने के बाद जैसे ही नजदीकी ने नकवी के लिए चुनावी रास्ते खोल नकवी ने कॉलेज की राह पकड़ी। उनका मन दिए। जनता पार्टी ने सबसे पहले उन्हें चुनाव के राजनीति में लग गया। पहले वह घर से रोज लिए टिकट दिया। नकवी ने यूपी विधानसभा कॉलेज आया-जाया करते थे। फिर वे शहर में ही चुनाव में उतरे। इलाहाबाद पश्चिम सीट से पहला रहकर पढ़ाई करने लगे। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ही चुनाव नकवी हार गए। 1989 में नकवी को में पढ़ाई के दौरान पहली टिकट नहीं दिया बार जब वे समाजवादी अपनी शिक्षा-दीक्षा व राजनीति की बारीक समझ नकवी ने कई किताबें गया तो वे अयोध्या नेता राजनारायण से मिले भी लिखी हैं। उनकी अब तक तीन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें विधानसभा सीट से तो मानो वशीभूत हो निर्दलीय प्रत्याशी के स्या ह (1991), दंगा (1998) और वैशाली (2007) शामिल हैं गए। उन्हें उनका रंग-ढंग तौर पर चुनाव लड़े अंदाज भा गया। नकवी और फिर हार गए। भी अब वह सत्ता के विपरीत दिशा में बहना कद बढा रहे थे। जनता पार्टी में सदस्यता के फिर यूपी की मऊ विधानसभा सीट पर किस्मत चाह रहे थे। क्योंकि उसमें उन्हें मजा आ रहा बाद से उनकी जिम्मेदारी बढ़ी और 1978-79 अजमाने पहुंचे। यहां लगातार तीन विधानसभा था। नकवी लोक आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे, में युवा जनता (जनता पार्टी की युवा इकाई) के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। जिससे उनकी न ज द ी क ी उपाध्यक्ष बना दिए गए। नकवी की किस्मत के बंद ताले जनता दल से भाजपा के बनने के बाद खुले। भाजपा में दिलचस्प फसाना आते ही नकवी को 1992 से 1997 तक भारतीय कॉलेज में डै​शिंग नेता कहे जाने वाले मुख्तार जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया अब्बास के जीवन में एक बड़ा दिलचस्प गया। साथ ही उनको फिर से चुनाव लड़ने का वाकया भी हुआ , जो उनकी जिंदगी का मौका मिला। पर इस बार चुनाव विधानसभा बेशकीमती पल था। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में के बजाय लोकसभा का था। नकवी भाजपा के पढाई के दौरान ही वे कालेज की छात्रा सीमा टिकट पर 19 9 8 में रामपुर से लोकसभा का से प्रेम कर बैठे। लेकिन आगे का रास्ता बहुत चुनाव लड़े। 1998-99 में पहली बार नकवी कठिन था। क्योंकि दोनों अलग समुदाय के बारहवीं लोकसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित थे। जमकर हंगामा हुआ। परिजन शादी के हुए। यह पहला मौका था, जब भाजपा से कोई पूरी तरह खिलाफ थे। अफवाह फैली की सीमा मुस्लिम चेहरा लोकसभा सांसद बना था। सांसद एक कद्दावर हिंदू नेता की बेटी हैं। हालांकि जीतकर नकवी सीधे अटल बिहारी वाजपेयी यह सच था कि सीमा हिंदू थीं। लेकिन सीमा सरकार में सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री बन को जिनकी बेटी कहा जा रहा था, दरअसल गए। इसके बाद नकवी ने कभी पीछे मुड़कर उन्होंने कभी शादी ही नहीं की थी। 3 जून 1983 नहीं देखा और नित नई उंचाईयां छूते गए। को नकवी ने कोर्ट मैरेज की और फिर मुस्लिम रीति-रिवाज से निकाह व हिंदू रिवाज से शादी बढ़ता गया कद 2000 में नकवी को बड़ा पद मिला और भारतीय कर ली। जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया। भाजपा ने बदली तकदीर फिर तो नकवी भाजपा के मुख्य धड़े की जान नकवी ने मास कम्यूनिकेशन से स्नातकोत्तर बन गए। अपने खास अंदाज से वे भाजपा के के साथ डिप्लोमा पूरा किया मुस्लिम चेहरों के नायाब स्तंभ बन गए। 2002 और पूरी तरह से में राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और 2003 राजनीति में उतर में उन्हें राष्ट्रीय हज कमेटी का सदस्या बना आए। जनता दिया गया। जनवरी 2006 में नकवी को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है और यह पद आज भी बरकरार है। 2010 के राज्यसभा चुनावों में भी नकवी ने जीत दर्ज की। मौजूदा मोदी सरकार में नकवी अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री हैं। अपनी शिक्षा-दीक्षा व राजनीति की बारीक समझ नकवी ने कई किताबें भी लिखी हैं। उनकी अब तक तीन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें स्याह (1991), दंगा (1998) और वैशाली (2007) शामिल हैं। राजनारायण से बहुत अधिक बढ़ गई। नई उम्र के नकवी में जोश की कमी तो थी नहीं, इसीलिए वे आंदोलन में बढ़- चढ़कर हिस्सा लेते। आपातकाल में नकवी को भी जेल जाना पड़ा। पर तब तक नकवी को राजनीति की हर सीख मिल चुकी थी और वह निरंतर अपना


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आवरण कथा

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महिला सशक्तीकरण नई रोशनी-अल्पसंख्यक महिलाओं के नेतृत्व क्षमता विकास योजना मेधावी बालिकाओं के लिए बेगम हजरत महल छात्रवृत्ति शैक्षिक सशक्तीकरण हेतु कुल छात्राओं को स्कॉलरशिप गरीब नवाज कौशल विकास योजना कुल लाभार्थी

प्रोग्रेस पंचायत योजना

रोजगार परक कौशल विकास कार्यक्रम 2014 के बाद 2014 से पहले 2,95,000 97,825 2,57,908

1,49,382

121 लाख

90.5 लाख

1,06,600 5,43,594

0 20,164

2016 में हरियाणा के मेवात जिले से ‘प्रोग्रेस पंचायत’ की शुरुआत हुई। बाद में हरियाणा के अलावा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और अन्य कई राज्यों में यह आयोजित हुई। प्रोगेस पंचायत के माध्यम से केंद्र सरकार की योजनाओं की जानकारी पंचायत के लोगों तक पहुंचाई जाती है।

उस्ताद योजना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अल्पसंख्यकों की पारंपरिक कला और समुदाय से संबंधित हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास तथा प्रशिक्षण योजना ‘उस्ताद’ शुरू की गई। इस योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यक कामगारों को बड़े बाजार नेटवर्क का हिस्सा बनाना है। दरअस्ल, अशिक्षा, अज्ञानता और गरीबी के चलते इस वर्ग के अनेक लोग अपनी कलाओं से दूर हो रहे थे। पारंपरिक धरोहरों के प्रति इस विमुखता को देखते हुए ही सरकार ने इस योजना को आरंभ किया और इसमें ऐसी नीतियों को प्रमुखता दी थी, जिससे इस स्थिति में परिवर्तन लाया जा सके। साथ ही पारंपरिक कौशलों, डिजाइन विकास, क्षमता निर्माण और उस्ताद दस्तकारों और हस्तशि‍ल्पियों के पारंपरिक कौशल को बढ़ाने संबंधी मानक भी निर्धारित किए जा सकें और कौशलों का संरक्षण भी हो सके। इस योजना के लक्ष्यों में एक उद्देश्यो यह भी रहा कि विभिन्न पारंपरिक कलाओं में संलग्न अल्पसंख्यक युवाओं को इस कला में दक्ष-प्रवीण दस्तकारों और हस्तशिल्पियों द्वारा अतिरिक्त प्रशिक्षण दिलाया जा सके। डिजाइन

नवोदय की तर्ज पर विशेष स्कूल

सरकार नवोदय स्कूल की तर्ज पर 105 स्कूल खोलेगी। इनमें सौ स्कूल नवोदय की तर्ज पर अल्पसंख्यक बहुल्य इलाकों में खोले जाने हैं

रेंद्र मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। यह निर्णय है सरकार द्वारा नवोदय विद्यालयों की तर्ज पर अल्पसंख्यक समुदाय के लिए विशेष स्कूल खोलने का। इस बारे में अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी बताते हैं, ‘इससे अल्पसंख्यक छात्रों को बेहतरीन शिक्षा दी जा सकेगी। सरकार इनमें लड़कियों के लिए 40 प्रतिशत सीटें आरक्षित रखेगी।’ दरअसल, ग्रामीण क्षेत्रों में नवोदय विद्यालय सरकार ने पहले से खोल रखे हैं। इनमें मुफ्त भोजन के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा रही है। सरकार इस तर्ज पर 105 स्कूल खोलेगी। इनमें सौ स्कूल नवोदय की तर्ज पर अल्पसंख्यक बहुल्य इलाकों में खोले जाने हैं जबकि पांच अन्य शैक्षणिक संस्थान इस समुदाय के लोगों के लिए खोलने की योजना है। अपग्रेडेशन, उत्पाद श्रेणी विकास, पैकेजिंग, प्रदर्शनी जैसी गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईएफटी), राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) और भारतीय पैकेजिंग संस्थान (आईआईपी) की सहायता लेना भी इस योजना का हिस्सा रहा है। इसके अलावा बिक्री बढ़ाने के लिए ई-बाजार पोर्टल और ब्रांड निर्माण के लिए इन संस्थानों का सहयोग आपेक्षित रहा है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए ई-वाणिज्य पोर्टल के साथ समन्वय स्थापित किया गया।

नई उड़ान

अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए फ्री कोचिंग उपलब्ध कराने के लिए ‘नई उड़ान’ योजना लागू की गई।

गौरतलब है कि बहुक्षेत्रीय विकास योजना (एमएसडीपी) के तहत विभिन्न अल्पसंख्यक क्षेत्रों में 200 से अधिक विद्यालयों की इमारतें हैं, जो अप्रयुक्त हैं। स्कूल इन्हीं भवनों में शुरू किए जाने की योजना है। मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन (एमएईएफ) को सरकार ने इस योजना के बारे में सर्वे की जिम्मेदारी दी थी। इसमें मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई, सिख, पारसी व जैन समुदाय के लोगों के बीच शिक्षा के स्तर का पता लगाना था। फाउंडेशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए एक त्रिस्तरीय योजना पर काम करने के जरूरत है। सुझाव मॉडल में 211 स्कूलों, 25 सामुदायिक महाविद्यालयों और पांच संस्थानों को खोलकर प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्तर पर शिक्षा प्रदान करने के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण करना शामिल है। इस योजना के तहत केंद्र और राज्य सरकार के ग्रुप ‘ए’, ‘बी और ‘सी’ सहित बाकी सभी समकक्ष पदों के लिए तैयारी भी इस योजना में शामिल है। योजना के अंतर्गत स्थानीय छात्रों को 1,500 रुपए और घर से बाहर रहकर पढ़ाई करने वाले छात्रों को 3,000 रुपए दिए जाते हैं।

नई मंजिल

नई मंजिल योजना 8 अगस्त, 2015 से शुरू हुई। उसका उद्देश्य उन अल्पसंख्यक युवाओं को लाभ पहुंचाना है, जिनके पास औपचारिक स्कूल प्रमाणपत्र नहीं है, जिसने बीच में स्कूली पढ़ाई छोड़ दी या फिर मदरसों जैसे सामुदायिक शिक्षा संस्थानों में पढ़े हैं। उन्हें औपचारिक शिक्षा तथा कौशल प्रदान करने के उद्देश्य से तथा उनको संगठित क्षेत्र में बेहतर रोजगार प्राप्त करने के योग्य बनाने


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आवरण कथा

मंत्रालय के बजट में 505 करोड़ रुपए का इजाफा

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पिछले चार साल में मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के बजट में करीब 5 सौ करोड़ की बढ़ोत्तरी की है

ल्पसंख्यकों के कल्याण को लेकर सरकार का यह रुख काबिले तारीफ है। गौरतलब है कि यूपीए सरकार ने 2006 में अल्पसंख्यकों के विकास लिए अलग मंत्रालय का गठन किया था। तत्कालीन यूपीए सरकार ने पहली बार 2006 में अल्पसंख्यक कल्याण के लिए 143 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। उसके बाद से लगातार इस मद में बजट में बढ़ोत्तरी की गई। 2009-10 के बजट में अल्पसंख्यक कल्याण की मद में 740 करोड़, 2010-11 में 760 करोड़, 2011-12 में 330 करोड़ और 2012-13 में 305 करोड़ रुपए का इजाफा किया गया था। यह इजाफा नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद थमा नहीं, बल्कि और बढ़ता ही गया। जबकि मौजूदा सरकार के आने के बाद आशंका यहां तक जताई गई थी कि यह सरकार भिन्न विचारधारा और प्रतिबद्धताओं वाली है, लिहाजा वह अल्पसंख्यक मंत्रालय को ही खत्म करने का फैसला ले सकती है। पर मोदी सरकार ने ऐसा नहीं किया। इतना ही नहीं अल्पसंख्यकों के विकास के लिए केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाला बजट भी कम नहीं हुआ, बल्कि साल दर साल बढ़ता ही गया। पिछले चार साल में मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के बजट में करीब 5 सौ करोड़ की बढ़ोत्तरी की है। यह बढ़ोत्तरी किसी सूरत में मामूली नहीं ठहराई जा सकती है बल्कि इससे जाहिर होता है कि यह सरकार मुसलमानों और

देश के दूसरे अल्पसंख्यकों के विकास के लिए लगातार प्रयत्नशील है और वह इसके लिए प्रतिबद्धता के साथ कई योजनाओं को चला भी रही है।

मोदी सरकार का पहला बजट

2014 में प्रचंड बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता संभाली। सरकार ने अपना पहला बजट 2014-15 में पेश किया। आलोचकों और विरोधियों को लग रहा था कि मोदी सरकार अल्पसंख्यक मंत्रालय को कोई खास तवज्जो नहीं देगी, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इन आशंकाओं को गलत साबित करते हुए अपने मूल मंत्र 'सबकासाथ, सबका-विकास' के तहत अल्पसंख्यकों के लिए अपने पहले बजट में 3711 करोड़ रुपए का धन आवंटित किया। 2013-14 में यूपीए सरकार ने 3511 करोड़ रुपए दिए थे। इस तरह मोदी सरकार ने यूपीए

सरकार के आखिरी बजट की तुलना में 200 करोड़ रुपए अल्पसंख्यकों को ज्यादा दिया।

बजट की तुलना में करीब 88 करोड़ की बढ़त दर्ज की गई।

मौजूदा सरकार ने दूसरा बजट 2015-16 में पेश किया। इस बार अल्पसंख्यक कल्याण के लिए मोदी सरकार ने बजट में 3712.78 करोड़ रुपए आवंटित किए। इस तरह मोदी सरकार ने अपने पहले बजट की तुलना में पौने दो करोड़ रुपए का इजाफा किया।

पिछले साल अपने चौथे बजट में मोदी सरकार अल्पसंख्यकों पर खूब मेहरबान नजर आई। 2017-18 के बजट में मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक कल्याण के लिए 4194 करोड़ रुपए आवंटित किया। पिछले बजट की तुलना में यह 395 करोड़ का इजाफा था। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने इसे अब तक की सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी बताया था। ये अल्पसंख्यक मंत्रालय के इतिहास में सबसे ज्यादा था। भाजपा के सत्ता में आने के बाद पिछले चारों बजट को देखें तो करीब 500 करोड़ रुपए का इजाफा था।

मोदी सरकार का दूसरा बजट

मोदी सरकार का तीसरा बजट

मोदी सरकार ने अपना तीसरा बजट 2016 में पेश किया। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मोदी सरकार के 2016-2017 के बजट में भी अल्पसंख्यकों पर मेहरबानी दिखाई। सरकार ने अल्पसंख्यक कल्याण के लिए 3800 करोड़ रुपए आवंटित किए। इस तरह पिछले

वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा पेश आम बजट में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिए 4700 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है

मोदी सरकार का चौथा बजट

मोदी सरकार का पांचवा बजट

नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्ष 2018-19 के लिए केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के बजट आवंटन में करीब 505 करोड़ रुपए की बढ़ोत्तरी की है। वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा पेश आम बजट में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिए 4700 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। वर्ष 2017-18 में मंत्रालय के लिए 4195 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जबकि 2016-17 में 3800 करोड़ रुपए आवंटित हुए थे। अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने अपने मंत्रालय के बजट में वृद्धि को ‘रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी’ करार दिया। उन्होंने नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरूण जेटली का आभार प्रकट करते हुए कहा, ‘अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के बजट में इस रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी से सभी अल्पसंख्यक तबकों के ‘सम्मान के साथ सामाजिक-आर्थिक-शैक्षणिक सशक्तीकरण’ में मदद मिलेगी।’

हुनर हाट

2014 के बाद 2014 से पहले अल्पसंख्यक समुदायों के पारंपरिक कारीगरों और इससे पहले ऐसी कोई पहल शिल्पकारों को स्व-रोजगार, बाजार और अवसर मुहैया नहीं हुई। कराने के लिए एक प्रभावी मंच। 2016-17 से 2017-18 के दौरान छह हुनर हाट का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया और यह 1.18 लाख से अधिक कारीगरों एवं उनसे संबंधित अन्य लोगों को रोजगार या रोजगार परक अवसर मुहैया कराने में सफल रहे हैं और देश के विभिन्न भागों में और हुनर हाटों का आयोजन किया जा रहा है और 2018 के अंत तक ये आंकड़े 2 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है।

के लिए सरकार ने योजना बनाई। इसके तहत एक कोर्स शुरू किया गया, जो एक वर्ष का है। इस कोर्स में अल्पसंख्यक छात्रों में निखार लाया जाएगा और

उन्हें अन्य छात्रों की तरह बोर्ड परीक्षा देने योग्य बनाया जाएगा। यह कोर्स सभी विश्वविद्यालयों में मान्य होगा।


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आवरण कथा

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हज प्रक्रिया

हज

स्वरोजगार हेतु आर्थिक मदद 2014 के बाद

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक स्वरोजगार और शिक्षा के विकास एवं वित्त निगम लिए 6,30,000 लाभार्थियों (एनएमडीएफसी) को आर्थिक मदद।

पिछले केवल 48 महीनों में ही अल्पसंख्यकों को शिक्षा और रोजगार के लिए 1979 करोड़ रु. की राशि के रियायती दर पर ऋण वितरित किए गए।

विभिन्न योजनाओं के • शिक्षा के लिए रियायती अधीन रियायती ऋण ऋण सीमा 20 लाख रु. और सीमा विदेश में अध्ययन के लिए 30 लाख रु. तक बढ़ाई गई। • सावधि ऋण योजना के अधीन रियायती ऋण सीमा 30 लाख रु. तक और सूक्ष्म वित्त योजना के अधीन स्व-सहायता समूह के प्रत्येक सदस्य के लिए 1.50 लाख रु. तक बढ़ाई गई।

2014 से पहले

स्वरोजगार और शिक्षा के लिए 6,93,961 लाभार्थियों को आर्थिक मदद।

योजना के आरंभ से जो कि 2006-07 से 2013-14 तक अल्पसंख्यकों को शिक्षा और रोजगार के लिए 1786 करोड़ रु. की राशि के रियायती दर पर ऋण वितरित किए गए। • शिक्षा के लिए रियायती ऋण सीमा 10 लाख रु.थी और विदेश में अध्ययन के लिए 20 लाख रु.थी।

• सावधि ऋण योजना के अधीन रियायती ऋण सीमा 10 लाख रु. थी और सूक्ष्म वित्त योजना के अधीन स्व-सहायता समूह के प्रत्येक सदस्य के लिए 50 हजार रु. तक बढ़ाई गई थी।

मिनीमम गर्वंमेंट, मैक्सिमम ऐसी कोई पहल नहीं हुई। गर्वर्नेंस को ध्यान में रखते हुए लोगों की सुविधा के लिए प्रमाण-पत्रों की स्व-घोषणा और स्व-प्रमाणन प्रारंभ किया गया। मोबाइल ऐप्प की शुरुआत की ऐसी कोई पहल नहीं हुई। गई और आईवी आरएस हेल्प लाइन सुविधा शुरू की गई।

2014 के बाद आजादी के बाद पहली बार सर्वाधिक (1लाख 75 हजार) भारतीय हज यात्री हज करने जाएंगें। आजादी के बाद पहली बार हज सब्सिडी खत्म की गई। हज सब्सिडी खत्म होने के बावजूद हवाई किराए में गैर-जरूरी बढोत्तरी नहीं होने दी गई। पहली बार हज यात्रियों केा वैकल्पिक हवाई अड्डों से हज यात्रा की सुविधा दी गई। पहली बार बिना महरम के महिलाएं हज पर जा रहीं हैं। संपूर्ण हज प्रक्रिया ऑनलाइन-डिजिटल की गई। प्राईवेट टूर आपरेटर्स के कामकाज की संपूर्ण प्रक्रिया पारदर्शी, सरल, साफ-सुथरी बनाई गई। पहली बार वेब पोर्टल पर प्राइवेट टूर आपरेटर्स का ब्यौरा डाला गया।

मुख्यधारा की शिक्षा देने वाले मदरसों को आधुनिक बनाने के लिए थ्री टी योजना लागू की गई है। थ्री टी यानी टॉयलेट, टिफिन और टीचर। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने मदरसों में एक लाख से ज्यादा शौचालय बनवाने का लक्ष्य रखा है शिक्षा और कौशल विकास केंद्र

देशभर में 100 नए गरीब नवाज कौशल विकास केंद्र खोले गए, जहां अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं के लिए विभिन्न रोजगार आधारित पाठ्यक्रम कराए जा रहे हैं। इसी तरह, अल्पसंख्यक आबादी बहुल इलाकों में गुरुकुल की तरह 39 आवासीय विद्यालय खोले गए हैं। साथ ही, सद्भाव मंडप बनवाए गए हैं, जिसके तहत 809 विद्यालय भवन, 10 डिग्री कॉलेज, 371 छात्रावास, 1392 शौचालयों व पेयजल सुविधाओं के अलावा 53 आईटीआई और बहुउद्देशीय समुदाय केंद्रों का निर्माण कराया गया है।

फाउंडेशन’ (एमएईएफ) ने मुस्लिम लड़कियों की मदद के लिए यह कदम उठाने का फैसला किया। एमएईएफ का कहना है कि इस योजना का मकसद सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम लड़कियों और उनके अभिभावकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना है कि लड़कियां विश्वविद्यालय या कॉलेज स्तर की पढ़ाई पूरी कर सकें। इस कदम को अभी आरंभिक तौर पर ‘शादी शगुन’ नाम दिया गया है।

टॉयलेट, टिफिन और टीचर

‘सबका साथ, सबका विकास’ के मंत्र को साकार करने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय ने समावेशी विकास की कई नीतियां और योजनाएं धरातल पर उतारी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अल्पसंख्यकों की बुनियादी विकास की नीतियों को ‘3ई’ के जरिए गति प्रदान की है। एजुकेशन, इंप्लायमेंट एवं इंपावरमेंट- को आधार बनाकर विकास की मुख्यधारा में अल्पसंख्यक समुदायों के गरीबों, पिछड़ों तथा निर्बल वर्गों को शामिल करने की सोच के साथ कई योजनाएं आगे बढ़ रही हैं।

मुख्यधारा की शिक्षा देने वाले मदरसों की मदद करने और पारंपरिक शिक्षा केंद्र को आधुनिक बनाने के लिए सरकार थ्री टी योजना लागू की गई है। थ्री टी यानी टॉयलेट, टिफिन और टीचर। इस वित्तीय वर्ष में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने देशभर के मदरसों में एक लाख से ज्यादा शौचालय बनवाने का लक्ष्य रखा है। मुख्यधारा की शिक्षा देने वाले मदरसों में बच्चों को ‘मिड डे मील’ या ‘मध्याह्न भोजन योजना’ शुरू कर दिया है। इसके अलावा मंत्रालय ने मदरसा टीचरों के लिए ‘अपग्रेड कौशल योजना’ भी शुरू करने का फैसला किया है, इससे शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार होगा। उन्हें समय की जरूरतों के हिसाब से प्रशिक्षित भी किया जा सके।

अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों को उच्च शिक्षा के मकसद से प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र सरकार उन अल्पसंख्यक लड़कियों को 51,000 रुपए की राशि बतौर ‘शादी शगुन’ देगी जो स्नातक की पढ़ाई पूरी करेंगी। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की अधीनस्थ संस्था ‘मौलाना आजाद एजुकेशन

अल्पसंख्यकों की परंपरागत कलाओं के संरक्षण के लिए 14 मई, 2015 को यूएसटीटीएडी योजना शुरू की गई। इसके तहत मास्टर शिल्पियों और कर्मकारों के परंपरागत कौशल को ‘स्टेट ऑफ द आर्ट’ बनाने

थ्री ई (एजुकेशन, इंप्लायमेंट एवं इंपावरमेंट)

शादी शगुन योजना

यूएसटीटीएडी (परंपरागत कलाओं के विकास और प्रशिक्षण का उन्नयन)


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वक्फ मामले

2014 के बाद वामसी ऑनलाइन मॉड्यूल में दर्ज वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्डों में से कुल1,64,641 का डिजीटलीकरण हुआ।

2014 से पहले वामसी ऑनलाइन मॉड्यूल में दर्ज वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्डों में से कुल1,15,913का डिजीटलीकरण हुआ।

वक्फ अधिनियम के अधीन पहली बार 20.01.2017 को न्याय निर्णयन बोर्ड गठित किया गया।

पहले नहीं था।

वक्फ संपत्ति पट्टा नियमावली तैयार की गई और 2014-15 में अधिसूचित की गई।

पहले नहीं था।

विशेष प्रावधानों के साथ कौमी वक्फ बोर्ड तरक्कियाती योजना बनाई गई, जैसे राज्य वक्फ पहले नहीं था। बोर्डों द्वारा वक्फ अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन और राज्य वक्फ बोर्डों के बेहतर प्रशासन के लिए विधिक सहायक, जोनल वक्फ अधिकारी, सर्वेक्षण सहायक और सहायक प्रोग्रामरों की नियुक्ति। प्रक्रिया अपनाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए नियमित मुतवल्ली बैठकें/सम्मेलन तथा मुतवल्ली पुरस्कार योजना शुरू की गई।

पहले नहीं था।

वक्फ संपत्तियों को अतिक्रमण से बचाने तथा अनाधिकृत हस्तक्षेप रोकने हेतु सरकार ने राष्ट्रीय दूर संवेदी केंद्र द्वारा सबसे पहले उन संपत्तियों की मैपिंग कराई और फिर उनके संरक्षण हेतु पर्याप्त व्यवस्था की गई संरक्षण भी सुनिश्चित हो। इसके लिए इन इमारतों के रख-रखाव पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। हमारी धरोहर योजना प्रारंभ करने का मूल उद्देश्य भी यही है। ‘द एवरलास्टिंग फ्लेम इंटरनेशनल प्रोग्राम’ इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए शुरू किया गया। यह अपने तौर पर अनोखी ही पहल रही है।

वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा

तथा उनका क्षमता निर्माण करने, अल्पसंख्यकों की चिन्हित परंपरागत कलाओं-शिल्पों का प्रलेखन, परंपरागत कौशलों के मानक निर्धारित करने, मास्टर शिल्पियों के जरिए विभिन्न परंपरागत कलाओंशिल्पों में अल्पसंख्यक युवाओं को प्रशिक्षण देने तथा राष्ट्रीय तथा अंतराष्ट्रीय बाजार में संपर्क बढ़ाने का कार्य समन्वित आधार पर किया जा रहा है।

रिकॉर्ड ऋण वितरण

जानकारी के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में 30 सितंबर तक देश भर में 44,344 लोगों को 243.65 करोड़ रुपए का रियायती ऋण प्रदान किया गया, जबकि साल 2014-15 में अल्पसंख्यकों को स्वरोजगार और आय सृजन एवं शिक्षा के मकसद से 431.20 करोड़ रुपए का रियायती ऋण दिया गया और इससे 108,752 लोगों को लाभ मिला। इसी तरह 2015-16 में कुल 473.29 करोड़ रुपए का ऋण दिया गया और 86,103 लोगों को फायदा

मिला। 2016-17 में 108,588 लाभार्थियों को कुल 503.32 करोड़ रुपए का रियायती ऋण दिया गया।

एनएमडीएफसी के प्रयास

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम (एनएमडीएफसी) द्वारा अल्पसंख्यकों को अपना रोजगार आरंभ करने हेतु बहुत ही कम ब्याज दर पर लोन उपलब्ध कराता है। गौरतलब है कि तत्कालीन सरकार ने वर्ष 2012-2013 से ही एनएफडीसी को दी जाने वाली इक्विटी को बाधित रखा था। मौजूदा सरकार का यह प्रयास केवल सराहनीय ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक भी है, जिसमें उन्होंने एनएमडीएफसी की अधिकृत शेयर पूंजी को एक बार में ही 1500 से बढ़ाकर 3000 रुपए करके दोगुना कर दिया।

नई रोशनी योजना

अल्पसंख्यक महिलाओं की नेतृत्व क्षमता को

विकसित करने हेतु एक विशेष योजना नई रोशनी को क्रियान्वित की जा रही है, जिससे कि सरकारी प्रणाली, बैंकों और अन्य माध्यमों के साथ समन्वयन स्थापित करने के लिए आवश्यक जानकारी उनके पास उपलब्ध हो। यह प्रयास उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में भी कारगर साबित होता। वर्ष 2014-15 और 2015-16 के दौरान अल्पसंख्यक मामलों के अंतर्गत मंत्रालय ने 28.98 करोड़ रुपए खर्च करके 24 राज्यों की 1.30 लाख से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया। अभी हाल में नीति आयोग ने स्व तंत्र रूप से योजना के कार्यान्वयन का मूल्यांकन किया है। सरकार के इस प्रयास को बड़े स्तर पर सराहना प्राप्त हुई।

हमारी धरोहर योजना

मौजूदा सरकार की नीतियों में इस बात का ध्यान भी रखा गया कि अल्पसंख्यकों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व परंपराओं को भी सहेजा जा सके, उनका

सरकार ने वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा की दिशा में संवेदनशीलता बरतते हुए अनेक कदम उठाए हैं। वक्फ संपत्तियों को किसी भी प्रकार के अतिक्रमण से बचाने तथा अनाधिकृत हस्तक्षेप रोकने हेतु सरकार ने राष्ट्रीय दूर संवेदी केंद्र द्वारा सबसे पहले उन संपत्तियों की मैपिंग कराई और फिर उनके संरक्षण हेतु पर्याप्त व्यवस्था की गई। इनमें शामिल स्थान भी मुस्लिम बहुल थे।

‘कोलेट्रल’ से मिला बड़ा लाभ

मुद्रा योजना का सबसे अधिक लाभ सीधे-सीधे मुसलमानों को ही मिला है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय में अधिकतर युवा अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर छोटे-मोटे काम-धंधों में लग जाते हैं। अपना इस तरह का कोई भी व्यवसाय शुरू करने में मुद्रा योजना के द्वारा उन्हें आर्थिक सहायता सहजता से प्राप्त हो जाती है। साथ ही ‘कोलेट्रल’ भी एक ऐसा ही सशक्त माध्यम है, जिसके तहत बिना कोई संपत्ति या आभूषण इत्यादि गिरवी रखे भी सीधे लोन लिया जा सकता है।


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तुष्टीकरण नहीं, सशक्तीकरण की दिशा में देश

मोदी कैबिनेट का एकमात्र मुस्लिम चेहरा, केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी अपनी साफगोई और हाजिर जवाबी के लिए जाने जाते हैं। हमारी संवाददाता उरूज फातिमा के साथ हविशा अरोड़ा (ग्रेड 11, शिव नादर स्कूल, नोएडा) और मिशा राज ने उनसे अल्पसंख्यकों के मुद्दों, उनके विकास की योजनाओं और कार्यक्रमों पर विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत है इसी बातचीत के प्रमुख अंश

राजनीति में आने के लिए आपको किसने प्रेरित किया?

मेरे कॉलेज के दिनों में, प्रसिद्ध भारतीय राजनीतिक नेता लोक नायक जय प्रकाश नारायण का आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन को संपूर्ण क्रांति कहा गया। मेरे कॉलेज के कई छात्र भी, लोकतांत्रिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों के लिए इस आंदोलन में शामिल हो रहे थे। इससे राजनीति के प्रति मेरी दिलचस्पी जगी और मैं भी इस आंदोलन में शामिल हो गया।

क्या आपको लगता है कि आपके मंत्रालय द्वारा शुरू की गई सभी योजनाओं और कार्यक्रमों को हर जगह लागू किया जा रहा है और लोग इन योजनाओं से अवगत हैं?

मुझे नहीं लगता कि हर कार्यक्रम 100 प्रतिशत लागू किया जा रहा है। हम इन कार्यक्रमों में पारदर्शिता लाने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे सभी जरूरतमंद लोगों तक पहुंचें, अपनी तरफ से

पूरी कोशिश कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी की सरकार, नागरिकों के कल्याण के लिए व्यवस्था को बदलने की कोशिश कर रही है और कुछ हद तक इसे बदला भी जा रहा है। मैं स्वीकार करता हूं कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के साथ-साथ बाकी मंत्रालयों की योजनाएं भी कई कारणों से समाज के निचले हिस्से तक नहीं पहुंच पा रही हैं। लेकिन, मैं कहूंगा कि पिछले तीन वर्षों में छात्रवृत्ति धारकों के खाते में 1.75 करोड़ रुपए सीधे जमा किए गए हैं। छात्रवृत्ति कार्यक्रम में कोई मध्यस्थ नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप इस योजना में पैसों की बर्बादी नहीं हो रही है। एमएफडीसी के तहत प्रदान किए जाने वाले शिक्षा ऋण पर सिर्फ 2 से 4 प्रतिशत का ब्याज लिया जाता है। सोशल और प्रिंट मीडिया के माध्यम से जागरूकता पैदा करने के अलावा, हमने समाज के वंचित वर्गों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के साथ सीधे संवाद स्थापित करने और सरकार की कल्याणकारी और सशक्तीकरण योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए, एक नव प्रवर्तनशील वार्तालाप कार्यक्रम 'प्रगति पंचायत' भी

शुरू किया है। केंद्र और राज्य दोनों के अधिकारी और मंत्री और स्थानीय लोग योजनाओं के कार्यान्वयन और उनपर बातचीत करने के लिए एक साथ एक मंच पर आए। साथ ही अल्पसंख्यकों के सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक विकास से संबंधित मुद्दों पर चर्चा और उनके लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में बातचीत के लिए सभी साथ आए। 'प्रगति पंचायत' का उद्देश्य लोगों की समस्याओं को सुनना और उन्हें हल करना है। साथ ही 'सब का साथ, सब का विकास' और 'अंत्योदय' के लिए केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को तेजी से पूरा करने के लिए जमीन स्तर पर रिपोर्ट मांगना है। सोशल मीडिया ने लोगों के जीवन में जो क्रांति लाई है, उससे भी इन कार्यक्रमों को दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचाने में मदद मिल रही है। कम से कम 60-70 प्रतिशत लोग सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं, जिसके माध्यम से उन्हें योजनाओं और नीतियों से अवगत कराया जा रहा है। यह अल्पसंख्यक समुदायों और कमजोर वर्गों के लाभ के लिए सामुदायिक केंद्र के रूप

में कार्य करता है। चौपालों के बेहतर रूप में जिले के हर ब्लॉक में सभी समुदायों के लोगों को एक साथ लाने के लिए स्थापित किया जाएगा, ताकि वे सांप्रदायिक सद्भाव, कौशल विकास, शिक्षा और खेल कार्यक्रमों में भाग ले सकें। पिछले 48 महीनों में, हमने 350 सद्भावना मंडपों की स्थापना की है। यह यूएसटीटीएडी के अंतर्गत अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा एक पहल है जो अल्पसंख्यक समुदायों के कारीगरों को देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी पारंपरिक कला और शिल्प को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करती है। हाट ने 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की बिक्री और ऑर्डर को पूरा किया है। इस योजना में, देश भर से अल्पसंख्यक कारीगरों और शिल्पियों को प्रगति मैदान में ‘इंडिया इंटरनेशनल फेयर 2016’ के दौरान अपने पारंपरिक शिल्प को प्रदर्शित करने और बेचने के लिए मुफ्त में स्टॉल मुहैया कराए गए। बाद में, फरवरी, 2017 में कनॉट प्लेस में भी ऐसे ही आयोजन किए गए। इससे अल्पसंख्यकों के बीच आत्मविश्वास और गर्व की भावना पैदा हुई और कारीगरों की विरासत (हुनर का हौसला) को अवसर और बाजार प्रदान करने में भी मदद मिली। रोजगार के अवसरों और बाजार की पहुंच के संदर्भ में अगर देखें तो एक लाख से अधिक कारीगरों और शिल्पियों को लाभ हुआ है। ब्रांड ‘हुनर हाट’ बहुत लोकप्रिय हुआ है और अब मंत्रालय ‘मदद हमारी मंजिल आपकी’ और ‘विकास भी, विश्वास भी’ जैसे स्लोगन के साथ पूरे देश में ऐसे आयोजन करने की प्रक्रिया में है। बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (एमएसडीपी) का नाम बदलकर ‘प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम’ किया गया है,जो पिछड़े जिलों में अल्पसंख्यकों को ध्यान में रखकर काम करेगा। वहां भी जहां कुल आबादी की 25 प्रतिशत आबादी ही अल्पसंख्यक है। साथ ही, इस योजना की निधि का 33 से 40 प्रतिशत महिलाओं के ऊपर खर्च किया जाएगा। इससे पहले, धन का वितरण वहीं होता था, जहां गांवों के समूह में कम से कम 50 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यक अवश्य हो। जनसंख्या सीमा को कम करने से इस योजना को 196 से 308 जिलों तक बढ़ाया जा सकेगा। सरकार अल्पसंख्यकों के सशक्तीकरण के बारे में उत्सुक है और अल्पसंख्यकों के लिए निर्धारित धन, शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास के तीन शीर्षकों के तहत खर्च किया जाएगा। इस योजना के तहत सरकार 2019-20 तक 3972 करोड़ रुपए खर्च करेगी।


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शिक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, तो अल्पसंख्यक समुदाय के शैक्षणिक सशक्तीकरण के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय की क्या योजनाएं हैं?

जैसा मैं बता रहा था कि प्री-मैट्रिक, पोस्ट-मैट्रिक और मेरिट पर आधारित छात्रवृत्ति योजनाओं सहित कई छात्रवृत्ति योजनाएं हैं। इन योजनाओं के माध्यम से, हम परिवारों में उत्पन्न होने वाली वित्तीय समस्याओं के समाधान प्रदान करने में मदद करते हैं। दूसरा, हमारे पास परिवेश-उन्मुख कौशल विकास कार्यक्रम है, जैसे सीखो कमाओ, उस्ताद, बेगम हजरत महल छात्रवृत्ति, विभिन्न कौशल विकास कार्यक्रम आदि। इसीलिए ये सभी कार्यक्रम, शिक्षा के साथ-साथ, रोजगार और स्वरोजगार के अवसरों का लाभ देते हैं। अल्पसंख्यकों के बीच कई कारीगर और शिल्पकार हैं। हमारे पास उनके लिए ‘हुनर हाट’ और ‘उस्ताद सम्मान समारोह’ जैसी अलग-अलग योजनाएं हैं, जहां ये कलाकार आते हैं और अपने उत्पादों को बेचते हैं। यहां उन्हें अपने उत्पादों के प्रदर्शन का अवसर मिलता है और पैसे कमाने के साथ वे अपने सामान का प्रचार भी कर पाते हैं।

सिविल सेवा परीक्षा के अल्पसंख्यक उम्मीदवारों के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं? इसके लिए उन्हें कौन सी योजनाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं?

51 मुसलमानों सहित अल्पसंख्यक समुदायों के रिकॉर्ड 131 उम्मीदवार सिविल सेवा परीक्षा 2017 में चुने गए हैं। यह एक तरह से पुष्टि है कि सरकार ने उनकी प्रतिभा के फलने-फूलने के लिए एक माहौल बनाया है। अल्पसंख्यक मंत्रालय की 'नई उड़ान' और 'नया सवेरा' योजनाओं को संशोधित किया गया है। साथ ही यूपीएससी की प्राथमिक परीक्षा को पास करने वालों के लिए वित्तीय सहायता 50,000 रुपए से बढ़ाकर 1 लाख रुपए कर दी गई है। इस योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को सशक्त बनाना और उन्हें प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए तैयार करना है, ताकि सरकार और निजी नौकरियों में उनकी भागीदारी में सुधार हो सके। यह योजना चुनिंदा कोचिंग संस्थानों में

अधिसूचित अल्पसंख्यक छात्रों को मुफ्त कोचिंग के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। जिन पाठ्यक्रमों के लिए कोचिंग प्रदान की जाएगी, वे निम्न हैं(i)संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी), राज्य लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) और विभिन्न भर्ती एजेंसियों द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाएं, समूह ए, बी और सी पदों के लिए रेलवे बोर्ड (आरआरबी), बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड आदि। वे लाभार्थी जिन्हें पिछले तीन वर्षों के दौरान और वर्तमान में 'नई उड़ान' योजना के तहत वित्तीय सहायता प्रदान की गई है।

अब तक शुरू की गई सभी योजनाओं और कार्यक्रमों में से, आपके अनुसार, लोगों द्वारा सबसे ज्यादा प्रशंसित और अपनाई जाने वाली योजनाएं कौन सी हैं?

हर माता-पिता आजकल अपने बच्चे को शिक्षित करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि सबसे संतोषजनक है,जो हमने 3 ई फॉर्मूला लिया शिक्षा, रोजगार और सशक्तीकरण। यह बहुत सफल रहा है। लेकिन हमने अब तक जो देखा है, उसके अनुसार हमारे कार्यक्रम ‘हुनर हाट’ ने विशेष रूप से कारीगरों और शिल्पकारों के बीच बहुत लोकप्रियता प्राप्त की है। हम इस कार्यक्रम को लाए, ताकि हम एक बार फिर से कला की सुंदरता और कलाकारों की कड़ी मेहनत को जागृत कर सबके सामने ला सकें।

आपने हुनर हाट के बारे में बात की, क्या एक बार प्रदर्शनी खत्म होने के बाद, सरकार मुस्लिम कारीगरों को कोई सहायता प्रदान करती है?

प्रारंभ में, जब हमने इस कार्यक्रम को शुरू किया, हमने देश भर से 100-200 कारीगरों को आमंत्रित किया। हम उन्हें दुकानों और स्टॉल समेत सब कुछ मुफ्त देते हैं। सरकार मूल रूप से इन कलाकारों को बाजार के अवसर प्रदान करती है, जिससे बिक्री हो और उन्हें ऑर्डर भी मिल सके। एक बार, असम के कुछ कारीगर ‘बेंत के काम’ के साथ आए और दो दिनों के भीतर ही उनके सभी उत्पाद बिक गए।

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इसीलिए, उन्होंने कुछ और उत्पाद मंगाए, वे भी 2-3 दिनों में फिर से खत्म हो गए। हम कम से कम 25-30 प्रतिशत नए कारीगरों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने का मौका देने का प्रयास करते हैं। पूरे देश में,कारीगरों की पारंपरिक कला और शिल्प को बढ़ावा देने साथ ही 'हुनर हाट' और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों को नियमित रूप से आयोजित करने के लिए 'हुनर हब' भी स्थापित किए जाएंगे।

बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम अल्पसंख्यक बहुल जिलों पर केंद्रित है। क्या ऐसे जिलों के लिए कोई प्रावधान किया गया है जो इस श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते हैं, लेकिन अल्पसंख्यक समूह से नाता रखते हैं? पहले, अल्पसंख्यक बहुल वाले जिले बेहद सीमित थे। हमने उन्हें 100 से 308 तक बढ़ा दिया है, इस प्रकार पूरे देश को कवर किया है। जनसंख्या मापदंड को कम करके, हम केवल अल्पसंख्यकों को ही लाभ नहीं पहुंचा रहे हैं, बल्कि इससे सबको लाभ हो रहा है। उनका विकास अब राष्ट्रीय विकास के अनुसार है। उन क्षेत्रों को, जो इस मापदंड को पूरा नहीं करते हैं, हमने गांवों के समूह को एक साथ माना है। इन क्षेत्रों में भी अब विकास हो रहा है।

सरकार के पास शैक्षणिक और रोजगार विकास के लिए योजनाएं हैं। लेकिन, क्या आपकी सरकार अल्पसंख्यकों को सामाजिक रूप से स्वीकार करने में मदद करने के लिए कोई योजना लाई है?

सहिष्णुता हमारे देश के डीएनए में है। मुझे नहीं लगता कि हमारी स्वीकृति में कोई कमी है। राजनीतिक एजेंडे को अगर एक तरफ रहने दें, तो सहिष्णुता और सद्भाव भारत की संस्कृति का हिस्सा हैं। हमें कुछ अलग घटनाओं को लेकर, अपनी राय नहीं बनानी चाहिए। जबकि वे भयानक हैं और नहीं होनी चाहिए, वे पूरे देश की मानसिकता का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। यदि यह मामला था, तो अल-कायदा

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और आईएस जैसे आतंकवादी समूह खुद को भारत में भी स्थापित कर लेते। हालांकि, पूरी दुनिया में सफल होने के बावजूद, वे हमें एक दूसरे के खिलाफ बदलने में असमर्थ थे। जब उन्होंने कश्मीर में भारतीय युवाओं को बदलने की कोशिश की, तो उनके परिवारों ने उन्हें बताया। मुझे लगता है कि हमारे देश में, अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों को साथ रहने में कोई समस्या नहीं है।

आपकी नजर में, भारत में अल्पसंख्यकों के सामने आने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं? आपने उन्हें कैसे दूर किया है?

मुझे नहीं लगता कि अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के मुद्दे अलग हैं। प्रत्येक वर्ग बेरोजगारी, गरीबी और कम साक्षरता के स्तर से संबंधित समस्याएं झेल रहा है। दुर्भाग्यवश, हमारी राजनीतिक व्यवस्था ने इन मुद्दों का शोषण किया है और अपने लाभ के लिए एक विभाजन बनाया है। पिछले चार वर्षों में, हमारे मंत्रालय ने देश के लोगों के साथ ही अल्पसंख्यकों के मुद्दों को शामिल करने का लक्ष्य रखा। अगर हम अलग से उनके साथ काम करते हैं, तो हम उनके साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। हम समावेशी विकास में विश्वास करते हैं, क्योंकि इसने अधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त की है। उदाहरण के लिए, अल्पसंख्यक लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर 75% से अधिक थी। जब हमने विभिन्न हितधारकों से बात की, हमने महसूस किया कि यह वित्तीय और सामाजिक सीमाओं के कारण था। इसीलिए हमने 2,00,00,069 लोगों को छात्रवृत्ति की पेशकश की, जिनमें से 65% लड़कियां थीं। अब स्कूल छोड़ने की दर 45% तक गिर गई है। हमारा लक्ष्य इसे पूरी तरह से खत्म करना है।

बहुसंख्यक पार्टी में एक अल्पसंख्यक मंत्री होना कैसा लगता है?

जब आप अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के बीच अंतर महसूस करना शुरू करते हैं, तो आप कभी भी सहज नहीं रह सकते हैं। हम सभी भारतीय हैं, एक राष्ट्र के लोग हैं। ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा, हम बुलबुलेंे हैं इसके, ये गुलिस्तां हमारा।'


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14 - 20 मई 2018

अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री का नया 15 सूत्रीय कार्यक्रम एकीकृत बाल विकास सेवाओं की समुचित उपलब्धता

एकीकृत बाल विकास सेवा योजना का उद्देश्य उपेक्षित वर्गों के बच्चों, गर्भवती महिलाओं का संपूर्ण विकास है। इसके लिए आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

उर्दू शिक्षण के लिए और अधिक संसाधन

उन प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में उर्दू भाषा के अध्यापकों की भर्ती एवं तैनाती के लिए केंद्रीय सहायता प्रदान की जाएगी, जो इस भाषा वर्ग से संबंधित कम-से-कम एक चौथाई जनसंख्या की सेवा करते हैं।

अल्पसंख्यक समुदाय के मेधावी विद्यार्थियों के लिए छात्रवृति

अल्पसंख्यक समुदायों के विद्यार्थियों के लिए मैट्रिक पूर्व और मैट्रिक के बाद छात्रवृत्ति देने की योजना बनाई और कार्यान्वित की जाएगी।

गरीबों के लिए स्वरोजगार एवं मजदूरी रोजगार योजना

विभिन्न केंद्रीय योजनाओं के तहत खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने और उनके टिकाऊ विकास के लिए आधारभूत संरचना के विकास पर बल देना।

आर्थिक क्रियाकलापों के लिए अभिवृद्धित ऋण सहायता

(क) राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम (एनएमडीएफसी) को 1994 में स्थापित किया गया। इसका उद्देश्य, अल्पसंख्यक समुदायों में आर्थिक विकास की गतिविधियों को बढ़ावा देना है। (ख) स्वरोजगार योजना के निर्माण और उसे बनाए रखने के लिए बैंक ऋण आवश्यक है। प्राथमिकता क्षेत्र ऋण के लिए कुल बैंक ऋण का 40 प्रतिशत लक्ष्य घरेलू बैंकों के लिए निश्चित किया गया है। इन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में, अन्य बातों के साथ शामिल है- खेती, लघु उद्योगों, छोटे काम-धंधों, फुटकर व्यवसाय, शिक्षा, घर और कई अन्य अल्प ऋण शामिल हैं।

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ग्रामीण आवास योजना में उचित हिस्सेदारी

इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण लोगों के लिए आवास हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। आईएवाई के तहत भौतिक व आर्थिक लक्ष्यों का निश्चित प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदायों के लिए निर्धारित किया जाएगा।

सांप्रदायिक घटनाओं की रोकथाम

सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील और दंगा संभावित के रूप में अभिज्ञात किए गए क्षेत्रों में अत्यधिक कुशल, निष्पक्ष और धर्मनिरपेक्ष जिला एवं पुलिस अधिकारियों को नियुक्त किया जाना चाहिए। ऐसे क्षेत्रों में और अन्य कहीं भी सांप्रदायिक तनाव को दूर करना जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की प्राथमिक ड्यूटियों में शामिल होना चाहिए।

सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों का पुनर्वास

सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत दी जानी चाहिए तथा उनकी पुनर्वास के लिए उपयुक्त वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

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विद्यालय शिक्षा की उपलब्धता को सुधारना

सर्व शिक्षा अभियान, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना और ऐसी अन्य सरकारी योजनाओं के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसे विद्यालयों की एक निश्चित संख्या अल्पसंख्यक समुदायों की घनी जनसंख्या वाले गांवों-क्षेत्रों में स्थापित की जाए।

मदरसा शिक्षा आधुनिकीकरण कार्यक्रम

एरिया इंटेसिव और मदरसा आधुनिकीकरण कार्यक्रम को लेकर बनी केंद्रीय योजना में शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाले क्षेत्रों में मूल शैक्षिक अधोसंरचना तथा मदरसा शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए प्रावधान है। इस आवश्यकता के महत्व को देखते हुए, यह कार्यक्रम पर्याप्त रूप से सुव्यवस्थित व प्रभावी रूप से लागू किया जाए।

शैक्षिक अधोसंरचना को उन्नत करना

सरकार, मौलाना आजाद शिक्षा प्रतिष्ठान को सभी संभव सहायता देगी, ताकि यह अपने कार्यकलाप को अधिक प्रभावी रूप से सुदृढ़ व्यापक कर सके।

तकनीकी शिक्षा के माध्यम से कौशल का उन्नयन

अल्पसंख्यक समुदायों की जनसंख्या का एक बड़ा भाग दस्तकारी से अपनी उपजीविका कमाता है या फिर निम्न श्रेणी के तकनीकी कार्यों में संलग्न है। ऐसे लोगों के लिए तकनीकी प्रशिक्षण की व्यवस्था कर दिए जाने से उनकी कौशल और उपजीविका क्षमता बढ़ जाएगी।

राज्य एवं केंद्रीय सेवाओं में भर्ती

(क) राज्य सरकार को यह सलाह दी जाएगी कि पुलिस कार्मिकों की भर्ती करते समय अल्पसंख्यक समुदायों के अभ्यार्थियों पर विशेष रूप से विचार किया जाए। इसके लिए चयन समितियों में अल्पसंख्यक प्रतिनिधियों की भागीदारी होनी चाहिए। (ख) केंद्र शासन केंद्रीय पुलिस बलों में कार्मिकों की भर्ती करते समय इसी प्रकार की कार्रवाई करेगी। (ग) रेलवे, राष्ट्रीयकृत बैंकों और पब्लिक सेक्टर उद्यमों द्वारा बड़े स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं। इन मामलों में भी संबंधित विभाग ये सुनिश्चित करेंगे कि भर्ती करते समय अल्पसंख्यक समुदायों के अभ्यार्थियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। (घ) अल्पसंख्यक समुदाय के विद्यार्थियों को सरकारी व विश्वसनीय गैर सरकारी संस्थाओं में कोचिंग प्रदान करने के लिए एक विशेष योजना शुरू की जाएगी, जिसमें इन संस्थाओं को सहायता दी जाएगी।

अल्पसंख्यक समुदायों वाली मलिन बस्तियों में सुधार

एकीकृत आवास एवं मलिन (गंदी) बस्ती विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण कार्यक्रम की योजनाओं के अंतर्गत, केंद्रीय सरकार शहरी मलिन (गंदी) बस्तियों के विकास के लिए राज्य सरकारों व संघ राज्य क्षेत्रों को सहायता देती है। इससे इन बस्तियों में जन सुविधाएं और मूल सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

सांप्रदायिक अपराधों के लिए अभियोजन

उन लोगों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए, जो सांप्रदायिक दंगे भड़काते हैं अथवा हिंसा करते हैं। इसके लिए विशेष न्यायालय स्थापित किए जाने चाहिए, ताकि अपराधियों को शीघ्रता से सूचीबद्ध किया जा सके।


14 - 20 मई 2018

शोध के क्षेत्र में भारत का बढ़ा कद

10 जिलों में मिलेगी फ्री कीमोथेरेपी सुविधा

शोध के क्षेत्र में जोरदार प्रदर्शन करते हुए भारत जापान-फ्रांस को पछाड़ कर दुनिया के टॉप पांच देशों में शामिल हो गया है

शो

ध के क्षेत्र में भारत का कद दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है। शोध के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाते हुए भारत शीर्ष पांच देशों में शामिल हो गया है। जापान, फ्रांस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और इटली जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए भारत पांचवें स्थान पर पहुंच गया है। इससे पहले इस सूची में भारत नंबर सात पर था। दुनिया भर के शोध

जमीन पर बैठकर खाएं, होगा फायदा

कार्यों पर नजर रखने वाली स्कोपस एजेंसी की इस रैंकिंग में भारत से आगे अमेरिका, चीन, इंग्लैंड और जर्मनी है। स्कोपस एजेंसी ने यह रैंकिंग वर्ष 2014 से 2017 के बीच दुनिया भर में हुए शोध कार्यों और उनके प्रकाशन के आधार पर तैयार की है। इस दौरान भारत में 5.64 लाख शोध प्रकाशित हुए हैं। एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में 25.89 लाख शोध प्रकाशित हुए हैं, जबकि चीन में करीब 19 लाख, इंग्लैंड में 7.78 लाख और जर्मनी में 6.83 लाख शोध प्रकाशित हुए। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने ट्वीट कर कहा कि यह उपलब्धि पिछले सालों में शोध को बढावा देने के लिए उठाए गए कदमों का नतीजा है। उन्होंने कहा कि सरकार इसे बढ़ावा देने के लिए पूरी ताकत से जुड़ी हुई है। आने वाले दिनों में इसके और भी अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। (एजेंसी)

स्वास्थ्य

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महाराष्ट्र सरकार जून से 10 जिलों में मुफ्त कीमोथेरेपी की सुविधा देने वाली है

हाराष्ट्र सरकार जून से 10 जिलों में मुफ्त कीमोथेरेपी की सुविधा देने वाली है। पहले चरण में यह सुविधा नागपुर, गडचिरोली, पुणे, अमरावती, जलगांव, नासिक, वर्धा, सतारा, भंडारा और अकोला के जिला अस्पतालों में दी जाएगी। अगले महीने से मुंबई के टाटा अस्पताल में इन

जिलों से फिजिशिन और नर्सों को तीन हफ्ते के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री दीपक सावंत ने बताया कि टाटा अस्पताल में मरीजों को कीमो का 6 हफ्तों का कोर्स कराया जाता है। इसके लिए उन्हें हर हफ्ते मुंबई आना पड़ता है। मरीजों को मुंबई तक आने में होने वाली समस्याएं खत्म करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने जिला स्तर पर यह सुविधा मुफ्त में देने की योजना बनाई है। स्कीम के एक बार सफलतापूर्वक लॉन्च होने के बाद महाराष्ट्र सरकार इसे अन्य जिलों में भी लेकर भी जाएगी। नेशनल कैंसर रजिस्ट्रेशन प्रोग्राम के मुताबिक भारत में हर साल 11 लाख कैंसर के नए मामले पाए जाते हैं। हर साल कैंसर के कुल मरीजों की संख्या 28 लाख पाई जाती है। (एजेंसी)

1. वजन को नियंत्रित रखना

जमीन पर बैठना और उठना, एक अच्छा व्यायाम माना जाता है। भोजन करने के लिए तो आपको जमीन पर बैठना ही होता है और फिर उठना भी, अर्ध पद्मासन का ये आसन आपको धीरे-धीरे खाने और भोजन को अच्छी तरह पचाने में सहायता देता है। जिससे वसा के कारण वजन अनियंत्रित नहीं हो पाता।

2. स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद

जमीन पर बैठकर खाना खाने का अर्थ सिर्फ भोजन करने से नहीं है, यह एक प्रकार का योगासन है। जब भारतीय परंपरानुसार हम जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं तो उस तरीके को सुखासन या पद्मासन की तरह देखा जाता है। यह आसन हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभप्रद है।

3. रक्तचाप में कमी

इस तरीके से बैठने से आपकी रीढ़ की हड्डी के निचले भाग पर जोर पड़ता है, जिससे आपके शरीर को आरामदायक अनुभव होता है। इससे आपकी सांस थोड़ी धीमी पड़ती है, मांसपेशियों का खिंचाव कम होता है और रक्तचाप में भी कमी आती है।

आज के समय में सभी लोग बेड या कुर्सी पर बैठकर खाना पसंद करते हैं। क्योंकि नीचे जमीन पर बैठकर खाने से उन्हें शर्मिंदगी का एहसास होता है। लेकिन आप शायद नहीं जानते कि जमीन पर बैठकर खाने से कई लाभ होते हैं। इसीलिए पुराने जमाने में सभी लोग नीचे बैठकर खाते थे और उनका स्वास्थ्य आज के लोगों की अपेक्षा बेहतर रहता था। आइए जानते हैं कि नीचे बैठकर खाने से कौनकौन से फायदे मिलते हैं।

4. पाचन क्रिया में सुधार

जमीन पर बैठकर खाने से आपको भोजन करने के लिए प्लेट की तरफ झुकना होता है, यह एक नेचुरल पोज है। लगातार आगे होकर झुकने और फिर पीछे होने की प्रक्रिया से आपके पेट की मांसपेशियां निरंतर कार्यरत रहती हैं, जिसकी वजह से आपकी पाचन क्रिया में सुधार होता है।

5. शरीर के मुख्य भागों की मजबूती

भोजन करने के लिए जब आप पद्मासन में बैठते हैं तब आपके पेट, पीठ के निचले हिस्से और कूल्हे की मांसपेशियों में लगातार खिंचाव रहता है जिसकी वजह से दर्द और असहजता से छुटकारा मिलता है। इस मांसपेशियों में अगर ये खिंचाव लगातार बना रहेगा तो इससे स्वास्थ्य में सुधार देखा जा सकता है।

6. दिल की मजबूती

सही तरह से बैठने से आपके शरीर में रक्त का संचार बेहतर होता है और साथ ही साथ आपको नाड़ियों में दबाव भी कम महसूस होता है। पाचन क्रिया में रक्त संचार का एक अहम रोल है। पाचन क्रिया को सुचारू रूप से चलाने में हृदय की भूमिका अहम होती है। जब भोजन जल्दी पच जाएगा तो हृदय को भी कम मेहनत करनी पड़ेगी।

7. घुटनों का व्यायाम

जमीन पर बैठकर भोजन करने से आपका पूरा शरीर स्वस्थ रहता है, पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है। इसके साथ ही साथ जमीन पर बैठने के लिए आपको अपने घुटने मोड़ने पड़ते हैं। इससे आपके घुटनों का भी बेहतर व्यायाम हो जाता है, उनकी लचक बरकरार रहती है जिसकी वजह से आप जोड़ों की समस्या से बचते हैं।


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गुड न्यूज

14 - 20 मई 2018

जेनेटिक डिसॉर्डर के बावजूद 94% अंक

सेना के जवानों से फीस नहीं लेता यह डॉक्टर

अस्सी फीसदी तक दिव्यांग राहुल ने सेकंडरी की परीक्षा में 94 फीसदी अंक पाकर मिसाल कायम किया

एक बार कुछ पाने की ठान ले तो इंसानकुदरतअगरभी उसके आगे घुटने टेक देती है। फिर

बड़ी से बड़ी बीमारी को भी जज्बे के दम पर हराया जा सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है 16 साल के एक छात्र ने, जिन्होंने एक रेयर जेनेटिक डिसऑर्डर पर जीत हासिल करते हुए सेकंडरी स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट (एसएसएलसी) परीक्षा में 94 प्रतिशत अंक हासिल कर मिसाल कायम की है। उलसूर के पास आर्टिलरी रोड स्थित कैराली निकेतन इंग्लिश हाई स्कूल के 10वीं के छात्र राहुल केएस मस्क्युलर डिस्ट्रफी के शिकार हैं। इस रेयर जेनेटिक डिसऑर्डर के कारण उनकी मांसपेशियां काफी कमजोर रहती हैं लेकिन राहुल का जज्बा एकदम मजबूत है। राहुल ने अंग्रेजी में 116/125, कन्नड़ में

95/100, हिंदी में 92, गणित में 93, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में 98 अंक हासिल किए। राहुल के स्कूल की हेडमिस्ट्रेस कहती हैं कि फिजिक्स राहुल का पसंदीदा सब्जेक्ट है। वह बताती हैं कि राहुल को प्रैक्टिकल करने में थोड़ी तकलीफ आती है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि वह आगे जाकर सांइस ही पढ़ेंगे। उन्होंने राज्य सरकार से राहुल को सपोर्ट करने के लिए आगे आने की उम्मीद जताई है। मेडिकल रेकॉर्ड्स के मुताबिक राहुल का वजन केवल 20 किलोग्राम है और वह 80 प्रतिशत तक दिव्यांग हैं। जब वह 7 साल के थे तब इस डिसऑर्डर के बारे में पता चला। उनके पिता कनकराज सेल्समैन हैं। वह बताते हैं कि राहुल का संतुलन चलते-चलते बिगड़ जाता था और वह गिर जाता था। 11 साल का होते-होते राहुल के लिए चलना मुश्किल हो गया। उसके बाद उन्होंने व्हील चेयर का सहारा लिया। राहुल तीन भाई-भाइयों में सबसे बड़े हैं। वह बड़े होकर कंप्यूटर साइंस में इंजिनियरिंग करना चाहते हैं। वह अपने दाहिने हाथ से लिखते हैं। हालांकि, डायग्राम बनाने में उन्हें तकलीफ होती है। राहुल ने साबित किया है कि तमाम तकलीफों के बावजूद इंसान को सपने देखने और और उन्हें पूरा करने से हार नहीं माननी चाहिए। (एजेंसी)

लखनऊ के डॉ. अजय चौधरी सेना के जवानों और उनके परिजनों से कोई फीस नहीं लेते हैं

त्तर प्रदेश के लखनऊ में एक डॉक्टर ऐसे हैं जो सेना के जवानों और उनके परिवारवालों से कोई फीस नहीं लेते हैं। डॉ. अजय चौधरी ने क्लीनिक के बाहर सूचना चस्पा कर रखी है जिसमें लिखा है कि जवान उनकी फीस बॉर्डर पर दे चुके हैं। डॉ. अजय चौधरी गेस्ट्रो विशेषज्ञ हैं। उनका क्लीनिक गोमती नगर इलाके में है। उनके क्लीनिक के बाहर लगी सूचना देखकर हर कोई उनका मुरीद हो जाता है। डॉ. चौधरी ने इस सूचना में लिखा है कि यहां फौजियों को परामर्श शुल्क लेने के लिए फीस देने की जरूरत नहीं है। आप हमारी फीस बॉर्डर पर दे चुके हैं। इस क्लीनिक में सिर्फ सेना के जवानों और उनके परिवार से आईडी कार्ड लेकर आने को कहा जाता है।

डॉ. अजय चौधरी ने बताया कि सेना के जवान बॉर्डर पर नि:स्वार्थ होकर हमारी और देश की रक्षा करते हैं। वे अपनी जान की परवाह भी नहीं करते हैं। ऐसे में हम लोग उनके लिए कुछ कर सकें, यह बहुत गर्व की बात है। वह सेना और सेना के जवानों के परिवार से कोई परामर्श शुल्क न लेकर उन्हें सम्मान देते हैं। उन्होंने बताया कि उनका परिवार खुद सेना के बैकग्राउंड का है। उनके पिता भी सेना में थे। उनका भाई भारतीय नौसेना में कमांडर हैं। डॉ. चौधरी ने बताया कि वह भी सेना में जाना चाहते थे। उन्होंने एनडीए की परीक्षा भी दी, लेकिन उनका चयन नहीं हो सका। वह सेना में जाकर देश की सेवा नहीं कर सके पर अब सेना के जवानों से फीस न लेकर देश की सेवा करने का प्रयास करते हैं। डॉ. अजय को उनके इस काम के लिए सेना की तरफ से सम्मानित भी किया जा चुका है। बीते दिनों मध्य कमान सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल बीएस नेगी की ओर से मेजर जनरल डीएस भाकुनी ने उन्हें सम्मानित किया था। उन्हें सेना की तरफ से एक प्रशंसा पत्र व उत्कृष्ट सेवा प्रमाणपत्र दिया गया था। (एजेंसी)

प्लास्टिक कचरे से करोड़ों की कमाई

प्लास्टिक कचरे से कमाई कर मणिपुर के पिता- पुत्र की जोड़ी पर्यावरण की रक्षा भी कर रही है

णिपुर की राजधानी इंफाल में बाप-बेटे की एक जोड़ी आम लोगों के घरों के प्लास्टिक कचरे को रीसाइकल करने का काम कर रही है। इंफाल के रहने वाले सडोक्पम इतोंबी सिंह और सडोक्पम गुनाकांता एक रीसाइकलिंग प्रोग्राम की अगुवाई करके एक कंपनी चला रहे हैं, जो लोगों के घरों से निकलने वाले प्लास्टिक के कचरे को रीसाइकल करती है। कंप्यूटर ऐप्लिकेशंस में ग्रेजुएशन कर चुके इतोंबी का मानना है कि प्लास्टिक हमारे ईकोसिस्टम के लिए खतरा है और प्राकृतिक माहौल को भी बिगाड़ता है, जिससे पौधों, जीव-जंतुओं के साथ-साथ मानव समाज को भी दिक्कतों का सामना

करना पड़ता है। इसलिए वह अपने पिता के साथ मिलकर मणिपुर को एक सुरक्षित और अच्छे माहौल वाला शहर राज्य बनाना चाहते हैं। इतोंबी ने साल 2007 में एस. जे. प्लास्टिक इंडस्ट्रीज नाम से एक कंपनी शुरू की जो आसपास के इलाके से निकलने वाले प्लास्टिक कचरे को रीसाइकल करने का काम करती है। इससे पहले 90 के दशक में यहां 65 वर्षीय गुनकांता भी इस तरह का छोटा सा काम कर रहे थे। वह पहले प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा करते और उन्हें दिल्ली और गुवाहाटी के प्लास्टिक रीसाइकल प्लांट्स में भेजते थे। साल 2010 में नई मशीनें आने के बाद

प्लास्टिक कचरे से पाइप, टब और इसी तरह के कई सारे प्लास्टिक आइटम बनाए जाने लगे। मणिपुर में ही 120 प्रकार के प्लास्टिक की पहचान हुई है। इसमें 30 ऐसे हैं, जिन्हें मणिपुर में ही रीसाइकल किया जाता है और बाकी को गुवाहाटी और दिल्ली भेजा जाता है। गुनाकांता कहते हैं, 'प्लास्टिक को रीसाइकल किया जा सकता है। हमें इस तरह के

कचरे को रीसाइकल करने के प्रति सतर्क और जागरूक रहना होगा और हमारे पानी के स्रोतों और अन्य जगहों को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए।' वर्तमान में इनकी कंपनी में 35 स्थायी स्टाफ और 6 लोग प्रतिदिन मजदरी करने वाले हैं। 1.5 लाख रुपए की लागत से शुरू हुई इस कंपनी का मौजूदा सालाना टर्नओवर 1.2 करोड़ रुपए है। (एजेंसी)


14 - 20 मई 2018

लिंगानुपात में हुआ सुधार

'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना का असर हरियाणा में दिखने लगा है और लिंगानुपात में तेजी से सुधार हो रहा है

रियाणा में जन्म दर पर खराब लिंगानुपात में अब सुधार के संकेत दिख रहे हैं। प्रशासन की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार यहां 2015 से 2017 के बीच लिंगानुपात में 38 अंक की बढ़ोत्तरी हुई है। 2011 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात 1000 लड़कों पर 830 लड़कियों का था, जो खराब माना जाता था। चीफ रजिस्ट्रार (जन्म-मृत्यु) के मुताबिक, 2017 में यह लिंगानुपात 1000 लड़कों पर 914 लड़कियों का हो गया। दरअसल, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना पर आयोजित नेशनल कंसल्टेशन कार्यक्रम में यह आंकड़ा प्रस्तुत किया गया। बता दें कि 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पानीपत, हरियाणा से 'बेटी

बचाओ बेटी पढ़ाओ' की शुरुआत की थी। पानीपत में जन्म पर लिंगानुपात की बात करें, तो 2011 में जो अनुपात 1000 लड़कों पर 833 लड़कियों का था, वह 2015 में 1000 लड़कों पर 892 लड़कियों का हुआ। वहीं, 2016 में यह आंकड़ा 1000 पर 893 और 2017 में 1000 पर

945 हो गया। सम्मेलन में शेयर किए गए डेटा के मुताबिक, हरियाणा में जन्म पर लिंगानुपात 2015 में 1000 लड़कों पर 876 लड़कियों से बढ़कर 2016 में 1000 पर 902 और 2017 में बढ़कर 1000 पर 914 हो गया। वहीं, जिलेवार आंकड़ो में कुछ ऐसे हैं, जहां काफी बढ़ोत्तरी हुई है। जैसे यमुनानगर में जन्म पर लिंगानुपात 2015 से 2017 के बीच 75 प्वॉइंट बढ़कर 1000 लड़कों पर 943 लड़कियों का गया। इस संदर्भ में अधिकारियों का कहना है कि 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के तहत चलाए गए जागरुकता कार्यक्रम और समाज की भागीदारी के कारण यह बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं, मेवात में हुई गिरावट की जांच की जा रही है। (एजेंसी)

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गुड न्यूज

मिजोरम में पहला मेडिकल कॉलेज खुलेगा

मिजोरम में पहला मेडिकल कॉलेज अगस्त में खुलने जा रहा है। इस कॉलेज की 85 प्रतिशत सीटें प्रदेश के छात्रों के लिए आरक्षित होंगी

मि

जोरम में पहला मेडिकल कॉलेज अगस्त महीने से खुलने जा रहा है। मिजोरम इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल कॉलेज ऑफ रिसर्च के निदेशक एल.फिमेट ने बताया कि यह कॉलेज फलकॉन में स्थित है और यहां भारतीय मेडिकल परिषद (एमसीआई) के निर्देश के अनुरूप सभी तरह का जरूरी बुनियादी ढांचा मुहैया कराया गया है। उन्होंने कहा, 'एमसीआई ने कॉलेज की स्थापना के लिए अनुमति-पत्र की अनुशंसा की है।' मिजोरम के मुख्यमंत्री लाल थनहॉला ने राज्य में मेडिकल में दाखिला लेने के इच्छुक छात्रों की बढ़ रही संख्या को ध्यान में रखते हुए संस्थान के गठन की शुरुआत की है। इस बारे में फिमेट ने कहा, 'मिजोरम को इंफाल के रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में हर साल सिर्फ 10 सीटें मिलती रही हैं। यह सेंट्रल कॉलेज है। मिजोरम के मेडिकल में प्रवेश के इच्छुक छात्रों के लिए देश के अन्य मेडिकल कॉलेजों में सीट मिलना लगभग नामुमकिन था।' इसके अलावा शुरुआत में कॉलेज की क्षमता 100 छात्रों की होगी। जिसमें कॉलेज की 85 फीसदी सीटें मिजोरम के छात्रों के लिए आरक्षित रखी गई हैं। फिमेट इससे पहले लगभग छह वर्षों तक रिम्स के

निदेशक रहे। वह रिम्स में फॉरेंसिक साइंसेज के प्रमुख के पद पर भी रह चुके हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, यह मेडिकल कॉलेज 300 बिस्तर वाले सदर अस्पताल का हिस्सा होगा। इस अस्पताल की स्थापना 1896 में हुई थी। बताया जाता है कि, मेडिकल कॉलेज की स्थापना और मिजोरम सदर अस्पताल के नवीनीकरण के लिए 45 करोड़ रुपए की परियोजना तय की गई है। इसके अलावा फिलहाल पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम में पांच, त्रिपुरा व मणिपुर में दो-दो मेडिकल कॉलेज और मेघालय में पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल संस्थान मौजूद हैं। (आईएएनएस)

केले के तने से कमाई करता है यह किसान

केले के बेकार तने को कमाई का जरिया बना कर उत्तर प्रदेश के एक युवक ने मिसाल पेश की है

म के आम और गुठलियों के दाम, ये मुहाविरा तो सबसने सुना होगा, लेकिन केला तो केला, उसके तने का भी दाम, यह कोई नहीं जानता होगा। अभी तक केले के फलों का ही इस्तेमाल होता है, केला की फसल तैयार होने के बाद किसान तने को काटकर फेंक देते हैं या फिर जानवरों को खाने के लिए दे देते हैं। लेकिन कुशीनगर के रवि केले के बेकार तने से पेपर, साड़ी जैसे उत्पाद बनाकर न केवल खुद कमाई कर रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों को भी ऐसा करने की सीख दे रहे हैं। रोजगार की तलाश में दिल्ली गए रवि प्रसाद एक दिन प्रगति मैदान में लगे मेले में गए, जहां पर दक्षिण भारत के स्टॉल पर केले के तने के उत्पादों के बारे में देखा। रवि बताते हैं कि साउथ इंडिया के स्टाल पर जाकर देखा कि कैसे कोयंबटूर में केले के तने से चटाई, चप्प्ल जैसे प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं, जिस केले के तने को हमारे गांवों में बेकार समझकर

फेंक दिया जाता है। रवि प्रसाद यूपी के कुशीनगर जिले के तमकुही राज तहसील के हरिहरपुर गांव के रहने वाले हैं, जहां पर पिछले कुछ वर्षों में किसानों का रुझान केले की खेती की तरफ बढ़ा है, कुशीनगर ही नहीं पूर्वांचल के गोरखपुर, कुशीनगर जैसे जिलों में किसानों ने केले की खेती शुरु की है, लेकिन उत्पादन के बाद

तने को काटकर फेंक देते हैं या जला देते हैं। अभी तक भारत में सिर्फ केले के फलों का इस्तेमाल होता था और कुछ दक्षिण की कुछ जगहों पर केले के पत्तों को खाना परोसने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन तनों के ये प्रोडक्ट बनाकर आप अपनी कमाई को बढ़ा सकते हैं। तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आसाम, उड़ीसा, बिहार, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश, देश के प्रमुख केला उत्पादक राज्य हैं। रवि बताते हैं, "मैंने उन लोगों से एड्रेस लिया और उनसे रिक्वेस्ट किया कि हमें भी ट्रेनिंग चाहिए, हमारे कुशीनगर जिले में काफी मात्रा में केले की खेती होती है, किसान केले को मार्केट में बेचे देते हैं उसके बाद केले के तने को इधरउधर फेक देते हैं, वो इधर-उधर पड़े हुए सड़ता रहता है, तो वो लोग खुश हुए कि आइए ट्रेनिंग देंगे। एक महीने के लिए कोयंबटूर गया वहां पर

ट्रेनिंग शुरू किया। लोगों का अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।यह काम शुरू करने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार की योजना, एक जिला एक उत्पाद के लिए उनका चयन हो गया। वो बताते हैं कि एक जिला एक उत्पाद में चयन के बाद, शिल्प ग्राम में जगह मिल गई, मुख्यमंत्री ने मुझे सर्टिफिकेट भी दिया। अब मेरे पास दूसरे जिलों के ऑफर आ रहे है, कि हमको बताइए हम भी करना चाहते हैं। कमाई के बारे में रवि कहते हैं कि अभी नए नए हैं, तो समझ नहीं पाए थे, लेकिन अब लोगों को ऑफर आ रहे हैं, इससे पेपर बनता है, साड़ियां बनती हैं, बनारस की एक साड़ी कंपनी से आर्डर मिला है, चित्रकूट से भी आर्डर मिला है कि वो इसके फाइबर से पेपर बनाएंगे। मुझे खुशी होती है कि इतनी जल्दी ही लोगों का अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। पहले लग रहा था कि काम शुरु कर रहे हैं पता नहीं क्या होगा। अगर कोई ट्रेनिंग लेना चाहता है तो रवि उसे ट्रेनिंग दे सकते हैं। (एजेंसी)


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विज्ञान

14 - 20 मई 2018

डीजल टेक्नोलॉजी में नई खोज का दावा

यूरेनस पर है दुर्गंध वाली हाइड्रोजन सल्फाइड गैस

जर्मनी की कंपनी बॉश ने डीजल इंजन के लिए स्वच्छ एक्जॉस्ट सिस्टम विकसित करने का दावा किया है

पृथ्वी से अधिक गहरे नीले रंग के ग्रह यूरेनस पर अधिक मात्रा में हाइड्रोजन सल्फाइड मिलने से सौर मंडल के निर्माण की परिस्थितियों को समझा जा सकेगा

सातवें नंबर के इंग्लैंग्रहडयूरके​ेनसवैज्परञानिकोंऐसीनेगैहमारे स खोज निकाली है,

जो अत्यंत दुर्गंध वाली है। इस गैस का नाम हाइड्रोजन सल्फाइड है। वैज्ञानिकों ने सड़े अंडों जैसी तीव्र दुर्गंध वाली इस गैस की मात्रा 0.4 से 8.8 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) आंकी है। इस खोज से सौरमंडल के निर्माण के समय की परिस्थितियों को समझने में मदद मिल सकती है। भारतीय तारा-भाैतिकी संस्थान बेंगलुरु के प्रोफेसर आरसी कपूर ने बताया कि वैज्ञानिकों ने हवाई द्वीप समूह में स्थापित जेमिनी नॉर्थ दूरदर्शी के जरिए यूरेनस ग्रह के वातारण का आकलन किया। यूरेनस के वातावरण में हाइड्रोजन सल्फाइड गैस की मात्रा अमोनिया से काफी

अधिक पाई गई। इसकी तुलना में सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति व शनि की बात करें तो इन दोनों ग्रहों के उपरी बादलों वाले क्षेत्र में अमोनिया गैस फैली हुई है, जो वहां बर्फ के रूप में मौजूद है। वैज्ञानिकों का अनुमान था कि यूरेनस के वातावरण में भी अमोनिया की मात्रा अधिक होगी, परंतु परिणाम इसके उलट निकला। यूरेनस में हाइड्रोजन सल्फाइड की मात्रा शनि के मुकाबले चार गुना अधिक है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह महत्वपूर्ण खोज सौरमंडल के जन्म की परिस्थितियों पर प्रकाश डालने में बेहद मददगार साबित होगी। यूरेनस पृथ्वी से अधिक नीले रंग का ग्रह है। कम चमक वाला होने के कारण इसे दूरबीन के जरिए ही बखूबी देखा जा सकता है। आकार में पृथ्वी से चार गुना और भार में 14 गुना अधिक है। यह 84 साल में सूर्य की परिक्रमा पूरी कर पाता है। इसका अक्ष अपनी कक्षा में 99.8 डिग्री झुका हुआ है। जिस कारण यह अपने पथ में लुढ़कता हुआ चलता है। इसका आधा हिस्सा 42 साल तक सूर्य के सामने रहता है, जबकि दूसरा भाग अंधेरे में डूबा रहता है। जिसके चलते इसका मौसम अन्य ग्रहों की तुलना में बिलकुल अलग है। इस ग्रह के वातावरण में 83 फीसद हाइड्रोजन, 15 फीसद हीलियम व 2.3 प्रतिशत मीथेन समेत अन्य गैस हैं। (एजेंसी)

मौ

जूदा दौर में नई डीजल कारें भी एक किलोमीटर के सफर में 168 मिलीग्राम नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओटू) छोड़ती हैं। नाइट्रोजन ऑक्साइड स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। इस गैस के चलते ही यूरोप समेत दुनिया के कई देशों में डीजल कारों पर बैन लगाने की तैयारी हो रही है। लेकिन जर्मन ऑटो पार्ट्स सप्लायर कंपनी बॉश का दावा है कि उसने एनओटू के स्तर में रिकॉर्ड कमी लाने वाला एक्जॉस्ट सिस्टम विकसित कर लिया है। कंपनी के मुताबिक नया सिस्टम प्रति किलोमीटर सिर्फ 13 मिलीग्राम एनओटू उत्सर्जित करता है. यह 2020 के लिए तय किए गए 120 मिलीग्राम के स्तर से भी बहुत कम है। कंपनी ने इसे बड़ी खोज करार दिया है। उसका दावा है कि नया सिस्टम मौजूदा फिल्टर एक्जॉस्ट सिस्टम के मुकाबले काफी सस्ता भी है। बॉश के सीईओ फोल्कमार डेनेर ने कहा कि यह खोज डीजल पर तीखी बहस को एक अलग स्तर पर ले जाएगी और मुमकिन है कि उसे बंद कर देगी। बॉश का कहना है कि नए सिस्टम के लिए

प्रोडक्शन लाइन तैयार है। जल्द ही उसका प्रोडक्ट बाजार में आ जाएगा। कंपनी के मुताबिक नए सिस्टम का फ्यूल इकोनॉमी पर मामूली असर पड़ेगा। इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड कारों का जिक्र करते हुए डेनेर ने दावा करते हुए कहते हैं कि जब तक ई-मोबिलिटी बाजार पर छा नहीं जाती, तब तक हमें इन बेहद किफायती इंजनों की

जरूरत है। जर्मनी के मशहूर ओटोमोटिव एक्सपर्ट उवे वागनेर बॉश के इस दावे को मौलिक खोज मानने से इनकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि नए सिस्टम के लिए जिन पुर्जों की जरूरत पड़ती हैं, वे सब पहले से ही डीजल कारों में मौजूदा हैं, बस जरूरत है उनकी जगह बदलने है और साथ ही ऑप्टिमाइजेशन के लिए सॉफ्टवेयर अपडेट भी करना होगा। फिलहाल कारों में कैटेलिटिक कनवर्टर वाला एक्जॉस्ट सिस्टम लगा होता है। इंजन से कुछ दूरी पर मौजूद यह सिस्टम ज्यादातर हानिकारक गैसों और कणों को रोक लेता है। विशेषज्ञों के मुताबिक कैटेलिटिक कनवर्टर को बेहद गर्म इंजन के करीब ले जाने से एनओटू के उत्सर्जन में भारी कमी आएगी। बेहद गर्म गैसों का घनत्व ज्यादा होता है, जिसके चलते कैटेलिटिक कनवर्टर उन्हें ज्यादा कुशलता से रोक सकेगा। जरूरत बस ऐसे कैटेलिटिक कनवर्टर की है जो बिना जले अथाह गर्मी को बर्दाश्त कर ले। (एजेंसी)

अवध विवि में खुलेगा हाईटेक वैज्ञानिक शोध केंद्र

डॉ.

अवध विश्वविद्यालय में खुलने वाला सीआईएफ शोध केंद्र आसपास के विश्वविद्यालयों की पहली ऐसी प्रयोगशाला होगी, जहां शोध छात्रों को अति आधुनिक सुविधाएं व उपकरण मिलेंगे

राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय की उपलब्धि में एक और नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। केंद्र सरकार की योजना राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) के तहत विश्वविद्यालय में अति आधुनिक वैज्ञानिक शोध केंद्र खुलने जा रहा है। यह केंद्रीकृत उपकरण सुविधा (सीआईएफ) शोध केंद्र के नाम से जाना जाएगा। योजना के अंतर्गत भवन निर्माण के लिए 4.50 करोड़ रुपए आवंटित किए जा चुके हैं। भवन बनाने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होने वाली है। खास बात यह है कि अवध विश्वविद्यालय में खुलने वाला सीआईएफ शोध केंद्र आसपास के विश्वविद्यालयों की पहली ऐसी प्रयोगशाला होगी, जहां शोध छात्रों

को अति आधुनिक सुविधाएं व उपकरण मिलेंगे। कुलपति प्रोफेसर मनोज दीक्षित के प्रयास से

पिछले वर्ष अवध विश्वविद्यालय में रूसा के तहत सीआईएफ शोध केंद्र खोले जाने का प्रस्ताव को मंजूरी मिली थी। अब इस योजना पर कार्य शुरू हो गया है। रूसा की ओर से प्रथम चरण में भवन बनाने के लिए साढ़े चार करोड़ रुपए मिले है। विश्वविद्यालय के मुख्य कैंपस में इलेक्ट्रॉनिक्स व फिजिक्स विभाग के बगल भवन बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। भवन निर्माण के बाद दूसरे फेज में उपकरण के लिए रूसा धनराशि का आवंटन करेगा। इसके लिए

विज्ञान विषय से जुड़े समस्त विभागों से आधुनिक व आसानी से न मिलने वाले उपकरणों की लिस्ट विभागों से मांगी जाएगी। फिर बजट निर्धारित करके रूसा को भेजी जाएगी। इसके बाद ही उपकरणों की धनराशि का आवंटन होगा। इलेक्ट्रॉनिक्स व फिजिक्स विभाग के प्रोफेसर केके वर्मा बताते है कि इस प्रकार के उपकरण केंद्र इंदौर के वैज्ञानिक संकुल केंद्र व गुजरात के सीकार्ट जैसी संस्थाओं के पास ही है। उनका कहना है कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के पास ऐसा कोई उपकरण केंद्र नहीं है। अवध विश्वविद्यालय में सीआईएफ शोध केंद्र का खुलना एक बड़ी उपलब्धि है। (एजेंसी)


14 - 20 मई 2018

चिकनगुनिया से बचने की दवा बनाना होगा आसान

'आर्थराइटिस को करें अलविदा' का विमोचन आशीष झा और दिलीप यादव की आर्थराइटिस पर लिखी किताब, 'आर्थराइटिस को करें अलविदा' का विमोचन

भारतीय शोधकर्ताओं ने ऐसे वायरस रोधी अणु का पता लगाया है जिससे चिकनगुनिया से निजात मिल सकती है

भा

रतीय प्राद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रूड़की के शोधकर्ताओं ने वायरसरोधी अणु का पता लगाया है जिसका उपयोग कर बनाई जाने वाली दवा से चिकुनगुनिया के प्रकोप से निजात मिल सकती है। मच्छर जनित इस रोग से पीड़ित मरीजों में तेज बुखार और जोड़ों के दर्द की शिकायत रहती है। अब तक इस रोग की रोकथाम व उपचार के लिए न तो कोई कारगर दवा बाजार में उपलब्ध है और न

ही कोई टीका। आईआईटी, रूड़की के शोधकर्ताओं ने पेप-1 और पेप2 नामक दो अणुओं की खोज की है जो वायरस रोधी हैं। इनकी खोज के लिए शोधकर्ताओं ने चिकनगुनिया वायरस विशिष्ट एनएस-पी2 प्रोटीज के संरचनागत अध्ययन का उपयोग किया। आईआईटी रूड़की के बायोटेक्नोलोजी विभाग की प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता शैली तोमर ने कहा कि एनएस-पी2 प्रोटीज एक सख्त वायरल एंजाइम है जो मानव में मौजूद नहीं होता है और यह चिकनगुनिया वायरस के लिए बेहतर एंटीवायरल ड्रग हो सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक जिन अणुओं यानी सूक्ष्मकणों में एनएस-पी2 प्रोटीज रहता है उनका उपयोग एंटीवायरल के रूप में किया जा सकता है। (आईएएनएस)

वायुमंडल में है बिना बादल वाला ग्रह

वै

ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने सौर मंडल के बाहर एक ऐसे ग्रह को खोज निकाला है, जहां बादल नहीं हैं। इस खोज से से सौर प्रणाली से बाहर के ग्रहों को समझने में मदद मिलेगी

ज्ञानिकों ने सौरमंडल से बाहर के एक वायुमंडल का पता लगाया है, जहां बादल की मौजूदगी नहीं है। इस अध्ययन से सौर प्रणाली से बाहर के ग्रहों को समझने में मदद मिलेगी। ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने चिली में 8.2 मीटर लंबे टेलीस्कोप की मदद से डब्ल्यूएएसपी -96 बी का अध्ययन किया। एक व्यक्ति की अंगुलियों के निशान जिस प्रकार दूसरे की अंगुलियों से बिल्कुल जुदा होते हैं, उसी प्रकार अणुओं और परमाणुओं की वर्णक्रमीय विशेषता बिल्कुल भिन्न होती है। इसका इस्तेमाल खगोलीय वस्तुओं में उनकी मौजूदगी का पता लगाने के लिए किया जाता है। डब्ल्यूएएसपी-96बी के क्रम में अध्ययन में पूर्ण सोडियम के निशान मिले हैं। ऐसा बादल रहित वायुमंडल में ही संभव है।

डब्ल्यूएएसपी-96 बी का स्पेक्ट्रम सोडियम का पूरा फिंगरप्रिंट दिखता है, जिसे केवल बादलों के मुक्त वातावरण में देखा जा सकता है। यह खोज खगोलविदों के लिए विशेष रूप से रोमांचक है, जिन्हें लंबे समय तक संदेह था कि गर्म, गैस-विशाल एक्सोप्लानेट्स सोडियम बंदरगाह है - लेकिन उनके पास संदेह से जुड़ा कोई सबूत नहीं था। पहली नजर में, डब्ल्यूएएसपी- 96 बी बहुत खास नहीं दिखता है। यह विशालकाय गैस का आयतन है, जो द्रव्यमान में शनि की ही तरह है, लेकिन बृहस्पति से लगभग 20 फीसदी बड़ा है, एक सिमरी 1300 डिग्री सेल्सियस (1027 डिग्री सेल्सियस या 1900 डिग्री फारेनहाइट) पर सेट है। यह फीनिक्स नक्षत्र में पृथ्वी से करीब 980 प्रकाशवर्ष दूर है, और सूर्य जैसा सितारा है। (एजेंसी)

15

विज्ञान

लने-फिरने से लाचार गठिया रोग से पीड़ित बुजुर्गो की दशा देख आहत युवा लेखक आशीष झा और दिलीप यादव ने इस रोग से निजात पाने के लिए एक किताब लिखी है। 'आर्थराइटिस को करें अलविदा' नामक इस किताब का हाल ही में विमोचन किया गया है। किताब में लेखकद्वय ने युवाओं, बच्चों और बुजुर्गो को आर्थराइटिस यानी गठिया रोग के प्रति जागरूक करने के साथ-

साथ पीड़ित मरीजों को सरल प्राकृतिक विधियों से उपचार बताया है। किताब विमोचन कार्यक्रम में प्रख्यात लेखक व शिक्षाविद बीरबल झा, चंद्रा हॉस्पिटल के संचालक डॉ. संदीप अरोड़ा और समाजसेवी राजीव टंडन समेत कई बुद्धिजीवी मौजूद। इस किताब में उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से गठिया के उपचार का उल्लेख किया है। आशीष ने बताया कि लोग अगर सही जीवनपद्धति अपनाएं तो इस रोग का उपचार आसान है और पीड़ितों को चिकित्सकों को पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। डॉ. बीरबल झा ने कहा कि महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाओं को कई पीढ़ियां पढ़ती हैं और उससे सूचनाएं ग्रहण करती हैं। उन्होंने आशीष और दिलीप के प्रयासों की सराहना की। (आईएएनएस)

13 मिनट तक सांस रोकते हैं बाजाओ आदिवासी

अं

एक सांस में 70 मीटर गहरे समंदर में उतरना और फिर वहां बिना ऑक्सीजन के करीब 13 मिनट तक मछलियां मारना। विज्ञान अब बाजाओ कबीले के इस रहस्य का राज खोल रहा है

डमान निकोबार और दक्षिण पूर्व एशिया के बाजाओ आदिवासी बिना किसी ऑक्सीजन के गहरे समंदर में कई मिनट तक रहते हैं। उन पर लंबा शोध करने के बाद वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जीन में बदलाव के चलते वो ऐसा कर पाते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक बाजाओ कबीले के लोगों की तिल्ली या प्लीहा वक्त के साथ काफी बड़ी हो गई। पेट में मौजूद तिल्ली शरीर में ऑक्सीजन से समृद्ध लाल रक्त कणिकाओं को स्टोर रखती है। जब जरूरत पड़ती है तब तिल्ली से कणिकाएं निकलती है और पर्याप्त ऑक्सीजन मुहैया कराती हैं। बड़ी तिल्ली के चलते बाजाओ गोताखोरों के शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई ज्यादा हो सकती है। इसके चलते वह काफी देर तक समंदर के अंदर सांस रोक पाने में सफल होते हैं। सेल नाम की विज्ञान पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक इस बात के सबूत मिले हैं कि बाजाओ कबीले के लोगों के जीन ऑक्सीजन की कमी वाले वातावरण के मुताबिक ढल चुके हैं। वैज्ञानिकों ने बाजाओ लोगों की तिल्ली की तुलना, गोताखोरी न करने वाले पड़ोसी सालुआन कबीले से की। इस दौरान पता चला कि बाजाओ लोगों की तिल्ली 50 फीसदी बड़ी है। शोध के वरिष्ठ लेखक और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इंटेग्रैटिव बायोलॉजी के प्रोफेसर रासमस निल्सन कहते हैं कि हमारे पास यह उदाहरण

है कि कैसे इंसान जेनेटिक रूप से नए किस्म की खुराक और बेहद दुश्वार माहौल का आदी हो जाता है। भले ही वह तिब्बत का बहुत ही ऊंचा इलाका हो या फिर आर्कटिक सर्किट के करीब का ग्रीनलैंड। अब हमारे पास इस बात के चौंकाने वाले उदाहरण भी है कि इंसान कैसे जीन संबंधी बदलाव करते हुए संमदर में खाना खोजने वाला बंजारा बन गया। बाजाओ कबीले के लोग हर दिन भोजन की तलाश में समंदर में गोता लगाते हैं। आम तौर पर वह बिना किसी ऑक्सीजन के 70 मीटर की गहराई तक जाते हैं। उस गहराई पर वह एक सांस में 13 मिनट तक पैदल चल या फिर तैर सकते हैं। तलहटी में पैदल चलते हुए वे नुकीले बर्छों से शिकार करते हैं। ये गोताखोर अपने रोजमर्रा के कामकाज का 60 फीसदी हिस्सा समंदर के भीतर बिताते हैं। बाजाओ कबीले के लोग इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और भारतीय द्वीप समुदाय अंडमान निकोबार में पाए जाते हैं। (एजेंसी)


16 खुला मंच

14 - 20 मई 2018

महान कार्य को एक ही तरीका है जो आप कर रहे हैं उसे पंसद करे - स्टीव जाॅब्स

विकास पथ पर देश

यह पूरे देश के लिए गौरव की बात है कि इंस्टीट्यूट एशिया पावर इंडेक्स में एशिया प्रशांत के 25 देशों में भारत चौथे स्थान पर पहुंच गया है

स्व

च्छता से स्वास्थ्य और स्वास्थ्य से विकास का जो मंत्र चार साल पहले लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को दिया, आज उसके नतीजे दिखने लगे हैं। यह पूरे देश के लिए गौरव की बात है कि इंस्टीट्यूट एशिया पावर इंडेक्स में एशिया प्रशांत के 25 देशों में भारत चौथे स्थान पर पहुंच गया है। भारत के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। इस पावर इंडेक्स में भारत को भविष्य की असाधारण ताकत के रूप में बताया गया है। पावर स्टेटस का बड़ा हिस्सा जापान और भारत के हिस्से है, टोक्यो स्मार्ट पावर है, जबकि नई दिल्ली भविष्य में होने वाली ताकत है। इस पावर इंडेक्स में किसी भी देश की ताकत का आकलन आठ चीजों के तहत किया जाता है। इनमें आर्थिक संसाधनों, सैन्य क्षमता, लचीलापन, फ्यूचर ट्रेंड्स, राजनयिक प्रभाव, इकोनॉमिक रिलेशनशिप, डिफेंस नेटवर्क और सांस्कृतिक प्रभाव शामिल हैं। इकोनॉमिक रिसोर्स, सैन्य क्षमता, राजनयिक प्रभाव के मामले में भारत चौथे स्थान पर है। लचीलेपन के मामले में भारत पांचवें, जबकि सांस्कृतिक प्रभाव और फ्यूचर ट्रेंड के मामले में भारत तीसरे स्थान पर रहा। भारत भविष्य की बड़ी ताकत बनने की ओर है, लेकिन रक्षा नेटवर्क और आर्थिक संबंधों की दिशा में सुधार की जरूरत है। इकोनॉमिक रिलेशनशिप और डिफेंस नेटवर्क में भारत की रैंकिंग सातवीं और दसवीं रही। अमेरिका नंबर एक पर तो चीन नंबर दो पर काबिज है। एशिया में अमेरिका अब भी सबसे ताकतवर देश बना हुआ है, जबकि चीन बड़ी ही तेजी से अमेरिका की बराबरी पर पहुंच रहा है। पावर इंडेक्स के अनुसार भारत एशिया की सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली इकोनॉमी बनने की ओर अग्रसर है, तो इसके पीछे स्वच्छता की बड़ी भूमिका है। घर से गांव और गांव से समाज की स्वच्छता का तानाबाना कुछ ऐसे बुना गया कि देश के विकास का ग्राफ ऊपर चढ़ने लगा। ऑस्ट्रे​ेलिया के थिंक टैंक लॉवी इंस्टीट्यूट एशिया पावर इंडेक्स में चौथे स्थान तक पहुंचना एक पड़ाव भर है, क्योंकि देश को विकास की कई और मंजिलों तक पहुंचना बाकी है। ।

टॉवर फोनः +91-120-2970819

(उत्तर प्रदेश)

अभिमत

सत्येंद्र सिंह

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

अब साफ-सुथरे होने लगे गांवों के रास्ते

शौचालय होने के बावजूद कुछ लोग शौच के लिए अब भी बाहर जाते हैं। कुछ पानी की समस्या बताते हैं, लेकिन असल बात है ग्रामीण जीवन-शैली

सा

तो अवंती बिहार के कैमूर जिले का एक प्रतिष्ठित गांव है। कभी वहां गांव में घुसने के रास्ते गंदे होते थे। शौचालय के अभाव में अधिकतर महिलाएं और बच्चे इन रास्तों पर शौच किया करते थे। न तो शौच करने वालों को यह पसंद था और न ही इस रास्ते पर आने-जाने वालों को। फिर भी यह सब जारी रहा। कोई किसी को ऐसा करने से नहीं रोकता था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। गांव में घुसने के रास्ते साफ-सुथरे हो गए हैं। अब कोई प्रवेश मार्ग पर शौच के लिए नहीं बैठता। उन्हें अब यह साफ-सफाई अच्छा लगने लगा है। आखिर लोगों के व्यवहार में यह परिवर्तन कैसे आ गया? यह कहानी किसी एक गांव की नहीं है। बिहार और देश के कई गांवों की यह कहानी है। मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान ने ऐसे गांवों की तस्वीर बदल दी है। हालांकि इसका यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि लोग शौच के लिए बाहर नहीं जाते। शहर में रहने वाले लोग गांवों के बारे में स्वच्छ भारत अभियान का मतलब यही लगाते होंगे कि वहां हर व्यक्ति घर में ही शौच करता होगा, लेकिन व्यावहारिक यथार्थ ऐसा नहीं है। शौचालय होने के बावजूद कुछ लोग शौच के लिए अब भी बाहर जाते हैं। कुछ पानी की समस्या बताते हैं, लेकिन असल बात है ग्रामीण जीवन-शैली। जिन्हें ग्रामीण परिस्थितियों का आभास होगा, उन्हें यह पता होगा कि खुली हवा में शौच के लिए जाना ग्रामीण जीवन-शैली का हिस्सा रहा है। पर अब लोगों की आदत में बदलाव आ रहा है। इस पर खुले में शौच मुक्त हरियाणा राज्य के महेंद्रगढ़ जिले के दुबलाना पंचायत के प्रधान धर्मपाल कलगानिया कहते हैं कि अब भी गिने-चुने लोग शौच के लिए बाहर जाते हैं, लेकिन सामाजिक दबाव और लोक-लाज के कारण धीरेधीरे यह भी बंद हो जाएगा। बहरहाल, शौचालय निर्माण धीरे-धीरे उस सवाल को खत्म करता जा रहा है, जहां मजबूरी में शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। जब 2 अक्टूबर, 2014 को इस अभियान की शुरुआत की गई थी, तब जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, झारखंड और ओडिशा में 30 प्रतिशत से कम शौचालय थे। हालांकि आज कोई राज्य इस श्रेणी में

नहीं है, फिर भी बिहार और ओडिशा में शौचालय निर्माण की प्रगति धीमी है। यहां अभी 30-60 प्रतिशत घरों में ही शौचालय बनवाए जा चुके हैं, जबकि राजस्थान खुले में शौचमुक्त की श्रेणी में आ चुका है और जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और झारखंड में 60 से 90 प्रतिशत तक शौचालय बनवाए जा चुके हैं। इस तरह मोदी सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत अब तक पूरे देश में सात करोड़ से अधिक शौचालय बनवाये जा चुके हैं। अभियान की शुरुआत के समय केवल केरल ऐसा राज्य था, जो खुले में शौचमुक्त था, आज इस श्रेणी में 16 राज्य आ चुके हैं। करीब साढ़े छह लाख गांवों में से साढ़े तीन लाख से अधिक गांव खुले में शौचमुक्त हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छ भारत मिशन की उपलब्धि शानदार रही, लेकिन बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में अभी तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है। ऐसे में केंद्र सरकार को बिहार जैसे राज्यों में इस दिशा में आ रही समस्याओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इस पर बिहार के सातो अवंती गांव के मुखिया रणजीत सिंह उर्फ पिंटू सिंह कहते हैं कि समस्याएं दो तरह की हैं- एक पैसे की और दूसरी जगह की। इस अभियान के तहत शौचालय बनवाने के बाद पैसा मिलता है, इसीलिए जिनके पास पैसा है, वे शौचालय बनवा लेते हैं, लेकिन जिनके पास पैसा नहीं है, वे इस दिशा में पहल नहीं कर पाते। दूसरी ओर अगर शौचालय बनवाने के पहले पैसे दे दिए जाएं, तो लोग अन्य कार्यों में खर्च कर सकते हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छ भारत मिशन की उपलब्धि शानदार रही, लेकिन बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में अभी तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है। ऐसे में केंद्र सरकार को बिहार जैसे राज्यों में इस दिशा में आ रही समस्याओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है


14 - 20 मई 2018 कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास अगर पैसा है, तो जगह नहीं है। इस कारण कार्य में बहुत तेजी नहीं आ पा रही है, फिर भी शौचालय बन रहे हैं। लोगों का ध्यान इस ओर है। दरअसल, स्वच्छ भारत अभियान ने ग्रामीणों की सोच को बदल दिया है। स्वच्छ भारत अभियान की अगर सबसे बड़ी उपलब्धि कोई है, तो वह स्वच्छता के प्रति गांवों में बढ़ती जागरुकता। ऐसे में इस बात से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता कि सरकार ने गांवों में कितने शौचालय बनवाए हैं। अगर समाज इसके प्रति सचेत है, तो वह अपनी व्यवस्था कर लेता है। बात-बात पर गंदगी की तरफ उनका ध्यान जाता है और उनमें से कुछ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति ताने भी मारते हैं। पर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ प्रतिक्रिया भाव ही उनकी सफलता है। यह कुछ वैसे ही है, जैसे आजादी की लड़ाई के दौरान कांग्रेस के भीतर नरमपंथियों की कमियों के खिलाफ उग्रपंथियों की प्रतिक्रिया राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में सहायक रही। कुल मिलाकर यह इस बात को इंगित करता है कि उनका संदेश लक्ष्य समूह तक पहुंच गया है। पर समाज में ऐसे लोग भी कम नहीं हैं, जिन्हें यह पता ही नहीं है कि यह कार्यक्रम मोदी सरकार चला रही है। मोदी सरकार अगले साल गांधी जी की 150वीं जयंती को यादगार बनाना चाहती है। इस समय तक वह भारत को खुले में शौचमुक्त बनाने के इरादे से काम कर रही है। गांवों में कुल नौ करोड़ शौचालय बनाने का लक्ष्य है। अभी तक 83 प्रतिशत शौचालय बनवाये जा चुके हैं। अभियान की शुरुआत के समय 38 प्रतिशत घरों में ही शौचालय थे। ऐसा नहीं था कि स्वच्छ भारत अभियान के पहले ग्रामीण स्वच्छता के लिए अभियान नहीं चलाया जा रहा था, लेकिन उनमें लक्ष्य प्राप्ति के प्रति तीव्रता का अभाव था। 1999 में भारत सरकार ने व्यापक ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम को नए सिरे से संपूर्ण स्वच्छता अभियान के रूप में लांच किया था। बाद में मनमोहन सिंह के शासन काल में इसका नाम बदल कर ‘निर्मल भारत अभियान’ कर दिया गया था। मोदी के शासन काल में इसमें कुछ बदलाव करके इसे ‘स्वच्छ भारत अभियान’ नाम दे दिया गया।

ल​ीक से परे

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खुला मंच

ओशो

महान दार्शनिक और विचारक

मृत्यु और धर्म

जैसे ही यह प्रतीति साफ हो जाती है कि मृत्यु निश्चित है, वैसे ही जीवन का सारा अर्थ बदल जाता है

रस्तुन ने कहा है कि यदि मृत्यु न हो, तो जगत में कोई धर्म भी न हो। ठीक ही है उनकी बात, क्योंकि अगर मृत्यु न हो, तो जगत में कोई जीवन भी नहीं हो सकता। मृत्यु केवल मनुष्य के लिए है। इसे थोड़ा समझ लें। पशु भी मरते हैं, पौधे भी मरते हैं, लेकिन मृत्यु मानवीय घटना है। पौधे मरते हैं, लेकिन उन्हें अपनी मृत्यु का कोई बोध नहीं है। पशु भी मरते हैं, लेकिन अपनी मृत्यु के संबंध में चिंतन करने में असमर्थ हैं। इस तरह मृत्यु केवल मनुष्य की ही होती है, क्योंकि मनुष्य जानकर मरता है, जानते हुए मरता है। मृत्यु निश्चित है, ऐसा बोध मनुष्य को है। चाहे मनुष्य कितना ही भुलाने की कोशिश करे, चाहे कितना ही अपने को छिपाए, पलायन करे। लेकिन हृदय की गहराई में मनुष्य जानता है कि मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है। मृत्यु के संबंध में पहली बात तो यह खयाल में रखनी चाहिए कि मनुष्य अकेला प्राणी है, जो मरता है। मरते तो पौधे और पशु भी हैं, लेकिन उनके मरने का भी बोध मनुष्य को होता है, उन्हें नहीं होता। उनके लिए मृत्यु एक अचेतन घटना है। इसीलिए पौधे और पशु धर्म को जन्म देने में असमर्थ हैं। जैसे ही मृत्यु चेतन बनती है, वैसे ही धर्म का जन्म होता है। जैसे ही यह प्रतीति साफ हो जाती है कि मृत्यु निश्चित है, वैसे ही जीवन का सारा अर्थ बदल जाता है; क्योंकि अगर मृत्यु निश्चित है तो फिर जीवन की जिन क्षुद्रताओं में हम जीते हैं उनका सारा अर्थ खो जाता है। मृत्यु के संबंध में दूसरी बात ध्यान में यह रखनी जरूरी है कि वह निश्चित है। निश्चित का मतलब यह कि मृत्यु की घटना निश्चित है। वह तो होगी

ही। जो भी निश्चित हो जाता है, उसके बाबत हम निश्चित हो जाते हैं, चिंता मिट जाती है। मृत्यु के संबंध में तीसरी बात जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि मृत्यु निश्चित है, लेकिन एक अर्थ में अनिश्चित भी है। होगी तो, लेकिन कब होगी, इसका कोई भी पता नहीं। इससे चिंता पैदा होती है। जो बात होनेवाली है और फिर भी पता न चलता हो कि कब होगी। मृत्यु अगले क्षण हो सकती है और वर्षों तक भी टल सकती है। विज्ञान की चेष्टा जारी रही तो शायद सदियां भी टल सकती हैं। इससे चिंता पैदा होती है। कीर्कगार्ड ने कहा है कि मनुष्य की चिंता तभी पैदा होती है जब एक अर्थ में कोई बात निश्चित भी होती है और दूसरे अर्थ में निश्चित नहीं भी होती है। तब उन दोनों के बीच में मनुष्य दुविधा में पड़ जाता है। मृत्यु की चिंता से ही धर्म का जन्म तो हुआ है। लेकिन मृत्यु की चिंता हमें बहुत सालती नहीं है। हमने उपाय कर रखे हैं- जैसे रेलगाड़ी में दो डिब्बों के बीच में बफर होते हैं, उन बफर की वजह से गाड़ी में कितना ही धक्का लगे, डिब्बे के भीतर लोगों को उतना धक्का नहीं लगता। बफर

धक्के को झेल लेता है। कार में शाॅकर होते हैं, रास्ते के गडढ़े को ये झेल लेते हैं। अंदर बैठे हुए आदमी को पता नहीं चलता। आदमी ने अपने मन में भी बफर लगा रखे हैं जिनकी वजह से वह मृत्यु का जो धक्का अनुभव होना चाहिए, उतना अनुभव नहीं हो पाता। मृत्यु और आदमी के बीच में हमने बफर का इंतजाम कर रखा है। ये बफर बड़े अदभुत हैं, इन्हें समझ लें तो मृत्यु से पूर्व जीवन और उससे भी ज्यादा हम धर्म की पूरी अवधारणा समझ सकते हैं। महात्मा बुद्ध ने मरे हुए आदमी को देखा और बुद्ध ने पूछा, ‘क्या सभी लोग मर जाते हैं? ‘सारथी ने कहा, ‘सभी लोग मर जाते है।’ बुद्ध ने तत्काल पूछा, ‘क्या मैं भी मरूंगा? ‘हम नहीं पूछते। बुद्ध की जगह हम होते, इतने से हम तृप्त हो जाते कि सब लोग मर जाते हैं। बात खत्म हो गयी। लेकिन बुद्ध ने तत्काल पूछा ‘क्या मैं भी मर जाऊंगा? ‘ जब तक आप कहते हैं, सब लोग मर जाते हैं, जब तक आप बफर के साथ जी रहे हैं। जिस दिन आप पूछते हैं, क्या मैं भी मर जाऊंगा? यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है कि सब मरेंगे कि नहीं मरेंगे। सब न भी मरते हों, और मैं मरता होऊं, तो भी मृत्यु मेरे लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है। क्या मैं भी मर जाऊंगा? लेकिन यह प्रश्‍न भी दार्शनिक की तरह भी पूछा जा सकता है और धार्मिक की तरह भी पूछा जा सकता है। जब हम दार्शनिक की तरह पूछते है, तब फिर बफर खड़ा हो जाता है। तब हम मृत्यु के संबंध में सोचने लगते है, ‘मैं’ के संबंध में नहीं। जब धार्मिक की तरह पूछते हैं तो मृत्यु महत्वपूर्ण नहीं रह जाती, ‘मैं’ महत्वपूर्ण हो जाता है।

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- 13 मई 2018 वर्ष-2 | अंक-21 | 07 आरएनआई नंबर-DELHIN

/2016/71597

पीएम मोरी का चीन रौरा

सौहार्ष और सफलता की

यात्ा प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोरी का यह चार वर्ष में चौथा चीन रौरा था। इसके साथ ही वह सबसे जयारा बार चीन जाने वाले भारतीय प्रधानमंत्ी बन गए। इस बार उनकी चीन यात्ा अनौपचाररक थी, इसीनलए रोनों रेशों के नेता ‘लोडेड एजेंडा’ की बजाय ननतांत अनौपचाररक और सहज माहौल में नमले। नतीजतन, परसपर सौहार्ष व भरोसे को लेकर रोनों रेशों के बीच कई अहम सहमनतयां बनीं और कई बडे फैसले भी हुए

‘सुलभ स्वच्छ भारत’ गुड न्यूज वीकली समाचार पत्र के हालिया अंक में मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा को प्रकाशित किया गया। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ साप्ताहिक अखबार के मुख्य पृष्ठ पर विश्व के दो महान नेताओं- भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तस्वीरें एक साथ हैं। भारत से बीजिंग लौट रहे कुछ चीनी यात्रियों ने हवाई अड्डे पर ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ साप्ताहिक समाचर पत्र में दोनों नेताओं की एक साथ तस्वीरें देखा तो काफी रोमांचित हुए। उन्होंने अखबार को गले लगाया और उसके साथ अपनी तस्वीरें खिंचवाई।

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इतिहास की लंबी यात्रा

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में भारत की आजादी से अब तक के 70 वर्षों को 'इंडिया एंड द वर्ल्ड: ए हिस्ट्री इन नाइन स्टोरीज' नामक प्रदर्शनी के जरिए दर्शाया गया है। इस प्रदर्शनी का आयोजन ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन, राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली और छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय, मुंबई के सहयोग किया गया है

फोटो : ​िशप्रा दास


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यह अनूठी प्रदर्शनी सामुदायिक जीवन को लेकर मनुष्य के आरंभिक विकास से लेकर शहरीकरण के शुरुआती चरण और फिर उन सामर्थ्यवान लोगों की कहानी को दर्शाती है, जिन्होंने विशाल साम्राज्यों की स्थापना की और आधुनिक काल में स्वाधीनता को मानवता और राष्ट्रीयता का मूल मंत्र बनाया

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मिसाल

14 - 20 मई 2018

सामाजिक सुधार की ग्रीन ब्रिगेड

मिर्जापुर के नक्सल प्रभावित गांवों में शराब और गांजे का चलन आम था। इस कारण घरेलू हिंसा से लगभग हर घर त्रस्त था। लेकिन दो युवकों ने ग्रीन ब्रिगेड बना कर इन गांवों की तस्वीर ही बदल दी

खास बातें समाज को सुधारने के लिए दो दोस्तों ने शुरू किया ग्रीन ब्रिगेड अभियान हरी साड़ी और हाथों में डंडा लेकर निकलती हैं ग्रीन ब्रिगेड की महिलाएं नक्सल प्रभावित राज्यों में मिर्जापुर मॉडल को अपनाने की तैयारी

एसएसबी ब्यूरो / लखनऊ

त्तर प्रदेश में मिर्जापुर के नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में शांतिपूर्ण तरीके से एक सामाजिक क्रांति चल रही है। इस क्रांति का नाम 'ग्रीन ब्रिगेड' रखा गया है, जिसमें ज्यादातर आदिवासी और निचली जातियों की महिलाएं शामिल हैं। ये महिलाएं न केवल पुलिस को नक्सली गतिविधियों से लड़ने में मदद करती हैं, बल्कि गरीबी और पिछड़ेपन के कारण नक्सल समूहों में शामिल होने वाले ग्रामीणों की भी जांच करती हैं। इसके अलावा ये ब्रिगेड जुआ, शराब और उनके क्षेत्रों में धूम्रपान जैसी सामाजिक बुराइयों को हटाने में भी सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के पांच गांवों में उनकी गतिविधियों के बाद मिर्जापुर एसएसपी आशीष तिवारी ने जिले के दस नक्सल प्रभावित गांवों में ग्रीन ब्रिगेड जैसी पहल की। 2015 में दो सोशल साइंस ग्रेजुएट दोस्तों दिव्यांशु उपाध्याय और रवि मिश्रा ने आशा कल्याण ट्रस्ट की स्थापना की। इस ट्रस्ट ने वाराणसी के सबसे पिछड़े गांव खुशियारी से अपनी गतिविधियों की शुरुआत की। तीन साल से भी कम समय में ही आशा कल्याण ट्रस्ट ने 300 से अधिक स्वयंसेवकों की एक टीम बना ली है, जो ज्यादातर मिर्जापुर और वाराणसी के जनजातीय और नक्सली बेल्ट में काम कर रही है।

शुरुआत में 1000 से अधिक आबादी वाले गांवों, मुख्य रूप से जनजातिय क्षेत्रों में सड़क, बिजली, शौचालय या अन्य बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं। जब दिव्यांशु और रवि ने इन समस्याओं को लेकर पहली बार गांव का दौरा किया, तो वहां एक बुजुर्ग महिला ने सुझाव दिया कि क्षेत्र में किसी भी विकास के बारे में सोचने से पहले उन्हें गांव को परेशान करने वाली सामाजिक बुराइयों से लड़ने और उन्हें खत्म करने की जरूरत है। उस बुजुर्ग महिला ने बताया कि गांवों में पुरुष सूरज ढलने का भी इंतजार नहीं करते हैं, बल्कि वे शराब और चिलम के साथ ही अपने दिन की शुरुआत करते हैं। एक तरफ जहां महिलाएं दूसरे घरों में काम करती हैं, तो वहीं दूसरी तरफ पुरुष जुआ खेलने में अपना पूरा दिन खत्म कर देते हैं। जुआ में पैसा और अन्य कीमती सामान हारने के बाद अक्सर पुरुष हिंसक हो जाते हैं और लोगों से झगड़ा करने लगते हैं। भूख लगने पर ही वह घर में वापस आते हैं और इस दौरान वे अपनी पत्नी और

बच्चों पर अपना पूरा गुस्सा उतारते हैं। गांव के बारे में बुजुर्ग महिला की इस कहानी में कोई झूठ नहीं था, क्योंकि आशा कल्याण ट्रस्ट के दो सदस्यों ने गांव में दो दिन रुक कर इसे अनुभव भी किया। शुरुआत में वे गांव से अपने कार्य को शुरू करने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन जब गांव में अन्य आदिवासी महिलाओं ने अपने सुधारवादी और महिला सशक्तीकरण कार्यक्रमों का समर्थन करने का बीड़ा उठाया तो दोनों मित्रों ने यह चुनौती स्वीकारने का फैसला किया। दिव्यांशु ने बताया कि खुशियारी गांव हमारे लिए एक नई सामाजिक क्रांति शुरू करने की प्रयोगशाला बन गई। हमने सोचा कि यदि हम यहां सफल हुए तो हम अन्य गांवों में कभी असफल नहीं होंगे। ट्रस्ट के सदस्यों ने गांव की सामाजिक, भौगोलिक और आर्थिक आवश्यकता के अनुसार एक कार्यक्रम तैयार किया। इसके तहत आशा ट्रस्ट की कुछ महिला स्वयंसेवकों को गांव में आदिवासी महिलाओं का चयन करने के लिए भेजा गया,

एक बार जब ग्रीन ब्रिगेड किसी घर को सामाजिक बुराई से मुक्त कर देता है तो उस घर पर हरे रंग का अपने दोनों हाथों से एक मुहर लगा देता है, ताकि यह घोषणा की जा सके कि वह घर शराब और घरेलू हिंसा से मुक्त है

जो कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए तैयार थीं। हालांकि शुरुआती प्रशिक्षण के लिए मुख्य समूह में लगभग 15 महिलाएं चुनी गईं। हालांकि मुख्य समूह में शामिल की गई अधिकांश महिलाएं अशिक्षित थी, क्योंकि वह कभी स्कूल नहीं गई थी। इसीलिए उन्हें पहले अपना नाम लिखना सिखाया गया। इसके बाद उन्हें जूडो-कराटे की ट्रेनिंग दी गई, ताकि वे आत्मरक्षा कर सकें। तीन महीने के भीतर ही कोर ग्रुप ने देवरा, रामसिपुर, जगदेवपुर और भद्रशी समेत चार अन्य गांवों की 90 महिलाओं को प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षण के अंतिम दिन उन्हें उपहार के रूप में ग्रीन साड़ी दी गई। इस तरह हमें ग्रीन ब्रिगेड का नाम मिला। आज हमारे पास प्रत्येक गांव में 15-20 सदस्य हैं, जो अपने-अपने क्षेत्रों में नई सामाजिक क्रांति लाने के लिए कार्य कर रहे हैं। निर्मला कुमारी ने कहा कि हरी साड़ी और हाथ में लाठी लिए ये महिलाएं गांव के पुरुषों, उनकी पत्नियों, बच्चों और अन्य परिवार के सदस्यों से परामर्श लेती हैं। यदि इस दौरान कोई पुरुष विरोध करता हैं तो वे परिवार के सदस्यों को उसे एक या दो दिन के लिए घर से बाहर करने के लिए कहती हैं। निर्मला कुमारी ने कहा कि अगर स्थानीय लोगों द्वारा धमकी दी जाती है तो हम स्थानीय पुलिस से सहायता लेते हैं। ग्रीन ब्रिगेड ने गांव में कच्ची शराब बनाने वाली स्थानीय भट्टी को पुलिस की सहायता से चिन्हित किया और उसे हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। ट्रस्ट ने ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अधिकारियों से शराब और गांजा के आदती पुरुषों के स्वास्थ्य जांच के लिए स्वास्थ्य शिविर लगाने के लिए सहायता मांगी। सबसे सक्रिय ग्रीन ब्रिगेड नेता आशा देवी ने कहा कि एक महीने के भीतर ही कई गांवों के बुजुर्गों और पुरुषों ने ग्रीन ब्रिगेड की इस पहल का समर्थन करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं हमें


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वहां काफी सम्मान मिलने लगा और अब पुरुषों के साथ ही साथ महिलाएं भी शराब और गांजे से छुटकारा पाने के लिए हमारे पास आती हैं। एक अन्य ग्रीन ब्रिगेड कार्यकर्ता चांद तारा ने कहा कि एक बार जब ग्रीन ब्रिगेड किसी घर को सामाजिक बुराई से मुक्त कर देता है तो उस घर पर हरे रंग का अपने दोनों हाथों से एक मुहर लगा देता है, ताकि यह घोषणा की जा सके कि वह घर शराब

और घरेलू हिंसा से मुक्त है। आशा ट्रस्ट अपने पहल सामाजिक बुराइयों से लड़ने और महिला सशक्तीकरण को लेकर जल्द ही पड़ोसी जिले मिर्जापुर के नक्सली प्रभावित क्षेत्र में पहुंची, जहां एसएसपी आशीष तिवारी भी बढ़ते नक्सलवाद से निजात पाने के लिए ग्रामीणों के समर्थन में एक योजना बना रहे थे। आशीष तिवारी ने आशा कल्याण ट्रस्ट सदस्यों

को आमंत्रित किया और उन्हें इस कार्य के लिए पूर्ण समर्थन देने का आश्वासन दिया। इतना ही नहीं उन्होंने जिले के नक्सल प्रभावित गांवों में ट्रस्ट के माध्यम से एक कार्यक्रम शुरू किया। दिव्यांशु ने कहा कि खुशियाराई के बाद हमारे लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। हमने अपनी रणनीति में बदलाव किया और कार्यक्रम को उसके अनुरुप बनाया। 150 आदिवासी महिलाओं को सशक्त बनाने और सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए वाराणसी से स्वयंसेवकों की एक कोर टीम बुलाई गई। उसके बाद इन महिलाओं को प्रशिक्षित करने के लिए सिमर, पुराणिया, हिनाता, धनसरिया, रामपुर, भवनपुर, भती, कुडी, दादरा और राजघर नक्सल प्रभावित गांवों में शिविर का आयोजन किया गया। उनके कार्यों से प्रभावित होकर एसएसपी मिर्जापुर ने उन्हें 'पुलिस मित्र' पहचान पत्र दिए। यह अब तक की ग्रीन ब्रिगेड की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। इस बार ग्रीन ब्रिगेड का कार्य नक्सल गतिविधियों पर नजर रखने और नक्सलीवाद का मुकाबला करने के लिए पुलिस को सूचना देना था। सुनिता कुमारी ने कहा कि पुलिस मित्र का पहचान पत्र मिलना हमारे लिए लाठी से ज्यादा प्रभावी साबित हुआ। इससे हमें गांव में अधिक

क्या हमेशा के लिए अस्त होगा सूरज

इंग्लैंड के वैज्ञानिकों का दावा है कि 10 अरब साल बाद सूरज इंटरस्टेलर गैस और धूल का एक चमकदार छल्ला बन जाएगा

सू

रज को लेकर कुछ वैज्ञानिकों ने बड़ी भविष्यवाणी की है। उनका कहना है कि आने वाले 10 अरब साल बाद सूरज इंटरस्टेलर गैस और धूल का एक चमकदार छल्ला बन

जाएगा। इस प्रक्रिया को ग्रहों की निहारिका (प्लेनेटरी नेबुला) के तौर पर जाना जाता है। प्लेनेटरी नेबुला सभी तारों की 90 प्रतिशत सक्रियता की समाप्ति का संकेत देता है। हालांकि कई साल तक वैज्ञानिक इस बारे में निश्चित नहीं थे कि हमारी आकाशगंगा में मौजूद सूरज भी इसी तरह से खत्म हो जाएगा। सूरज के बारे में माना जाता रहा कि इसका भार इतना कम है कि इससे साफ दिख सकने वाले ग्रहों की निहारिका बन पाना मुश्किल है। इस संभावना का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों की टीम ने डेटा-प्रारूप वाला एक नया ग्रह विकसित किया, जो किसी तारे के जीवनचक्र का अनुमान लगा सकता है। मॉडल का इस्तेमाल ग्रह की चमक का अंदाजा लगाने के लिए किया जाता है।

ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर की एलबर्ट जिलस्त्रा ने कहा, 'जब एक तारा खत्म होने की कगार पर होता है तो वह अंतरिक्ष में गैस और धूल का एक गुबार छोड़ता है, जिसे उसका एनवलप कहा जाता है। यह एनवलप तारे के भार का करीब आधा हो सकता है।' उन्होंने बताया, 'तारे के भीतरी गर्म भाग के कारण ही उसके द्वारा छोड़ा गया एनवलप करीब 10,000 साल तक तेज चमकता हुआ दिखाई देता है। इसी से ग्रहों की निहारिका साफ दिखाई पड़ती है। 'नए प्रारूपों में दिखाया गया है कि एनवलप छोड़े जाने के बाद तारे तीन गुणा ज्यादा तेजी से गर्म होते हैं। इससे सूरज जैसे कम भार वाले तारों के लिए चमकदार निहारिका बना पाना आसान हो जाता है। (एजेंसी)

अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में करेंगे चहलकदमी

ना

सा के दो अंतरिक्ष यात्री तापीय नियंत्रण उपकरण से निकलकर 16 मई को अंतरिक्ष में चहलकदमी करने के लिए तैयार हैं। नासा ने सोमवार को एक ब्लॉग पोस्ट

नासा के दो अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में टहलने की तैयारी में हैं

में कहा कि यह चहलकदमी अनुभवी अंतरिक्ष यात्री रिकी अर्नाल्ड व ड्र फ्यूसटेल करेंगे। पोस्ट में कहा गया है कि दोनों अंतरिक्ष यात्री दूसरी बार 14 जून को अंतरिक्ष में चहलकदमी करेंगे। केंद्र के अधिकारी नासा टीवी

पर आगामी अंतरिक्ष चहलकदमी की समीक्षा करेंगे। पहले अंतरिक्ष चहलकदमी के सिर्फ चार दिन बाद 20 मई को आर्टिबल एटीके कक्षीय प्रयोगशाला के लिए चार दिन की यात्रा पर इसकी रिसप्लाई उड़ान शुरू

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करने की योजना बना रहा है। नासा ने कहा कि कार्गो मिशन के लिए आर्टिबल एटीके वर्जीनिया के वालप्स फ्लाइट सुविधा केंद्र से एंटारेस रॉकेट से सिग्नस अंतरिक्ष यान लांच करेगी। (आईएएनएस)

सम्मान और शक्ति मिली। छत्तीसगढ़ और बिहार में अपने समूहों के लिए काम करने वाले इन दस गांवों के अधिकांश नक्सली अचानक गायब हो जाते थे और जब पुलिस इन राज्यों में नक्सलियों का शिकार करने लगती थी तो वह यहां वापस आ जाते थे। ग्रीन ब्रिगेड ने ऐसे पुरुषों की एक सूची बनाई और विशेष रूप से उनके लिए बनाए गए पुलिस सेल को सूचित करने का कार्य करती है। इसके साथ ही ग्रीन ब्रिगेड ने उनकी गांव वापसी पर और गांवों में दिखाई देने वाली किसी भी संदिग्ध गतिविधियों पर विशेष नजर रखती है। दो तीन महीनों के भीतर ही इन क्षेत्रों से कई नक्सलियों को गिरफ्तार कर लिया गया और अब वह पुलिस हिरासत में है। एसएसपी मिर्जापुर ने इन क्षेत्रों से नक्सली गतिविधियां खत्म होने और बेहतर सुधार होने के बाद ग्रीन ब्रिगेड को अपनी इस पहल को बंद करने को कहा है। नक्सल इलाकों में ग्रीन ब्रिगेड की इस सफलता के बाद आशा कल्याण ट्रस्ट एसएसपी मिर्जापुर आशीष तिवारी की सहायता से छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों से नक्सलियों में सुधार के लिए 'मिर्जापुर मॉडल' को दोहराने की योजना बना रहा है।

शुभकामना

सभी रिश्तों से बड़ी है इंसानियत

ज (9 मई 2018) मेरी मुलाकात एक महान व्यक्ति से हुई। उनका नाम है आदरणीय श्री डी. डी. शर्मा। आज उनकी शादी की 50वीं वर्षगांठ थी। उन्होंने एक आजन्म दृष्टिबाधित महिला से शादी की। उनकी पत्नी श्रीमती सरोज शर्मा जी आज भी देख नहीं सकतीं, परंतु उनको देखकर लगता है कि वह एक दिव्य शक्ति से सबकुछ देख सकती हैं। वह एकदम खुश लग रही थीं और स्वाभाविक भी था, क्योंकि आज उनकी शादी के 50 वर्ष पूरे हुए थे। उनकी दो संतानें हैं -- बेटी श्रीमती गीता और बेटा श्री अजय शर्मा, जो एक काबिल चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। संसार में ऐसे लोग भी हैं, जो दूसरों की सहायता करते हैं और खासकर एक दृष्टिबाधित महिला से शादी करना महान से भी महानतम कार्य है। भगवान इस दंपति को सदा सुखी रखे, यही हमारी मंगलकामना है । डॉ. विन्देश्वर पाठक


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विश्व परिवार दिवस (15 मई) पर विशेष

बेटियों की स्वीकार्यता बढ़ी

जो लैंगिक विभेद सालों से समाज में रहा है अब लोग उसे खत्म करने के लिए आगे आ रहे हैं। खासतौर पर बच्चों को गोद लेने के मामले में बेटियों के लिए स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही है

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प्रियंका तिवारी

टियों को लेकर देश-समाज की पुरानी रूढ़ियां टूट रही हैं। आज सरकार खुद आगे बढ़कर बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का अभियान चला रही है। आलम यह है कि जहां लैंगिक अनुपात में लगातार सुधार आ रहा है, वहीं यह समझ भी बनी है कि संबंध और परिवार की सामाजिक अवधारणा बिना बेटियों को केंद्र में रखकर नहीं पूरी हो सकती। यही वजह है कि जिन परिवारों में बच्चे नहीं हैं, वे अब बेटों की जगह बेटियों को गोद लेने को प्राथमिकता देते हैं। 2015 में भारत में लगभग 59 फीसदी दंपतियों ने बच्चियों को गोद लेने के लिए आवेदन डाला, जबकि बेटों के लिए सिर्फ 41 फीसदी। यह आंकड़ा बताता है कि बेटियों के लिए स्वीकार्यता बढ़ रही है। जो विभेद सालों से समाज में रहा है अब लोग उसे खत्म करने के लिए आगे आ रहे हैं।

मां-बाप की फिक्र में आगे

बिहार, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेशों में जहां लिंगानुपात में बड़ा अंतर है, वहां भी अभिभावक बेटियों को गोद लेने की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि बहुत सारे अभिभावक बच्चियों को इसीलिए गोद लेना चाहते हैं क्योंकि यह साफ है कि बच्चियां माता-पिता के प्रति ज्यादा प्रेम रखती हैं और लंबे समय तक उनसे जुड़ाव रखती हैं। हालांकि लड़कों की उपलब्धता कम होना भी इसकी एक वजह है। गोद लिए जाने वाले बच्चों के आंकड़ो को देखें तो पता चलता है कि अभिभावक अब बेटे के लिए लंबा इंतजार नहीं करना चाहते हैं और वे बेटियों को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना रहे हैं। बेटी को गोद लेने वाली सर्कुलर रोड रांची की ज्योत्सना राय कहती हैं, ‘मैं मानती हूं कि हर परिवार में एक बेटी होना चाहिए। उससे घर पूरा होता है। घर में खुशहाली आती है। समाज की सोच भी उन्नत

बिहार के भागलपुर जिले से 20 किमी की दूरी पर धरहरा गांव है। इस गांव में रहने वाले बेटी के जन्म पर करीब 10 आम के पेड़ लगाते हैं। यहां बेटी को लक्ष्मी मानकर उसका दुनिया में स्वागत किया जाता है

होती है। जब हम किसी बेटी के सिर पर हाथ रखते हैं तो हम कहीं न कहीं समाज को बेहतर बना रहे होते हैं।’

गोद लेने का बढ़ा चलन

भारत में पिछले दस सालों में गोद लिए जाने वाले बच्चों का प्रतिशत बढ़ा है और अब बेटियों को अपनाने की नई सोच भी दिखने लगी है। 2004 में जहां 2, 728 बच्चे गोद लिए गए थे, वहीं 201415 में 4,353 बच्चे गोद लिए गए। इनमें बेटियों की संख्या अच्छी खासी है। अच्छी खबर यह भी है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में लोग बच्चियों को गोद ले रहे हैं। इन राज्यों में बेटियों को अपनाने वाले परिवारों की अच्छी खासी संख्या है। बच्ची गोद लेने वाली खुशबू बताती हैं, ‘हमने जब बच्चा गोद लेने के लिए 2013 में आवेदन किया तो हमने उसमें बच्चे को लेकर अपनी कोई खास पसंद नहीं जाहिर की। हमने लड़का या लड़की वाले विकल्प में कुछ भी नहीं लिखा। हमारा सोचना था कि जिस तरह लड़के या लड़की का जन्म ईश्वर के हाथ है उसी तरह हमारे जीवन में कौन आए यह फैसला भी ईश्वर पर ही छोड़ देना चाहिए।’ इस

खास बातें 2015 में 59 फीसदी दंपतियों ने बच्चियों ने के लिए आवेदन किया 2004 में 2, 728 बच्चे गोद लिए गए, 2014 में यह संख्या 4,353 थी दस सालों में गोद लिए जाने वाले बच्चों का प्रतिशत लगातार बढ़ा है विषय के विशेषज्ञों का मानना है कि बेटियों को लेकर लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है। बराबरी के हक के बाद जागरूकता भी बढ़ी है।

आवेदक ज्यादा, बच्चे कम

भारत दुनिया के उन देशों में शुमार है, जहां अनाथ और खोऐ हुए बच्चों की संख्या काफी ज्यादा है। ऐसे में 2012 और 2013 में गोद लिए जाने वाले बच्चों


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जेंडर

दूसरे देश के बच्चों को गोद लेने वाला अनूठा परिवार दु

इस अनूठे दंपति के पास रहने के लिए दुनिया में कहीं भी खुद का घर नहीं है, लेकिन वे नौ बच्चों का पालन-पोषण कर रहे हैं, जिनमें से 4 बच्चे गोद लिए हुए हैं

निया में एक तरफ जहां परिवार की इकाई को लगातार संयुक्त से एकल बनाने की होड़ दिखती है, वहीं दूसरी तरफ जीवन और परिवार को कुछ नई और अनूठी सोच भी देखने को मिल रही है। ऐसी ही एक सोच हो बच्चों को गोद लेकर अपना परिवार बढ़ाने की। जहां भारत से लेकर यूरोप और अमेरिका तक के सेलिब्रिटीज पहले से ही बच्चों को गोद लेने की प्रथा को आगे बढ़ा रहे हैं तो वहीं अब यह कार्य सामान्य लोग भी कर रहे हैं। समाज विज्ञानी इस बारे में दो तरह की राय रखते हैं। उनकी नजर में ऐसा करना जहां एक तरफ अत्यंत वात्सल्यता का परिचायक है, वहीं इसे नए दौर में परिवार में पति-पत्नी की भूमिका और संबंध में आए नए बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। एक ऐसा ही दंपति है, जो विश्व भ्रमण के साथ बच्चों को गोद लेकर अपने परिवार का आकार और खुशियां दोनों बढ़ाने में लगा है। उनके पास रहने के लिए दुनिया में कहीं भी खुद का घर नहीं है, लेकिन वे नौ बच्चों का पालन-पोषण कर रहे हैं, जिनमें से 4 बच्चे गोद लिए हुए हैं। ये चार और उनका एक खुद का बच्चा स्पेशल नीड्स वाले हैं। यह कहानी है अनोखे दंपति ब्रेंट एन स्टेसी और जीन इनियन की। ब्रेंट फिलीपींस से ताल्लुक रखते हैं तो उनकी पत्नी जीन स्वीडन की हैं। अब वे अपनी सारी संपत्ति बेचकर दुनिया घूमने निकले की संख्या में गिरावट दर्ज होना चिंताजनक स्थिति थी। बच्चों के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं और एनजीओ रिपोर्ट्स की मानें तो इस समय पूरे देश में लगभग 50000 अनाथ बच्चों को आसरे की जरूरत है। केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के आंकड़ो के अनुसार 2012 में कुल 1410 बच्चों को गोद लिया गया था। इसके बाद आंकड़ो में आई गिरावट 946 तक पहुंच गई। यह अब तक कि सबसे कम संख्या थी। लेकिन अब इसमें सुधार हो चुका है। सीएआरए की रिपोर्ट कहती है कि इस समय देश में ऐसे बच्चे जिन्हें गोद दिया जा सकता है, उनकी संख्या 1200 के करीब है, जबकि गोद लेने के इच्छुक माता-पिता की संख्या 10000 है। इसमें से 9000 माता-पिता भारतीय हैं, जबकि शेष

ब्रेंट और जीन ने अपना दुनिया घूमने का अनोखा सफर 2007 में अमेरिका से शुरू किया था। अब तक वे जापान, ताईवान, फिलीपींस, बेलीज, मेक्सिको, चीन, मिस्र और दक्षिण कोरिया समेत दर्जनों देश घूम चुके हैं हैं। उनके गोद लिए बच्चे भारत, इंडोनेशिया, चीन और साउथ कोरिया के हैं। उनका खुद का बच्चा एक विशेष तरह की असामान्यता का शिकार है। इन सभी बच्चों की उम्र 6 से 18 साल के बीच है। ब्रेंट और जीन ने अपना दुनिया घूमने का अनोखा सफर 2007 में अमेरिका से शुरू किया था। अब तक वे जापान, ताईवान, फिलीपींस, बेलीज, मेक्सिको, चीन, मिस्र और दक्षिण कोरिया

समेत दर्जनों देश घूम चुके हैं। इस क्रम में वे कुछ माह पहले भारत आए थे। जब वे दक्षिण भारत के राज्य केरल के अलपुझा शहर में एक हाउसबोट पर ठहरे थे तो उन्होंने अपने जीवन और भ्रमण को लेकर काफी बातें कीं। उन्होंने बताया कि वे पूर्व का वेनिस कहे जाने वाले शहर एलेप्पी की खूबसूरती को देखने के लिए उत्साहित थे। उन्होंने कहा, ‘हम केरल पहली बार आए थे और यहां

की सुंदरता ने हमारा मन मोह लिया।’ ब्रेंट ने कहा कि ट्रैवलिंग से पूरी दुनिया आपके सामने होती है। वे खुद को ग्लोबल सिटिजन मानते हैं। वे बाइबिल में यकीन रखते हैं और स्पेशल बच्चों को गोद लेने को अपना कर्तव्य और सौभाग्य मानते हैं। ब्रेंट और जीन की शादी काफी कम उम्र में हो गई थी। उन्होंने अपने शुरुआती जीवन उत्तरी अमेरिका के लैंसेस्टर में बिताए हैं। वे कहते हैं, 'हम चाहते हैं कि लोग मानवता के आधार पर जरूरतमंदों की मदद करने के साथ ही अपनी संस्कृति की रक्षा भी करें।' उनके मुताबिक ट्रैवलिंग से उनके बच्चों को अनोखी सीख मिल रही है जो वे स्कूल में नहीं हासि कर सकते। ब्रेंट कहते हैं कि हम सबके पास हमेशा सीखने और कुछ बांटने के लिए कुछ न कुछ जरूर होता है। उन्होंने बताया कि आने वाले समय में उनके कुछ बच्चों के लिए घूमना संभव नहीं हो पाएगा। लेकिन अभी वे इसका आनंद उठा रहे हैं। ब्रेंट और जीन टेलर हैं और वे रजाई बनाने का भी काम करते हैं। उनकी रुचि ट्रैवल फोटोग्राफी में भी है और वे अपनी यात्राओं के दौरान ली गईं फोटोज को बेचना भी चाहते हैं। उन्होंने अमेरिका में पार्क की रखवाली करने के लिए भी काम किया है। वे कुछ ही दिन के लिए केरल आए थे और यहां घूमने के बाद अपने नए ठिकाने पर निकल गए।

गोद लिए जाने वाले बच्चों के आंकड़ो को देखें तो पता चलता है कि अभिभावक अब बेटे के लिए लंबा इंतजार नहीं करना चाहते और वे बेटियों को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना रहे हैं युगल बेटे और गोरे रंग की चाह के दुष्चक्र को तोड़ रहे हैं। वे हमारी दुनिया को थोड़ा और भला और बेटियों के लिए सुंदर बनाने का काम कर रहे हैं। समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि बेटियां ही जीवन को खास बनाती हैं।

गांवों ने बेटी को लक्ष्मी माना

एनआरआई तथा विदेशी हैं।

समाज को संदेश

बेटियों को गोद लेने की वजह यह भी है कि लोग समाज में एक खास तरह का संदेश छोड़ना चाहते हैं। कुछ दंपति तो यह भी चाहते हैं कि वे बेटी को ही गोद लें और उसमें भी वे चाहते हैं कि बच्ची का रंग बहुत ज्यादा गोरा नहीं होना चाहिए। इस तरह ये

बिहार के भागलपुर जिले से 20 किमी की दूरी पर धरहरा गांव है। इस गांव में रहने वाले बेटी के जन्म पर करीब 10 आम के पेड़ लगाते हैं। यहां बेटी को लक्ष्मी मानकर उसका दुनिया में स्वागत किया जाता है। इस गांव के प्रधान प्रमोद सिंह ने अपनी बेटी के जन्म के समय जो 10 आम के वृक्ष लगाए थे अब उन पेड़ों और बेटी की उम्र अब 12 वर्ष है। बेटी की फीस का खर्च इन पेड़ों पर होने वाले फल को बेचकर निकाला जाता है। बच्ची की शिक्षा इस तरह

कतई बोझ नहीं रही। इसी गांव में शत्रुघ्न सिंह नाम के व्यक्ति ने तो अपनी बेटी, नाती-पोती और गांव की अन्य बेटियों के लिए करीब 600 पेड़ लगाए हैं। इस गांव में लोग अब बेटियों को बोझ नहीं समझते हैं, बल्कि उनके जन्म के साथ खुद भी आत्मनिर्भर होते हैं। ऐसा ही एक और गांव राजस्थान का पिपलांत्री है। इस गांव में बेटी के जन्म को अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। यहां बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाने की परंपरा है। यह गांव इस मायने में भी अद्भुत है कि बेटी के जन्म पर गांव वाले मिलकर रुपए इकट्ठा करते हैं और बच्ची के माता-पिता से 10 हजार रुपए लेकर 31 हजार की इस पूरी राशि का 20 वर्ष के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट कर देते हैं। इसके अलावा माता-पिता एक एफिडेविट करते हैं कि वे अपनी बेटी की शिक्षा का पूरा ख्याल रखेंगे।


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संग्रहालय

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अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस (18 मई) पर विशेष

संस्कृति और विरासत का अनमोल खजाना

भा

सभ्यता और संस्कृति के लिहाज से भारत का अतीत न सिर्फ काफी पुराना, बल्कि काफी दिलचस्प भी है। आधुनिकता के मौजूदा दौर में अपनी परंपरा और विरासत को अगर आप कहीं एक जगह देख सकते हैं, तो वह जगह है संग्रहालय एसएसबी ब्यूरो

रत इतिहास और संस्कृरतियों के मिलन का देश है। यहां की गंगाजमुनी संस्कृति की झलक संग्रहालयों में देखने को मिलती है। हम यहां ऐसे ही कुछ खास संग्रहालयों की चर्चा कर रहे हैं, जहां एक तरफ भारत के सभ्यतागत विकास के ऐतिहासिक साक्ष्य सुरक्षित रखे गए हैं, वहीं यहां जाकर इस बात का भी अहसास होता है कि हमारी संस्कृति कितनी बहुरंगी रही है।

एचएएल हैरिटेज सेंटर एंड एयरोस्पे

बेंगलुरु का एचएएल-हेरिटेज सेंटर और एयरोस्पेस म्यूजियम

एयरोस्पे​ेस म्यूजियम, बेंगलुरु

यह भारत में अपनी तरह का पहला म्यूजियम है। इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनवाया है, इसीलिए इसे एचएएल हैरिटेज सेंटर एंड एयरोस्पे​ेस म्यूजियम कहा जाता है। बेंगलुरु शहर के रेलवे स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर दूर ये म्यूजियम 4 एकड़ के क्षेत्रफल में हरे-भरे इलाके में बनाया गया है। म्यूजियम के दो मुख्य भवन हैं, जिनमें से एक में कई तस्वीरों के जरिए 1940 से लेकर अब तक एविएशन के क्षेत्र में हर दशक में हुए विकास को दर्शाया गया है। जबकि दूसरा हॉल मोटर क्रॉस सेक्शन कहलाता है, इसमें एरो इंजन के मॉडल रखे

तिरुवनंतपुरम का नेपियर म्यूजियम

गए हैं, जो इंजन के विभिन्न कार्यों को हाईलाइट करते हैं।

नेपियर म्यूजियम, तिरुअनंतपुरम

नेपियर म्यूजियम केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम में है। इसका भवन भारतीय-सीरियन वास्तुशैली की शानदार मिसाल है। 1855 में बना यह भवन भारत के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक है। इसका नाम मद्रास के तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड चार्ल्स नेपियर के नाम पर रखा गया है। संग्रहालय में कई ऐतिहासिक मूर्तियां, आभूषण, हाथी दांत की कलात्मक वस्तुएं और 250 वर्ष पुरानी नक्काशी से बनी चीजें रखी गई हैं।

शंकर इंटरनेशनल डॉल्स म्यूजियम, दिल्ली

शंकर इंटरनेशनल डॉल्स म्यूजियम नई दिल्ली में स्थित है। इसे मशहूर कार्टूनिस्ट के शंकर पिल्लई ने बनाया था। यहां विभिन्न परिधानों में सजी गुड़ियों का संग्रह है, जो विश्व के सबसे बड़े संग्रहों में से एक है। यह संग्रहालय बहादुरशाह जफर मार्ग पर चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट के भवन में स्थित है। इस गुड़िया घर के निर्माण के पीछे एक रोचक कहानी है। कहते हैं कि जवाहरलाल नेहरू जब प्रधानमंत्री थे तो शंकर उनके साथ जाने वाले पत्रकारों के दल के सदस्य हुआ करते थे। उनकी गुड़ियों में गहरी दिलचस्पी थी। वे हर देश से तरहतरह की गुड़ियों को एकत्र किया करते थे। धीरे-धीरे उनके पास 500 तरह की गुड़िया इकट्ठी हो गईं तो अपने कार्टूनों के साथ वे इन गुड़ियों की भी प्रदर्शनी लगाने लगे। इसमें एक ही मुश्किल थी कि बारबार गुड़ियों को लाने- ले जाने में वे कई बार टूट जाती थीं। एक बार पंडित नेहरू अपनी बेटी इंदिरा गांधी के साथ प्रदर्शनी देखने गए और जो उन्हें बेहद पसंद आई। उस समय शंकर ने अपनी परेशानी उन्हें बताई और नेहरू जी ने उनके लिए एक स्थायी घर का सुझाव दिया। इस

दिल्ली का शंकर अंतर्राष्ट्रीय डॉल्स म्यूजियम

तरह गुड़ियों को रहने के लिए ‘गुड़िया घर’ नाम का एक अनोखा घर मिल गया। 5184.5 वर्ग फुट आकार वाले इस संग्रहालय में 160 से अधिक कांच के केस में गुड़ियों को सजाकर रखा गया है।

केलिको म्यूजियम ऑफ टैक्स्टाइल, अहमदाबाद

11 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस संग्रहालय में भाप इंजनों और कोयले से चलने वाली गाड़ियों के मॉडल के अलावा, पूर्व वाइसरीगल डाइनिंग कार, और मैसूर के महाराजा की रोलिंग सैलून जैसी सुविधाजनक गाडि़यां भी प्रदर्शित की गई हैं। फेयरी लोकोमोटिव क्वीन भी यहां दिखाई गई रेलों में एक अहम हिस्सा है। इस संग्रहालय में ट्रेनों के अंदर की पुरानी तस्वीरों की जानकारी का एक बड़ा संग्रह भी शामिल है। इसका निर्माण ब्रिटिश वास्तुकार एम जी

केलिको वस्त्र संग्रहालय दुनिया के शानदार कपड़ा संग्रहालयों में से एक है। यह भारतीय कपड़ों के विविध संग्रह के कारण जाना जाता है। अहमदाबाद में इस संग्रहालय को गौतम साराभाई और उनकी बहन गीरा साराभाई ने 1949 में स्थापित किया था। यहां न केवल भारत में केलिको म्यूज़ियम ऑफ टेक्सटाइल्स, अहमदाबाद मुगल दौर के बने कपड़ों को प्रदर्शित किया गया है सेटो ने 1957 में किया था। यहां पूरे संग्रहालय में बल्कि यह देश के विभिन्न हिस्सों के कपड़ा उद्योग घुमाने वाली एक छोटी रेलगाड़ी भी चलती है। इस की प्रगति के बारे में भी बताता है। यहां प्रदर्शित संग्रहालय में विश्व की प्राचीनतम चालू हालत की सुंदर कश्मीरी पश्मीना, कालीन और हथकरघे के रेलगाड़ी भी है, जिसका इंजन सन 1855 में निर्मित समान देखने लायक हैं। इस संग्रहालय में 10 साल हुआ था। से कम आयु वाले बच्चों को आने की अनुमति गवर्मेंट म्यूजियम, चेन्नई नहीं है। चेन्नई के एग्मोर में बना है गवरमेंट संग्रहालय, इसे एग्मोर संग्रहालय भी कहा जाता है। यह संग्रहालय एक सुंदर औपनिवेशिक इमारत पैंथियोन कॉम्प्लेक्स में स्थित है। दक्षिण भारत के इतिहास की वैभवशाली झलक इस संग्रहालय में दिखाई देती है। इसकी कांस्य मूर्तिकला संग्रह गैलरी में दिल्ली का राष्ट्रीय रेल म्यूजियम 7वीं शताब्दी के पल्लव नेशनल रेल म्यूजियम, दिल्ली शासन के दौर की कांस्य की मूर्तियां रखी गई हैं राष्ट्रीय रेल परिवहन संग्रहालय नई दिल्ली के और 9 वीं और 11 वीं शताब्दियों के बीच चोल चाणक्यपुरी में स्थित है, जो भारत की रेल धरोहर के साम्राज्य की भी कुछ बेहतरीन मूर्तियां यहां मौजूद बारे में बताता है और रेलों के 140 साल के इतिहास हैं। इस संग्रहालय में प्राचीन दक्षिण भारत के कुछ की झलक प्रस्तुत करता है। यह संग्रहालय लगभग बौद्ध अवशेष और सिक्के भी रखे हैं।


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संग्रहालय

सुलभ इंटरनेशनल टॉयलेट म्यूजियम, दिल्ली

स्वच्छता को लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार से प्रेरित होकर डॉ. विन्देश्वर पाठक ने 1992 में सुलभ इंटरनेशनल टॉयलेट म्यूजियम की स्थापना की। यह अपनी तरह का दुनिया का सबसे अनूठा संग्रहालय है

चालयों का प्रचलन और विकास कहीं न शौ कहीं मनुष्य के सभ्यतागत विकास की कहानी कहते हैं। शौचलायों के आधुनिक स्वरूप

और इनके इस्तेमाल के तरीके को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि इसके पीछे का इतिहास कैसे आगे बढ़ा है। इन्हीं जिज्ञासाओं को शांत करता है दिल्ली में स्थिति विश्व का अकेला सुलभ इंटरनेशनल टॉयलेट म्यूजियम। इसे सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने 1992 में स्थापित किया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार, ‘स्वच्छता

द प्रिंस ऑफ वेल्स म्यू्जियम, मुंबई

द प्रिंस ऑफ वेल्स म्यू्जियम को अब छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय मुंबई, के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण 1922 में वेल्स के राजकुमार की भारत यात्रा के समय किया गया था। इसका निर्माण मुंबई के प्रतिष्ठित उद्योगपतियों और नागरिकों से सहायता लेकर मुंबई सरकार ने स्मारक

चेन्नई का सरकारी संग्रहालय

के रूप में करवाया था। यह भव्य भवन दक्षिण मुंबई के फोर्ट एरिया में विलियम में, एल्फिस्टन कॉलेज

आजादी से ज्यादा जरूरी है’, से प्रेरित होकर ही इस संग्रहालय की स्थापना लोगों को टॉयलेट का इस्तेमाल कर स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से किया गया था। इसके लिए डॉ. पाठक ने दिल्ली स्थित सभी देशों के दूतावासों को चिट्ठी लिखकर उनसे अपने-अपने देश के टॉयलेट संबंधी फैक्ट्स, फिगर्स और फोटोग्राफ्स मांगे थे। सुलभ प्रणेता के इस पहल का सभी लोगों ने स्वागत किया था और सभी लोगों ने मिलकर सहयोग भी दिया। आज इस अनोखे टॉयलेट म्यूजियम की ख्याति पूरी दुनिया में है। ‘टाइम’

पत्रिका के एक सर्वे में ये म्यूजियम दुनिया के 10 सबसे अनोखे म्यूजियम में से एक माना गया है। इस म्यूजियम में टॉयलेट का पूरा इतिहास दर्ज है। इसमें आपको पांच हजार साल पहले प्रयोग होने वाले से लेकर आधुनिकतम शौचालय तकनीक की जानकारी मिल जाएगी। इस म्यूजियम में मानव सभ्यता के सबसे पुराने ड्रेनेज की भी जानकारी मौजूद है, जो कि सिंधु घाटी सभ्यता के समय बना था। इस अनोखे म्यूजियम का भ्रमण करते हुए पता चलता है कि 3000 ईसा पूर्व की हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की संस्कृति में भी अंडरग्राउंड और ओवरग्राउंड टॉयलेट हुआ करते थे, जिससे यह साबित होता है कि प्राचीन भारत के लोग स्वच्छता को लेकर खासे जागरूक थे। इस संग्रहालय में टॉयलेट से संबंधित तकनीकों और उनके विकास से संबंधित सारी ऐतिहासिक जानकारियों को प्रदर्शित किया गया है। यहां के डिसप्ले बोर्ड में टॉयलेट से संबंधित कविताएं और उनके उपयोग भी उल्लेखित हैं। यहां प्राचनी दौर से प्रचलित पिछले सारे चेंबर पॉट्स, सजे हुए विक्टोरियन टॉयलेट सीट्स, टॉयलेट फर्निचर, बाइडेट्स, जल कक्ष आदि सारे आइटम्स को प्रदर्शित किया गया है। इस संग्रहालय में तथ्यों, चित्रों, वस्तुओं, घटनाओं और कालक्रम में शौचालयों के विकास के वर्णन का एक दुर्लभ संग्रह है। यह संग्रहालय शौचालय के विकास के लिए समर्पित है। इस संग्रहालय का मुख्य उद्देश्य लोगों

के सामने स्थित है। इसके सामने रीगल सिनेमा और पुलिस आयुक्त का कार्यालय बना है।

को शौचालय के इतिहास से रु-ब-रु कराना और उन्हें शौचालय का इस्तेमाल कर स्वच्छता के प्रति जागरूक करना है। एक तरफ यहां आपको रोमन सम्राटों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सोने-चांदी के शौचालय देखने को मिलेंगे तो वहीं दूसरी तरफ हड़प्पा संस्कृति के सीवेज सिस्टम को लेकर भी पर्याप्त जानकारी यहां उपलब्ध है। इस संग्रहालय के एक हिस्से में सीवेज ट्रीटमेंट को भी दर्शाया गया है, जो बायोगैस प्लांट के साथ जुड़ा हुआ है। जिस तरह भारत विविधताओं और विषमताओं का देश है, उसी तरह शौचालय का सुलभ इंटरनेशनल टॉयलेट म्यूजियम भी इन्हीं विविधताओं में से एक है। स्वच्छता एक अच्छे और साफ जीवन की सबसे पहली कड़ी है। इसी तर्ज पर इस अनोखे संग्रहालय की यात्रा कर शौचालय और स्वच्छता की तकनीकी जानकारी हासिल करने यहां हर दिन देश-विदेश से सैकड़ों लोग आते हैं।

नाम के डेनमार्क के वनस्पतिशास्त्री ने सन 1814 में की थी। यह एशिया का सबसे पुराना और भारत का सबसे बड़ा संग्रहालय है।

सालार जंग म्यूजियम, हैदराबाद

सलारजंग संग्रहालय एक चर्चित म्यूजियम है, जहां हैदराबाद के समृद्ध और गौरवशाली इतिहास को प्रदर्शित किया गया है। ये देश के तीन राष्ट्रीय संग्रहालय में से एक है। यह संग्रहालय 1951 में नवाब मीर यूसुफ खान के महल में स्थापित किया गया था। जिसे अब लोकप्रिय सालार जंग तृतीय कहा जाता है। संग्रहालय में कार्पेट, फर्नीचर, मूर्ति, पेंटिंग्स, पांडुलिपि, मृदकला, टेक्सटाइल, घड़ी और धातु की अन्य चीजें रखी गई हैं। यह सभी चीजें सलार जंग परिवार की थी, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ी थीं। इनमें से कुछ चीजें पहली शताब्दी की हैं। कहते हैं कि नवाब मीर यूसुफ अली खान ने

एक तरफ यहां आपको रोमन सम्राटों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सोने-चांदी के शौचालय देखने को मिलेंगे तो वहीं दूसरी तरफ हड़प्पा संस्कृति के सीवेज सिस्टम को लेकर भी पर्याप्त जानकारी यहां उपलब्ध है

राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली

कोलकाता का भारतीय संग्रहालय

35 सालों के दौरान अपने धन का एक बड़ा हिस्सा इन चीजों को इकठ्ठा करने मे खर्च कर दिया था।

इंडियन म्यूजियम, कोलकाता

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में स्थित भारतीय संग्रहालय भारत के सर्वश्रेष्ठ संग्रहालयों में से एक है। यहां प्राचीन वस्तुओं, युद्ध सामग्री, गहने, कंकाल, ममी, जीवाश्म, तथा मुगल चित्र आदि का दुर्लभ संग्रह है। इसकी स्थापना डॉ. नथानियल वालिक

नई दिल्ली का राष्ट्रीय संग्रहालय देश के सबसे शानदार संग्रहालयों में से एक है। 1949 में बना यह संग्रहालय दिल्ली में सांस्कृतिक मंत्रालय के अधीन है। इसमें प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक युग तक की विभिन्न प्रकार की कलाओं को प्रदर्शित किया गया है। यहां पर वैदिक सभ्यता, गौतम बुद्ध से जुड़े सामान, भारतीय राजाओं द्वारा उपयोग किए गए अस्त्र-शस्त्र और हथियार, कई महत्त्वपूर्ण कलाकृति, लकड़ियों की नक्काशी, वस्त्र, संगीत वाद्य यंत्र और पत्थर की मूर्तियों सहित कई अन्य अवशेष प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं।


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पुस्तक अंश

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कौशल विकास योजना

‘कौ

आईटीआई, मेरठ में कौशल विकास योजना के तहत मारुति सुजुकी द्वारा ऑटोमोबाइल कौशल प्रशिक्षण उत्कृष्टता केंद्र खोला गया

शल विकास योजना’, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक विजन है। यह योजना 15 जुलाई, 2015 को पहले विश्व युवा कौशल दिवस के मौके पर भारत सरकार द्वारा शुरू की गई थी। विज्ञान भवन के प्लेनरी हॉल में आयोजित समारोह में

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि थे। स्किल इंडिया यानी कौशल विकास योजना के प्रतीक चिह्न में एक पाना (नापने वाला यंत्र) और पेंसिल को मजबूती से पकड़े एक हाथ को दर्शाया गया है, जो कौशल के माध्यम से व्यक्ति के सशक्तीकरण को दर्शाता है। पाना और पेंसिल, एक साथ यह दर्शा रहे

राजस्थान में रणथंभौर आर्टिजन परियोजना के तहत एक दस्तकार महिला शिल्प सहकारी में काम कर रही महिलाएं

हैं कि कौशल और सामान्य शिक्षा दोनों भारत के युवाओं के लिए समान रूप से जरूरी और महत्वाकांक्षी हैं। टैगलाइन "कौशल भारत, कुशल भारत" से पता चलता है कि कौशल भारत के परिणामस्वरूप एक खुश, स्वस्थ, समृद्ध और मजबूत राष्ट्र यानी कुशल भारत का निर्माण होगा। ‘कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय’ ने ‘राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन’ शुरू किया और कौशल विकास के लिए राष्ट्रीय नीति का अनावरण भी किया। दो प्रमुख योजनाएं भी लॉन्च की गईं। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) एक मांग-संचालित, इनामआधारित कौशल-प्रशिक्षण योजना है। यह योजना स्वीकृत कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले उम्मीदवारों को वित्तीय पुरस्कार प्रदान करके कौशल प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करेगी। कौशल ऋण योजना, 5 हजार रुपए से लेकर 1.5 लाख रुपए तक का ऋण प्रदान करने के लिए बनाई गई है। योजना अगले पांच सालों में कौशल विकास कार्यक्रमों में भाग लेने वाले भारत के 34 लाख युवाओं को ऋण प्रदान करेगी।

भारत दुनिया के लिए एक कुशल श्रमिकों का सबसे बड़ा प्रदाता बन सकता है। इसके लिए, न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर श्रमशक्ति आवश्यकताओं का खाका बनाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

15 जुलाई, 2015: नई दिल्ली में 'कौशल भारत' योजना के शुभारंभ के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


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पुस्तक अंश

कौशल भारत मिशन केवल जेबें भरने के लिए नहीं है, बल्कि यह गरीबों के बीच आत्मविश्वास की भावना लाने के लिए है। आने वाले वर्षों में, भारत दुनिया में श्रमिकों का सबसे बड़ा प्रदाता होगा। मैं गरीबों की सेना बनाउंगा, हर गरीब आदमी मेरा सैनिक होगा, हम इन सब की ताकत से गरीबी के खिलाफ इस युद्ध को जीतेंगे। उद्योग की मांग के अनुरूप ही नौकरियों का निर्माण, बेरोजगारी खत्म करने की कुंजी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कौशल भारत योजना के लॉन्च के अवसर पर, 15 जुलाई, 2015

कौशल विकास योजना के शुभारंभ के अवसर पर ‘विश्व कौशल ओशिनिया’ के विजेताओं के साथ प्रधानमंत्री मोदी

मिशन वक्तव्य

बेहतर रोजगार तक पहुंच हासिल करने और वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए, ‘राष्ट्रीय कौशल विकास पहल’

संशोधित और बेहतर कौशल, ज्ञान, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त योग्यताओं के माध्यम से सभी व्यक्तियों को सशक्त बनाएगी।

12 नवंबर, 2014: हरियाणा के गुड़गांव में यूनाइटेड टेक्नोलॉजीज एयर कंडीशनर संयंत्र में एयर कंडीशनर असेंबल करती कुशल महिला श्रमिक।

लक्ष्यों का विवरण (विजन स्टेटमेंट)

चेन्नई: रॉयल एनफील्ड मोटर्स लिमिटेड के कारखाने में रॉयल एनफील्ड क्लासिक 350 मोटरसाइकिलों को असेंबल करते कर्मचारी।

युवाओं को नवीनतम तकनीक और उद्योग वातावरण के संपर्क में लाने के लिए, लगातार संशोधित प्रशिक्षण कार्यक्रम और पाठ्यक्रम।

प्रशिक्षुता और उद्यमिता दोनों का प्रचार। भविष्य की संभावनाओं की घोषणा करें और वर्तमान को उनके लिए तैयार करें।


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संरक्षण

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लाल पांडा की सुरक्षा के लिए नए उपाय अरुणाचल प्रदेश सरकार ने लुप्त हो रहे लाल पांडा के संरक्षण के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना को मंजूरी दे दी है

कस्तूरी मृग पर शोध से उम्मीदें जगी

देश दुनिया के इस दुर्लभ मृग प्रजाति के संरक्षण व बगैर क्षति पहुंचाए कस्तूरी निकालने की हाइटेक तकनीक विकसित करने में सीएसआईआर और आयुष मंत्रालय की बड़ी भूमिका

कें

सी

राज कश्यप

मावर्ती उत्तरपूर्वी राज्यों में लाल पांडा बहुतायत से मिलते र​हंे हैं। लेकिन पिछले कई दशकों में उनकी संख्या घटती जा रही है। इसे खतरनाक प्रजातियों के प्रकृति संरक्षण की अंतरराष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) में एक कमजोर जानवर के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। हालांकि भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में इसका उल्लेख मिलता है। बता दें कि ये लाल पांडा 2200-2800 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले बांस के छोटे जंगलों, मिश्रित शंकु श्रेणियों और पर्णपाती के हिमालयी जंगलों में पाए जाते हैं। विश्व वन्यजीव निधि (भारत) द्वारा लॉन्च किए गए एक कार्यक्रम के कुछ वर्षों बाद सरकार ने लाल पांडा की प्रजातियों के संरक्षण के लिए नए कार्यक्रम की शुरुआत करने का फैसला किया है जो तवांग, पश्चिम कामेंग वनों और वन्यजीव संरक्षण की सामुदायिक रणनीतियों पर एक दशक से अधिक समय के लिए 7000 वर्ग किमी की जैव विविधता वाले समृद्ध क्षेत्रों को कवर करेगा। यह देखा गया है कि समुदाय के तहत 1000 वर्ग किमी से अधिक लाल पांडा का आवास होने के बावजूद संरक्षित क्षेत्रों में एक उम्मीद है और भविष्य में लाल पांडा को सुरक्षित करने वाले संरक्षण कार्यक्रम में विस्तार करने की आवश्यकता है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (भारत) की पहल पर साल 2007 में दो जिलों के कुछ गांवों पेंचेन लुम्पो मुचुट

कम्युनिटी एरिया कंजर्वेशन मैनेजमेंट कमेटी का गठन किया है। गांव पंचायतों ने इस कार्यक्रम का समर्थन किया, जिसे वन-निर्भर जनजातीय आबादी के संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बनाया गया है। नवंबर 2010 में तीन और गांव-सॉकेटन, खर्मन और केलेंगेंग भी पेंचेन सॉकेटन लखार सामुदायिक संरक्षण क्षेत्र के रूप में बने। इन जंगलों में पाए जाने वाले वन्य जीवों में लाल पांडा भी मुख्य रूप से शामिल है। हालांकि इन उपायों ने जंगली जानवरों के शिकार पर भले रोक लगा दी है, लेकिन शिकार की वजह से होने वाले निरंतर नुकसान ने लाल पांडा के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर दिया है। इसे रोकने के लिए ग्रामीण ‘सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट’ और ‘डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया’ के समर्थन के साथ मिलकर पेंचेन रेड पांडा संरक्षण गठबंधन बनाने के लिए एक साथ आए हैं। इस समुदाय की पहल का उद्देश्य न केवल शिकार पर प्रतिबंध लगाकर लाल पांडा के संरक्षण में मदद करना है, बल्कि उसके आवास की क्षति को रोकने और पौधों की प्रजातियों की रक्षा करना भी है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (इंडिया) ने उन्नत आवास विश्लेषण और हितधारक परामर्श के आधार पर लुप्त होने वाली प्रजातियों के लिए राज्य स्तरीय प्रबंधन योजना विकसित करने और पर्यावरण व वन राज्य विभाग के माध्यम से इसके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की योजना बनाई है। अरुणाचल प्रदेश मोर, मोनाल और ट्रागोपन जैसी विभिन्न लुप्त हो रही प्रजातियों का घर है।

यह एकमात्र ऐसा राज्य है जो अपने जंगलों में बड़ी बिल्लियों की चार प्रमुख किस्मों का दावा कर सकता है, जिसमें बाघ, तेंदुए, बादल तेंदुए और बर्फ तेंदुए के साथ-साथ सुनहरी बिल्ली और पत्थर वाली बिल्ली जैसी प्रजातियां भी शामिल हैं। इसके अलावा ताकिन समेत प्राइमेट्स की सात प्रजातियां हैं, जो केवल अरुणाचल प्रदेश में ही पाई जाती हैं। हालांकि राज्य के प्रत्येक जिले में ऑर्किड की अपनी विशेष किस्म है और एशिया के सबसे बड़े आर्किडैरियम में से एक अरुणाचल प्रदेश के टीपी में स्थित है। सरकार ने ऊंचाई वाले प्रजनन केंद्र सह एवियरी की स्थापना के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है, जो न केवल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रजनन के लिए भी महत्वपूर्ण है। संरक्षण के इन कार्यक्रमों को मंजूरी देते समय सरकार ने आरक्षित वनों के भीतर भूमि अतिक्रमण और अवैध गतिविधियों की जांच के तरीकों और साधनों पर भी चर्चा की। इस दौरान यह भी निर्णय लिया गया कि सरकार बंदूकों का लाइसेंस बनवाएगी, जिसका उपयोग जंगली जानवरों के शिकार के लिए किया जा सकता है। मुख्यमंत्री पेमा खंाडू ने गृह विभाग को गैरकानूनी खतरे का अध्ययन करने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए लाइसेंसी बंदूक के इस्तेमाल के लिए एक योजना प्रस्तुत करें और वन विभाग के अधिकारियों को निर्देश दें कि वे आरक्षित वनों में अवैध गतिविधियों की शिकायतों की जांच करें।

द्रीय आयुष राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीपाद यसो नाइक ने कहा कि उत्तराखंड में धरमघर (बागेश्वर) स्थित कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र शिफ्ट नहीं किया जाएगा। उन्होंने माना कि देश दुनिया की इस दुर्लभ मृग प्रजाति के संरक्षण व बगैर क्षति पहुंचाए कस्तूरी निकालने की हाइटेक तकनीक विकसित करने में केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) आयुष मंत्रालय की बड़ी भूमिका रही है। यह भी कहा कि कस्तूरी मृग हिमालयी क्षेत्र का संरक्षित प्राणी है। इसके लिए धरमघर बेहद मुफीद है। नाइक के इस एलान से कस्तूरी हिरन के प्रजनन, अनुसंधान आदि तमाम रुके पड़े कार्यों के फिर परवान चढ़ने की नई उम्मीद जगी है। विकासखंड के थापला स्थित क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान (आरएआरआई) में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नाइक ने कहा, औषधीय पादपों के संरक्षण व संवर्धन के साथ ही अनुसंधान के जरिए आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में संस्थान अभूतपूर्व कार्य कर रहा है। केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा व उपनेता करन माहरा के धरमघर स्थित कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र को नैनीताल जू शिफ्ट न किए जाने के प्रस्ताव पर नाइक ने साफ कहा, उसे नहीं हटाया जाएगा। प्रजनन केंद्र धरमघर में ही रहेगा। केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के इस एलान से पिछले डेढ़ दशक से आयुष मंत्रालय एवं वन मंत्रालय के बीच सुपुर्दगी पर हीलाहवाली के फेर में रुके पड़े शोध कार्य, कस्तूरी मृग के प्रजनन की थमी प्रगति आदि तमाम उम्मीदों को बल मिला है। (एजेंसी)


14 - 20 मई 2018

कही-अनकही

जिन्हें लता ने माना अपना मॉडल

ला

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लता मंगेशकर की गायकी की तुलना अगर किसी से की जाती है, तो वो है अपने जमाने की मशहूर गायिका नूरजहां। नूरजहां की जिंदगी और गायकी दोनों ने कामयाबी और शोहरत की सुनहरी तारीख लिखी एसएसबी ब्यूरो

हौर से लगभग 45 किलोमीटर दूर एक जगह है कसूर। यहां 21 सितंबर, 1926 को बेहद गरीब परिवार में जन्मीं अल्लाह वसाई अपनी दो बहनों, ईदन बाई और हैदरी बांदी में सबसे छोटी थीं। मशहूर सूफी दार्शनिक बुल्ले शाह की मजार इसी शहर में है। शहर की आबोहवा कुछ ऐसी है या बुल्ले शाह की रुमानियत अब भी इसकी फिजाओं में घुली हुई है कि यहां से एक से एक बड़े फनकार निकले और हिंदुस्तान में मशहूर हुए। यहां ब्रिटिश हिंदुस्तान की बात हो रही है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के जाने-माने नाम और संगीत के पटियाले घराने से ताल्लुक रखने वाले उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब और उनके भाई उस्ताद बरकत अली खान साहब यहीं से हैं। और तो और पाकिस्तान के मशहूर जर्नलिस्ट इरशाद अहमद हक्कानी, जिन्होंने फौजी आमिर जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ को खरी-खरी सुनाई, वे भी यहां से ही हैं। खैर, बात अल्लाह वसाई की हो रही थी। वापस चलते हैं। इस बच्ची का परिवार गा-सुनाकर अपनी रोजी रोटी कमाता था। दीवान सरदारी लाल, जिन्होंने कलकत्ता के एक थिएटर में पैसा लगाया था, इन तीनों बहनों को कलकत्ता ले आए जहां उन्होंने कला की दुनिया में कदम रखा। अल्लाह वसाई यहां आकर नूरजहां बन गईं। वे नूरजहां जो ब्रिटिश हिंदुस्तान की आला तरीन फनकारों में से एक थीं। और जिनके चाहने वाले उन्हें लता मंगेशकर से एक कदम आगे पाते हैं। बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान चली गई थीं, लेकिन सरहदें उनकी लोकप्रियता को बांध नहीं सकीं । यह बात उस दौर की है जब संगीत अमीर था और फनकार गरीब। तब फनकारी दिल से होती थी। 1935 में नौ साल की नूरजहां ने ‘मदान थिएटर्स’ की फिल्म ‘गैबी गोला’ से पहला काम शुरू किया। बाद में ‘मिस्र का सितारा’(1935), ‘फख्रे इस्लाम’, ‘तारणहार’ (1937), ‘सजनी’(1940) और ‘रेड सिग्नल’ (1941) जैसी फिल्मों में भी अदाकारी निभाई। 1936 में आई फिल्म ‘शीला’ (उर्फ पिंड दी कुड़ी) में उन्होंने पहली बार एक्टिंग के साथ गाना भी गाया। बेहद खूबसूरत चेहरे-मोहरे और दिलकश आवाज वाली नूरजहां ने ‘रणजीत मूवीटोन’ की कई फिल्मों –‘ससुराल’, ‘उम्मीद’ (1941), ‘चांदनी’, ‘धीरज’, ‘फरियाद’ (1942) और ‘दुहाई’ (1943) में गाने के साथ एक्टिंग भी की। 1942 में ही आई फिल्म ‘खानदान’ जिसके संगीतकार गुलाम हैदर ने नूरजहां का डंका बजवा दिया। ये वही ग़ुलाम हैदर हैं, जिनकी वजह से लता मंगेशकर आज ‘लता मंगेशकर’ हैं। ‘खानदान’ के तकरीबन सारे गाने– ‘तू कौन सी बदली में मेरे चांद है’, ‘मेरे लिए

1947 में नूरजहां अपने शौहर शौकत हुसैन रिजवी साहब के साथ पाकिस्तान चली गईं। लाहौर में उन्होंने ‘शाहनूर’ (शौकत और नूरजहां) स्टूडियो की नींव रखी, जिसमें उन्होंने पंजाबी फिल्म ‘चनवे’ का निर्देशन किया जहान में चैन है न करार है’, ‘शोख सितारों से हिल मिल कर खेलेंगे हम आंख मिचौली’, ‘उड़ जा पंछी उड़ जा’ बेहद मकबूल हुए। यहीं से फिल्म निर्देशक शौकत हुसैन रिजवी उनके नजदीक आ गए। बाद में शौकत ही की दूसरी फिल्म ‘नौकर’ में भी उन्होंने अभिनय किया। फिल्म तो नहीं चली पर शादी करके दोनों एक-दूसरे के हमनवा बन गए। 1943 में भी नूरजहां की धूम रही। के. दत्ता के संगीत निर्देशन में बनी ‘नादान’ के गाने जैसे ‘रोशनी अपनी उमंगों की मिटाकर चल दिए’, ‘या अब तो नहीं दुनिया में कहीं ठिकाना’ खूब चले। इसके बाद उनके फिल्मी सफर को आगे बढ़ाने में सज्जाद

हुसैन का योगदान रहा। उनके संगीत निर्दशन में बनी फिल्म ‘दोस्ती’ के गाने जैसे, ‘बदनाम मुहब्बत कौन करे’, ‘कोई प्रेम का दे संदेसा’, ‘अब कौन है मेरा’ काफी हिट हुए। इसी साल गायक-अभिनेता सुरेंद्र के साथ उनकी फिल्म आई ‘लाल हवेली’। इसके भी गाने दुनिया के सर चढ़कर बोले। 1945 भी नूरजहां के लिए काफी जबरदस्त साल था। इस साल उनकी चार फिल्में रिलीज हुईं और चारों ही हिट साबित हुईं। ‘जीनत’ ने काफी धूम मचाई थी। इस फिल्म के गीत भी खासे पसंद किए गए। इस फिल्म में एक कव्वाली भी थी -‘आहें न भरी शिकवे न किए’। इसमें गायिका कल्याणी

और जोहराबाई अंबाले वाली भी नूरजहां के साथ थीं। श्याम सुंदर तीसरे संगीतकार थे जो नूरजहां को बुलंदी की ओर ले गए। उनकी संगीत निर्देशित फ़िल्म ‘गांव की गोरी’ में नूरजहां ने यादगार गाने गाए। फिर आया 1946 का वह यादगार साल जब उनको महान नौशाद साहब का साथ मिल गया। वह फिल्म थी ‘अनमोल घड़ी’। इस फिल्म के गानों ने सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर डाले। सुरेंद्र और सुरैया के साथ नूरजहां की यह फिल्म भी हिट थी। इसके गाने ‘आजा मेरी बर्बाद मुहब्बत के सहारे’, ‘जवां है मुहब्बत, हसीं है जमाना’ और सुरेंद्र के साथ गया गीत- ‘आवाज दे कहां है, दुनिया मेरी जवां है’-आज भी कई घरों के एकांत कमरों में बजता है। 1947 में देश का बंटवारा हुआ और नूरजहां अपने शौहर शौकत हुसैन रिजवी साहब के साथ पाकिस्तान चल गईं। लाहौर में उन्होंने ‘शाहनूर’ (शौकत और नूरजहां) स्टूडियो की नींव रखी, जिसमें उन्होंने पंजाबी फिल्म ‘चनवे’ का निर्देशन किया। इस तरह वे पाकिस्तान की पहली महिला निर्देशक बनीं। गुलाम हैदर ने भी पाकिस्तान का रुख कर लिया था। उनकी और नूरजहां की जोड़ी ने ‘गुलनार’ फिल्म में हिट गाने दिए। उनमें से कुछ थे- ‘सखी री नहीं आए सजनवा’, ‘लो चल दिए वो हमको तसल्ली दिए बगैर’। कहते हैं कि पंजाबी फिल्म ‘पाटे खान’ के बनने के दौरान वे फिल्म के वितरक एम नसीम की ओर खिंच गईं। इससे उनके शौहर नाराज हो गए और दोनों में तलाक हो गया। इस दौर में उनकी कुछ फिल्में असफल रहीं और एम नसीम और उनके बीच रिश्ता खत्म हो गया। फिर वे अपने से 14 साल छोटे अभिनेता एजाज दुर्रानी के करीब हो गईं और उनसे निकाह पढ़ लिया। 1961 में आई ‘गालिब’ उनकी आखिरी फिल्म थी, जिसमें उन्होंने अभिनय किया। संगीत में अपने योगदान की वजह से उन्हें ‘मलिका-एतरनुम्म’ का खिताब मिला। 1965 की जंग में नूरजहां ने पाकिस्तान के फौजियों की हौसला अफजाई के लिए कई गाने भी गाए। मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज्म ‘मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग’ उन्होंने फिल्म ‘कैदी’ में गाई थी। खुद नूरजहां से मुत्तासिर फैज ने कुबूल किया था कि इस नज्म को नूरजहां से बेहतर कोई नहीं गा सका। हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच आज तक यह बहस तारी है कि नूरजहां और लता मंगेशकर में से बेहतर कौन है। ‘नौशादनामा’ के लेखक राजू भारतन के मुताबिक यकीनन नूरजहां, लता मंगेशकर से बेहतर गायिका थीं। वे कहते हैं कि एक बार खुद लता ने यह बात कही थी कि नूरजहां उनकी मॉडल रही हैं। संगीतकार सज्जाद हुसैन का कहना था, ‘अल्लाह ने नूरजहां और लता को गाने के लिए ही बनाया था। बाद में नहीं जानता कि उसने बाकी औरतों को बनाने की जहमत क्यों की।’


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सा​िहत्य

14 - 20 मई 2018

कविता

उम्र

प्रिया

जब भी यह सवाल कोई पूछता है, मैं सोच में पड़ जाती हूं, बात यह नहीं, कि मैं, उम्र बताना नहीं चाहती हूं, बात तो यह है, कि, मैं हर उम्र के पड़ाव को, फिर से जीना चाहती हूं, इसीलिए जबाब नहीं दे पाती हूं, मेरे हिसाब से तो उम्र, बस एक संख्या ही है, जब मैं बच्चों के साथ बैठ, कार्टून फिल्म देखती हूं, उन्ही की, हम उम्र हो जाती हूं, मैं भी तब सात-आठ साल की होती हूं, और जब गाने की धुन में पैर थिरकाती हूं, तब मैं किशोरी बन जाती हूं, जब बड़ों के पास बैठ गप्पे सुनती हूं, दरअसल मैं एक साथ, हर उम्र को जीना चाहती हूं, इसमें गलत ही क्या है? क्या कभी किसी ने, सूरज की रोशनी, या, चाँद की चांदनी, से उम्र पूछी? फिर मुझसे ही क्यों? बदलते रहना प्रकृति का नियम है, मैं भी अपने आप को, समय के साथ बदल रही हूं, आज के हिसाब से, ढलने की कोशिश कर रही हूं, कितने साल की हो गई मैं, यह सोच कर क्या करना? कितनी उम्र और बची है, उसको जी भर जीना चाहती हूं

सुंदरता पूजा

क सभ्रांत प्रतीत होने वाली अती सुंदरी ने विमान में प्रवेश किया । उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है जिसके दोनों हाथ नहीं हैं। महिला को उस दिव्यांग व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई। उस महिला ने एयरहोस्टेस को कहा कि वह उस सीट पर यात्रा नहीं कर पाएगी, क्योंकि साथ की सीट पर एक दोनों हाथ विहीन व्यक्ति बैठा हुआ है। उस सुंदरी ने एयर होस्टेस से सीट बदलने को कहा एयर होस्टेस ने पूछा, "मैम क्या कारण है"? 'सुंदर' महिला ने जवाब दिया: "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। दिखने में सभ्रांत और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला के यह उद्गार सुनकर एयर होस्टेस अचंभित हो गई । एयर होस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारो ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी। एयर होस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट रिक्त नहीं है,

आशा

जैसी करनी वैसी भरनी

क बार की बात हैं किसी गांव में एक किसान था जो दही और मक्खन बेचकर घर चलाता था। एक दिन उसकी पत्नी ने उसे मक्खन बना कर दिया। जिसे वो बेचने के लिए अपने गांव से शहर की तरफ रवाना हो गया। मक्खन गोल पेढ़ों की शक्ल में बना हुआ था और हर पेढ़े का वजन एक किलोग्राम था। शहर में किसान ने उस मक्खन को रोज की तरह एक दुकानदार को बेच दिया और दुकानदार से चायपत्ती, चीनी, रसोई का तेल और साबुन वगैरह खरीदकर वापस अपने गांव के लिए रवाना हो गया। किसान के जाने के बाद उस दुकानदार ने मक्खन को फ्रिज में रखना शुरू किया। उसे अचानक ख्याल आया की क्यों न इनमें से एक

किंतु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है, अतः मैं वायुयान के कप्तान से बात करती हूं, "। ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई। इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है ... "। 'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किंतु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती ... एयर होस्टेस उस दिव्यांग की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा "सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे ? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा करें। यह सुनकर प्रत्येक यात्री ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अतीव सुंदरी महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही

पेढ़े का वजन चेक किया जाए। तौलने पर पेढ़ा सिर्फ 900 ग्राम का निकला। हैरत और निराशा से उसने सारे पेढ़े तोल डाले मगर किसान के लाए हुए सभी पेढ़े 900-900 ग्राम के ही निकले। ठीक अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकान की दहलीज पर चढ़ा दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा, – तू दफा हो जा यहां से, किसी बेइमान और धोखेबाज शख्स से कारोबार करना, पर मुझसे नहीं।

थी। तब उस दिव्यांग व्यक्ति ने खड़े होकर कहा, "मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूं और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोए थे। सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था: मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोए ? लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों की खातिर अपने दोनों हाथ खोए। "और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए। सुंदर महिला शर्मिंदा होकर सिर झुकाए बैठ गई। उस अतीव सौंदर्य का भी कोई मूल्य नहीं अगर विचारों में उदारता न हो।

900 ग्राम मक्खन को पूरा एक किलो कहकर बेचने वाले शख्स की वो शक्ल भी देखना गवारा नहीं करता। किसान ने बड़ी ही विनम्रता से दुकानदार से कहा, मेरे भाई हम तो गरीब और बेचारे लोग है। हमारे पास माल तौलने के लिए बाट खरीदने की हैसियत कहां, आपसे जो एक किलो चीनी लेकर जाता हूं उसी को तराजू के एक पलड़े में रख-कर दूसरे पलड़े में उतने ही वजन का मक्खन तौलकर ले आता हूं। जो हम दूसरों को देंगे, वही लौट कर आएगा फिर चाहे वो ईज्जत हो, सम्मान हो, या फिर धोखा.!!! हम जो देते हैं बदले में हमें वही मिलता है, यही इस संसार का नियम है।

कविता

आपको पढ़ना ही होगा आशा

आपको पढ़ना ही होगा दुनिया रोके चाहे जितना आगे बढ़ना ही होगा आवाज आपकी कहीं सुनने को मिलती नहीं बिना हिलाए तो एक उंगली भी हिलती नहीं फिर कैसे मान लें कि खुद-व-खुद बुनियाद हिल जाएगी मंजिलें अपने आप हमारे पास चल कर आएंगी दुर्गम पहाड़ सा है जीवन चोटी पर आपको चढ़ना ही होगा आपको पढ़ना ही होगा। जिसका नाम इतिहास की किताबों में लिखा जाता है जरा सोचिए वो इस दुनिया में कितने दिन रह गए हैं क्या आप में कमी है और क्या उनमें खास था। आपको पढ़ना ही होगा। छोड़ दो छोड़ सकते हो तो जिंदा रहना छोड़ दो और जिंदा रहना चाहते हो तो आर्कषण छोड़ दो कल तक चलती रही हो गलत हवाएं दिशाओं में आज उन हवाओं को सही दिशाओं में तुम मोड़ दो आने वाले कल के लिए आज बुराई से लड़ना ही होगा आपको पढ़ना ही होगा दुनिया रोके चाहे जितना आगे बढ़ना ही होगा।


14 - 20 मई 2018

आओ हंसें

घर में पानी

संता : यार जल्दी जाओ तुम्हारे घर में पानी घुस गया है.. बंता : क्यों झूठ बोलते हो। संता : घर की चाभी तो मेरे पास है।

सु

जीवन मंत्र

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इंद्रधनुष

डोकू -22

हाथ ठंड में... और दिमाग घमंड में... अकसर काम नहीं करते।

गूगल कौर!

संता : ओए, भाभी का क्या नाम है? बंता : गूगल कौर! संता : ऐसा क्यों? बंता : सवाल 1 करो, जवाब 10 मिलते हैं।

टीवी पर सांप

रंग भरो

सोनू : आज टीवी पे 30 फीट का साप दिखाने वाले हैं। मोनू : अच्छा, पर मैं नही देख पाऊंगा। सोनू : क्यों? मोनू : मेरा टीवी तो 21 इंच का ही है।

सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजेता को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

महत्वपूर्ण दिवस

• 15 मई विश्व परिवार दिवस • 16 मई सिक्किम स्थापना दिवस • 17 मई विश्व दूरसंचार दिवस • 18 मई अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस

बाएं से दाएं

सुडोकू-21 का हल

वर्ग पहेली - 22

ऊपर से नीचे

वर्ग पहेली-21 का हल

1. जिसने काल पर विजय प्राप्त की हो, शिव (4) 5. मित्र (2) 6. गाढ़े दूध की मिठाई (3) 7. बिना मेल का (4) 8. गोल आकृति (3) 9. ईश्वर (2) 10. जाति को संबोधित (2,3) 12. तेज (2) 13. अंतःकरण (2) 14. बरसात (2) 16. कण, काम का संक्षिप्त (2) 17. उच्च विचारों वाला, गहरे अर्थ वाला (5) 18. मेंहदी (2) 19. लक्ष्मी (3) 20. भगवान विष्णु (4) 21. गौरव, प्रसिद्धि (3) 23. चुप, मौन, निःशब्द (2) 24. संक्रामक रोग जिसमें बहुत-सी मौतें होने लगें (4)

1. कुशलता और मेहनत से काम करना (5) 2. होंठ (2) 3. पौधे की जड़ जो दवा के काम आए (2) 4. नम्रता (3) 5. साले की पत्नी (4) 7. बालों के लट (3) 8. कथन (3) 11. विष्णु का एक अवतार (3) 12. पद (3) 14. गुजरातियों की एक जाति (2) 15. मतगणना (5) 16. श्राद्ध पक्ष (4) 17. पहुँचे हुए मुसलिम संत का मकबरा (3) 19. धनुष चलाने में निष्णात (3) 21. विशाल (2) 22. बर्फ की चादर, गौरी (2)

कार्टून ः धीर


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न्यूजमेकर

14 - 20 मई 2018

अनाम हीरो

विजयकुमार रागवी

श्रीनाथ

थ ा न री श् ा क ई वाई-फा

टैलेंट को खिताब

एक रेलवे स्टेशन पर मिलने वाली फ्री वाई-फाई ने एक कुली के सरकारी नौकरी पाने के ख्वाब को पंख लगा दिए

चेन्नई में जन्मी 18 वर्षीय छात्रा विजयकुमार रागवी ने सिंगापुर में ए स्टार टैलटें सर्च अवार्ड जीता

भा

रत की बेटियां आज सिर्फ अपने देश में ही विभिन्न क्षेत्रों में नाम नहीं कर रही हैं, बल्कि वे अपनी कामयाबी के झंडे विदेशी धरती पर भी लहरा रही हैं। चेन्नई में जन्मी 18 वर्षीय छात्रा विजयकुमार रागवी ने सिंगापुर में ए स्टार टेलेंट सर्च अवार्ड जीता है। रागवी को यह अवार्ड आनुवांशिक हृदय रोग ‘हाइपर ट्रोफिक कार्डियोमायोपैथी’ पर विशेष मॉडल बनाने के लिए दिया गया है। 611 प्रतिभागियों के बीच पहला स्थान प्राप्त करने वाली रागवी को इस अवार्ड के तहत नकद इनाम, ट्रॉफी और प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। सिंगापुर में ‘ए स्टार टैलेंट सर्च’ की शुरुआत 2006 में की गई थी, ताकि विज्ञान के क्षेत्र में अच्छे छात्रों

को प्रोत्साहित किया जा सके। रागवी के लिए यह जीत कोई आसान नहीं थी। इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता को जीतने के लिए उसने अपने मॉडल पर करीब दो साल तक कड़ी मेहनत की। रागवी का यह मॉडल स्टेम सेल तकनीक पर केंद्रित है, जिसमें रक्त के नमूने से आनुवांशिक बीमारियों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। रागवी के लिए यह कामयाबी कोई आखिरी मुकाम नहीं है, बल्कि वह अपने जीवन में और आगे बढ़ना चाहती हैं। बातचीत के क्रम में उसने कहा कि वह भविष्य में शोधकर्ता बनना चाहती है। रागवी के माता-पिता भी बेटी की उपलब्धि पर खुश हैं।

शेख सलमान व मोहम्मद नूह सिद्दिकी

फुलंब्री के होनहार लाल

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

महाराष्ट्र में औरंगाबाद जिला के फुलब्ं री तहसील के दो लड़कों ने यूपीएससी परीक्षा में सफलता प्राप्त कर रचा इतिहास

हाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के एक छोटे से गांव माली के ऐसे किसान के बेटे ने यूपीएससी की परीक्षा पास की है, जिसका परिवार महज दो एकड़ जमीन पर खेती करके गुजारा करता है। उसका घर खेत पर ही बना हुआ है। फुलंब्री तहसील से तीन किलोमीटर दूर एक गांव के शेख सलमान पटेल ने यूपीएससी परीक्षा में 339 वां स्थान हासिल किया है। वैसे फुलंब्री इन दिनों यूपीएससी में सलमान के साथ एक और लड़के की कामयाबी का जश्न मना रहा है। यहीं के मोहम्मद नूह सिद्दिकी ने भी इस बार यूपीएससी में कामयाबी का परचम लहराया है। आजादी के बाद 70 वर्षों के इतिहास में यह क्षेत्र

पहली बार इस तरह की कामयाबी का जश्म मना रहा है। सिद्दिकी ने परीक्षा में 326वां रैंक हासिल किया है। सलमान बताते हैं, ‘मुझे अभी तक भरोसा नहीं हो रहा कि मैंने सिविल सर्विस परीक्षा पास कर ली है। मैं अपनी बेहतर क्षमताओं के साथ लोगों की सेवा करूंगा। मेरी बड़ी बहन ने 12 वीं तक पढ़ाई की है, बड़े भाई कंप्यूटर साइंस स्नातक हैं और मेरा छोटा भाई 8 वीं में है। कम कमाई के बावजूद, मेरे पिता ने यह सुनिश्चित किया कि हमारा अध्ययन पूरा हो।’ चौथी कोशिश में सफलता नहीं मिलने पर सलमान को काफी निराशा थी, लेकिन आखिरी प्रयास में मेहनत सफल रही।

सही मौके पर सही इस्तेमाल जिंदगी बदल इंटरनेसकताट काहै। इसकी एक बानगी केरल के एर्नाकुलम रेलवे

स्टेशन पर दिखी। यहां स्टेशन पर मिलने वाली फ्री वाई-फाई ने एक कुली के सरकारी नौकरी पाने के ख्वाब को पंख लगा दिए और अब वह केरल लोकसेवा आयोग की लिखित परीक्षा पास कर चुके हैं। श्रीनाथ अगर आयोग के इंटरव्यू में पास हो जाते हैं तो उन्हें भू-राजस्व विभाग में ग्राम सहायक का पद मिल सकता है। केरल के ही मुन्नार के रहने वाले श्रीनाथ पिछले पांच साल से एर्नाकुलम रेलवे स्टेशन पर कुली के रूप में काम कर रहे हैं। मुन्नार के इस सबसे बड़े रेलवे स्टेशन पर कुली के रूप में काम करके किसी तरह रोजी-रोटी चलाने वाले श्रीनाथ ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए रेलवे स्टेशन पर मौजूद वाईफाई का उपयोग अपनी पढ़ाई के लिए करना शुरू किया। इसी पढ़ाई की बदौलत आज श्रीनाथ ने लिखित परीक्षा पास कर ली है। उन्हें उम्मीद है कि वो इंटरव्यू में भी सफल होंगे। आम तौर पर सिविल सेवा की तैयारी करने वाले छात्रों के पास अनगिनत किताबें होती हैं, लेकिन श्रीनाथ ने दिखाया कि सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान के तहत लगाए गए इस मुफ्त वाई-फाई का सकारात्मक उपयोग कैसे किया जा सकता है। दसवीं पास श्रीनाथ ने कुली के रूप में काम करते हुए वाई-फाई से अपने मोबाइल को कनेक्ट करके कई किसी भी टॉपिक से संबंधित लेक्चर्स भी सुनते थे। जहां पर उन्हें समझने में दिक्कत होती थी वहां वो टीचर्स से बात भी कर लेते थे। वो लोगों का सामान यहां से वहां भी पहुंचाते रहते और अपनी पढ़ाई भी कान में ईयरफोन लगा के करते रहते। श्रीनाथ ने कहा, ‘मैं पहले तीन बार परीक्षा में बैठ चुका हूं। लेकिन इस बार मैंने पहली बार स्टेशन के वाई-फाई का उपयोग अपनी पढ़ाई के लिए किया। मैं बस अपने ईयरफोन कान में लगाकर अपनी पठन सामग्री सुनता रहता। फिर लोगों का सामान इधर-उधर पहुंचाने के दौरान दिमाग में ही अपने सवाल हल करता। इस तरह मैं काम के साथ-साथ पढ़ाई भी कर सका। इसके बाद जब रात को मुझे समय मिलता तो मैं अपनी पढ़ाई को दोहरा लेता।’

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 22


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