सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 52)

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निर्मल बंगाल

स्वच्छता के लिए ममता की पहल

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स्वच्छता

रेत पर स्वच्छता की सुंदर इबारत

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व्यक्तित्व

साम्यवाद का सबसे चमकता सितारा डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

बदलते भारत का साप्ताहिक

शुद्ध और किफायती

सुलभ जल

वर्ष-2 | अंक-52 |10 - 16 दिसंबर 2018 मूल्य ` 10/-

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पैसे प्रति लीटर सुरक्षित, शुद्ध ‘सुलभ जल’

पश्चिम बंगाल में आर्सेनिक युक्त और बैक्टिरिया दूषित जल की समस्या के निदान और शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए सुलभ इंटरनेशनल ने कोलकाता में एक सरल, सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक समाधान प्रस्तुत किया


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आवरण कथा

10 - 16 दिसंबर 2018

प्रो. के.जे. नाथ, पीएचई मंत्री सुब्रत मुखर्जी, डॉ. विन्देश्वर पाठक और डब्लूएसएससीसी जिनेवा के पूर्व निदेशक गौरी शंकर घोष 'सुलभ जल' पेश करते हुए

प्रसंता पॉल

गातार बढ़ते प्रदूषण का असर जलवायु परिवर्तन पर साफ दिखता है। अंधाधुंध विकास और औद्योगिकीकरण की दौड़ ने हमारे जीवन के लिए अति आवश्यक कई मूलभूत चीजों को बर्बादी के कगार पर खड़ा कर दिया है। आने वाले वक्त में सबसे बड़ी समस्या

खास बातें

संगोष्ठी में उठा पश्चिम बंगाल में आर्सेनिक युक्त भूजल का मुद्दा सुलभ ने एक दिवसीय संगोष्ठी में दूषित जल का समाधान पेश किया आर्सेनिक जल के खतरे को समाप्त करने के लिए शुद्ध ‘सुलभ जल’

पेयजल की भारी किल्लत के साथ ही, उपलब्ध जल के लगातार दूषित होने की होगी। लेकिन हमेशा की तरह समस्या गिनाने के बजाय उसका समाधान प्रस्तुत करते हुए सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन ने पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक संगोष्ठी का आयोजन कर बंगाल की ग्रामीण आबादी के साथ देश में अन्य जगहों पर भूजल के आर्सेनिक प्रदूषण और सतह के पानी के जीवाणु दूषित होने के कारण होने वाली गंभीर बीमारियों को रोकने के लिए एक विकेंद्रीकृत नजरिया सामने रखा। सुलभ ने कंबोडिया और मेडागास्कर में काम करने वाले फ्रांसीसी एनजीओ (1001 फॉन्टेंस) से प्रेरणा लेते हुए पश्चिम बंगाल के आर्सेनिक के खतरे से जूझ रहे कुछ गांवों में अपनी परियोजनाओं को लागू करने का फैसला किया। भूजल और सतह के जल के संरक्षण और शुद्ध ‘सुलभ जल’ उपलब्ध कराने को लेकर आयोजित इस संगोष्ठी में सुलभ के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने एक वृहद नजरिया प्रस्तुत करते हुए आर्सेनिक के खतरे के साथ-साथ उसका व्यावहारिक समाधान भी दिया। संगोष्ठी आयोजित करने के उद्देश्य के बारे

में बताते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि सरकार 2019 के अंत तक देश को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लक्ष्य को लेकर चल रही है, लेकिन इसका तब तक कोई फायदा नहीं होगा जब तक लोगों को शुद्ध पीने का पानी उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि शुद्ध पेयजल के साथसाथ हाईजीन और स्वच्छता में सुधार के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, इसके बिना ‘डब्ल्यूएएसएच (वाश)’ परियोजनाओं का व्यापक और बेहतर प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसी संदर्भ में डॉ. पाठक ने पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में बड़े पैमाने पर आर्सेनिक और फ्लोराइड युक्त दूषित भूजल के प्रदूषण का मुद्दा उठाया, साथ ही बताया कि सरकारी प्रयासों के बावजूद बड़ी संख्या में गांवों के लोगों तक आर्सेनिक मुक्त शुद्ध पानी नहीं पहुंच पा रहा है। इसीलिए सुलभ ने कुछ पायलट परियोजनाएं शुरू की हैं जो ऐसे गांवों तक पहुंचेगी जहां आर्सेनिक, फ्लोराइड और बैक्टीरिया युक्त भूजल और सतह का पानी लोगों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। डॉ. पाठक ने बताया, ‘बुनियादी विचार यही है कि ग्रामीणों को उद्यमशीलता और प्रौद्योगिकी अनुकूलन से सशक्त बनाना है, ताकि वे पारंपरिक

पांच तत्व हमारे शरीर और स्वास्थ्य का निर्माण करते हैं। यदि पानी जैसा महत्वपूर्ण तत्व इनमें से दूषित हो जाए, तो जिंदगी जीने का उत्साह समाप्त हो जाता है। हम अक्सर बात करते हैं और पृथ्वी के विनाश से डरते हैं, लेकिन पृथ्वी जब नष्ट होगी तब या तो पूरी तरह पानी से भरी होगी या बिना पानी के होगी - डॉ. विन्देश्वर पाठक सतह के पानी के स्रोतों से एकत्रित पानी की गुणवत्ता को बेहतर और शुद्ध बनाकर ग्रामीण जनसंख्या तक पहुंचा सकें।’ वर्तमान में पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा और गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन के कई अन्य राज्यों में तालाबों, नदियों, झीलों, मौसमी पानी और कुओं जैसे कई बारहमासी सतह जल का


10 - 16 दिसंबर 2018 स्रोत है। यदि एक बार ठीक से इसका संग्रहण और उपचार हो जाए तो ग्रामीण इलाकों में परंपरागत सतह के जल स्रोतों के संरक्षण और उपयोग के लिए यह एक लंबा रास्ता तय करेगा।

सुलभ जल और इसका स्थायित्व

सुलभ को सुरक्षित जल उपलब्ध कराने के उसके अभियान में जो एक बड़ी ताकत मिली है, वह मधुसूदनकाती (उत्तर 24 परगना), मिदनापुर और हरिदासपुर (बनगाव) में शुरू हुए ‘सुलभ जल’ मॉडल की तकनीकी और वित्तीय व्यावहारिकता और लंबे समय तक इसकी स्थिरता के सफल प्रदर्शन की कहानी में बयां हो चुकी है। इससे भी बढ़कर, इन गांवों में सुलभ की पायलट परियोजना की सफलता से प्रोत्साहित कई संगठन सुलभ की सहायक संस्था सुलभ इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ एनवायरनमेंटल सैनिटेशन एंड पब्लिक हेल्थ (एसआईएईएस और पीएच) की तकनीकी सहायता के साथ अपने गांवों में समान कार्यक्रम चला रहे हैं। डॉ. पाठक ने उम्मीद व्यक्त करते हुए कहा, ‘ऐसा लगता है कि अभिनव दृष्टिकोण ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक जल आपूर्ति प्रणालियों में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाएगा। वास्तव में, यह बड़ी सामाजिक क्रांति से कुछ कम नहीं होगा अगर ग्रामीण स्वयं सुरक्षित और शुद्ध पानी का उत्पादन और आपूर्ति ग्रामीण समुदाय को 1 रुपया प्रति लीटर से भी कम की कीमत पर शुरू कर देते हैं।’ लेकिन सुरक्षित पेयजल की इतनी सख्त जरूरत क्यों है? इस पर डॉ. पाठक ने एक अद्भुत उत्तर दिया, ‘आकाश, धरती, जल, वायु और अग्नि ये पांच तत्व हमारे शरीर और स्वास्थ्य का निर्माण करते हैं। यदि पानी जैसा एक महत्वपूर्ण तत्व इनमें से दूषित हो जाए, तो जिंदगी जीने का उत्साह

समाप्त हो जाता है। हम अक्सर बात करते हैं और पृथ्वी के विनाश से डरते हैं। पृथ्वी जब नष्ट होगी तब या तो पूरी तरह पानी से भरी होगी या बिना पानी के होगी।’ डॉ. पाठक के इस कथन पर लोगों ने तालियां बजाकर सहमति व्यक्त की। घाना, बांग्लादेश और वियतनाम में सुलभ की तकनीक पहले ही लागू हो चुकी है। समान रूप से एक और दिलचस्प बात श्रोताओं के साथ साझा करते हुए डॉ. पाठक ने बताया कि हाल की उनकी संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के दौरान लोगों ने उनसे 'सुलभ जल' के बारे में पूछताछ की। उन्होंने कहा कि मुझे बताया गया था कि अमेरिका के सभी शहरों में सुरक्षित पेयजल है, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका के कई ग्रामीण क्षेत्रों में तस्वीर अभी भी बहुत अलग है और वहां हमारे संयंत्र को स्थापित करने के लिए हमसे संपर्क किया गया है।

स्व

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आवरण कथा यह हमारे लिए एक बड़ी सफलता है।

मधुसूदनकाती के निवासियों के लिए सुलभ संयंत्र एक वरदान साबित हुआ है, क्योंकि वे कुएं से निकाले किए गए भूजल का आर्सेनिक युक्त पानी पीने की वजह से त्वचा संबंधी कई बीमारियों की चपेट में आ रहे थे। चूंकि यह संयंत्र लगातार संचालन में है, इसीलिए आर्सेनिक जैसे जहर से प्रभावित लोगों के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है - डॉ. विन्देश्वर पाठक

डॉ. पाठक ने एक चमत्कार किया है: प्रो. के.जे. नाथ

इस अवसर पर डॉ. पाठक को 'एक जादूगर, एक दूरदर्शी' बताते हुए, पश्चिम बंगाल सरकार के आर्सेनिक टास्क फोर्स के अध्यक्ष और सुलभ के विज्ञान और प्रौद्योगिकी कमेटी के अध्यक्ष प्रोफेसर के.जे. नाथ ने कहा कि डॉ. पाठक एक ऐसे व्यक्ति हैं जो न केवल हमेशा व्यावहारिक रूप अपनाते हैं, बल्कि अपने सभी विचारों को बेहतर कार्यान्वयन के स्तर तक लेकर जाते हैं। सुलभ विचार मंच ने न केवल नवीनतम तकनीक प्रदान की है, साथ ही समान रूप से कौशल विकास क्षमता को भी काफी हद तक सुनिश्चित किया है। प्रोफेसर नाथ ने मधुसूदनकाती, हिंगलेगंज

शांति निकेतन को ‘सुलभ जल’ का उपहार

च्छता और सामाजिक सुधार संस्था सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक और समाजशास्त्री डॉ. विन्देश्वर पाठक ने 5 दिसंबर को पश्चिम बंगाल के बीरभूमि जिले में स्थित शांति निकेतन, बोलपुर में एक जल परियोजना का उद्घाटन किया। यह ग्रामीण पेयजल परियोजना परिसर मणबजमिन बोलपुर, शांतिनिकेतन ब्लॉक में है और बोलपुर स्टेशन से 6 किमी दूर है। परियोजना को एक गैर-लाभकारी संगठन, सोसाइटी फॉर इक्विटेबल वॉलेंटरी एक्शन (एसईवीए) के सहयोग से कार्यान्वित किया गया है यह संयंत्र तालाब से पानी लेकर उसे शुद्ध करने का काम

करता है। इस परियोजना का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण समुदाय को सुरक्षित पेयजल प्रदान करना है, खासतौर पर उन इलाकों और गांवों में जहां जमीन और सतह का पानी आर्सेनिक और फ्लोराइड से दूषित हो चुका है। इस अवसर पर सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक ने कहा, ‘अगर आपने किसी की मदद नहीं की है तो आपने भगवान की पूजा भी नहीं की है। भगवान ने आपकी मदद किसी और की मदद करने के लिए ही की है। हर कोई मुद्दों, तथ्यों और आंकड़ो की बात करता है, लेकिन कुछ ही ऐसे लोग हैं जो उन मुद्दों के समाधान ढूंढते हैं।’ डॉ. पाठक ने घोषणा की, ‘हर छोटा योगदान

देश के विकास में मदद करता है। सेवा एक ऐसा दुर्लभ संगठन है जो देश के विकास और अपने लोगों के कल्याण में बड़ा योगदान दे रहा है। इसके लिए मैं अपनी तरफ से योगदान देते हुए उन्हें 10 लाख रुपए देता हूं।’ यह संयंत्र तालाब से पानी लेकर काम करता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य पूरे ग्रामीण समुदाय को सुरक्षित पेयजल प्रदान करना है, खासकर उन इलाकों में जहां भूमिगत और सतह का जल आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रदूषित है। इस जल उपचार संयंत्र की क्षमता 8000 लीटर प्रतिदिन है। संयंत्र को सुलभ इंटरनेशनल की आर्थिक सहायता और सुलभ इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ एनवायरनमेंटल सैनिटेशन एंड पब्लिक हेल्थ (एसआईएईएसपीएच) और सुलभ इंटरनेशनल के तकनीकी आर्थिक सहयोग से संचालित किया जा रहा है। और मुर्शिदाबाद के सफल संयंत्र उदाहरणों के अलावा कुछ अन्य स्थानों का भी हवाला दिया जहां ग्रामीण लोगों द्वारा जल उपचार संयंत्र चलाए जा रहे हैं और इससे आर्सेनिक प्रभावित गांवों को बहुत अधिक राहत मिली है। उन्होंने कहा, ‘यह एक तरह की क्रांति है। हमने संयंत्रों को डिजाइन किया है, लेकिन हम गांवों में उपलब्ध संसाधनों के बारे में भूल गए हैं। दूसरा, हमने कभी तालाबों को कोई महत्व नहीं दिया। डॉ. पाठक ने स्वच्छता के मोर्चे और आर्सेनिक उन्मूलन को लेकर एक तरह का चमत्कार किया है। स्वच्छता के साथ-साथ हमने यह महसूस किया है कि समुदायों को सुरक्षित पानी भी प्रदान किया जाना चाहिए ताकि लोगों के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यापक सकारात्मक असर पड़े। यह अब शांति निकेतन को 50 पैसे प्रति लीटर की दर से शुद्ध पेयजल मिलेगा


04 कई अध्ययनों में कहा गया है कि सामुदायिक स्वास्थ्य पर व्यापक और स्थाई प्रभाव के लिए स्वच्छता और सुरक्षित पानी पर एक एकीकृत दृष्टिकोण होना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि अभी भी बड़ी संख्या में गांव आर्सेनिक युक्त पानी के खतरे से जूझ रहे हैं और यह कहना गलत होगा कि राज्य सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए काम नहीं कर रही है। लेकिन जब तक इस कार्यक्रम में बड़े पैमाने पर लोगों की भागीदारी नहीं होगी और शुद्ध और सुरक्षित पेयजल के विकास के लिए स्थाई क्षमता स्थापित नहीं की जाती, तब तक मनमाफिक परिणाम नहीं मिलेंगे। पश्चिम बंगाल सरकार एक मास्टर प्लान बना रही है जिसके अंतर्गत सभी गांवों को सुरक्षित पीने का पानी पाइप के माध्यम से देने की कल्पना की गई है। प्रोफेसर नाथ ने बताया कि 2025 तक विश्व की दो तिहाई आबादी यानी 1800 मिलियन लोग जल संकट की चपेट में होंगे।

आवरण कथा

10 - 16 दिसंबर 2018

आर्सेनिक खतरे के बारे में जागरूकता बढ़ाने का समय: सुब्रत मुखर्जी, पीएचई मंत्री

इस मौके पर पश्चिम बंगाल सरकार के सार्वजनिक स्वास्थ्य और इंजीनियरिंग मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में 83 से अधिक ब्लॉक आर्सेनिक से संक्रमित हैं और यह प्रसार बेहद खतरनाक है। नवीनतम शोध के अनुसार, फसलों, फलों, सब्जियों और यहां तक कि इन क्षेत्रों में रहने वाली मांओं के स्तनों के दूध में भी आर्सेनिक का प्रदूषण शामिल है, जो वास्तव में बहुत खतरनाक है। अब अन्य जिलों के अलावा कोलकाता शहर के आसपास भी आर्सेनिक का खतरा बढ़ रहा है। यह खतरा दक्षिण कोलकाता में जादवपुर के करीब भी खूब है। सुब्रत मुखर्जी ने कहा, ‘मैंने व्यक्तिगत रूप से अधिकारियों को जादवपुर के एक विशिष्ट क्षेत्र में परीक्षण करने के लिए नियुक्त किया है जहां पानी में आर्सेनिक का उच्च स्तर मिला है।

एक नवीनतम शोध के अनुसार, फसलों, फलों, सब्जियों और यहां तक कि इन क्षेत्रों में रहने वाली मांओं के दूध में भी आर्सेनिक का प्रदूषण शामिल है। यह वास्तव में बहुत खतरनाक स्थिति है - सुब्रत मुखर्जी, पीएचई मंत्री बंगाल सरकार

मंत्री ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि दुर्भाग्यवश, हम अभी भी स्थिति की गंभीरता के बारे में सचेत नहीं हैं और न ही प्रभावित लोगों या इस खतरे के बिलकुल करीब चल रहे लोगों से सही संवाद स्थापित करने के लिए कोई प्रभावी सामाजिक जागरूकता अभियान है। सुब्रत मुखर्जी ने हास्यास्पद रूप से पानी की महत्ता को कम कर के बताने वाले विज्ञापनों के बारे में उदाहरण देकर बताया कि किसी वस्तु की बहुत सस्ती कीमत बताने के लिए हम अक्सर कहते हैं या विज्ञापन में दावा करते हैं - जलेर डोर (जिसका अर्थ है कि यह पानी के रूप में सस्ता है) – और इस तरह हम पानी के मूल्य और महत्व को कम कर देते हैं। मंत्री ने आगे कहा, ‘कुछ उन्नत देशों ने दावा किया है कि उन्होंने परमाणु बम के प्रारूप में सुधार किया है या कुछ देश मंगल ग्रह पर यान भेजने का भी प्रचार करते हैं। लेकिन अभी भी इस बात पर संदेह है कि ये सभी देश पानी के गुणात्मक

पश्चिम बंगाल के पीएचई मंत्री सुब्रत मुखर्जी श्रोताओं को संबोधित करते हुए

सुलभ जल उपचार संयंत्र से प्रसंस्कृत शुद्ध पेयजल के नमूने को दिखाते हुए डॉ. विन्देश्वर पाठक

डब्ल्यूएसएससीसी जिनेवा के पूर्व निदेशक गौरी शंकर घोष ने तालाब के जल को अपना प्रमुख स्रोत बनाने के लिए सुलभ की सराहना की


10 - 16 दिसंबर 2018

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आवरण कथा

मधुसूदनकाती में ‘सुलभ जल’ संयंत्र की यात्रा

मधुसूदनकाती में सुलभ जल उपचार संयंत्र के कार्यान्वयन के बारे में आगंतुकों को बताया गया

मानक को बढ़ाने में कितने सफल रहे हैं।’ मंत्री के अनुसार, पानी का उचित मूल्यांकन और सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता और वितरण सुनिश्चित करना अभी भी कई देशों के लिए दूर की कौड़ी है। इस पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि अब अनावश्यक विचारों के लिए समय बर्बाद करने का वक्त नहीं है। यदि हमें मानवता को इस खतरे से बचाना है, तो यही समय है कि हम आर्सेनिक के खतरे के बारे में जागरूकता फैलाने की शपथ लें। तभी जीने की इच्छा उत्साह के साथ वापस आएगी।

सुलभ की पहल को दूरदराज के इलाकों तक पहुंचाएं: सोवनदेब चटर्जी, मंत्री, बंगाल सरकार इस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान देते हुए पश्चिम बंगाल सरकार में बिजली और गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के मंत्री सोवनदेब चटर्जी ने देशभर में सैकड़ों

सु

लभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने पश्चिम बंगाल के मधुसूदनकाती में ‘सुलभ शुद्ध पेयजल उपचार संयंत्र’ के तकनीकी निरीक्षण के लिए विजिट किया। यहां उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय की जल परीक्षण रिपोर्ट पढ़ी कि उपचार संयत्र द्वारा शुद्ध किए गए पानी की गुणवत्ता बेहतर है और यह पानी पीने के लिए बिलकुल उपयुक्त है। उन्होंने आसपास के इलाकों के विभिन्न सहकारी समितियों के प्रतिनिधियों को संबोधित किया जो विशेष रूप से मधुसूदनकाती में सुलभ जल उपचार संयंत्र और हजारों गांवों को सुरक्षित पेयजल प्रदान करने के सुलभ और डॉ. पाठक के प्रयासों की सराहना की। उनके अनुसार, यह सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है, लेकिन कोई भी सरकार अकेले ऐसा नहीं कर सकती है। उन्होंने विशेष रूप से सुलभ

देखने के लिए आए थे। मधुसूदनकाती में जल उपचार संयंत्र का प्रबंधन ‘मधुसूदनकाती कृषक कल्याण समिति’ द्वारा सुलभ इंटरनेशनल की तकनीकी विशेषज्ञता के साथ किया जा रहा है। मधुसूदनकाती में सुलभ पेयजल परियोजना तालाब के पानी को सुरक्षित पेयजल में शुद्ध करती है और यह शुद्ध पानी 50 पैसे प्रति लीटर में बेचा जाता है। गांव के मानव निर्मित तालाब में एकत्रित पानी को शुद्ध करने वाला यह संयंत्र सुलभ और फ्रेंच एनजीओ ‘1001 फॉन्टेन्स’ द्वारा विकसित किया गया है। संयंत्र में प्रतिदिन 8,000 लीटर पीने योग्य पानी का उत्पादन करने की क्षमता है और यह पानी 50 पैसे प्रति लीटर में उपलब्ध होता है, जो इसे दुनिया में सबसे सस्ता शुद्ध बोतलबंद पानी बनाता है। मधुसूदनकाती के निवासियों के लिए यह संयंत्र एक वरदान साबित हुआ है, क्योंकि वे कुएं से निकाले किए गए भूजल का आर्सेनिक द्वारा वितरित की जाने वाली बेहद सस्ती पानी की बोतलों की कीमत का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि मुझे संदेह है कि कोई अन्य संगठन या सरकार इतनी सस्ती कीमत पर पानी मुहैया करा सकती है। मैं इसकी लागत में नहीं जाना चाहता।

युक्त पानी पीने की वजह से त्वचा संबंधी कई बीमारियों की चपेट में आ रहे थे। प्रदूषित भूजल पीने से कई बीमारियों से पीड़ित होने के वर्षों बाद, अब मधुसुदनकाटी के निवासियों को सुलभ संयंत्र से शुद्ध बोतलबंद ‘सुलभ जल’ की आपूर्ति हो रही है। चूंकि यह संयंत्र लगातार संचालन में है, इसलिए आर्सेनिक जैसे जहर से प्रभावित लोगों के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है। सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति के अलावा, जल संयंत्र के नजदीक ही सुलभ एक स्वास्थ्य केंद्र में आर्सेनिक विषाक्तता से पीड़ित लोगों का इलाज भी कर रहा है। इतना ही नहीं ‘सुलभ जल’ आर्सेनिक प्रभावित मरीजों, स्कूली बच्चों और उन परिवारों को मुफ्त में वितरित किया जाता है, जिनको वास्तव में इसकी आवश्यकता है, लेकिन वे इसे खरीद नहीं सकते हैं। समयसमय पर पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए एक जल परीक्षण प्रयोगशाला भी यहां है। इस मौके पर यूनिसेफ के साथ लंबे समय तक काम करने वाले और डब्ल्यूएसएससीसी जिनेवा के पूर्व कार्यकारी निदेशक गौरी शंकर घोष ने सुलभ के प्रयासों की सराहना करते हुए तालाब के पानी को अपने प्रमुख स्रोतों में इस्तेमाल करने


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आवरण कथा

10 - 16 दिसंबर 2018

प. बंगाल सरकार में बिजली व गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के मंत्री सोवनदेब चटर्जी ने 'सुलभ जल' की खूब सराहना की

पश्चिम बंगाल सरकार के आर्सेनिक टास्क फोर्स के अध्यक्ष प्रो. के.जे. नाथ को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया

कोलकाता स्थित विजयगढ़ ज्योतिष रे कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अभिजीत दास को स्मृति चिन्ह प्रदान करते डॉ. विन्देश्वर पाठक

संगोष्ठी में श्रोताओं को संबोधित करते हुए डीएनजीएम रिसर्च फाउंडेशन के डायरेक्टर डॉ. डी.एन. गुहा मजुमदार

के लिए सुलभ की पहल को बेहतरीन बताया। वह पश्चिम मिदनापुर जिले के मधुसूदनकाती के एक अनुभव का जिक्र कर रहे थे जहां लगभग पांच बीघा जमीन के एक टुकड़े को पानी के बड़े स्रोत में बदला जा रहा था। सुलभ द्वारा विकसित, वित्त पोषित और चलने वाले एक नए जल उपचार संयंत्र के लिए इस टुकड़े को तालाब में बदलकर पानी का प्रमुख स्रोत बनाया जा रहा था। वर्षा जल के संग्रहण की आवश्यकता पर बल देते हुए घोष ने कहा कि यह एक अनूठी पहल है। राज्यों और केंद्र सरकारों दोनों को ग्रामीणों को बड़े स्तर पर राहत दिलाने के लिए देश के दूरदराज के इलाकों में पहुंच बनाने के लिए सुलभ की मदद करनी चाहिए और साथ मिलकर काम करना चाहिए।

घोष के अनुसार, आर्सेनिक के निशान जो एक समय मुख्य रूप से सिर्फ देश के पूर्वी हिस्से में मौजूद थे, अब पंजाब, बंगाल और बिहार सहित देश के दक्षिणी राज्यों में भी अपनी उपस्थिति तेजी से दर्ज करा रहे हैं। बिहार की स्थिति का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि 38 जिलों में से 18 जिले इस घातक खतरे से पीड़ित हैं। डॉ. घोष ने खेद व्यक्त किया कि उचित मानवीय हस्तक्षेप की कमी के कारण इस खतरे से निपटने की अधिकांश रणनीतियां अब तक विफल ही रही हैं। स्थिति की गंभीरता को बताते हुए डॉ. घोष ने कहा कि बिहार में आर्सेनिक से पित्ताशय के कैंसर की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं और पटना के महावीर कैंसर अस्पताल में भर्ती होने वाले बड़ी संख्या में मरीजों ने आर्सेनिकोसिस के लक्षण दिखाए हैं और उनमें से भी अधिकतर महिलाएं हैं। बिहार में सबसे बुरी तरह से प्रभावित जिलों में से एक बक्सर है, जहां आर्सेनिक प्रदूषण प्रति लीटर 1906 माइक्रोग्राम जितना अधिक पाया गया है। यह अनुमानित सीमा से कई गुना अधिक

बिहार में स्थिति

बिहार सरकार के महावीर कैंसर अस्पताल में रिसर्च विभाग के प्रो. और एचओडी डॉ. ए के

वर्ष 2025 तक विश्व की लगभग दो तिहाई आबादी जल संकट के खतरे से जूझ रही होगी, इसीलिए सरकार की परियोजनाओं में लोगों की भागीदारी बढ़ानी होगी - के.जे. नाथ अध्यक्ष, आर्सेनिक टास्क फोर्स

है। बक्सर के बाद भागलपुर और पटना का स्थान है। यह देखा गया है कि गंगा बेसिन का दक्षिणी किनारा आर्सेनिक से सबसे बुरी तरह से प्रभावित है और वहां यह तेजी से फैल रहा है। सेंटर फॉर ग्राउंड वॉटर स्टडीज के चेयरमैन डॉ. एसपी सिन्हा रॉय ने हर समय, खासकर सूखे मौसम के दौरान, तालाब के पानी के दोहन को लेकर सावधानी बरतने पर ध्यान देने को कहा क्योंकि उस अवधि के दौरान शरीर के अंदर रेत के जाने का खतरा पैदा हो जाता है। दूसरी बात जिन इलाकों में लौह सघनता का उच्च स्तर दिखाई देता है वह इलाका आर्सेनिक प्रदूषण के लिए अधिक कारक होता है। इसके अलावा डॉ. चंद्रेयी घोष, हिजली इंस्पिरेशन, डॉ. डीएन गुहा मजूमदार, निदेशक, डीएनजीएम रिसर्च फाउंडेशन, सुलभ की वरिष्ठ उपाध्यक्ष आभा कुमार, जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरनमेंटल स्टडीज के निदेशक डॉ. तारित रॉय चौधरी जैसे अन्य गणमान्य अथितियों ने भी संगोष्ठी में अपनी बातें रखीं।


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स्वच्छता

निर्मल बंगाल

स्वच्छता की राह पर बंगाल

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य को ‘निर्मल बंगाल’ बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने पहले सार्वजनिक जगहों पर थूकने और गंदगी फैलाने वालों के खिलाफ भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान करने के बाद स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए एक शानदार डॉक्यूमेंट्री का निर्माण भी करवाया है। तात्पर्य यह कि बंगाल स्वच्छता के पथ पर तेजी से बढ़ रहा है

प्रसंता पॉल दृश्य 1: दक्षिण कोलकाता की सीमा के करीब पटुली में लाल बत्ती होते ही एक हुंडई कार रुकती है, उसके हरा होने से पहले ही एक अधेड़ उम्र का आदमी कार का दरवाजा खोल कर सड़क पर थूकता है और फिर तुरंत ड्राइव करने की कोशिश करता है। दृश्य 2: अचानक से एक जगह स्कूली बच्चों की टोली पहुंचती है और कार को घेर लेती है। स्टीयरिंग पर बैठे हुए व्यक्ति को बच्चों के अचानक हमले का कारण समझ नहीं आता है। दृश्य 3: बच्चे घबराए हुए उस आदमी को कार से बाहर निकलने के लिए मजबूर करते हैं और सड़क पर थूकने के लिए माफी मांगने के लिए कहते हैं। साथ ही भविष्य में इस तरह के काम को न दोहराने के लिए आगाह करते हैं। उस व्यक्ति को बताया जाता है कि अगर ऐसी घटना दोहराई गई तो उसे गंभीर सजा मिलेगी। हां, यह लाइट, कैमरा, साउंड और एक्शन है – लेकिन सब कुछ सामाजिक जागरूकता के लिए। पिछले सप्ताह एक दूसरे कारण से पटुली खबरों में आया। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने सार्वजनिक जगहों पर थूकने के खिलाफ एक अद्भुत सामाजिक जागरूकता अभियान चलाने के लिए भारत में पहली बार एक विशेष अभियान शुरू किया। मुख्यमंत्री ने कोलकाता पुलिस और सांस्कृतिक मामलों के विभाग को सिटी ऑफ जॉय यानी खुशियों के शहर को गंदा करने वालों को जागरूक करने के लिए एक मिशन शुरू करने का निर्देश दिया। इसके बाद, पुलिस ने सांस्कृतिक

मामलों के विभाग के साथ एक बैठक की जिसमें इस बात पर विचार-विमर्श किया गया कि जागरूकता अभियान कैसे शुरू किया जा सकता है। इस बैठक के दौरान यह फैसला लिया गया कि मुख्यमंत्री के सुझाव के अनुसार, इस विषय पर शहर के प्रमुख स्कूलों के छात्रों को शामिल कर एक मिनट की वृतचित्र बनाई जाएगी। पिछले सप्ताह ला मार्टिनियर, हेरिटेज और इंडस वैली स्कूल के लगभग 80 छात्र पटुली में अस्थाई बाजार के जंक्शन पर एक मिनट की डाक्यूमेंट्री की शूटिंग के लिए इकट्ठे हुए। इस डॉक्यूमेंट्री को अरिंदम सिल की ‘नथिंग बियॉन्ड सिनेमा’ द्वारा बनाया जा रहा है। कोलकाता पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त सुप्रतिम सरकार ने फिल्म की पटकथा लिखी है, जिसका पहला भाग पहले से ही पूरा किया जा चुका है। इसे ममता बनर्जी के पास उनकी स्वीकृति के लिए भेजा गया है।

लोगों तक स्वच्छता का महत्व पहुंचाना

अंग्रेजी और बांग्ला भाषा में बनाई जा रही इस डॉक्यूमेंट्री को सूचना और संस्कृति विभाग द्वारा प्रोड्यूस किया जा रहा है। इसे अन्य कई भारतीय भाषाओं में डब किए जाने की भी संभावना है। सिल के अनुसार,

पश्चिम बंगाल विधानसभा ने गंदगी फैलाने वालों पर जुर्माना बढ़ाने के लिए एक बिल पारित किया है, जिसके बाद अब नागरिकों को शहर की सड़कों और आसपास के स्थानों पर थूकने और कूड़ा फेंकने के लिए अधिकतम एक लाख रुपए का जुर्माना भरना पड़ सकता है

बच्चे हमेशा परिवर्तन के सबसे अच्छे दूत होते हैं, इस फिल्म में बच्चे बड़ों को सलाह देंगे कि वे सार्वजनिक स्थानों पर न थूकें। फिल्म में बच्चों के अभिनय के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि बच्चों ने बहुत ही नैसर्गिक तरीके से काम किया, जिससे निर्देशक का काम बहुत आसान हो गया। फिल्म के फाइनल संस्करण को मुख्यमंत्री के देखने के बाद उनकी अनुमति से जल्द ही रिलीज किया जाएगा। डॉक्यूमेंट्री को

मल्टीप्लेक्स के आलावा महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशनों और अन्य महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों में दिखाया जाएगा है। डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया संदेश बहुत आसान है - अगर कोई अपने घर को गंदा करना पसंद नहीं करता है, तो वह सार्वजनिक स्थानों को गंदा कैसे कर सकता है। इस संबंध में सरकार के रुख को समझाते हुए कोलकाता के महापौर फिरहाद हाकिम ने कहा कि राज्य सरकार ने लोगों के बीच सार्वजनिक स्थानों पर थूकने की गंदी आदत और कूड़ा फेंकने के बारे में जागरूक करने का फैसला किया है, यह एक ऐसा काम है जो मुख्यतया जागरूकता की कमी की वजह से होता है। उन्होंने कहा, ‘हमने लोगों को जानबूझकर या अनजाने में, यहां-वहां थूककर और कचरा फेंक कर सार्वजनिक स्थानों को गंदा करते हुए देखा है। हम शहर को साफ रखने, दीवारों और पुलों को पेंट करने के लिए लाखों खर्च कर रहे हैं। अब हमें इस बकवास को रोकना है, यह समय है कि हम आम लोगों के बीच जागरूकता बढ़ा ्एं।’ उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री ने मौजूदा कानूनों को संशोधित करने और दोषियों पर कठोर दंड लगाने के विकल्पों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाई है। मुख्य सचिव मलय डे की अध्यक्षता वाली समिति में गृह सचिव अत्री भट्टाचार्य, महानिदेशक वीरेंद्र और शहर पुलिस आयुक्त राजीव कुमार शामिल हैं।


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स्वच्छता

10 - 16 दिसंबर 2018

‘निर्मल बंगाल’ अभियान को नमन

डॉ. पाठक ने ‘निर्मल बंगाल’ के लिए ममता बनर्जी की शानदार पहल की सराहना करते हुए उन्हें पत्र लिखा नवंबर 29, 2018

माननीय मुख्यमंत्री कुमारी ममता बनर्जी जी, मुझे खबरों के माध्यम से पता चला है कि पश्चिम बंगाल के नागरिकों को यहां-वहां थूकने और सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फेंकने के लिए एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। यह एक बेहद स्वागतयोग्य कदम है। एक बेहतर पर्यावरण सुनिश्चित करने के लिए जो आज हम सब की आवश्यकता बन चुका है, मैं इस कड़े समाधान का प्रस्ताव देने के लिए आपको बधाई देता हूं। महात्मा गांधी ने स्वच्छ भारत का सपना देखा था। पिछले 50 वर्षों से, स्वच्छ भारत के निर्माण

अब गंदगी करने से पहले हजार बार सोचिए

पश्चिम बंगाल विधानसभा ने हाल ही में गंदगी फैलाने वालों पर जुर्माना बढ़ाने के लिए एक बिल पारित किया है, जिसके बाद अब नागरिकों को शहर की सड़कों और आसपास के स्थानों पर थूकने और कूड़ा फेंकने के लिए अधिकतम एक लाख रुपए का जुर्माना भरना पड़ सकता है। 2003 में पेश किए गए ‘द वेस्ट बंगाल प्रिवेंशन ऑफ स्पिटिंग इन पब्लिक प्लेस एक्ट’ में दोषियों पर

पहले 200 रुपए का जुर्माना लगता था। लेकिन कोलकाता नगरनिगम (दूसरा संशोधन) अधिनियम की धारा 338 में संशोधन के माध्यम से इस रकम को कई गुना बढ़ा दिया गया है। संशोधन के तहत 5,000 रुपए का न्यूनतम और एक लाख रुपए का अधिकतम जुर्माना लगेगा। पहले के कानून के तहत कचरा फेंकने पर न्यूनतम जुर्माना 50 रुपए और अधिकतम जुर्माना 5,000 रुपए था। अधिनियम न केवल सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर प्रतिबंध लगाता है, बल्कि इसकी धारा 7 जुर्माने

के लिए मैंने अपने जीवन को समर्पित कर दिया है। 1970 में शुरू हुआ सुलभ स्वच्छता आंदोलन तब से अब तक भारत को स्वच्छ और खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए एक निरंतर अभियान का नेतृत्व कर रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया और उनके ‘स्वच्छता ही सेवा’ अभियान ने लोगों के आंदोलन का रूप ले लिया है। मैं व्यक्त नहीं कर सकता कि मैं कितना रोमांचित हूं कि आपने ‘निर्मल बंगाल’ के लिए एक बड़ा धर्मयुद्ध शुरू किया है। यह एक अद्भुत कदम है, जो सार्वजनिक स्थलों पर थूकने और गंदगी फैलाने के लिए आर्थिक जुर्माना लगाने का आपका प्रस्ताव पूरे राज्य और विशेष रूप से राजधानी कोलकाता शहर को स्वच्छ रखने में एक लंबा सफर तय करेगा। मैं आपके इस अभियान को सलाम करता हूं। मैं ‘निर्मल बंगाल’ पर सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कोलकाता आऊंगा। यदि आप अपने व्यस्त कार्यक्रम से कुछ बहुमूल्य समय निकाल सकती हैं, तो मैं आपका व्यक्तिगत अनुग्रह लेना चाहता हूं और यदि आपके व्यस्त कार्यक्रम के कारण यह संभव नहीं है, तो मैं आपके मंत्रिमंडल के मंत्रियों से अनुरोध करता हूं कि जब कभी भी हमारा कार्यक्रम हो कृपया आएं और इसमें भाग लें। मैं नम्रतापूर्वक आपके साथ दो ऐतिहासिक घटनाओं को साझा करना चाहता हूं, जो स्वच्छता के जीवन-रक्षक संबंधी महत्व को रेखांकित करती हैं। हम कौटिल्य के अर्थशास्त्र से जानते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य के काल में सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी फैलाने के लिए आर्थिक दंड का प्रावधान था। उस वक्त की मुद्रा पाना थी। चांदी के सिक्कों को ‘पाना’ कहा जाता था। कौटिल्य के लेखानुसार, सार्वजनिक स्थानों पर शौच के लिए 100 पाना का जुर्माना था, वहीं सार्वजनिक स्थानों पर मूत्र त्याग करने के लिए 10 पाना का जुर्माना था। लेकिन साथ ही यह भी पूर्व सुनियोजित विचार था कि अगर कोई व्यक्ति बीमार है या दवा के असर में है, तो आर्थिक जुर्माने से उस व्यक्ति को पूरी तरह से मुक्त किया जाए। दूसरी घटना सिंगापुर से संबंधित है और इस देश के ली कुआन यू के नेतृत्व में पूर्ण परिवर्तन

का भी प्रावधान करती है। यह कानून नगरों के साथ-साथ उपनगरों और राज्य के अन्य हिस्सों में भी लागू है। सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दावा किया कि पश्चिम बंगाल देश के कुछ उन चुनिंदा राज्यों में से एक है जहां ऐसा आधिकारिक कानून लाया गया है।

फिल्म बनाने के लिए किस चीज ने प्रेरित किया?

दरअसल, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही

से संबंधित है, जिसमें स्वच्छता के विचार और उसके कार्यान्वयन ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब ली कुआन यू ने 1965 में सिंगापुर के प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला, तो उनके डच सलाहकार अल्बर्ट विनिसियस ने उन्हें पांच चीजों को लागू करने की सलाह दी। इनमें से पहला सुझाव था कि सिंगापुर के तेजी से विकास के लिए, जो सबसे जरूरी है वह है सिंगापुर को बिल्कुल स्वच्छ करना। इससे पहले, सिंगापुर के नागरिकों को हाईजीन और स्वच्छता से कोई मतलब नहीं था, अधिकतर लोग यहां-वहां थूकते थे और गंदगी फैलाते थे। ली कुआन यू ने सार्वजनिक स्थानों पर थूकने और गंदगी फैलाने के लिए 500 यूएस डॉलर का भारी जुर्माना लगाया। यह एक बड़ा परिवर्तन लेकर आया। सिंगापुर को स्वच्छ बनाए रखने के बेहतरीन परिणाम सामने आए। साल 1960 में, सिंगापुर की वार्षिक प्रति व्यक्ति आय जहां 400 यूएस डॉलर थी, वहीं 1990 में यह 12,000 यूएस डॉलर तक बढ़ गई। यह बताने की जरूरत नहीं है कि सिंगापुर अब दुनिया के सबसे विकसित देशों में से एक है। मुझे आशा है कि स्वच्छता के लिए आपका उत्साही अभियान पश्चिम बंगाल में भी इसी तरह के परिणाम देगा। मुझे उम्मीद है कि आपके प्रेरणादायक नेतृत्व में एक निर्मल बंगाल, एक सुंदर बंगाल का सपना एक सच्ची वास्तविकता बन जाएगा। पश्चिम बंगाल को स्वच्छ बनाने के लिए आपकी शानदार पहल के लिए, स्वच्छता और साफ-सफाई के अनुभवी सैनिक के रूप में, मैं नमन करता हूं। मैं ‘निर्मल बंगाल’ पर कोलकाता में सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करने के समय आपके पास पहुंचने के लिए अपने स्तर पर हरसंभव प्रयास करूंगा। मुझे उम्मीद है कि आप अपना बहुमूल्य समय निकालते हुए हमारे कार्यक्रम को अपने आशीर्वचनों से सुशोभित करेंगी। सधन्यवाद, भवदीय, डॉ. विन्देश्वर पाठक में दीपावली के दौरान उत्तर 24 परगना जिले में दक्षिणेश्वर (प्रसिद्ध काली मंदिर के पास) के पहले स्काईवॉक का उद्घाटन किया था। जब वह उद्घाटन के लिए पहुंचीं तब उन्होंने देखा कि नवनिर्मित स्काईवॉक के खंभे पहले से ही पान की पीक से बेहद गंदे हो चुके हैं। यह देख कर मुख्यमंत्री बहुत नाराज हुईं। इसके तत्काल बाद, ममता बनर्जी ने जिला प्रशासन से स्काईवॉक पर थूकने वाले लोगों के खिलाफ 1,001 रुपए का जुर्माना लगाने का आदेश दिया था।


10 - 16 दिसंबर 2018

कभी अनाथालय था सेंट माइकल स्कूल

डॉ. सुनील को मिला अंतरराष्ट्रीय सम्मान

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प्राचार्य आर्म्सट्रांग बताते हैं कि स्कूल प्रशासन 33 प्रतिशत लड़कियों के नामांकन के लिए संकल्पित रहता है। उन्होंने कहा, ‘इस स्कूल का मकसद शुरू से ही यह रहा है कि पैसे के कारण कोई शिक्षा से वंचित न रह जाए। आज भी जहां शिक्षा के क्षेत्र में व्यापार का प्रवेश हुआ है, इस स्कूल की फीस की बनावट बहुत कम है।’ उन्होंने बताया कि आज इस स्कूल में 100 से ज्यादा शिक्षक एलकेजी से 12वीं तक के 4000 छात्र-छात्राओं को शिक्षा देने में जुटे हैं। उन्होंने दावा किया कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इसी स्कूल से शिक्षा ग्रहण की, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी, बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, क्रिकेट खिलाड़ी सबा करीम, अमियकर दयाल के अलावे आईएएएस अधिकारी चैतन्य प्रसाद, राहुल सिंह भी इस स्कूल के छात्र रह चुके हैं। इस स्कूल के छात्र रहे बिहार के पूर्व मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के पुत्र नीतीश मिश्र कहते हैं कि सेंट माइकल की बुनियाद ही ऐसी रही है कि समय के साथ भी उसकी गुणवत्ता आज भी कायम रही है। कोई भी संस्था आज इतने लंबे समय तक अपनी गुणवत्ता बनाए रखे यह बड़ी बात है। उन्होंने कहा कि यहां से निकलने वाले जितने छात्र आज जिस क्षेत्र में भी हों वहां कुछ अच्छा ही किया है। उल्लेखनीय है कि सेंट माइकल स्कूल के 160 साल पूरे होने पर स्कूल परिसर में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। क्रिकेट खिलाड़ी सबा करीम कहते हैं, ‘सेंट माइकल का मेरे जीवन में काफी प्रभाव पड़ा है। खेल, पढ़ाई में तारतम्यता बनाए रखने के गुर स्कूल की ही देन है। उन्होंने कहा कि स्कूल से पढ़ाई पूरी कर वर्ष 1985 में निकल गया, लेकिन आज भी जब समय मिलता है, वहां जाने को तैयार रहता हूं।’ (आईएएनएस)

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आयुर्वेद के प्रसिद्ध चिकित्सक पटना के डॉ.सुनील दूबे को मिला 'इंटरनेशनल आयुर्वेद विद गोल्ड मेडल' सम्मान

केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा से लेकर क्रिकेटर सबा करीम से कई आईएएस अधिकारी तक पढ़ चुके हैं पटना के प्रसिद्ध सेंट माइकल स्कूल में

हार के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक राजधानी पटना के दीघा इलाके में स्थित सेंट माइकल स्कूल 160वीं वर्षगांठ मना रहा है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस स्कूल की शुरुआत एक अनाथालय के रूप में हुई थी। इस स्कूल ने देश को न केवल कई भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी दिए, बल्कि इस स्कूल में शिक्षाग्रहण करने वाले कई छात्रों ने खिलाड़ी और समाजसेवी बनकर भी देश का मान बढ़ाया। जानकार बताते हैं कि इस स्कूल की स्थापना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की पहली लड़ाई 1857 के एक साल बाद 1858 में बिशप हार्टमैन ने एक अनाथालय के रूप में की थी। इसके बाद यहां आवासीय स्कूल की स्थापना की गई जहां अनाथ बच्चों को शिक्षा दी जाने लगी। प्रारंभ में छोटे से खपड़ैल कमरे में शुरू हुए इस शिक्षण संस्थान की जिम्मेदारी आइरिस क्रिश्चिल ब्रदर्स को सौंपी गयी था। इसके बाद कालांतर में इस स्कूल का विकास होता चला गया। प्रारंभ में इस स्कूल में कैंब्रिज पाठ्यक्रम की पढ़ाई होती थी, लेकिन आज यहां सीबीएसई पाठ्यक्रम से पढ़ाई की जा रही है। वर्तमान समय में सेंट माइकल के प्राचार्य एडिसन आर्म्सट्रांग बताते हैं, ‘देश और दुनिया में शिक्षा के लिए प्रसिद्ध फादर मर्फी के प्राचार्यकाल में इस विद्यालय ने काफी प्रगति की। वर्ष 1968 में इस स्कूल की देखरेख का जिम्मा 'स्कूल मॉस्टर्स ऑफ यूरोप' कहे जाने वाले येशु समाज को मिल गया।’ उन्होंने बताया कि स्थापना के काल से इस स्कूल में सिर्फ लड़कों का नामांकन होता था, मगर 1990 में जब इस स्कूल के प्राचार्य के रूप में पीटी अगेस्टिन ने पदभार संभाला तो उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के प्रति भी अपनी रुचि दिखाई और उसी साल इस स्कूल में 'को-एजुकेशन' की शुरुआत हो गई।

विविध

हार के आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. सुनील कुमार दूबे को आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए दुबई में अंतरराष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें संयुक्त अरब अमीरात के शाही परिवार के प्रतिनिधि मोहम्मद सूरी और यूक्रेन की राजदूत द्वारा सम्मानित किया गया। डॉ. दूबे राजधानी पटना में आयुर्वेद चिकित्सा के जाने-माने चिकित्सक हैं। वे इस क्षेत्र में शोध भी कर रहे हैं। सम्मान लेकर पटना लौटे डॉक्टर सुनील ने बताया कि वे आयुर्वेद के क्षेत्र में पिछले 18 से 20 वर्षों से शोध कर रहे हैं, आज इसी कारण दुबई सरकार ने इस

सम्मान से सम्मानित किया। उन्होंने सम्मान मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, ‘दुबई सरकार की ओर से 'इंटरनेशनल आयुर्वेद विद गोल्ड मेडल' से मुझे सम्मानित किया गया। दुबई के किंग के प्रतिनिधियों के हाथों यह सम्मान लेना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।’ डॉ. दूबे ने कहा कि आयुर्वेद विशुद्ध भारतीय चिकित्सा है। मैंने कई गंभीर समस्याओं का इलाज आयुर्वेद के जरिए किया है। भारतीय चिकित्सा पद्धति में आयुर्वेद चिकित्सा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह पद्धति रोग को जड़ से खत्म कर देती है। (आईएएनएस)

नासा का खोजी यान अपने गंतव्य पहुंचा

अंतरिक्ष में दो साल से अधिक समय में दो अरब किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करने के बाद नासा का यान बेनू ग्रह पर पहुंचा

क क्षुद्रग्रह से नमूना एकत्र करने के लिए भेजा गया नासा का पहला अंतरिक्ष यान अब अपने गंतव्य क्षुद्रग्रह बेनू पर पहुंच गया है। नासा ने कहा कि द ओरिजन्स, स्पेक्ट्रल इंटरप्रीटेशन, रिसोर्स आइडेंटिफिकेशन, सिक्युरिटी-रीगोलिथ एक्सप्लोरर (ओएसआईआरआईएसआरीएक्स) अंतरिक्ष यान बेनू पहुंचा। इसके पहले इस यान ने अंतरिक्ष में दो साल से अधिक समय में दो अरब किलोमीटर से अधिक की दूरी तय की। यह अंतरिक्ष यान लगभग एक साल तक पांच वैज्ञानिक उपकरणों के साथ क्षुद्रग्रह का

सर्वेक्षण करेगा। यह यान सुरक्षित और वैज्ञानिक रूप से दिलचस्प नमूने एकत्र करने के लिए एक स्थान का चुनाव करेगा और सितंबर 2023 में पृथ्वी पर वापस आ जाएगा। नासा के ग्रह विज्ञान विभाग की कार्यकारी निदेशक लॉरी ग्लेज ने कहा, ‘नासा के खोजकर्ताओं के रूप में हम सौर प्रणाली में ज्ञान के लिए हमारी खोज की सबसे चरम चुनौतियों से दूर नहीं गए हैं। हम एक बार फिर अमेरिका और कनाडा में अपने साझेदारों के साथ काम कर सौर प्रणाली के एक टुकड़े को धरती पर लाने वाला एक अत्यंत कठिन कार्य करने जा रहे हैं।’ (आईएएनएस)


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प्रदेश

10 - 16 दिसंबर 2018

असम का एक गांव जहां पानी है 'धीमा जहर'

असम के तपत्जुरी गांव के लोग फ्लोराइड प्रदूषित भूजल के सहारे जीवन जी रहे हैं। केंद्र सरकार की तत्परता के कारण अब लोगों को रहत मिलने लगी है

खास बातें

गांव के बहुत सारे लोग फ्लोरोसिस से ग्रस्त हैं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिए गए सप्लीमेंट से मिली राहत गांव में की गई जलापूर्ति की वैकल्पिक व्यवस्था

अजरा परवीन रहमान

क उम्र में जब बच्चे आम तौर पर खुद से चलना और चारों ओर छोटे-छोटे कदमों से दौड़ना शुरू कर देते हैं, असम के एक गांव तपत्जुरी का अमजद जब दो साल का था तो उसकी मां उसे छड़ी के सहारे चलाती थी। अमजद के पैर टेढ़े थे जो 'स्केलेटल फ्लोरोसिस' रोग का एक सामान्य लक्षण है और इस वजह से उसे खुद को संभालने के लिए संघर्ष करना पड़ता था और अपने दो साल के बच्चे की इस लाचारी से आहत मां को हर वक्त अमजद पर निगाह रखनी पड़ती थी। इस गांव में अमजद अकेला इस समस्या से

वर्ष 1978 में तपत्जुरी में फ्लोरोसिस के लक्षण सामने आए। 2013 के बाद जब सतही जल आपूर्ति योजना शुरू हुई और इस रोग को लेकर जागरूकता बढ़ी तो इसकी संख्या में भी कमी आई

ग्रसित बच्चा नहीं है। दुर्भाग्य से तपत्जुरी के लगभग हर घर के बच्चे और वयस्क फ्लोरोसिस के किसी न किसी रूप से प्रभावित हैं, जिसके लिए यहां का पानी जिम्मेदार है। असम के भूजल में जब फ्लोराइड प्रदूषण की बात आती है, तब सबसे पहले होजई जिले का तपत्जुरी गांव का नाम आता है जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र है। पानी में फ्लोराइड

की जायज सीमा एक मिलीग्राम प्रति लीटर होती है, लेकिन तपत्जुरी के हैंडपंप या ट्यूबवेल से निकलने वाले पानी के नमूने में फ्लोराइड का स्तर 10-15 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच होता है जो स्वाभाविक रूप से विनाशकारी है। उच्च फ्लोराइड के लंबे संपर्क में रहने का दुष्प्रभाव सबसे अधिक यहां के ग्रामीणों के शरीर

पर पड़ा है। इस गांव में शायद ही आपको ऐसा बच्चा या वस्यक मिले, जिसके दांतों में दाग-धब्बे, तिरछे या मुड़े हुए न हों जो डेंटल फ्लाेरोसिस के लक्षणों में शामिल है। गांव के लगभग हर निवासियों को जोड़ों और शरीर में दर्द की शिकायत रहती है। इतना ही नहीं, यहां के बच्चे आए दिन स्कूल नहीं जाते हैं और यह दायरे से बाहर जा रही इस स्वास्थ्य समस्या का एक आदर्श उदाहरण है। गांव की दस वर्षीया रोहिमा शिकायत करती हैं कि उनके पैरों में हर समय दर्द रहता है। रोहिमा के दांतों को देखकर पता चलता है कि यह समस्या कितनी बड़ी है। रोहिमा ने बताया कि उनकी चार बहनें और भाई भी दर्द से पीड़ित हैं। वह कहती हैं, ‘मुझे कभी-कभी स्कूल छोड़ना पड़ता है। क्योंकि कभी-कभी मैं चल नहीं पाती।’ कक्षा छह में पढ़ने वाले अमजद कहते हैं कि उन्हें भी अक्सर घुटनों में दर्द रहता है और उन्हें स्कूल जाने और खेलने के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन कभीकभी उनके लिए दर्द के कारण यह सब असंभव हो जाता है। इस गांव में कई सालों से इस समस्या पर काम कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता धरानी सैकिया ने कहा कि ट्यूबवेल या हैंडपंप जो जमीन से 100150 फीट नीचे से पानी खींचते हैं वह पानी में फ्लोराइड के उच्च स्तर को खींच रहे हैं और यही इस 'धीमा जहर' का कारण है। जब आप उस गहराई पर जाकर पानी ड्रिल (खींचते) करते हैं तो आप ग्रेनाइटिक चट्टानों तक पहुंच जाते हैं जो फ्लोराइड जैसे खनिजों में समृद्ध होती है, जिससे पानी में फ्लोराइड की मात्रा भी अधिक आ जाती है। वह कहती हैं, ‘यही कारण है कि कुएं, जिन्हें केवल 10-12 फीट ही खोदना पड़ता है, एक सुरक्षित विकल्प है और हम इसका उपयोग करने की वकालत कर रहे हैं।’


10 - 16 दिसंबर 2018 कथित तौर पर तपत्जुरी के पास के गांव फ्लोरोसिस से गंभीर रूप से प्रभावित नहीं हैं, जिस पर सैकिया का कहना है कि यह गांव की भौगोलिक स्थिति की वजह से हो सकता है। अमजद की मां हलीमा बेगम ने कहा कि उन्हें अहसास हुआ कि उनका बेटा जो उस समय 18 महीने का था, अन्य बच्चों की तरह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता था। वह अपने बच्चे के लिए, स्थानीय नीम-हकीम से लेकर चिकित्सकों तक के पास गईं। उन्होंने एक्स-रे, दवाएं और तेल मालिश सबकुछ किया, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया। अमजद के पैर टेढ़े थे और उसे पांच साल तक छड़ी की मदद से चलना पड़ा। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हो रहा था, चुनौतियां भी बढ़ती जा रही थीं। अमजद अब 12 साल का हो गया है। उसने बताया, ‘मैंने पांचवीं तक अपने घर के पास के ही स्कूल से पढ़ाई की, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल घर से दो किलोमीटर दूर था। मैं चूंकि उतना दूर नहीं चल सकता था, इसलिए मेरा एक साल बर्बाद हो गया।’ इस बीच सैकिया ने प्रभावित आबादी के

प्रदेश

असम पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विभाग (पीएचईडी) के पूर्व अतिरिक्त मुख्य अभियंता नजीबुद्दीन अहमद जैसे विशेषज्ञों का कहना है कि समाधान सतह के पानी में ही है बीच कैल्शियम, विटामिन-डी, मैग्नीशियम और जिंक के संयोजन वाली गोलियां बांटनी शुरू कर दी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत फ्लोरोसिस (एनपीपीसीएफ) के निवारण और नियंत्रण के राष्ट्रीय कार्यक्रम के दिशानिर्देश हालांकि बताते हैं कि उच्च फ्लोराइड एक्सपोजर के कारण दांत और हड्डियों में आए बदलाव अपरिवर्तनीय हैं, लेकिन इस पूरक के परिणामस्वरूप तपत्जुरी के लोगों को राहत मिली। सैकिया ने बताया कि इन सप्लीमेंट्स को बच्चों के आहार में शामिल किया गया और हरी सब्जियों जैसे पौष्टिक पदार्थ के उपयोग के साथ सात साल से कम उम्र के बच्चों में आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिले। लेकिन एक ठोस समाधान और नए मामलों की रोकथाम के लिए समस्या की जड़

से निपटना जरूरी था जो इस मामले में पानी का वैकल्पिक स्रोत था। असम पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विभाग (पीएचईडी) के पूर्व अतिरिक्त मुख्य अभियंता नजीबुद्दीन अहमद जैसे विशेषज्ञों का कहना है कि समाधान सतह के पानी में ही है। इस सोच के साथ पीएचईडी द्वारा अपनी विभिन्न जल आपूर्ति योजनाओं के माध्यम से तपत्जुरी जैसे गांवों तक गुणवत्ता में सुधार किए गए नदियों के पानी की आपूर्ति की जा रही है। उधोगोंगा और धीकरामुख नदियों के पानी से इस तरह की आपूर्ति की जाती है। इन सभी स्रोतों के पानी को शुद्ध किया जाता है और फिर कुछ घरों में आम तौर पर नल के माध्यम से आपूर्ति की जाती है। एक अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 1978 में

11 तपत्जुरी में फ्लोरोसिस के लक्षण सामने आए और 1993-2003 के बीच मामलों की संख्या दोगुनी हो गई। 2003-2008 के बीच संख्या चार गुना बढ़ी और 2008-2013 के बीच छह गुना बढ़ गई। लेकिन 2013 के बाद जब सतही जल आपूर्ति योजना शुरू हुई और इस रोग को लेकर जागरूकता बढ़ी तो इसकी संख्या में भी कमी आई। होजई में सहायक आयुक्त दीपशिखा सैकिया का कहना है कि सुधार हो रहा है लेकिन अभी भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। यह 'धीमा जहर' है। इस समस्या के संपूर्ण समाधान के लिए निरंतर प्रयास और सहयोग चाहिए। वह महसूस करती हैं कि कल्याणकारी योजनाओं और प्रशासन की देखरेख करने वाले सरकारी अधिकारियों के लगातार तबादले सुधार की गति में रुकावट पैदा करते हैं। लगातार समर्थन एक लंबा रास्ता तय करता है। अमजद यह बात जानता है। उसके पैर अभी भी टेढ़े हैं, लेकिन अब वह स्कूल जा सकता है। मेरे लिए खुद अपने पैरों पर चलकर स्कूल जाने के अलावा कोई चीज अधिक मायने नहीं रखती है।

नई दिल्ली-वाराणसी के बीच दौड़ेगी ट्रेन-18 देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर दिल्ली से वाराणसी के बीच चलने वाली ट्रेन-18 लॉन्च होगी

को

टा जंक्शन और कुरलासी स्टेशन के बीच परीक्षण के दौरान 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली पहली स्वदेशी डिजाइन ट्रेन-18 नई दिल्ली और वाराणसी के बीच 25 दिसंबर को लॉन्च हो सकती है। रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘क्रिसमस के दिन दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती भी होती है और अगर उस दिन हम ट्रेन को लॉन्च करने में सफल रहते हैं तो यह देश के महान राजनेता को श्रद्धांजलि होगी।’ चूंकि 100 करोड़ रुपए की ट्रेन की निवेश लागत अधिक है, इसीलिए किराया भी सामान्य से ज्यादा होगा। हालांकि, अधिकारी ने कहा कि इसकी लॉन्च की तारीख और किराए पर निर्णय अभी लिया जाना बाकी है, क्योंकि परीक्षण अभी तक पूरा नहीं हुआ है। प्रयोगात्मक योजना के मुताबिक, ट्रेन नई दिल्ली स्टेशन से सुबह छह बजे शुरू होगी और इसके दोपहर दो बजे तक वाराणसी पहुंचने की उम्मीद है। वापसी यात्रा के लिए ट्रेन वाराणसी से 2.30 बजे प्रस्थान करेगी और रात 10.30 बजे राष्ट्रीय राजधानी पहुंच जाएगी। ट्रेन ने परीक्षण के दौरान जब 180 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति को पार किया तो ट्रेन में लड्डू बांटे गए और सबसे पहले लड्डू लोको पायलट पद्म सिंह गुर्जर और उनके सहयोगी ओंकार यादव को दिया गया। पद्म सिंह ने बताया, ‘हम इस महान अवसर का हिस्सा बनने पर रोमांचित हैं।’ यादव ने कहा, ‘मुझे इस ऐतिहासिक परीक्षण का हिस्सा बनने पर गर्व है।’ ट्रेन की दिशा से मेल खाने के लिए घुमावदार सीटों पर बैठे लोगों के

लिए यह एक सहज यात्रा थी। ट्रेन की परीक्षण यात्रा कोटा से सुबह 9.30 बजे शुरू हुई और कई नदियों, पुलों और मोड़ों को पार करने के बाद शाम छह बजे जंक्शन पर लौट आई। ट्रेनसेट को इंजन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह मेट्रो ट्रेनों जैसे इलेक्ट्रिक कर्षण पर स्वचालित है। अब ट्रेनसेट को लंबे समय तक इसकी यात्रा करने की क्षमता की पुष्टि करने वाली जांच से गुजरना है और वाणिज्यिक संचालन के

लिए आयुक्त, रेलवे सुरक्षा (सीआरएस) से मंजूरी मिलने से पहले इसकी आपातकालीन ब्रेकिंग दूरी का परीक्षण भी होना है। अधिकारी ने कहा, ‘हम एक सप्ताह में परीक्षण खत्म होने की उम्मीद कर रहे हैं और इसके बाद हम सीआरएस मंजूरी ले लेंगे।’ हालांकि परीक्षण के दौरान ट्रेन-18 ने 180 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से परीक्षण पूरा किया, लेकिन वाणिज्यिक परिचालन में इसे सिर्फ 160

किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाने की अनुमति दी जाएगी। विश्वस्तरीय सुविधाओं वाली ट्रेन में यात्रियों को वाईफाई, टच फ्री बायो-वैक्युम शौचालय, एलईडी लाइटिंग, मोबाईल चार्ज करने की सुविधा मिलेगी और मौसम के अनुसार उचित तापमान समायोजित करने के लिए इसमें क्लाइमेट कंट्रोल सिस्टम भी है। 16 कोच वाली ट्रेन में 52 सीटों के साथ दो एक्जीयूटिव डिब्बे होंगे और ट्रेलर कोच में 78 सीटें होंगी। (एजेंसी)


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विशेष

10 - 16 दिसंबर 2018

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस (14 दिसंबर) पर विशेष

अक्षय ऊर्जा से जगमग देश

वि

भारत ने विगत वर्षों में वैकल्पिक ऊर्जा क्षेत्र में न सिर्फ तेजी से कदम बढ़ाए हैं, बल्कि इस दौरान कई बड़ी योजनागत उपलब्धियां भी हासिल की हैं

कास के नए और टिकाऊ लक्ष्यों को पाने के लिए ऊर्जा के लिए प्रकृति का दोहन रोकना होगा। इस मुद्दे पर पूरी दुनिया में पहल का स्तर भले भिन्न हो पर सहमति एक समान है। बात करें अकेले भारत की तो भारत ने वैकल्पिक ऊर्जा क्षेत्र में न सिर्फ तेजी से कदम बढ़ाए हैं, बल्कि इस दौरान कई बड़ी योजनागत उपलब्धियां भी हासिल की हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि उनकी सरकार में योजनाओं में देरी एक अपराध की तरह है। यही वजह है कि मौजूदा केंद्र सरकार जिस लक्ष्य को लेकर चलती है या तो उसे समयसीमा पर पूरा कर लेती है या कामकाज की तेज रफ्तार के चलते उससे पहले भी पूरा कर लेती है। इसका सबसे ताजा उदाहरण है देश के हर गांव में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य, जिसे तय की गई समयसीमा से पहले ही हासिल कर लिया गया। इसके अलावा अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी देश ने बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं।

बढ़ी सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी

देश के कुल ऊर्जा उत्पादन में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ रही है, जिससे परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम होगी। साथ ही पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा। राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य को 20 गीगावाट से बढ़ाकर वर्ष 2021-22 तक 100 गीगावाट कर दिया

गया है। वर्ष 2017-18 के लिए 10,000 मेगावाट का लक्ष्य रखा गया है। सोलर लाइटिंग सिस्टम की स्थापना में भी तेजी आई है। देशभर में 41.80 लाख से भी ज्यादा सोलर लाइटिंग प्रणालियां, 1.42 लाख सोलर पम्प और 181.52 एमडब्ल्यूईक्यू के पावर पैक स्थापित किए गए हैं।

175 गीगावाट की अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य

भारत सरकार ने 2022 के आखिर तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा संस्थापित क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें से 60 गीगावाट पवन ऊर्जा से, 100 गीगावाट सौर ऊर्जा से, 10 गीगावाट बायोमास ऊर्जा से एवं पांच गीगावाट लघु पनबिजली से शामिल हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पिछले दो वर्षों के दौरान सोलर पार्क, सोलर रूफटॉप योजना, सौर रक्षा योजना, नहर के बांधों तथा नहरों के ऊपर सीपीयू सोलर पीवी पॉवर प्लांट के लिए बड़े कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।

पवन ऊर्जा में बड़ी उपलब्धि

भारत में पवन ऊर्जा उपकरण निर्माण का मजबूत आधार है। भारत में बनाई जाने वाली पवन टर्बाइन विश्व गुणवत्ता मानकों के अनुरूप हैं और यूरोप, अमेरिका तथा अन्य देशों से आयातित टर्बाइनों में सबसे कम लागत की है। वर्ष 2016-17 के दौरान पवन ऊर्जा में 5.5 गीगावाट की क्षमता जोड़ी गई जो देश में अब तक एक वर्ष में जोड़ी गई क्षमता में सबसे अधिक है। पवन ऊर्जा क्षमता की स्थापना में

भारत में बनाई जाने वाली पवन टर्बाइन विश्व गुणवत्ता मानकों के अनुरूप हैं और यूरोप, अमेरिका तथा अन्य देशों से आयातित टर्बाइनों में सबसे कम लागत की है

खास बातें देश भर में 41.80 लाख से भी ज्यादा सोलर लाइटिंग प्रणालियां हैं 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य पवन ऊर्जा क्षमता में भारत विश्व में चौथे स्थान पर पहुंचा भारत विश्व में चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर है।

लक्ष्य से अधिक पनबिजली

2016-17 में 5502.39 मेगावाट की अब तक की सबसे अधिक पनबिजली क्षमता सृजन दर्ज की गई, जो लक्ष्य की तुलना में 38 प्रतिशत अधिक है। लघु पनबिजली संयंत्रों से पिछले साढ़े तीन वर्षों के दौरान ग्रिड कनेक्टेड नवीकरणीय ऊर्जा के तहत 0.59 गीगावाट का क्षमता सृजन किया गया है।

हर गांव तक पहुंची बिजली

भारत के इतिहास में 28 अप्रैल 2018 की तारीख एक ऐतिहासिक तिथि के रूप में दर्ज हो गई जब देश के एक-एक गांव तक बिजली पहुंचाने के मिशन को पूरा कर लिया गया। मणिपुर के लाइसंग गांव में बिजली पहुंचने के साथ ही मोदी सरकार ने इतिहास रच दिया। 25 जुलाई 2015 को शुरू की गई दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के अंतर्गत देश के उन 597,464 गांवों में 1000 दिन के अंदर बिजली पहुंचाना था जिसे 13 दिन पहले ही पूरा कर लिया गया। गौर करने वाली बात है कि भारत के ग्रामीण विद्युतीकरण अभियान से प्रभावित होकर जॉर्डन और सीरिया जैसे पश्चिमी एशियाई देशों और अफ्रीका के कुछ देशों ने अपने गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए भारत से मदद मांगी है। इन देशों ने अपने गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (आरईसी) में रुचि दिखाई है। इस उपलब्धि का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में कहा था- ‘28 अप्रैल 2018 को भारत की विकास यात्रा में एक ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जाएगा। कल हमने एक वादा पूरा किया, जिससे भारतीयों के जीवन में हमेशा के लिए बदलाव आएगा। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि अब भारत के हर गांव में बिजली सुलभ होगी।’

इस वर्ष हर घर होगा रोशन

हर गांव में बिजली पहुंचाने के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार हर घर को रोशन करने की मुहिम में जुटी है। प्रधानमंत्री ने 25 सितंबर, 2017 को प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना ‘सौभाग्य’ की शुरुआत की थी।


10 - 16 दिसंबर 2018

गुड़िया बन गई सोलर दीदी

सोलर दीदी बनने के लिए गुड़िया ने काफी संघर्ष किया। वह भी उस क्षेत्र में संघर्ष, जिसमें हमेशा से पुरुषों का वर्चस्व रहा है

त्तर प्रदेश में कानपुर के पास के गांव में एक विधवा ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया, जिसकी आज हर तरफ चर्चा है। गुड़िया, जी हां यही नाम है उनका। वैसे अपने काम के कारण लोग अब उसे ‘सोलर दीदी’ के नाम से ज्यादा जानते हैं। गुड़िया को यह लोकप्रियता रातोंरात हासिल नहीं हुई है। सोलर दीदी बनने के लिए गुड़िया ने काफी संघर्ष किया। वह भी उस क्षेत्र में संघर्ष, जिसमें हमेशा से पुरुषों का वर्चस्व रहा है। गुड़िया से सोलर दीदी बनने की कहानी प्रेरक तो है ही, खासी दिलचस्प भी है। गुड़िया का पूरा नाम गुड़िया राठौड़ है। वह कानपुर के विधानु इलाके के हड़हा गांव की रहने वाली थी। उनकी फतेहफुर में शादी हुई। शादी के बाद स्थिति बहुत अच्छी थी, ऐसा नहीं कहा जा सकता। कहते हैं कि मुसीबत अक्सर एक ही साथ हर तरफ से आती है। करीब चार साल पहले उनके पति की मृत्यु हो गई। पति की मौत के बाद अपने दो बच्चों के साथ गुड़िया का ससुराल में रहना दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा था। इसी दौरान गुड़िया ने फैसला किया कि वह अपने बच्चों की अच्छी परवरिश ससुराल में रहकर नहीं दे पाएंगी। ऐसे में रास्ता एक ही था मायके का। गुड़िया अपने बच्चों को लेकर मायके आ गईं। मायके आकर उन्होंने एक और फैसला किया। यह फैसला था आत्मनिर्भर बनने का। बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए गुड़िया ने घर से बाहर कदम रखा और सामाजिक संस्था ‘श्रमिक भारती’ के साथ जुड़ गईं। यह संस्था केंद्र सरकार की योजना के तहत गांवों में सोलर लाइट का कार्यक्रम चलाती है। अपने शुरुआती दिनों के बारे में गुड़िया बताती हैं, ‘मैंने पहले ‘श्रमिक भारती’ संस्था ज्वाइन की और उसके सोलर लाइट लगाने के इसके तहत मार्च 2019 तक सभी घरों को बिजली उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन मोदी सरकार लक्ष्य से काफी पहले दिसंबर, 2018 तक सभी घरों में बिजली पहुंचा देना चाहती है। इस योजना का फायदा उन लोगों को मिल रहा है जो पैसों की कमी के चलते अभी तक बिजली कनेक्शन नहीं ले पाए थे। इसके तहत ग्रामीण के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी देश में सभी घरों का विद्युतीकरण सुनिश्चित करना है। इस योजना पर करीब 16,320 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।

कार्यक्रम से जुड़ गई। आज मैं सोलर लाइट से जुड़ा हर काम कर लेती हूं। शुरू में मुझे लगता था कि ऐसा क्या है इस काम में कि इसे सिर्फ पुरुष कर सकते हैं। महिलाएं किसी काम में पुरुषों से कम नहीं हैं। बस इसी धुन में यह सोलर लाइट का काम मैंने शुरू कर दिया।’ इस तरह, गुड़िया ने गांव-गांव जाकर सोलर लाइट, सोलर चूल्हे और सोलर पंखे लगाने का काम शुरू कर दिया। चार साल तक लगातार अटूट लगन और मेहनत का नतीजा है कि गांवों के लोगों ने गुड़िया को ‘सोलर दीदी’ के नाम से बुलाना शुरू कर दिया। गुड़िया कहती हैं, ‘पहले जब जब लोग मुझे सोलर दीदी कहते थे तो अजीब लगता था, लेकिन धीरे-धीरे यह नाम मुझे अच्छा लगने लगा।’ सोलर दीदी न सिर्फ लगन से काम करती हैं, बल्कि काम भी बहुत बढ़िया करती हैं। यही कारण है कि आज विधानु इलाके के गांव बनपुरा, कठारा, उजियारा, तिवारीपुर जैसे दर्जनों गांवों में सोलर मैकेनिक में सिर्फ और सिर्फ ‘सोलर दीदी’ का नाम चलता है। सोलर दीदी की इस लोकप्रियता की वजह के बारे में ग्रामीण भारती बताती हैं, ‘गांव में सोलर लाइट खराब हो, पंखा खराब हो या कुछ भी खराब हो गया हो। बस, हम सोलर दीदी को फोन मिलाते हैं। सोलर दीदी अपने बैग में पेंचकस, प्लास और सोलर उपकरण लिए अपनी स्कूटी पर दौड़ी चली आती हैं।’ कहते हैं समय सबको मौका देता है, नई राह दिखाता है। अगर सामने वाला उस संकेत को समझ लेता है तो उसकी स्थिति बदलनी तय है। गुड़िया ने ऐसा ही किया। उन्होंने अपनी पुरानी परेशानियों को नई दिशा दी और उसे सकारात्मक बना दिया। इस राह पर मेहनत तो है पर आत्मनिर्भर बनने का सुकून भी है। सरकार ने 2018-19 के बजट में 2750 करोड़ रुपए ‘सौभाग्य’ के लिए दिए हैं। यह उन चार करोड़ परिवारों के घर में नई रोशनी लाने के लिए है जिनके घरों में आजादी के 70 साल के बाद भी अंधेरा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 5 जनवरी 2015 को 100 शहरों में पारंपरिक स्ट्रीट और घरेलू लाइट के स्थान पर एलई​डी लाइट लगाने के कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इसके अंतर्गत अब तक 29.83 करोड़ एलईडी बल्ब लगाए जा चुके हैं। बिजली

विशेष

संयुक्त राष्ट्र की प्रशंसा

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अपनी ऊर्जा जरूरतों को सौर ऊर्जा से पूरा करने और प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक के भारत के प्रयासों की संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख ने सराहना की

सं

युक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख एरिक सोलहिम ने सौर ऊर्जा प्रोत्साहन के लिए भारत की तारीफ की है। अपनी ऊर्जा जरूरतों को सौर ऊर्जा से पूरा करने और प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक के भारत के प्रयासों की सराहना करते हुए पर्यावरण प्रमुख ने कहा कि धरती को बचाने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के कार्यकारी निदेशक एरिक सोलहिम ने कहा कि वर्ष 2017 मानव इतिहास में पहला वर्ष है जब दुनिया में सूर्य के माध्यम से उत्पादित बिजली तेल, गैस और कोयले से

कुल मिला कर उत्पादित बिजली से अधिक रही। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में दुनिया का ऐसा पहला हवाई अड्डा है जो पूरी तरह सौर ऊर्जा से चल रहा है। केरल का कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पूरी से सौर ऊर्जा से चलने वाला पहला हवाई अड्डा है। सितंबर 2018 तक इस हवाई अड्डे की सौर ऊर्जा क्षमता 40 मेगावाट हो गई। एरिक ने इस बात की प्रशंसा की कि सौर ऊर्जा की बदौलत भारत के कुछ दक्षिणी राज्य दुनिया में तेज आर्थिक विकास कर रहे हैं। उन्होंने जोर दिया कि अमेरिका में कोयला क्षेत्र के मुकाबले सौर क्षेत्र में पांच गुना अधिक नौकरियां हैं।

की खूब बचत भी हो रही है और पैसे भी बच रहे केवी लाइन क्षमता (132 केवी क्षमता के साथ हैं। सालाना 38,743 मिलियन किलोवाट बिजली संचालित) मुजफ्फरपुर – धालखेबर (नेपाल) के बचाई जा रही है और इससे 15,497 करोड़ रुपए चालू हो जाने के बाद नेपाल को बिजली निर्यात में की वार्षिक बचत भी हो रही है। पर्यावरण के लिए करीब 145 मेगावाट की बढ़ोतरी हुई है। भी यह कारगर साबित हो रहा है। 3,13,82,026 टन कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो बिजली उत्पादन बढ़ा, बर्बादी रुकी गया है। यह परियोजना 23 राज्यों और केंद्र मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का असर शासित प्रदेशों में चलाई जा रही है। सबसे बड़ी है कि देश में लगातार बिजली उत्पादन में बात है कि इसके चलते खर्च और बिजली की बढ़ोतरी हो रही है। इसकी दो बड़ी वजहें हैं। तो बचत हो ही रही है प्रकाश भी पहले से काफी एक तरफ वितरण में होने वाला नुकसान कम हुआ है। दूसरी ओर सफल कोयला बढ़ गया है। यही नहीं भारी मात्रा में लेड एवं उदय नीति से उत्पादन बल्बों की खरीद होने के राष्ट्रीय बढ़ा है। जैसे- 2013-14 चलते उसकी कीमत भी सौर मिशन में बिजली उत्पादन 135 रुपए के बजाय 80 के तहत सौर ऊर्जा 96,700 करोड़ यूनिट रुपए प्रति बल्ब हुआ था, जो 2014बैठ रही है। क्षमता स्थापित करने 15 में बढ़कर के लक्ष्य को 20 गीगावाट पहली बार बिजली 1,04,800 करोड़ निर्यातक बना देश यूनिट हो गया। ये से बढ़ाकर वर्ष 2021-22 चार साल पहले देश दौर आगे भी जारी तक 100 गीगावाट अभूतपूर्व बिजली संकट रहा और 2016-17 कर दिया झेल रहा था, लेकिन ऐसा में बिजली उत्पादन पहली बार हुआ है कि अब 1,16,000 करोड़ यूनिट गया है देश में खपत से अधिक बिजली हो गया। 2017 तक उत्पादन होने लगा है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण बिजली हानि या चोरी घटकर 25 के अनुसार भारत ने पहली बार वर्ष 2016-17 प्रतिशत रह गई है। 2017 पहला ऐसा वर्ष रहा (फरवरी 2017 तक) के दौरान नेपाल, बांग्लादेश जब बिजली की अधिकता रही । 2016-17 में और म्यांमार को 579.8 करोड़ यूनिट बिजली पहली बार नवीकरणीय ऊर्जा की शुद्ध बढ़त निर्यात की, जो भूटान से आयात की जाने वाली परंपरागत ऊर्जा की शुद्ध बढ़त से अधिक रही। करीब 558.5 करोड़ यूनिटों की तुलना में सौर और पवन ऊर्जा अब तक के सबसे कम 21.3 करोड़ यूनिट अधिक है। 2016 में 400 मूल्य पर उपलब्ध है।


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जेंडर

10 - 16 दिसंबर 2018

आभूषण निर्माण से सशक्त होतीं जनजातीय महिलाएं कान्हा बाध अभयारण्य से पहली बार बाहर निकल कर बैगा जनजाति की महिलाएं अपने बनाए गहने बाजार में बेच कर सशक्त हो रही हैं

रो

कुशाग्र दीक्षित

जमर्रा की जरूरतों के लिए जंगल पर आश्रित बांधा टोला की महिलाओं को तब अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ा, जब उनके पूरे गांव को अन्य सैकड़ों बैगा जनजातीय गांवों के साथ मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध कान्हा बाघ अभयारण्य के पारंपरिक आवास से बाहर निकलना पड़ा। लेकिन आज वे सशक्त महसूस कर रहीं हैं और अपने वन-आश्रित जनजाति के लिए एक बेहतर भविष्य देख रहीं हैं। इसके साथ वे इस तथ्य से भी खुश हैं कि एक नए स्थान पर आने के बाजवूद उनकी संस्कृति और परंपरा समृद्ध हो रही है। उनमें यह आत्मविश्वास बाजार में दुर्लभ जनजातीय आभूषण के बेचे जाने की छोटी मगर शक्तिशाली पहल की वजह से पैदा हुआ है। बैगा महिलाएं इन आभूषणों को अपने हाथों से बनाती हैं और इसे इतिहास में इनके जनजातीय क्षेत्र से बाहर

खास बातें

बैगा जनजाति की महिलाएं पारपं रिक आभूषण बनाकर जीविका चलाती है बाजार में खूब बिक रहे हैं उनके बनाए गहने बाजार में पहली बार इस दुर्लभ जनजाति के गहने

पहली बार बेचा जा रहा है। कान्हा बाघ अभयारण्य के प्रशासक और लास्ट वाइल्डरनेस फाउंडेशन (एलडब्ल्यूएफ) के दिमाग की उपज, यह पहल न केवल भारत की सबसे गरीब जनजातियों में से एक की जिंदगी को बेहतर कर रही है और दूसरों के साथ कदम से कदम मिलाने के लिए आत्मविश्वास भी पैदा कर रही है, साथ ही इस प्रयास से उन लोगों के घरों में भी यह जनजातीय आभूषण पहुंच पाया है, जो इस मृतप्राय कला की सराहना कर रहे हैं। वन अधिकारियों ने कहा, ‘इसकी प्रतिक्रिया जबरदस्त है, क्योंकि लोग इसे प्यार कर रहे हैं और इसकी मांग बढ़ रही है।’ एक बच्चे की मां सुनीता ध्रुवे कहती हैं कि उन्हें इस बात का कोई आभास नहीं था कि बड़े शहर के लोग उनके कार्य को पसंद करेंगे। ऐसा लग रहा है कि वे हमारी संस्कृति को पसंद कर रहे हैं। ध्रुवे ने कहा, ‘हम (बैगा) अपना खुद का आभूषण बनाते हैं। नेकलेस को बनाने में मुश्किल से कुछ घंटे ही लगते हैं। अगर हम मजदूर के तौर पर काम करते हैं तो हमें पूरा दिन, समय और ऊर्जा लगाने के बाद 100 रुपए मिलते हैं। इसके अलावा बड़े कांट्रेक्टर और बड़े शहर के लोग हमें नीचा दिखाते हैं। लेकिन नेकलेस बनाने का काम हम घर के अन्य कामों के साथ कर सकते हैं।’ वह लास्ट वाइल्डरनेस फाउंडेशन द्वारा दी गई सामग्रियों से नेकलेस और ब्रेसलेट बनाती हैं। फाउंडेशन इसके साथ ही बने हुए आभूषणों को उनसे लेकर दुकानों व ई-मार्केट में बेच देता है। यह कार्य 2017 में केवल एक बैगा महिला से शुरू किया गया था। इस परियोजना में बीते साल से तेजी आई और जंगल के कोर क्षेत्र में 10 किलोमीटर के अंदर बसे तीन विभिन्न गांवों की 50 बैगा महिलाएं मौजूदा समय में रंगीन ब्रेसलेट और नेकलेस बनाती हैं और इससे अपनी जीविका चलाती हैं।

एक अन्य जनजातीय महिला संजू बोपचे ने कहा, ‘अपने खुद के आय का स्रोत होना काफी अच्छा है। अब मैं पैसे के लिए अपने पति पर निर्भर नहीं हूं। मेरे पास अब अपनी बचत है और अब मुझे हर एक छोटी चीज के लिए उन्हें खुश करने की जरूरत नहीं है।’ बोपचे ने कहा कि उन्होंने सबसे पहले खुद कमाए गए पैसे से पास के शहर के साप्ताहिक बाजार से अपने लिए मेक-अप का सामान और अपने बेटे के लिए एक खिलौना खरीदा। महिलाएं हालांकि अपने काम को कर सशक्त महसूस कर रही हैं, लेकिन उनमें अपने शिल्प कौशल और उद्यमिता के लिए ज्यादा कमाई के लिहाज से भविष्य में और ज्यादा सशक्त होने का भाव उत्पन्न हो रहा है। महिलाओं को आभूषणों को बनाने के लिए जिस चीज की भी जरूरत होती है, फाउंडेशन उसे उपलब्ध कराता है, जिससे महिलाएं प्रति पीस 50-100 रुपए कमाती हैं। आभूषणों को कान्हा बाघ अभयारण्य के मुक्की जोन स्थित रिसॉर्ट और दुकानों और ई-कामर्स प्लेटफार्म पर 600 से 1000 रुपए प्रति पीस बेचा जाता है। अपनी मां प्रमोदिनी से आभूषण कला सीखने वाली 16 वर्ष की इंद्रावती ने कहा कि 50 से 100 रुपए काफी नहीं हैं। इंद्रावती ने कहा, ‘यह एक जंगल के गांव में रहने वाले लोगों के लिए काफी हो सकता है, लेकिन मैं जानती हूं कि शहर के लोग इस शिल्पकला के लिए ज्यादा पैसे चुकाते हैं। मैंने बीते तीन माह में 6,000 रुपए कमाए हैं। लेकिन यह और ज्यादा होता, अगर मैं इसे बाजार में खुद बेचती।’ कान्हा बाघ अभयारण्य के सहायक निदेशक एस.के. खरे ने कहा, ‘फाउंडेशन और वन विभाग के लिए यह पहल बैगा संस्कृति को संरक्षित करने और उन्हें सशक्त कर वन पर उनकी निर्भरता को

घटाने का प्रयास है। इसके साथ ही उनके अपने उद्यमशीलता को शुरू करने के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास है।’ उन्होंने साथ ही कहा कि इस पहल से बैगा समुदाय और वन विभाग के बीच विश्वास की भावना विकसित हुई है। खरे ने कहा, ‘सभी जनजातीय आभूषणों को शहरी लोगों के लिए बनाया जाता है। नेकलेस एक 20 लाइन का मूंग दाना नेकलेस होता है, जबकि वास्तविक में यह 40 से ज्यादा मूंगा दाने का होता है, जिसे जनजातीय महिलाएं पहनती हैं। उसी तरह ब्रेसलेट प्राय: जनजातीय महिलाएं नहीं पहनती हैं, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया अच्छी है।’ लास्ट वाइल्डरनेस फाउंडेशन की विद्या वेंकटेश ने कहा, ‘यह शानदार अनुभव है और यह पहली बार है कि उनके आभूषण को बाजार में

अपने खुद के आय का स्रोत होना काफी अच्छा है। अब मैं पैसे के लिए अपने पति पर निर्भर नहीं हूं। मेरे पास अब अपनी बचत है और अब मुझे हर एक छोटी चीज के लिए उन्हें खुश करने की जरूरत नहीं है- संजू बोपचे लाया गया है और स्मारिका दुकानों के पास कुछ स्थानीय चीजें बेचने के लिए हैं। हमें सच में काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन सबसे अच्छी प्रतिक्रिया ऑनलाइन स्टोर के विदेशी पर्यटकों से मिली है।’ मौजूदा समय में बैगा महिलाएं बाजार में बेचने के लिए केवल दो तरह के आभूषण 'नेकलेस और ब्रेसलेट' बनाती हैं। वेंकटेश ने कहा कि इस प्रोजेक्ट को बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली है, इसीलिए वे इसमें दो और उत्पाद जोड़कर इस परियोजना का विस्तार करना चाहती हैं, जिसमें एक चार लाइन वाले एंकलेट और दूसरा बिछुआ है। वेंकटेश ने कहा, ‘इन जनजातीय महिलाओं ने इस सीजन पर्यटकों के लिए कार्यशालाओं का अयोजन किया था। उनका आत्मविश्वास ऊंचे स्तर पर है और वे धीरे-धीरे अपने कार्य और कला की अहमियत समझ रही हैं। यह इन महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ा बदलाव है, जो पहले वन रक्षकों को देख कर ही भाग जाया करती थीं।’


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विविध

अनछुए विषय पर लिखे गए उपन्यास ‘कितने मोर्चे’ का लोकार्पण

वंदना यादव के पहले उपन्यास ‘कितने मोर्चे’ का लोकार्पण दिल्ली के कॉन्स्ट्टीयूशन क्लब में आयोजित हुआ

वं

डॉ. अशोक कुमार ज्योति

दना यादव के पहले उपन्यास 'कितने मोर्चे' के लोकार्पण के अवसर पर सभी वक्ता इस बात पर एकमत थे कि यह एक अनछुए विषय पर लिखा गया अनूठा उपन्यास है, जो पाठकों का परिचय एक नई दुनिया से करवाता है। 1 दिसंबर, 2018 को नई दिल्ली के कॉन्स्ट्टीयूशन क्लब में वंदना यादव द्वारा लिखित सैनिकों के परिवारजनों पर आधारित ‘कितने मोर्चे’ नामक उपन्यास का लोकार्पण साहित्य एवं पत्रकारिता-जगत के प्रमुख लोगों के

द्वारा संपन्न हुआ। दीप प्रज्वलन के साथ आरंभ हुए साहित्यिक कार्यक्रम में डॉक्टर मृदुला टंडन द्वारा स्वागत उद्बोधन के बाद उपन्यास ‘कितने मोर्चे’ का लोकार्पण भारतीय भाषाओं के लिए समर्पित वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रो. अरुण कुमार भगत, ‘पाखी’ पत्रिका के संपादक प्रेम भारद्वाज, प्रसिद्ध साहित्य समीक्षक प्रोफेसर सत्यकेतु सांकृत, वरिष्ठ कवि एवं आकाशवाणी के पूर्व महानिदेशक लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, नीदरलैंड से पधारीं प्रोफेसर पुष्पिता अवस्थी

और कर्नल डीआर सेमवाल ने किया। उपन्यास ‘कितने मोर्चे’ सैनिकों के परिवारजनों, विशेष रूप से उनकी पत्नियों के अहसासों पर आधारित है, जिन्हें वह प्रतिदिन अपने सैनिक पति की अनुपस्थिति में महसूस करती हैं। जब सैनिक मोर्चे पर होता है तो उसकी पत्नी फतेह कर रही होती है--न जाने कितने मोर्चे। वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने एक सामान्य पाठक की दृष्टि से पढ़ने के बाद पुस्तक को बेहद रोचक बताया। उन्होंने कहा कि इसे यदि आप पढ़ना शुरू कर देंगे तो समाप्त किए बिना बंद करने का दिल नहीं करेगा। साहित्यसमीक्षक प्रो. सत्यकेतु सांकृत ने पुस्तक की पठनीयता के लिए इसे सबसे ज्यादा अंक प्रदान किए। साहित्यकार प्रेम भारद्वाज ने ईमानदारी के साथ पुस्तक की विवेचना की तथा इसके गुण और दोष बताते हुए इसके विवरण-वर्णन की ओर ध्यान आकर्षित करवाया। कवि, गीतकार एवं गजलकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने जब ‘कितने मोर्चे’ के कुछ अंशों को पढ़कर सुनाया तो कई बार श्रोताओं की आंखें नम हो गईं। खचाखच भरे सभागार में प्रत्येक व्यक्ति ने पुस्तक की उन पंक्तियों के साथ स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस किया। एक अनछुए विषय को समझने और लिखने के लिए वंदना यादव

को सभी अतिथियों ने अपनी बधाई दी तथा जनरल जीडी बक्शी और कर्नल डीआर सेमवाल ने शुभकामनाएं प्रेषित कीं। कार्यक्रम का संयोजन मुंबई के प्रोडक्शन हाउस रवि पिक्चर्स ने किया। कवयित्री ममता किरण ने वंदना यादव को बधाई देने के साथ अंग वस्त्र ओढ़ाकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का सफल संचालन अभिनेता एवं कवि रवि यादव ने किया। कानपुर की रेडियो उद्घोषिका रंजना यादव ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम में संगीता यादव, विनीता, मुकेश कुमार सिन्हा, नीलिमा शर्मा, चित्रा यादव, शिवानी, सुभाष नीरव, कलीराम तोमर, सुषमा भंडारी, अशोक गुप्ता, ओम सपरा, प्रिय दर्शन, रमेश बंगालिया, नीलम मिश्रा, पूनम यादव, मोहम्मद इलियास, प्रसन्नानसु, पुष्पा सिंह विसेन, सुनील हापुड़िया, गज़ल गायक शकील अहमद, कार्टूनिस्ट इरफान, डॉ. रश्मि, डॉ. रेणु यादव के अतिरिक्त समाज के अन्य क्षेत्रों से भी दर्शक उपस्थित रहे। ‘कितने मोर्चे’ वंदना यादव की छठी किताब है, परंतु उपन्यास-विधा पर आधारित पहली पुस्तक है। इस उपन्यास का प्रकाशक अनन्य प्रकाशन है। सैनिकों और उनके परिवार की जिंदगी पर आधारित यह रोचक उपन्यास ऑनलाइन बिक्री के लिए भी उपलब्ध है।

कला

कारंत के दुर्लभ संग्रह को अंततः घर मिला

भारतीय रंगमंच के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर बीवी कारंत के कलात्मक संग्रह और महत्वपूर्ण पुस्तकों को सुरक्षित ठिकाना मिला

ह कुछ समय पहले तक या यूं कहें कि जब तलक जिंदा रहे, भारत के सबसे चर्चित थियेटर व्यक्तित्व थे। बीवी कारंत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक जाने-माने थिएटर निर्देशक, लेखक, अभिनेता और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व निदेशक थे। भारतीय रंगमंच के इस अगुआ का एक सपना था कि उनके द्वारा एकत्रित किताबों, वाद्ययंत्रों, पोस्टर और रंगमंच से जुड़ी वस्तुओं के संग्रहण और संरक्षण के लिए ‘बाबूकोड़ी वेंकटरमण कारंत थियेटर ट्रस्ट (बीवीकेटीटी)’ बनाया जाए। कारंत का यह सपना आखिरकार अब पूरा हो रहा है। शिमोगा जिले के हेगगोडू में ‘बीवी कारंत थिएटर कॉम्प्लेक्स’ की स्थापना हो रही है। यह परिसर हेगगोडू के नीलकंठेश्वर नाया सेवा संघ (निनासम) के सहयोग से 65 लाख रुपए की लागत से विकसित किया गया है। 1949 में स्थापित निनासम ने 1980 में थियेटर लाइब्रेरी सुविधा

स्थापित की थी और इसमें थियेटर पर हुए 15,000 से अधिक दुर्लभ कामों का संग्रह है। थियेटर पर कारंत के संग्रह के इस पुस्तकालय से जुड़ने पर यह और समृद्ध होगा। बीवीकेटीटी के प्रबंध निदेशक जयराम पाटिल कहते हैं, ‘शायद, यह देश में रंगमंच पर बहुत कम पुस्तकालयों में से एक होगा।’ कुल मिलाकर, परिसर में लगभग 30,000 किताबें और 1,000 से अधिक ऑडियो-वीडियो दस्तावेज होंगे। निनासम के अक्षरा केवी के अनुसार विद्वानों, थियेटर पसंद लोगों और आम जनता के अलावा, यह परिसर निनासम के छात्रों और फैकल्टी के लिए भी खुलेगा।

वाद्ययंत्र

इस बीच, पूरे भारत से कारंत द्वारा उनके जीवनकाल में संग्रहीत दुर्लभ संगीत वाद्ययंत्रों का संग्रह मनिपाल में विजयनाथ शेनॉय द्वारा स्थापित हस्तशिल्प हेरिटेज

विलेज में है। पाटिल कहते हैं, ‘कारंत के पास 150 से अधिक दुर्लभ संगीत वाद्ययंत्र थे। चूंकि उनको संग्रहीत और संरक्षित करने के लिए कोई व्यक्ति नहीं है, इसीलिए हमारे ट्रस्ट ने कारंत के बेंगलुरु के घर में संग्रहीत किए गए सभी वाद्ययंत्रों को दान करने का फैसला किया। शेनॉय की अपील के बाद कारंत ने खुद ही इनको हस्तशिल्प को देने के लिए सहमति व्यक्त की थी। अब, वे क्यूरेटर के सुरक्षित संग्रह में हैं और वातानुकूलित स्टोरेज सुविधा में संरक्षित हैं।’ एक दशक पहले मैसूर के रंगयान, कारंत जिसके पहले निर्देशक थे, ने अपने परिसर में थियेटर पुस्तकालय और संग्रहालय की योजना बनाई थी। इसके लिए कन्नड़ और संस्कृति विभाग ने

भी रुचि दिखाई थी। स्वर्गीय मंत्री एचएस महादेव प्रसाद के नेतृत्व में विभाग ने 2007 में रंगयान के निदेशक की अध्यक्षता में थियेटर और आर्किटेक्ट्स के विशेषज्ञों की एक समिति बनाई थी। 2.5 करोड़ रुपए की लागत वाली योजना बनाई गई और सरकार को भेज दी गई। मंत्री ने कारंत के संग्रह की योजना को आगे बढ़ाने के लिए ट्रस्ट को टोकन मानदंड के रूप में 10 लाख रुपए मंजूर किए और महत्वाकांक्षी परियोजना की नींव रखने के लिए तैयारियां शुरू कर दी गईं। हालांकि, तब गठबंधन सरकार के गिरने के साथ ही उस सपने को पूरा नहीं किया जा सका। लेकिन अंततः निनासम के सहयोग से ‘बाबूकोड़ी वेंकटरमण कारंत थियेटर ट्रस्ट’ के रूप में संग्रह के लिए एक सुरक्षित जगह मिल गई है।


16 खुला मंच

10 - 16 दिसंबर 2018

शक्ति के अभाव में विश्वास व्यर्थ है। विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए आवश्यक हैं

अभिमत

भा

लेखक वरिष्ठ शोधकर्ता, समीक्षक और स्तंभकार हैं

सरदार पटेल स्मृति दिवस (15 दिसंबर) पर विशेष

राष्ट्र और राष्ट्रपिता दोनों के विश्वासपात्र

- सरदार पटेल

भारतीय शहरों का बढ़ा रुतबा

प्रियदर्शी दत्ता

गांधी जी के बेहद करीबी काका कालेलकर ने कहा था कि पटेल उसी प्रतिष्ठित जमात के हिस्सा हैं जिसके शिवाजी और तिलक हैं

दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाले शीर्ष दस शहरों में सभी शहर भारत के

रत के लिए विकास और समृद्धि अब सपना नहीं बल्कि हकीकत है। इस नई हकीकत के साथ भारत दुनिया के उन देशों की कतार में खड़ा हो गया है, जो विकसित और आदर्श माने जाते हैं। इस लिहाज से कई आकलन और अध्ययन भी सामने आए हैं, जिसमें विश्व शक्ति के रूप में भारत के उभार को रेखांकित किया गया है। ऐसा ही एक मूल्यांकन ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की ताजा रिपोर्ट में सामने आया है। इसमें कहा गया है कि दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाले शीर्ष दस शहरों में सभी शहर भारत के हैं। ऑक्सफोर्ड के वैश्विक शहरों के शोध के प्रमुख रिचर्ड होल्ट के मुताबिक गुजरात की हीरा नगरी और व्यापार केंद्र सूरत में 2035 तक 9 प्रतिशत से अधिक की औसत के साथ सबसे तेजी से विस्तार देखने को मिलेगा। शीर्ष के 10 शहरों में सूरत, आगरा, बेंगलुरु, हैदराबाद, नागपुर, तिरुपुर, राजकोट, तिरुचिरापल्ली, चेन्नई और विजयवाड़ा शामिल हैं। ब्लूमबर्ग की खबर के अनुसार हालांकि सूची में शामिल कई भारतीय शहरों का इकोनॉमिक आउटपुट दुनिया के बड़े मेट्रोपॉलिटन शहरों से कम रहेगा, लेकिन एशिया के सभी शहरों का कुल जीडीपी 2027 तक उत्तरी अमेरिका और यूरोप के प्रमुख शहरों से कई गुना आगे निकल जाएगा। 2035 तक यह उत्तर अमेरिका और यूरोप महाद्वीपों से 17 प्रतिशत अधिक हो जाएगा। इससे पहले ऐसे ही एक महत्वपूर्ण मूल्यांकन में अंतरराष्ट्रीय थिंक-टैंक लेगाटम इंस्टीट्टयू के 12वें सालाना वैश्विक समृद्धि सूचकांक में भारत 19 पायदान की लंबी छलांग लगाते हुए 94वें स्थान पर पहुंच गया है। दुनिया के सबसे समृद्ध देश की पहचान के लिए सौ से ज्यादा मानदंडों पर सभी देशों काे परखा गया था। 2013 में भारत इस सूची में 113वें नंबर था और पांच वर्षों के दौरान वह अभूतपूर्व प्रगति के साथ 94वें नंबर पर पहुंच गया है।

टॉवर फोनः +91-120-2970819

(उत्तर प्रदेश)

रीब 100 साल पहले अहमदाबाद में जब महात्मा गांधी और सरदार पटेल दोनों मिले तो उम्मीद थी कि राजनीति पर गरम बहस होगी, लेकिन यहां तो धर्म-कर्म पर काफी देर तक चर्चा होती रही। पर 41 साल के बेहद सख्त मिजाज के बैरिस्टर में उस मुलाकात के बाद कुछ बेहद स्थाई बदलाव आए। गांधी के शब्द उनके कानों में तब तक गूंजते रहे, जब तक वो सत्याग्रह आंदोलन में खुद शामिल नहीं हो गए। हालांकि बेहद व्यावहारिक इंसान होने की वजह से वो अपने झुकाव के बावजूद खुलकर आंदोलन में 1917 में जाकर शामिल हुए। उसी साल चंपारण आंदोलन के बाद गांधी देश के राजनीतिक मसीहा बन चुके थे। बैरिस्टर उसके बाद गांधी के विश्वासपात्र बन गए और आगे चलकर धीरे-धीरे गांधी के दायां हाथ हो गए। जो भी गांधी सोचते या रणनीति बनाते, बैरिस्टर उसको हुबहू पूरा करते। बैरिस्टर यूरोपीय सूट-बूट जलाकर खादी का धोती-कुर्ता पहनने लगे। उस बैरिस्टर का नाम था सरदार बल्लभभाई झावेरीभाई पटेल (1875-1950), भारत के लौहपुरुष। सरदार पटेल लेउवा पटेल समुदाय से थे। माना जाता है

कि उनके पूर्वज लड़ाके थे, लेकिन फिलहाल ये समुदाय के कार्य में लगे थे। इस समुदाय की शौर्यता और कठिन परिश्रम का इतिहास रहा है। किसान परिवार के पटेल का बचपन भी खेतीबाड़ी के माहौल में बीता। कानूनी और राजनीतिक क्षेत्र में शीर्ष मुकाम तक पहुंचने के बावजूद वे खुद को हमेशा किसान/खेतिहर बताते। अहमदाबाद नगरनिगम का चुनाव जीतने (1917-1928) के बाद से ही सरदार पटेल में एक कुशल राजनेता की छवि नजर आने लगी। वे अपनी प्रतिभा से ना सिर्फ ब्रिटिश नौकरशाही को धराशायी कर रहे थे, बल्कि उन्होंने शहर के आम नागरिकों की जरूरतों के हिसाब से कई रचनात्मक कार्यों की भी पहल की। निगम के प्रेसिडेंट रहते हुए (1924-1928) एकबार 'स्वच्छ भारत' का भी एक अनोखा उदाहरण पेश किया था। स्वयंसेवकों के साथ मिलकर पटेल ने अहमदाबाद की गलियों में झाड़ू लगाए और कूड़ा फेंका, जिसकी शुरुआत वहां की हरिजन बस्ती से हुई। 1917 में जब अहमदाबाद में प्लेग फैला तो स्वयंसेवकों के साथ पटेल 24 घंटे लगे रहे। पीड़ितों के घर जाकर उनसे और उनके परिजनों से बात करते। लोकमान्य तिलक ने जैसे 1896

1930 अमेरिकी पत्रकार जॉन गुथ ं र ने पटेल को 'पार्टी का सर्वोत्कृष्ट' नेता करार दिया था। उनके मुताबिक पटेल फैसले लेने वाले, व्यावहारिक और किसी भी मिशन को पूरा करने वाले शख्स थे


10 - 16 दिसंबर 2018 में प्लेग के दौरान किया था वैसे ही पटेल संक्रमण का खतरा उठाते हुए कार्य करते रहे। लगातार कार्य की वजह से पटेल के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर पड़ा। लेकिन इस दौरान आम जनता के नेता की उनकी छवि और मजबूत हो गई। लगभग उसी दौरान खेड़ा सत्याग्रह (1918) से पटेल की नेतृत्व क्षमता और मजबूत हुई और ये सत्याग्रह आगे जाकर बारदोली सत्याग्रह (1928) में बदल गया। हालांकि खेड़ा (गुजरात) आंदोलन में कर रियायत की जो मांगें थीं वो पूरी तो नहीं हुई, लेकिन इसके दो बेहद अहम प्रभाव पड़े। पहला, जमीन का कर तय करने में किसानों को भी एक पक्ष के रूप में स्वीकारा गया और इस विषय पर गांधी और पटेल एकसाथ आए। एक दशक बाद गुजरात 23 जुलाई 1927 को मूसलाधार बारिश की वजह से भयंकर बाढ़ से जूझने लगा। पटेल ने बाढ़ पीड़ितों को बचाने और उनके पुनर्वास के लिए जोरदार अभियान चलाया, इसी अभियान से राष्ट्रीय स्तर पर उनकी एक मजबूत नेततृ ्वकर्ता की पहचान बनी। बॉम्बे सरकार (गुजरात तब बॉम्बे प्रेसिडेंसी का हिस्सा था) ने अवॉर्ड के लिए उनके नाम का प्रस्ताव भेजा, लेकिन पटेल ने विनम्रता से उसे ठुकरा दिया। बारदोली (1928) में विशाल जीत के बावजूद ऐसी विनम्रता पटेल की पहचान थी। वे दिसंबर 1928 में कलकत्ता कांग्स रे के चुनाव में खड़ा नहीं होना चाहते थे। बार-बार आग्रह किए जाने के बाद वे गुजरात से आए लोगों के बीच खड़े हुए, लेकिन उसके बाद भी संबोधित करने मंच पर आने के लिए उन्हें धक्का देना पड़ा। बारदोली (जिला-सूरत) पटेल का कुरुक्षेत्र रहा है। उनके नेततृ ्व में चलाया गया सफल कर विरोधी अभियान का नतीजा यह हुआ कि ब्रिटिश हुकूमत तीन महीने के भीतर फैसले को वापस लेने पर मजबूर हुई। सांगठनिक कुशलता के आधार पर इस आंदोलन की तुलना सिर्फ महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक के चलाए अकाल राहत आंदोलन (1896) से ही की जा सकती है। पटेल ने सैन्य तैयारी की तर्ज पर इस सत्याग्रह आंदोलन को खड़ा किया, लेकिन ये पूरी तरह से अहिंसक आंदोलन था। पटेल खुद आंदोलन के सेनापति थे, उनके बाद विभागपति आते जो कि सैनिकों का कामकाज देखते थे। इस आंदोलन की रणभूमि में 92 गांवों के 87,000 किसान शामिल थे। घुड़सवार संदश े वाहकों, भजन गायकों और छापाखानों की मदद से उन्होंने एक वृहद सूचना तंत्र तैयार किया। बारदोली में उनकी सफलता ने पूरे ब्रिटेश साम्राज्या का ध्यान खींचा। लेकिन सबसे बड़ा सम्मान तो उन्हें बारदोल तालुका के नानीफलोद के एक किसान ने दिया। कुवरे जी दुर्लभ पटेल ने भरी सभा में कहा कि ‘पटेल आप हमारे सरदार हैं।’ उसके बाद से ‘सरदार’ की ये उपाधि पटेल को हमेशा के लिए मिल गई। पटेल का बेहद अनुशासित होकर कार्य करने का तरीका विलक्षण था। स्व-अनुशासन का मंत्र गांधी ने दिया था, लेकिन आंदोलन के लिए बेहद जरूरी सांगठनिक अनुशासन और एकजुटता को पटेल लेकर आए। पटेल का राजनीतिक सफर ठीक उसी समय शुरू हुआ, जब भारतीय राजनीति आंदोलन का रूप ले चुकी थी। 1930 में एशियाई राजनीति पर काफी सर्वे कर चुके अमेरिकी पत्रकार जॉन गुथं र ने पटेल को 'पार्टी का सर्वोत्कृष्ट' नेता करार दिया था। उनके मुताबिक पटेल फैसले लेने वाले, व्यावहारिक और किसी भी मिशन को पूरा करने वाले शख्स थे। कई बार पटेल की सांगठनिक क्षमता को इम्तहान से गुजरना पड़ा। एक समय भारत पर विभाजन का खतरा मंडरा रहा था। करीब 565 रियासतें बंटवारे के समय भारत में शामिल होने को तैयार नहीं थीं। त्रावणकोर जैसी कुछ रियासतें स्वतंत्र रहना चाहती थीं जबकि भोपाल और हैदराबाद जैसी कुछ रियासतें पाकिस्तानी सीमा से दूर होने के बावजूद उसके साथ जाने के षड्यंत्र में शामिल थीं। रणनीतिक कुशलता और दबाव का प्रयोग कर पटेल ने रियासतों को भारत के साथ लाने की लड़ाई आखिरकार जीत ली। हैदराबाद में जब बातचीत से मामला नहीं सुलझा और छोटे-छोटे गुटों में प्रदर्शनकारी आतंकी गतिविधियों में शामिल होने लगे तो सेना का भी इस्तेमाल करना पड़ा। स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री के तौर पर पाकिस्तान से विस्थापित हुए हिंदू और सिख शरणार्थियों के पुनर्वास कार्य कराने के साथ ही देश में सिविल सेवा की शुरुआत का श्यरे भी उन्हीं को जाता है। आईसीएस फिलिप मैसन ने एक बार कहा था कि पटेल एक जन्मजात प्रशासक हैं और उन्हें कोई कार्य करने के लिए पुराने अनुभव की जरूरत नहीं है। गांधी जी के बेहद करीबी काका कालेलकर ने कहा था कि पटेल उसी प्रतिष्ठित जमात के हिस्सा हैं जिसके शिवाजी और तिलक हैं।

आचार्य तुलसी

अणुव्रत और जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के प्रवर्तक और सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक

चरित्र और अनुशासन

खुला मंच

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ल​ीक से परे

जिस प्रकार प्राण के बिना इंद्रियां अर्थहीन हो जाती हैं, वैसे ही व्यक्ति के सुधार बिना समाज-सुधार का स्वप्न बेकार होता है

नै

तिकता एक शाश्वत मूल्य है। इसकी अपेक्षा हर युग में रहती यहां कोई आदमी नहीं है। आगंतुक व्यक्ति ने छूटते ही कहा, मैं है। सतयुग में भी ऋषि-मुनि होते थे। वे धर्म और नैतिकता तो आपको आदमी समझकर ही आया था। सेठ जी के पास सब कुछ था। एक आदमी नहीं था, इसीलिए की चर्चा किया करते थे। रामराज्य भी इसका अपवाद नहीं था। उस समय भी धर्म के उपदेशक थे। जिस युग में धर्म और नीति कुछ भी नहीं था। इसका मतलब यह नहीं है कि आदमी पैदा नहीं के पांव लड़खड़ाने लगे हों, सांप्रदायिकता, धार्मिक असहिष्णुता, होते। पैदा होते हैं, किंतु वे बनते नहीं। क्योंकि माता-पिता जन्म तो जातिवाद, छुआछूत, बेरोजगारी, कालाबाजारी, मिलावट, दहेज दे सकते हैं, पर जीवन नहीं दे सकते। जीवन के बिना जन्म की अर्थवत्ता भी क्या है? आदमी आदमी न हो तो उसके आदि बीमारियां सिर उठाए खड़ी हों, उस समय आदमी बने रहने का प्रयोजन ही क्या है? इस तो नैतिकता की आवाज उठाना और इसकी यदि हमें प्रश्न ने धर्मगुरुओं, धर्माचार्यों, संतों और जरूरत को रेखांकित करना और अधिक आदमी बनाना है तो वह धर्म संस्थाओं को चुनौती दी कि या जरूरी हो गया है। आज सब कुछ हैट्रेन है, प्लेन है, कारखाने हैं, मिलें समाज से नहीं, व्यक्ति से बनेगा, तो वे कोई ऐसा नुस्खा ईजाद करें, हैं, स्कूल हैं, कॉलेज हैं, भोगोपभोग जो आदमी को आदमी बना सके, व्यक् ति -सु ध ार से समाज-सु ध ार की तमाम सामग्रियां हैं। पर अच्छा अन्यथा धर्म और धर्मगुरुओं की की बात जितनी युक्तिसंगत है, आदमी नहीं है। इस एक कमी के उपयोगिता विवादास्पद बन जाएगी। देश आजाद हुआ और इसके कारण सब उपलब्धियां बेकार हो रही उतनी ही सरल साथ ही देश में अनुशासनहीनता और हैं। सब कुछ है, पर जब तक आदमी भी चरित्रहीनता को भी आजादी मिल गई। इसका सही अर्थ में आदमी नहीं है, तब तक कुछ भी नहीं है। इलाज तो जरूरी है। इसके लिए हमें प्रयास करना एक साधारण व्यक्ति किसी सेठ के पास गया। उसके घर होगा। कई बार मन में आता है कि कितना प्रयास करें। हम में लड़की की शादी थी। बारात का आतिथ्य करने के लिए तो कब से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लोग हैं कि समझते ही उसे किसी चीज की जरूरत हुई। सेठ जी का नाम उसने बहुत नहीं। तब सूर्य को देखो। सूर्य से मत पूछो कि उसने आज तक सुना था। मन में बड़ी आशा संजोकर वह सेठ जी के घर पहुंचा कितना अंधकार मिटाया, उसका काम अंधकार मिटाने का है। और बोला, मुझे दो-चार दिन के लिए अमुक चीज की जरूरत रात को फिर अंधकार घिर आता है। इसकी वह चिंता नहीं है। आप दे सकें तो बड़ी कृपा होगी। सेठ जी मसनद के सहारे करता। शाम ढलते ही प्रतिदिन अंधकार अपना साम्राज्य जमा आराम से बैठे थे। उन्होंने इधर-उधर देखा और कहा, आप लेता है, इस बात की परवाह किए बिना सूरज अगली सुबह कुछ समय बाद आना। कुछ समय बाद आने पर भी उसे वही फिर अपना दायित्व निभाने आ जाता है। यदि हमें आदमी बनाना है तो वह समाज से नहीं, व्यक्ति से बात सुनने को मिली। जब वह तीसरी बार आया और सेठ ने फिर टालमटोल किया तो आगंतुक अधीर हो उठा। वह अपनी बनेगा, व्यक्ति-सुधार से समाज-सुधार की बात जितनी युक्तिसंगत अधीरता का गोपन करता हुआ बोला, भाई साहब! बात क्या है? है, उतनी ही सरल भी। आदमी के सुधार बिना सारी योजना मुझे और भी कई काम करने हैं। आप मेरी दुविधा को समाप्त विफल हो जाती है, सारा चिंतन अर्थहीन रह जाता है। जिस प्रकार कीजिए। सेठ साहब सुनकर गंभीर हो गए और अपनी कठिनाई प्राण के बिना इंद्रियां अर्थहीन हो जाती हैं, वैसे ही व्यक्ति के सुधार बताते हुए बोले, भाई! तुम अन्यथा मत समझो। मैं क्या करूं? बिना समाज-सुधार का स्वप्न बेकार होता है।


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फोटो फीचर

10 - 16 दिसंबर 2018

रैंप पर उतरे दिव्यांगजन

रैंप पर उतरने वाले महिला-पुरुष मॉडल महज फैशन के नए ट्रेंड को ही दुनिया के सामने नहीं लाते, बल्कि यह सबलता की अभिव्यक्ति का भी मंच है। नारायण सेवा संस्थान ने हाल ही में ऐतिहासिक लाल किले में सजे रैंप पर दिव्यांगजनों को उतार कर उनकी प्रतिभा को न सिर्फ लोगों के सामने लाया, बल्कि उन्हें यह भी अहसास कराया कि दिव्यांगजन भी किसी से कम नहीं हैं। फोटो : शिप्रा दास


10 - 16 दिसंबर 2018

फोटो फीचर

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20 20 बैरिस्टरी करने के बाद गांधी जी के लिए दक्षिण अफ्रीका पहुंचना एक नया अनुभव था। विलायत जाने और वहां से लौटने के बाद वे फिर से समुद्र के रास्ते एक नई विदेश यात्रा पर थे। इस दौरान जहां उनके अनुभव की परतें बड़ी हुई, वहीं वह सोच और विचार के स्तर पर ज्यादा दृढ़ हो गए थे

पुस्तक अंश

10 - 16 दिसंबर 2018

विलायत से स्वदेश वापसी फिर दक्षिण अफ्रीका रवाना

दूसरा भाग

दक्षिण अफ्रीका की तैयारी

साहब से भी सवाया होता; क्योंकि वही तो साहब की आंख, कान और दुभाषिए का काम करता था। रिश्तेदारों की इच्छा ही कानून थी। रिश्तेदारों की आमदनी साहब से ज्यादा मानी जाती थी। संभव है कि इसमें अतिशयोक्ति हो, पर रिश्तेदारों के अल्प वेतन की तुलना में उनका खर्च अवश्य ही अधिक होता था। यह वातावरण मुझे विष-सा प्रतीत हुआ। मैं अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कैसे कर सकूंगा, इसकी चिंता बराबर बनी रहती। मैं उदासीन हो गया। भाई ने मेरी उदासीनता देखी। एक विचार यह आया कि कहीं नौकरी कर लूं, तो इन खटपटों से मुक्त रह सकता हूं। पर बिना खटपट के दीवान का या न्यायाधीश का पद कैसे मिल सकता था? वकालत करने में साहब के साथ झगड़ा बाधक बनता था। पोरबंदर में एडमिनिस्ट्रेशन नाबालिगी शासन था। वहां राणा साहब के लिए सत्ता प्राप्त करने का प्रयत्न करना था। मेर लोगों से लगान उचित से अधिक वसूल किया था। इसके सिलसिले में भी मुझे वहीं एडमिनिस्ट्रेटर से मिलना था। मैंने देखा कि एडमिनिस्ट्रेटर यद्यपि हिंदुस्तानी हैं, तथापि उनका रोब-दाब तो साहब से भी अधिक है। वे होशियार थे, पर उनकी होशियारी का लाभ जनता को अधिक मिला हो, यह मैं देख न सका। राणा साहब को थोड़ी सत्ता

मेरा उक्त अधिकारी के यहां जाना अवश्य दोषयुक्त था, पर अधिकारी की अधीरता, उसके रोष और उद्धतता के सामने मेरा दोष छोटा हो गया। दोष का दंड चपरासी का धक्का न था। मैं उसके पास पांच मिनट भी न बैठा होऊंगा। उसे तो मेरा बोलना भी असह्य मालूम हुआ। वह मुझसे शिष्टातापूर्वक जाने को कह सकता था, पर उसके मद की कोई सीमा न थी। बाद में मुझे पता चला कि इस अधिकारी के पास धीरज नाम की कोई चीज थी ही नहीं। अपने यहां आनेवालों का अपमान करना उसके लिए साधारण बात थी। मर्जी के खिलाफ कोई बात मुंह से निकलते ही साहब का मिजाज बिगड़ जाता था। मेरा ज्यादातर काम तो उसी की अदालत में रहता था। खुशामद मैं कर ही नहीं सकता था। मैं इस अधिकारी को अनुचित रीति से रिझाना नहीं चाहता था। उसे नालिश की धमकी देकर मैं नालिश न करूं और उसे कुछ भी न लिखूं, यह मुझे अच्छा न लगा। इस बीच मुझे काठियावाड़ के रियासती षडयंत्रों का भी कुछ अनुभव हुआ। काठियावाड़ अनेक छोटेमैंने वेतन के बारे में बिना कुछ झिक-झिक किए ही सेठ अब्दुल करीम का छोटे राज्यों का प्रदेश है। यहां मुत्सद्दियों का बड़ा समाज होना स्वाभाविक ही था। राज्यों के बीच सूक्ष्म प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और मैं दक्षिण अफ्रीका जाने के लिए तैयार हो षडयंत्र चलते, पदों की प्राप्ति के लिए साजिशें होतीं, गया। विलायत जाते समय वियोग के विचार से जो दुख हुआ था, वह राजा कच्चे कान का और परवश रहता। साहबों के दक्षिण अफ्रीका जाते समय न हुआ अर्दलियों तक की खुशामद की जाती। रिश्तेदार तो


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मिली। कहना होगा कि मेर लोगों को तो कुछ भी न मिला। उनके मामले की पूरी जांच हो, ऐसा भी मैंने अनुभव नहीं किया। इसीलिए यहां भी मैं थोड़ा निराश ही हुआ। मैंने अनुभव किया की न्याय नहीं मिला। न्याय पाने के लिए मेरे पास कोई साधन न था। बहुत करें तो बड़े साहब के सामने अपील की जा सकती है। वे राय देंगे, ‘हम इस मामले में दखल नहीं दे सकते।’ ऐसे फैसलों के पीछे कोई कानूनकायदा हो, तब तो आशा भी की जा सके। पर यहां तो साहब की मर्जी ही कानून है। मैं अकुलाया। इसी बीच भाई के पास पोरबंदर की एक मेमन फर्म का संदेशा आया : ‘दक्षिण अफ्रीका में हमारा व्यापार है। हमारी फर्म बड़ी है। वहां हमारा एक बड़ा मुकदमा चल रहा है। चालीस हजार पौंड का दावा है। मामला बहुत लंबे समय से चल रहा है। हमारे पास अच्छे-से-अच्छे वकील-बैरिस्टर हैं। अगर आप अपने भाई को भेजें, तो वे हमारी मदद करें और उन्हें भी कुछ मदद मिल जाए। वे हमारा मामला हमारे वकील को अच्छी तरह समझा सकेंगे। इसके सिवा, वे नया देश देखेंगे और कई लोगों से उनकी जान-पहचान होगी।’ भाई ने मुझ से चर्चा की। मैं सबका अर्थ समझ न सका। मैं यह जान न सका कि मुझे सिर्फ वकील को समझाने का ही काम करना है या अदालत में भी जाना होगा। फिर भी मैं ललचाया। दादा अब्दुल्ला के साझी मरहूम सेठ अब्दुल करीम झवेरी से भाई ने मेरी मुलाकात कराई। सेठ ने कहा, ‘आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी। बड़े-बड़े साहब से हमारी दोस्ती है। उनसे आपकी जान-पहचान होगी। आप हमारी दुकान में भी मदद कर सकेंगे। हमारे यहां अंग्रेजी पत्रव्यवहार बहुत होता है। आप उसमें भी मदद कर सकेंगे। आप हमारे बंगले में ही रहेंगे। इससे आप पर खर्च का बिल्कुल बोझ नहीं पड़ेगा।’ मैंने पूछा, ‘आप मेरी सेवाएं कितने समय के लिए चाहते हैं? आप मुझे वेतन क्या देंगे?’ ‘हमें एक साल से अधिक आपकी जरूरत नहीं रहेगी। आपको पहले दर्जे का मार्ग-व्यय देंगे और निवास तथा भोजन खर्च के अलावा 105 पौंड देंगे।’ इसे वकालत नहीं कह सकते। यह नौकरी थी। पर मुझे तो जैसे भी बने हिंदुस्तान छोड़ना था। नया देश देखने को मिलेगा और अनुभव प्राप्त होगा सो अलग। भाई को 105 पौंड भेजंूगा तो घर खर्च चलाने में कुछ मदद होगी। यह सोचकर मैंने वेतन के बारे में बिना कुछ झिक-झिक किए ही सेठ अब्दुल करीम का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और मैं दक्षिण अफ्रीका जाने के लिए तैयार हो गया।

नेटाल पहुंचा

विलायत जाते समय वियोग के विचार से जो

दुख हुआ था, वह दक्षिण अफ्रीका जाते समय न हुआ। माता तो चल ही बसी थीं। मैंने दुनिया का और यात्रा का अनुभव प्राप्त किया था। राजकोट और बंबई के बीच तो आना-जाना बना ही रहता था। इसीलिए इस बार वियोग केवल पत्नी का ही दुखदायी था। विलायत से आने के बाद एक और बालक की प्राप्ति हुई थी। हमारे बीच के प्रेम में अभी विषय-भोग का प्रभाव तो था ही, फिर भी उसमें निर्मलता आने लगी थी। मेरे विलायत से लौटने के बाद हम दोनों बहुत कम साथ रह पाए थे। शिक्षक की तरह मेरी योग्यता जो भी रही हो,

पुस्तक अंश

ही नहीं सकते?’ अफसर ने मेरी तरफ देखा। फिर वह हंसा और बोला, ‘एक उपाय है। मेरे केबिन में एक बर्थ खाली रहती है। उसे हम यात्री को नहीं देते, पर आपको मैं वह जगह देने के लिए तैयार हूं।’ मैं खुश हुआ। सेठ से बात करके टिकट कटाया और 1893 के अप्रैल महीने में उमंगों से भरा मैं दक्षिण अफ्रीका में अपना भाग्य आजमाने के लिए रवाना हो गया। पहला बंदरगाह लामू पड़ता था। वहां पहुंचने में करीब तेरह दिन लगे। रास्ते में कप्तान से अच्छी मित्रता हो गई। कप्तान को शतरंज खेलने का शौक था, पर वह अभी नौसिखुआ ही था। उसे अपने से कमजोर खेलनेवाले साथी की जरूरत थी। इसीलिए उसने मुझे खेलने के लिए न्योता।

21 किया, और इस छोटी नाव ने मुझे उस नाव में से उठा लिया। स्टीमर चल दिया! दूसरे यात्री रह गए। कप्तान की दी हुई चेतावनी का अर्थ अब मेरी समझ में आया। लामू से मुंबासा और वहां से जंजीबार पहुंचा। जंजीबार में तो काफी ठहरना था - आठ या दस दिन। वहां नए स्टीमर पर सवार होना था। मुझ पर कप्तान के प्रेम का पार न था। इस प्रेम ने मेरे लिए उलटा रूप धारण किया। उसने मुझे अपने साथ सैर के लिए न्योता। एक अंग्रेज मित्र को भी न्योता था। हम तीनों कप्तान की नाव पर सवार हुए। मैं इस सैर का मर्म बिल्कुल नहीं समझ पाया था। कप्तान को क्या पता कि मैं ऐसे मामलों में निपट अज्ञान हूं। हम लोग हब्शी औरतों की बस्ती में पहुंचे। एक दलाल हमें वहां

मैंने इसके लिए ईश्वर का उपकार माना कि उस बहन को देखकर मेरे मन में तनिक भी विकार उत्पन्न नहीं हुआ। मुझे अपनी इस दुर्बलता पर घृणा हुई कि मैं कोठरी से घुसने से ही इनकार करने का साहस न दिखा सका। मेरे जीवन की ऐसी यह तीसरी परीक्षा थी

परंतु मैं पत्नी का शिक्षक बना रहा था। पत्नी में जो कई सुधार मैंने कराए थे उन्हें निबाहने के लिए भी हम दोनों साथ रहने की आवश्यकता अनुभव करते थे। पर अफ्रीका मुझे अपनी तरफ खींच रहा था। उसने वियोग को सह्य बना दिया। ‘एक साल बाद तो हम फिर मिलेंगे ही न?’ पत्नी को यह कहकर और सांत्वना देकर मैंने राजकोट छोड़ा और बंबई पहुंचा। मुझे दादा अब्दुल्ला के बंबई वाले एजेंट के जरिए टिकट खरीदना था। पर स्टीमर में कोई केबिन खाली न थी। हालत यह थी कि अगर इस मौके को चूक जाता तो मुझे एक महीने तक बंबई की हवा खानी पड़ती। एजेंट ने कहा, ‘हमने कोशिश तो बहुत की, पर हमें टिकट नहीं मिल सका। आप डेक में जाएं तो जा सकते हैं। भोजन की व्यवस्था सलून में हो सकेगी।’ वह जमाना मेरे लिए पहले दर्जे की यात्रा का था। क्या बैरिस्टर डेक का यात्री बन कर जाए? मैंने डेक में जाने से इनकार कर दिया। मुझे एजेंट पर शक हुआ। मैं यह मान न सका कि पहले दर्जे का टिकट मिल ही नहीं सकता। एजेंट की अनुमति लेकर मैंने ही टिकट प्राप्त करने का प्रयत्न किया। मैं स्टीमर पर पहुंचा। बड़े अधिकारी से मिला। पूछताछ करने पर उसने सरल भाव से उत्तर दिया, ‘हमारे यहां इतनी भीड़ शायद ही कभी होती है। पर इस स्टीमर से मोजांबिक के गवर्नर-जनरल जा रहे है, इससे सारी जगहें भर गई हैं।’ ‘तो आप मेरे लिए किसी तरह जगह निकाल

मैंने शतरंज का खेल कभी देखा न था। उसके विषय में सुना काफी था। खेलनेवाले कहते थे कि इस खेल में बुद्धि का खासा उपयोग होता है। कप्तान ने कहा कि वह खुद मुझे सिखाएगा। मैं उसे अच्छा शिष्य मिला, क्योंकि मुझमें धैर्य था। मैं हारता ही रहता था। इससे कप्तान का सिखाने का उत्साह बढ़ता जाता था। मुझे शतरंज का खेल पसंद पड़ा, पर मेरा यह शौक कभी जहाज के नीचे न उतरा। उसमें मेरी गति राजा-रानी आदि की चाल जान लेने से अधिक न बढ़ सकी। लामू बंदरगाह आया। स्टीमर वहां तीन-चार घंटे ठहरनेवाला था। मैं बंदरगाह देखने नीचे उतरा। कप्तान भी गया था। उसने मुझसे कहा, ‘यहां का बंदर दगाबाज है। तुम जल्दी लौट आना।’ गांव तो बिलकुल छोटा-सा था। वहां के डाकखाने में गया, तो हिंदुस्तानी नौकर दिखाई दिए। इससे मुझे खुशी हुई। मैंने उनसे बातचीत की। हब्शियों से मिला। उनके रहन-सहन में रुचि पैदा हुई। इसमें थोड़ा समय चला गया। डेक के दूसरे भी कई यात्री थे। मैंने उनसे जान-पहचान कर ली थी। वे रसोई बनाने और आराम से भोजन करने के लिए नीचे उतरे थे। मैं उनकी नाव में बैठा। बंदर में ज्वार काफी था। हमारी नाव में बोझ ज्यादा था। प्रवाह का जोर इतना अधिक था कि नाव की रस्सी स्टीमर की सीढ़ी के साथ किसी तरह बंध ही नहीं पाती थी। नाव सीढ़ी के पास पहुंचती और हट जाती। स्टीमर खुलने की पहली सीटी बजी। मैं घबराया। कप्तान ऊपर से देख रहा था। उसने स्टीमर को पांच मिनट के लिए रुकवाया। स्टीमर के पास ही एक छोटी-सी नाव थी। एक मित्र ने उसे दस रुपए देकर ठीक

ले गया। हम में से हर एक एक-एक कोठरी में घुस गया। पर मैं तो शर्म का मारा गुमसुम ही बैठा रहा। बेचारी उस स्त्री के मन में क्या विचार उठे होंगे, सो तो वही जाने। कप्तान ने आवाज दी। मैं जैसा अंदर घुसा था वैसा ही बाहर निकला। कप्तान मेरे भोलेपन को समझ गया। पहले तो मैं बहुत ही शर्मिंदा हुआ। पर मैं यह काम किसी भी दशा में पसंद नहीं कर सकता था, इसीलिए मेरी शर्मिंदगी तुरंत ही दूर हो गई, और मैंने इसके लिए ईश्वर का उपकार माना कि उस बहन को देखकर मेरे मन में तनिक भी विकार उत्पन्न नहीं हुआ। मुझे अपनी इस दुर्बलता पर घृणा हुई कि मैं कोठरी से घुसने से ही इनकार करने का साहस न दिखा सका। मेरे जीवन की ऐसी यह तीसरी परीक्षा थी। कितने ही नवयुवक शुरू में निर्दोष होते हुए भी झूठी शर्म के कारण बुराई में फंस जाते हैं। मैं अपने पुरुषार्थ के कारण नहीं बचा था। अगर मैंने कोठरी में घुसने से साफ इनकार किया होता, तो वह मेरा पुरुषार्थ माना जाता। मुझे तो अपनी रक्षा के लिए केवल ईश्वर का ही उपकार मानना चाहिए। पर इस घटना के कारण ईश्वर में मेरी श्रद्धा और झूठी शर्म छोड़ने की कुछ हिम्मत भी मुझ में आई। जंजीबार में एक हफ्ता बिताना था, इसीलिए एक घर किराए से लेकर मैं शहर में रहा। शहर को खूब घूम-घूमकर देखा। जंजीबार की हरियाली की कल्पना मालाबार को देखकर ही सकती है। वहां के विशाल वृक्ष और वहां के बड़े-बड़े फल वगैरा देखकर मैं तो दंग ही रह गया। जंजीबार से मैं मोजांबिक और वहां से लगभग मई के अंत में नेटाल पहुंचा। (अगले अंक में जारी)


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स्वच्छता

10 - 16 दिसंबर 2018

बहरीन

रेत पर स्वच्छता की सुंदर इबारत बहरीन की पूरी आबादी को स्वच्छ जल मुहयै ा हो रहा है। इसी तरह वहां की 99 फीसदी से ज्यादा आबादी स्वच्छता के सुरक्षित और उन्नत साधनों का इस्तेमाल करती है

एसएसबी ब्यूरो

ध्य पूर्व के देशों की संपन्नता के किस्से तो हम खूब सुनते हैं। पर इस संपन्नता के साथ वहां स्वच्छता की एक संस्कृति भी विकसित हुई। मध्य पूर्व का एक ऐसा ही देश है बहरीन। बहरीन का अरबी नाम मुम्लिकत अलबहरईन है। जंबूद्वीप में स्थित इस देश की राजधानी है मनामा। बहरीन अरब जगत का एक हिस्सा है जो कई द्वीपों पर बसा हुआ है।

आदर्श जल प्रबंधन

मध्य पूर्व के देशों का जिक्र जब भी आता है तो मन में बड़े रेगिस्तान और कच्चे तेल के कुंओं का ध्यान आता है। साथ ही पानी को लेकर संकट की बात भी जेहन में आती है। पर बात अगर बहरीन की करें तो वहां भले बाकी कुछ कल्पना से मेल खाता हो पर जल संकट की बात तो पूरी तरह गलत है। बहरीन की पूरी आबादी को स्वच्छ जल मुहैया हो रहा है। जल प्रबंधन की यह सफलता बहरीन की संपन्नता से ही नहीं जुड़ी है, बल्कि पानी को अनमोल मानने की उसकी जीवन संस्कृति भी इसमें सहायक रही है। कई विकसित देशों में शहरी क्षेत्रों में तो शुद्ध पेयजल की आपूर्ति सामान्य बात है, पर ग्रामीण

क्षेत्रों में यह आंकड़ा शत-प्रतिशत के नीचे होता है। पर बहरीन में ऐसा नहीं है। आज की तारीख में बहरीन के हर क्षेत्र की पूरी आबादी तक शुद्ध पेयजल पहुंच रहा है।

स्वच्छता में भी आगे

स्वच्छता का मुद्दा जलापूर्ति से जुड़ा है। जहिर है जिस देश में शुद्ध पेयजल के आपूर्ति की इतनी ठोस और उन्नत व्यवस्था हो, वहां स्वच्छता का ग्राफ भी ऊंचा ही होगा। ऐसा है भी। बहरीन की 99 फीसदी से ज्यादा आबादी स्वच्छता के सुरक्षित और उन्नत साधनों का इस्तेमाल करती है। कह सकते हैं कि इस देश में पानी की तरह स्वच्छता को लेकर भी कोई संकट नहीं है। लिहाजा अगर कोई जल और स्वच्छता के मामले में बहरीन को एक सफल और आदर्श देश कहे तो गलत नहीं होगा।

आधुनिक इतिहास

बहरीन का आधुनिक इतिहास बहुत पुराना नहीं है।

यह 1971 में स्वतंत्र हुआ और इसी के साथ वहां संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई, जिसका प्रमुख अमीर होता है। 1975 में नेशनल असेंबली भंग हुई, जो अब तक बहाल नहीं हो पाई है। 1990 में कुवैत पर इराक के आक्रमण के बाद बहरीन संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना।

विस्तृत क्षेत्रफल नहीं

बहरीन मध्य पूर्व या यों कहें कि फारस की खाड़ी में सऊदी अरब के पूर्व में स्थित है। यह एक छोटासा राष्ट्र है, जिसका कुल 293 वर्ग मील (760 वर्ग किमी) का क्षेत्रफल है जो कई अलग-अलग छोटे द्वीपों में फैला हुआ है। बहरीन में अपेक्षाकृत सपाट स्थलाकृति है, जिसमें रेगिस्तानी मैदान सबसे ज्यादा है।

राजधानी और सबसे बड़ा शहर

बहरीन का वातावरण शुष्क है। यहां हल्की सर्दी और आर्द्र ग्रीष्म ऋतु होते हैं। देश की

बहरीन में पानी की तरह स्वच्छता को लेकर भी कोई संकट नहीं है। लिहाजा अगर कोई जल और स्वच्छता के मामले में बहरीन को एक सफल और आदर्श देश कहे तो गलत नहीं होगा

खास बातें जंबूद्वीप में स्थित इस देश की राजधानी है मनामा देश में संपन्नता के साथ स्वच्छता की संस्कृति भी बहरीन में विकसित होने वाली सभ्यता दिलमुन सभ्यता थी राजधानी और सबसे बड़ा शहर मनामा का जनवरी का औसत तापमान 14 डिग्री सेल्सियस है और अगस्त का उच्चतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियस है।

दिलमुन सभ्यता

बहरीन का प्राचीन इतिहास कम से कम 5000 साल पहले की तारीख में ले जाता है। उस समय यह क्षेत्र मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी के बीच एक व्यापार


10 - 16 दिसंबर 2018

मिस्टर यो ‘बॉस ऑफ क्लीनिंग’

पेयजल और स्वच्छता स्वच्छ या शोधित शहरी : 100% आबादी ग्रामीण : 100% आबादी

(2015 तक अनुमानित)

(2015 तक अनुमानित)

शहरी : 0% आबादी ग्रामीण : 0% आबादी कुल : 0% आबादी

अस्वच्छ या पारंपरिक

शहरी : 0.8% आबादी ग्रामीण : 0.8% आबादी कुल : 0.8% आबादी

स्वच्छता सुविधाएं

कुल : 100% आबादी

अस्वच्छ या अशोधित

पेयजल स्रोत

स्वच्छ व उन्नत शहरी : 99.2% आबादी

ग्रामीण : 99.2% आबादी कुल : 99.2% आबादी

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स्वच्छता

स्रोत : सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक (जनवरी, 2018)

बहरीन में रह रहे अरबपति व्यवसायी मिस्टर यो स्वच्छता को लेकर अपनी प्रेरक आदतों के कारण बहरीन में ‘बॉस ऑफ क्लीनिंग’ के नाम से मशहूर हैं

मि

स्टर यो कोरियाई मूल के अरबपति व्यवसायी हैं और 11 साल से बहरीन में हैं। वे हर सुबह जल्दी उठते हैं और सड़क की सफाई करने में जुट जाते हैं। अगर कोई उनसे पूछता है कि वे ऐसा क्यों करते हैं, तो वे कहते हैं‘मुझे ऐसा करना अच्छा लगता है।’ इससे हमारे आसपास का वातावरण स्वच्छ रहता है। मिस्टर यो इसी अच्छी आदत के कारण बहरीन में ‘बॉस ऑफ क्लीनिंग’ के नाम से मशहूर हो गए हैं। वे जब से बहरीन में हैं, तभी से सड़क साफ कर रहे हैं। वे सड़क पर झाड़ू लगाने के बाद कचरे को कूड़ेदान में भी डालते हैं। उनकी इस आदत से अन्य लोग भी प्रभावित होते हैं। एक बार कुछ पुलिसकर्मी उनके पास आए और पूछने लगे, आप क्या कर रहे हैं?

यो ने कहा- सफाई। तब पुलिसकर्मियों उन्हें नगरपालिका का कर्मचारी समझकर बोले- आप अपनी यूनिफॉर्म पहनकर क्यों नहीं आते? तब यो ने विनम्रता से उन्हें अपने बारे में बताया। बहरीन में सैकड़ों लोग मिस्टर यो को जानने लगे हैं। उनके अरबी मित्र कहते हैं- यो 11 साल से ऐसे देश को साफ रख रहे हैं, जो उनका नहीं है।

बहरीन का प्राचीन इतिहास कम से कम 5000 साल पहले के दिनों में ले जाता है। उस समय यह क्षेत्र मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी के बीच एक व्यापार केंद्र के रूप में कार्य करता था केंद्र के रूप में कार्य करता था। बहरीन में विकसित होने वाली सभ्यता उस समय दिलमुन सभ्यता थी। 600 ईसापूर्व में यह क्षेत्र बेबीलोन साम्राज्य का हिस्सा बन गया।

टाइलोस नाम भी

7वीं शताब्दी तक बहरीन को टाइलोस के रूप में जाना जाता था, जब यह इस्लामी राष्ट्र बन गया था। बहरीन को तब 1783 तक विभिन्न बलों द्वारा नियंत्रित किया गया था जब अल खलीफा परिवार ने फारस से इस क्षेत्र पर नियंत्रण लिया था।

स्वाधीनता की यात्रा

1830 के दशक में अल खलीफा परिवार के यूनाइटेड किंगडम के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद बहरीन ब्रिटिश संरक्षित बन गया, जिसने तुर्की के साथ सैन्य संघर्ष की स्थिति में ब्रिटिश सुरक्षा की गारंटी दी। 1935 में ब्रिटेन ने बहरीन में फारस की खाड़ी में अपना मुख्य सैन्य आधार स्थापित किया, लेकिन 1968 में ब्रिटेन ने बहरीन और अन्य फारस खाड़ी शेकोडो के साथ

संधि के अंत की घोषणा की। नतीजतन, बहरीन अरब अमीरात का संघ बनाने के लिए आठ अन्य शेकोडोम में शामिल हो गए। हालांकि 1971 तक उन्होंने आधिकारिक तौर पर एकीकृत नहीं किया था और बहरीन ने 15 अगस्त, 1971 को खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।

राजनीतिक अस्थिरता

1973 में बहरीन ने अपनी पहली संसद चुनी और संविधान का मसौदा तैयार किया, लेकिन 1975 में संसद को भंग कर दिया गया जब उसने अल खलीफा परिवार को सत्ता से हटाने की कोशिश की जो अभी भी बहरीन की सरकार की कार्यकारी शाखा बना हुआ है। 1990 के दशक में बहरीन ने शिया बहुमत के कारण कुछ राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा का अनुभव किया और नतीजतन, सरकारी कैबिनेट में कुछ बदलाव हुए। इन परिवर्तनों ने शुरुआत में हिंसा समाप्त कर दी, लेकिन 1996 में कई होटल और रेस्तरां पर हमले किए गए और देश तब से अस्थिर रहा है।

संवैधानिक राजशाही

आज बहरीन की सरकार को एक संवैधानिक राजशाही माना जाता है और इसमें राज्य का प्रमुख (देश का राजा) और इसकी कार्यकारी शाखा का प्रधानमंत्री हैं। इसमें एक द्विपक्षीय विधायिका भी है जो सलाहकार परिषद और प्रतिनिधि परिषद से बनी है। बहरीन की न्यायिक शाखा में उच्च नागरिक अपील न्यायालय शामिल है। देश को पांच राज्यों (असमाह, जनुबिया, मुहर्रक, शामलीयाह और वासत) में बांटा गया है, जिसे एक नियुक्त राज्यपाल द्वारा प्रशासित किया जाता है।

अर्थव्यवस्था

बहरीन में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ एक विविध अर्थव्यवस्था है। बहरीन की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा हालांकि तेल और पेट्रोलियम उत्पादन पर निर्भर करता है। बहरीन के अन्य उद्योगों में एल्युमीनियम गलाने, लोहे की गोली, उर्वरक उत्पादन, इस्लामी और ऑफशोर बैंकिंग, बीमा, जहाज की मरम्मत और पर्यटन शामिल हैं। कृषि बहरीन की अर्थव्यवस्था का लगभग एक प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन मुख्य उत्पाद फल, सब्जियां, कुक्कुट, डेयरी उत्पाद, झींगा और मछली हैं।


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व्यक्तित्व

10 - 16 दिसंबर 2018

लेनिन

साम्यवाद का सबसे चमकता सितारा

रू

बोल्शेविक क्रांति के कर्ता-धर्ता और दुनिया को पहली कम्युनिस्ट सरकार देने वाले लेनिन विचार और प्रेरणा की दुनिया में तब तक जीवित रहेंगे जब तक सत्ता में मेहनतकश तबके की न्यायिक हिस्सेदारी का सपना पूरा नहीं होगा एसएसबी ब्यूरो

स के इतिहास में व्लादिमीर इलीच लेनिन का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। यहां तक कि विश्व की राजनीति को उन्होंने एक नया रंग दिया। रूस को क्रांति का रास्ता दिखाकर सत्ता तक पहुंचाने में उनका अहम योगदान था। मार्क्सवादी विचारक लेनिन के नेतृत्व में 1917 में रूस की क्रांति हुई थी। रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक पार्टी) के संस्थापक लेनिन के मार्क्सवादी विचारों को लेनिनवाद के नाम से जाना जाता है। लेनिन ने बतलाया था कि मजदूरों का अधिनायकतंत्र वास्तव में अधिकांश जनता के लिए सच्चा लोकतंत्र है।

क्रांतिकारी विचार से प्रभावित

लेनिन का जन्म 22 अप्रैल 1870 को वोल्गा नदी के किनारे बसे सिंब्रिस्क शहर में हुआ था। पढ़ेलिखे और रईस परिवार में जन्मे व्लादिमीर बाद में दुनिया में लेनिन के नाम से विख्यात हुए। वे स्कूल में पढ़ाई में अच्छे थे और आगे जाकर उन्होंने कानून की पढ़ाई का फैसला किया। यूनिवर्सिटी में वो क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित हुए। बड़े भाई की हत्या का उनकी सोच पर काफी असर पड़ा। उनके भाई रिवोल्यूशनरी ग्रुप के सदस्य थे।

गए। अपने कई समकालीन लोगों की तरह उन्हें गिरफ्तार कर निर्वासित जीवन बिताने के लिए साइबेरिया भेज दिया गया। साइबेरिया में उनकी शादी नदेज्हदा क्रुपस्काया से हुई। 1901 में व्लादिमीर इलीच उल्यानोव ने लेनिन नाम अपनाया। इस निर्वासन के बाद उन्होंने करीब 15 साल पश्चिमी यूरोप में गुजारे, जहां वो अंतरराष्ट्रीय रिवोल्यूशनरी आंदोलन में अहम भूमिका निभाने लगे और रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी के ‘बोल्शेविक’ धड़े के नेता बन गए।

अक्टूबर रिवोल्यूशन

1917 में पहले विश्व युद्ध के बाद थका हुआ महसूस कर रहे रूस में बदलाव की चाहत जाग रही थी। उस वक्त जर्मनी ने लेनिन की मदद की। उनका अंदाजा था कि वो अगर रूस लौटते हैं तो जंग की कोशिशों को कमजोर

किया जा सकेगा। आखिरकार लेनिन लौटे और उसी प्रॉविजनल सरकार को उखाड़ फेंकने की दिशा में काम करना शुरू किया, जो जार साम्राज्य को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश कर रही थी। लेनिन ने जिसकी शुरुआत की, उसी को बाद में

अक्टूबर रिवोल्यूशन के नाम से जाना गया। हालांकि इसे एक तरह से सत्ता परिवर्तन माना गया। इसके बाद तीन साल रूस ने गृहयुद्ध का सामना किया। बोल्शेविक जीते और सारे देश का नियंत्रण हासिल कर लिया। ऐसा भी कहा जाता है कि क्रांति, जंग और भुखमरी के इस दौर में लेनिन ने अपने देशवासियों की दिक्कतों को नजरअंदाज किया और किसी भी तरह के विपक्ष को कुचल दिया। लेनिन कड़ा रुख अपनाने के लिए जाने जाते थे, लेकिन वो व्यावहारिक भी थे। जब रूसी अर्थव्यवस्था को सोशलिस्ट मॉडल के हिसाब से बदलने की उनकी कोशिशें थम गईं तो उन्होंने नई आर्थिक नीति का ऐलान किया। इसमें प्राइवेट इंटरप्राइज को एक बार फिर इजाजत दी गई और ये नीति उनकी मौत के कई साल बाद भी जारी रही।

अंतिम समय

1918 में उनकी हत्या की कोशिश की गई जिसमें वो गंभीर रूप से जख्मी हो गए। इसके बाद उनकी सेहत में गिरावट आई और 1922 में हुए स्ट्रोक ने उन्हें काफी परेशानी में डाल दिया। अपने अंतिम समय में वो सत्ता के नौकरशाही का चोला ओढ़ने को लेकर परेशान रहे और जोसफ स्टालिन की

निर्वासन में पहुंचे साइबेरिया

चरमपंथी नीतियों की वजह से उन्हें यूनिवर्सिटी से बाहर निकाल दिया गया, लेकिन उन्होंने 1891 में बाहरी छात्र के रूप में लॉ की डिग्री हासिल की। इसके बाद वो सेंट पीटर्सबर्ग रवाना हो गए और वहां प्रोफेशनल रिवोल्यूशनरी बन

खास बातें लेनिन के मार्क्सवादी विचारों को लेनिनवाद के नाम से जाना जाता है पढ़ाई के दौरान यूनिवर्सिटी में क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित चरमपंथी नीतियों की वजह से उन्हें यूनिवर्सिटी से बाहर निकाला गया

लेनिन कड़ा रुख अपनाने के लिए जाने जाते थे, लेकिन वो व्यावहारिक भी थे। जब रूसी अर्थव्यवस्था को सोशलिस्ट मॉडल के हिसाब से बदलने की उनकी कोशिशें थम गईं तो उन्होंने नई आर्थिक नीति का ऐलान किया


10 - 16 दिसंबर 2018

गांधी जी भी थे लेनिन के मुरीद

बढ़ती ताकत को लेकर उन्होंने चिंता भी जताई। बाद में स्टालिन ही लेनिन के उत्तराधिकारी बने।

शव का अंतिम संस्कार नहीं

24 जनवरी 1924 को लेनिन का निधन हुआ, लेकिन उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया। उनके शव को एंबाम किया गया और वो आज भी मॉस्को के रेड स्क्वायर में रखा है। 20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण और असरदार शख्सियतों में गिने जाने वाले लेनिन की मौत के बाद उनके विचार और व्यक्तित्व ने बड़े तबके पर गहरा असर डाला।

महात्मा गांधी ने अपने कई पत्रों और आलेखों में रूसी क्रांति के जनक लेनिन का जिक्र करते हुए उनकी तारीफ की थी

समर्थन और विरोध

1991 में सोवियत संघ के बिखरने तक उनका खासा असर जारी रहा। मार्क्सवाद-लेनिनवाद के साथ उनकी वैचारिक अहमियत काफी रही और अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट मूवमेंट में उनका खास स्थान रहा। हालांकि, उन्हें काफी विवादित और भेदभाव फैलाने वाला नेता भी माना जाता है। लेनिन को उनके समर्थक समाजवाद और कामकाजी तबके का चैंपियन मानते हैं, जबकि आलोचक उन्हें तानाशाही सत्ता के अगुआ के रूप में याद करते हैं।

रेड टेरर की कहानी

लेनिन की बोल्शेविक सरकार ने शुरुआत में लेफ्ट सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी, चुने गए सोवियत और बहुदलीय संविधान सभा के साथ सत्ता बांटी, लेकिन 1918 आते-आते नए कम्युनिस्ट पार्टी के पास सारी ताकत आ गई। उनकी सरकार ने जमीन ली और उसे किसानों, सरकारी बैंकों और बड़े उद्योगों के बीच बांटा। सेंट्रल पावर के साथ संधि पर दस्तखत कर पहले विश्व युद्ध से हाथ खींचा। ऐसा कहा जाता है कि लेनिन के राज्य में विरोधियों को रेड टेरर का सामना करना पड़ा। ये वो हिंसक अभियान था, जो सरकारी सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से चलाया गया। इसमें हजारों लोगों को प्रताड़ना दी गई। 1917 से 1922 के बीच उनकी सरकार ने रूसी गृह युद्ध में दक्षिणपंथी और वामपंथी बोल्शेविकविरोधी सेनाओं को परास्त किया।

ले

निन का नाम सामने आते ही एक क्रांतिकारी की छवि सामने आती है, जिसने गरीबों का शोषण करनेवाले रूसी सामंतवाद और जारशाही के खिलाफ संघर्ष किया। इस क्रांति के दौरान और संभवतः बाद में भी हिंसा हुई। लेकिन लेनिन का निजी व्यक्तित्व और उनकी विचारधारा इस हिंसा के अनिवार्य महिमामंडन से अछूती रही। महात्मा गांधी तक लेनिन के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए थे। हालांकि बोल्शेविक क्रांति या साम्यवाद की विचारधारा के मानवीय पक्षों को स्वीकारते हुए भी, गांधी ने उसके अंतर्विरोधों को बहुत पहले देख लिया था। लेनिन के व्यक्तित्व में जिस बात ने महात्मा

जंग के बाद जो भुखमरी फैली और निराशा ने जन्म लिया, उससे निपटने के लिए लेनिन ने नई आर्थिक नीतियों के जरिए हालात उलटने की कोशिश की।

भारत की आजादी और लेनिन

गांधी को सबसे अधिक प्रभावित किया था, वह थी उनकी सादगी। अक्टूबर, 1928 में किसी ने गांधी को पत्र लिखकर बोल्शेविज्म पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करने के लिए कहा। इसके जवाब में 21 अक्टूबर, 1928 को ‘नवजीवन’ में गांधी ने लिखा‘बोल्शेविज्म को जो कुछ थोड़ाबहुत मैं समझ सका हूं वह यही कि निजी मिल्कियत किसी के पास नहीं हो- प्राचीन भाषा में कहें तो व्यक्तिगत परिग्रह न हो। यह बात यदि सभी लोग अपनी इच्छा से कर लें, तब तो इसके जैसा कल्याणकारी काम दूसरा नहीं हो सकता। परंतु बोल्शेविज्म में जबरदस्ती से काम लिया जाता है। ...मेरा दृढ़ विश्वास है कि जबरदस्ती से साधा गया यह व्यक्तिगत अपरिग्रह दीर्घकाल तक नहीं टिक सकता। ...फिर भी बोल्शेविज्म की साधना में असंख्य मनुष्यों ने आत्मबलिदान किया है। लेनिन जैसे प्रौढ़ व्यक्ति ने अपना सर्वस्व उस पर न्योछावर कर दिया था। ऐसा महात्याग व्यर्थ नहीं जा सकता और उस त्याग की स्तुति हमेशा की जाएगी।’

मई, 1929 में किसी ने गांधीजी से पत्र लिखकर पूछा कि क्या देश सेवा के लिए वकालत की पढ़ाई करना जरूरी है? इसके जवाब में 19 मई, 1929 के ‘नवजीवन’ में गांधी लिखते हैं- ‘प्रताप, शिवाजी, नेलसन, वेलिंग्टन, क्रूगर वगैरह वकील नहीं थे। अमानुल्ला वकील नहीं हैं, न लेनिन ही वकील था। इन सबमें वीरता, स्वार्थ-त्याग, साहस आदि गुण थे, यही वजह थी कि वे इतनी सेवा कर सके।’ 1932 में प्रकाशित जेम्स मैक्सटन की पुस्तक ‘लेनिन’ भी महात्मा गांधी ने पढ़ी थी। इसका पता हमें 28 सितंबर, 1935 को उनके द्वारा लिखे एक पत्र से चलता है। 17 जुलाई, 1941 को एक पत्र में गांधी लिखते हैं - ‘स्टालिन और लेनिन में मैं बड़ा फर्क पाता हूं। लेनिन का रूस आज नहीं रहा।’ 16 जुलाई, 1945 को साम्यवादी शांता पटेल को एक पत्र में गांधी लिखते हैं- ‘कम्युनिज्म और कम्युनिस्ट के बीच भेद करना। फिर कम्युनिज्म भी मार्क्स का एक है, लेनिन का दूसरा और स्टालिन का तीसरा। फिर तीसरे के भी दो भेद हैं। गांधी एक, गांधीवाद दूसरा और गांधीवादी तीसरे। ऐसे भेद रहते ही हैं और रहा ही करेंगे। कच्ची बुद्धि वाले ही इनमें से किसी एक के साथ हो जाते हैं।’

24 जनवरी 1924 को लेनिन का निधन हुआ, लेकिन उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया। उनके शव को एंबाम किया गया और वो आज भी मॉस्को के रेड स्क्वायर में रखा है

कम जानकारियां सामने आती थीं। अंग्रेज भारत की गरीबी, बदहाली और शोषण को दुनिया से छिपाने की भरसक कोशिश करते थे, लेकिन फिर भी लेनिन की भारत पर पैनी नजर थी। 1908 में लिखे अपने लेख में लेनिन ने लिखा था कि रूस के बाद अगर सबसे ज्यादा दुनिया में कहीं भुखमरी और गरीबी है तो वह भारत में ही है। भारत में उस वक्त तिलक के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन चल रहा था। असली नाम: व्लादीमिर इलीच उल्यानोव। ‘लेनिन’ नाम रूस की जार सरकार को चकमा देने के लिए रखा था। इस आंदोलन को कुचलने के जन्म: 22 अप्रैल 1870, रूस लिए अंग्रेजों ने तरह-तरह के मृत्यु: 24 जनवरी 1924, रूस हथकंडे अपनाए थे और ख्याति: बोल्शेविक क्रांति के कर्ता-धर्ता लेनिन दुनिया को पहली कम्युनिस्ट सरकार देने वाला नेता। रूस को भारतीय जनता का भयंकर साम्यवाद का सर्वेसर्वा बना देने वाला कॉमरेड। 1917 से 1924 तक सोवियत रूस के और 1922 से दमन किया। इसी लेख 1924 तक सोवियत संघ के भी हेड ऑफ गवर्नमेंट रहे। में लेनिन अंग्रेजों के इस अंत्येष्टि स्थल: माॅस्को, रूस दमन की तुलना चंगेज लेनिन ऐसे पहले विश्व नेता थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भारत की जनता की शक्ति को पहचाना। 1908 के उस दौर में विदेशों में भारत के बारे में बहुत

लेनिननामा

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व्यक्तित्व

खां के शासन से करते हैं और तिलक के ऊपर किए गए अत्याचारों की भर्त्सना करते हैं। वे लिखते हैं- ‘हिंदुस्तान के शासक असली चंगेज खां बन रहे हैं। अपने कब्जे की आबादी को शांत करने के लिए वे सब कार्रवाइयां, यहां तक की हंटरों की वर्षा कर सकते हैं। लेकिन देसी लेखकों और राजनीतिक नेताओं की रक्षा के लिए हिंदुस्तान की जनता ने सड़कों पर निकल आना शुरू कर दिया है। अंग्रेज गीदड़ों द्वारा हिंदुस्तानी जनवादी तिलक को दी गई घृणित सजा। थैलीशाहों के गुलामों द्वारा एक जनवादी के खिलाफ की गई बदले की कार्रवाई की वजह से बंबई (अब मुंबई) की सड़कों पर प्रदर्शन और हड़ताल हुई। हिंदुस्तान का सर्वहारा वर्ग भी इतना काफी वयस्क हो चुका है कि एक वर्ग-जागृत राजनीतिक संघर्ष चला सके।’ लेनिन इसी लेख में लिखते हैं कि अंग्रेजी शासन के भारत में दिन लद गए।


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पुस्तक अंश

10 - 16 दिसंबर 2018

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित किया। उनके ऐतिहासिक और प्रतिष्ठित भाषण में 8 बार वहां मौजूद लोगों ने खड़े होकर तालियां बजाई और सराहना की। उन्होंने अमेरिका और भारत के बीच ऐतिहासिक संबंधों को रेखांकित किया। मोदी ने एशिया से अफ्रीका और हिंद महासागर से प्रशांत महासागर तक शांति, समृद्धि और स्थिरता को बनाए रखने के लिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों की संयुक्त जिम्मेदारी की बात की।

आज हमारे रिश्तों (भारत और अमेरिका) ने इतिहास की हिचकिचाहट को दूर कर लिया है। सहयोग, साफदिली और आपसदारी हमारी बातचीत को परिभाषित करते हैं। हमारी स्वतंत्रता को भी उसी स्वतंत्रता से प्रेरणा मिली जिसने आपकी आजादी को बढ़ावा दिया। मार्टिन लूथर किंग महात्मा गांधी से प्रेरित थे।

प्र

08 जून, 2016: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यूएसए की राजधानी वाशिंगटन डीसी में अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 7 से 8 जून 2016 के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका की दो दिवसीय यात्रा की। प्रधानमंत्री की पहल के कारण भारत से संबंधित कुछ ऐतिहासिक कलाकृतियों को वापस कर दिया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका की अटॉर्नी जनरल लोरेटा लिंच ने एक पवित्र समारोह में इन कलाकृतियों को प्रधानमंत्री को सौंपा। यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन, विदेश संबंध परिषद, अमेरिकी प्रगति केंद्र, अटलांटिक काउंसिल, हडसन इंस्टीट्यूट, सेंटर फॉर नेशनल इंटरेस्ट, ग्लोबल एनर्जी कैपिटल, कार्नेगी एंडोमेंट, द एशिया ग्रुप, प्यू रिसर्च सेंटर, द यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस और फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज जैसे कई महत्वपूर्ण विचार मंचों के प्रमुखों से बातचीत की। इस बातचीत का उद्देश्य यह समझना था कि वे भविष्य में उभरते वैश्विक रुझानों और चुनौतियों को कैसे देखते हैं, साथ ही इसका उद्देश्य उस क्षेत्र की पहचान करना भी था, जहां अमेरिका और भारत एक साथ काम कर सकें।

07 जून, 2016: वाशिंगटन डीसी में स्पेस शटल कोलंबिया मेमोरियल पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

07 जून, 2016: वाशिंगटन डीसी में मूर्तियों की वापसी के लिए आयोजित किए समारोह में अमेरिकी अटॉर्नी जनरल के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से भी मुलाकात की। दोनों नेताओं ने बहुत ही सौहार्दपूर्ण पेशेवर और व्यक्तिगत संबंधों का आनंद लिया और दोनों देशों के बीच गहन रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा की और उसे अगले स्तर तक ले जाने का संकल्प किया। वाशिंगटन की अपनी यात्रा से पहले, दोनों पक्षों ने ऊर्जा सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा और

जलवायु परिवर्तन पर सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौता ज्ञापन, गैस हाइड्रेट्स में सहयोग पर समझौता ज्ञापन, वन्यजीव-संरक्षण पर सहयोग बढ़ाने और वन्यजीव तस्करी का मुकाबला करने के लिए समझौता ज्ञापन और अमेरिका में भारतीय यात्रियों के आगमन पर पूर्व-अनुमोदित त्वरित मंजूरी के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों देश आतंकवाद से निपटने के लिए जानकारी के आदान-प्रदान को लेकर भी सहमत हुए। वे संबंधित राष्ट्रीय कानूनों द्वारा मिली अनुमति के तहत भारत और अमेरिका के बीच ‘व्हाइट शिपिंग’ पर अवर्गीकृत जानकारी साझा करने के लिए भी सहमत हुए। इसका उद्देश्य परस्पर लाभकारी समुद्री सूचना के लिए एक ढांचा स्थापित करना था। विमान वाहक प्रौद्योगिकियों और रक्षा मंत्रालयों के बीच रसद समझौते से संबंधित एक सूचना विनिमय समझौते को भी अंतिम रूप दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल (यूएसआईबीसी) की 40 वीं वार्षिक आम बैठक में एक मुख्य संबोधन भी दिया। उन्होंने कहा कि दुनिया को विकास के नए इंजन की जरूरत है और लगातार सुधार कर रहा भारत इसमें बड़े स्तर पर योगदान देने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री ने पहले 2016 परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन की सरकार प्रमुखों की बैठक के लिए 31 मार्च से 1 अप्रैल के बीच वाशिंगटन का दौरा किया।


10 - 16 दिसंबर 2018

पुस्तक अंश

मोजांबिक, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया और केन्या

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा ने महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला के अपने संबंधित देशों में एक न्यायसंगत और मुक्त समाज के निर्माण और योगदान के लिए श्रद्धांजलि अर्पित की। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों द्वारा दिए जा रहे मूल्यवान योगदान और दक्षिण अफ्रीका के विकास में उनकी भूमिका की सराहना की गई। 08 जुलाई, 2016: दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया स्थित यूनियन बिल्डिंग में दक्षिण अफ्रीका गणराज्य के राष्ट्रपति जैकब जुमा के साथ एकांतिक वार्ता करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

प्र

9 जुलाई, 2016: दक्षिण अफ्रीका में पेंटरिच रेलवे स्टेशन से पीटरमैरिट्जबर्ग की ट्रेन में सवार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 7 से 11 जुलाई, 2016 के बीच चार अफ्रीकी देशों मोजांबिक, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया और केन्या का दौरा किया। यह दौरा 7 जुलाई को मोजांबिक से शुरू हुआ जहां प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति फिलिप न्युसी के साथ द्विपक्षीय चर्चा की। प्रधानमंत्री ने कृषि, कौशल विकास और स्वास्थ्य देखभाल से लेकर रक्षा क्षेत्रों तक में अफ्रीकी राज्यों के साथ सहयोग को मजबूत

करने की पेशकश की। प्रधानमंत्री का अगला पड़ाव 7 जुलाई से 9 जुलाई तक दक्षिण अफ्रीका में था। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जैकब जुमा ने राजधानी प्रिटोरिया स्थित यूनियन बिल्डिंग में एक-दूसरे के साथ आमने-सामने और प्रतिनिधिमंडल स्तरीय चर्चाएं की। दोनों देशों के बीच मजबूत दोस्ती और ऐतिहासिक संबंधों की भावना दोहराई गई और उन पर जोर दिया गया। इस यात्रा में आईसीटी पर समझौता ज्ञापन

मोजांबिक को आर्थिक समृद्धि की ओर ले जाने के लिए, भारत रास्ते के हर कदम पर साथ चलता रहेगा। हम आपके विकास में एक भरोसेमदं दोस्त होंग।े विशाल हिंद महासागर के उस पार से, मैं 1.25 अरब भारतीयों की जोशपूर्ण दोस्ती और शुभकामनाएं देता हूं...हिंदी, तमिल, गुजराती, उर्दू और तेलगु ु की सुदं रता दक्षिण अफ्रीकी समाज के कपड़ों को समृद्ध करती रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

पर हस्ताक्षर किए गए, साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जमीनी

9 जुलाई, 2016: दक्षिण अफ्रीका में पेंटरिच रेलवे स्टेशन से पीटरमैरिट्जबर्ग की ट्रेन में सवार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।

नवाचार की स्थापना और पर्यटन पर समझौते हुए। सांस्कृतिक सहयोग का एक कार्यक्रम भी बनाया गया। दोनों पक्षों ने रक्षा, ऊर्जा, कृषि प्रसंस्करण, मानव संसाधन विकास, बुनियादी ढांचे के विकास के साथसाथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्रों में सहयोग को तेज करने के तरीकों पर भी चर्चा की। राष्ट्रपति जुमा ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नियमों को आसान करने के लिए भारत सरकार के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने संकेत दिया कि यह घोषणा विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए एक बड़ा प्रभावी कदम होगा। (अगले अंक में जारी)


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खेल

10 - 16 दिसंबर 2018

किंगकांग को अखाड़े में किया चित पंजाब के किसान परिवार में जन्मे दारा सिंह भारतीय फिल्मों से जुड़े उन कुछ सितारों में शामिल हैं, जिन्होंने लोकप्रियता का शीर्ष फिल्मों में आने से पहले ही देख लिया था। दारा को यह लोकप्रियता कुश्ती से मिली थी

शिशिर कृष्ण शर्मा

चपन में हमारे लिए ‘दारा सिंह’ एक विशेषण हुआ करता था। आपसी लड़ाईझगड़ों में हम अक्सर एक दूसरे से कहते थे, ‘तू बहुत दारा सिंह है क्या?’ या ‘ज्यादा दारा सिंह मत बन।’ उस समय हमें पता ही नहीं था कि दारा सिंह क्या है, कौन है, हमारा बस यही अर्थ होता था कि ज्यादा दादागिरी मत दिखा। बड़े होने पर ‘दारा सिंह’ शब्द की हकीकत पता चली तब समझ आया कि इस नाम को हम विशेषण के रूप में क्यों इस्तेमाल करते थे। समय के साथ दारा सिंह से जुड़े किस्से-कहानियां पढ़-सुनकर हमारे दिलोदिमाग में उनकी एक विराट छवि बनती चली गई। मुंबई आकर ‘सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन’ (सिन्टा) की सदस्यता ली तो एसोसिएशन की आमसभा में उन्हें पहली बार सामने मंच पर बैठे देखा। फिर एकाध बार सिंटा के कार्यालय में मुलाकात हुई जो महज दुआ-सलाम तक सीमित रही। और फिर बहुत जल्द वो दिन भी आया जब मैं जुहू के एबी नायर रोड स्थित उनके घर पर उनके साथ बैठकर उनका इंटरव्यू कर रहा था।

किसान परिवार में जन्म

दारा सिंह अमृतसर जिले के धर्मूचक गांव के एक किसान परिवार से थे। उनका जन्म 19 नवंबर 1928 को उनके ननिहाल रतनगढ़ में हुआ था। दो भाइयों में दारा सिंह बड़े थे। उनके अनुसार पीढ़ी दर पीढ़ी बंटते-बंटते उनके परिवार के पास बहुत थोड़ी जमीन रह गई थी इसीलिए उनके पिता और चाचा रोजी-रोटी के सिलसिले में सिंगापुर आते-जाते रहते थे। दारा सिंह 18 साल की उम्र तक गांव में ही रहकर खेतीबाड़ी और शौकिया पहलवानी करते रहे और फिर 1947 में चाचा के साथ सिंगापुर चले गए। उनका असली नाम दीदारसिंह रंधावा था। सिंगापुर के रास्ते में मद्रास (चेन्नई) बंदरगाह पर कागजात में उनके नाम को आसान करके दारा सिंह लिख दिया गया था। आगे चलकर वो इसी नाम से मशहूर हुए।

सिंगापुर में कुश्ती

दारा सिंह का कहना था, ‘सिंगापुर में कुश्ती का खेल बहुत पसंद किया जाता था। वहां ‘हैप्पी वर्ल्ड’ और ‘ग्रेट वर्ल्ड’ नाम के दो मशहूर अखाड़े थे। मेरी

खास बातें 18 वर्ष तक गांव में ही रहकर खेतीबाड़ी और शौकिया पहलवानी ‘ग्रेट वर्ल्ड’ अखाड़े के उस्ताद हरनाम सिंह के शागिर्द बने मुमताज और दारा की हिट जोड़ी के नाम एक दर्जन से ज्यादा फिल्में कद-काठी और पहलवानी के शौक को देखकर लोगों ने मुझे प्रोफेशनल पहलवान बनने के लिए प्रेरित किया। मैं छह महीने तक ‘हैप्पी वर्ल्ड’ के एक उस्ताद जी की मालिश करता रहा लेकिन मुझे वहां कुश्ती लड़ने का मौका ही नहीं दिया गया। फिर एक दिन ‘ग्रेट वर्ल्ड’ अखाड़े के उस्ताद हरनाम सिंह जी ने मुझे अपना शागिर्द बना लिया। पहलवानी के लिए अपने दम पर जरूरी खुराक का इंतजाम कर पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं था, लेकिन सिंगापुर में रह रहे पंजाबियों की मदद से ये समस्या भी हल हो गई।’

दारा सिंह ने 1983 में कुश्ती से संन्यास लिया था और तब तक वर्ल्ड चैंपियन का खिताब उन्हीं के पास रहा


10 - 16 दिसंबर 2018 तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद दारा सिंह ने सबसे पहले 1950 में मलेशियन चैंपियनशिप जीती। फिर इंडोनेशिया और बर्मा में कुश्तियां लड़ीं। लेकिन उनका नाम तब हुआ जब उन्होंने 1951 में श्रीलक ं ा में हुए मुकाबले में हंगरी के रहने वाले मशहूर पहलवान किंगकांग को हराया। 1953 में डेढ़ सौ पहलवानों के बीच लगातार तीन साल तक चले मुकाबलों के फाइनल में टाइगर जोगिंदर को हराकर वो भारत के चैंपियन बने। उसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप जीती और फिर 1968 में अमेरिका के पहलवान को हराकर वो वर्ल्ड चैंपियन बन गए। इससे पहले भारत के सिर्फ गामा पहलवान ने ये खिताब जीता था। दारा सिंह ने 1983 में कुश्ती से संन्यास लिया था और तब तक वर्ल्ड चैंपियन का ये खिताब उन्हीं के पास रहा।

परदे पर कुश्ती

दारा सिंह का फिल्मों में आना भी अचानक और बिना किसी योजना के हुआ। दरअसल 1954 में बनी फिल्म ‘पहली झलक’ में एक सीन था जिसमें ओमप्रकाश सपना देखते हैं कि वो दारा सिंह के साथ कुश्ती लड़ रहे हैं। दारा सिंह को न तो अभिनय करना था और न ही कोई संवाद बोलना था, इसीलिए वो सीन बिना किसी परेशानी के ओके हो गया। करीब 6 साल के बाद उन्हें एक बार फिर से 1960 की फिल्म ‘भक्तराज’ में दादा भगवान के साथ कुश्ती लड़ने का ऑफर मिला। लेकिन इस बार उन्हें छोटेछोटे 4-5 संवाद भी बोलने थे। दारा सिंह का कहना था, ‘मैं संवाद बोल ही नहीं पा रहा था जिसकी वजह से रीटेक पर रीटेक होते जा रहे थे। आखिर में निर्देशक ने कहा, आप कुश्ती लड़ते रहो और गलत-सही जैसा भी हो बोल दो, हम किसी और से डब करा लेंगे। मुझे समझ ही नहीं आया कि ये डब करना क्या होता है। मेरे साथी पहलवान ने कहा, तुझे कौन सा हीरो बनना है, काम कर और भूल जा। और मैं सब भूलकर फिर से पहलवानी में जुट गया।’

फिल्मी पारी

दारा सिंह का फिल्मी सफर सही मायनों में 60 के

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खेल

मुमताज-दारा की हिट जोड़ी

दशक के साथ शुरू हुआ जब निर्माता देवी शर्मा ने उनसे कुश्तियों पर बनने जा रही अपनी फिल्म के लिए संपर्क किया। दारा सिंह ने बताया था, ‘मैंने देवी शर्मा जी से कहा, एक्टिंग मेरे बस की बात नहीं है। उन्होंने जवाब दिया आप बस हां कह दीजिए, एक्टिंग तो हम करा लेंगे। मुझे डर था कि कहीं लोग मजाक न उड़ाएं कि लो, पहलवान चला हीरो बनने। और वैसे भी हम पहलवानों के लिए फिल्म देखना तक वर्जित था। उस्ताद कहते थे कि ये तमाशबीनों का काम है। लेकिन दूसरी तरफ गामा पहलवान का उदाहरण हमारे सामने था जिनका बुढ़ापा बहुत बुरे हालात में गुजरा था। उधर, कोल्हापुर के नामी बुलेट पहलवान को भी अपने आखिरी दिनों में तांगा चलाना पड़ा था। सो इस डर से कि बुढ़ापे के लिए कोई इंतजाम नहीं किया तो कहीं मेरा हाल भी और पहलवानों जैसा न हो जाए, मैंने शर्माजी को हां कह दी। साल 1962 की वो फिल्म ‘किंगकांग’ सुपरहिट रही और मेरे पास निर्माता-निर्देशकों की कतार लग गई।’

फिल्म ‘फौलाद’ बेहद हिट हुई और इसके साथ ही मुमताज और दारा सिंह की जोड़ी भी हिट हो गई

पहले पहलवानी, फिर फिल्म

फिल्म का प्रस्ताव लेकर आने वाले तमाम निर्मातानिर्देशकों के सामने दारा सिंह ये शर्त रखते थे कि पहलवानी से समय मिलेगा तभी वो शूटिंग पर आएंगे और उनकी शर्त मान ली जाती थी। दारा सिंह के अनुसार, ‘भाषा मेरी माशाअल्लाह, सो उर्दू और हिंदी सिखाने के लिए उस्ताद रखे गए। ‘किंगकांग’ की रिलीज के बाद मुझे एक प्रशंसक का खत मिला जिसमें लिखा था, ‘तुम भारत के भीम हो, बजाते क्यों बीन हो?’ इस व्यंग्य ने कुश्ती का वर्ल्ड चैंपियन बनने की मेरी जिद को और मजबूती दी और मैंने ये जिद 1968 में पूरी कर ही ली।’

80 फिल्मों में मुख्य भूमिकाएं

दारा सिंह ने ‘किंगकांग’, ‘सैमसन’, ‘महाभारत’, ‘शेरदिल’, ‘लुटेरा’, ‘ठाकुर जरनैलसिंह’, ‘संगदिल’, ‘नसीहत’, ‘बलराम श्रीकृष्ण’, ‘द किलर्स’, ‘तुलसी विवाह’, ‘हर- हर महादेव’, ‘जय बोलो चक्रधारी’ और ‘हरिदर्शन’ जैसी करीब 80 फिल्मों में मुख्य भूमिकाएं कीं। इनमें ज्यादातर

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963 की फिल्म ‘फौलाद’ में निर्माता-निर्देशक किसी बड़ी नायिका को साईन करना चाहते थे लेकिन दारा सिंह के साथ काम करने को कोई भी नायिका तैयार नहीं हुई। मजबूरन उन्हें एक नई लड़की को साईन करना पड़ा। वो थीं मुमताज जो उन दिनों छोटी-छोटी भूमिकाएं कर

स्टंट और कुछ धार्मिक फिल्में थीं। 1982 में बनी ‘रूस्तम’ बतौर नायक दारा सिंह की आखिरी फिल्म थी जिसके बाद वो चरित्र भूमिकाएं करने लगे थे।

रही थीं। फिल्म ‘फौलाद’ बेहद हिट हुई और इसके साथ ही मुमताज और दारा सिंह की जोड़ी भी हिट हो गई। आगे चलकर इस जोड़ी ने एक दर्जन से भी ज्यादा फिल्मों में साथ काम किया। मुमताज के अलावा निशि के साथ भी दारा सिंह की जोड़ी काफी पसंद की गई।

दारा सिंह के शब्दों में, ‘1985-86 में प्रदर्शित हुई फिल्मों ‘मर्द’ और ‘कर्मा’ से मैं चरित्र अभिनेता बना। उन्हीं दिनों दूरदर्शन पर प्रदर्शित हुए रामानंद सागर के मेगाहिट सीरियल ‘रामायण’ में हनुमान के रोल में दर्शकों ने मुझे बहुत पसंद किया। ये मेरा पहला सीरियल था। आगे चलकर मैंने ‘विक्रम और वेताल’, ‘लवकुश’, ‘नीयत’, ‘तकदीर’, ‘हद कर दी’ और ‘क्या होगा निम्मो का’ जैसे कई और सीरियलों में काम किया।’

‘गंगा तेरा पानी अमृत’ में भी एक रोल किया था। प्रद्युम्न अब मेरठ में रहते हैं। दारा सिंह की दूसरी शादी मई 1961 में अमृतसर की सुरजीत कौर औलख से हुई। इस शादी से उनकी तीन बेटियां कमल, लवलीन, दीपा और दो बेटे विरेंदर सिंह और अमरीक सिंह हैं। विरेंदर सिंह भी अभिनेता हैं और विन्दु के नाम से मशहूर हैं। दारा सिंह के छोटे भाई सरदारा सिंह भी पहलवानी में नाम कमाने के बाद फिल्मों में आ गए थे। उन्होंने ‘रंधावा’ के नाम से अपनी पहचान बनाई थी। उन्होंने अभिनेत्री मुमताज की छोटी बहन मल्लिका से शादी की। रंधावा और मल्लिका के अभिनेता बेटे शाद रंधावा ‘वो लम्हे’, ‘आवारापन’, ‘आशिकी-2’ और ‘मस्तीजादे’ जैसी कुछ फिल्मों में काम कर चुके हैं।

पारिवारिक जीवन

सिंटा के अध्यक्ष

आखिर में चरित्र अभिनेता

दारा सिंह की 2 शादियां हुई थीं। उनकी पहली शादी 1937 में महज 9 साल की उम्र में कर दी गई थी। लेकिन पहली पत्नी से कुछ सालों बाद उनका तलाक हो गया। उस शादी से दारा सिंह का एक बेटा प्रद्युम्न सिंह हैं, जिनका जन्म 1945 में हुआ था। प्रद्युम्न ने रामानंद सागर की फिल्म ‘आंखें’ में अकरम नाम के किरदार से अभिनय की शुरुआत की थी। 1969 में बनी फिल्म ‘बंदिश’ में वो ‘शैलेंद्र’ के नाम से सोनिया साहनी के अपोजिट हीरो बनकर आए। ‘बंदिश’ गायक जसपाल सिंह की भी डेब्यू फिल्म थी, जो आगे चलकर फिल्म ‘गीत गाता चल’ के गीतों से मशहूर हुए। प्रद्युम्न ने 1971 की

दारा सिंह ने ‘नसीहत’, ‘नानक दुखिया सब संसार’, ‘मेरा देश मेरा धरम’, ‘किसान और भगवान’, ‘धन्ना जट्ट’, ‘करण’ और ‘रूस्तम’ जैसी करीब एक दर्जन हिंदी और पंजाबी फिल्मों का निर्माण भी किया। ‘महावीरा’, ‘ऐलाने जंग’, ‘अजूबा’, ‘अनमोल’, ‘दिल्लगी’, ‘कहर’, ‘कल हो न हो’, ‘जब वी मेट’ समेत 50 से ज्यादा फिल्मों में वो बतौर चरित्र अभिनेता नजर आए। 2012 में प्रदर्शित हुई ‘अता पता लापता’ उनकी आखिरी फिल्म थी। दारा सिंह कई साल ‘सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन’ (सिंटा) के अध्यक्ष भी रहे। उनका निधन 12 जुलाई 2012 को मुंबई में हुआ।


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सुलभ संसार

10 - 16 दिसंबर 2018

सुलभ अतिथि

सुलभ ग्राम का दौरा करने पहुंचे आगंतुक सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स को देखकर अभिभूत रह गए। कॉलेज ऑफ नर्सिंग, वीएमएमसी एंड सफदरजंग हॉस्पिटल, नई दिल्ली के बी.एससी. (ऑनर्स) के द्वितीय वर्ष के 52 छात्रों और उनके समन्वयकों ने किया सुलभ ग्राम का दौरा।

डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन ऑफ वीएमएमसी एंड सफदरजंग हॉस्पिटल, नई दिल्ली के पहले वर्ष के 42 मेडिकल छात्रों, आईसीआरसी के 29 प्रतिनिधियों और कुछ अन्य आगंतुकों ने किया सुलभ ग्राम का दौरा।

सुलभ ग्राम का दौरा करने पहुंचे आगंतुकों ने सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स को देखने में काफी दिलचस्पी ली। साथ ही सब ने सुलभ परिसर में चल रही विविध गतिविधियों को भी देखनेसमझने में रुचि ली।

हथेली पर बाल क्यों नहीं हैं ?

क बार बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था। टोडरमल, मानसिंह, तानसेन, बीरबल और बाकी नवरत्नों सहित अन्य सभासद बैठे हुए थे। अचानक अकबर को न जाने क्या सूझा कि उन्होंने एक अटपटा सवाल बीरबल की ओर दाग दिया। बोले, ‘बीरबल, तुम अपने आपको बहुत चतुर समझते हो तो बताओ कि हथेली पर बाल क्यों नहीं होते ?’ बीरबल समझ गए कि बादशाह आज फिर उनसे ठिठोली करने के मूड में हैं पर उन्होंने बड़े ही शांतचित्त

होकर पूछा, ‘महाराज, किसकी हथेली में ?’ अकबर ने जवाब दिया, ‘मेरी हथेली में। ’ बीरबल ने जवाब दिया, ‘महाराज, क्योंकि आप दान बहुत देते हैं, इसीलिए आपकी हथेली पर बाल नहीं हैं।’ अकबर ने फिर पूछा, ‘अच्छा, चलो मैं दान देता हूं इसीलिए मेरी हथेली पर बाल नहीं हैं, पर तुम्हारी हथेली पर बाल क्यों नहीं हैं ?’ बीरबल ने फिर तपाक से जवाब दिया, ‘महाराज, आप दान देते हैं और मैं दान लेता हूं इसलिए मेरी हथेली पर बाल नहीं हैं।’ बीरबल की बात सुनकर अकबर चक्कर में आ गए पर उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने फिर पूछा, ‘चलो यह बात तो समझ में आ

गई कि मेरी और तुम्हारी हथेली पर बाल क्यों नहीं हैं पर ये तो बताओ कि यहां जो इतने दरबारी बैठे हैं उन सबकी हथेलियों पर बाल क्यों नहीं हैं ?’ बीरबल हाथ जोड़कर बोले, ‘अन्नदाता, सीधी सी बात है, जब आप दान देते हैं और मैं दान लेता हूं तो इन दरबारियों से देखा नहीं जाता इसीलिए मारे जलन के हथेलियां मलते रहते हैं, इसीलिए इनकी हथेलियों पर भी बाल नहीं हैं।’ अब अकबर समझ चुके थे कि बीरबल को बातों में हराना मुमकिन नहीं है। वह बहुत प्रसन्न हुए और अपने गले से सोने की माला उतारकर उन्हें इनाम में दे दी।


10 - 16 दिसंबर 2018

आओ हंसें

जीवन मंत्र

सु

अच्छी मम्मी

विज्ञापनों की मम्मी कितनी अच्छी होती है। बच्चे कपड़े गंदे करके आएं तो भी हँस के धोती है। बचपन में जब हम कपडे़ गंदे कर के आते थे, तो पहले हम धुलते थे, बाद में कपड़े!!

महत्वपूर्ण तिथियां

• 10 दिसंबर विश्व मानवाधिकार दिवस, राजगोपालाचार्य जयंती, विश्व प्रसारण बाल दिवस, दत्तात्रेय जयंती, शहीद वीर नारायण सिंह बलिदान दिवस, त्रिपुरा महाविद्या तथा अन्नपूर्णा जयंती, जीव अधिकार दिवस • 11 दिसंबर यूनिसेफ दिवस, संत ज्ञानेश्वर समाधि दिवस, विश्व बाल कोष दिवस • 12 दिसंबर स्वदेशी दिवस • 13 दिसंबर महाराज छत्रसाल परमधाम दिवस • 14 दिसंबर राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस • 15 दिसंबर सरदार पटेल स्मृति दिवस, आचार्य श्रीतुलसी दीक्षा दिवस (जैन)

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इंद्रधनुष

डोकू -52

हम खुद अपने भविष्य का निर्माण करते हैं, फिर इसे भाग्य का नाम दे देते हैं

रंग भरो

बाएं से दाएं

1. परछाईं (4) 3. बदी, अँधेरा पाख (4) 5. बुद्धि (2) 6. साल (2) 8. स्वतंत्रता (4) 10. समझ में आने योग्य (4) 12. हड़पना, निगलना (3) 14. क्षत्रिय, राजपुरुष (3) 16. प्रायः, बहुधा (4) 18. मन के भीतर की चेतना (4) 19. धनुष (2) 20. शक्ति (2) 22. जैसे उदाहरण के लिये (4) 23. मनावना (4)

सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

सुडोकू-51 का हल विजेता का नाम ऋचा त्रिपाठी नोएडा, यूपी

वर्ग पहेली-51 का हल

ऊपर से नीचे

1. प्रतिष्ठित (5) 2. शून्य, बूँद (3) 3. स्वामित्व, स्वत्वाधिकार (2) 4. योग्यता, सामर्थ्य(2,2) 7. बू, महक (2) 9. सितारा (3) 10. सूत्रपात करना, उपज के लिये जमीन में दबाना (2) 11. खस्ता तिल पपड़ी (3) 13. सुंदर, शृंगार का एक भाव (3) 14. नष्ट होने वाला (2) 15. दूसरों की भलाई (5) 16. मनमुटाव (4) 17. सच (2) 18. आखिरी (3) 21. घुटना (2)

कार्टून ः धीर

वर्ग पहेली - 52


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न्यूजमेकर

10 - 16 दिसंबर 2018

अनाम हीरो

रीवा तुलपुले

ग्रामीण लड़कियों की फिक्र

13 वर्ष की रीवा ने 250 लड़कियों को गोद लिया और उन्हें सैनिटरी नैपकिन दिए

क्षय कुमार की ‘पैडमैन’ से प्रेरित होकर दुबई में रहने वाली 13 वर्ष की रीवा तुलपुले ने ग्रामीण महाराष्ट्र की 250 लड़कियों को गोद लिया है और उन्हें सैनिटरी नैपकिन दिए। रीवा का परिवार महाराष्ट्र से ताल्लुक रखता है। उसने इस काम के लिए पिछले कुछ महीनों में दुबई में राशि एकत्रित की। वह पिछले सप्ताह भारत आई और साहापुर के

तुहिन सतारकर

स्कूलों में लड़कियों को करीब एक साल का सैनिटरी पैड का स्टॉक बांटा। उसने कहा, ‘मैंने कुछ महीने पहले ‘पैडमैन’ देखी थी और मुझे मासिक धर्म के दौरान लड़कियों के सामने आने वाली समस्याओं का पता चला। मैंने फौरन भारत खासकर महाराष्ट्र के गांवों में रहने वाली लड़कियों के लिए कुछ करने का मन बना लिया।’ आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली रीवा ने कहा कि उसने यह विचार कोंकण स्नातक क्षेत्र से विधान परिषद के सदस्य निरंजन देवखरे के साथ उस समय साझा किया जब वह दुबई आए थे। देवखरे ने रीवा को इस काम के लिए प्रोत्साहित किया। रीवा ने दुबई में दिवाली के समय लोगों से इस काम के लिए सहायता राशि मांगी और बहुत कम समय में उसने 250 लड़कियों के लिए सैनिटरी पैड खरीदने के लिहाज से पैसे जुटा लिए।

न्यूजमेकर

पर्वतारोहण में कीर्तिमान

12 दिनों में सह्याद्रि की तीन चोटियों की चढ़ाई पूरी करने वाले पहले भारतीय पर्वतारोही बने तुहिन

र्वतारोही तुहिन सतारकर ने 12 दिनों में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला की तीन चोटियों पर चढ़ाई पूरी की और वह ऐसा करने वाले पहले भारतीय पर्वतारोही बन गए। पुणे निवासी तुहिन ने 16 नवंबर को

चढ़ाई शुरू की, जो 28 नवंबर को पूरी हुई। यह तुहिन के लिए उनकी क्षमता, तेजी और ताकत की परीक्षा थी, जिसे उन्होंने पार किया। इसमें उन्होंने धोदाप, जिवधान और नानेघाट चोटियों पर चढ़ाई की। ऐसा माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके मराठा मालवाओं ने भी इन चोटियों पर चढ़ाई की थी। बातचीत के क्रम में तुहिन ने कहा, ‘सह्याद्रि पर्वत श्रंख ृ ला महाराष्ट्र की सबसे कठिन पहाड़ियों में से एक है। महाराष्ट्र का निवासी होने के नाते मेरे पास छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके मराठा मालवाओं को श्रद्धांजलि देने का यह खास मौका था और मैं इसके लिए उत्साहित था।’ तुहिन ने उनको मिले समर्थन के लिए रेड बुल का शुक्रिया अदा किया। उन्हें इस चढ़ाई के लिए उनके अभिभावकों से प्रेरणा मिली, जो स्वयं पर्वतारोही हैं।

वीर अग्रवाल

सेवा का वीर

14 वर्ष के वीर ने अशक्तों की मदद के लिए क्राउड फंडिंग के जरिए 14 लाख रुपए जुटाए

च्चों की समझ और उनकी इच्छाओं को लेकर आमतौर पर हम गलत धारणा के शिकार होते हैं। जबकि बच्चे अक्सर अपनी क्षमता और उपलब्धियों से हमें चौंका देते हैं। ऐसा ही कुछ किया है मुबं ई के वीर अग्रवाल ने। अमेरिकन स्कूल ऑफ बॉम्बे में 9वीं क्लास में पढ़ने वाले 14 वर्ष के वीर अग्रवाल का मन पढ़ाई के अलावा दूसरों की सेवा में लगता है। उन्होंने अभी हाल ही में क्राउड फंडिंग के जरिए 14 लाख रुपए जुटाए और इन रुपयों से दिव्यांगजनों को कृत्रिम अंग और व्हीलचेयर साइकिल वितरित की गई। वीर से जब पूछा गया कि वह क्या बनना चाहता है तो उसने कहा कि फिलहाल अभी इसके बारे में कुछ सोचा नहीं है, लेकिन दूसरों की मदद करने में उसे बेइतं हे ा खुशी महसूस होती है। वीर ने अशक्तजनों की स्थिति पर एक छोटा-सा रिसर्च किया था और उनसे जुड़ी जानकारी जुटाई थी। इसके बाद उसने क्राउड फंडिंग के जरिए पैसे जुटाने का फैसला किया। वीर के इस प्रयास में उसके परिवारवालों, खासकर पिता ने काफी मदद की। वीर का कहना है कि इन बेसहारों के चेहरे पर खुशी लाकर उसे बेहद सुकनू मिलता है। हालांकि उसका काम यहीं खत्म नहीं हुआ है। वह कहता है कि आगे भी वह ऐसे काम करता रहेगा।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 52


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