सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 51)

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सुलभ

धंदुका गांव बना खुले में शौच से मुक्त

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स्वच्छता

स्वच्छता में आदर्श नहीं रहा रूस

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व्यक्तित्व

झूठी नैतिकता की धज्जियां उड़ाने वाला

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

बदलते भारत का साप्ताहिक

सोनपुर को ‘सुलभ जल’ का उपहार

बिहार के विश्व प्रसिद्ध सोनपुर के बाबा हरिहर नाथ मंदिर में सुलभ ने शुद्ध पेयजल एटीएम लगाया है, इस एटीएम से इलाके के लोगों को 1 रुपया प्रति लीटर की दर पर शुद्ध पेय ‘सुलभ जल’ उपलब्ध

वर्ष-2 | अंक-51 |02 - 09 दिसंबर 2018 मूल्य ` 10/-


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आवरण कथा

अयोध्या प्रसाद सिं​ह

हार का विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला हमेशा की तरह इस बार भी ऐतिहासिक रहा। क्योंकि हमेशा की तरह ही स्वच्छता और सामाजिक सुधार संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने समस्या नहीं गिनाई, बल्कि उसका हल प्रस्तुत किया। गंगा के तटीय इलाकों में लगातार दूषित हो रहे पानी और इसके आर्सेनिक से प्रभावित होने की समस्या का

खास बातें

बिहार में लगातार दूषित हो रहे पानी के लिए सुलभ समाधान सोनपुर गांव के हरिहर नाथ मंदिर में लगाया सुलभ वाटर एटीएम लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री विनोद नारायण झा ने किया उद्घाटन

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सुलभ इंटरनेशनल ने सोनपुर गांव के बाबा हरिहर नाथ मंदिर में शुद्ध पेयजल एटीएम लगा कर एक बड़ा समाधान पेश किया। यह वाटर एटीएम सुलभ के शंग्रिला प्रोजेक्ट्स के तहत सुलभ इंटरनेशनल की सहयोगी शंग्रिला प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड और डेनमार्क की कंपनी नार्डिक टेक्नोलॉजी के वित्तीय सहयोग से शुरू की गई है, जिसका उद्घाटन बिहार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री विनोद नारायण झा ने किया। इस वाटर एटीएम से इलाके के लोगों को 1 रुपया प्रति लीटर की बेहद सस्ती दर पर आर्सेनिक मुक्त शुद्ध पेय ‘सुलभ जल’ मिलेगा। साथ ही इस मौके पर राजस्थान के अलवर और टोंक जिले की पुनर्वासित स्कैवेंजर्स महिलाओं, वृंदावन से आई विधवा माताओं और जम्मू-कश्मीर के उखराल स्थित सुलभ प्रशिक्षण केंद्र के छात्रों ने सोनपुर में ड्रग्स, शराब और नशीले पदार्थों के खिलाफ एक मार्च भी निकाला। मार्च में नशीले पदार्थों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभावों को दर्शाया गया।

सुलभ जल से मिल रही जिंदगी

स्वच्छता और शौचालय के क्षेत्र में पिछले 5 दशक से काम कर रहे सुलभ इंटरनेशनल ने लगातार दूषित हो रहे जल की समस्या से निजात दिलाने के लिए

‘कास्ट बाई च्वाइस’ पहल से 400 महिलाओं की बदलेगी जिंदगी अ ब तक हाशिए पर रहे लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए सुलभ ने एक महत्वकांक्षी पहल की है। इस पहल का देशभर में बहुत ही सकारात्मक असर हुआ है और इससे सामाजिक बदलाव में अहम सफलता मिली है। सोनपुर के विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल हरिहरनाथ मंदिर के प्रांगण से बहनेवाली गंगा और गंडक के संगम पर स्नान करवाकर पुनर्वासित स्कैवेंजर महिलाओं को भी

बड़ी पहल की। सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक की प्रेरणा से सुलभ ने देश में सबसे सस्ती दर पर शुद्ध जल देना शुरू किया है। बंगाल और दिल्ली के लोगों को पहले से ही शुद्ध सुलभ जल बेहद सस्ती दर पर मिल रहा था। अब बिहार के लोग भी इस महत्वपूर्ण और सुरक्षित जीवन देने वाली इस पहल का फायदा उठा सकेंग।े बंगाल में मात्र 50 पैसे प्रति लीटर की दर से शुद्ध पेयजल सुलभ की तरफ से उपलब्ध है तो वहीं दिल्ली में भी शुद्ध सुलभ पेयजल मात्र 1

सम्मानपूर्वक समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए सुलभ ने अपनी इसी पहल का सहारा लिया है। इस पहल के माध्यम से एक ऐतिहासिक संदर्भ जोड़ते हुए वाल्मीकि समाज की 400 से अधिक महिलाएं ‘कास्ट बाई च्वाइस’ पहल के तहत ब्राह्मण बनेंगी। सामाजिक बदलाव की सुलभ की यह अनोखी मुहिम इन महिलाओं को सम्मान के साथ जीवनयापन का मौका देकर इन्हें नई जिंदगी देगी।

रुपया प्रति लीटर की दर से मिल रहा है।

जिसकी बिहार को जरूरत थी वह सुलभ ने दे दिया विनोद नारायण झा

इस शुभ अवसर पर मुख्य अतिथि बिहार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री विनोद नारायण झा ने कहा कि 70 फीसदी बीमारियां अशुद्ध पानी पीने से होती हैं। इसीलिए अगर हमें शुद्ध पानी उपलब्ध होने लगे तो हमारी आधी से ज्यादा समस्याएं


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आवरण कथा

‘स्वच्छता के क्षेत्र में डॉ. विन्देश्वर पाठक के कार्यों को देखते हुए उन्हें आधुनिक गांधी कहना बिलकुल सही होगा। इतिहास में ऐसे लोगों के नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाएंगे’ - विनोद नारायण झा लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री अपने आप ही हल हो जाएंगी और आर्थिक तौर पर हमें बचत भी होगी। उन्होंने सुलभ के वाटर एटीएम प्रोजेक्ट की प्रशंसा करते हुए कहा कि सुलभ का यह काम सच में बहुत महान है और इलाके के लोगों के लिए यह बहुत बड़ी राहत ले कर आया है। साफ-सफाई एवं शौचालय के क्षेत्र में समाज को जो कुछ भी सुलभ ने दिया है उसके लिए उसे हमेशा याद किया जाएगा। शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के क्षेत्र में सुलभ निरंतर बढ़-चढ़कर प्रयास कर रहा है। स्वच्छता के क्षेत्र में डॉ. विन्देश्वर पाठक के कार्यों को देखते हुए उन्हें आधुनिक गांधी कहना बिलकुल सही होगा। इतिहास में ऐसे लोगों के नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाएंगे। इलाके में बढ़ते दूषित जल की समस्या पर चिंता प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि गंगा के तटीय इलाकों में नदी के तट से लगभग 20 किलोमीटर की लंबाई तक का भूमिगत जल अशुद्ध हो रहा है। उन्होंने कहा कि मैं पेयजल मंत्री भी हूं, मेरा काम लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना है ताकि लोग बीमार न हों। यह मेरा दायित्व है कि मैं अपने लोगों तक शुद्ध पेयजल पहुंचाऊं और इसके लिए मुझे ऐसी ही मशीन की जरूरत थी। मैं डॉ. पाठक का दिल से आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने हमारे लोगों के लिए ऐसी मशीन दी। मुझे इसका उद्घाटन करते हुए बेहद खुशी हो रही थी। स्वच्छता और शुद्ध पेयजल अस्पताल जाने से बचने के लिए सबसे जरूरी कदम हैं। झा ने कहा कि पहले हमें यह पता नहीं होता था कि गंगा का पानी और हमारे जमीन के नीचे का पानी दूषित भी हो सकता है। लेकिन अब हमें पता चल चुका है कि ऐसा हो सकता है। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग ऐसा प्रयास कर रहा है कि लोग अशुद्ध पानी पीने से बीमार नहीं पड़ें। उन्होंने कहा कि इसकी जांच की जा रही है कि गंगा नदी का तटीय इलाका ही आर्सेनिक से क्यों प्रभावित है। उन्होंने बताया कि छपरा और वैशाली जिले के इलाके भी आर्सेनिक से प्रभावित हैं। हम इस समस्या के निदान के लिए तेजी से काम कर रहे हैं।

स्वच्छता ही नहीं सामाजिक बदलाव भी हमारा ध्येय- डॉ. विन्देश्वर पाठक

इस शुभ मौके पर सुलभ स्वच्छता और सामाजिक सुधार आंदोलन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने कहा कि स्वच्छता और सार्वजनिक शौचालय के

हरिहर नाथ मंदिर जिसे भगवान राम ने बनवाया जि

स हरिहर नाथ मंदिर के प्रांगण में सुलभ ने शुद्ध पेयजल एटीएम स्थापित की, हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए इसका बहुत बड़ा महत्त्व है। हरिहर क्षेत्र को अगर परिभाषित करें तो हरि यानी ‘भगवान विष्णु’ और हर यानी ‘भगवान महादेव’। कहते हैं कि हरिहरनाथ मंदिर का निर्माण स्वंय भगवान राम ने माता सीता के स्वंयवर में जाते समय करवाया और इस मंदिर को अपने आराध्य भगवान ​शिव को समर्पित कर दिया था। बाद में इस मंदिर का निर्माण राजा मान सिंह ने करवाया। लेकिन जो मंदिर बना है उसके वर्तमान स्वरूप का निर्माण राजा राम नारायण ने जीर्णोद्धार के दौरान करवाया था। यहां हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं। गंगा और गंडक नदी के संगम पर स्थित यह प्राचीन मंदिर देशभर के हिंदुओं के साथ-साथ विदेशी सैलानियों के लिए भी परम आस्था का केंद्र है। मंदिर के अंदर गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है, साथ ही भगवान विष्णु की प्रतिमा भी है। खास बात यह भी है कि पूरे देश में इस तरह का कोई दूसरा मंदिर नहीं है जहां हरि अर्थात भगवान विष्णु और हर अर्थात भगवान शिव एक साथ स्थापित हों। बिहार के अति महत्वपूर्ण मंदिरों में शुमार हरिहर नाथ मंदिर बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के तहत आता है। इसकी व्यवस्था राज्य सरकार देखती है।


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सोनपुर मेला

सुई से लेकर हाथी तक सब मिलेगा

मेले की शुरुआत मौर्य काल में मिलती है। कहते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य अपनी सेना के लिए यहां हाथी खरीदने आया करते थे। तभी से यह मेला बड़े स्तर पर होता आ रहा है

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हार के सारण और वैशाली जिले की सीमा पर लगने वाला विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला स्थल बिहार की राजधानी पटना से 25 किलोमीटर और वैशाली के हाजीपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर है। इस जगह पर 5 से 6 किलोमीटर के वृहद क्षेत्रफल में फैला यह मेला हरिहर क्षेत्र मेला और छत्तर मेला के नाम से भी जाना जाता है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) के स्नान के साथ यह मेला शुरू हो जाता है और एक महीने तक चलता है। यह मेला आधिकारिक तौर पर एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। लेकिन सबसे खास बात यह है कि यह मेला भले ही पशु मेला के नाम से विख्यात है, लेकिन इस मेले में आपको सूई से लेकर हाथी तक खरीद-फरोख्त के लिए मिल जाएंगे। यह मेला हमारी प्राचीन परंपरा और आस्था दोनों का मिला-जुला स्वरूप भी है। इस मेले के इतिहास के बारे में देखें तो इसकी शुरुआत मौर्य काल

में मिलती है। कहते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य अपनी सेना के लिए यहां हाथी खरीदने आया करते थे।

क्षेत्र के अलावा सुलभ कई तरह के सामाजिक कार्यों को कर रहा है और आम लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध है। डॉ. पाठक ने बताया कि सुलभ काफी समय से बंगाल में भी आर्सेनिक युक्त पानी की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए काम कर रहा है और वहां भी ऐसा ही जल संयंत्र लगाया गया है। अब वहां के लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो रहा है और लोग बीमारियों से

तभी से यह मेला बड़े स्तर पर होता आ रहा है। प्राचीन काल में लोग इसी मेले से बैल, घोड़े,

देश की आबादी लगभग 1 अरब 30 करोड़ है, लेकिन इस आबादी में 10 करोड़ संपन्न लोग भी हैं। इन संपन्न लोगों में अगर एक व्यक्ति एक परिवार की मदद कर दे, तो समाज में बड़ा बदलाव आ सकता है’- डॉ. विन्देश्वर पाठक

हाथी और हथियारों की खरीदारी किया करते थे। मुगल सम्राट अकबर के बारे में भी कहा जाता है कि वह हाथियों की खरीद इसी मेले से किया करते थे। स्वतंत्रता आंदोलन में भी सोनपुर मेला क्रांतिकारियों में पशुओं की खरीद के लिए पहली पसंद रहा। 1857 की लड़ाई के लिए वीर कुंवर सिंह ने भी यहीं से अरबी घोड़े, हाथी और हथियारों की खरीदारी की थी। साल 1803 में रॉबर्ट क्लाइव ने सोनपुर में घोड़ों का एक बड़ा अस्तबल भी बनवाया था। आज भी इस मेले में हाथी, घोड़े, ऊंट, कुत्ते, बिल्लियां और विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों का बाजार सजता है। इतना ही नहीं सोनपुर पशु मेला में आज भी प्राचीन भारत की विधाएं जैसे नौटंकी और नाच देखने के लिए लोगों की अच्छी-खासी भीड़ उमड़ती है। एक दौर में सोनपुर मेले में नौटंकी की मल्लिका गुलाब बाई का जलवा होता था। इस मेले में कभी अफगानिस्तान, ईरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे। आज भी देश-विदेश के लोग इस मेले के आकर्षण से बच नहीं पाते हैं और यहां खिंचे चले आते हैं। राज्य सरकार के उद्योग विभाग द्वारा बनाया गया आर्ट एंड क्राफ्ट विलेज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहता है। इतना ही नहीं देशभर के विभिन्न राज्यों से आए कारीगर भी यहां अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। मेले में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए इस दौरान प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को गंडक आरती की जाती है। कहा यह भी जाता है कि पहले यह मेला हाजीपुर में होता था। सिर्फ हरिहर नाथ की पूजा सोनपुर में होती थी, लेकिन बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश से मेला भी सोनपुर में ही लगने लगा। मेला कितने बड़े कैनवास पर होता है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां नौका दौड़, दंगल और वाटर सर्फिंग सहित विभिन्न प्रकार के खेल और प्रतियोगिताओं का आयोजन बहुत बड़े स्तर पर किया जाता है। यह बहुत ही अद्भुत है कि बदलते वक्त के साथ मॉल कल्चर के इस दौर में इस मेले के स्वरूप और रंग-ढंग में बदलाव जरूर आया है, लेकिन इसकी सार्थकता आज भी बनी हुई है।

बच रहे हैं। साथ ही देश में लोगों को मैला ढोने जैसे घृणित काम से बाहर निकालकर सुलभ ने अपने प्रशिक्षण कार्यों के माध्यम से उन्हें रोजगार के नए साधन मुहैया कराए और उन्हें सम्मानजनक जिंदगी दी है। उन्होंने कहा कि एक ऐसा समय था जब लोग शौचालय की बात भी करना पसंद नहीं करते थे और घरों में शौचालय बनवाना


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कार्तिक पूर्णिमा स्नान

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हार के सारण जिले में स्थित हरिहर क्षेत्र में गंगा और गंडक नदी के संगम पर लगने वाले प्रसिद्ध सोनपुर मेले के दौरान कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर सदियों से चली आ रही वर्जनाओं को तोड़ा गया। इस अवसर पर सदियों से मैला ढो रही और अस्पृश्य मानी जाने वाली राजस्थान के अलवर और टोंक की पुनर्वासित स्केवेंजर महिलाओं और वृंदावन से आईं विधवा

धर्म के खिलाफ मानते थे। लेकिन आज सुलभ के निरंतर कार्यों से स्थितियां बदल चुकी हैं। सुलभ ने स्वच्छता को एक जन-आंदोलन का रूप दिया और हर घर में शौचालय के लिए लंबा संघर्ष किया। अब शौचालय इज्जत और सम्मान की बात बन चुका है, महानायक अमिताभ बच्चन और सुपरस्टार अक्षय कुमार भी इसका प्रचार कर रहे हैं। डॉ. पाठक ने कहा कि सिर्फ स्वच्छता ही नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव के लिए भी सुलभ लंबे समय से काम कर रहा है। मैला ढोने वाली स्कैवेंजर्स महिलाएं जिन्हें अछूत समझा जाता था, आज सुलभ की वजह से इनकी जिंदगियों में बड़ा बदलाव है और ये अपने

माताओं ने गंगा घाट पर वेदमंत्रों के उच्चारण के बीच पवित्र गंगा नदी में स्नान किया। सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने भी इन महिलाओं के साथ पवित्र स्नान किया। यह सच में एक अद्भुत अवसर था राजस्थान के अलवर से आईं ये महिलाएं साल 2003 के पहले तक सिर पर मैला ढोती थीं, लेकिन सुलभ इंटरनेशनल की मदद से उन्हें उस अपमानजनक कार्य से मुक्ति मिल

गई है। अब ये सुलभ संस्था के ट्रेनिंग प्रोग्राम के माध्यम से सम्मानजनक काम करके न सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी हैं, बल्कि समाज में सिर उठाकर चल रही हैं। इन महिलाओं के साथ इनके वो यजमान भी इस स्नान में सम्मिलित हुए, जिनके घरों में पहले ये मैला साफ करती थीं। वृंदावन से आईं विधवा माताएं भी वर्ष 2012 के पहले तक मंदिर में भजन कीर्तन कर

‘किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के लिए हर रोज 3 लीटर पानी पीना जरुरी होता है। अब इतना शुद्ध पानी मात्र 3 रुपए में उपलब्ध रहेगा। इससे न जाने कितने लोग अपने जीवन को सुरक्षित बना सकते हैं। स्वस्थ जीवन के लिए इससे सस्ता आपको बाजार में कुछ और नहीं मिलेगा’ - गुप्तेश्वर पाण्डेय, डीजीपी बिहार व मंदिर के न्यास समिति के अध्यक्ष यजमानों के साथ बैठती हैं और उनके घरों में उनके साथ हर कार्यक्रम में शरीक होती हैं। इतना ही नहीं सामाजिक बदलाव की दिशा में सुलभ ने वृंदावन, वाराणसी और उत्तराखंड की विधवा माताओं को

समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डॉ. पाठक ने एक महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए कहा कि देश की आबादी लगभग 1 अरब

गुजारा कर रही थीं, लेकिन अब सुलभ से मिल रही मासिक सहयोग-राशि और ट्रेनिंग के चलते वे भी सम्मानित जिंदगी गुजार रही हैं। सुलभ के प्रयासों से अब विधवा माताएं होली-दीवाली भी उत्साह से मनाती हैं। स्नान के बाद इन महिलाओं ने प्रसिद्ध हरिहरनाथ-मंदिर में पूजा-अर्चना भी की। हर्षोल्लसित महिलाओं ने सोनपुर के प्रसिद्ध मेले का भी भ्रमण किया।

30 करोड़ है, लेकिन इस आबादी में 10 करोड़ संपन्न लोग भी हैं। इन संपन्न लोगों में अगर एक व्यक्ति एक परिवार की मदद कर दे, तो समाज में बड़ा बदलाव आ सकता है। सुलभ के कार्यों को पूरी दुनिया में मान्यता मिल रही है, अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के मेयर ने सुलभ के कार्यों से प्रभावित होकर 14 अप्रैल को ‘पाठक डे’ मनाए जाने का निर्णय लिया है। डॉ. पाठक ने इस मौके राजनीतिक शुचिता और नैतिकता की बात करते हुए देश के बेहतर भविष्य के लिए इसे जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि राजनीति में साफ-सुथरी छवि के लोग आएं तो सब


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कुछ बदल सकता है, क्योंकि अच्छे लोग ही बेहतर नीतियां बनाते हैं।

3 रुपए रोज खर्च कर जिंदगी बचेगी गुप्तेश्वर पाण्डेय

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि बिहार सैन्य पुलिस के महानिदेशक और मंदिर के न्यास समिति के अध्यक्ष गुप्तेश्वर पाण्डेय ने कहा कि इस पेयजल का उपयोग मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के साथ-साथ सोनपुर इलाके के निवासी भी कर सकेंगे। यह हम सभी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के लिए हर रोज 3 लीटर पानी पीना जरूरी होता है। अब इतना शुद्ध पानी मात्र 3 रुपए में उपलब्ध रहेगा। इससे न जाने कितने लोग अपने

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जीवन को सुरक्षित बना सकते हैं। स्वस्थ जीवन के लिए इससे सस्ता आपको बाजार में कुछ और नहीं मिलेगा। यह मशीन मंदिर की आय का भी स्थाई स्रोत बन गई है। इतनी बड़ी जन-सेवा का कार्य सिर्फ डॉ. पाठक ही कर सकते थे।

बैक्टीरिया मुक्त है सुलभ जल - जेसपर वाईब हैंस

भारत में डेनमार्क दूतावास में वाणिज्य विभाग और इनोवेशन सेंटर के प्रमुख जेसपर वाईब हैंस ने नार्डिक टेक्नोलॉजी के बारे में बताते हुए कहा कि यह टेक्नोलॉजी पानी शुद्धीकरण को लेकर बहुत दिनों से काम कर रही है और काफी प्रचलित है। हमने यहां के पानी की जांच की है। इसमें बैक्टीरिया पाए गए

हैं। लेकिन यह मशीन उन बैक्टीरिया से निपटने में सक्षम तो है ही, साथ ही यह उन्हें कभी पनपने भी नहीं देगी। क्योंकि यह मशीन पानी को तीन चरणों में साफ करती है और तापमान को 12 डिग्री सेंटीग्रेड पर बनाए रखती है जिससे पानी में बैक्टीरिया नहीं पनप पाते हैं। सुलभ की उपाध्यक्ष आभा कुमार ने इस मौके पर बताया कि किस प्रकार सुलभ ने इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की शुरुआत की और यहां इसे स्थापित किया। साथ ही इस अवसर पर राजस्थान के अलवर और टोंक जिले की कई पुनर्वासित महिला स्कैवेंजर्स अपने यजमानों के साथ उपस्थित रहीं। डॉ. पाठक ने इन महिलाओं का उदाहरण देते हुए इसे महिला सशक्तीकरण की दिशा में बहुत बड़ा

कदम बताया। वहीं सुलभ की सामाजिक बदलाव के लिए की गई बड़ी पहलों की प्रतिमूर्ति के रूप में वृंदावन से आई विधवा माताएं भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहीं, जिनके अधूरे जीवन में सुलभ प्रणेता की प्रेरणा से अनगिनत रंग भर गए। साथ ही हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और लुधियाना से आईं ऐसी कई महिलाएं भी इस मौके पर उपस्थित थीं, जिनके घरों में शौचालय नहीं था, लेकिन सुलभ के प्रयासों और सहायता से आज उनके घर में ‘इज्जत घर’ अर्थात शौचालय है और उनका परिवार कई बीमारियों से मुक्त होकर खुशियों भरा जीवन जी रहा है। इस शुभ मौके पर सभी गणमान्य अथितियों, डॉ. पाठक और उनकी पत्नी अमोला पाठक को शॉल और फूल देकर सम्मानित किया गया।


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सुलभ के प्रयासों से धंदुका गांव बना खुले में शौच से मुक्त

हरियाण का एक पिछड़ा गांव धंदुका सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक की प्रेरणा और सुलभ प्रयासों से खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया

महामहिम व्लादिमीर मैरिक

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प्र

धानमंत्री मोदी ने साल 2014 में 'स्वच्छ भारत अभियान' की शुरुआत की ओर पूरे भारत को खुले में शौच से मुक्त करने का अभियान चलाया। शहरी विकास और ग्रामीण मंत्रालय की योजनाओं से देश के राज्यों में जिले और गांवों में खुले में शौच से मुक्ति के प्रयास शुरू हो गए। स्वच्छता और सामाजिक सुधार संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने पीएम मोदी के इस अभियान को सफल बनाने के लिए पूरे देश में बढ़-चढ़कर काम किया। परिणामस्वरूप देश के सभी राज्यों के अधिकतर गांव खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं और बचे हुए गांव खुले में शौच से मुक्ति की ओर अग्रसर हैं। ऐसे ही एक सुलभ प्रयास के तहत भारत में सर्बिया के राजदूत माननीय व्लादिमीर मैरिक और सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने 28 नवंबर को हरियाणा के मेवात जिले की नूह तहसील स्थित एक गांव धंदुका का दौरा कर गांव को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया। यह बड़ी कामयाबी सुलभ स्वच्छता मिशन फाउंडेशन और भारत में सर्बिया के राजदूत व्लादिमीर मैरिक और ग्वाटेमाला, चिली, बोस्निया और हर्जेगोविना के माननीयों के संयुक्त प्रयासों से मिली। सर्बिया, ग्वाटेमाला, चिली और बोस्निया और

हर्जेगोविना के दूतावासों और सुलभ स्वच्छता मिशन फाउंडेशन के संयुक्त प्रयासों द्वारा 16 और 17 अप्रैल, 2018 को ‘टेनिस 4 टॉयलेट्स’ नाम से एक युगल चैरिटी टेनिस टूर्नामेंट का आयोजन किया गया। लोजिस्टिक्स प्रायोजकों समेत कुल 14 प्रायोजक भी इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आगे आए। इस टूर्नामेंट का उद्देश्य पूरे भारतीय गांव को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने के लिए पर्याप्त धन जुटाना था। इस टूर्नामेंट द्वारा अर्जित किए गए धन का इस्तेमाल धंदुका गांव में 105 व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों के निर्माण के साथ पूरे गांव को

‘ओपन डे​िफकेशन फ्री (ओडीएफ)’ अर्थात खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए किया गया। सर्बियाई राजदूत व्लादिमीर मैरिक ने नेतृत्व करते हुए अपने टेनिस साथियों बोस्निया के राजदूत माननीय सबित सुबासिक, ग्वाटेमाला के राजदूत जॉर्जेस डे ला रोचे डु रोन्जेट और चिली के मिशन हेड माननीय एड्रेस बार्बी गोंजालेज के साथ मैच खेला। सभी माननीयों ने इस भारतीय गांव में इकोलॉजिकल शौचालयों के निर्माण के लिए चैरिटी टेनिस मैच आयोजित करके धन जुटाने का विचार साझा​ िकया। उसके बाद ‘टेनिस 4

रत और सर्बिया के बीच संबंधों को और बेहतर बनाने और दोनों देशों के बीच तरक्की के नए रास्ते खोलने के लिए प्रयासरत भारत में सर्बिया के राजदूत व्लादिमीर मैरिक एक बहुत ही उत्कृष्ट और प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। उनके असाधारण अकादमिक रिकॉर्ड और प्रशासनिक व राजनयिक उपलब्धियां इस बात की गवाही देती हैं। यूएसए के अटलांटा स्थित जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी से बीए ऑनर्स और बेहद प्रतिष्ठित बेलग्रेड विश्वविद्यालय से मास्टर्स डिग्री करने के बाद मैरिक ने अपने देश के विदेश मामलों के मंत्रालय में कई उच्च स्तरीय और महत्वपूर्ण पदों पर बड़े सम्मान के साथ काम किया है। उन्होंने संघीय गणराज्य यूगोस्लाविया के स्थाई मिशन के साथ न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में इंटर्नशिप (2002-03) के साथ अपना करियर शुरू किया। इसके बाद उन्होंने सर्बिया के विदेश मामलों के मंत्री के मंत्रिमंडल में कई प्रमुख पदों पर काम किया, साथ ही उन्होंने विभिन्न देशों में अपने देश के दूतावास का प्रतिनिधित्व और सहायता की। भारत में सर्बिया के राजदूत के रूप में मनोनीत होने से पहले वह मंत्री-काउंसलर के साथ-साथ राजदूत और सर्बिया के विदेश मामलों के मंत्रिमंडल के प्रमुख भी थे। उनके जीवन और करियर के कई अन्य आकर्षक पहलू और उपलब्धियां भी हैं। अपनी मूल सर्बियाई भाषा पर शानदार पकड़ के अलावा, वह अंग्रेजी और फ्रेंच भी धाराप्रवाह बोलते हैं। इतना ही नहीं वह जॉर्जिया विश्वविद्यालय प्रणाली के वर्ष 2001 के सबसे उत्कृष्ट विद्वान थे।

टॉयलेट्स’ नाम से मैच का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम ने टेनिस को भारत में एक बड़े खेल के रूप में भी बढ़ावा दिया। इस ऐतिहासिक तरक्की को रेखांकित करते हुए गांव में एक फाउंडेशन स्टोन भी लगाया गया। स्कूल के बच्चों ने प्रेरक नारों के प्लेकार्ड लेकर व्यक्तिगत स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए स्वच्छता के महत्व के बारे में जागरूकता भी फैलाई।


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पहल

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कुंभ के लिए 800 विशेष ट्रेनें

कुंभ की तैयारियां अपने चरम पर हैं। रेलवे ने श्रद्धालुओं के लिए विशेष गाड़ियों की व्यवस्था की है

कुं

भ स्नान करने वाले श्रद्धालुओं के लिए अच्छी खबर यह है कि इस मेले के लिए युद्धस्तर पर तैयारियां कर रहा रेलवे 800 कुंभ स्पेशल ट्रेन चलाएगा। अधिकारियों ने अनुसार मेला के दौरान उत्तर मध्य रेलवे द्वारा 622, पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा 110 व उत्तर रेलवे द्वारा 68 ट्रेनों को चलाने की तैयारी है। मेले के लिए इलाहाबाद, प्रयाग घाट, इलाहाबाद सिटी, नैनी, इलाहाबाद छिवकी और सुबेदारगंज स्टेशनों पर विशेष तैयारियां की जा रही हैं। मेले के लिए ये ट्रेनें तीन महीनों तक चलाई जाएंगी, इन विशेष गाड़ियों पर मेले के थीम स्लोगन के साथ तस्वीरें भी लगाई जाएंगी। साथ ही ट्रेन के कोच पर 'कुंभ चलो' नारे के साथ नागा साधुओं की तस्वीरें भी लगाई जाएंगी। वहीं कुंभ के समय प्रयागराज जाने वाली अन्य ट्रेनों में भी अतिरिक्त कोच लगाए जाएंगे। गौरतलब है कि कुंभ मेले के दौरान करोड़ों श्रद्धालु प्रयागराज आते हैं और इस बार भी मेले के तीन महीनों के दौरान करोड़ों लोगों के प्रयागराज पहुंचने की उम्मीद है। मिली जानकारी के अनुसार कुंभ मेले की स्पेशल ट्रेन की सज्जा के लिए नेशनल ट्रांसपोर्ट्स को हायर किया गया है। उन्होंने 1,600 ट्रेन के कोचों पर काम करना शुरू कर दिया है। कुंभ के दौरान ट्रेन व स्टेशन की सफाई का काम भी रेलवे ने आउटसोर्स किया है।

कुंभ के दौरान इलाहाबाद सिटी स्टेशन से मेला स्पेशल गाड़ियों को प्लेटफार्म नंबर एक से चलाया जाएगा। जबकि नैनी स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक से, मुगलसराय प्लेटफार्म नंबर तीन से मानिकपुर साइड के यात्रियों को भेजा जाएगा और मानिकपुर साइड की तरफ से आने वाली स्पेशल गाड़ियों को छिवकी स्टेशन पर ही समाप्त कर दिया जाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार का अनुमान है कि 15 जनवरी (मकर संक्रांति) को 1.2 करोड़, 21 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को 55 लाख, 4 फरवरी (मौनी अमावस्या) को 3 करोड़, 10 फरवरी (वसंत पंचमी) को 2 करोड़, 19 फरवरी (माघी पूर्णिमा) को 1.6 करोड़ और 4 मार्च (महाशिवरात्रि) को 60 लाख श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचेंगे। इनके ठहरने के लिए इलाहाबाद जंक्शन पर चार आधुनिक आश्रय स्थल, छिवकी में दो व नैनी में तीन आश्रय स्थल का निर्माण कार्य भी तेजी से चल रहा है। हिंदुओं के लिए प्रसिद्ध धार्मिक स्थल प्रयागराज में होने वाला कुंभ मेला 15 जनवरी से शुरू हो रहा है। गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के किनारे लगने वाले इस मेले में 12 करोड़ लोगों के पहुंचने का अनुमान है। संगम में डुबकी लगाने देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पहुंचती है। (एजेंसी)

दहेज के खिलाफ मुहिम

झारखंड के पोखरी कला गांव के 62 वर्षीय हाजी मुमताज अली दहेज के खिलाफ ऐसी मुहिम चला रहे हैं

झा

मनोज पाठक

रखंड के लातेहार जिले के पोखरी कला में दहेज के खिलाफ चला अभियान आज पूरे झारखंड में नई रोशनी दिखा रहा है। लातेहार जिला के पोखरी गांव के रहने वाले जाकिर अंसारी की पुत्री साजदा परवीन की शादी इस्लामपुर गांव के सलीम अंसारी के पुत्र से हुई थी। दहेज के रूप में 1.50 लाख रुपए की मांग के बाद लड़की वालों ने उनकी मांग पूरी की थी। इसके बाद दहेज के खिलाफ मुहिम चला रहे हाजी मुमताज अली की पहल पर शादी के दिन ही दहेज में दी गई पूरी राशि वापस की गई। जाकिर बताते हैं कि गांव में दहेज का लेनदेन आम था, इसीलिए उन्होंने भी नकद रुपए देना सही समझा। जाकिर कहते हैं, ‘जब दहेज के खिलाफ मुहिम चली तो मेरे समधी ने मुझे दहेज की रकम लौटा दी। मुझे लगता है कि उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि दहेज लेना गलत है और उसके बाद उन्होंने सार्वजनिक तौर पर दहेज लौटाने का फैसला किया।’ इसके अलावा पोखरी खुर्द गांव के रहने वाले हदीस अंसारी ने भी अपनी पुत्री रुखसाना खातून के विवाह में लड़के वालों गढ़वा जिला के बेरमा बभंडी निवासी सईद मियां के पुत्र सदरे आलम को दहेज दी थी। रुखसाना आज अपने पति के साथ खुश है। रुखसाना बताती है, ‘दहेज के रूप में अब्बा ने कर्जकर उनकी मांग पूरी की थी, मगर शादी से पहले ही समाज के दबाव में पैसा वापस कर दिया गया। आज मुझे फख्र है कि मैं ऐसे घर की बहू हूं, जिसने अपनी गलती को सुधार करने में हिचक नहीं दिखाई।’ ऐसा नहीं कि यह कहानी सिर्फ दो परिवारों की है। हाजी मुमताज अली की पहल पर अब तक 800 परिवारों ने ली गई दहेज की राशि वापस की है। 62 वर्षीय हाजी मुमताज अली ने मुस्लिम समाज में दहेज की मांग के खिलाफ इस अभियान की शुरुआत की। दरअसल, हाजी मुमताज को इस अभियान का विचार तब आया, जब लोग अक्सर उनके पास दहेज के लिए मदद मांगने आते। हाजी मुमताज ने बताया, ‘सबसे पहले तो मैंने अपने आसपास के लोगों को इकट्ठा कर इस सामाजिक बुराई के बारे में बताया और कहा कि दहेज के रूप में नकद की मांग के खिलाफ हमें कोई कदम उठाना चाहिए, वहां जमा सभी लोगों ने इसका समर्थन किया। इसके बाद हमने एक महासम्मेलन कर दहेज मांगने वालों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार का ऐलान किया।’ दहेज मांगने वालों के खिलाफ सख्ती के लिए जो लड़के वाले दहेज मांगते हैं उनकी बारात में गांव के लोगों के शामिल नहीं होने का निर्णय लिया गया

तथा जिस गांव में बारात जाएगी वहां के काजी के भी निकाह नहीं पढ़ने पर सहमति बनी। बकौल हाजी, ‘इस अभियान का नतीजा यह रहा कि अप्रैल 2016 से शुरू 'मुतालबा-एदहेज' और 'तिलक रोको अभियान' की मदद से छह करोड़ रुपए लड़की वालों को लौटाए गए।’ हाजी अली कहते हैं कि जबरदस्ती या मांगकर ली गई रकम शरीयत के हिसाब से हराम है। इससे तो विवाह भी वैध नहीं माना जाएगा। वे कहते हैं कि वर्तमान समय में उनका यह अभियान पलामू प्रमंडल के तीन जिलों पलामू, लातेहार और गढ़वा में चल रहा है, लेकिन इसका प्रभाव झारखंड के अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिल रहा है। उन्होंने दावे के साथ कहा कि अन्य धर्म के लोगों में इस अभियान का प्रभाव देखा जा रहा है। इस्लाम के जानकार मौलाना हनाम मुसवाही का कहना है, ‘कुरान में कहीं भी दहेज का जिक्र नहीं है, बल्कि इस्लाम में लड़कियों को संपत्ति में हक देने का हुक्म है। दहेज लेना और देना शरीयत के खिलाफ तो है ही, साथ ही यह एक कुप्रथा भी है जिसे जल्द खत्म होने की जरूरत है।’ हाजी मुमताज के सहयोगी और दहेज विरोधी अभियान चला रहे मौलाना महताब कहते हैं कि इस अभियान के बाद लोग दहेज और नकद की मांग करने से डरते हैं और सोचते हैं कि गांव के लोगों को पता चल जाएगा कि हमने दहेज की मांग की है तो हमारी बेइज्जती तो होगी ही, साथ ही हमारा सामाजिक बहिष्कार भी हो जाएगा। उन्होंने कहा, ‘इस अभियान के बाद लोगों की दहेज देने और लेने के बारे में सोच बदली है। लोग अब अपनी बेटियों को शिक्षित करने की ओर उन्मुख हुए हैं। यह इस अभियान की सफलता को दर्शाता है।’ हाजी मुमताज अली के इस अभियान में अब इस प्रमंडल के 3,000 से ज्यादा गांव के लोग जुड़े हुए हैं। भविष्य में अपनी योजनाओं के विषय में उनका कहना है कि इस अभियान को वे झारखंड के अन्य क्षेत्रों में भी ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि दहेज वापसी से कई घर उजड़ने से बच रहे हैं।


02 - 09 दिसंबर 2018

नई ऊंचाइयों पर अंतरिक्ष कार्यक्रम

अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने एक साथ आठ देशों के 31 सेटेलाइट को प्रक्षेपित किया

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रत ने अंतरिक्ष में एक और कामयाब उड़ान भरी है। अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष यान पीएसएलवी-सी43 के साथ आठ देशों के 31 सेटेलाइटों को प्रक्षेपित कर दिया है। इसमें धरती का अध्ययन करने वाले भारतीय हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग सेटेलाइट शामिल है। 380 किलोग्राम के इस सेटेलाइट को इसरो ने विकसित किया है। इसरो के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी-सी43 से इन उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। पीएसएलवी-सी43

स्वच्छता

अभियान का प्राथमिक उपग्रह है। इसके अलावा प्रक्षेपित 30 विदेशी सेटेलाइट में 23 अमेरिका के हैं और बाकी ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, कोलंबिया, फिनलैंड, मलेशिया, नीदरलैंड और स्पेन के हैं। इन विदेशी उपग्रहों का कुल वजन 261.5 किलोग्राम है। भारत का स्पेस मिशन रोजाना सफलता के नएनए अध्याय जोड़ रहा है। इसरो ने 14 नवंबर को अपने सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके3-डी2 की मदद से देश के सबसे भारी और उन्नत संचार उपग्रह जीसेट-29 को कक्षा में स्थापित किया।

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विज्ञान

यह उपग्रह पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर के दूरस्थ इलाकों में इंटरनेट और अन्य संचार सुविधाएं मुहैया कराने में मददगार होगा। यह उपग्रह क्यू ऐंड वी बैंड्स, ऑप्टिकल कम्युनिकेशन और एक हाई रेजॉल्यूशन कैमरा भी अपने साथ ले गया है। भविष्य के स्पेस मिशन के लिए पहली बार इन तकनीकों का परीक्षण किया गया। इस रॉकेट में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बूस्टर S200 का इस्तेमाल किया गया। 3423 किलोग्राम वजन का यह सेटेलाइट भारत की जमीन से लॉन्च किया गया अब तक का सबसे भारी उपग्रह है। इस अभियान को इसलिए भी अहम माना है, क्योंकि भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 और मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियानों में इस रॉकेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष यात्रियों से जुड़े अभियान की दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। इसरो ने चालक दल की बचाव प्रणाली (क्रू एस्केप मॉड्यूल) से जुड़ी परीक्षण श्रृंखला को सफलतापूर्वक पूरा किया। इस परीक्षण को चालक दल को बचाने की महत्त्वपूर्ण प्रणाली बताया जा रहा है क्योंकि यह अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से एक अहम तकनीक है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसरो दोबारा इस्तेमाल होने वाले अंतरिक्ष यान (रियूजेबल लॉन्च व्हीकल) के परीक्षण पर काम कर रहा है, जो एक अंतरिक्ष यान या अंतरिक्ष यात्री दोनों को ले जा सकता है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब इसरो सीधे तौर पर अंतरिक्ष यात्री अभियान के अहम हिस्से के परीक्षण में सीधे तौर पर शामिल रहा है। (एजेंसी)

मंगल पर अंतरिक्ष यान

नासा का अंतरिक्ष यान इनसाइट मंगल ग्रह के रहस्यों का पता लगाएगा

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गल ग्रह की सतह को खोदने के लिहाज से तैयार किया गया नासा का एक अंतरिक्ष यान 48.2 करोड़ किलोमीटर की यात्रा छह महीने में पूरी करने के बाद लाल ग्रह पर उतरा। कैलिफॉर्निया के पासाडेना में स्थित नासा की जेट प्रोपल्सन प्रयोगशाला के उड़ान नियंत्रकों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब यह खबर आई। जब एक उड़ान नियंत्रक ने अंतरिक्ष यान के मंगल की सतह पर उतरने की घोषणा की तो उनके साथी उत्साहित होकर उछलने लगे और ताली बजाने लगे। नासा के मुताबिक इनसाइट नामक यह यान एक पैराशूट और ब्रेकिंग इंजन की मदद से रफ्तार को धीमा किये जाने के बाद उतरा। मंगल से पृथ्वी की दूरी लगभग 16 करोड़ किलोमीटर है। अंतरिक्ष यान के बारे में रेडियो सिग्नल से मिल रही जानकारी यहां तक आने में आठ मिनट से ज्यादा का समय लग रहा है। 1976 के बाद से नासा ने नौवीं बार मंगल पर पहुंचने का यह प्रयास किया। अमेरिका के पिछले प्रयास को छोड़कर बाकी सभी सफल रहे। पिछली बार नासा का अंतरिक्ष यान क्यूरियोसिटी रोवर के साथ 2012 में मंगल पर उतरा था। (एजेंसी)

जब जेआरडी टाटा ने साफ किया टॉयलेट जे

स्वच्छता के प्रति जेआरडी टाटा का बहुत आग्रह था। टाॅयलेट से लेकर टेबल की सफाई वे बेहिचक किया करते थे

आरडी टाटा भारत के सबसे बड़े बिजनेस घरानों में से एक टाटा ग्रुप के पूर्व अध्यक्ष थे। उन्होंने भारत को पहली एयरलाइंस सुविधा मुहैया कराते हुए साल 1932 में टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की जो आगे चलकर एयर इंडिया में तब्दील हो गई। लेकिन इतने बड़े उद्यमी होने के बाद भी जन-कल्याण के आम छोटे-छोटे कामों को करने में उन्होंने खूब रूचि दिखाई और सबके लिए प्रेरणा बने। उन्होंने एक बार एयरलाइन के गंदे काउंटर को अपने हाथों से साफ किया था, इतना ही नहीं उन्होंने एक और मौके पर एयरक्राफ्ट के गंदे टॉयलेट तक को खुद ही साफ कर दिया था। इस बात की जानकारी शशांक शाह की लिखी किताब ‘द टाटा ग्रुप: फ्राम टॉर्चबेयरर्स टू ट्रैलब्लेजर्स’ में मिलती है। किताब के अनुसार एक बार उन्होंने एक गंदे एयरलाइन काउंटर को देखा तो उन्होंने एक डस्टर मंगाया और खूद ही धूल साफ करने लगे। इसके

अलावा भी कई ऐसे मौके आए जब जेआरडी टाटा ने खुद सफाई की जिम्मेदारी अपने हाथों में लेकर दूसरों के लिए बड़ी मिसाल पेश की। किताब में एक और ऐसी ही घटना का उल्लेख है कि एक बार जेआरडी ने अपनी शर्ट की बाजू चढ़ाकर एक केबिन क्रू की एयरक्राफ्ट का टॉयलेट साफ करने में मदद की थी। किताब बताती है कि इसके अलावा एयर इंडिया होर्डिंग्स पर लिखे हुए शब्द से लेकर प्लेन में टॉयलेट पेपर की उपलब्धता तक छोटी-छोटी चीजों का वह खयाल रखते थे। जेआरडी टाटा खास तौर पर फिक्रमंद थे कि एयर इंडिया की सुविधाएं अंतरराष्ट्रीय उच्च मानकों के अनुकूल हों और इसके लिए उन्होंने स्वच्छता पर खासा ध्यान केंद्रित किया। उस वक्त महात्मा गांधी के बाद शौचालय को इतने बड़े व्यक्ति द्वारा साफ करने की शायद यह इकलौती मिसाल थी।


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परंपरा

02 - 09 दिसंबर 2018

अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह (08-14 दिसंबर) पर विशेष

मिथिला पेंटिंग की बहुराष्ट्रीय छटा पाब्लो पिकासो जैसे विश्वविख्यात पेंटर भी जिस मिथिला पेंटिंग को देखकर प्रभावित हुए थे, आज चित्रकला की वह लोकशैली एक लोक-उद्यम का नाम है

खास बातें

पश्चिमी कलाप्रेमी आज भी मिथिला चित्रकला शैली पर मुग्ध हैं 1949 में डब्ल्यू जी. आर्चर ने इस पर लिखा था ‘मार्ग’ पत्रिका में लेख नए कलाकारों ने मिथिला कला को आधुनिक उद्यम का रूप दिया

एसएसबी ब्यूरो

ज भले मिथिला पेंटिंग ‘मधुबनी पेंटिग’ के नाम से जानी जाती हो, लेकिन सही मायनों में इसे मिथिला पेंटिंग नाम देने से ही व्यापक विस्तार मिलता है। 70 और 80 के दशक में इस पेंटिंग की धूम जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, अमेरिका, जापान आदि देशों की कलादीर्घाओं में खूब रही। पश्चिमी कलाप्रेमी आज भी चित्रकला की इस शैली पर मुग्ध हैं, पर इसे बाजारवादी प्रसार के लिए अपेक्षित प्लेटफार्म नहीं मिल पा रहा है। नए दौर में सीता देवी और गंगा देवी की चित्र शैली और विषय वस्तु ने इस कला को नई जुबान दी। कहते हैं कि पाब्लो पिकासो जैसे विश्वविख्यात पेंटर भी मिथिला पेंटिंग को देखकर प्रभावित हुए थे। सीता देवी और गंगा देवी जैसी चित्रकारों की विदेश यात्राओं और वहां उन्हें मिले सम्मानों ने मिथिलांचल के गांव की महिलाओं को इस कला की ओर नए सिरे से आकृष्ट किया।

आर्चर का लेख

1934 में बिहार में भारी भूकंप आया था, जिसमें जान-माल की काफी क्षति हुई थी। बताते हैं कि

वर्तमान में मिथिला शैली के ज्यादातर कलाकार देशज और प्राकृतिक रंगों के बदले एक्रिलिक रंगों का इस्तेमाल करने लगे हैं, जिससे इनके बिखरने का खतरा नहीं रहता

भूकंप पीड़ितों को सहायता पहुंचाने के दौरान तत्कालीन ब्रितानी अफसर और कला प्रेमी डब्ल्यू जी. आर्चर की निगाहें क्षतिग्रस्त मकानों की भीतों पर बनी चित्रों पर पड़ी। उन्होंने इन चित्रों को अपने कैमरे में कैद कर लिया। बाद में वे इस कला के संग्रहण और अध्ययन में जुट गए। वर्ष 1949 में ‘मार्ग’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में उन्होंने ‘मैथिली पेंटिग’ नाम से एक लेख लिखा, जिसमें इस कला में प्रयुक्त बिंबों और प्रतीकों का विवेचन है। इसमें चित्रों के आध्यात्मिक अर्थ और विभिन्न शैली की पड़ताल की गई है। इस लेख के बाद देश-विदेश के कलाप्रेमियों की नज़र इस चित्रशैली पर गई।

बदला रंगों का इस्तेमाल

60 के दशक में ऑल इंडिया हैंडिक्राफ्ट बोर्ड की तत्कालीन निदेशक पुपुल जयकर ने मुंबई के कलाकार भास्कर कुलकर्णी को मिथिला क्षेत्र में इस कला को परखने के लिए भेजा। बिहार सरकार वर्षों से मधुबनी में एक संग्रहालय बनाने की बात करती

रही है, लेकिन अभी तक उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। बहरहाल, इन वर्षों में मिथिला चित्र शैली की विषय वस्तु और भाव ही नहीं बदले, बल्कि रंग भी बदले हैं। पहले प्राकृतिक तौर पर मिलने वाली रंगों का ही इस पेंटिंग में इस्तेमाल होता था। मसलन, हरी पत्तियों से हरा, गेरू से लाल, काजल और कालिख से काला, सरसों और हल्दी से पीला, सिंदूर से सिंदूरी, पिसे हुए चावल, दूध और गोबर से बने रंगों से ही कलाकार चित्रों को उकेरते थे, लेकिन वर्तमान में ज्यादातर कलाकार देशज और प्राकृतिक रंगों के बदले एक्रिलिक रंगों का इस्तेमाल करने लगे हैं, जिससे इनके बिखरने का खतरा नहीं रहता। आज जहां बाजार में भारतीय कला को मुंहमांगी कीमतों पर खरीदा-बेचा जा रहा है, वहीं मिथिला शैली के चित्रों को उस तरह से बाजार नहीं मिल पा रहा है।

मधुबनी पेंटिंग की उषा

इस बीच कुछ प्रयास निजी तौर पर ऐसे जरूर हुए

हैं, जिसने समय के मुताबिक मधुबनी पेंटिंग को एक उद्यम की शक्ल दी है। ऐसा ही एक अहम प्रयास किया है उषा झा ने। बिहार-नेपाल सीमा पर स्थित एक गांव से आने वाली उषा झा ने अपने स्कूल की पढ़ाई कहने-सुनने को जिला मुख्यालय शहर पूर्णिया में की है और उनकी शादी कक्षा 10 उत्तीर्ण करने के पहले ही हो गई थी। शादी के बाद वे पटना आ गईं, लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। निजी ट्यूशन के माध्यम से, पत्राचार पाठ्यक्रम और सरकारी शिक्षण संस्थान से उन्होंने मास्टर डिग्री प्राप्त करने में सफलता हासिल की। उषा कहती हैं कि 'कहीं गहरे, मेरे अंतरमन में उद्यमशीलता का एक सपना था। मैं स्वयं अपने और दूसरों के लिए कुछ करना चाहती थी। मेरे जीवन में सब कुछ था। बच्चे, सहयोग करने वाला एक प्यारा परिवार, फिर भी मुझे लगता था कि मेरी अपनी कोई पहचान नहीं है। अपने होने का बोध नहीं था।' अपनी स्वयं की पहचान बनाने से लेकर 300 से अधिक महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने तक, उषा ने एक लंबा सफर तय किया है। हालांकि ये यात्रा इतनी भी आसान नहीं रही, लेकिन संतोषजनक जरूर रही और यही संतोष उषा को आगे बढ़ने की हिम्मत देता है। 1991 में जब उनके बच्चे बड़े हो गए और उनके पास अधिक खाली समय था, तब उन्होंने कुछ करने का फैसला किया और उस मिथिला कला को अपने भविष्य-निर्माण का धार बनाया, जिससे कि वे बचपन से ही परिचित थीं।

‘पेटल्स क्राफ्ट’ की शुरुआत

देखते-देखते उषा झा का एक छोटा-सा कदम एक विशाल छलांग बन गया। ‘पेटल्स क्राफ्ट’ की शुरुआत 1991 में उषा झा के घर पटना के बोरिंग रोड से हुई, जहां से वे आज भी काम करती हैं। कलाकारों के लिए समर्पित एक कमरे से शुरू


02 - 09 दिसंबर 2018 हुआ उनका काम अब पूरे घर में फैल चुका है। रग्स पर करीने से रखे फोल्डर्स, साड़ी, स्टॉल्स ग्राहकों के लिए तैयार रहते हैं। उषा कहती हैं, ‘आज हमने आधुनिक मांगों को पूरा किया है और बैग, लैंप, साड़ी और घरेलू सामान सहित लगभग 50 विभिन्न उत्पादों पर मधुबनी पेंटिंग की है।’ वे हमें एक नैपकिन होल्डर दिखाती हैं, जो उनके अमेरिकी और यूरोपीय ग्राहकों में खासा पसंद किया जाता है। आज उनके ग्राहकों में भारत के दौरे पर आए सरकारी और गणमान्य व्यक्तियों से लेकर दुनिया के विभिन्न देशों से आए पर्यटक भी शामिल हैं। उषा ने थोड़े से शिल्पकारों के साथ अपने काम की शुरुआत की थी, जिनमें से दो तो उनके घर से काम करती थीं, जबकि शेष अन्य मिथिलांचल में रह कर काम करती थीं। महिला कलाकारों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती रही और आज 300 से अधिक प्रशिक्षित स्वतंत्र महिलाएं उनके साथ काम करती हैं। 2008 में उषा झा ने गांवों में किए जा रहे अपने काम को औपचारिक रूप दिया तथा उन्होंने अपने गैर सरकारी संगठन, ‘मिथिला विकास केंद्र’ का पंजीकरण करवाया। उषा कहती हैं, 'इसके माध्यम से हम महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाते हैं। महिलाएं अपना घर चलाने में सक्षम हैं। हम उनके बच्चों के लिए शिक्षा भी उपलब्ध कराते हैं और उनके स्वास्थ्य के मुद्दे पर उन्हें जानकारी देते हैं। हम स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं और

परंपरा

तब ऑनलाइन विक्रय की कोई अवधारणा नहीं थी। उन दिनों में हमें पूरे देश में और यहां तक कि विदेशों में भी यात्रा कर के स्टॉल लगाने पड़ते थे। मुझे अपने उत्पाद को बेचने के लिए बड़े पैमाने पर यात्रा करनी पड़ती थी।' उषा झा आज की तारीख में मधुबनी पेंटिंस और उससे जुड़े उद्यम के क्षेत्र में एक बड़ा नाम बन गई हैं। विभिन्न वेबसाइट्स के माध्यम से वे अपने उत्पाद ऑनलाइन बेचती हैं, फिर भी उनका कहना है कि आज भी हमारी ज्यादातर बिक्री एक-दूसरे से बातचीत के माध्यम से ही होती है। प्रौद्योगिकी ने उन्हें गांव के कलाकारों के साथ संवाद करने में सबसे बड़ी मदद की है। व्हाट्सएप ने कस्टमाइजेशन की सभी समस्यायों को समाप्त कर दिया है।

राष्ट्रपति भवन की शोभा महिलाओं को होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में उनके बीच जागरूकता फैलाने का काम भी करते हैं।' उषा झा द्वारा प्रशिक्षित कई महिलाओं ने उन्हें छोड़ कर अपना काम भी शुरू कर लिया है और अब कई महिलाओं को पटना में भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। लेकिन पूरी तरह से देखें तो प्रगति थोड़ी धीमी है। वह कहती हैं, 'मैंने जब शुरुआत की थी

जब पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने बिहार का दौरा किया, तो उन्हें 14 फीट लंबी एक पेंटिंग भेंट की गई थी, जो आज भी राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ा रही है। इस पर वह गर्व से कहती हैं, ‘वह पेंटिंग हमारे द्वारा ही दी गई थी।’ एक और दिलचस्प वाकया स्वीडन से आए एक पर्यटक के बारे में है। इस बारे में वह कहती हैं, ‘उनके ड्राइवर को पता ही नहीं था कि आर्ट गैलरी क्या होती है, इसीलिए वह उस पर्यटक को पेटल्स क्राफ्ट ले कर आ गया।----’ आगे वे कहती हैं 'हो सकता है कि वह एक आर्ट

11 गैलरी नहीं खोज सका हो, लेकिन उसे हमारा शिल्प बहुत पसंद आया और वह हमारी कला देख कर बहुत खुश हुआ। उसने अपने परिवार के लिए बहुत सारे उपहार खरीदे।' पेटल्स क्राफ्ट के अलावा उषा झा ने इन तमाम सालों में और भी अन्य भूमिकाएं निभाई हैं, जैसे पटना में एक कॉलेज के अतिथि व्याख्याता के रूप में शिक्षण। पिछले 17 सालों से बिहार महिला उद्योग संघ के सचिव का पद संभालने के साथ ही वे अनेक जरूरतमंद महिलाओं के संबल का आधार भी रही हैं। वे सभी महिलाएं जिन्होंने अपने शुरुआती दिनों में उषा से प्रशिक्षण लिया, वे अब अगुआ के रूप में उभरी हैं और जो महिलाएं अभी इस क्षेत्र में नई हैं, वे अपने भविष्य में उजाले की एक नई किरण को भर रही हैं। आने वाले दिनों में उषा झा बिहार-नेपाल सीमा के पास गांवों और कस्बों में अधिक से अधिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना चाहती हैं, जहां उन्हें लगता है कि सरकार अभी तक पहुंचने में सफल नहीं हो पायी है। वे कहती हैं, ‘ये एक महत्वाकांक्षी परियोजना है और मैं अधिक से अधिक महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए इन केंद्रों की स्थापना करना चाहती हूं।’ अपनी बात को खत्म करते हुए अंत में वे दूसरों को सिर्फ ये संदेश देना चाहती हैं, ‘यदि मैं ये कर सकती हूं तो आप भी कर सकते हैं।’

परिवार में सभी कलाकार

मिथिला शैली के कलाकार राजकुमार की नानी, मां, पत्नी, भाई, भाभी, मामा-मामी के अलावा परिवार के कई अन्य सदस्य मधुबनी पेंटिंग की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं

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हार के मिथिला क्षेत्र में एक ऐसा परिवार भी है, जिसके सभी सदस्य मधुबनी पेंटिंग के माहिर कलाकार हैं। प्राचीन समय में भले ही इस पेंटिंग से घरों की दीवारों को सजाया-संवारा जाता हो, मगर हाल के दिनों में मधुबनी पेंटिगं की पहचान कपड़ों और सजावटी वस्तुओं के साथसाथ देश-विदेश में भी होने लगी है। कलाकार राजकुमार की नानी, मां, पत्नी, भाई, भाभी, मामामामी के अलावा परिवार के कई अन्य सदस्य मधुबनी पेंटिगं की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। राजकुमार बताते हैं कि मधुबनी पेंटिगं के नाम से मशहूर यह चित्रकला मिथिला निवासियों की प्राचीन परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर के तौर भी जानी जाती है। मधुबनी जिले का शायद ही कोई गांव ऐसा हो, जहां इस प्रकार की पेंटिगं नहीं की जाती हो, लेकिन इस कला के लिए दो गांव- रांटी और जितवारपुर का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम होने से कलाकारों को विदेश में जाकर काम करने का

मौका मिला। रांटी में लोग आज भी फूलों से बने रंगों और चित्रकारी में लाइन का इस्तेमाल करते हैं, जबकि जितवारपुर में अब फैब्रिक में लगने वाले कृत्रिम रंग का भी इस्तेमाल किया जाता है। वैसे जितवारपुर को प्रसिद्धि इसी गांव की निवासी जगदंबा देवी के मधुबनी कला को लोकप्रिय बनाने में योगदान के लिए मिली। दिवंगत जगदंबा देवी को वर्ष 1970 में राष्ट्रीय पुरस्कार और 1975 में पद्म पुरस्कार से सम्मनित किया गया था। जगदंबा देवी के गुजर जाने के बाद उनकी विरासत को संभालने और उनकी कला को आगे बढ़ाने के लिए उनकी भतीजी यशोदा देवी ने जिम्मा संभाला। मधुबनी पेंटिगं की चर्चित कलाकार और कई सम्मान तथा पुरस्कारों से नवाजी गईं यशोदा ने अपनी पूरी जिंदगी मधुबनी कला के लिए समर्पित कर दी। कहा जाता है कि यशोदा देवी सात-आठ वर्ष में ही रंगों और लकीरों से खेलने लगी थीं। यशोदा देवी आज भले नहीं हों, परंतु उनकी

विरासत को अब उनके दो पुत्र अशोक कुमार दास और राजकुमार लाल आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। राजकुमार पटना में रहकर पिछले 15 वर्षों से इस कला के बहुआयामी पक्ष का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। इस क्रम में वे लगातार विदेशों का भी दौरा करते हैं। राजकुमार कहते हैं, ‘इस कला को अब विद्यालयों और महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल करने की जरूरत है। इस कला के प्रति अभिरुचि जगाने की जरूरत है।’ मॉरीशस सरकार के आमंत्रण पर वहां स्थित रवींद्रनाथ टैगोर इंस्टीट्टयू के शिक्षकों को मधुबनी कला की बारीकियों से अवगत करा चुके राजकुमार कहते हैं कि मधुबनी पेंटिगं की चर्चा अब विदेशों में खूब

हो रही है। उन्होंने बताया कि मॉरीशस की धरोहरों को उन्होंने चित्रों में उतारा है। मॉरीशस के शिक्षकों को मधुबनी पेंटिगं सिखाने के अलावा देश के विभिन्न शहरों में लगने वाले कला प्रशिक्षण शिविर में जाकर राजकुमार हजारों प्रतिभागियों को मधुबनी चित्रकला का प्रशिक्षण देते हैं। इधर, राजुकमार की पत्नी विभा देवी भी लड़कियों को मधुबनी पेंटिगं का प्रशिक्षण देती हैं। वह कहती हैं, ‘विवाह के पूर्व मैं थोड़ी-बहुत कला जानती थी, लेकिन मधुबनी पेंटिगं को बेहतरीन तरीके से बनाने की कला ससुराल आकर ही सिखी थी।’ यशोदा देवी के पुत्र अशोक कुमार दास पटना सहित दक्षिण भारत में मधुबनी पेंटिंग के प्रचारप्रसार में जुटे हुए हैं।


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विशेष

02 - 09 दिसंबर 2018

अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (03 दिसंबर) पर विशेष

दिव्यांगता के बावजूद चमके सितारे अल्बर्ट आइंस्टीन

भौतिकी के क्षेत्र के सबसे चमकदार नाम अल्बर्ट आइंस्टीन एक समय मानसिक रूप से बेहद कमजोर माने जाते थे। इस कारण उनकी प्राथमिक शिक्षा भी पूरी नहीं हो पाई। बाद में आइंस्टीन दुनिया के महान वैज्ञानिक बने।

दु

स्टीफन हॉकिंग

दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग चलने फिरने से लाचार थे, वो कुछ बोल भी नहीं पाते लेकिन हॉकिंग ने ब्रह्मांड के निर्माण के सिद्धांत समेत कई ऐसी खोज की जिन्होंने विज्ञान की दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया।

हेलेन केलर

हेलेन केलर दुनिया की पहली दिव्यांग ग्रेजुएट मानी जाती हैं। वो देख और सुन नहीं सकती थीं, इसके बावजूद न सिर्फ उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की बल्कि वह अमेरिका की शीर्ष लेखक और शिक्षक भी साबित हुईं।

रविंद्र जैन

आंखों की रोशनी न होने के बावजूद रविंद्र जैन संगीत की दुनिया की महान हस्ती थे। उनके गाए भजन घर-घर में सुने जाते हैं। ‘रामायण’ धारावाहिक से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली। उन्होंने कई यादगार फिल्मों में भी संगीत दिया है।

फ्रैंकलिन डी. रुजवेल्ट

अमेरिका के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रुजवेल्ट एक एक्सिडेंट के कारण चलने-फिरने से लाचार हो गए। इसके बावजूद उनकी लीडर​शिप और कामयाबी दुनिया के लिए मिसाल है।

खेल के साथ खूबसूरती भी चर्चा में

निया मे नाम कमाने के लिए अच्छे शरीर का होना जरूरी नहीं है, जरूरी है तो बस दृढ़ संकल्प की और लक्ष्य के प्रति आत्मसमर्पण की। आज हम कई क्षेत्रों में देख सकते हैं कि केवल अच्छा शरीर या पैसा ही सफलता नहीं दिलाते। आज हम ऐसी ही महिलाओं की चर्चा करेंगे जिन्होंने दिव्यांग होते हुए भी सफलता के झंडे गाड़े अपने-अपने खेल के क्षेत्र में। तो आइए मिलते हैं इनसे-

एमी कॉनरोय

एमी कॉनरोय का एक पैर खराब है। एमी एक 4.0 पॉइंट व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं। बोन कैंसर के कारण उन्हें एक पैर गवाना पड़ा लेकिन एमी ने हार न मानते हुए बास्केटबॉल में अपना करियर चुना। इनकी चुस्ती और खेल के जज़्बे के कारण एमी को इनके सहयोगी खिलाड़ियों ने टाइगर की उपाधि दी है। एमी कॉनरोय ने कई पैरालम्पिक्स विश्व चैंपियनशिप में भाग लिया है। 2010 में एमी ने अपना प्रथम मैच समर पैरालंम्पिक्स लंदन में भाग लेकर खेला। इस मैच में वह ग्रेट ब्रिटेन की तरफ से उच्च स्कोर बनाने वाली महिला बन गयी थीं। एमी 2015 में चीन के बीजिंग में वीमेन व्हीलचेयर बास्केटबॉल में स्वर्ण पदक भी जीत चुकी हैं। इसके अलावा कई प्रतियोगिताओं में रजत एवम कांस्य पदक भी जीत चुकी हैं।

केली कैटराइट

केली कैटराइट ऑस्ट्रेलिया की धावक हैं और अब तक कई पैरालम्पिक्स चैंपियनशिप में भाग लेकर पदक जीत चुकी हैं। कैंसर की वजह से इनका दायां पैर हटा दिया गया था। केली में बहुत सी और प्रतिभाएं हैं, जैसे केली माउंट किलिमंजारो जैसे ऊंचे पहाड़ की चढ़ाई कर चुकी हैं। इसके अलावा केली का खूबसूरत खिलाड़ियों में भी नाम आता है।

नटालिया पार्टीका

पोलैंड की रहने वाली नटालिया टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं। नटालिया 7 साल की उम्र से ही टेबल टेनिस खेल रही हैं। अंतरराष्ट्रीय पैरालम्पिक्स खेलों में नटालिया स्वर्ण पदक के साथ रजत पदक भी जीत चुकी हैं। नटालिया की प्रतिभा ही है कि वो सामान्य वर्ग के खिलाड़ियों एवम दिव्यांग श्रेणी के खिलाड़ियों दोनों के साथ खेलती हैं।

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सुधा चंद्रन

सुधा का एक पांव नकली है। इसके बावजूद उन्होंने अपनी डांस और अभिनय प्रतिभा से लाखों लोगों को मुरीद बनाया। उन्होंने अपनी जिंदगी पर बनी फिल्म ‘नाचे मयूरी’ में काफी सराहनीय अभिनय किया था।

टॉम क्रूज

हॉलीवुड के टॉप हीरो टॉम क्रूज डॉयसेलेक्सिया से पीड़ित थे। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को कुछ भी सीखने में दिक्कत होती है। इसके बावजूद टॉम दुनिया के शीर्ष एक्टर में शुमार हैं।

दुनिया की सबसे पहली व्हीलचेयर मॉडल

76 में आई फिल्म ‘कभी-कभी’ में खूबसरू त नगमा था- ‘तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती, नजारे हम क्या देखें।’ ऐसे ही कुछ हसीन नगमों पर फिट बैठती हैं मॉडल अलेक्सजेंड्रा कुतास। अलेक्सजेंड्रा अन्य मॉडलों की अपेक्षा अलग हैं। वह दुनिया की सबसे पहली व्हीलचेयर मॉडल हैं, क्योंकि अलेक्सजेंड्रा कुतास जन्म से ही दिव्यांग हैं। अलेक्सजेंड्रा कुतास यूक्रेन की सुपरमॉडल दिव्यांग हैं। उन्होंने अपने पैर कभी जमीन पर नहीं रखे हैं। लेकिन जब वे व्हीलचेयर से रैंपवॉक करतीं हैं तो सबकी धड़कनें रुक जाती हैं और निगाहें उनपर चली जाती हैं। वे कहतीं हैं कि जिंदगी में मैं अपने पैरों के बल खड़ी होकर उस पल का अहसास करना चाहती हूं। 23 वर्षीय अलेक्सजेंड्रा कुतास ने दिल्ली की एक मॉडलिंग एजेंसी के साथ करार साइन किया है। इसके अलावा हाल ही उन्होंने वे इंडियन रनवे वीक 2017 में हिस्सा लिया। उन्होंने इंडियन रनवे

वीक 2017 में डिजाइनर निखिल और रिवेंद्र के लिए शो में भाग लिया था। उस दौरान रैंप पर उतरी अलेक्सजेंड्रा की अदाएं और खूबसूरती को देख सब दंग रह गए। उनके आत्मविश्वास को देख अन्य सारी मॉडलें दंग रह जाती हैं। अलेक्सजेंड्रा को जन्म से ही स्पाइनल कोर्ड इंजरी है। इस कारण उनके कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त है। इनकी खूबसूरती के नमूने आप इंस्टाग्राम पर भी देख सकते हैं, जो आए दिन अपनी तस्वीर शेयर करती रहती हैं। उन्होंने मॉडलिंग की जद्दोजहद दुनिया में कदम रख कर यह साबित कर दिया कि खूबसूरती ना केवल चेहरों से आती है, बल्कि खूबसूरती आपकी मेहनत, संघर्ष, जज्बात, जुनून को दर्शाती है। अलेक्सजेंड्रा इस ग्लैमरस फील्ड में आकर न केवल खूबसूरत मॉडलों की रोल मॉडल बन रही हैं, बल्कि ऐसा कर उन्होंने अपने जैसी मॉडलों को एक पर दे दिया है, जो आए दिन सपने देखती रहती हैं।


02 - 09 दिसंबर 2018

गुड न्यूज

सभी थर्मल प्लांट में पराली से बिजली बनेगी

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प्रदूषण को कम करने के लिए देश के सभी थर्मल पावर प्लांट में कोयला के साथ बायोमास पैलेट्स (पराली) मिलाए जाएंगे पावर स्टेशनों में पांच फीसदी पराली से बनने वाले पैलट्स े इस्तेमाल करने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए एनटीपीसी दिसंबर के दूसरे सप्ताह में पराली के पैलेट्स के लिए टेंडर जारी कर सकता है। विद्युत मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अगले साल देश के सभी थर्मल पावर प्लांट में कोयला के साथ पांच फीसदी बायोमास पैलेट्स मिलाना शुरू कर दिया जाएगा।

एनटीपीसी दादरी में प्रयोग सफल

राली जलाने से होने वाले पर्यावरण नुकसान को रोकने के लिए अब पराली का इस्तेमाल बिजली पैदा करने में होगी। यह पहल देश में बिजली पैदा करने वाली सबसे बड़ी सार्वजनिक इकाई नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) ने की

है। एनटीपीसी ने जो योजना तैयार की है कि उसमें प्रदूषण को कम करने के लिए देश के सभी थर्मल पावर प्लांट में कोयला के साथ बायोमास पैलट्स े (पराली) मिलाए जाएंग।े हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के बाद केंद्र सरकार ने दूसरे प्रदेशों में भी थर्मल

एनटीपीसी दादरी में सात फीसदी तक कोयला के साथ बायोमास पैलेट्स मिलाना सफल रहा है। इससे पावर प्लांट की सुरक्षा और क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा।

8 हजार मेगावाट उत्पादन बढ़ेगा

देश में होने वाली पराली से पैलेट्स तैयार कर हर साल आठ हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन

किया जा सकता है। आंकड़ो के मुताबिक, देश में हर साल चार करोड़ मीट्रिक टन पराली जलाई जाती है।

पराली की बिजली महंगी

थर्मल पावर प्लांट में कोयला के साथ बायोमास पैलेट्स मिलाने से बिजली उत्पादन दर में वृद्धि तो हो सकती है, पर कोयला के साथ पराली से बनाए जाने वाले बायोमास पैलेट्स मिलाकर बनने वाली बिजली की दर सात रुपए प्रति यूनिट तक हो जाएगी। एनटीपीसी के एक अधिकारी ने बताया कि कोयला से बनने वाली बिजली की उत्पादन दर तीन से चार रुपए प्रति यूनिट आती है।

कई फायदे

पराली से बायोमास पैलेट्स तैयार कर थर्मल पावर प्लांट में कोयला के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने से जहां प्रदूषण में कमी आएगी, वहीं किसानों को अतिरिक्त आमदनी होगी। किसान अतिरिक्त पराली को खेतों में जलाने के बजाए उसे बेच कर अतिरिक्त आय कर सकते हैं। वहीं बिजलीघरों में पैलेट्स तैयार करने के लिए नए उद्योग लगेंगे। इससे रोजगार के मौके भी पैदा होंगे। (एजेंसी)

खिंचने पर बिजली पैदा करने वाला मैटीरियल विकसित

वैज्ञानिकों ने एक ऐसा पतला और लचीला मैटीरियल विकसित करने में सफलता हासिल की है, जो खिंचने और सिकुड़ने पर बिजली पैदा करता है

का

फी समय तक पीजो-इलेक्ट्रिक प्रभाव को केवल क्रिस्टल के लिए जाना जाता था। चूंकि ये भारी और कठोर होते हैं, इसीलिए इस प्रभाव का प्रयोग कुछ ही कार्यों में किया जा सकता है। पर वैज्ञानिकों ने एक ऐसा पतला और लचीला मैटीरियल विकसित करने में सफलता हासिल की है, जो खिंचने और सिकुड़ने पर बिजली उत्पन्न करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस खोज का लाभ भविष्य में स्मार्ट कपड़े और स्व-संचालित पेसमेकर बनाने में मिल सकता है। आंतरिक ध्रुवीकरण से करेंट विशेष रूप से डिजाइन किए गए इस रबड़ को स्विस फेडरल लैब्रटॉरीस फॉर मैटीरियल्स साइंस एंड टेक्नोलॉजी (ईएमपीए) के शोधकर्ताओं ने तैयार किया है जो यांत्रिक गति को विद्युत प्रभार में परिवर्तित करता

है। वैज्ञानिकों ने इसकी कार्यप्रणाली के बारे में बताया कि जब इस रबड़ फिल्म पर यंत्रवत रूप से खिंचाव पड़ता है तो आंतरिक ध्रुवीकरण के कारण करेंट उत्पन्न होता है। इस प्रभाव का प्रयोग एनलॉग रिकार्ड प्लेयर्स में साउंड पिकअप के लिए किया जाता है। उदाहरण के तौर पर सुई को खांचे के माध्यम से इस तरह से गाइड किया जाता है, जिससे मेकैनिकल वाइब्रेशन (कंपन) उत्पन्न हों। एक पीजोइलेक्ट्रिक क्रिस्टल में इन कंपन को इलेक्ट्रिकल इंपल्सेस (विद्युत संवेग) में परिवर्तित कर देता है, जिसे बार-बार बढ़ाया जा सकता है और ध्वनि तरंगों में परिवर्तित किया जा सकता है। काफी समय तक पीजोइलेक्ट्रिक प्रभाव को केवल क्रिस्टल के लिए जाना जाता था। चूंकि ये भारी

और कठोर होते हैं, इसीलिए इस प्रभाव का प्रयोग कुछ ही कार्यों में किया जा सकता है। हालांकि अब शोधकर्ताओं ने इलास्टोमर्स पीजोइलेक्ट्रिक गुणों को देने में सफलता हासिल कर ली है।

कई इस्तेमाल

वैज्ञानिकों द्वारा तैयार कंपोसिट मैटीरियल पोलर नैनोपार्टिकल्स और सिलिकॉन में एक इलस्टोमरप्रोटोटाइप से बना है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसे दबाव के सेंसर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसकी मदद से रोबोट की त्वचा तैयार

की जा सकेगी, जिससे वे छूने का अहसास कर सकेंगे। ईएमपीए में शोधकर्ता डोरीना ओपरिस के मुताबिक, यह मैटीरियल मानव शरीर से ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता रखता है। इसे आप अपने हृदय के पास लगा सकते हैं, जिससे दिल के धड़कने से बिजली पैदा हो सकेगी। यह सिर्फ एक उदाहरण है। इसका और भी कई तरह से प्रयोग किया जा सकता है। इससे ऐसा पेसमेकर या शरीर के अंतर लगने वाले उपकरण बनाए जा सकते हैं, जिनमें बार-बार बैट्री बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। (एजेंसी)


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विज्ञान

02 - 09 दिसंबर 2018

भूगर्भीय हलचल से दुनिया को मिला सोना स्पेन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि वे सोने की उत्पत्ति का राज सुलझाने के बेहद करीब पहुंच गए हैं

खास बातें स्वर्ण धातु की खोज करीब 5,000 साल पहले हुई थी सोना धरती के सबसे गहरे क्षेत्र से पृथ्वी की सतह पर आया पृथ्वी की आंतरिक संरचना को लेकर भी नए वैज्ञानिक दावे

मैंटल का फैलाव

दु

एसएसबी ब्यूरो

निया की सबसे बहुमूल्य धातुओं में से एक है सोना। वैज्ञानिकों और इतिहासकारों का मानना है कि स्वर्ण धरती पर खोजे गए सबसे पुरानी धातुओं में से एक है। इसकी खोज करीब 5,000 साल पहले हुई थी, इसके बावजूद प्राचीनकाल से आज तक वैज्ञानिक इसकी उत्पत्ति के रहस्य पर से पर्दा नहीं उठा सके हैं। वहीं, यह भी नहीं जान सके हैं कि यह धरती की सतह पर कैसे आया क्योंकि यह तो धरती के अंदर पाया जाता है। अब स्पेन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि वे इसकी उत्पत्ति का राज सुलझाने के बेहद करीब पहुंच गए हैं। साथ ही यह भी पता लगा लिया है कि यह धरती की सतह पर कैसे आया। उन्होंने बताया कि सोना धरती के सबसे गहरे क्षेत्र से इसकी सतह पर आया है। जमीन के आंतरिक हिस्से में हलचल से सोना सतह पर आया है।

शोधकर्ताओं को मिले साक्ष्य

स्पेन में यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रेनेडा के शोधकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि धरती के सबसे गहरे क्षेत्रों से ही सोना सतह पर आया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, धरती की आंतरिक हलचल के कारण सोना धीरे-धीरे सतह तक आया। शोधकर्ताओं को अर्जेंटीना पैटागोनिया में इस प्रक्रिया के साक्ष्य भी मिले हैं, जो इसके अलावा दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के नीचे खासतौर पर 70 किलोमीटर की गहराई पर पाए जाने वाले सोने के पहले रजिस्टर का प्रतिनिधित्व करते हैं।

धरती की आंतरिक संरचना

वैज्ञानिकों ने धरती की आंतरिक संरचना को तीन परतों में विभाजित किया है। सबसे ऊपरी भाग क्रस्ट, मध्यवर्ती हिस्सा मैंटल और सबसे आंतरिक या गहराई वाली जगह कोर। यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रेनेडा की जोस मारिया गोंजालेज ज ि मे ने ज के मुताबिक,

हमारी अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले खनिज हमें धरती की सबसे ऊपरी सतह क्रस्ट से मिलते हैं। हालांकि हम उनका पूरा लाभ उठाते हैं, इसके बावजूद उनकी उत्पत्ति के बारे में बहुत कम जानते हैं। इसकी खोज शोधार्थियों को एक से दूसरे स्थान पर जाने के लिए प्रेरित करती है, यहां तक कि इसके लिए युद्ध भी होते हैं, लेकिन इसकी उत्पत्ति आज तक एक सवाल ही है।

सोने से जुड़े रोचक तथ्य

धरती का 80 फीसद सोना अभी भी जमीन के नीचे ही दफन है। समुद्र में इतना सोना है कि अगर सारा निकाल लिया जाए तो हर इंसान के पास चार किलो सोना होगा।

सोना और कॉपर सबसे पहले खोजी गईं धातुएं हैं। इन्हें करीब पांच हजार साल पहले खोजा गया था।

दुनियाभर के वैज्ञानिक मानते हैं कि सोना सिर्फ धरती पर ही नहीं बल्कि बुध, मंगल और शुक्र ग्रह पर भी मिल सकता है।

सोने का सबसे बड़ा टुकड़ा पांच फरवरी 1869 को ऑस्ट्रेलिया में मिला था। यह लगभग 69 किलो का शुद्ध सोने का टुकड़ा है और यह जमीन से केवल दो इंच नीचे मिला था। सोना हमारी त्वचा के लिए भी फायदेमंद होता है। सोने के गहने पहनने से त्वचा की डेड सेल्स खत्म हो जाती हैं।

पूरी दुनिया में सोने की सबसे ज्यादा खपत भारत में होती है, लेकिन दुनिया के कुल सोने के उत्पादन का केवल 2 फीसद ही भारत में होता है।

धरती की बीच की परत मैंटल इसे इसके केंद्र से अलग करती है। यह समुद्र के 17 किलोमीटर से 70 किलोमीटर नीचे तक फैली हुई है। बकौल मारिया, चूंकि हमारे पास इस स्थान तक पहुंचने का कोई साधन नहीं है, इसीलिए यह जगह मनुष्यों की पहुंच से बाहर है। इसी वजह से हम प्रत्यक्ष रूप से इसके बारे में अभी तक नहीं जानते हैं।

ज्वालामुखी विस्फोट का अध्ययन

ज्वालामुखी के विस्फोट छोटे-छोटे टुकड़ों या एक्सनोलिथ्स को नीचे से सतह पर लेकर आते हैं। ये दुर्लभ एक्सनोलिथ्स ही हैं, जिनका अध्ययन कर शोधकर्ता धरती के आंतरिक रहस्यों को जानने का प्रयास करते हैं। नवीन शोध में इन्हीं में शोधकर्ताओं को बहुत छोटे सोने के कण मिले हैं, जिनकी मोटाई मनुष्यों के बाल के बराबर है और जिनकी उत्पत्ति गहरे मैंटल में हुई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस शोध का फोकस अर्जेंटीना पैटागोनिया पर था, जो कि धरती पर सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय प्रांतों में से एक है और जिसकी सोने की खानों से आज भी सोना निकाला जा रहा है। चूंकि इस स्थान के क्रस्ट पर सोने की मात्रा बहुत अधिक है, इसीलिए शोधकर्ता इस बात को जानने का प्रयास कर रहे थे कि कुछ स्थानों पर ही सोने का जमाव इतनी अधिक मात्रा में क्यों है। उनकी परिकल्पना है कि उस क्षेत्र का आंतरिक आवरण अद्वितीय है। यह स्थान अपने इतिहास के कारण सोने की इतनी अधिक मात्रा देने की प्रवृत्ति रखता है। शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन का निष्कर्ष खनिज पदार्थों के जमावड़े पर नया प्रकाश डालने में मदद करेगा। उनका मनाना है कि इस शोध के जरिए न केवल वे इस बात को जानने के करीब पहुंच गए हैं कि सोने की उत्पत्ति कैसे हुई, बल्कि इससे क्रस्ट के बारे में भी कई रहस्यों पर से पर्दा उठ सकेगा।


02 - 09 दिसंबर 2018

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सेवा

बेघरों और अशक्तों का 'गुरुकुल'

अर्थ सेवियर्स फाउंडेशन एक ऐसा गुरुकुल है जो कई बेघरों का स्थाई ठिकाना है। गुरुग्राम के बाहरी इलाके में बसा यह गुरुकुल अशक्तों की सबसे बड़ी ताकत है

खास बातें

450 बेसहारा लाेग दो एकड़ में बसे गुरुकुल में रहते हैं गुरुकुल की स्थापना रवि कालरा ने 2008 में की थी 49 वर्षीय कालरा पहले एक मार्शल आर्टिस्ट थे

मुदिता गिरोत्रा

ब मानसिक रूप से अशक्त रिंकू की देखभाल उसकी अकेली मां (सिंगल मदर) नहीं कर पाई तो वह उसे भारत के सबसे तेजी से उभरते शहर और चमकदार शीशे से लैस सैकड़ों बहुराष्ट्रीय कंपनी के ठिकाने गुरुग्राम के बाहरी क्षेत्र में स्थित बंधवाड़ी गांव के एक बेघर आश्रयगृह ले गई। जब छह माह की गर्भवती सरिता देवी को उसके पति ने ठुकरा दिया, तो उसे भी एक अदालत ने सभी के लिए खुले इसी आश्रयगृह में भेजा था। अब दोनों के पास न केवल अपना एक घर है, बल्कि अर्थ सेवियर्स फाउंडेशन (ईएसएफ) में अपना एक नया परिवार भी है। ईएसएफ को गुरुकुल भी कहा जाता है। मानसिक रूप से कमजोर 300 लोगों समेत उनके जैसे 450 बेघर भी गुरुग्राम की चमक-धमक से दूर यहां दो एकड़ में बसे गुरुकुल में रहते हैं। इस गुरुकुल की स्थापना रवि कालरा (49) ने 2008 में की थी, जोकि पहले एक मार्शल आर्टिस्ट थे। यहां पहुंचने के लिए संकरे और उबड़-खाबड़ रास्ते को पार करना पड़ता है। दिल्ली में पुलिस इंस्पेक्टर रहे अपने पिता के सख्त आचरण से प्रभावित कालरा ने ताइक्वांडो

गुरुकुल में, सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक एक डॉक्टर और तीन नर्स रहती हैं। यहां 450 निवासी पांच शयनगारों में रहते हैं, जिनमें से तीन महिलाओं और दो पुरुषों को लिए आवंटित हैं सीखी है। पैसे कमाने के बाद, उन्होंने 'सेवा' के माध्यम से इसे समाज को लौटाने का मना बनाया। वह हमेशा से जरूरतमंदों के जीवनस्तर को उठाने के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्हें उनकी राह तब मिली जब उन्होंने एक भिखाड़ी के बच्चे को दिल्ली के एक व्यस्त सड़क पर कूड़ा उठाते देखा। उन्होंने कहा, ‘मैंने महसूस किया कि अगर मैं समाज के लिए कुछ अच्छा नहीं करूंगा तो.. अपने पैसे का तिरस्कार करूंगा। उसी समय मैंने सभी कुछ छोड़ने और अपनी जिंदगी को सेवा के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया।’ उन्होंने कहा, ‘घटना के कुछ महीनों बाद, मैंने अपना संगठन शुरू किया और उसके बाद मैंने ठुकराए गए वरिष्ठ नागरिकों, शारीरिक और मानसिक रूप से अशक्त, पीड़ित महिलाएं और असाध्य बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।’ इसी वजह से इस गुरुकुल में रिंकू जैसा मानसिक रूप से अशक्त और सरिता जैसी बेघर

महिला रह पा रही है। जब रिंकू से उसके परिवार के बारे में पूछा गया तो उसने आनंद राव की ओर प्यार भरा इशारा किया। राव खुद ही शारीरिक रूप से अशक्त हैं, लेकिन रिंकू की देखभाल अपने बेटे की तरह करते हैं। राव ने कहा, ‘हम यहां इसी तरह से कार्य करते हैं। यहां सभी का कोई न कोई दोस्त या साथी है जो उसकी देखभाल कर सके।’ गुरुकुल में, सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक एक डॉक्टर और तीन नर्स रहती हैं। यहां 450 निवासी पांच शयनगारों में रहते हैं, जिनमें से तीन महिलाओं और दो पुरुषों को लिए आवंटित हैं। यहां मनोरंजन के लिए टीवी, किताब, अखबार और कैरम बोर्ड की भी सुविधाएं हैं। अनाथ सरिता को उसके पति ने छोड़ दिया था। जब वह पहली बार आश्रयगृह आई थी तब वह काफी डरी हुई थी। उसने कहा, ‘मैंने सोचा मैं कैसे इस पागलघर में रहूंगी, लेकिन मेरे पास यहां के अलावा और कहीं जाने का विकल्प नहीं था। मैं अब इसके बारे में बहुत अलग सोचती

हूं।’ सरिता ने कहा, ‘ये लोग अब मेरा परिवार बन गए हैं। मेरे पति मुझे वापस बुलाना चाहते हैं, लेकिन मैं अब उनके साथ नहीं जाना चाहती हूं।’ सरिता पहले एक घरेलू कामवाली थी और अब फाउंडेशन में एक कार्यकर्ता की तरह काम करती है। अर्थ सर्वाइवर फाउंडेशन (ईएसएफ) बिना किसी सरकारी सहायता के चलाया जा रहा है। यहां रहने वाले 450 लोगों के लिए पर्याप्त बिछावन भी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद यहां के दरवाजे हमेशा बेघरों के लिए खुले रहते हैं। संस्था के संस्थापक को भी यहां तक के सफर के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कालरा ने 15-20 लोगों के साथ दक्षिण दिल्ली के वसंतकुंज इलाके में अपनी सेवा शुरू की थी। उन्होंने कहा, ‘उस जगह आग लग गई और हमें राजौरी गार्डन में कहीं और जाना पड़ा। हमारे वहां के केंद्र में पानी भर गया और हमें बंधवाड़ी आने से पहले कई जगहों को बदलना पड़ा। यहां मेरी अपनी जमीन थी।’ उन्होंने कहा, ‘गांव के लोगों ने शुरुआत में यह सोच कर इसकी इजाजत नहीं दी कि हम यहां पागल लोगों को ला रहे हैं। बाद में वह समझ गए कि हम अच्छा काम करने जा रहे हैं। आज गांव में सभी कोई इस जगह के बारे में जानता है।’ गुरुकुल में बीते तीन साल से रह रहे हर्ष गौतम एक दिव्यांग हैं। इसके बावजूद कालरा की अनुपस्थिति में वह संस्था के प्रशासनिक कार्यो को संभालते हैं। गौतम को गैंग्रीन की वजह से अपने पैर गंवाने पड़े थे। गौतम ने कहा, ‘मैंने इलाज में निजी सुरक्षा अधिकारी के तौर पर कमाए सारे रुपए फूंक दिए। गुरुकुल के लोगों ने मुझे सफदरजंग अस्पताल के बाहर से उठाया, जहां से मेरे पास जाने के लिए और कोई जगह नहीं था।’ गौतम ने कहा कि संस्था ने अब तक 5,000 लावारिश शवों का अंतिम संस्कार किया है।


16 खुला मंच

02 - 09 दिसंबर 2018

यदि तुम किसी का चरित्र जानना चाहते हो तो उसके महान कार्य न देखो, बल्कि उसके जीवन के साधारण कार्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करो

अभिमत

- महर्षि अरविंद

दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा वेतनवृद्धि भारत में

अरविंद मोहन

चार दशकों से पत्रकारिता के साथ विभिन्न जन-आंदोलनों से संबंध

ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया

राजेंद्र बाबू में सीखने-समझने और उन बातों को आचरण में उतारने की क्षमता शायद औरों से ज्यादा थी। गांधी जी के संपर्क और दस महीने साथ काम करने के अनुभव ने राजेंद्र प्रसाद का जीवन सदा के लिए बदल दिया

कमजोर वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को झुठलाते हुए रोजगार और वेतनवृद्धि के मामले में भारत कई देशों से बहुत आगे है

रो

जगार के अवसर और वेतन वृद्धि के मोर्चे पर भारत दक्षिण एशिया में सबसे बेहतर देश के रूप में उभरा है। एक तरफ रोजगार के अपार अवसर पैदा हो रहे हैं तो दूसरी तरफ वेतनवृद्धि भी ज्यादा हो रही है। यह खबर इस तथ्य की तरफ संकते है कि सरकार ने युवाओं के लिए रोजगार के मोर्चे पर गंभीरता से काम किया है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा औसत वेतनवृद्धि भारत में हुई है। आईएलओ की ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार दक्षिण एशिया में औसत वास्तविक वेतनवृद्धि जहां 3.7 प्रतिशत रही, वहीं भारत में औसत वास्तविक वेतनवृद्धि 5.5 प्रतिशत रही। भारत के साथ चीन, थाईलैंड और वियतनाम जैसे एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों में वास्तविक मजदूरी में अन्य क्षेत्रों की तुलना में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है। आईएलओ ने यह रिपोर्ट 136 देशों में वेतन की स्थिति के अध्ययन के बाद जारी की है। इसी वर्ष सितंबर महीने में लोगों को पिछले 12 महीने में सबसे अधिक नौकरियां मिली हैं। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के मुताबिक, इस साल सितंबर में 9.73 लाख लोगों को रोजगार मिला है। यह सितंबर 2017 के बाद किसी एक माह में दिए गए रोजगारों की संख्या में सबसे ज्यादा है। अगर ईपीएफओ द्वारा सितंबर 2017 से सितंबर 2018 की अवधि के आंकड़ो नजर डालें तो इस दौरान कुल 79.48 लाख लोगों को भविष्य निधि सामाजिक सुरक्षा योजना के साथ जोड़ा गया। इस तरह इस दौरान 79.48 लाख लोगों को रोजगार मिला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेततृ ्व में देश में अर्थव्यवस्था मजबूत होने के साथ ही कारोबारी माहौल भी अच्छा हुआ है। यही कारण है कि युवाओं को नौकरी के अवसरों में बढ़ोत्तरी हो रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि यंग टैलटें यानी फ्श रे र्स से 3 वर्ष तक के अनुभवी युवाओं की हायरिंग में सबसे अधिक 13 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। सितंबर के महीने में पिछले वर्ष की तुलना में रोजगार के अवसरों में कुल 9 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। ऑटो और बीमा सेक्टर में रोजगार में सबसे अधिक वृद्धि दिखाई दी है और आने वाले महीनों में इसके और बढ़ने की उम्मीद जताई गई है। जाहिर है आने वाले दिन रोजगार की तलाश कर रहे युवाओं के लिए और बेहतर होंग।े उन्हें बेहतर नौकरी के साथ ज्यादा वेतनवृद्धि के अवसर प्राप्त होंगे।

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(उत्तर प्रदेश)

डॉ. राजेंद्र प्रसाद जयंती (03 दिसंबर) पर विशेष

लाई लामा मानते हैं कि राजेंद्र बाबू महात्मा बुद्ध के अवतार थे। हम ऐसा मानें न मानें पर अपने व्यवहार के चलते काफी सारे भारतीय भी उनको ‘देवता’ कहते थे। बिहार में और खासकर भोजपुरी भाषी समाज में देवता कहना आदर देने का एक तरीका भी है। अपने ज्ञान, मर्यादापूर्ण व्यवहार, अहंकार रहित आचरण, सादगी और सरलता के लिए विख्यात राजेंद्र प्रसाद सही मायनों में चंपारण सत्याग्रह की पैदाइश थे और जिस तरह पारस के संपर्क में आकर लोहा सोना बन जाता है, गांधी जी के संपर्क और दस महीने साथ काम करने के अनुभव ने राजेंद्र प्रसाद का जीवन सदा के लिए बदल दिया। राजेंद्र बाबू में सीखने-समझने और उन बातों को आचरण में उतारने की क्षमता शायद औरों से ज्यादा थी, इसीलिए वे राष्ट्रपति के पद तक गए और लगातार दो कार्यकाल पूरा किया। राष्ट्रपति भवन के बाद ‘ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया’ को सार्थक करते हुए, वे वापस पुरानी स्थिति में ही पटना के सदाकत आश्रम में लौट गए। चंपारण से राजेंद्र प्रसाद का रिश्ता राष्ट्रपति भवन से ज्यादा गहरा था, क्योंकि वे न सिर्फ आंदोलन में लगे रहे, पूरा समय दिया, उसके बाद गांधी जी के कहे और अपने विवेक से सामाजिक-राजनीतिक काम करते रहे, पर चंपारण उनके मन से कभी नहीं निकला। खुद दो किताबें लिखने, उनका बार-बार संशोधित संस्करण तैयार कराने के अलावा उन्होंने अपनी आत्मकथा समेत अन्य चार किताबों में चंपारण और गांधी जी से अपने रिश्तों पर

विस्तार से लिखा। उनकी पहल पर ही प्रसिद्ध इतिहासकार बी.बी. मिश्र ने चंपारण आंदोलन से संबधि ं त दस्तावेजों की भारी-भरकम किताब तैयार की। गांधी जी के जीवनीकार बीजी तेंदल ु कर ने भी उनकी पहल पर ही चंपारण आंदोलन पर एक अच्छी किताब लिखी है। जब वे गांधी जी के आंदोलन में साझीदार बनने के लिए पहली बार चंपारण आए तब उनकी उम्र 32 पार कर गई थी। तब तक वे कलकत्ता विश्वविद्यालय में दो बार टॉप करने (इंटर और बीए में), अपने परीक्षक से अपूर्व टिप्पणी पाने (कहा जाता है कि उनके परीक्षक ने उनकी कॉपी पर लिखा था-एक्जामिनी इज बेटर दैन द एक्जामिनर) और अपनी अकादमिक उपलब्धियों के लिए सारे बिहारी नौजवानों के लिए क्रेज बन चुके थे। वकालत में भी उन्होंने कम समय में ही अच्छी जगह बना ली थी और जब पटना में हाई कोर्ट बना तब वे उन प्रमुख बिहारी वकीलों में थे, जो पटना आ गए। उनकी गिनती और फीस (जिसकी जानकारी पाकर गांधी जी भी हैरान हुए थे) शीर्ष के वकीलों में थी। कलकत्ता की जिस बैठक के बाद गांधी जी चंपारण के लिए रवाना हुए, उसमें राजेंद्र प्रसाद भी थे पर वहां से वे पुरी चले गए थे। गांधी जी से उनकी वहां कोई बात नहीं हुई थी और उन्होंने बिहार जाने की चर्चा भी सबसे नहीं की थी। राजकुमार शुक्ल ने भी कुछ नहीं बताया था और उन्हें यह भी मालूम न था कि राजेंद्र बाबू पटना नहीं जा रहे हैं। यही कारण था कि वे गांधी जी को लिए हुए 10 अप्रैल

राष्ट्रपति भवन के बाद ‘ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया’ को सार्थक करते हुए वे वापस पुरानी स्थिति में ही पटना के सदाकत आश्रम में वापस लौट गए


02 - 09 दिसंबर 2018 1917 को राजेंद्र प्रसाद के घर पर ही पहुंचे थे और वहां के नौकरों ने इन दोनों को किसान मुवक्किल मानकर अच्छा बर्ताव नहीं किया। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में इस प्रसंग को विस्तार से लिखा है। बाद में चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी और उनका साथ किस तरह रहा और वे किस तरह वहां बापू के सबसे विश्वसनीय लोगों में से थे, यह तथ्य आज एक प्रेरक इतिहास के रूप में सबके सामने है। जो बात उल्ख ले नीय है, वह यह कि जब गांधी जी को चंपारण निलहों का अत्याचार और उसका प्रतीक बन गई तिनकठिया खेती का अंत दिखने लगा तब उन्होंने रचनात्मक कार्यों की तरफ ध्यान देना शुरू किया। पर उस काम के लिए उन्होंने एकदम नए तरह के कार्यकर्ता बुलाए क्योंकि तब बिहार में कांग्रेस के पास एक भी पूर्णकालिक कार्यकर्ता न था और जो लोग कांग्रेस के नाम से सक्रिय थे उनको रचनात्मक कामों का कोई अनुभव न था। गांधी जी सफाई, स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ खादी, हस्तशिल्प और ग्रामोद्योग ही नहीं, खेती-बागवानी और पशुपालन का प्रयोग भी करना चाहते थे। सो, जब चंपारण कमेटी की रिपोर्ट आई तो राजेंद्र बाबू को छोड़कर ज्यादातर वकील सहयोगियों को उनके काम पर लौट जाने को कहा गया। सिर्फ बाबू धरणीधर रुके क्योंकि बिहारी कार्यकर्ताओं को यह उचित नहीं लग रहा था कि बाहर वाले आकर उनके इलाके में टट्टी साफ करने से लेकर हर तरह के काम करें और हम लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। सो गांधी जी ने उन्हें अध्यापन का काम दिया। कुछ समय तक कृपलानी जी ने भी वहां अध्यापन किया। इस दौर में गांधी जी ज्यादा बाहर रहने लगे थे। सो मोतिहारी से सारे कामकाज की देखरेख और कार्यकर्ताओं के गुजारे के लिए मानधन देने वगैरह का काम राजेंद्र बाबू के पास रहा। जब गांधी जी अहमदाबाद के मजदूरों और खेड़ा के किसानों की बार-बार की बुलाहट पर चंपराण से निकले तो राजेंद्र बाबू भी पटना आकर अपनी वकालत संभालने लगे। मगर उन्हें चंपारण के स्कूलों की चिंता रही। इस तरह चंपारण उनके मन में सदा रहा और एक बार वे यहां से चुनाव भी लड़े। रिश्तेदारियों का न्योता और हर राजनैतिक कार्यक्रम में आने का अवसर वे तलाशते रहते थे। राजकुमार शुक्ल के श्राद्ध जैसे आयोजनों में भी उन्होंने भागीदारी की। बाद में वे क्या-क्या बने और उन्होंने क्या-क्या काम किए, यह तो कई ग्रंथों में समेटने वाला किस्सा है। पर यह साफ है कि चंपारण आंदोलन ने राजेंद्र प्रसाद को बिहार और देश की राजनीति के साथ ही गांधी जी के मन के उस पायदान पर खड़ा कर दिया कि उनको ऊपर ही ऊपर होना था और उनकी काबलियत, समाज सेवा की भावना और निष्ठा का स्तर इतना बड़ा होता गया कि सारे पद उनके आगे छोटे लगने लगे। खराब स्वास्थ्य से उठकर उन्होंने 1934 के भूकपं में जिस पैमाने पर और जिस कुशलता से गैर-सरकारी स्तर पर राहत और पुनर्वास का काम चलवाया, उसने उनका यश काफी फल ै ाया। उत्तर बिहार में 1934 की 15 जनवरी को बहुत बड़ा भूकपं आया था। उनके नेततृ ्व में राहत समिति बनी। करीब तीस लाख रुपए चंदे से जुटाए गए और इतने ही मूल्य के कंबल और दूसरी जरूरी चीजें जमा की गईं। देशभर से सहायता आई और गांधी जी समेत सारे नेता आए। इसकी सारी दुनिया में तारीफ हुई और पूरा काम सरकारी मदद के बिना हुआ।

भारत डोगरा

पर्यावरणीय हित और अहिंसक मूल्यबोध के साथ लंबे समय से सक्रिय वरिष्ठ लेखक

खुला मंच

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ल​ीक से परे

टॉल्सटॉय को याद करना क्यों जरूरी?

टॉल्सटॉय ने अपने अंतिम दिनों में लोकशिक्षण के लिए जो निबंध, नाटक व कहानियां लिखे उनमें उन्होंने समतावादी ग्रामीण समाज को बहुत प्रतिष्ठित किया

दु

निया की अनेक बुनियादी समस्याओं के समाधान प्राप्त करने के लिए 21वीं शताब्दी में महात्मा गांधी के विचारों को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पर एक ऐसे विचारक भी थे, जिन्हें महात्मा गांधी भी अपना गुरु मानते थे और गांधी जी के जिस जीवन दर्शन को आज बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, उसे अपनाने में उन्हें इस विचारक से बहुत प्रेरणा मिली थी। ये विचारक व दार्शनिक थे लियो टॉल्सटॉय। विश्व स्तर पर उन्हें सबसे अधिक ख्याति अपने उपन्यासों ‘वार एंड पीस’ व ‘एना केरानीना’ से मिली और इसमें कोई संदहे नहीं कि ये महान साहित्यिक उपलब्धियां हैं। पर टॉल्सटॉय अपने जीवन में आगे बढ़ने पर स्वयं इन जीनियस उपलब्धियों को कम महत्व देने लगे थे व उनके लिए बाद के दिनों में लिखे गए नीति निबंध, कहानियां व नाटक अधिक महत्वपूर्ण होते गए जो उन्होंने विश्व में बुनियादी सामाजिक बदलाव लाने के लिए लोक-शिक्षण की दृष्टि से लिखे। यह बहुत कम लोगों को पता है कि इनमें से अनेक कहानियों का हिंदी अनुवाद अपने लेखन के आरंभिक दिनों में मुश ं ी प्रेमचंद ने स्वयं

किया। गांधी जी की तरह प्रेमचंद भी टॉल्सटॉय से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने टॉल्सटॉय की 23 नीति कथाओं का भारतीय परिवेश के अनुसार रूपांतर कर ‘प्रेम प्रभाकर’ के नाम से प्रकाशित करवाया था। अमृत राय ने ‘कलम का सिपाही’ में लिखा है कि अपनी कुछ ‘सेवामार्ग’ व ‘उपदेश’ जैसी नीति कथाएं भी उन्होंने टॉल्सटॉय के प्रभाव में लिखी थीं और लेखनी व जीवन दोनों में अनेक सदगुणों को टॉल्सटॉय की प्रेरणा से प्राप्त किया था। इससे भी पहले महात्मा गांधी ने टॉल्सटॉय की नैतिक कथाओं का अनुवाद गुजराती में किया था। महात्मा गांधी पहले तो टॉल्सटॉय के लेखन से बहुत प्रभावित हुए व फिर उन्होंने आगे मार्गदर्शन के लिए टॉल्सटॉय को दक्षिण अफ्रीका से एक पत्र

गांधी जी की तरह प्रेमचंद भी टॉल्सटॉय से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने टॉल्सटॉय की 23 नीति कथाओं का भारतीय परिवेश के अनुसार रूपांतर कर ‘प्रेम प्रभाकर’ के नाम से प्रकाशित करवाया था

लिखा। उस समय टॉल्सटॉय बहुत वृद्ध हो चुके थे व कठिन स्थितियों से गुजर रहे थे। इसके बावजूद उन्होंने गांधी जी को उत्तर में विस्तृत पत्र लिखा। यह एक बहुत महत्वपूर्ण पत्र है जिसका गांधी जी पर गहरा असर हुआ। उन्होंने सही जीवनमार्ग की तलाश में आश्रम विकसित किया तो इसका नाम टॉल्सटॉय के सम्मान में ही रखा। टॉल्सटॉय ने अपने अंतिम दिनों में लोकशिक्षण के लिए जो निबंध, नाटक व कहानियां लिखीं उनमें उन्होंने समतावादी ग्रामीण समाज को बहुत प्रतिष्ठित किया। जहां उस समय साम्यवादियों का झुकाव शहरों व औद्योगिक मजदूरों में क्रांति लाने की ओर था, वहां टॉल्सटॉय ने इससे हटकर ग्रामीण जीवन को प्रतिष्ठित किया पर साथ में इसे समतावादी बनाने के लिए बहुत जोर दिया। उनका मानना था कि जमींदारों को अपनी भूमि उन मेहनतकश किसानों व खेत मजदूरों को देनी चाहिए जो इस भूमि पर मेहनत करते रहे हैं व इसके वास्तविक हकदार हैं। इस तरह के समतावादी विचारों के लिए वे अपने अभिजात सामंती वर्ग के विरोध में खड़े नजर आए। उन्होंने इस समतावादी ग्रामीण समाज के समर्थन में ईसाई धार्मिक विचारों की अपने ढंग से व्याख्या की जिसके कारण चर्च के बड़े मठाधिपति भी उनके विरुद्ध हो गए। टॉल्सटॉय ने सभी तरह के नशे का बहुत मौलिक ढंग से विरोध किया जो आज भी नशा विरोधी आंदोलनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने ऐसे बुनियादी सवाल उठाए कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में लोग नशा क्यों करते हैं। उन्होंने युद्ध व पूरी सैन्य व्यवस्थाओं का भरपूर विरोध किया और दुनिया से युद्ध को सदा के लिए समाप्त करने के लिए लोगों को कहा। अमनशांति चाहने वालों पर उनके विचारों का गहरा असर पड़ा। सभी तरह के भोग विलास, उपभोक्तावाद, फिजूलखर्ची का टॉल्सटॉय ने अपने जीवन के दूसरे भाग में जमकर विरोध किया। अपने जीवन के पहले भाग में टॉल्सटॉय ने भोग-विलासिता ऐंद्रिक सुख खूब भोगे थे व युद्ध में भागीदारी भी की थी, पर इसको नजदीक से देखने के बाद वे इन प्रवृतियों के जबरदस्त विरोधी के रूप में उभरे। दुर्भाग्यवश उनके परिवार और रिश्तेदारों ने यह बदलाव स्वीकार नहीं किया व वे निरंतर अकेले पड़ते गए। अनेक संकटों से बाहर निकलने की राह तलाश रही दुनिया के लिए टॉल्सटॉय के विचार महत्वपूर्ण हैं।


18 मेला जिसमें दिखता है पूरा गांव फोटो फीचर

02 - 09 दिसंबर 2018

बाजारवाद के दौर में सोनपुर मेला आज भी आकर्षण का केंद्र है। राहुल सांकतृ ्यायन से लेकर आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री तक इस मेले के आकर्षण नहीं बच सके। शास्त्री जी ने मेले पर लंबी कविता लिखी तो राहुल सांकतृ ्यायन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘वोल्गा से गंगा तक’ में इसकी चर्चा की। गांव की तरह दिखने वाले इस मेले में लोग अपने लिए छोटी- छोटी खुशियां खरीदते हैं, लेकिन इस बार मेले में लोगों को स्वच्छता का पाठ स्वयं सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने पढ़ाया। डा. पाठक ने बाबा हरिहर नाथ की पूजा-अर्चना की, कार्तिक स्नान के साथ मेले को ‘वाटर एटीएम’ का उपहार भी दिया और पुनर्वासित स्कैवेंजर्स तथा वृदं ावन की विधवा माताओं के साथ युवाओं को नशे के खिलाफ जागरूक करने के लिए मार्च भी निकाला फोटो : मोंटू


02 - 09 दिसंबर 2018

फोटो फीचर

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पुस्तक अंश

19 दूसरा भाग

गांधी जी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी करके स्वदेश तो लौट आए पर वकालत उनके मिजाज के बिल्कुल विपरीत था। उन्हें बार-बार यह लगता कि वह इस पेशे में नहीं चल पाएंगे। इसी दौरान उन्होंने वकालती पेशे में भ्रष्टाचार का खुला खेल भी देखा। उनके ये अनुभव उनके अंदर के महात्मा को जहां एक तरफ जगा रहा था, वहीं मानसिक स्तर पर वे इस दौरान कई स्तरों पर जूझ भी रहे थे

3. पहला मुकदमा

02 - 09 दिसंबर 2018

सिफारिश, कमीशन और न्याय

‘पर फौजदारी अदालत के सुप्रसिद्ध वकील श्री..., जो हर महीने तीन चार हजार कमाते हैं, भी कमीशन तो देते हैं।’ ‘मुझे कौन उनकी बराबरी करनी है? मुझको तो हर महीने 300 रुपए मिल जाएं तो काफी हैं। पिताजी को कौन इससे अधिक मिलते थे?’ ‘पर वह जमाना लद गया। बंबई का खर्च बड़ा है। तुम्हें व्यवहार की दृष्टि से भी सोचना चाहिए।’ मैं टस-से-मस न हुआ। कमीशन मैंने नहीं ही दिया। फिर भी ममीबाई का मुकदमा तो मुझे मिला। मुकदमा आसान था। मुझे ब्रीफ (मेहनताने) के रुपए 30 मिले। मुकदमा एक दिन से ज्यादा चलनेवाला न था। मैंने पहली बार स्मॉल कॉज कोर्ट में प्रवेश किया। मैं प्रतिवादी की तरफ से था, इसीलिए मुझे जिरह करनी था। मैं खड़ा तो हुआ, पर पैर कांपने लगे। सिर चकराने लगा। मुझे ऐसा लगा, मानो अदालत घूम रही है। सवाल कुछ सूझते ही न थे। जज हंसा होगा। वकीलों को तो मजा आया ही होगा। पर मेरी आंखों के सामने तो अंधेरा था, मैं देखता क्या? मैं बैठ गया। दलाल से कहा, ‘मुझसे यह मुकदमा नहीं चल सकेगा। आप पटेल को सौंपिए। मुझे दी हुई फीस वापस ले लीजिए।’ पटेल को उसी दिन के 51 रुपए देकर वकील किया गया। उनके लिए तो वह बच्चों का खेल था।

बंबई में एक ओर मेरी कानून की पढ़ाई शुरू हुई,तो दूसरी ओर मेरे आहार के प्रयोग चले और उनमें वीरचंद गांधी मेरे साथ हो गए। तीसरी तरफ भाई ने मेरे लिए मुकदमे खोजने की कोशिश शुरू की। कानून की पढ़ाई का काम धीमी चाल से चला। जाब्ता दीवानी (सिविल प्रोसीजर कोड) किसी भी तरह गले न उतरता था। एविडेंस एक्ट की पढ़ाई ठीक चली। वीरचंद गांधी सॉलि​िसटर बनने की तैयारी कर रहे थे। इसीलिए वे वकीलों के बारे में बहुत कुछ कहते रहते थे। ‘फिरोजशाह मेहता की होशियारी का कारण उनका अगाध कानूनी ज्ञान है। एविडेन्स एक्ट तो उनको जबानी याद है। धारा 32 के हर एक मुकदमे की उन्हें जानकारी है। बदरुद्दीन तैयबजी की होशियारी ऐसी है कि न्यायाधीश भी उनके सामने चौंधिया जाते हैं। बहस करने की उनकी शक्ति अद्भुत है।’ इधर मैं इन महारथियों की बातें सुनता और उधर मेरी घबराहट बढ़ जाती। वे कहते, ‘पांच-सात साल तक बैरिस्टर का अदालत में जूतियां तोड़ते रहना आश्चर्यजनक नहीं माना जाता। इसीलिए मैंने सॉलिसिटर बनने का निश्चय किया है। कोई तीन साल के बाद भी तुम अपना खर्च चलाने लायक कमा लो तो कहना कि तुमने खूब प्रगति कर ली।’ हर महीने खर्च बढ़ता जाता था। बाहर बैरिस्टर की तख्ती लटकाए रहना मैं भागा। मुझे याद नहीं कि मुवक्किल जीता या हारा। मैं शरमाया। मैंने और घर में बैरिस्टरी करने की तैयारी करना! मेरा मन इन दो के बीच कोई निश्चय किया कि जब तक पूरी हिम्मत न आ जाए, कोई मुकदमा न लूंगा। और तालमेल नहीं बैठा पाता था। इसीलिए कानून की मेरी पढ़ाई व्यग्र चित से होती फिर दक्षिण अफ्रीका जाने तक कभी अदालत में गया ही नहीं। इस निश्चय में थी। शहादत के कानून में कुछ रुचि पैदा होने की बात तो ऊपर कह चुका हूं। कोई शक्ति न थी। ऐसा कौन बेकार बैठा था, जो हारने के लिए अपना मुकदमा मेइन का ‘हिंदू लॉ’ मैंने बहुत रुचिपूर्वक पढ़ा, पर मुकदमा लड़ने की हिम्मत मुझे देता? इसीलिए मैं निश्चय न करता तो भी कोई मुझे अदालत जाने की न आई। अपना दुख किसे सुनाऊं? मेरी दशा ससुराल गई हुई नई बहू की सी हो गई। इतने में मुझे ममीबाई का मुकदमा मिला। स्मॉल कॉज कोर्ट (छोटी अदालत) हर महीने खर्च बढ़ता जाता था। बाहर बैरिस्टर की तख्ती लटकाए रहना और में जाना था। घर में बैरिस्टरी करने की तैयारी करना! मेरा मन इन दो के बीच मुझसे कहा गया, ‘दलाल को कमीशन देना कोई तालमेल नहीं बैठा पाता था पड़ेगा!’ मैंने साफ इनकार कर दिया।


02 - 09 दिसंबर 2018

तकलीफ देनेवाला न था! पर बंबई में मुझे अभी एक और मुकदमा मिलनेवाला था। इस मुकदमे में अर्जी-दावा तैयार करना था। एक गरीब मुसलमान की जमीन पोरबंदर में जब्त हुई थी। मेरे पिताजी का नाम जानकर वह उनके बैरिस्टर बेटे के पास आया था। मुझे उसका मामला लचर लगा। पर मैंने अर्जीदावा तैयार कर कबूल कर लिया। छपाई का खर्च मुवक्किल को देना था। मैंने अर्जी-दावा तैयार कर लिया। मित्रों को दिखाया। उन्होंने पास कर दिया और मुझे कुछ-कुछ विश्वास हुआ कि मैं अर्जीदावे लिखने लायक तो जरूर बन सकूंगा। असल में मैं इस लायक था भी। मेरा काम बढ़ता गया। मुफ्त में अर्जियां लिखने का धंधा करता तो अर्जियां लिखने का काम तो मिलता पर उससे दाल-रोटी की व्यवस्था कैसे होती? मैंने सोचा कि मैं शिक्षक का काम तो अवश्य ही कर सकता हूं। मैंने अंग्रेजी का अभ्यास काफी किया था। अतएव मैंने सोचा कि यदि किसी हाई स्कूल में मैट्रिक की कक्षा में अंग्रेजी सिखाने का काम मिल जाए तो कर लूं। खर्च का गड्ढा कुछ तो भरे! मैंने अखबारों में विज्ञापन पढ़ा- ‘आवश्यकता है, अंग्रेजी शिक्षक की, प्रतिदिन एक घंटे के लिए। वेतन रुपए 75।’ यह एक प्रसिद्ध हाई स्कूल का विज्ञापन था। मैंने प्रार्थना-पत्र भेजा। मुझे प्रत्यक्ष मिलने की आज्ञा हुई। मैं बड़ी उमंगों के साथ मिलने गया। पर जब आचार्य को पता चला कि मैं बी.ए. नहीं हूं तो उन्होंने मुझे खेदपूर्वक विदा कर दिया। ‘पर मैंने लंदन की मैट्रिक्युलेशन परीक्षा पास की है। लैटिन मेरी दूसरी भाषा थी।’ मैंने कहा। 'सो तो ठीक है, पर हमें तो ग्रेज्युएट की ही आवश्यकता है।' मैं लाचार हो गया। मेरी हिम्मत छूट गई। बड़े भाई भी चिंतित हुए। हम दोनों ने सोचा कि बंबई में अधिक समय बिताना निरर्थक है। मुझे राजकोट में ही जमना चाहिए। भाई स्वयं छोटा वकील थे। मुझे अर्जी-दावे लिखने का कुछ न कुछ काम तो दे ही सकते थे। फिर राजकोट में तो घर का खर्च चलता ही था। इसीलिए बंबई का खर्च कम कर डालने से बड़ी बचत हो जाती। मुझे यह सुझाव जंचा। यों कुल लगभग छह महीने रहकर बंबई का घर मैंने समेट सिया। जब तक बंबई में रहा, मैं रोज हाईकोर्ट जाता था। पर मैं यह नहीं कह सकता कि वहां मैंने कुछ सीखा। सीखने लायक ही मुझ में न थी। कभीकभी तो मुकदमा समझ में न आता और इसकी कार्यवाही में रुचि न रहती, तो बैठा-बैठा झपकियां भी लेता रहता। यों झपकियां लेनेवाले दूसरे साथी भी मिल जाते थे। इससे मेरी शरम का बोझ हलका हो जाता था। आखिर मैं यह समझने लगा कि हाईकोर्ट में बैठकर ऊंघना फैशन के खिलाफ नहीं है। फिर तो शरम की कोई वजह ही न रह गई। यदि इस युग में भी मेरे समान कोई बेकार

बैरिस्टर बंबई में हो, तो उनके लिए अपना एक छोटा- सा अनुभव यहां मैं लिख देता हूं। घर गिरगांव में होते हुए भी मैं शायद ही कभी गाड़ी भाड़े का खर्च करता था। ट्राम में भी क्वचित ही बैठता था। अकसर गिरगांव से हाईकोर्ट तक प्रतिदिन पैदल ही जाता था। इसमें पूरे 45 मिनट लगते थे और वापसी में तो बिना चूके पैदल ही घर आता था दिन में धूप लगती थी, पर मैंने उसे सहन करने की आदत डाल ली थी। इस तरह मैंने काफी पैसे बचाए। बंबई में मेरे साथी बीमार पड़ते थे, पर मुझे याद नहीं है कि मैं एक दिन भी बीमार पड़ा होऊं। जब मैं कमाने लगा तब भी इस तरह पैदल ही दफ्तर जाने की आदत मैंने आखिर तक कायम रखी। इसका लाभ मैं आज तक उठा रहा हूं।

4. पहला आघात

बंबई से निराश होकर मैं राजकोट पहुंचा। वहां अलग दफ्तर खोला। गाड़ी कुछ चली। अर्जियां लिखने का काम लगा और हर महीने औसत रु. 300 की आमदनी होने लगी। अर्जी-दावे लिखने का यह काम मुझे अपनी होशियारी के कारण नहीं मिलने लगा था, कारण था वसीला। बड़े भाई के साथ काम करनेवाले वकील की वकालत जमी

पुस्तक अंश

कमीशन न देने का आग्रह मुझे नहीं रखना चाहिए। मैं ढीला पड़ा। मैंने अपने मन को मना लिया, अथवा स्पष्ट शब्दों में कहूं तो धोखा दिया। पर इसके सिवा दूसरे किसी भी मामले में कमीशन देने की बात मुझे याद नहीं है। यद्यपि मेरा आर्थिक व्यवहार चल निकला, पर इन्हीं दिनों मुझे अपने जीवन का पहला आघात पहुंचा। अंग्रेज अधिकारी कैसे होते हैं, इसे मैं कानों से सुनता था, पर आंखों से देखने का मौका मुझे अब मिला। पोरबंदर के भूतपूर्व राणा साहब को गद्दी मिलने से पहले मेरे भाई उनके मंत्री और सलाहकार थे। उन पर इस आशय का आरोप लगाया गया था कि उन दिनों उन्होंने राणा साहब को गलत सलाह दी थी। उस समय के पॉलिटिकल एजेंट के पास यह शिकायत पहुंची और मेरे भाई के बारे में उनका खयाल खराब हो गया था। इस अधिकारी से मैं विलायत में मिला था। कह सकता हूं कि वहां उन्होंने मुझ से अच्छी दोस्ती कर ली थी। भाई ने सोचा कि इस परिचय का लाभ उठाकर मुझे पॉलिटिकल एजेंट से दो शब्द कहने चाहिए और उन पर जो खराब असर पड़ा है, उसे मिटाने की कोशिश करनी चाहिए। मुझे यह बात बिलकुल अच्छी न लगी। मैंने सोचा- मुझको विलायत के परिचय का कुछ लाभ नहीं उठाना

अकसर गिरगांव से हाईकोर्ट तक प्रतिदिन पैदल ही जाता था। इसमें पूरे 45 मिनट लगते थे और वापसी में तो बिना चूके पैदल ही घर आता था दिन में धूप लगती थी, पर मैंने उसे सहन करने की आदत डाल ली थी हुई थी। उनके पास जो बहुत महत्व के अर्जीदावे अथवा वे महत्व का मानते, उसके काम तो बड़े बैरिस्टर के पास ही जाता था। उनके गरीब मुवक्किल के अर्जी-दावे लिखने का काम मुझे मिलता था। बंबई में कमीशन नहीं देने की मेरी जो टेक था, मानना होगा कि यहां कायम न रही। मुझे दोनों स्थितियों का भेद समझाया गया था। वह यों था कि बंबई में सिर्फ दलाल को पैसे देने की बात थी, यहां वकील को देने हैं। मुझसे कहा गया था कि बंबई की तरह यहां भी सब बैरिस्टर बिना अपवाद के अमुक कमीशन देते हैं। अपने भाई की इस दलील का कोई जवाब मेरे पास न था- ‘तुम देखते हो कि मैं दूसरे वकील का साझेदार हूं। हमारे पास आनेवाले मुकदमों में से जो तुम्हें देने लायक होते है, वे तुम्हें देने की मेरी वृत्ति तो रहती है। पर यदि तुम मेरे मेहनताने का हिस्सा मेरे साझी को न दो, तो मेरी स्थिति कितनी विषम हो जाए? हम साथ रहते हैं इसीलिए तुम्हारे मेहनताने का लाभ मुझे तो मिल ही जाता है। पर मेरे साझी का क्या हो? अगर वही मुकदमा वे दूसरे को दे तो उसके मेहनताने में उन्हें जरूर हिस्सा मिलेगा।’ मैं इस दलील के भुलावे में आ गया और मैंने अनुभव किया कि अगर मुझे बैरिस्टरी करनी है तो ऐसे मामलों में

चाहिए। अगर मेरे भाई ने कोई बुरा काम किया है तो सिफारिश से क्या होगा? अगर नहीं किया है तो विधिवत प्रार्थना-पत्र भेजें अथवा अपनी निर्दोषता पर विश्वास रखकर निर्भय रहें। यह दलील भाई के गले न उतरी। उन्होंने कहा, ‘तुम काठियावाड़ को नहीं जानते। दुनियादारी अभी तुम्हें सीखनी है। यहां तो वसीले से सारे काम चलते हैं। तुम्हारे समान भाई अपने परिचित अधिकारी के दो शब्द कहने का मौका आने पर दूर हट जाए तो यह उचित नहीं कहा जाएगा।’ मैं भाई की इच्छा टाल नहीं सका। अपनी मर्जी के खिलाफ मैं गया। अफसर के पास जाने का मुझे कोई अधिकार न था। मुझे इसका खयाल था कि जाने से मेरा स्वाभिमान नष्ट होगा। फिर भी मुझे उससे मिलने का समय मिला और मैं मिलने गया। पुराने परिचय का स्मरण कराया, पर मैंने तुरंत ही देखा कि विलायत और काठियावाड़ में फर्क है। अपनी कुर्सी पर बैठे हुए अफसर और छुट्टी पर गए हुए अफसर में फर्क होता है। अधिकारी ने परिचय की बात मान ली पर इसके साथ ही वह अधिक अकड़ गया। मैंने उसकी आंखों में देखा और आंखों में पढ़ा, मानो कह रही हो कि ‘उस परिचय का लाभ उठाने के लिए तो तुम नहीं आए हो न?’ यह बात समझते हुए भी मैंने

21 अपनी बात शुरू की। साहब अधीर हो गए। बोले, 'तुम्हारे भाई प्रपंची हैं। मैं तुमसे ज्यादा बातें नहीं सुनना चाहता। मुझे समय नहीं है। तुम्हारे भाई को कुछ कहना हो तो वे विधिवत प्रार्थना-पत्र दें।' यह उत्तर पर्याप्त था। पर गरज तो बावली होती है न? मैं अपनी बात कहे जा रहा था। साहब उठे, 'अब तुम्हें जाना चाहिए।’ मैंने कहा, ‘पर मेरी बात तो पूरी सुन लीजिए।’ साहब खूब चिढ़ गए। बोले, ‘चपरासी, इसे दरवाजा दिखाओ।’ ‘हजूर’ कहता हुआ चपरासी दौड़ा आया। मैं तो अब भी कुछ बड़बड़ा ही रहा था। चपरासी ने मुझे हाथ से धक्का देकर दरवाजे के बाहर कर दिया। साहब गए। चपरासी गया। मैं चला, अकुलाया, खीझा। मैंने तुरंत एक पत्र घसीटा: ‘आपने मेरा अपमान किया है। चपरासी के जरिए मुझ पर हमला किया है। आप माफी नहीं मांगेंगे तो मैं आप पर मानहानि का विधिवत दावा करूंगा।’ मैंने यह चिट्ठी भेजी। थोड़ी देर में साहब का सवार जवाब दे गया। उसका सार यह था: ‘तुमने मेरे साथ असभ्यता का व्यवहार किया। जाने के लिए कहने पर भी तुम नहीं गए, इससे मैंने जरूर चपरासी को तुम्हें दरवाजा दिखाने के लिए कहा। चपरासी के कहने पर भी तुम दफ्तर से बाहर नहीं गए, तब उसने तुम्हें दफ्तर से बाहर कर देने के लिए बल का उपयोग किया। तुम्हें जो करना हो सो करने के लिए तुम स्वतंत्र हो।’ यह जवाब जेब में डालकर मैं मुंह लटकाए घर लौटा। भाई को सारा हाल सुनाया। वे दुखी हुए। पर वे मुझे क्या तसल्ली देते? मैंने वकील मित्रों से चर्चा की। मैं कौन से दावा दायर करना जानता था? उन दिनों सर फिरोजशाह मेहता अपने किसी मुकदमे के सिलसिले में राजकोट आए हुए थे। मेरे जैसा नया बैरिस्टर उनसे कैसे मिल सकता था? उन्हें बुलानेवाले वकील के द्वारा पत्र भेजकर मैंने उनकी सलाह पुछवाई। उनका उत्तर था: ‘गांधी से कहिए, ऐसे अनुभव तो सब वकील-बैरिस्टरों को हुए होंगे। तुम अभी नए ही हो। विलायत की खुमारी अभी तुम पर सवार है। तुम अंग्रेज अधिकारियों को पहचानते नहीं हो। अगर तुम्हें सुख से रहना हो और दो पैसे कमाने हों, तो मिली हुई चिट्ठी फाड़ डालो और जो अपमान हुआ है उसे पी जाओ। मामला चलाने से तुम्हें एक पाई का भी लाभ न होगा। उलटे, तुम बर्बाद हो जाओगे। तुम्हें अभी जीवन का अनुभव प्राप्त करना है।’ मुझे यह सिखावन जहर की तरह कड़वी लगी, पर उस कड़वी घूंट को पी जाने के सिवा और कोई उपाय न था। मैं अपमान को भूल न सका, पर मैंने उसका सदुपयोग किया। मैंने नियम बना लिया: ‘मैं फिर कभी अपने को ऐसी स्थिति में नहीं पड़ने दूंगा, इस तरह किसी की सिफारिश न करूंगा।’ इस नियम का मैंने कभी उल्लंघन नहीं किया। इस आघात ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी। (अगले अंक में जारी)


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स्वच्छता

02 - 09 दिसंबर 2018

रूस

स्वच्छता में आदर्श नहीं रहा रूस

आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में सर्वोच्चता के आसन से हिलने के बाद रूस में खासतौर पर स्वच्छता को लेकर स्थिति काफी खराब हुई है

सो

एसएसबी ब्यूरो

वियत संघ के विघटन के बाद रूस की स्थिति पहले जैसे भले नहीं रही हो, पर यहां के लोग और समाज अब भी सांस्कृतिक तौर पर काफी संपन्न हैं और कई अच्छी आदतें उनके जीवन में आज भी अहम हैं। ऐसी ही एक आदत रूसी समाज में स्वच्छता को लेकर काफी पहले से है। सभ्यतागत और सांस्कृतिक विकास के आधुनिक चरण में भी रूसी शहरों और समाज में स्वच्छता को पर्याप्त महत्व मिला। पर आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में सर्वोच्चता के आसन से हिलने के बाद रूस में खासतौर पर स्वच्छता को लेकर स्थिति काफी खराब हुई है। वैसे यह प्रभाव वहां पेयजल उपलब्धता के मामले में नगण्य मालूम पड़ता है। सीआईए द वर्ल्ड फैक्टबुक के आंकड़ा के मुताबिक रूसी शहरों में करीब 99 फीसदी आबादी तक शुद्ध पेयजल पहुंच रहा है। यह आंकड़ो ग्रामीण क्षेत्रों में थोड़ा कम जरूर है पर फिर भी यह 91 फीसदी के ऊपर ही है।

स्वच्छता की चुनौती

बात करें अकेले स्वच्छता की तो पेयजल की उपलब्धता के मुकाबले जरूर थोड़ी निराशाजनक स्थिति वहां है। पर हाल के कुछ दशकों में वहां की शासकीय और आर्थिक व्यवस्था के साथ वहां की सरकार की बदली प्राथमिकताओं के कारण स्वच्छता पर जोर निश्चित कुछ कम हुआ है। पर अब वहां की सरकार इस दिशा में तेजी से कार्य कर रही है।

ग्रामीण क्षेत्रों में अस्वच्छता

बहरहाल, जो मौजूदा स्थिति है उसमें रूसी शहरों में 77 फीसदी लोग उन्नत और सुरक्षित स्वच्छता साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि गांवों में यह स्थिति वाकई निराशाजनक है। रूसी ग्रामीण इलाकों-कस्बों में 60 फीसदी से भी कम लोगों तक स्वच्छता के उन्नत साधनों की पहुंच संभव हो सकी है। यह स्थिति रूस में बीते कुछ दशकों में रूसी समाज की खासतौर पर आर्थिक हैसियत में कमजोरी के कारण आई है। अब रूस में शासकीय स्तर पर एक स्थिरता है और वहां का नेतृत्व भी दूरदर्शी विकास लक्ष्यों पर फोकस कर रहा है। लिहाजा अगले दशक तक रूस में स्वच्छता की स्थिति में बड़े सुधार की उम्मीद है।

विकास के कई चरण

अगर लंबे ऐतिहासिक क्रम में देखें तो रूस का सभ्यतागत विकास कई चरणों से होकर गुजरा है। इसमें आधुनिक रूस का इतिहास पूर्वी स्लाव जाति

रूसी ग्रामीण इलाकों-कस्बों में 60 फीसदी से भी कम लोगों तक स्वच्छता के उन्नत साधनों की पहुंच संभव हो सकी है। यह स्थिति रूस में बीते कुछ दशकों में रूसी समाज की खासतौर पर आर्थिक हैसियत में कमजोरी के कारण आई है

से शुरू होता है। स्लाव जाति जो आज पूर्वी यूरोप में बसती है। इनका सबसे पुराना गढ़ कीव था, जहां नौवीं सदी में स्थापित कीवी रूस साम्राज्य आधुनिक रूस की आधारशिला के रूप में माना जाता है। हालांकि उस क्षेत्र में इससे पहले भी साम्राज्य रहे थे पर वे दूसरी जातियों के थे और उन जातियों के लोग आज भी रूस में रहते हैं- खजर और अन्य तुर्क लोग।

साम्राज्य विस्तार और विश्व युद्ध

17वीं से 19वीं सदी के मध्य में रूसी साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार हुआ। यह प्रशांत महासागर से लेकर बाल्टिक सागर और मध्य एशिया तक फैल गया। प्रथम विश्वयुद्ध में रूस को खासी आंतरिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और 1917 की बोल्शेविक क्रांति के बाद रूस युद्ध से अलग हो गया। द्वितीय विश्वयुद्ध में अपराजेय लगने वाली जर्मन सेना के खिलाफ अप्रत्याशित अवरोध तथा अन्ततः विजय प्रदर्शित करने के बाद रूस तथा वहां के साम्यवादी नायक जोसेफ स्टालिन की धाक

खास बातें स्वच्छता के मुकाबले पेयजल आपूर्ति की स्थिति रूस में अच्छी रूसी शहरों में 77 फीसदी लोगों के पास उन्नत शौचालय ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत स्वच्छता के दायरे में बमुश्किल 60 फीसदी लोग दुनिया की राजनीति में बढ़ी। उद्योगों की उत्पादक क्षमता और देश की आर्थिक स्थिति में उतारचढ़ाव आते रहे। 1930 के दशके में ही साम्यवादी गणराज्यों के समूह सोवियत रूस का जन्म हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शीत युद्ध काल के गुजरे इस संघ का विघटन 1991 में हो गया।

शीत युद्ध

शीत युद्ध से पहले और बाद के रूस में बहुत फर्क आया है। अगर अमेरिका से तुलना करें तो इस दौरान अमेरिकी सबलता के मुकाबले रूस न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय, बल्कि कई आंतरिक मोर्चों पर भी कमजोर पड़ा। बड़ी बात यह है कि रूस शीत युद्ध में भारी क्षति सहन कर चुकने के बावजूद एक शक्ति के रूप में उभरा। इससे पहले गोर्बाचोव के शासनकाल में दो शब्द बहुत ही प्रसिद्ध हुए- ग्लासनोस्त और पेरस्त्रो े इका। ग्लासनोस्त का अर्थ होता है- खुलापन और पेरस्े त्तोइका का मतलब- पुनर्निर्माण। उन्होंने राजनीतिक बंदियों को रिहा किया और पूर्वी यूरोप में हस्तक्षेप से बचने की नीति अपनाई।


02 - 09 दिसंबर 2018

स्पेस को सैरगाह बना देने वाला देश

रू

रूस का चौंकाने वाला सच

- रूस में पुरुषों के मुकाबले स्त्रियां ज्यादा हैं।

- रूस के एक तिहाई लोग मानते हैं कि सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है। जी हां, स्पेस में सबसे पहले विमान भेजने वाले रूस में ऐसे भी लोग हैं।

सब कुछ ठीक रहा तो अंतरिक्ष तक पर्यटन सेवा की शुरुआत रूस में अगले वर्ष से हो जाएगी

स सैलानियों को अंतरिक्ष की सैर कराने की तैयारी कर रहा है। हालांकि अंतरिक्ष की सैर पर जाने वाले सैलानियों को इसके लिए भारी-भरकम रकम भी खर्च करनी होगी। रूस का अंतरिक्ष उद्योग आज इतना समृद्ध है कि कई मामलों में अमेरिका भी उसका मुकाबला नहीं कर सकता है। रूस की एक अंतरिक्ष कंपनी एनर्जिया के प्रमुख व्लादिमीर सोलंतसेव बताते हैं कि सैलानियों को अंतरिक्ष में भेजने की संभावनाओं पर बातचीत जारी है। उनका कहना है, ‘दौलतमंद लोग अंतरिक्ष की सैर के लिए जेब ढीली करने को तैयार हैं।’ उन्होंने यह भी कहा है कि अंतरिक्ष की एक यात्रा का संभावित खर्च 100 मिलियन डॉलर या फिर 80 मिलियन यूरो के करीब हो सकता है। ‘अंतरिक्ष की यात्रा के दौरान पर्यटकों को स्पेसवॉक के साथ इसका वीडियो बनाने की सुविधा भी मिलेगी।’ एनर्जिया ने ही 1961 में अंत​िरक्ष में सबसे पहला यात्री (यूरी गैगरिन) भेजा था। अब यह संस्था इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से सैलानियों को अंतरिक्ष की सैर कराने के प्रयासों में जुटी है। बताया जा रहा है कि इस योजना के जरिए एक बार में चार से छह सैलानियों को सैर के लिए भेजा जाएगा। सैलानियों को अंतरिक्ष ले जाने वाले यान में आरामदायक कक्ष होंगे। यात्रियों को इंटरनेट की सुविधा भी मिलेगी। व्लादिमीर सोलंतसेव कहते हैं, ‘सब कुछ

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स्वच्छता

- रूस के भीतर ऐसे कम-से-कम 15 शहर हैं, जिन्हें पूरी दुनिया से छिपा कर रखा गया है। - रूस में गंदी कारें चलाना अपराध है।

- रूस में 25 फीसदी लोग 55 साल से पहले ही स्वर्ग सिधार जाते हैं और इसकी एक बड़ी वजह वोदका का सेवन माना जाता है। - पीटर द ग्रेट के शासन के दौरान यहां दाढ़ी पर टैक्स लगता था।

- ये बात तो डराने वाली है मगर सच है कि 1959 से रूस में वैज्ञानिक लोमड़ियां पालते हैं।

- अमेरिका ने रूस से अलास्का पर्वत खरीदा है। यह बात 1867 की है और अमेरिका ने अलास्का पर्वत के एवज में सिर्फ 7.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर रूस को दिए थे।

ठीक रहा तो इस सेवा की शुरुआत 2019 से कर दी जाएगी।’ उन्होंने यह भी बताया कि हवाई जहाजों का निर्माण करने वाली अमेरिकी कंपनी बोईंग ने भी इस परियोजना में दिलचस्पी दिखाई है। अंतरिक्ष पर्यटन फिलहाल अपने शुरुआती दौर में है। हालांकि वर्जिन गालाक्टिक जैसी पश्चिमी कंपनियों का इस पर अभी से दबदबा दिखता है। इस कंपनी ने साल 2016 में अपने व्यावसायिक अंतरिक्ष यान पर से पर्दा उठाया था। जहां तक रूस की बात है तो उसने कनाडाई उद्यमी गी लेलीबेर्टे को साल 2009 में इंटरनेशनल स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष की सैर कराई थी। इसके अलावा ईरानी मूल की अमेरिकी उद्यमी अनुशेह अंसारी के नाम पर पहली महिला अंतरिक्ष पर्यटक बनने का रिकॉर्ड दर्ज है। उन्होंने साल 2006 में अंतरिक्ष की सैर की थी।

- रूस का 77 फीसदी हिस्सा साइबेरिया है। जी हां, वही साइबेरिया जहां तापमान हमेशा माइनस में रहता है। - रूस क्षेत्रफल के मामले में प्लूटो से भी बड़ा है।

- रूस और जापान आज भी द्वितीय विश्व युद्ध लड़ रहे हैं। रूस और जापान ने अब तक शांति समझौता नहीं किया है। कुरिल आज भी उनके बीच विवाद का केंद्र है।

- भारत में तो मेट्रो का आगमन बहुत बाद में हुआ, लेकिन रूस का मेट्रो सिस्टम अपने तरह का सबसे तेज ट्रांसपोर्ट है और इसे यहां की लाइफलाइन भी कहा जाता है।

- जहां पूरी दुनिया में फूल देना शुभ माना जाता है, वहीं रूस में पुरुषों का महिलाओं को फूल देना शुभ नहीं माना जाता। फूलों को यहां अन्त्येष्टि से जोड़ कर देखा जाता है।

पेयजल और स्वच्छता स्वच्छ या शोधित शहरी : 98.9% आबादी ग्रामीण : 91.2% आबादी कुल : 96.9% आबादी

(2015 तक अनुमानित)

(2015 तक अनुमानित)

शहरी : 1.1% आबादी ग्रामीण : 8.8% आबादी कुल : 3.1% आबादी

अस्वच्छ या पारंपरिक

शहरी : 23% आबादी ग्रामीण : 41.3% आबादी कुल : 27.8% आबादी

स्वच्छता सुविधाएं

पेयजल स्रोत

स्वच्छ व उन्नत शहरी : 77% आबादी

ग्रामीण : 58.7% आबादी कुल : 72.2% आबादी

अस्वच्छ या अशोधित

सोवियत विघटन

स्रोत : सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक (जनवरी, 2018)

इसी दौरान 1989 में बर्लिन की दीवार भी ढहा दी गई और पूर्वी तथा पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हुआ। इस घटना को आज भी साम्यवाद की असफलता के आरंभिक निशानी के रूप में देखा जाता है। इसी साल सोवियत सेना अफगानिस्तान से भी हट गई। ये सब बातें पुनर्निर्माण यानी पेरेस्त्रोइका के लिए तो एक प्रतीक बनीं पर ग्लासनोस्त को उतनी लोकप्रियता नहीं मिली। 1986 में चेर्नोबिल में हुए परमाणु ऊर्जागृह में हुई दुर्घटना को सरकारी मीडिया द्वारा छुपाने और दबाने की कोशिश की गई। ग्लासनोस्त की वजह से सोवियत संघ के घटक देशों में राष्ट्रवादी प्रदर्शनों को अवसर दिया

गया। मार्च 1990 में गोर्बाचोव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने। 1991 में जब गोर्बाचोव क्रीमिया में एक छुट्टी पर थे तब तख्तापलट की कोशिश हुई और गोर्बाचोव को तीन दिनों तक नजरबंद किया गया। इधर मॉस्को में बोरिस येल्तसिन का समर्थन बढ़ गया था और उन्हें राष्ट्रपति बना दिया गया। सोवियत संघ के कई देशों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। 8 दिसंबर 1991 को बेलारूस, यूक्रेन और रूस के राष्ट्रपतियों ने मिलकर सोवियत संघ के विभाजन का फैसला किया। इस तरह साम्यवादी ढांचे का एक बड़ा और संयुक्त मॉडल बिखर गया।


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व्यक्तित्व

02 - 09 दिसंबर 2018

ऑस्कर वाइल्ड

झूठी नैतिकता की धज्जियां उड़ाने वाला लेखक 19वीं सदी ब्रिटिश औपनिवेशिकता के साथ उनकी सांस्कृतिक दुर्दशा की भी सदी रही है। साहित्य में यह बात सबसे तीखे ढंग से ऑस्कर वाइल्ड ने कही थी। इस रचनात्मक साहस ने ही उन्हें साहित्य की दुनिया में अमर बना दिया

एसएसबी ब्यूरो

ई बार लोग जब आपके चरित्र के बारे में टिप्पणी करते तो कह जाते हैं कि तुम लॉर्ड हेनरी की तरह हो। हमेशा गलत ही बोलते हो, पर कभी गलत करते नहीं। दरअसल, हेनरी ऑस्कर वाइल्ड की किताब का एक पात्र है। खासतौर पर एक युवा होते दिमाग के लिए ऑस्कर वाइल्ड से अच्छी खुराक नहीं हो सकती। हेनरी तो ऑस्कर वाइल्ड के एकमात्र उपन्यास ‘द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे’ का एक पात्र है। ऑस्कर ने कहा था कि दुनिया उनको हेनरी समझती है, वो खुद को बेसिल की तरह देखते हैं पर वो खुद डोरियन ग्रे बनना चाहते हैं। पर मैं इनमें से कोई नहीं था। मैं हमेशा ऑस्कर वाइल्ड बनना चाहता था जो समाज की किसी भी चीज पर सवाल कर सकता है।

आइरिश मूल के

1854 में ऑस्कर वाइल्ड का जन्म हुआ था। वे आइरिश मूल के थे। उस वक्त ब्रितानी राज में सूरज नहीं डूबता था और शायद इसी चीज को दिखाने के लिए उन लोगों ने इंडिया में उसी वक्त पहली ट्रेन भी चलवाई थी। ऑस्कर के माता-पिता दोनों अच्छी हैसियत रखते थे। माताजी तो लिखती भी थीं। ऑस्कर को किसी चीज की कमी नहीं रही थी। उस दौर में ब्रिटिश समाज पाखंड पर जीता था। सामाजिक पाखंड कूट-कूट कर भरा था।

फ्लोरेंस से प्रेम

ऑस्कर वाइल्ड पढ़ने में बहुत ही तेज थे। ट्रिनिटी, ऑक्सफोर्ड सब में पढ़े थे और वहीं तय कर लिया था कि लेखक बनेंगे। ग्रेजुएट होने के बाद ऑस्कर आयरलैंड के डबलिन चले गए, अपनी बचपन की दोस्त फ्लोरेंस से रोमांस करने। पर फ्लोरेंस ने ब्रैम स्टोकर से शादी कर ली। स्टोकर ने बाद में बेहद प्रसिद्ध उपन्यास ‘ड्रैकुला’ लिखा था। 1879 में

ऑस्कर वापस लंदन आ गए। 1881 में ‘पोएम्स’ नाम से पहली किताब खुद ही प्रकाशित की। खूब​ िब​की यह किताब। ऑस्कर का नाम प्रसिद्धि पाने लगा। इनके लेखन में जबरदस्त व्यंग्य रहता था। उस समय उलटा बोलने वाले यही एक थे ब्रिटेन में। उन्होंने तभी कहा था कि पत्रकारिता और साहित्य में अंतर यह है कि पत्रकारिता पढ़ने लायक नहीं है और साहित्य को कोई पढ़ता नहीं। वे इतने मशहूर हो गए कि कई अभिनेत्रियों से दोस्ती हो गई। फिर नाटक भी लिखने लगे। इस चक्कर में पेरिस और अमेरिका भी हो आए। बहुत सारे दोस्त और दुश्मन दोनों बना लिए। 1884 में कॉन्स्टैंस मैरी लॉयड से शादी कर ली। फिर एक पत्रिका में काम करने लगे। पहले खूब लिखा, फिर संपादक बन गए।

‘द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे’

कला जीवन का प्रतिरूप होती है। ये बात ऑस्कर के संदर्भ में ज्यादा सच है। शुरुआत में तो ऑस्कर वाइल्ड भी वैसी ही चीजें लिखते थे, जिसमें हमेशा

पत्रकारिता और साहित्य में अंतर यह है कि पत्रकारिता पढ़ने लायक नहीं है और साहित्य को कोई पढ़ता नहीं -ऑस्कर वाइल्ड

खास बातें ऑस्कर का जन्म भले ब्रिटेन में हुआ था, पर वे आइरिश मूल के थे उन्हें एक विवादास्पद मामले में दो वर्ष सश्रम कारावास की सजा हुई थी ऑस्कर वाइल्ड जीवन के आखिरी दौर में काफी अकेले पड़ गए थे

असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की जीत होती थी। पर धीरे-धीरे उनके अंदर का राक्षस उनके बाहर के संत से लड़ने लगा। जैसा कि हमारे अंदर का राक्षस हमारे बाहर के संत से लड़ता है। और तब हम यह कहकर कि जमाना खराब है, साफ बच निकलते हैं। ऑस्कर ने इसे छुपने नहीं दिया। 1891 में उनका पहला और आखिरी उपन्यास आया‘द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे’। यह उनके पुराने


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मशहूर कथन

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व्यक्तित्व

एक मुखरता जो बना आंदोलन

 एक अच्छा व्यक्ति वही है, जो अनजाने में किसी की भावनाओं को ठेस ना पहुंचाता हो  जो व्यक्ति खुद के बारे में नहीं सोचता, वह सोचता ही नहीं है  मेरी पसंद बहुत सीधी- सादी है। मैं हमेशा सबसे अच्छे से संतुष्ट हो जाता हूं  सफलता विज्ञान की तरह है। अगर परिस्थितियां होंगी तो परिणाम मिलेगा  अनुभव तो सिर्फ एक नाम है, जो हम अपनी गलतियों को देते हैं

ऑस्कर का आंदोलन अकेले का था, जिसमें उनके साथ सिर्फ उनकी मुखरता थी

स्कर वाइल्ड के लेखन में विट, आयरनी, स्टाइल, एपिग्राम और बाकी सारे हल्के-भारी साहित्यिक तंत्रमंत्र मिलते हैं। इतने कि कोई खतरनाक सा दिखनेवाला कोट अपने आप ऑस्कर वाइल्ड के खाते में चला जाता है। ये खूबी आई इसीलिए कि ऑस्कर ये मानते थे कि कला बस कला के लिए होती है। कला

का मकसद सुधार करना नहीं है। कला बस रचने के लिए है। इसके लिए उन्होंने आंदोलन भी चलाया था। हालांकि उनका आंदोलन अकेले का था, जिसमें उनके साथ सिर्फ उनकी मुखरता थी। वो धरना-प्रदर्शन नहीं करते थे। लिखनेवाला लिखकर ही प्रतिरोध करेगा। पर आलोचकों ने इसे अपने समय का बड़ा आंदोलन कहा।

1895 में आया ऑस्कर वाइल्ड का नाटक ‘द इंपॉर्टेंस ऑफ बीइंग अर्नेस्ट’। यह उस वक्त की विक्टोरियन सोसाइटी पर एक हमला था लिखे हुए का परिमार्जित और ज्यादा विवादास्पद संस्करण था। इस उपन्यास में डोरियन ग्रे नाम का बेहद खूबसूरत नौजवान है जो लगातार सिर्फ अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने में भरोसा रखता है। उसका एक पेंटर दोस्त बेसिल उसकी एक पेंटिंग बनाता है। यह इतनी खूबसूरत होती है कि ग्रे सोचता है कि वो हमेशा इस पेंटिंग की ही तरह रह जाए। वह कहता है कि ऐसा बने रहने के लिए वो सब कुछ दे देगा। अपनी आत्मा भी और उसकी ये इच्छा पूरी हो जाती है। ग्रे धीरे-धीरे हर गलत काम करने लगता है। उसको कोई पकड़ नहीं पाता। पर इन सारे कामों का नतीजा उसकी पेंटिंग पर पड़ता है। पेंटिंग दिनों-दिन खराब और कुरूप होती जाती है। बहुत दिनों के बाद जब ग्रे जिंदगी से निराश हो जाता है तो वो पेंटिंग को खत्म करने का निश्चय करता है। पर अंत में पता चलता है कि फर्श पर बूढ़े हो चुके ग्रे की लाश पड़ी हुई है और पेंटिंग पहले की तरह जवान हो चुकी है।

लॉर्ड हेनरी का पात्र

इस कहानी में लॉर्ड हेनरी का पात्र भी बहुत महत्वपूर्ण है। वह डोरियन ग्रे को लगातार बहकाता रहता है कि जीवन में मजे के अलावा कुछ नहीं रखा

ऑस्करनामा

है। ये अलग बात है कि हेनरी कभी खुद कुछ नहीं करता, सिवाय बोलने के। उसकी जिंदगी का मजा है कि ग्रे उसके कहने पर कुछ-कुछ करता रहता है। बेसिल हेनरी के प्रभाव से ग्रे को बचाने की कोशिश करता है। पर असफल रहता है। फिर एक दिन ग्रे बेसिल को मार देता है।

‘द इंपॉर्टेंस ऑफ बीइंग अर्नेस्ट’

फिर 1895 में आया ऑस्कर वाइल्ड का नाटक ‘द इंपॉर्टेंस ऑफ बीइंग अर्नेस्ट’। यह उस वक्त की विक्टोरियन सोसाइटी पर एक हमला था। विक्टोरियन मतलब पाखंडी समाज। जो एकदम संकीर्ण मानसिकता का था। शादी के लिए ये लोग सिर्फ पैसे और परिवार की इज्जत पर भागते थे। लड़के-लड़की के दिल में क्या है, इससे कोई मतलब नहीं था। लड़कियों की इज्जत पर विशेष जोर था। इतना कि लड़कियां कॉर्सेट पहनती थीं। इतना टाइट कि शरीर खराब हो जाता था इससे। तमाम बीमारियां हो जाती थीं। सुंदर दिखने पर इतना जोर था कि भयानक डाइटिंग करती थीं। इतना कि पेट में कीड़े पाल लेती थीं, यह सोचकर कि मोटापा नहीं होगा इससे। ऑस्कर ने अपने समाज का बहुत

ख्याति : शेक्सपियर के उपरांत सर्वाधिक चर्चित ऑस्कर वाइल्ड सिर्फ उपन्यासकार, कवि और नाटककार ही नहीं थे, अपितु वे एक संवेदनशील मनुष्य भी थे। जन्म : 16 अक्टूर 1854, डबलिन, आयरलैंड मृत्यु : 30 नवंबर 1900, पेरिस, फ्रांस प्रसिद्ध नाटक : द इंपॉर्टेंस ऑफ बीइंग अर्नेस्ट कृतियों पर : वाइल्ड, डॉरियन ग्रे और ए गुड वुमन आधारित फिल्में

मजाक बनाया इसमें। मजाक ही वो जरिया था, जिससे ऑस्कर ब्रिटिश समाज पर हमला कर सकते थे। आगे यह सही भी साबित हुआ। लोगों ने इस नाटक को खूब देखा। इस नाटक में ऑस्कर ने ये भी लिखा था कि स्वर्ग में तलाक होते हैं। ये ‘स्वर्ग में जोड़ियां बनती हैं’ पर किया गया व्यंग्य था। ये भी लिखा कि सच्चाई शायद ही पवित्र होती है और सिंपल तो कतई नहीं होती। इसके पहले ऑस्कर वाइल्ड ने लड़कियों के कपड़ों को लेकर एक लेख लिखा था। उनके विचारों को उनकी पत्नी कॉन्स्टैंस ने आंदोलन सा बना दिया था। कुछ और साल लगे, फिर लड़कियों को भी अपनी पसंद के कपड़े पहनने का हक मिल गया। तभी एक ऐसी घटना हुई जिसने ऑस्कर वाइल्ड के जीवन को एकदम बदल दिया। बदल क्या दिया, खत्म ही कर दिया।

कोर्ट का चक्कर

1895 में जब उनके नाटक चरम पर थे, उसी वर्ष ऑस्कर वाइल्ड पर सोडोमाइट होने का

आरोप लगाया गया। सोडोमाइट का मतलब वही था कि ये आदमी लड़कों में दिलचस्पी रखता है। विक्टोरियन समाज में ये अपराध बेहद गंभीर था। इस अपराध के लिए जान से भी मारा जा सकता था। यह बात इतनी बढ़ गई कि ऑस्कर वाइल्ड ने मानहानि का मुकदमा ठोक दिया। हर किस्म की नैतिकता पर तलवार चलाने वाले ऑस्कर वाइल्ड को कोर्ट में जाकर नैतिक बनना पड़ा। जज ने कहा कि इतना गंदा मुकदमा तो मैंने जिंदगी में नहीं देखा।

अकेलेपन में मौत

इस मामले ऑस्कर वाइल्ड को दो वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हुई। जेल में भी ऑस्कर ने लिखने-पढ़ने का काम किया। अपराधियों के ऊपर एक बहुत ही मार्मिक कविता लिखी। पर जेल से छूटने के बाद जिंदगी खत्म हो गई। पैसा नहीं था, इज्जत चली गई थी। पेरिस के एक छोटे से कमरे में किराए पर रहने लगे। तीन साल बाद 1900 में ऑस्कर की अकेलेपन में मौत हो गई। पत्नी और बच्चों को समाज के ताने से डरकर आयरलैंड चले जाना पड़ा था। बाद में ऑस्कर वाइल्ड का सम्मान करते हुए आयरलैंड गे मैरिज को कानूनी शक्ल देनेवाला दुनिया का पहला देश बना।


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पाकिस्तान

पुस्तक अंश

02 - 09 दिसंबर 2018

भारत-पाकिस्तान की कहानी में दशकों से कई मुश्किल मुद्दे बेहद अहम रहे हैं। आगे भी यह एक आसान रास्ता नहीं होने वाला है। लेकिन दोनों नेता एक व्यक्तिगत समीकरण स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं जो भविष्य में आधिकारिक वार्ता की प्रक्रिया को गति दे सकता है। नलिन कोहली भाजपा प्रवक्ता

यह एक बहुत ही स्वागतयोग्य कदम है और इससे पता चलता है कि दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच पेरिस शिखर सम्मेलन में उठाए गए छोटे से कदम अब बड़े कदमों में परिवर्तित हो गए हैं, जो दोनों देशों के लिए बड़े वादे और उम्मीद रखते हैं। इम्तियाज गुल इस्लामाबाद स्थित सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज के प्रमुख

प्र

25 दिसंबर, 2015: लाहौर के रायविंड स्थित प्रधानमंत्री शरीफ के घर जाते हुए प्रधानमंत्री मोदी

25 दिसंबर, 2015: पाकिस्तान के लाहौर में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ गर्मजोशी से भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वागत करते हुए

25 दिसंबर, 2015: लाहौर में पीएम शरीफ के साथ बातचीत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उस वक्त सबको आश्चर्यचकित कर दिया जब वह 25 दिसंबर, 2015 को अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ के जन्मदिन पर उनसे मिलने लाहौर की अपनी पूर्वनिर्धारित छोटी- सी यात्रा पर

गए। यह पिछले 12 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान की पहली यात्रा थी, साथ ही बहुत बड़ा भविष्यगामी संदश े भी लिए हुए थी। लाहौर के अलामा इकबाल हवाई अड्डे पर दोनों प्रधानमंत्रियों ने गर्मजोशी से एक दूसरे को गले लगा लिया और एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए दिखे, उसके बाद दोनों नेता शरीफ की पोती की शादी में शरीक होने और बातचीत के लिए शहर के बाहरी इलाके में स्थित शरीफ के रायविंड एस्टेट चले गए। रूस और अफगानिस्तान के दौरे के बाद मोदी लाहौर में उतरे थे। नवंबर में पेरिस में जलवायु परिवर्तन वार्ता के दौरान वह शरीफ से मिल चुके थे। इसे एक सद्भावना यात्रा के रूप में वर्णित किया गया था और दोनों नेताओं ने एक दूसरे के अधिकारों को समझने के प्रयास किए और सकारात्मक तरीके से बातचीत को फिर से शुरू करने का फैसला किया।


02 - 09 दिसंबर 2018

ईरान

ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों के हटाए जाने के बाद, जिस तेजी और विश्वास के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईरान को द्विपक्षीय बातचीत में शामिल किया, उससे एनडीए सरकार के अंतर्गत भारत की विदेश नीति की कार्यप्रणाली की तेजी के बारे में पता चलता है।

प्र

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 से 23 मई, 2016 तक ईरान की दो दिवसीय राजकीय यात्रा की। इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण कदम भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय समझौते होना था, जिसमें ईरानी बंदरगाह चाबहार को परिवहन केंद्र में बदलना शामिल था। ईरान के साथ कई अन्य क्षेत्रों में सहयोग

भारत और ईरान नए दोस्त नहीं हैं। हमारी दोस्ती इतिहास की तरह ही पुरानी है। मित्रों और पड़ोसियों के रूप में, हमने एक-दूसरे के विकास और समृद्धि, खुशियों और दुखों को साझा किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

के लिए छह अन्य समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए। समझौतों में संस्कृति और कला, रेडियो, टेलीविजन, मास मीडिया और सिनेमा के क्षेत्र शामिल थे। दोनों देश संयुक्त सचिव/ महानिदेशक स्तर की नीति वार्ता के साथसाथ दोनों पक्षों के विचार मंचों के बीच नए संस्थागत तंत्र को प्रोत्साहित करने पर भी सहमत हुए। आईसीसीआर और आईसीआरओ के बीच सहयोग के लिए संस्थागत तंत्र बनाने

23 मई, 2016: तेहरान में त्रिपक्षीय समझौते के मौके पर मौजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद अशरफ गनी

23 मई, 2016: तेहरान में भारत और ईरान के बीच समझौतों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी

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पुस्तक अंश

ईरान के साथ भारत का रिश्ता आज चाबहार के साथ शुरू होता है, लेकिन इसका अंत व्यापक विकास, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग से होगा। ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी

23 मई, 2016: ईरान की राजधानी तेहरान में त्रिपक्षीय बैठक के दौरान ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद अशरफ गनी

के लिए भी समझौता किया गया, साथ ही चाबहार बंदरगाह परियोजना के लिए विशिष्ट शर्तों को अंतिम रूप देने के लिए भी समझौता हुआ। इसके आलावा भारत और ईरान के बीच विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए ईसीजीसी और ईजीएफआई के बीच सहयोग का ढांचा स्थापित करने, संयुक्त उद्यम स्मेल्टर (धातु गलाने वाला) की स्थापना करके एल्यूमीनियम धातु के निर्माण की संभावना का पता लगाने, चाबहार-जाहेदान रेलवे लाइन के निर्माण और भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार और ईरानी इस्लामी गणराज्य के राष्ट्रीय पुस्तकालय और अभिलेखागार संगठन के बीच सहयोग के लिए आवश्यक सेवाएं प्रदान करने सबंधी समझौते भी हुए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति रूहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी की। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘भारत और ईरान, दो महान सभ्यताओं: सिंहावलोकन और संभावनाओं’ विषय पर एक सम्मेलन का उद्घाटन किया और उनकी यात्रा के दौरान एक दुर्लभ फारसी पांडुलिपि जारी की गई। (अगले अंक में जारी)


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विविध

02 - 09 दिसंबर 2018

‘आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव मेरे आदर्श पुरुष हैं’ प्राकृत, पालि, अपभ्रंश, मागधी, अर्धमागधी-जैसी भाषाओं के ज्ञाता और हिंदी के प्रख्यात लेखक – संपादक आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव की स्मृति में दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया

गुंजन अग्रवाल

आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव मेरे आदर्श पुरुष हैं। वह मेरी अग्रज पीढ़ी से थे। उनकी रचनावली का प्रकाशन होना चहिए। इसके बिना उनके ज्ञान का सूर्य विश्वविद्यालयों तक नहीं पहुंच सकता’— यह बात प्रख्यात समीक्षक, लेखक तथा प्रेमचन्द-साहित्य के मर्मज्ञ डॉ. कमलकिशोर गोयनका ने कही। डॉ. गोयनका प्रख्यात भाषाविद् तथा पत्रकार आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव की श्रद्धांजलि-सभा को सम्बोधित कर रहे थे। ज्ञातव्य है कि प्राच्यविद्या के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव का गत 11 नवंबर, 2018 को 92 वर्ष की आयु में पटना में निधन हो गया था। डॉ. गोयनका ने कहा कि सूरिदेव जी प्राकृत, पालि, अपभ्रंश, मागधी, अर्धमागधी-जैसी भाषाओं के ज्ञाता थे, जिनके जैसे विद्वान् अब देश में नहीं के बराबर हैं, विश्वविद्यालयों में तो बिलकुल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सूरिदेव जी की स्मृति को चिरस्मृति बनाने के लिए कुछ ठोस कार्य किए जाने आवश्यक हैं, जिनमें ‘श्रीरंजन सूरिदेव अकादमी’ की स्थापना सर्वप्रथम की जानी चाहिए। अकादमी के अंतर्गत ‘आचार्य सूरिदेव संग्रहालय’ की स्थापना, ‘आचार्य सूरिदेव रचनावली’ का प्रकाशन, आचार्य सूरिदेव जी की जीवनी का प्रकाशन, आचार्य सूरिदेव पर एक डाक-टिकट और ‘आचार्य सूरिदेव व्याख्यानमाला’ का आयोजन किया जा सकता है। डॉ. गोयनका ने कहा कि सूरिदेव जी को किसी पुरस्कार की आकांक्षा नहीं थी और उन्होंने इसके लिए जीवनभर कोई प्रयास नहीं किया। उन्होंने बताया कि प्रो. अरुण कुमार भगत के प्रयास से केंद्रीय हिंदी संस्थान की

ओर से राष्ट्रपति ने सूरिदेव जी को पुरस्कृत किया था। श्रद्धांजलि-सभा की अध्यक्षता कर रहे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानन्द मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य सूरिदेव आचार्य शिवपूजन सहाय को अपना अग्रज मानते थे। उन्होंने उनके सहयोगी के रूप में कार्य किया था। उन्होंने कहा कि पिछले महीने पटना में हुए आचार्य सूरिदेव के अभिनन्दन-समाराेह में मुझे उपस्थित रहने का सौभाग्य मिला था। उन्होंने कहा कि आचार्य सूरिदेव ने संस्कृत, पालि और प्राकृत के शब्दों से समन्वित हिंदी का शब्दकोश को तैयार करने में बारह वर्षों का समय लगाया था, जिसका प्रकाशन होना ही चाहिए। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में हिंदी-हरियाणवी भाषा-विभाग के सेवानिवृत्त आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. भुवनेश्वर प्रसाद गुरुमैता ने आचार्य सूरिदेव की प्राकृत-भाषा पर पकड़ से जुड़े संस्मरणों को सुनाते हुए कहा कि सन् 1953 में ही आचार्य सूरिदेव से उनका संबंध बना था, जब वह ‘परिषद्-पत्रिका’ के दूसरे अंक का संपादन कर रहे थे। उस अंक में उन्होंने मुझे प्रकाशित करके गौरवान्वित किया था। उन्होंने कहा कि ‘मेघदूत : एक अनुशीलन’ शीर्षक उनके ग्रंथ की आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने सराहना की थी। उन्होंने कहा कि आचार्य सूरिदेव की समस्त अप्रकाशित रचनाओं को प्रकाशित करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के नोएडा-कैंपस में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत प्रो. अरुण कुमार

भगत ने कहा कि डॉ. सूरिदेव ने तीस वर्षों तक ‘परिषद्-पत्रिका’ का संपादन किया था और वह ‘साहित्य और साहित्यकार-सर्जक’ के रूप में सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे। डॉ. भगत ने कहा कि पिछले महीने 20 अक्टूबर को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा पटना में आचार्य जी का अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया था, तब बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन ने अस्पताल जाकर वहां भर्ती आचार्य सूरिदेव का सम्मान किया था। इस अवसर पर ‘कवि सभा’, दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. इंद्र सेंगर तथा आचार्य सूरिदेव के पौत्र आचार्य प्रियेन्दु प्रियदर्शी ने भी सभा को संबोधित किया और अपने तथा परिवार से जुड़े बहुत-से संस्मरणों को साझा किया। कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली की ‘कोर प्रकाशन इंडिया प्रा.लि.’ ने किया था। इससे पूर्व ‘दी कोर’ पत्रिका के कार्यकारी संपादक गुंजन अग्रवाल ने विषय-प्रवर्तन करते हुए आचार्य सूरिदेव जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला और उनके साथ अपने अनेक संस्मरणों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आचार्य सूरिदेव सच्चे अर्थों में ‘संपादकाचार्य’ और संपादकों के आदर्श थे। साहित्य एवं संस्कृति की सेवा में संलग्न, ‘कल्याण’ से लेकर ‘दी कोर’ तक असंख्य बड़ी-छोटी पत्र-पत्रिकाओं को रचना अथवा पाठकीय प्रतिक्रिया— किसी-न-किसी रूप में उनका सहयोग अवश्य मिला करता था। शताधिक पत्र-पत्रिकाएं एवं संस्थाएं आचार्य जी को अपने ‘परामर्शदाता’ या ‘मार्गदर्शक’ के रूप में स्थान देकर गौरव का अनुभव करती थीं। संस्था की ओर से धन्यवाद ज्ञापित करते हुए ‘दी कोर’ पत्रिका के प्रबंध संपादक भारत सिंह रावत ने आचार्य सूरिदेव की स्मृति को चिरस्थाई करने के लिए उनके 93वें जन्मदिवस (28 अक्टूबर, 2019) पर प्राच्यविद्या (संस्कृतभाषा एवं साहित्य, प्राकृत-भाषा एवं साहित्य तथा पालि-भाषा एवं साहित्य), हिंदी-साहित्य, सम्पादन तथा भाषाविज्ञान पर प्रत्येक वर्ष चार पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की। कार्यक्रम का संचालन सुलभ इंटरनेशनल की त्रैमासिक शोध-पत्रिका ‘चक्रवाक्’ के सहायक संपादक डॉ. अशोक कुमार ‘ज्योति’ ने किया। इस अवसर पर सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक पद्म विभूषण डॉ. विन्देश्वर पाठक द्वारा प्रेषित शोक-संदेश का वाचन किया गया। कार्यक्रम के अंत में दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि दी गई।

जीन्स में बदलाव कर बच्चों के जन्म का दावा चीन में एक अनुसंधानकर्ता के दावे की साइंस की दुनिया में काफी चर्चा

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न में एक वैज्ञानिक द्वारा जीन्स में बदलाव कर शिशुओं को पैदा करने के दावे की अब जांच कराई जाएगी। चीन के स्वास्थ्य विभाग ने इस दावे के सामने आते ही त्वरित जांच के आदेश दे दिए हैं। चीन की एक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ही जियानकुई ने एक वीडियो में जुड़वां लड़कियों के पैदा होने की घोषणा की। प्रोफेसर ने दावा किया कि एचआईवी जैसे इंफके ्शन से प्राकृतिक तौर पर ही बचाने के लिए इनकी जीन्स में बदलाव किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के कई देशों में जीन्स एडिटिंग बैन है, क्योंकि इससे अन्य जीन्स के नुकसान पहुंचने और आने वाली पीढ़ी के प्रभावित होने का खतरा है। प्रोफेसर ने दावा किया कि नवजात स्वस्थ और सुरक्षित हैं। प्रोफेसर ने दावा किया कि जुड़वां बच्चियों के डीएनए एक नए प्रभावशाली तरीके से बदलने में सफलता हासिल की है, जिससे नए सिरे से जीवन को लिखा जा सकता है। अगर यह बात सही है तो विज्ञान के क्षेत्र में यह एक बड़ा कदम होगा। एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा कि उन्होंने चीन में हुए इस अनुसधं ान कार्य में भाग लिया। हालांकि मुख्यधारा के कई वैज्ञानिक सोचते हैं कि इस तरह का प्रयोग करना बहुत असुरक्षित है और कुछ ने इस संबधं में चीन से आई खबर की निंदा की। शेनझान के प्रोफेसर और अनुसधं ानकर्ता ही जियानकुई ने कहा कि उन्होंने सात दंपतियों के बांझपन के उपचार के दौरान भ्रूणों को बदला जिसमें अभी तक एक मामले में संतान के जन्म लेने में यह परिणाम सामने आया। उन्होंने कहा कि उनका मकसद किसी वंशानुगत बीमारी का इलाज या उसकी रोकथाम करना नहीं है, बल्कि एचआईवी और एड्स वायरस से भविष्य में संक्रमण रोकने की क्षमता ईजाद करना है जो लोगों के पास प्राकृतिक रूप से हो।


02 - 09 दिसंबर 2018

खेल

देशभक्ति के जज्बे से हारे अंग्ज रे मोहन बागान एसी की टीम ने शिबदास भाडुड़ी की कप्तानी में ‘आईएफए शील्ड’ टूर्नामेंट के फाइनल में अंग्रेजों के क्लब ईस्ट यॉर्कशायर रेजिमेंट को 2-1 से धूल चटाकर इतिहास बना दिया था

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वक्त बीता और आया साल 1911, ब्रिटेन के राजा और रानी भारत की यात्रा पर आए थे और कलकत्ते की जगह दिल्लीे भारत की राजधानी बनी। खेलों की दुनिया में भी एक भारतीय टीम इतिहास रचने जा रही थी। उस वक्त तक शुद्ध देशी भारतीय फुटबॉल क्लब मोहन बागान की प्रतिष्ठा बढ़ चुकी थी और अंग्रेज क्लब भी उसे अपने लिए खतरा मानने लगे थे। लेकिन अंग्रेजों को अपने ही खेल में भारतीयों से साहस और शौर्य की अद्भुत गाथा अभी देखना बाकी था। अपने पूरे दमखम के साथ टूर्नामेंट में उतरी मोहन बागान की टीम ने शिबदास भाडुड़ी की कप्तानी में ‘आईएफए शील्ड’ टूर्नामेंट के फाइनल में अंग्रेजों के क्लब ईस्ट यॉर्कशायर रेजिमेंट को 2-1 से धूल चटाकर इतिहास बना दिया। पहली बार यह टूर्नामेंट जीतने वाली पहली एशियाई टीम भारतीय फुटबॉल क्लब मोहन बागान एसी के खिलाड़ी उस मैच में नंगे पैर खेले थे, जबकि यॉर्कशायर रेजिमेंट के खिलाड़ियों के पास जूतों के साथ-साथ सारे जरूरी साजो-सामान थे। इस जीत ने सिर्फ भारतीय खिलाड़ियों को ही नहीं, बल्कि भारत की आजादी के लिए लड़ रहे और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल लोगों को भी देशप्रेम की गहरी भावना से भर दिया था। इस जीत को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में भी एक बड़ी प्रेरणादायक घटना माना जाता है।

ऐतिहासिक फोटो: मोहन बागान ए.सी. टीम ‘आईएफए शील्ड’ टूर्नामेंट फाइनल जीतने के बाद

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अयोध्या प्रसाद सिंह

ल ही में एक खबर आई कि पिछले कुछ वक्त से कई देशभक्तिपूर्ण फिल्मों का निर्माण कर रहे और मशहूर बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम भारतीय खेल इतिहास की एक स्वर्णिम ऐतिहासिक घटना पर फिल्म बनाएंग।े यह फिल्म साल 1911 में घटी उस शानदार खेल घटना को दिखाएगी जब गुलाम भारत की एक फुटबॉल टीम ने अंग्रेजों की टीम को हराया था और भारत के सबसे पुराने खेल टूर्नामेंट में एक ‘आईएफए शील्ड’ ट्रॉफी पर कब्जा जमाया था। आज हम आपको बताने जा रहे हैं उसी ऐतिहासिक खेल घटना से जुड़ी फुटबाॅल टीम और मैच की कहानी। साल 1893 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक फुटबॉल ऑर्गनाइजेशन आईएफए (इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन) की स्थापना की गई। इस एसोसिएशन का काम कलकत्ता में होने वाले फुटबॉल खेल की देखरेख करना था। 1893 में ही इस एसोसिएशन ने कोलकाता में एक टूर्नामेंट की शुरुआत की, नाम था ‘आईएफए शील्ड’। यह क्षेत्रीय स्तर पर आयोजित की जाने वाली फुटबॉल की प्रतियोगिता थी, जिसका आयोजन आज भी हर साल किया जाता

है और भारतीय फुटबॉल की दुनिया में इसे बहुत सम्मान के साथ देखा जाता है। यह भारत के पुराने फुटबॉल टूर्नामेंटों में तो है ही, साथ ही दुनिया के भी सबसे पुराना फुटबॉल टूर्नामेंटों में शामिल है। उस वक्त चूकि ं भारत अंग्रेजों का गुलाम था। इसीलिए देश में अधिकतर फुटबॉल क्लब और टीमें अंग्रेजों की ही थीं और अंग्रेज ही इसमें खेला करते थे। वे इन खेलों में माहिर माने जाते थे और तकनीकी रूप वे से हमसे बहुत आगे थे। अपने शानदार खेल के बूते ही अंग्रेज क्लब लगातार ‘आईएफए शील्ड’ टूर्नामेंट जीत रहे थे। साल 1889 में भारत के एक मशहूर वकील भूपद्रें नाथ बोस ने भारत के सबसे पुराने फुटबॉल क्लब मोहन बागान एसी की स्थापना की। इस क्लब में सभी खिलाड़ी भारतीय थे और इसीलिए यह क्लब भारतीयों के लिए देशप्रेम की भावना से जुड़ गया। अपनी स्थापना के बाद से ही क्लब निरंतर प्रगति करता रहा और साल 1904 में पहली बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए कूचबिहार कप का विजेता बना। इसके अगले साल ही मोहन बागान ने ग्लेडस्टोन कप के फाइनल में जगह बनाई जहां उसने उस साल की प्रतिष्ठित ‘आईएफए शील्ड’ विजेता डलहौजी एसी को हराया। लेकिन इतिहास बनना अभी बाकी था।

सिनेमा और खेल इतिहास का संगम खे

लों की महान घटनाओं और खिलाड़ियों के जीवन पर बॉलीवुड में फिल्म बनना कोई नई बात नहीं है। लेकिन अब जिस घटना पर फिल्म बनने की बात सामने आई है, यह साल 1911 की ऐतिहासिक खेल घटना है जिसमें भारत के सबसे पुराने फुटबॉल क्लब मोहन बागान ने औपनिवेशिक भारत में अंग्रेजों के क्लब ईस्ट यॉर्कशायर रेजिमेंट को 2-1 से हराकर बेहद प्रतिष्ठित ‘आईएफए शील्ड’ टूर्नामेंट जीता था। इस फिल्म की स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है। फिल्म के निर्देशक होंगे निखिल आडवानी। स्पोर्ट्स बेस्ड इस फिल्म में मुख्य भूमिका में दिखेंगे अभिनेता जॉन अब्राहम जो 1911 के ‘आईएफए शील्ड फाइनल’ फाइनल में भारतीय क्लब की कप्तानी करने वाले महान खिलाड़ी शिबदास भाडुड़ी की भूमिका करेंगे। जॉन इसे अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बता रहे हैं।


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सुलभ संसार

02 - 09 दिसंबर 2018

सुलभ अतिथि

ई दिल्ली के लोधी रोड पर स्थित बनयान ट्री स्कूल के कक्षा IV के 20 छात्रों का एक समूह अपने संयोजक (शिक्षक और अभिभावक) के साथ और कुछ अन्य आगंतुकों ने 26 नवंबर को सुलभ परिसर का दौरा किया। उन्होंने सुबह-सुबह सुलभ कार्यक्रम में भाग लिया जहां उनका औपचारिक रूप से सुलभ के पारंपरिक तरीके से शाॅल के साथ स्वागत किया गया। सुलभ ग्राम की विभिन्न गतिविधियों को देखने के बाद आगंतुक बच्चे और अन्य लोग बहुत प्रभावित हुए। आगंतुकों को सुलभ पब्लिक स्कूल भी ले जाया गया जहां उन्होंने व्यावसायिक प्रशिक्षण में व्यस्त छात्रों को बड़ी उत्सुकता से देखा।

त्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित सरस्वती कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज के 4 प्रोफेसरों के समूह, जापान से एआईजावा कंक्रीट कॉपोरेशन और एसएमई सपोर्ट के आठ सदस्यों के समूह और गाजियाबाद नगर निगम के 100 कर्मचारियों के ग्रुप ने 27 नवंबर को सुलभ परिसर का दौरा किया। मेहमानों ने सुलभ पब्लिक स्कूल का भी दौरा किया और उसके बाद सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स को देखा। सभी मेहमान म्यूजियम और सुलभ के अन्य इनोवेशन देखकर आश्चर्यचकित रह गए। मेहमानों ने सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक के साथ बातचीत भी की ।

ई दिल्ली के महिपालपुर स्थित सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता संस्थान, स्कूल ऑफ नर्सिंग के 2 संयोजकों के साथ 27 एएनएम छात्रों के एक समूह और नई दिल्ली के स्किल

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जियाबाद स्थित दिल्ली पब्लिक वर्ल्ड स्कूल के छठी से आठवीं कक्षा के 80 छात्रों के समूह ने अपने शिक्षकों के साथ और कुछ अन्य आगंतुकों ने सुलभ परिसर का दौरा किया। उन्हें सुलभ ग्राम स्थित सुलभ पब्लिक स्कूल, शौचालय संग्रहालय, सुलभ प्रौद्योगिकी के मॉडल, बायोगैस संयंत्र, सुलभ स्वास्थ्य केंद्र, जल

लपसी - तपसी

क लपसी था, एक तपसी था। तपसी हमेशा भगवान की तपस्या में लीन रहता था। लपसी रोजाना सवा सेर की लपसी बनाकर भगवान का भोग लगा कर जीम लेता था। एक दिन दोनों लड़ने लगे। तपसी बोला मैं रोज भगवान की तपस्या करता हूं इसीलिए मै बड़ा हूं। लपसी बोला मैं रोज भगवान को सवा सेर लपसी का भोग लगाता हूं इसीलिए मैं बड़ा। तभी नारद जी वहां से गुजर रहे थे। दोनों को लड़ता देखकर उनसे पूछा कि तुम क्यों लड़ रहे हो ? तपसी ने खुद के बड़ा होने का कारण बताया और लपसी ने अपना कारण बताया। नारद जी बोले, तुम्हारा फैसला मैं कर दूंगा। दूसरे दिन लपसी और तपसी नहा कर अपनी रोज की भक्ति करने आए तो नारद जी ने छुप कर सवा करोड़ की एक एक अंगूठी उन दोनों के आगे रख दी। तपसी की नजर जब अंगूठी पर पड़ी तो उसने चुपचाप अंगूठी उठा कर अपने नीचे दबा ली। लपसी की नजर अंगूठी पर पड़ी, लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया भगवान को भोग लगाकर लपसी खाने लगा। नारद जी सामने आए तो दोनों ने पूछा कि कौन बड़ा? इस पर नारद जी ने तपसी से खड़ा होने को कहा। वो खड़ा हुआ तो उसके नीचे दबी अंगूठी दिखाई पड़ी।

काउंसिल ऑफ ग्रीन जॉब के सलाहकार डॉ. परवीन धमीजा ने 28 नवंबर को सुलभ परिसर का दौरा किया। उन्होंने सुलभ शौचालय के आउटडोर संग्रहालय को देखा जहां उन्हें सुलभ प्रौद्योगिकी ‘टू-पिट-पोर-फ्लश कंपोस्ट टॉयलेट’ के बारे में बताया गया जिसे वन क्षेत्र, पर्वत क्षेत्र आदि में कभी भी बनाया जा सकता है। उन्होंने सार्वजनिक शौचालय पर आधारित बायोगैस संयंत्र, सुलभ जल एटीएम और सुलभ स्वास्थ्य केंद्र आदि में भी गहरी रुचि दिखाई।

एटीएम आदि सुलभ ग्राम की विभिन्न इकाइयों में ले जाया गया। उन्होंने प्रस्थान करते हुए अपने दौरे पर आनंद और संतुष्टि जताई।

चलो आज फिर हिमांशु

नारद जी ने तपसी से कहा तपस्या करने के बाद भी तुम्हारी चोरी करने की आदत नहीं गई। इसीलिए लपसी बड़ा है। और तुम्हें तुम्हारी तपस्या का कोई फल भी नहीं मिलेगा। तपसी शर्मिंदा होकर माफी मांगने लगा। उसने नारद जी से पूछा, मुझे मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा ? नारद जी ने कहा यदि कोई गाय और कुत्ते की रोटी नहीं बनाएगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा नहीं देगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई साड़ी के साथ ब्लाउज नहीं देगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई दीये से दीया जलाएगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई सारी कहानी सुने लेकिन तुम्हारी कहानी नहीं सुने तो फल तुझे मिलेगा। उसी दिन से हर व्रत कथा कहानी के साथ लपसी तपसी की कहानी भी सुनी और कही जाती है

आओ जिंदगी का सिक्का फिर उछालते हैं, नई शुरुआत करते हैं, ना हम इस दुनिया के, ना ये दुनिया हमारी, चलो आज किसी के होठों पर मुस्कुराहट, फिर से लाते हैं। चलो आज एक आंसू और पोछते हैं, चलो आज ख्वाबों से आंखें फिर सजाते हैं, आज कच्ची सड़कों पर फिर दौड़ लगाते हैं, चलो दोस्तों के साथ फिर खिलखिलाते हैं, चलो बारिश के पानी में फिर, नाचते गाते हैं, चलो बेवजह मुस्कुराते हैं, आओ ख्वाबों का जहां बनाते हैं, अपना नन्हा आंगन बनाते हैं, चलो फिर से बच्चे बन जाते हैं जिंदगी के दौड़ छोड़, कुछ देर राहों पे निगाह दौड़ाते हैं, ठंडी आंहे भरते हुए, गलतियों को याद करते हैं, उन पर मुस्कुराते हैं, उस वक्त को याद करते हैं, जब गलतियां भी माफ होती थीं, जब जिंदगी से गीला शिकवा ना था, जब हम भी बेफिक्र हुआ करते थे, आओ उन किस्से को फिर दोहराते हैं।


02 - 09 दिसंबर 2018

आओ हंसें

जीवन मंत्र

सु

हाथ धोना

शिक्षक : खाना खाने से पहले हाथ धोने चाहिए। छात्रा : लेकिन मैं नहीं धोती। शिक्षक : क्यों? छात्रा : मैं खाना खाने के बाद धोती हूं। शिक्षक : ऐसा क्यों? छात्रा : ...ताकि मोबाइल पर दाग न पड़े। शिक्षक बेहोश।

महत्वपूर्ण तिथियां

• 03 दिसंबर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जयंती, भोपाल गैस-त्रासदी दिवस, अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस • 04 दिसंबर भारतीय नौसेना दिवस • 05 दिसंबर महर्षि अरविंद स्मृति दिवस • 06 दिसंबर भीमराव आंबेडकर स्मृति दिवस, नागरिक सुरक्षा स्थापना दिवस, होमगार्ड स्थापना दिवस • 07 दिसंबर भारतीय सशस्त्र सेना झंडा दिवस, अंतरराष्ट्रीय नागरिक विमानन दिवस (आईसीएओ) • 08-14 दिसंबर अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह • 09 दिसंबर अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोध दिवस

31

इंद्रधनुष

डोकू -51

जब तक हम किसी भी काम को करने की कोशिश नहीं करते हैं, तब तक हमें वह काम नामुमकिन ही लगता है

रंग भरो

बाएं से दाएं

1. आने वाला (3) 3. प्रार्थना, जाँच की रिपोर्ट (5) 6. उदाहरण, सुपुर्दगी, सिफारिश (3) 7. अंदरूनी झगड़े (5) 8. असहाय स्त्री (3) 9. लदाई (2) 10. झगड़ा, झड़प (4) 13. खुशामदी (4) 15. चुनौती, शाह की संक्षिप्त (2) 16. मूल्य (3) 17. कमल जैसे मुख वाला (5) 19. लुभावना, सुंदर (3) 20. रावण (2,3) 21. जहाँ धरती आकाश मिलते हैं (3)

सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

सुडोकू-50 का हल विजेता का नाम कुमार रो​िहत वृंदावन, यूपी

वर्ग पहेली-50 का हल

ऊपर से नीचे

2. गणना शास्त्र (3) 3. बहाव, गति (3) 4. कलाबत्तू का कारीगर (2) 5. दूसरे पक्ष में चला जाने वाला (2,3) 6. किसान, दाऊ (4) 7. लिखा हुआ, चित्रित (3) 8. तान युक्त स्वर (3) 11. ऊहापोह, असमंजस की स्थिति (5) 12. सहायता, आराम (3) 13. चार खानों वाली आकृति (4) 14. प्रमाण (3) 17. ऊँट की नकेल, मधुमक्खी का छत्ता (3) 18. बीस की संख्या (3) 19. होश (2)

कार्टून ः धीर

वर्ग पहेली - 51


32

न्यूजमेकर

02 - 09 दिसंबर 2018

अनाम हीरो

पुष्प कमल

विज्ञान का नया पुष्प

भा

पटना के छात्र अमल पुष्प को रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ने अपने फेलो के तौर पर चुना है

रत ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक और नया कीर्तिमान स्थापित कर लिया है। पटना के रहनेवाले अमल पुष्प को रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ने ब्लैक होल पर किए गए उनके रिसर्च पेपर वर्क की बदौलत अपने फेलो के तौर पर चुना है। केवल 18 साल की उम्र में वे संभवत: इस फेलोशिप को पानेवाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति बन गए हैं। अमल को कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शीर्ष ब्रिटिश खगोलविद और एमरिटस प्रोफेसर लॉर्ड मार्टिन रीस की ओर से नामांकित किया गया था। प्रोफेसर रीस की मानें तो वे अमल के रिसर्च पेपर वर्क से काफी प्रभावित हैं। अमल का सफर अंतरराष्ट्रीय साइंटिफिक

एम.सी. मैरी कॉम

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पहली महिला कोबरा कमांडो

कम्युनिटी में अपनी पहचान बनाने का उस वक्त शुरू हुआ, जब उन्होंने अपने रिसर्च वर्क का एक पेपर नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंस के प्रोफेसर पार्थव घोष को भेजा। वे अमल के पेपर वर्क से बहुत प्रभावित हुए और इसे और इसे आगे बढ़ाने का समर्थन किया। गौरतलब है कि नासा के वैज्ञानिकों ने सबसे अधिक दूरी पर स्थित एक विशालकाय ब्लैक होल का पता लगाया था जो सूर्य के द्रव्यमान से 80 करोड़ गुणा बड़ा है। ब्लैक होल के बारे में ये भी कहा जाता है की इस खगोलीय विवर में जो भी वस्तु जाती है, वह वापस नहीं लौटती। ब्लैक होल अंतरिक्ष में वह जगह है, जहां भौतिक विज्ञान का कोई नियम काम नहीं करता।

न्यूजमेकर फिर विश्व चैंपियन

पांच बार की विश्व बॉक्सिंग चैंपियन मैरी कॉम छठवीं बार विश्व चैंपियन बनीं

वर्षीय मैरी कॉम ने हाल में नई दिल्ली के केडी जाधव इंडोर स्टेडियम में हेना को एकतरफा मैच में 5-0 से हराया। विश्व चैंपियनशिप में मैरी कॉम ने आखिरी बार 2010 में स्वर्ण पदक जीता था। इसके अलावा वह 2002, 2005, 2006 और 2008 में भी स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। इसी रिकॉर्ड के साथ मैरी कॉम ने आयरलैंड की केटी टेलर का पांच बार विश्व चैंपियनशिप जीतने के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। साथ ही उन्होंने विश्व चैंपियनशिप के इतिहास में पुरुष बॉक्सर फेलिक्स सेवन के छह बार के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है।

उषा किरण

यूक्रेन की हेना केवल 22 साल की हैं। उनके और मैरी कॉम के बीच में 13 साल की आयु का अंतर है। मणिपुर में एक गरीब परिवार में जन्मीं मैरी कॉम के परिवार वाले नहीं चाहते थे कि वो बॉक्सिंग में जाएं। बचपन में मैरी कॉम घर का काम करतीं, खेत में जातीं, भाई बहन को संभालतीं और प्रैक्टिस करती। दरअसल डिंको सिंह ने उन दिनों 1998 में एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता था, वहीं से मैरी कॉम को भी बॉक्सिंग का चस्का लगा। मैरी कॉम के जीवन पर बॉलीवुड में बायोपिक भी बन चुकी है, जिसमें प्रियंका चोपड़ा ने मैरी कॉम की भूमिका अदा की थी।

सीआरपीएफ की ट्रेनिंग खत्म होने पर मांगी सबसे मुश्किल इलाके में तैनाती

त्तीसगढ़ में नक्सली वारदातों में पुलिस और कई बार आम लोगों के भी मारे जाने की खबरें आए दिन सुनने में आती हैं। घने जंगलों या दूरदराज गांवों में इस खौफ की वजह से अच्छे-अच्छे जाने से घबराते हैं, वहीं कोबरा कमांडो फोर्स की पहली महिला उषा किरण यहां बेखौफ घूमती हैं। वह सीआरपीएफ से देश की पहली महिला अफसर हैं, जो नक्सली इलाके में तैनात हैं। यह तैनाती उषा ने खुद मांगकर ली। महज 27 साल की उम्र में उषा के पास उपलब्धियों की अच्छी-खासी फेहरिस्त है। गुरुग्राम की रहने वाली उषा ने 2013 में सीआरपीएफ की परीक्षा में देश में 295वां रैंक हासिल किया। इनके पिता और दादा भी सीआरपीएफ में रह चुके हैं। 25 वर्ष की उम्र में उषा ने सीआरपीएफ की मुश्किल ट्रेनिंग पूरी कर ली और फोर्स में शामिल हो गईं। ट्रिपल जंप में राष्ट्रीय स्तर की विजेता उषा ने ट्रेनिंग के बाद सीनियरों से एक ही मांग की कि उन्हें किसी मुश्किल इलाके में नियुक्ति चाहिए, जैसे कि जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्य या फिर नक्सल इलाके। उषा की बहादुरी और जज्बे को देखते हुए उन्हें छत्तीसगढ़ के बस्तर की दरभा घाटी में नियुक्ति मिली। बता दें कि ये इलाका नक्सली वारदातों का गढ़ माना जाता है, जहां 25 मई 2013 को हुए हमले में कई नेताओं समेत 32 लोग मारे गए थे।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 51


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