सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 50)

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जेंडर

महिलाएं दे रहीं हरियाली का संदेश

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व्यक्तित्व

स्वच्छता

श्रम की अस्मिता का तर्क

स्वच्छता का लक्ष्य शतप्रतिशत पूरा करने वाला देश

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

बदलते भारत का साप्ताहिक

वर्ष-2 | अंक-50 |26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018 मूल्य ` 10/-

विश्व शौचालय दिवस

सुरक्षित सीवर सफाई का सुलभ ‘होप’ स्वच्छता और सामाजिक सुधार संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने विश्व शौचालय दिवस के मौके पर सीवर क्लीनिंग मशीन पेश की, इस मशीन की मदद से अब मैन्युअल सीवर सफाई के खतरों से तो बचा ही जा सकेगा, साथ ही इसके द्वारा उनकी गहराई तक सफाई भी की जा सकेगी


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आवरण कथा

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

विश्व के सबसे बड़े शौचालय पॉट के समक्ष डिकोबे मार्टिन, अनिल खेतान, आदेश गुप्ता, मनहर वालजीभाई जाला के साथ डॉ. विन्देश्वर पाठक

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अयोध्या प्रसाद सिं​ह

श्व शौचालय दिवस के दिन सीवर लाइन की मैन्युअल सफाई करने वाले सफाईकर्मियों को सुलभ ने शानदार तोहफा दिया। सुलभ द्वारा प्रस्तुत की गई ‘होप’ नामक मशीन वह उम्मीद की रोशनी है, जिससे उनकी अनमोल जान को अब कोई खतरा नहीं होगा। सीवर की मैन्युअल सफाई के दौरान सफाईकर्मियों को अक्सर कई बड़े खतरों से जूझना पड़ता है, इसीलिए इसे दुनिया का सबसे खतरनाक और घृणित काम भी माना जाता है। लेकिन अच्छी खबर ये है कि अब इन खतरों से न सिर्फ बचा जा सकता है, बल्कि बरसात के दिनों में नगरों और महानगरों में जल जमाव की समस्या से भी निपटा जा सकता है। विश्व शौचालय दिवस के मौके पर स्वच्छता और सामाजिक सुधार संस्था

खास बातें

सुलभ ने पेश की सीवर व सेप्टिक टैंक की सफाई वाली ‘होप’ मशीन सुलभ प्रेरणा से दिल्ली के तीनों नगर निगम भी खरीदेंगे ‘होप’ राजीव गांधी विश्यविद्यालय में शुरू होगा ‘सैनिटेशन कोर्स’

सुलभ इंटरनेशनल ने सीवर क्लीनिंग मशीन पेश की है। इस मशीन का उद्घाटन दिल्ली प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी और राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के मनहर वालजीभाई जाला के साथ दिल्ली के तीनो नगरनिगमों के अध्यक्षों और सुलभ संस्थापक डॉ. पाठक ने नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब के मावलंकर सभागार में किया। शंख ध्वनि, नारियल और अलवर-टोंक की पुनर्वासित स्कैवेंजर्स महिलाओं के मंत्रोच्चार के बीच इस मशीन का शुभारम्भ हुआ और लोगों में इस बात की उम्मीद जगी कि अब सीवर की मैन्युअल सफाई से छुटकारा मिल सकेगा और सफाईकर्मियों को कोई खतरा नहीं होगा। साथ ही इस मौके पर ‘सीवर श्रमिकों की मौत को रोकने के लिए सफाईकर्मियों के लिए सुरक्षा उपाय’ विषय पर एक संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश के उप-कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा, प्रो. जॉनी मैक, स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका, नीलांशु भूषण बसु, मुख्य इंजीनियर, कोलकाता म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, के.जी.नाथ, अध्यक्ष, विज्ञान और तकनीक, सुलभ इंटरनेशनल आदि लोग भी उपस्थित थे।

सीवर सफाई के दौरान मौतों पर लगेगी लगाम

सरकारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2017 की शुरुआत से सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय हर पांच दिनों में एक सफाईकर्मी की मृत्यु हुई है। मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेजवाडा विल्सन का सफाई कर्मचारी आंदोलन उन लोगों के आंकड़े जुटा रहा है जो गए तो थे सीवर की सफाई करने और केवल लाश बनकर बाहर निकले। साल 2010

विश्व शौचालय दिवस के मौके पर स्वच्छता और सामाजिक सुधार संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने सीवर क्लीनिंग मशीन पेश की है

से अब तक 356 ऐसी मौतें हो चुकी हैं, यानी 44 हर साल। वहीं विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले तीन वर्षों में सीवर लाइनों की सफाई के दौरान 1300 से ज्यादा सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है। अब सुलभ द्वारा पेश इस मशीन से अब ऐसी मौतों को रोका जा सकेगा।

चट्ट देनी मार देली गंदगी को तमाचा: मनोज तिवारी

इस मौके पर उपस्थित दिल्ली प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने इस दिन को एेतिहासिक बताते हुए कहा कि सुलभ द्वारा इस मशीन से महानगरों की बड़ी-बड़ी सीवर लाइन की सफाई में कोई समस्या नहीं आएगी और हमारे कर्मचारियों की अनमोल जान को भी कोई खतरा नहीं रहेगा। उन्होंने डॉ. पाठक की तारीफ करते हुए कहा कि कोई दूसरा डॉ. पाठक नहीं बन सकता। डॉ. पाठक के काम को हमारे प्रधानमंत्री से लेकर पूरी दुनिया तक ने सराहा है। 2.5 करोड़ की आबादी वाली दिल्ली की विशाल सीवर लाइन को साफ करने में कई मजदूरों की जान गई है। लेकिन उनकी जान बचाना सरकारों की जिम्मेदारी है। कई बार मशीन से लेकर इक्विपमेंट लाने तक की सलाह दी गई। लेकिन इस सबको हकीकत में पाठक जी ने उतारा है। तिवारी ने कहा कि मैंने जब मशीन का उद्घाटन किया तब मैंने करीब से इस मशीन को देखा कि 90 फीट लंबी रॉड के

एक छोर पर कैमरा लगा है, जब यह रॉड सीवर लाइन में उतारी जाएगी तो अंदर की हर गतिविधि की जानकारी बाहर कंप्यूटर स्क्रीन पर मिलेगी। इस तरह की मशीन से सच में हम सफाईकर्मियों की जान बचा सकते हैं। यह सरकार की भी जिम्मेदारी है कि उसे यह पता हो कि जो व्यक्ति सीवर साफ करने के लिए अंदर जा रहा है, उसके पास सभी तकनीकी उपकरण हैं या नहीं। मनोज तिवारी ने कार्यक्रम में मौजूद दिल्ली के तीनों नगरनिगमों के अध्यक्षों से कहा कि वे जल्द से जल्द अपने निगम के लिए इस मशीन को खरीदें। साथ ही तिवारी ने सुलभ सीवर क्लीनिंग मशीन व्हीकल को सीवर सफाई के लिए निगम में शामिल करने के लिए भी कहा। तिवारी ने कहा कि सीवर किसी भी विभाग के पास हो, लेकिन इसमें जहरीली गैसों से होने वाली मौतों को लेकर हम कब तक एक-दूसरे को कोसते रहेंगे। मनोज तिवारी ने कार्यक्रम में अपना मशहूर गाना ‘चट्ट देनी मार देली खींच के तमाचा, हीही हंस देनी रींकिया के पापा’ भी सुनाया। उन्होंने अपने इस गाने को गंदगी के ऊपर गाते हुए सुनाया, ‘चट्ट देनी मार देनी गंदगी को तमाचा’।

मशीन से सीवर सफाई में क्रांतिकारी बदलाव आएगा: डॉ. विन्देश्वर पाठक सुलभ स्वच्छता और सामाजिक सुधार आंदोलन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने कहा कि विश्व


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दीप प्रज्जवलित करते मनोज तिवारी, मनहर वालजीभाई जाला एवं अन्य अतिथियों के साथ डॉ. पाठक

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आवरण कथा

शौचालय पॉट के मॉडल के साथ मनोज तिवारी एवं स्कूली बच्चे

सुलभ स्वच्छता रथ के साथ आमंत्रित विशिष्ट अतिथिगण एवं डॉ. पाठक

शौचालय दिवस के इस मौके पर सीवर सफाई की यह मशीन बड़ा क्रांतिकारी बदलाव लाएगी। इस मशीन से सीवर लाइन की मैन्युअल सफाई की समस्या से छुटकारा मिलेगा। सीवर की सफाई के लिए मशीन आयात करने के बारे में उन्होंने बताया कि अक्टूबर माह में वह और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव पटना से साथ ही दिल्ली आ रहे थे। यात्रा के दौरान शरद जी ने सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों पर अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि अगर हो सके तो आप कुछ ऐसा करें, जिससे सीवर की सफाई के दौरान कर्मियों की होने वाली मौतों पर लगाम लग सके। तभी मेरे मन में यह विचार आया। अक्टूबर में शरद यादव जी से बात हुई और

सुलभ ने महिलाओं को मैला ढोने से मुक्ति दिलाकर आर्थिक आजादी भी दिलाई है और उनके लिए ट्रेनिंग सेंटर खोले हैं

नवंबर माह में हमने यह मशीन चीन से मंगवाई। सिर्फ 25 दिनों के अंदर 43 लाख रुपए की लागत से सीवर की सफाई के लिए यह मशीन मंगवाई गई। अब सफाई के दौरान किसी कर्मी को सेप्टिक टैंक में नहीं उतरना पड़ेगा। अगर सीवर लाइन में किसी कर्मी जाना पड़ा तो उसे सभी उपकरणों के साथ भेजा जाएगा। डॉ. पाठक ने कहा कि यदि सिविक संस्थाओं को जरूरत हो तो इस मशीन को मैकेनिकल सफाई के लिए भी लगाया जाएगा। एक महीने के

अंदर आई इस मशीन से निश्चित तौर पर बदलाव की इबारत लिखी जाएगी। पाठक ने कहा कि हमें लागत की ओर नहीं, बल्कि उस काम के महत्व की ओर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि सुलभ सीवर क्लीनिंग मशीन के जरिए आसानी से अंदर कितनी गंदगी है और गैस की मात्रा के बारे में पता चल सकेगा। इसके उपयोग से हमारे सफाई कर्मचारियों को अपनी जान जोखिम में डालकर सीवर में नहीं जाना पड़ेगा और वह अब अपना काम आसानी से कर सकेंगे।

सुलभ आंदोलन महिला सशक्तीकरण का प्रतीक : डॉ. विन्देश्वर पाठक

डॉ. पाठक ने बताया कि जब हमने 50 साल पहले काम शुरू किया था तब शौचालय को लेकर कोई चर्चा भी करना पसंद नहीं करता था, शौचालय की बात तब बहुत ही घृणित मानी जाती थी। लेकिन

आज लोग बहुत ही शान से शौचालय की बात करते हैं और इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है, उन्होंने शौचालय को इज्जत दिलाई है। सुलभ के टू-पिट-पोर-फ्लश शौचालय के आविष्कार के बिना देश मैला ढोने से मुक्त नहीं हो पाता। डॉ. पाठक ने इस मौके पर कहा कि सुलभ का सामाजिक सुधार आंदोलन महिला सशक्तीकरण का बहुत बड़ा उदाहरण है। सुलभ ने महिलाओं को मैला ढोने से मुक्ति दिलाकर आर्थिक आजादी भी दिलाई है और उनके लिए ट्रेनिंग सेंटर खोले हैं। पाठक ने पुनर्वासित स्कैवज ें र उषा शर्मा का उदहारण देते हुए बताया कि जो 2003 तक कभी मैला ढोती थीं, उनको जब 2015 में स्वच्छता के क्षेत्र में पुरस्कार मिला तो वह पीएम के साथ फोटो खिंचवाने के लिए पीरामल जैसे बड़े बिजनेसमैन से भी बात करने में नहीं झिझकीं। मेरे लिए यह महिला सशक्तीकरण के तौर


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‘होप’ ने दी उम्मीद की रोशनी

सीवर सफाई मशीन ‘होप’ के साथ संचालक दल

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वर की सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की होने वाली मौतों की रोकथाम के लिए अत्याधुनिक तकनीक से विकसित ‘सीवर सफाई मशीन’ की कई खासियत हैं। इस मशीन को होप यानी उम्मीद नाम दिया गया है। इस मशीन में कई ऐसे टूल लगे हुए हैं जिनकी मदद से ड्रेन लाइन से अपशिष्ट और सिल्ट को काटकर निकाला जा सकता है। इस मशीन की एक सबसे खास बात यह भी है कि ट्रॉली, पर बहुत बड़ा दृश्य था। डॉ. पाठक ने एक बार फिर से जोर देकर कहा कि सामाजिक बदलाव के लिए हमने धर्म की तरह ही जाति बदलने पर बल दिया, जिसके बहुत ही बेहतर परिणाम मिले हैं।

सफाईकर्मियों के लिए सामाजिक बदलाव लाना होगा: मनहर वालजीभाई जाला

इस मौके पर मौजूद राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष मनहर वालजीभाई जाला ने कहा कि सल ु भ का स्वच्छता और शौचालय के क्षेत्र में योगदान तो पूरी दुनिया जानती है। लेकिन अब सीवर की सफाई के लिए मशीन लाकर सुलभ ने क्रांतिकारी परिवर्तन की नींव रख दी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी खुद अपना शौचालय साफ करते थे और अपनी पत्नी कस्तूरबा से भी शौचालय साफ करने के लिए कहते थे। जब कस्तूरबा ने मना किया तो गांधी ने कहा कि हम साथ तभी रहेंगे जब तुम भी शौचालय साफ करोगी। इससे

रॉड, ड्रेन क्लीनिंग सिस्टम के साथ कम से कम पानी से ही यह मशीन लचीले केबल और रॉड

होप मशीन 30 फुट की गहराई के साथ-साथ करीब 100 फुट के अपने दायरे में कहीं भी सीवर जाम की कैमरे से फोटोग्राफ देगी

पता चलता है कि गांधी ने शौचालय को किस हद तक महत्त्व दिया था। लेकिन पाठक जी का काम आसान नहीं था, उन्होंने खुद मैला अपने ​िसर पर ढोया है। पाठक जी के बहुत से महान कामों में एक और महान काम भी जुड़ गया जो उन्होंने ये मशीन लाकर किया है। इससे सफाई के दौरान होनी वाली मौतों पर रोक लगाई जा सकेगी। अभी तक, अगर पिछले दो साल के आंकड़ों को ही देखें तो देश में सफाई के दौरान हर पांच दिन में एक सफाईकर्मी की मौत हो जाती है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, यह बदलाव बहुत ही सराहनीय है। जाला ने कहा कि सफाई कर्मचारियों के लिए सामाजिक बदलाव सबसे जरूरी है। सफाई कर्मचारी सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ें, इसके लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस मशीन के आने के बाद अब सीवर में मौतें नहीं होंगी।

से सफाई करेगी। बंद हो चुके मैनहोल को साफ करने के लिए भी मशीन में विशेष बकेट सवु िधाएं दी गई हैं, वहीं सिल्ट से भरे सीवर लाइन को साफ करने के लिए मशीन हाई प्रेशर नोजल का प्रयोग करेगी। साथ ही यह सफाई मशीन व्हीकल सरु क्षा, इलेक्ट्रो-हाइड्रोलिक रूप से संचालित, सीवर जेटिगं , रॉडिंग, सह मैकनि े कल मैनहोल डिसि​िल्टंग के साथ व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों और सीवर पाइप निरीक्षण कैमरा के साथ बनाई गई है। इतना ही नहीं यह सफाई

वाहन सीएनजी चालित भी है जिसे आठ फुट चौड़ी गलियों से भी गुजारा जा सकता है। कमै रा और अन्य सवु िधाओं से लैस इस मशीन से मैनहोल को आसानी से साफ किया जा सकेगा। इससे सीवर के अंदर जाकर सफाई की जा सकेगी, साथ ही जहरीली गैस से लोगों की होने वाली मौतों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह मशीन 30 फुट की गहराई के साथ-साथ करीब 100 फुट के अपने दायरे में कहीं भी सीवर जाम की कमै रे से फोटोग्राफ देगी। मशीन के जेट पंप से एक मिनट में 150 लीटर पानी बाहर निकाला जा सकता है। वहीं मशीन में मौजूद फ्लेक्सिबल स्टील रॉड से बंद पड़ी सीवर लाइन को आसानी से खोला जा सकता है। यह विशेष रूप से डिजाइन किए गए लचीले स्टील रॉड का उपयोग करके बंद हो चक ु ी सीवर लाइन को भी खोलने में सक्षम है। मशीन में लगे कमै रे की मदद से मैनहोल, सीवर, टनल, टैंक और दूसरी पाइपलाइन की खामी को जाना जा सकेगा। इसमें स्केलेबल कार्बन फायइबर रॉड है और सूरज की रोशनी कहां तक पहुंची है, इसे पता लगाने वाला कंट्रोलर भी दिया गया है। मशीन में एक इलेक्ट्रो-हाइड्रोलिक भी लगी हुई है, जिसके कैमरे से 20 फीट तक की गहराई की जानकारी मिल सकेगी। सफाई के दौरान किसी भी कर्मी को सेप्टिक टैंक में नहीं उतरना पड़ेगा और अगर कभी उतरना भी पड़ा तो सफाई कर्मचारियों को मशीन की मदद और पूरे इक्विपमेंट के साथ जाना होगा। डॉ. पाठक के अनुसार, ‘इस मशीन से सीवर लाइन की मैन्युअल सफाई की समस्या से 90 फीसदी छुटकारा मिलेगा। साथ ही इससे गैस का लेवल भी चेक किया जा सकता है और इसके गियर्स से जहरीली गैस के कारण होने वाली मौतों को आसानी से रोका जा सकेगा।’

मैनहोल की मैन्युअल सफाई करते कर्मी

जाला ने कहा कि मशीन आने से मैन्युअल सफाई पर रोक लगेगी, लेकिन जो लोग मैन्युअल सफाई करते थे उनको अब काम नहीं मिलेगा। इसीलिए यह जरूरी है कि मशीन आने के बाद

भी मशीन के साथ जितने लोगों की जरूरत हो, यह काम भी उन्हीं को मिले जो मैन्युअल सफाई करते थे। इससे उनका रोजगार नहीं छिनेगा।


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आवरण कथा

05 शौचालय दिवस के अगले दिन मशीन का हुआ प्रशिक्षण

सीवर सफाई मशीन ‘होप’ को प्रदर्शित करते कर्मचारी

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श्व शौचालय दिवस के अगले दिन सुलभ ग्राम परिसर में सीवर सफाई मशीन का प्रशिक्षण दिया गया। पुणे से आए ‘कैम एविडा इन वैरो प्रा. लि.’ के सर्विस इंजीनियर सत्यजीत वैष्णव ने सफाई कर्मियों को ‘होप’ मशीन के संचालन का प्रशिक्षण भी दिया। मशीन से सीवर की सफाई करने और सुरक्षा संबंधी उपकरणों

मशीन से सीवर में होने वाली मौतों का शत-प्रतिशत उन्मूलन: अनिल खेतान

सहित पूरी जानकारी सुलभ मुख्यालय में सफाई कर्मियों को दी गई। उम्मीद है कि दिल्ली में जल्द ही यह मशीन सीवरों की सफाई करती दिखेगी। सर्विस इंजीनियर सत्यजीत वैष्णव ने बताया कि इस मशीन की मदद से सीवरों की सफाई ज्यादा बेहतर और कारगर तरीके से की जा सकेगी और बरसात के मौसम में दिल्ली और मुंबई जैसे सीवर सफाई के लिए ‘होप’ जैसी मशीनों को निगम खरीदेगा और सुलभ की इस मशीन को भी निगम में शामिल किया जाएगा। सफाई के लिए जरूरी आधुनिक मशीनों को जल्द से जल्द खरीदने के बारे में महापौरों ने सहमति दी। साथ ही स्वच्छता फंड के जरिए भी मशीनों की खरीद को संभव बनाने के लिए कहा।

पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष अनिल खेतान ने इस मौके पर कहा कि डॉ. पाठक ने 1968 में अपने दो-पिट मॉडल का आविष्कार किया था। आज 19 नवंबर, 2018 को उन्होंने ऐसी मशीन का उद्घाटन किया है जिसको यदि हर जगह पूरी क्षमता के साथ उपयोग में लाया जाए तो सीवर में होने वाली मौतों का शत-प्रतिशत उन्मूलन किया जा सकता है। हमारे वे भाई-बहन जो मैन्युअल स्कैवेंजर्स हैं, उन्हें इस मशीन की मदद से बचाया जा सकता है। मैंने डॉ. पाठक को एक पत्र लिखा था और उन्होंने इसका जवाब भी दिया। फिर हमने अपने पत्रों को एक साथ मिलाते हुए प्रधानमंत्री, नितिन गडकरी और अर्जुन राम मेघवाल को लिखा। अनिल खेतान ने अपने पत्र और डॉ. पाठक के विचार को एक पत्र के माध्यम से प्रस्तुत किया और पढ़कर सुनाया।

इस मौके पर पूर्वी दिल्ली नगरनिगम के महापौर बिपिन बिहारी सिंह ने कहा कि हमारे स्वच्छता अभियान की पहले खूब खिल्ली उड़ाई गई, लेकिन हमने किसी की परवाह नहीं की और आज 90 फीसदी से अधिक स्वच्छता का काम हो चुका है। पूरे भारत में 95 फीसदी से अधिक घरों में शौचालय बन चुके हैं। इस महान काम में सुलभ संस्था का भी बहुत बड़ा योगदान है। हम तीनों महापौर स्वच्छ भारत के पैसे से इन मशीनों को खरीदेंगे। डॉ. पाठक ने हमें सिखाया है कि हमें अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए जीना है।

दिल्ली के तीनों नगरनिगम लाएंगे ‘होप’ मशीन

नरेन्द्र चावला, महापौर, दक्षिणी दिल्ली निगम

कार्यक्रम में मौजूद तीनों नगरनिगमों के महापौरों ने इस बात पर सहमति जताई कि जल्द से जल्द

बिपिन बिहारी सिंह, महापौर, पूर्वी दिल्ली निगम

इस मौके पर दक्षिण दिल्ली नगरनिगम के महापौर भाजपा पार्षद

महानगरों के लोग आराम से रह पाएंगे। बरसात में सीवरों के जाम होने की समस्या सिर्फ दिल्ली और मुंबई की ही नहीं, बल्कि पूरे देश के अधिकांश शहरों और कस्बों की है। वहीं सफाई के दौरान होने वाली मौतों को रोकने के तरीके पर विशेषज्ञों ने कई उपयोगी सुझाव भी दिए। सुलभ के सीनियर एडवाइजर अजय कुमार ने बताया कि इस मशीन नरेन्द्र चावला ने कहा कि पिछले साढ़े चार सालों में स्वच्छता के क्षेत्र में पीएम मोदी ने जो काम किए हैं, उसके लिए उन्हें खड़े होकर सम्मान देना चाहिए। मोदी जी ने भारत के हर घर में शौचालय देने की बात कही थी और अपने इस वादे को उन्होंने निभाया है। लेकिन उनके इस काम में हर भारतवासी का योगदान है, क्योंकि बिना भागीदारी के कुछ भी संभव नहीं होता है। इस सबके लिए आपका साथ जरूरी था, आगे भी आपका साथ हमें चाहिए। नरेन्द्र चावला ने बताया कि हम निगम के स्कूलों में बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं कि कैसे साफसफाई रखें और शौचालय का सही तरीके से कैसे इस्तेमाल करें। साथ ही निगम स्वच्छता को लेकर बच्चों और शिक्षकों को पुरस्कार भी दे रहा है। सबसे स्वच्छ स्कूल के लिए शिक्षकों को पुरस्कार दिया जा रहा है। चावला ने वादा करने की जगह ‘वचन’ देकर कहा कि खुले में शौच से मुक्ति और स्वच्छता को लेकर जो कुछ भी जरूरी होगा, वह सब कुछ हम करेंगे। चावला ने दिल्ली सरकार से भी पैसा देने का आग्रह करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह हर तरीके से निगम की मदद करे और पैसे मुहैया कराए।

के इस्तेमाल के साथ सीवर में होने वाली खतरनाक गैसों का भी आसानी से पता किया जा सकता है ताकि किसी भी हादसे की आशंका को रोका जा सके। माना जा रहा है कि सीवर की सफाई करने वाली मशीन से न सिर्फ सफाईकर्मियों की सुरक्षा की गारंटी मिलेगी, बल्कि दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों के सीवर की सफाई भी कम समय में पूरी तरह की जा सकेगी। क्योंकि ये दोनों महानगर ऐसे हैं जहां बरसात के दिनों में वाटर लॉगिंग का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। पहली बरसात में ही दिल्ली और मुंबई की सड़कों पर सीवर का पानी भर जाता है। इतना ही नहीं इस मशीन से सीवर को साफ करने की दिशा में भी बड़ी कामयाबी मिलेगी, क्योंकि मैन्युअल सफाई से सीवर उस तरह से साफ नहीं होते जैसे होने चाहिए।

इस नई तकनीक की मदद से सफाईकर्मियों की जान बचाने के साथ-साथ सफाई व्यवस्था को आसानी से और दुरुस्त करना भी अब संभव होगा- आदेश गुप्ता

आदेश गुप्ता, महापौर, उत्तरी दिल्ली नगरनिगम

इस मौके पर उत्तरी दिल्ली नगरनिगम के महापौर आदेश गुप्ता ने कहा कि डॉ. पाठक आजाद हिन्दुस्तान में स्वच्छता परिवर्तन के प्रवर्तक हैं। मेरे घर में भी बना शौचालय पाठक जी की वजह से है। सुलभ शौचालय बनने के बाद से ही मैला ढोने की कुप्रथा खत्म होने की ओर बढ़ी। हमने सार्वजनिक शौचालय और सार्वजनिक सुविधाओं के क्षेत्र में बहुत काम किया है। हम 1800 सार्वजनिक सुविधाघर बनवा रहे हैं, जहां 5 हजार पुरुषों और 5 हजार महिलाओं के लिए सुविधाएं होंगी। पाठक जी ने हमें हौसला दिया है और इन्हीं हौसलों से हमें उड़ान मिली है। हम प्रधानमंत्री के नारे ‘जहां सोच, वहां शौचालय’ पर बहुत तेजी से काम कर रहे हैं और लोगों को ओडीएफ के लिए जागरूक कर रहे हैं। देश की आजादी के बाद जितना काम 70 सालों में हुआ था, उससे ज्यादा काम स्वच्छता के


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साथ-साथ हर क्षेत्र में पिछले सिर्फ साढ़े चार सालों में हुआ है। गुप्ता ने कहा कि इस नई तकनीक की मदद से सफाईकर्मियों की जान बचाने के साथसाथ सफाई व्यवस्था को आसानी से और दुरुस्त करना भी अब संभव होगा।

उन्होंने प्रस्तावित ट्रीटमेंट यानी उपचार बताए और कोलकाता नगरनिगम द्वारा किए गए सीवर लाइनिंग परियोजनाओं के माध्यम से पानी के संकट को हल करने सहित कोलकाता के सीवरों की सफलता की कहानियों के बारे में बताया।

विश्वविद्यालय में शुरू होगा ‘सैनिटेशन कोर्स’: प्रो. साकेत कुशवाहा

विदेशी अतिथियों ने भी ली तकनीक की झलक

इस मौके पर उपस्थित राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश के उप-कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने कहा कि डॉ. पाठक के रूप में दुनिया जीवंत गांधी देख रही है। पाठक जी का जज्बा गांधी के अंग्रेजों से लोहा लेने वाले जज्बे जैसा है। शायद इसीलिए सिर्फ 25 दिनों के अंदर ही डॉ. पाठक इस मशीन को चीन से भारत ले आए। पाठक जी ने कई काम किए हैं और कुछ काम तो इतने अद्भुत हैं कि वे सिर्फ पाठक जी ही कर सकते थे, जैसे धर्म की तरह जाति बदलने का काम। साकेत कुशवाहा ने सफाई कर्मचारियों के बच्चों को विशेष प्राथमिकता देने का सुझाव और आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हम कुछ वक्त पहले तक स्वच्छता और शौचालय को लेकर बहुत छोटी सोच रखते थे, अगर हम खुद को विश्व गुरु कहते हैं तो इन सबसे जरूरी चीजों के लिए हमारी सोच इतनी संकीर्ण कैसे हो सकती है। प्रो. कुशवाहा ने भरोसा देते हुए कहा कि आने वाले 29 नवंबर से वह अपने विश्वविद्यालय में ‘स्वच्छता संबंधी पाठ्यक्रम’ शुरू कर देंगे। कुशवाहा ने कहा कि सुलभ के साथ जुड़कर वह खुद को सम्मानित महसूस करते हैं। डॉ. पाठक की यात्रा में हम सभी की भागीदारी की जरूरत है।

गांधी की झलक डॉ. पाठक में: डिकोबे बेन मार्टिन दक्षिण अफ्रीका से आए सांसद और सार्वजनिक उद्यम उपमंत्री, डिकोबे बेन मार्टिन ने कहा कि डॉ. पाठक और सुलभ इंटरनेशनल और उनके सहयोगियों की सराहना करते ह ैं । सफाईकर्मियों के मानवाधिकारों और उनकी गरिमा को लेकर डॉ. पाठक की धारणा बहुत ही मजबूत है। डॉ. पाठक के काम से महात्मा गांधी का अहसास होता है। इसमें कोई शक नहीं कि डॉ. पाठक गांधी के सपनों को पूरा करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। जिस तरह गांधी ने बिना किसी हिंसा के शांतिपूर्ण तरीके से 2 करोड़ से अधिक अस्पृश्यों को मुक्त करने और उनके मानव अधिकारों को बहाल करने की बात की थी, डॉ. पाठक ने उस अस्पृश्यता को समाप्त करने का बीड़ा उठाया और उसमें सफल रहे। सीवर श्रमिकों की मौत को रोकने के लिए सीवरों की सफाई के दौरान डॉ. पाठक ने जो सुरक्षा उपाय सुझाए हैं, वह बहुत ही बेहतर हैं।

शहरीकरण + बढ़ती हुई वर्षा = संकट!: डॉ. नीलांशु भूषण बसु

अमेरिका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय से आए प्रो. जॉनी मैक ने गांधी का जिक्र करते हुए कहा कि सफाईकर्मियों की परेशानी को उनसे बेहतर कोई नहीं समझ सका। गांधी ने विचार और रास्ते दोनों हमें दिए हैं। कार्यक्रम की थीम पर ‘सीवर श्रमिकों की मौत को रोकने के लिए सफाईकर्मियों के लिए सुरक्षा उपाय’ सीधे तौर पर आज के वक्त के लिए प्रासंगिक है और मार्टिन लूथर किंग जूनियर के ‘नागरिक अधिकार आंदोलन’ की तरह ही है। मार्टिन लूथर ने भी सफाईकर्मियों का समर्थन करते हुए और उनके अधिकारों के लिए लड़ते हुए अपना जीवन अर्पित कर दिया। इसीलिए सुलभ के इस काम और अमेरिका में नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों के काम के बीच एक अतुलनीय संबंध है।

इस अवसर पर कोलकाता नगरनिगम के प्रधान मुख्य अभियंता डॉ. नीलांशु भूषण बसु ने डॉ. विन्देश्वर पाठक, प्रोफेसर के. जे. नाथ और स्वंय की 'कोलकाता की एक समस्या और सफलता की कहानी' विषय पर एक विस्तृत स्लाइड शो प्रस्तुत किया। इस स्लाइड शो में उन्होंने शहरीकरण को कई समस्यायों की जड़ माना। विशाल शहरों के विशाल जनसमूह की वजह से अंततः अपशिष्ट का ढेर खड़ा हो जाता है। उन्होंने प्रमुखता से एक नकारात्मक फार्मूला रखते हुए कहा - शहरीकरण + बढ़ती हुई वर्षा = संकट! उन्होंने दिल्ली, मुंबई, सूरत, कोलकाता जैसे शहरों और तमिलनाडु राज्य के कुछ हिस्सों की बीच तुलना की। इसके बाद उन्होंने कोलकाता की जल निकासी प्रणाली, सीवर, श्रमिकों और कानूनों की प्रासंगिकता, कोलकाता के वर्तमान परिदृश्य और त्रासदियों को दिखाया। साथ ही

सफाईकर्मियों के लिए यह काम अमेरिका के ‘नागरिक अधिकार आंदोलन’ की तरह

सुलभ तकनीक ने दक्षिण अफ्रीका में बदले हालात

दक्षिण अफ्रीका से आईं कम्युनिटी सेंटर फॉर

सुलभ टीवी से गणमान्यों की विशेष बातचीत

दिशा में प्रयास करेंगे।

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष मनहर वालजीभाई जाला ने सुलभ टीवी

टीवी से बातचीत करते सुलभ हुए मुख्य अतिथि मनोज तिवारी

ने कहा सीवर की सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की होने वाली मौतों की रोकथाम के लिए लाई गई अत्याधुनिक ‘सीवर सफाई मशीन’ का अनावरण कर अत्यधिक हर्ष प्रतीत हो रहा है। उन्होंने कहा कि कैमरा और अन्य सुविधाओं से लैस इस मशीन से सीवर लाइन की सफाई आसानी से हो सकेगी। वहीं सीवर के अंदर जहरीली गैसों का पता भी पहले ही चल जाया करेगा। वहीं एक अन्य सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने स्वच्छता और शौचालय संबंधी लगभग सभी वादे पूरे किए हैं। 90 फीसदी से अधिक इलाके में शौचालय की कवरेज पहुंच चुकी है। 95 फीसदी से अधिक का स्वच्छता लक्ष्य पूरा किया जा चुका है। उन्होंने सुलभ के सवाल पर भरोसा देते हुए कहा कि निगम ऐसी मशीनों को खरीदेगा। साथ ही सफाईकर्मियों को उपयुक्त वेतनमान दिलाने की बात भी उन्होंने कही। तिवारी ने सुलभ से कहा कि सफाईकर्मियों की तनख्वाह बढ़ाने पर हम विचार करेंगे। वहीं दिल्ली के शौचालयों में पानी की कमी पर उन्होंने दिल्ली सरकार से आग्रह किया कि पानी पहुंचाए, साथ ही उन्होंने कहा कि निगम भी इस जस्टिस एंड डेवलपमेंट की निदेशक डॉ. बुसिवाना विनी मार्टिन्स ने इस मौके पर कहा ‘मैं उसी जगह से आई हूं जहां महात्मा गांधी को ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था।’ मार्टिन्स सुलभ दक्षिण अफ्रीका के माध्यम से सुलभ इंटरनेशनल से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक ने दक्षिण अफ्रीका में भी अपने स्वच्छता कार्यक्रम को बढ़ाने का फैसला लिया है। हम दक्षिण अफ्रीका में अपनी तकनीक साझा करने के लिए डॉ. पाठक को धन्यवाद करते हैं। सुलभ का कार्यक्रम दक्षिण अफ्रीका के ग्रामीण विद्यालय में शुरू हुआ, जहां शौचालय बहुत ही खराब हालत में थे। लेकिन अब डॉ. पाठक की वजह से स्थिति सुधर रही है।

से बात करते हुए कहा कि पिछले कुछ समय में सफाईकर्मियों की हुई मौतों पर उन्होंने विशेष संज्ञान लिया है और उनके परिवार को उपयुक्त मुआवजा दिलाने के लिए भी विशेष काम किए हैं। उन्होंने कहा कि आयोग सरकार से सिफारिश करेगा कि देशभर में ऐसी मशीनों को लाया जाए।

सुलभ संस्था के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने सुलभ टीवी से

बातचीत करते हुए कहा कि सुलभ ने भारत में इस तरह की पहली मशीन पेश की है। सुलभ शौचालय के आविष्कार की तरह ही विश्व शौचालय दिवस पर पेश की गई यह मशीन बड़ा बदलाव लाएगी। जिंदगियों को बिना कोई नुकसान पहुंचाए गहरे सीवरों की सफाई सुनिश्चित करने के लिए यह एक अनूठा उपकरण खरीदा गया है। डॉ. पाठक ने सीवर की सफाई के दौरान लोगों की होने वाली मौत पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यह सभी के लिए गंभीर चिंता का विषय है और इसीलिए सुलभ ने आधुनिक तकनीक का उपयोग करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि हमने देश को रास्ता दिखाया है और हम और मशीनें लाएंगे। डॉ. पाठक ने सफाईकर्मियों के लिए बेहतर वेतनमान की भी वकालत की। विश्व शौचालय दिवस के इस शुभ मौके पर सभी गणमान्य अथितियों को सुलभ परंपरा के अनुसार शॉल और पुष्प देकर सम्मानित किया गया। साथ ही उन्हें सुलभ के टू-पिट-पोर-फ्लश शौचालय का मॉडल भी भेंट किया गया। वहीं स्कूली छात्रों ने खुले में शौच जाने से होने वाले दुष्परिणामों पर आधारित नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। इस मौके पर सुलभ स्कूल, आईआईटी, मैत्रेयी कॉलेज, लेडी श्रीराम कॉलेज व अन्य स्कूलों की तरफ से भी स्टॉल लगाए गए। इन स्टालों में कई तरह की तकनीक के साथ शौचालय के इस्तेमाल पर खास जोर देते हुए लोगों को जागरूक करने की कोशिश की गई।


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आयोजन

‘डॉक्टर पाठक का काम अनोखा है’

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प्रो. अनिल कुमार राय का सुलभ सभागार में दिया गया वक्तव्य

डॉ. अशोक कुमार ज्योति

‘सु

लभ इंटरनेशनल के माध्यम से डॉ. विन्देश्वर पाठक जी एक बड़ा काम कर रहे हैं। मैं लंबे अरसे से आपसे और आपके काम से परिचित हूं। दुनिया-भर में आपका जो काम है, वह आपकी तरह ही अनोखा है।’ ये बातें अपने उद्बोधन में 17 नवंबर, 2018 को महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के नवनियुक्त कुलपति प्रो. अनिल कुमार राय ने कहीं। वे सुलभ-सभागार में पधारे थे। प्रोफेसर अनिल को महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति नियुक्त किए जाने पर सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के सभागार में शॉल और पुस्तकें समर्पित कर स्वागत और सम्मान किया गया। इस अवसर पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में सभागार को जानकारी दी गई। सभागार में स्वागत-सम्मान के पश्चात उन्होंने सुलभ की विविध गतिविधियों को देखा। उन्होंने सुलभ पब्लिक स्कूल, सुलभ व्यावसायिक प्रशिक्षण-केंद्र, सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स, सुलभ टू-पिट पोर फ्रलश कंपोस्ट टॉयलेट के विभिन्न मॉडल्स, सुलभ बायोगैस तकनीक, सुलभ वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, सुलभ वॉटर एटीएम एवं सुलभ स्वास्थ्य केंद्र की जानकारी प्राप्त की। प्रोफेसर राय ने सुलभ की सारी गतिविधियों को देखने के बाद आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि हम सिर्फ यह जानते रहे हैं कि सुलभ शौचालय और सामाजिक सेवा का ही कार्य करता है, किंतु यहां देखकर इसके बहुआयामी प्रकल्पों की भी जानकारी मिली, जो देश और समाज के विकास के लिए बहुत उपयोगी हैं। मैं सुलभ इंटरनेशनल सोसाइटी को एक परिवार ही मानता हूं। यहां के विद्यार्थी हों, शिक्षक हों, कर्मी हों या अधिकारी,सभी इस परिवार के अंग हैं। इस परिवार में आकर मुझे सच में प्रसन्नता हो रही है। मैं अशोक जी का आभारी हूं कि उनकी वजह से मुझे आपलोगों से रू-ब-रू होने का अवसर मिला। जिस प्रार्थना को हम सभी लोगों ने अभी दोहराया, वह प्रार्थना अपने-आपमें मूल भावना और पूरी अवधारणा को ले करके सुलभ की ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की संकल्पना का भाव इस प्रार्थना में छुपा हुआ है। इसीलिए इस प्रार्थना को रोज सुबह-सुबह दोहराते हैं, ताकि वह हमारे संस्कार और आचरण का हिस्सा बन सके। उसके अनुसार जो बात हम बार-बार करते हैं, वो फिर हम करना शुरू कर देते हैं। जब हम करने के लिए आगे बढ़ जाते हैं तो उसे ही ‘एक्शन’ कहते हैं, जिसको एक्शन सोशियोलॉजी का नाम दिया है

या जो फंक्शनल है। क्योंकि थ्योरी अपनी जगह है और सिद्धांत अपनी जगह। लेकिन उसका जो व्यावहारिक पक्ष है, वो ज्यादा ही महत्त्वपूर्ण है। सुलभ इंटरनेशनल सोसाइटी के माध्यम से डॉ. विन्देश्वर पाठक जी एक बड़ा काम कर रहे हैं। मैं लंबे अरसे से आपसे और आपके काम से परिचित हूं। दुनिया-भर में आपका जो काम है, वह आपकी तरह ही अनोखा है। जैसा आपने बताया कि स्वच्छता अभियान की शुरुआत तो चार साल पहले भारत सरकार के माध्यम से की गई है, लेकिन स्वच्छता और सफाई का काम तो जन्म के साथ ही शुरू हो जाता है-समाज और घर के साथ। दुर्भाग्य से हम इसमें पिछड़े हुए हैं। हमारा देश बहुत खूबसूरत है। जितना खूबसूरत हमारा देश है, उतना ही खूबसूरत हमारा परिवेश और मौसम है-जो प्रकृति से मिला हुआ है। जो प्राकृतिक सौंदर्य देश का है, उसकी खूबसूरती सिर्फ स्वच्छता की कमी की वजह से छिप जाती है। दुनिया के तमाम हिस्से हैं, लेकिन वो हमारे देश की प्रकृति और वातावरण से अपने देश की तुलना नहीं कर सकते। लेकिन स्वच्छता के मामले में हम कहीं-न-कहीं पीछे हैं। उसका कारण यह है कि हम यह सोचते हैं कि स्वच्छता रखना दूसरे का काम है। सफाई करना सफाईकर्मी का काम है। हमसे यहीं पर गलती हो गई कि घर में झाडू लगाना मां, बाई या दाई का काम है। सफाई का काम दूसरे का नहीं, बल्कि अपना काम है। हम संकल्प लेते हैं कि हम स्वच्छता अभियान का हिस्सा बनेंगे, सफाई करेंगे और गंदगी नहीं होने देंगे। गंदगी न होने देने का संकल्प एक बड़ा संकल्प है। लेकिन हमें प्रयास करना चाहिए कि गंदगी हो ही नहीं। दूसरी बात कि यह सफाईकर्मी

का काम है, यह कहना कि जिसका काम है, वो आकर करेगा। हमें उसे अपना काम मानना चाहिए। जिस तरह हम अपने शरीर, बिस्तर और घर की सफाई करते हैं, उसी तरह हमें अपने घर के बाहर की भी सफाई करनी चाहिए। मैं महाराष्ट्र से आता हूं, जहां का कल्चर बड़ा सुंदर है। वहां का हर आदमी अपने घर के साथसाथ अपने घर के बाहर सड़क की सफाई करता है, जैसे हम अपने घर के आंगन की सफाई करते हैं। अब तो शहरों में आंगन बचा ही नहीं। गांव में तो आंगन हुआ करता है। लोग आंगन की सफाई करते हैं। महाराष्ट्र में हर आदमी अपने घर के बाहर सड़क साफ करता है- एक तरफ से आधी सड़क, दूसरी तरफ से आधी सड़क। लोग उसकी धुलाई करते हैं। पानी की कमी होने के बावजूद कम पानी से नहाएंगे, लेकिन सड़क पर पानी का छिड़काव अवश्य करेंगे। वहां तुलसी रख देंगे, दीपक जलाए रखेंगे, ताकि कोई गंदगी न करे। पहले मैं उत्तर प्रदेश के एक विश्वविद्यालय में काम करता था। वहां इतनी गंदगी थी कि उधर से गुजरना मुश्किल था। वहां की सीढ़ियां, जहां से रोज वाइस चांसलर गुजरते थे, वहां पर पूरी दीवार रंगी हुई होती थी अलग-अलग रंगों से। लोग पान

यह एक अच्छी स्थिति है कि पाठक जी ने एक बड़ा परिवार तैयार किया है, जो पूरे एक्शन में है। मुझे पूरी उम्मीद है कि ये जो अभियान है, वो अपनी सफलता पर जरूर पहुंचेगा

खाते और पान खा करके थूक देते। तो उसको साफ कैसे किया जाए! हमलोग उसकी सफाई करवाते थे तो अगले दिन दीवार फिर गंदी हो जाती। तो हमलोगों ने वहां पर कुछ देवी-देवताओं के चित्रें को चिपकाना शुरू किया, ताकि लोग देवी-देवताओं के ऊपर नहीं थूकेंगे। लेकिन ऐसा क्यों है कि देवी-देवता को देखकर के हम गंदा नहीं करेंगे? ऐसा नहीं होना चाहिए। हम अपने-आपसे डरें और डरना भी क्यों है, हम सम्मान करें न! अगर स्वच्छ वातावरण रहेगा तो हम स्वस्थ रहेंगे। और हम अपनी पीढ़ी को एक स्वच्छ एवं सुंदर वातावरण देंगे। उस स्वच्छता और सुंदरता से जो अनुभूति होगी, वो हमारे व्यक्तित्व को विकसित करेगी। हमारी पर्सनाल्टी को डेवलप करेगी। मुझे लगता है कि जो स्वच्छता का अभियान है, अगर हम इसी अभियान को पकड़ लें और सुलभ शौचालय के माध्यम से स्वच्छता अभियान की एक अनोखी पहल है। जिस शौचालय की बात गांधी जी हालांकि तब करते थे, गांधी जी ने अपने समय उसी सफाई की बात की और खुद से सफाई की। ये नहीं कि दूसरा कोई और करेगा। गांधी जी खुद अपनी सफाई करते थे, टॉयलेट की भी। उस स्वच्छता का जो काम गांधी जी ने शुरू किया, उस स्वच्छता का काम जो पाठक जी ने किया, उसी को भारत सरकार ने किया। वो इन सबका ही काम नहीं, बल्कि हम सबका काम है। जब हम उसको अपना कर्तव्य मान लेंगे तो मुझे लगता है कि उस लक्ष्य को हम हासिल करेंगे। अच्छी स्थिति है कि सुंदरता दिख रही है, सफाई दिख रही है। सड़कों पर जाइए, दिखता है। रेलवे स्टेशन, शहरों के गली-मुहल्ले में जो शौचालय का अभियान सरकार के माध्यम से चल रहा है, वह संतोषजनक है। सुलभ शौचालय बनाकर डॉ. पाठक ने जो अभियान चलाया है, वह उनकी व्यापक स्वच्छता दृष्टि का परिणाम है। शौचालय नहीं होने का कष्ट उन्हीं से पूछा जा सकता है, जो उन स्थितियों में होते हैं। इसीलिए मुझे लगता है कि यह एक बड़ा अभियान है और यह धरती अच्छे लोगों से ही चलती है। धरती पर अच्छे लोगों की कमी नहीं है, सिर्फ उन अच्छे लोगों को साथ हो करके आगे आ जाने की जरूरत है। यह एक अच्छी स्थिति है कि पाठक जी ने एक बड़ा परिवार तैयार किया है, जो पूरे एक्शन में है। मुझे पूरी उम्मीद है कि ये जो अभियान है, वो अपनी सफलता पर जरूर पहुंचेगा। हम सभी उसका हिस्सा बनेंगे। हम सभी अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं, उसपर विचार और संकल्प करेंगे और अगले दिन से करना शुरू कर देंगे। इसी के साथ, क्योकि प्रार्थना का समय है, अपनी बात समाप्त करता हूं।


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स्वच्छता

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

सीवर इतिहास

सीवर और तकनीक का ऐतिहासिक विकास

हजारों सालों से हम अपनी सभ्यता की अनगिनत विशेषताओं के साथ सह-अस्तित्व में हैं, लेकिन सीवेज और मानव अपशिष्ट जैसी चीजें आज भी लाखों लोगों के लिए घातक हैं। प्रस्तुत है एक ऐसे ही इतिहास की एक संक्षिप्त समीक्षा

एसएसबी ब्यूरो

ड़कों के किनारे नालियों का निर्माण मेसोपोटामियन साम्राज्य (सीए 40002500 ईसा पूर्व) से माना जाता है। हालांकि, मानव जाति के इतिहास में पहली बार संगठित और संचालित सीवरेज और जल निकासी प्रणालियों का उद्धभव क्रेते में मिनोन और हड़प्पा सभ्यताओं और उसके बाद सिंधु घाटी (3000 ई. पू) की सभ्यता में पाया जाता है। मूल रूप से मिनोन और सिंधु घाटी की सभ्यताओं और उसके बाद हेलेन्स और रोमन को शहरी पर्यावरण में स्वच्छता पर जोर देने के साथ ही सीवरेज और जल निकासी प्रणाली प्रौद्योगिकियों के बुनियादी हाइड्रोलिक (जलगति) विकसित करने में अग्रदूत माना जाता है 20 वीं शताब्दी में तेजी से तकनीकी प्रगति ने पिछली जल प्रौद्योगिकियों के लिए एक उपेक्षा पैदा की जिनको वर्तमान प्रौद्योगिकियों से बहुत ही पीछे माना जाता था। फिर भी, स्वच्छता सिद्धांतों और निश्चित रूप से सीवरेज और जल निकासी प्रणालियों से संबधि ं त अनसल ु झी समस्याओं की बड़ी संख्या है। विकासशील देशों में, ऐसी समस्याओं को बहुत ही उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया गया है

प्रारंभिक सभ्यताएं

इराक का ईशुनुना / बेबीलोनिया और मेसोपोटामियन साम्राज्य (4000-2500 ईसा पूर्व) मेसोपोटामियन शहरों के खंडहर अच्छी तरह से निर्मित तूफान जल निकासी और स्वच्छता सीवर सिस्टम में शामिल हैं। उदाहरण के लिए, आज के इराक में स्थित प्राचीन उर और बेबीलोन शहरों में तूफानी जल के नियंत्रण के लिए प्रभावी जल निकासी व्यवस्था थी। सिस्टम में घरेलू अपशिष्ट के लिए गबुं दाकार सीवर और नालियां तथा विशेष रूप से सतह पर प्रवाह के लिए गटर और नालियां शामिल थीं। लोगों के पसंद की सामग्री डामर सील के साथ पक्की ईंट था। घरेलू और सिंचाई के उपयोग के लिए वर्षा जल भी एकत्र किया गया था। बेबीलोनियंस स्वच्छ रहने के लिए शहरी जल निकासी प्रणाली बनाने के लिए प्रेरित हुए। अन्य प्राचीन सभ्यताओं की तरह बेबीलोनियंस

कुछ देशों ने या तो सीवेज निपटान के स्थाई तरीकों को अपनाने के लिए कदम उठाए हैं या फिर मशीनरी का इस्तेमाल कर प्रदूषण को दूर करने के उपचार ढूंढ रहे हैं ने अशुद्धता को भौतिक अशुद्धता के कारण नहीं, बल्कि नैतिक बुराई के कारण के रूप में देखा। पूर्वनिरीक्षण में, मेसोपोटामियंस ने अत्यधिक शहरीकरण को एक बाढ़ को तबाही मचाने वाली और एक अपशिष्ट वाहक के रूप में देखा।

कांस्य युग

मिनोन सभ्यता (3200-1100 ईसा पूर्व) प्रारंभिक मिनोन सभ्यता में स्वच्छता तकनीकों से संबंधित मुद्दों को बहुत महत्व दिया जाता था। पुरातात्विक और अन्य प्रमाणों से सिद्ध होता है कि कांस्य युग के दौरान उन्नत अपशिष्ट जल और तूफान के जल प्रबंधन का अभ्यास पाया जाता था। पानी के हस्तांतरण के लिए कई प्रकार के पत्थर और टेराकोटा वाहिका और पाइप का इस्तेमाल किया जाता था, ताकि वर्षा और अपशिष्ट जल की आसानी से निकासी हो सके। इस प्रकार के वाहकों को संक्षेप में एंजेलकिस कहा जाता था। मिनोन पाइपलाइन और जल निकासी अच्छी तरह से विकसित किया गया था। पुरातत्त्वविदों द्वारा 20 वीं शताब्दी में खोजे गए कई मिनोन महलों में, सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक पानी का प्रावधान और वितरण था। इसके अलावा, सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम टेराकोटा पाइप और ऊपरी हिस्से में खुली हुई पथरीली नालियों का

का निर्माण मुख्य रूप से बारिश के पानी को निकालने के लिए किया जाता था। साथ ही इनसे मानव अपशिष्ट भी बाहर निकाला जाता था। कुछ सीवर इतने बड़े थे कि उसके ऊपर लोग चलते भी थे। 2000 ईसा पूर्व की कई नालियां आज भी क्रेते में बरकरार हैं। पहला ज्ञात 'फ्लश' शौचालय को क्रेते के नोसॉस महल में लगाया गया था। इस शौचालय को नोसॉस महल में केंद्रीय सीवरेज और जल निकासी व्यवस्था से जोड़ा गया था।

हड़प्पा सभ्यता

(3200-1900 ईसा पूर्व) हड़प्पा सभ्यता सबसे प्राचीन दक्षिण एशियाई संस्कृति है, जिसमें एक जटिल और केंद्रीकृत अपशिष्ट जल प्रबंधन प्रणाली लागू की गई थी। दरअसल, इस सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं में से एक विकसित शौचालय, जल निकासी और सीवरेज सिस्टम है। विकसित हड़प्पा काल में केंद्रीकृत स्वच्छता व्यवस्था थी। यह व्यवस्था


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कु

हड़प्पा, मोहन जोदड़ो और लोथल में भी थी। हड़प्पा काल में अपशिष्ट जल प्रबंधन दो प्रकार का था: एक केंद्रीकृत - सीवेज और जल निकासी नेटवर्क के साथ, दूसरा विकेंद्रीकृत सोखने वाले गड्ढे या छिद्रित जार के साथ। नाले पत्थर, लकड़ी के बोर्ड, या पक्की ईंटों से ढके हुए थे। हड़प्पा सभ्यता ने कुछ शहरी समूहों में एक सुव्यवस्थित सीवेज नेटवर्क विकसित किया था।

गंदगी की अवधि

मध्य युग के दौर में स्वच्छता में रोमन की प्रगति को भुला दिया गया। पेरिस जैसे कुछ शहरों ने ही रोमन सीवेज सिस्टम की कुछ संरचनाओं को संरक्षित किया, जो जल्द ही शहरी फैलाव में अवशोषित हो गए। दीवारों वाले शहरों ने अपनी स्वच्छता संरचना के रूप में केवल मलकुंड स्थापित किए और वे जल्द ही वो भी भर गए। अब जनसंख्या ने सड़कों पर या शहर की दीवारों के बाहर मल फेंकना शुरू कर दिया। मल के बीच चूहे खूब फले-फूले और कोलेरा और प्लेग की महामारी फैल गई, जिससे यूरोपीय मध्ययुग की 25 फीसदी आबादी की मौत हो गई। लेकिन स्वच्छता में कोई प्रगति नहीं हुई थी। शहर गंदगी और दुर्गंध से भरे हुए थे। लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता अधिकतम स्तर तक पहुंच गई, जहां किसान अपने मल को एक गड्ढे में दफना देते थे।

अरब परिष्करण

यूरोप के इस अंधरे े समय में, केवल इबेरियन प्रायद्वीप के अरब शहरों ने तीन प्रकार के पानी को अलग करने के उद्देश्य से स्वच्छता नियम स्थापित किए: वर्षा जल, जो जीवन के लिए आवश्यक था; सीवर का गंदा पानी, जो घरेलू गतिविधियों और अपशिष्ट जल से उत्पन्न हुआ। एक कठिन जलवायु में पैदा हुई अरब संस्कृति, वर्षा जल को ऐसे महत्व देती थी जैसे कि यह एक दिव्य चीज हो। इस जल के संरक्षण और बाद में उपयोग के लिए हौज से जोड़ा गया था। सतह पर भूमिगत नालियों या पाइपों के माध्यम से घरों के गंदे पानी को निकाला जाता था, जबकि अपशिष्ट जल के लिए एक अलग पाइप था जो मलकुडं से जुड़ा होता था और इसी में गंदे पानी को भी छोड़ा जाता था।

पुनर्जागरण का विरोधाभास

पुनर्जागरण काल के दौरान कला और विज्ञान की क्रांति, स्वच्छता में प्रगति के साथ-साथ नहीं हो पाई थी, जबकि शहर बढ़ते रहे और इनका विकास रुक गया। सत्रहवीं शताब्दी के दौरान लगभग सभी यूरोपीय शहरों में गंदगी और गंध असहनीय थी। खुली हवा में शौचालय आम थे और मल के गड्ढे पूरी तरह भरे हुए थे। इस बीच, नागरिकों ने सड़कों पर अपने मल को फेंकना जारी रखा जहां सीवर जो खुले हुए नाले थे, आंशिक रूप से उसे नदियों में छोड़ दिया करते थे। उस समय जलगति विज्ञान में हुई प्रगति को पानी के संग्रह और वितरण पर लागू किया गया था, लेकिन यह स्वच्छता तक नहीं पहुंच पाया था। पेरिस उस समय का महान विरोधाभास था, क्योंकि शहर सत्रहवीं शताब्दी के मध्य में अपने इतिहास में गंदगी के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया था। लंदन की स्थिति भी पेरिस में जैसी ही थी। यद्यपि ब्रिटिश राजधानी ने हेनरी अष्टम द्वारा लागू नालियों की सफाई पर गंभीर स्वच्छता नियमों के साथ पुनर्जागरण अवधि शुरू की थी, लेकिन शहर के कई इलाके मलकुंड में भरी गंदगी से बजबजा रहे थे और दुर्गंध से परेशान थे। आधुनिक शौचालयों की शुरुआत के स्वरुप राजधानी के अच्छे घरों में दिखाई देने लगे थे, यह शौचालय जॉन हैरिंगटन द्वारा किया गया एक आविष्कार था जिसमें एक टैंक से पानी का उपयोग शौचालय को धोने और अपशिष्ट को मलकुंड में ले जाने के लिए किया जाता था। लेकिन इसका उद्देश्य कमरे में मूत्र की अप्रिय गंध को खत्म करना था, गंदगी और बीमारियों के बीच घनिष्ठ संबंध उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक भी स्पष्ट नहीं थे।

कोलेरा से आधुनिक स्वच्छता तक

1830 तक लंदन में स्थिति असहनीय हो गई। शहर (प्रसिद्ध ग्रेट स्टिंक) से निकलने वाली जबरदस्त दुर्गंध से महामारी फैली और उससे बहुत अधिक मौतें हुईं। 1847 में एक अंग्रेज डॉक्टर जॉन स्नो ने महामारी के अध्ययन में अपना जीवन समर्पित किया था, इस निष्कर्ष पर

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स्वच्छता

पश्चिमी दृष्टिकोण

छ देशों ने या तो सीवेज निपटान के स्थाई तरीकों को अपनाने के लिए कदम उठाए हैं या फिर मशीनरी के इस्तेमाल से प्रदूषण दूर करने के उपचार ढूंढ रहे हैं। मेक्सिको ने पारिस्थितिकीय स्वच्छता मॉडल अपनाया है, जो सीवेज उपचार पर लूप को बंद कर देता है। पारिस्थितिकीय स्वच्छता एक अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल है जो मानव मल, गंदे पानी और मूत्र का कृषि संसाधनों के रूप में उपयोग करता है। इसे सुरक्षित रूप से एकत्रित, संग्रहित और उपचारित किया जा सकता है। दूसरी ओर अमेरिका में, वे मशीनरी का उपयोग करते हैं, लेकिन वहां हर जगह उपयुक्त सुरंगे और उपकरण हैं। मलेशिया में, सीवरेज प्रबंधन 1957 में देश की आजादी के बाद मौलिक प्रणालियों से लेकर यांत्रिक और स्वचालित प्रणालियों तक चरणबद्ध तरीके से विकसित हुआ है। यह मुख्य रूप से सीवरेज उद्योग में प्रौद्योगिकियों

पहुंचे कि कोलेरा पीने के पानी के कारण होता था जो अपशिष्ट जल से दूषित हो गया था। उन्होंने अपने सिद्धांत को साबित कर दिया जब महामारी उन क्षेत्रों में बंद हो गई जहां पंप बंद कर दिए गए थे। कुछ साल बाद, लुई पाश्चर द्वारा किए गए शोध ने स्नो के अंतर्ज्ञान की वैज्ञानिक पुष्टि की। इस ज्ञान के परिणामस्वरूप, कानून बदल दिया गए। उन्नीसवीं शताब्दी के बाद से, विभिन्न देशों के कानूनों ने मलकुंड के निर्माण की सीमा तय की, जो कि किसी भी बिना सीवर वाले क्षेत्रों में प्रतिबंधित थे और सेप्टिक टैंक में परिवर्तित हो गए थे। एक और संकट ने स्वच्छता की स्थिति को मूल रूप से बदल दिया। हैम्बर्ग में एक नई सीवेज प्रणाली का पुनर्निर्माण किया गया जिसमें अपशिष्ट जल के इकलौते निकासी सर्किट के साथ समुद्र के पानी का इस्तेमाल साप्ताहिक सफाई के लिए किया जाता था और प्रत्येक जुड़ी हुई इमारतों की नालियों के माध्यम से बाहर

के विकास के कारण संभव हुआ था। तकनीकी प्रगति के कारण नए और बेहतर उपकरणों को भी लगातार पेश किया गया। यह रातोंरात लिए गए निर्णय नहीं थे। मलेशिया ने इस बदलाव को मशीनीकरण के रूप में इसीलिए नहीं शुरू किया, क्योंकि वहां भारत की तरह मैन्युअल स्कैवेंजिंग को खत्म करने के लिए कोई आंदोलन था , बल्कि इसीलिए क्योंकी वे अपने देश को एक पर्यटन स्थल के रूप में प्रचारित करना चाहते थे। इसके लिए सरकार से बहुत बड़ी सहायता मिल रही थी। उन्होंने नागरिकों को शिक्षित करने के लिए सर्वेक्षण और दूर-दराज तक कार्यक्रम भी किए। नागरिकों को बताया गया कि उन्हें कितनी बार अपने सेप्टिक टैंक को साफ करना चाहिए। अब, सेप्टिक टैंक साफ करने वाले श्रमिको को साफ करने के लिए अंदर भी नहीं जाना होगा।

निकाला जाता था। इस व्यवस्था को स्थानीय व्यापारियों द्वारा वित्त पोषित किया गया था और इसने जल्द ही अन्य सभी प्रमुख यूरोपीय और अमेरिकी शहरों को प्रेरित किया गया था। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में अपशिष्ट जल का उपचार करने के लिए हमने सूक्ष्म जीव विज्ञान में प्रगति का उपयोग शुरू कर दिया गया और 1 9 14 में इंजीनियर एडवर्ड आर्डेनेंड विलियम टी. लॉकेट ने सक्रिय गाद की खोज की, यह जैविक अपशिष्ट जल उपचार प्रणाली में से एक है जो हम अभी भी मौजूदा उपचार संयंत्रों में उपयोग करते हैं । 70 के दशक में विकसित दुनिया में औद्योगिक और मलीय दोनों के जलीय प्रदूषण के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया शुरू हुई। हालांकि, आजकल विकासशील देशों में 90 फीसदी छोड़े गए अपशिष्ट जल का उपचार नहीं किया जाता है। हमने अभी भी यह लड़ाई नहीं जीती है जो 10,000 साल पहले शुरू हुई थी।


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सम्मान

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

डॉ. विन्देश्वर पाठक को डी.लिट. की मानद उपाधि

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में संपन्न हुए दीक्षांत समारोह में बिहार के राज्यपाल श्री लालजी टंडन ने डॉ. पाठक को डी.लिट. की मानद उपाधि प्रदान की

एसएसबी ब्यूरो

हान मानवतावादी और समाज सुधारक डॉ. विन्देश्वर पाठक के मिले राष्ट्रीयअंतरराष्ट्रीय सम्मानों, पुरस्कारों और मानद उपाधियों की सूची में एक और विशिष्ट विवरण जुड़ गया है। हाल में कामेश्वर सिंह दरभंगा

संस्कृत विश्वविद्यालय में संपन्न हुए दीक्षांत समारोह में सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक को डी.लिट. की मानद उपाधि प्रदान की गई। डॉ. पाठक को यह उपाधि बिहार के राज्यपाल श्री लालजी टंडन के हाथों मिली। डॉ. पाठक ने स्वच्छता के मंत्र के साथ समाज के पिछले तबकों के जीवन में बीते पांच

दशकों में सुधार लाने का महान कार्य किया है। देश-दुनिया को स्वच्छता का समाजशास्त्र की सीख देने वाले डॉ. पाठक का देश के सामाजिक सुधार आंदोलन में सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने जहां एक तरफ सिर पर मैला ढोने जैसी कुप्रथा का नैतिक,सामाजिक और तकनीकी स्तर पर खात्मे का बड़ा मिशन अपने हाथों में लिया,

वहीं उन्होंने दुनिया के सामने गांधी जी के बाद रचनात्मक समाज सुधार आंदोलन का नया सर्ग शुरू किया है। गौरतलब है डी. लिट. की मानद उपाधि पाने वाले डॉ. पाठक इससे पहले स्वयं पटना विश्वविद्यालय से ‘स्कैवेंजिंग की समस्या दूर करने और पर्यावरणीय स्वच्छता’ विषय पर डी.लिट. की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं।

यह शिक्षक हर दिन साफ करता है स्कूल का टॉयलेट

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कर्नाटक के सरकारी स्कूल में शिक्षक महादेश्वर पिछले तीस वर्षों से स्कूल के टॉयलेट की हर दिन खुद सफाई करते हैं

श के सरकारी स्कूलों में गंदे शौचालय की समस्या आम है। यहां शौचालय की सफाई के लिए या तो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं हैं और हैं भी तो वे शौचालय साफ नहीं करते। कई स्कूलों में बच्चों से शौचालय साफ करवाने की खबरें भी सामने आती हैं, लेकिन कर्नाटक के एक सरकारी स्कूल में ऐसे शिक्षक हैं जो रोज अपने स्कूल का शौचालय स्वयं साफ करते हैं। कर्नाटक के चामराजनगर जिले के गुंडलुपेट में होंगाहल्ली सरकारी प्राथमिक विद्यालय है। यहां पर बी. महादेश्वर स्वामी हेड मास्टर हैं। स्कूल में गंदे शौचालय की समस्या से निपटने के लिए उन्होंने इसकी सफाई करने का खुद जिम्मा

उठाया। वह रोज स्कूल का शौचालय खुद साफ करते हैं। इतना ही नहीं महादेश्वर ने स्कूल में बच्चों के लिए एक लाइब्रेरी भी बनवाई है। इस लाइब्रेरी को बनवाने से लेकर यहां किताबों का इंतजाम तक उन्होंने अपनी जेब से किया है। उन्होंने बाहर खड़ी और बंजर पड़ी जमीन पर बगीचा भी विकसित किया है। स्थानीय लोग और विभाग के अधिकारी महादेश्वर की तारीफ करते नहीं थकते हैं। वे कहते हैं कि महादेवश्वरा स्वामी दूसरे सरकारी स्कूल के शिक्षकों के लिए प्रेरणा हैं। उन्हें स्वामी से सीख लेनी चाहिए कि उन्होंने एक सरकारी स्कूल को कितना खूबसूरत बना दिया है।

लोगों ने बताया कि महादेव अपने दिन की शुरुआत स्कूल के शौचालय की सफाई के साथ करते हैं। उसके बाद बगीचे की देखभाल, क्लासरूम की सफाई भी खुद करते हैं। इतना ही नहीं वह बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उन्हें साफ-सफाई के बारे में भी सिखाते हैं। वह खुद बच्चों को ऐक्टिविटी में शामिल करते हैं। उन्हें पढ़ाई के साथ ही खेलों में भागीदारी के लिए प्रेरित करते हैं। यहां के अभिभावक अपने बच्चों को खुशी-खुशी इस

स्कूल में भेजते हैं। महादेश्वर ने बताया कि उन्होंने स्कूल के शौचालय की सफाई का काम 6 फरवरी 1988 से शुरू किया था। तब वह डॉ. एच. सुदर्शन के आदिवासी स्कूल में पढ़ाते थे। उन्होंने 1994 में सरकारी स्कूल में नौकरी ज्वाइन की। उसके बाद भी उन्होंने स्कूल के शौचालय की सफाई का काम जारी रखा। इस स्कूल में वह बीते आठ साल से हैं। (एजेंसी)


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

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स्वास्थ्य

विश्व एड्स दिवस (01 दिसंबर) पर विशेष

हार जाएगा एचआईवी वायरस!

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एचआईवी संक्रमण से एड्स में तब्दील होने की प्रक्रिया सुस्त पड़ रही है और यह कम संक्रामक हुआ है। वायरस में आ रहे बदलाव से इस महामारी को रोकने के प्रयास में मदद मिल सकती है

एसएसबी ब्यूरो

नियाभर में एचआईवी और एड्स का खतरा कम हुआ है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुए एक वैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के अनुसार बदलाव आने के कारण एचआईवी वायरस कमजोर पड़ रहा है। अध्ययन के अनुसार अब एचआईवी संक्रमण से एड्स में तब्दील होने की प्रक्रिया सुस्त पड़ रही है और यह कम संक्रामक हुआ है। वायरस में आ रहे बदलाव से इस महामारी को रोकने के प्रयास में मदद मिल सकती है। कुछ वायरोलॉजिस्ट तो यहां तक मान रहे हैं कि इस वायरस में बदलाव आने की प्रक्रिया जारी रहने के कारण इसका धीरे-धीरे लगभग हानि रहित हो जाने की संभावना है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत, चीन और पाकिस्तान उन 10 देशों में शामिल हैं, जहां 2016 में एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र में नए एचआईवी संक्रमण में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। एड्स पर अपनी रिपोर्ट में यूएनएड्स ने कहा है कि इस खतरनाक रोग के खिलाफ संघर्ष में पहली बार पलड़ा भारी हुआ है, क्योंकि एचआईवी वाइयरस से संक्रमित 50 फीसदी लोगों को अब इलाज उपलब्ध है जबकि 2005 के बाद पहली बार एड्स से संबंधित मौतों की संख्या तकरीबन आधी रह गई है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में नए संक्रमण के ज्यादातर मामले भारत, चीन, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, वियतनाम, म्यांमार, पापुआ न्यू गिनी, फिलीपींस, थाईलैंड और मलेशिया में हैं। पिछले साल इन देशों में क्षेत्र के 95 फीसद से ज्यादा एचआईवी के संक्रमण के मामले हुए। एशिया प्रशांत क्षेत्र में एचआईवी के नए संक्रमण की वार्षिक संख्या पिछले छह साल के दौरान 13 प्रतिशत गिरी है। 2010 में यह संख्या 3,10,000 थी जबकि 2016 में यह संख्या 2,70,000 थी।

संक्रमण शक्ति

एचआईवी का विषाणु रूप बदलने में माहिर है। मानव शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली के अनुकूल खुद को ढालने और उसके असर से बच निकलने के लिए यह बड़ी तेजी और सहजता से खुद को बदलता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फिलिप गोल्डर कहते हैं, ‘एचआईवी वायरस के सामने मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। अब इसे जीवित रहने के लिए खुद में बदलाव लाना पड़ रहा है।’ उनका मानना है कि बदलाव से वायरस की संक्रमण शक्ति को कमजोर हो रही है, जिसके चलते इसके एड्स में बदलने में ज्यादा वक्त लगता है। ‘प्रसीडिंग ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ

साइंसेज’ के जांच परिणाम भी यही बताते हैं कि एंटीरेट्रोवायरल दवाइयों के असर के कारण एचआईवी कमजोर पड़ रहा है। प्रोफेसर गोल्डर का कहना है, ‘20 साल पहले एचआईवी वायरस को एड्स का रूप लेने में 10 साल लगते था जबकि अब इसमें साढ़े बारह साल लग जाते हैं।’ हालांकि समूह ने चेतावनी भी दी है कि एचआईवी के कमजोर पड़ने के बावजूद यह अभी भी खतरनाक है और इससे एड्स हो सकता है।

रोजाना दवा से छुटकारा

डॉक्टरों ने एचआईवी के 12 मरीजों की प्रतिरोधक प्रणाली यानी उनकी बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ाने के लिए जीन थेरेपी का इस्तेमाल किया है और इसके नतीजे काफी उत्साहजनक हैं। ऐसे में इस बात संभावना बढ़ गई है कि मरीजों को एचआईवी के संक्रमण पर काब़ू पाने के लिए रोजाना दवा लेने

खास बातें

2005 के बाद पहली बार एड्स से संबंधित मौतों की संख्या आधी एचआईवी संक्रमण में सबसे ज्यादा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में वृद्धि एंटीरेट्रोवायरल दवाइयों के असर के कारण एचआईवी कमजोर पड़ रहा

डॉक्टरों ने एचआईवी के 12 मरीजों की प्रतिरोधक प्रणाली यानी उनकी बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ाने के लिए जीन थेरेपी का इस्तेमाल किया है और इसके नतीजे काफी उत्साहजनक हैं की जरूरत न पड़े। एचआईवी या ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस से एड्स नाम की बीमारी होती है, जो शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता को कम या खत्म कर देती है। जीन थेरेपी के दौरान मरीज की श्वेत रक्त कोशिकाओं को उनके शरीर से निकाल कर उनमें एचआईवी प्रतिरोधक क्षमता विकसित की गई और उन्हें दोबारा शरीर में डाल दिया गया। ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित एक छोटे अध्ययन में कहा गया है कि यह तकनीक पूरी तरह से सुरक्षित है।

टी-सेल में बदलाव

इस अध्ययन में बताया गया है कि कुछ लोग बेहद दुर्लभ म्यूटेशन या कोशिकाओं में होने वाले परिवर्तन वाले होते हैं, जो उन्हें एचआईवी से बचाता है। म्यूटेशन के तहत प्रतिरोधक प्रणाली के तहत आने वाले टीसेल की संरचना में बदलाव आता है और वायरस भीतर दाखिल नहीं हो पाते हैं और अपनी संख्या को बढ़ा नहीं पाते हैं। टिमोथी रे ब्राउन ऐसे पहले व्यक्ति हैं, जो एचआईवी से मक ु ाबला करने में कामयाब रहे और उनकी सेहत में सधु ार हुआ। ल्यूकिमिया ट्रीटमेंट के दौरान उनकी प्रतिरोधक प्रणाली काफ़ी कमज़ोर हो गई थी और फिर म्यूटेशन के जरिए किसी दूसरे व्यक्ति की मदद से वह इसे वापस पा सके। अब पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता बीमारियों से

लड़ने की क्षमता बढ़ाने के लिए मरीज की प्रतिरोधक क्षमता का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके तहत खून से लाखों टी-सेल लिए गए और प्रयोगशाला में उनकी संख्या को अरबों तक बढ़ा दिया गया।

उम्मीद की रोशनी

चिकित्सकों ने टी-सेल के अंदर डीएनए का संपादन किया ताकि उनमें शील्डिंग म्यूटेशन का विकास किया जा सके। इसे सीसीआर5-डेल्टा-32 के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद करीब दस अरब कोशिकाओं को दोबारा शरीर में डाला गया, हालांकि करीब 20 प्रतिशत कोशिकाएं ही सफलता के साथ संशोधित हो सकीं। फिर जब मरीज को चार सप्ताह तक दवा नहीं दी गई तो ये पाया गया कि शरीर में असंरक्षित टी-सेल की संख्या तो तेजी से घटी, लेकिन संशोधित टी-सेल टिकाऊ साबित हुईं और कई महीने बाद तक खून में बनी रहीं। पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में क्लीनिकल सेल एंड वैक्सीन प्रोडक्शन फैसिलिटी के निदेशक प्रोफेसर ब्रूस लेविन ने बताया, ‘यह पहली पीढ़ी का संपादन है जिसका प्रयोग अब से पहले कभी भी इंसानों पर नहीं किया गया था।’ उन्होंने बताया, ‘हम इस तकनीक का इस्तेमाल एचआईवी में कर सके हैं और नतीजों से पता चलता है कि यह सुरक्षित और व्यावहारिक है। इससे एचआईवी के इलाज में काफी मदद मिलेगी।’


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पर्यावरण

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (26 नवंबर) पर विशेष

...ताकि न डोले पर्यावरण का आसन पर्यावरण सुरक्षा महज सरकारी मसला नहीं है। इसके लिए जनजागृति, जनजिम्मेदारी, जनभागीदारी, जनकार्यवाही, सामाजिक दायित्व एवं सामाजिक संकल्प की प्रक्रिया से गुजरे बिना हम कारगर हल तक नहीं पहुंच सकते हैं

एसएसबी ब्यूरो

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कृति और सं स ्कृति दोनों की सघनता और विविधता का देश है भारत। पर यह पहचान अब उन आशंकाओं से घिर रही है, जो प्रकृति और पर्यावरण के प्रति लापरवाह रवैए के कारण आज पूरी दुनिया की सबसे बड़ी चिंता से जुड़ी है। प्रतिभाशाली फिल्मकार जोया अख्तर ने 2011 में एक फिल्म बनाई थी- जिंदगी न मिलेगी दोबारा। फिल्म का कथानक जिंदादिल दोस्तों की जिंदगी के इर्द-गिर्द बुना गया था। पर यह फिल्म एक संदेश यह भी देती है कि जिंदगी में कुछ अवसर दोबारा नहीं आते। देश में पर्यावरण संकट को सामने रखकर इस बात को इस तरह समझा जा सकता है कि हम आज जिन हालात तक पहुंच गए हैं, वहां से आगे समस्या की अनदेखी भारी पड़ सकती है।

चिंता के साथ अवसर भी

ग्लेशियरों के पिघलने से लेकर नदियों और समुद्री जल में प्रदूषण का आलम यह है कि अब भविष्यवाणी सौ-दौ सौ साल आगे की नहीं की जा रही, बल्कि बताया जा रहा है कि 2025 तक दुनिया में रहने लायक स्वस्थ जगहों के रकबे में सात से दस फीसदी तक की कमी आ सकती है। संयुक्त

खास बातें

2025 तक विश्व में रहने लायक जगहों में 7-10 फीसदी कमी की आशंका दो वर्ष पहले बीजिंग में प्रदूषण के कारण आपातकाल की घोषणा पर्यावरण संरक्षण के लिए देश में 200 से भी ज्यादा कानून

राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून विभिन्न वैश्विक मंचों से अक्सर यह बात कहा करते थे कि प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा की चुनौती आगे हमारे लिए चिंता का सबब तो है ही, साथ ही हमारे लिए यह एक बड़ा अवसर भी साबित हो सकता है। उनके मुताबिक पर्यावरण के बिगड़े हालात के कारण जो मुसीबतें पैदा होंगी, वह वैश्विक विवेक को इकट्ठे मजबूती देंगी। आज भले ग्लोबल वार्मिंग जैसे ज्वलंत मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाने में सफलता न मिल पा रही हो, पर इतना तो तय हो ही गया है कि इस समस्या से हम और ज्यादा समय तक आंखें नहीं मूंद सकते। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, ‘दो चीजें असीमित हैं- एक ब्रह्मांड तथा दूसरी मानव की मूर्खता।’ जाहिर है कि मनुष्य ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएं पैदा की हैं। इनमें से पर्यावरण प्रदूषण अहम है। आज जब हम इस बारे में चर्चा कर रहे हैं तो देश की राजधानी और उससे लगे इलाकों सहित देश के कई शहरों और हिस्सों में जहरीली धुंध छाई हुई है। जहां सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अपने-अपने तरीके से इस समस्या से बचाव के विकल्प सुझा रहे हैं, वहीं केंद्र और राज्य की सरकारें भी हरकत में हैं।

महज सरकार का सिरदर्द नहीं

पर्यावरण सुरक्षा महज सरकारी मसला नहीं है।

प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा की चुनौती आगे हमारे लिए चिंता का सबब तो है ही, साथ ही यह हमारे लिए एक बड़ा अवसर भी साबित हो सकता है - बान की मून, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव इसके लिए जनजागृति, जनजिम्मेदारी, जनभागीदारी, जनकार्यवाही, सामाजिक दायित्व एवं सामाजिक संकल्प की प्रक्रिया से गुजरे बिना हम कारगर हल तक नहीं पहुंच सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ‘मन की बात’ के 20वें संस्करण में खासतौर पर वर्तमान जल समस्या के लिए जनभागीदारी का आह्वान किया था। कह सकते हैं कि सरकार की करोड़ों-अरबों रुपए की सफाई योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद इस दिशा में सौ प्रतिशत सफलता जनभागीदारी पर ही निर्भर है।

उपयोग और देखरेख

मनुष्य पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली घटक है। पर्यावरण से परे उसका अस्तित्व नहीं रह सकता। पर्यावरण के अनेक घटकों के कारण वह निर्मित हुआ तथा अनेक कारकों से उसकी क्रियाएं प्रभावित होती रहती हैं। मानव पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण उपभोक्ता भी है। यह बात औद्योगीकरण के बाद के दिनों से ही साफ हो गई थी कि अपने

नैतिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास की उच्चतम उपलब्धियां मनुष्य उसी समय प्राप्त कर पाएगा, जब वह प्राकृतिक संपदा का विवेकपूर्ण उपयोग करेगा। आज जनाधिक्य, भोगवाद की संस्कृति, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग, युद्ध, परमाणु परीक्षण, तीव्र औद्योगिक विकास आदि के कारण नई-नई पारिस्थितिकीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

कई विधिक पहल

विश्व के वर्तमान परिवेश में सर्वाधिक संकटग्रस्त स्थिति में पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत अनिवार्य पर्यावरण आज कई तरह के खतरों की जद में आ गया है। पृथ्वी को इस संकट से बचाने के लिए तथा स्थानीय स्तर पर प्रदूषण को नियंत्रित रखने के साथ ही पर्यावरण को सुरक्षित करने हेतु ढेरों कानून राष्ट्रीय स्तर पर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, स्थानीय स्तर पर भी बनाए जा चुके हैं। फिर भी प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पाता, पर्यावरण


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

भारत में 18 बायोलॉजिकल हॉट स्पॉट देश में 45 हजार से अधिक वानस्पतिक प्रजातियां हैं, जो समूची दुनिया की पादप प्रजातियों का 7 फीसदी हैं

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निया के बारह मेगा बायोडाइवर्सिटी केंद्रों में से भारत एक है और 18 बायोलॉजिकल हॉट स्पॉट में से भारत में दो पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट हैं। अनुमान है कि देश में 45 हजार से अधिक वानस्पतिक प्रजातियां हैं, जो समूची दुनिया की पादप प्रजातियों का 7 फीसदी हैं। इन्हें 15 हजार पुष्पीय पौधों सहित कई वर्गीकीय प्रभागों में बांटा जाता है। करीब 64 जिम्नोस्पर्म, 2843 ब्रायोफाइट, 1012 टेरिडोफाइट, 1040 लाइकेन, 12480 एल्गी तथा 23 हजार फंजाई की प्रजातियां लोवर प्लांट के अंतर्गत हैं। पुष्पीय पौधों की करीब 4900 प्रजातियां सिर्फ भारत में ही पाई जाती हैं। करीब 1500 प्रजातियां विभिन्न स्तर के खतरों के कारण आज संकट में हैं। भारत खेती वाले पौधों के विश्व के 12 उद्भव केंद्रों में से एक है। भारत में समृद्ध जर्म प्लाज्म संसाधनों में खाद्यान्नों की 51 प्रजातियां, फलों की 104, मसालों की व कोंडीमेंट्स की 27, दालों एवं सब्जियों की 55, तिलहनों की 12 तथा चाय, काफी, तंबाकू एवं गन्ने की

का संरक्षण तो दूर उसका स्तर सुरक्षित तक नहीं रह पाता। वायु प्रदूषण नियंत्रण कानून 1981 के उल्लंघन हेतु कठोर कारावास की सजा के प्रावधानों के बावजूद राष्ट्र में सैकड़ों शहर के वायुमंडल पर प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है और पहुंच रहा है। जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम 1976 में अर्थदंड एवं कारावास के प्रावधानों के बावजूद गंगा और यमुना सहित कई नदियां जहरीली हो चुकी हैं। प्लास्टिक वेस्ट पर कानून में भी भारी अर्थदंड के बावजूद प्लास्टिक कचरों के ढेर बढ़ रहे हैं। म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (नगरीय ठोस अपशिष्ठ) कानून में भी कठोर दंड के बावजूद महानगरों में गंदे कचरों के पहाड़ प्रकट हो चुके हैं।

महज कानून से नहीं बनेगी बात

हमने यह पाया है कि इस दायित्व के निर्वहन के लिए जिम्मेदार समाज के महत्वपूर्ण घटक भी अपनी जिम्मेदारी को कानून द्वारा सरकार पर थोप देना ही पर्याप्त मानते हैं। पर कानून के उल्लंघन के लिए किसी एक आदमी को कितनी भी बड़ी सजा क्यों न दे दी जाए, उससे ऐसा कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं

विविध जंगली नस्लें शामिल हैं। देश में प्राणी संपदा भी उतनी विविध है। विश्व की 6.4 प्रतिशत प्राणी संपदा का प्रतिनिधित्व करती भारतीय प्राणियों की 81 हजार प्रजातियां हैं। भारतीय प्राणी विविधता में 5000 से अधिक मोलास्क और 57 हजार इनसेक्ट के अतिरिक्त अन्य इनवार्टिब्रेट्स शामिल हैं। मछलियों की 2546, उभयचरों की 204, सरीसृपों की 428, चिड़ियों की 1228 एवं स्तनधारियों की 327 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं। भारतीय प्राणी प्रजातियों में स्थानिकता या देशज प्रजातियों का प्रतिशत काफी अधिक है, जो लगभग 62 फीसदी है। पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस प्रमुख देशों में आता है। भारतीय उपमहाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियां पाई जाती हैं। दुनियाभर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के पक्षियों का 14 प्रतिशत है। गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध प्रमुख हैं। गिद्ध शहरों ही नहीं, जंगलों से भी खत्म हो गए हैं। 99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिद्धों के न रहने से हमने क्या खोया। होता, जिससे कि सफलतापूर्वक प्रदूषण नियंत्रित किया जा सके। व्यावहारिक रूप से प्रदूषण नियंत्रण के सफल उदाहरणों को प्रस्तुत किया जाए तो उससे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में हम ज्यादा सार्थक तरीके से आगे बढ़ सकते हैं।

प्रदूषण के कारण आपातकाल

दो वर्ष पहले चीन की राजधानी बीजिंग में प्रदूषण के भयावह स्तर को देखते हुए आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी थी। स्कूल, कॉलेजों की भी छुट्टी करनी पड़ गई थी। भारत लगातार इस स्थिति को कम से कम दो सालों से तो झेल ही रहा है। चीन की मियू नदी में इतना अधिक दूषित तेल प्रवाहित किया जा रहा था कि एक दिन उसमें आग लग जाने से पूरी नदी ही सुलगने लगी। भारत में भले हालात अभी इतने बुरे नहीं हैं, पर जो स्थितियां हैं, वे कभी भी बड़ी त्रासदी को जन्म दे सकती हैं। शासकीय प्रयासों से व्याप्त प्रदूषण के स्तर पर काफी कमी आई है, किंतु अगर महज कानूनी प्रयासों के स्थान पर सामूहिक सामंजस्य एवं आपसी समझ के द्वारा प्रयास किए जाते तो प्रदूषण के स्तर पर और ज्यादा अच्छे से नियंत्रण करना संभव हो पाता। जितना श्रम,

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पर्यावरण

अंतरराष्ट्रीय बीज बैंक

जैव विविधता बचाने के लिए बड़ी पहल

वर्ष 2000 में लंदन में अंतरराष्ट्रीय बीज बैंक की स्थापना की गई। बीज बैंक में अब तक 10 फीसदी जंगली पौधों के बीज संग्रहीत हो चुके हैं

लवायु परिवर्तन, औद्योगिक विकास के साथ मानवीय गतिविधियों के चलते जैव विविधता का ह्रास हो रहा है। पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास चल रहे हैं। इन्हें बचाना मानवता को बचाना ही है। 2000 में लंदन में अंतरराष्ट्रीय बीज बैंक की स्थापना की गई। बीज बैंक में अब तक 10 फीसदी जंगली पौधों के बीज संग्रहीत हो चुके हैं। नार्वे में ‘स्वाल बार्ड ग्लोबल सीड वाल्ट’ की स्थापना की गई है, जिसमें विभिन्न फसलों के 11 लाख बीजों का संरक्षण किया जा रहा है। ‘द एलायंस फॉर जीरो एक्सटिंशन’ में पर्यावरण एवं वन्य जीवों के क्षेत्र के 13 जानेमाने संगठन हैं। इसके तहत किए गए अध्ययन में 395 ऐसे स्थानों का विवरण तैयार किया गया है, जहां कोई न कोई प्रजाति के विलुप्त

होने का खतरा है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में 800 से ज्यादा प्रजातियां सिर्फ एक ही स्थान पर पाई जाती हैं। अगर इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो कई विलुप्त हो जाएंगी। धरती की जैव विविधता को ‘जियो और जीने दो’ जैसी लीक पर चलकर संरक्षित किया जा सकता है। जब तक प्रकृति, जीव-जंतु और मनुष्य के बीच सामंजस्य कायम रहेगा, तब तक विविधता के रंग बने रहेंगे और मानव जीवन में बहारें आती रहेंगी।

रूसो ने प्रकृति की ओर लौटने का आह्वान आज से 300 वर्ष पूर्व किया था। हमें निश्चित रूप से प्रकृति की ओर लौटना होगा। पर प्रकृति के साथ जो भूल मानव जाति अनजाने में कर रही है, उसकी पुनरावृत्ति को रोकना होगा साधन, धन एवं समय हम सब प्रदूषण नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण के कानूनी मार्ग में व्यय करते हैं, उसका एक चौथाई भी हमने सामूहिक, सामाजिक सामंजस्य के द्वारा किए होते तो इतनी बुरी स्थिति कभी भी नहीं बनती।

70 प्रतिशत जल प्रदूषित

एक अध्ययन के अनुसार धरती का पानी 70 प्रतिशत प्रदूषित हो चुका है। न सिर्फ भारत में बल्कि, दुनिया के ज्यादातर देशों में जल के लिए लोक चेतना का पूर्ण अभाव है। यह अभाव पर्यावरण संरक्षण के दूसरे मुद्दों पर देखा जा सकता है। रूसो का कथन है कि हमें आदत न डालने की आदत डालनी चाहिए। रूसो ने प्रकृति की ओर लौटने का आह्वान आज से 300 वर्ष पूर्व किया था। हमें निश्चित रूप से प्रकृति की ओर लौटना होगा। पर प्रकृति के साथ जो भूल मानव जाति अनजाने में कर रही है, उसकी पुनरावृत्ति को रोकना होगा। अपनी सुरम्य प्रकृति की ओर लौटना होगा और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए विश्वस्तर पर पर्यावरणीय शिक्षा की आवश्यकता की अनुभूति की जाने लगी। प्रकृति व पर्यावरण की

रक्षा के लिए हुए खेजड़ली के आत्मोत्सर्ग, चिपको आंदोलन और अप्पिको आंदोलन को कौन भूल सकता है।

जागरूकता जरूरी

पर्यावरण संरक्षण के लिए देश में 200 से भी ज्यादा कानून हैं। इन कानूनों का खुलेआम उल्लंघन होता है और भारत विश्व के सबसे प्रदूषित देशों की श्रेणी में आता है। पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण भले ही एक कानूनी मुद्दा अवश्य है, किन्तु इसे सर्वाधिक रूप से शुद्ध करने के लिए, इसे संरक्षित रखने के लिए समाज के सभी अंगों के मध्य आवश्यक समझ एवं सामंजस्य के द्वारा सामूहिक प्रयास किया जाना ज्यादा जरूरी है। दरअसल, इसके लिए सामाजिक जागरूकता की जरूरत है। पर्यावरण संरक्षण जनजागृति के बिना अपूर्ण रहेगा, सरकार तथा अंतरराष्ट्रीय संगठन चाहे कितना भी प्रयास करें। वास्तव में पर्यावरण को समग्रता में देखा जाए और जितना जरूरी सुंदर परिवार के साथ जीवन है उतना ही जरूरी सुंदर पर्यावरण है।


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जेंडर

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

महिलाएं दे रहीं हरियाली का संदेश संपूर्ण पारिस्थितिकी को संतुलित बनाए रखने के प्रति महिलाएं सदैव ही अग्रणी रही हैं। प्रकृति के प्रति महिलाओं की निष्ठा आज भी कई प्रेरक सुलेख लिख रही है

खास बातें वन, मिट्टी एवं जल से महिलाओं का सीधा एवं गहरा संबंध है पर्यावरण सुरक्षा को लेकर होने वाली पहलों में महिलाएं सबसे आगे दक्षिण भारत में ‘चिपको’ की तर्ज पर ‘अप्पिको’ आंदोलन उभरा

महिलाओं की ही मानी जाती है। यही कारण है कि पर्यावरण-संरक्षण, खासतौर से वन-संरक्षण में महिलाओं की भागीदारी अत्यंत ही महत्वपूर्ण हो गई है और महिलाएं इसके प्रति जागरूक भी हैं।

चिपको आंदोलन

एसएसबी ब्यूरो

म अपनी सामाजिक प्रथाओं और रीतिरिवाजों को देखें तो पता चलता है कि प्राचीन काल से ही महिलाएं पर्यावरण संरक्षण के प्रति काफी जागरूक रही हैं, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि आज भी महिलाएं व्रत-त्योहार के अवसर पर या यों भी पूजा-अर्चना में अनेक वृक्षों यथा-पीपल, तुलसी, आंवला, अशोक, बेल, शमी, नीम, आम आदि वृक्षों तथा अनेक फूलों को शामिल करती हैं। यही नहीं, उनकी नजर में विभिन्न पशुओं यथा-गाय, बैल, चूहा, घोड़ा, सांप, बंदर, उल्लू आदि भी अहम हैं, क्योंकि विभिन्न पर्व-त्योहारों में महिलाएं इन्हें भी पूजती हैं। जल स्रोतों के प्रति भी संरक्षण की भावना महिलाओं में प्राचीन काल से ही चली आ रही है, जैसे- गंगा-पूजन, कुओं की पूजा करना अथवा तालाब की पूजा करना। साफ है कि संपूर्ण पारिस्थितिकी को संतुलित बनाए रखने के प्रति महिलाएं सदैव ही अग्रणी रही हैं। भारतीय संस्कृति में रची-बसी महिलाओं द्वारा प्रकृति-संरक्षण अथवा पर्यावरण-संरक्षण की यह भावना पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आई है एवं आज भी देखने को मिलती है। यहां एक बात साफ कर देना समीचीन प्रतीत होता है कि भारत की सामाजिक

रचना में जहां महिलाओं की अपेक्षा पुरुष कई गुना अधिक महत्त्वपूर्ण एवं सुविधाभोगी है, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में, वहां पर्यावरण प्रदूषण ने महिलाओं की जीवन-शैली को बुरी तरह प्रभावित किया है। यही कारण है कि पर्यावरण एवं प्रकृति से सीधे रूप में जुड़ने में ग्रामीण महिलाएं पर्यावरण संरक्षण के प्रति अधिक सचेष्ट हैं। पर्यावरण सुरक्षा पर विमर्श का एक जेंडर एंगल भी है। मसलन, आज ऐसे क्षेत्रों में जहां अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं, वहां रसोई के लिए लकड़ी लाने के लिए घर के पुरुष महिलाओं को कई किलोमीटर दूर तक जाने को विवश करते हैं। इसी तरह जहां पानी की किल्लत है, वहां पानी जुटाने का दायित्व आमतौर पर

महिलाओं पर ही है। कई इलाकों में एक-एक घड़ा पानी के लिए महिलाओं को 10-15 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। अपने कई अध्ययनों से वरिष्ठ पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने यह बताया है कि ऐसे क्षेत्रों में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर कोई भी पहल शुरू होती है तो उसमें पहली पंक्ति में महिलाएं नजर आती हैं। मिश्र ने ऐसे प्रयोगों के उदाहरण राजस्थान से लेकर, हिमाचल, उत्तराखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों में चले पर्यावरण संरक्षण आंदोलनों के लेकर गिनाए हैं। दरअसल, प्राकृतिक संसाधनों यथा-वन, मिट्टी एवं जल से महिलाओं का सीधा एवं गहरा संबंध है। पारंपरिक तौर पर महिलाओं को ही इनका संरक्षक माना भी गया है। आदिवासी संस्कृति में तो वन-संपदा की अर्थव्यवस्था पूर्णतया

‘चिपको आंदोलन’ ने पर्यावरण संरक्षण खासतौर से वन-संरक्षण की दिशा में एक नई चेतना पैदा की है। यह आंदोलन पूर्णतया महिलाओं से जुड़ा है और इसने यह सिद्ध कर दिया कि जो काम पुरुष नहीं कर सकते, उसे महिलाएं कर सकती हैं

देश के पर्वतीय अंचलों में चले ‘चिपको आंदोलन’ ने पर्यावरण संरक्षण खासतौर से वन-संरक्षण की दिशा में एक नई चेतना पैदा की है। यह आंदोलन पूर्णतया महिलाओं से जुड़ा है और इसने यह सिद्ध कर दिया कि जो काम पुरुष नहीं कर सकते, उसे महिलाएं कर सकती हैं। यह आंदोलन उत्तराखंड के चमोली, कुमाऊं, गढ़वाल, पिथौरागढ़ आदि में प्रारंभ हुआ और जंगलों के विनाश के विरुद्ध सफल आंदोलन के रूप में पूरी दुनिया में सराहा जा चुका है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस आंदोलन का संचालन करने वाली महिलाएं पहाड़ी ग्रामीण क्षेत्रों की रहने वाली निरक्षर एवं अनपढ़ महिलाएं हैं। यह स्वतःस्फूर्त एवं अहिंसक आंदोलन विश्व के इतिहास को महिलाओं की अनूठी देन है। यह आंदोलन उनका अपनी जीवनरक्षा का आंदोलन है। इन महिलाओं ने अपने आंदोलन को इस तरह से संगठित किया है कि उनके गांवों का प्रत्येक परिवार जंगलों की रक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी तैनात करके सामूहिक चंदा अभियान से उनके वेतन भुगतान की व्यवस्था करता है। इन महिलाओं के शब्दकोश में असंभव नामक कोई शब्द है ही नहीं। इस आंदोलन की प्रमुख अगुआ गायत्री देवी रहीं।

चिपको की तर्ज पर ‘अप्पिको’

दक्षिण में भी चिपको आंदोलन की तर्ज पर ‘अप्पिको’ आंदोलन उभरा, जो 1983 में कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ क्षेत्र से शुरू हुआ। वहां सलकानी तथा निकट के गांवों के जंगलों को वन विभाग


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

भूजल दोहन से बढ़ रहा है कार्बन उत्सर्जन

के आदेश से काटा जा रहा था। तब इन गांवों की महिलाओं ने पेड़ों को गले से लगा लिया। यह आंदोलन लगातार 38 दिनों तक चला। सरकार को मजबूर होकर पेड़ों की कटाई रुकवाने का आदेश देना पड़ा।

शोधकर्ताओं का कहना है कि बड़े पैमाने पर पानी के पंपों या ट्यूबवेल के जरिए हो रहा भूमिगत जल का दोहन कार्बन उत्सर्जन को भी बढ़ावा दे रहा है

सेवा मंडल की महिलाएं

राजस्थान में उदयपुर के निकट ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ऊसर एवं रेतीली भूमि को हरे-भरे खेतों में बदल रही हैं। ‘सेवा मंडल’ नामक एक संस्था ने पिछड़े भील समुदाय को इतना अधिक प्रेरित किया है कि अब वह सैकड़ों वर्षों से वीरान पड़ी भूमि को हराभरा बनाने में जुट गया है। यह संस्था उदयपुर के छह विकासखंडों की सुरक्षा में बड़े ही मनोयोग से जुटी है। उनके इस उत्साह एवं सफलता को देखते हुए ही पर्यावरण-संरक्षण के लिए वर्ष 1991 का ‘केपी गोयनका पुरस्कार’ इन महिलाओं द्वारा तैयार ‘सेवा मंडल’ संस्था को मिला है।

देवदार की हिफाजत

हिमाचल प्रदेश की महिलाएं भी पर्यावरणसंरक्षण कार्यक्रम में किसी से पीछे नहीं हैं। यहां की महिलाएं छोटे-छोटे गुट बनाकर आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं। यही कारण है कि अखबारों में इनकी चर्चा तक नहीं है। हिमाचल प्रदेश में ही रामपुर परगने में तुरू नाम का एक गांव है। गांव की महिलाओं ने देवदार के वृक्षों को कटने से बचाकर अच्छा-खासा तहलका मचा दिया है। केशू देव नाम की एक महिला की जमीन पर देवदार के पेड़ लगाए गए थे। जब उसकी मौत हो गई तो उसका लड़का उन पेड़ों को काटकर उस भूमि का प्रयोग दूसरे कार्यों में करना चाहता था। किन्तु स्थानीय महिला मंडल से जुड़ी महिलाएं सक्रिय हो गईं और उन्होंने पेड़ों को काटे जाने का प्रयास विफल कर दिया।

रेत पर हरियाली

राजस्थान की बिश्नोई समाज की महिलाओं ने भी ऐसा ही एक अनोखा उदाहरण पेश किया है। थार रेगिस्तान के मध्य बिश्नोई जाति की बस्ती एक नखलिस्तान की तरह दिखती है। यह इस जाति की महिलाओं का पेड़ों के प्रति अनुराग का फल है। उनके समाज में एक लोक कथा प्रचलित है कि प्राचीन काल में जब राजा के नौकर एवं कर्मचारी राजमहल बनाने के लिए वृक्षों को काटने आते थे तो इस जाति की महिलाएं पेड़ों को काटने से बचाने की दृष्टि से पेड़ों से ही लिपट जाती थीं और कर्मचारी पेड़ों के साथ निर्दयतापूर्वक महिलाओं को भी काट देते थे। जब राजा ने यह सुना कि पेड़ों के साथ महिलाएं भी काट डाली जा रही हैं, तो राजा ने उस क्षेत्र में जंगलों को कटवाना रोक दिया। इस तरह बिश्नोई जाति की महिलाओं ने न केवल उस समय पेड़ों की सुरक्षा की, बल्कि एक इतिहास रच डाला, जो आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणा का काम करता है और आज भी पहाड़ों पर महिलाएं यही प्रक्रिया अपना कर पेड़ों को बचाने में लगी हैं।

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जल संरक्षण

दे

श के अधिकांश हिस्सों में भूजल का अत्यधिक दोहन एक प्रमुख पर्यावरणीय चुनौती है। भूजल के अंधाधुंध दोहन से भूमिगत जल स्तर में तेजी से हो रही गिरावट के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन में भी बढ़ोतरी हो रही है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन से मिले परिणामों में यह चेतावनी दी गई है। बड़े पैमाने पर पानी के पंपों या ट्यूबवेल के जरिए हो रहा भूमिगत जल का दोहन दो रूपों में कार्बन उत्सर्जन को भी बढ़ावा दे रहा है। पानी निकालने के लिए पंपों के उपयोग से होने वाला उत्सर्जन और बायोकार्बोनेट के निष्कर्षण से होने वाला कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन इसमें शामिल है। अधिकांश भूजल भंडारों में रेत, बजरी, मिट्टी और कैल्साइट होते हैं। हाइड्रॉन आयन कैल्साइट के साथ अभिक्रिया करके बाइकार्बोनेट और कैल्शियम बनाते हैं। भूजल जब वायुमंडल के संपर्क में आता है तो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है और कैल्साइट गाद के रूप में जमा हो जाता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने पंपिंग हेतु आवश्यक ऊर्जा और भूजल के रासायनिक गुणों संबंधी आंकड़ों के माध्यम से पंपिंग और बाइकार्बोनेटों के कारण होने वाले कार्बन उत्सर्जन का आकलन किया है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि देश में प्रति वर्ष होने वाले कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में भूजल दोहन से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (पंपिंग एवं बाइकार्बोनेट) का भी दो से सात प्रतिशत योगदान होता है। भूजल दोहन से होने वाला कुल कार्बन उत्सर्जन 3.2 से 13.1 करोड़ टन प्रतिवर्ष आंका गया है। इस अध्ययन के अनुसार, भारत में बाइकार्बोनेट के कारण होने वाले कार्बन

किसानों से एकत्र किए गए विशिष्ट आंकड़ों से यह पाया गया कि मिट्टी की नमी की जानकारी के आधार पर कम लागत वाली युक्ति अपनाकर योजनाबद्ध तरीके से सिंचाई द्वारा भूजल पंपिंग और कार्बन उत्सर्जन कम करके एक स्थाई समाधान निकाला जा सकता है। डाइऑक्साइड उत्सर्जन की मात्रा (लगभग 0.072 करोड़ टन प्रति वर्ष) भूजल पंपिंग के कारण होने वाले उत्सर्जन (3.1 से 13.1 करोड़ टन प्रति वर्ष) की तुलना में बहुत कम है। इस अध्ययन में किए गए आकलन केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) और नासा के उपग्रह मिशन जीआरएसीई (ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट) के आंकड़ों पर आधारित हैं। इन आंकड़ों में भूजल दोहन के स्रोतों की विशिष्ट उत्पादकता, बाइकार्बोनेट सांद्रता के मापन और विद्युत पंपों के उपयोग शामिल थे। केंद्रीय भूजल बोर्ड देशभर के 24,000 स्थानों के भूजल स्तर की जांच करता रहता है। इसके साथ ही यह बरसात से पहले, जब बाइकार्बोनेट आयनों की सांद्रता अधिकतम होती है, भूजल की गुणवत्ता की जांच भी करता है। प्रत्येक राज्य में मुख्य रूप से सिंचाई हेतु विभिन्न गहराइयों पर उपयोग किए जाने वाले पंपों के वितरण की जानकारी लघु सिंचाई संगणना अभिलेखों से प्राप्त की गई थी। इससे

भूजल पंपिंग के लिए आवश्यक ऊर्जा की गणना करने में मदद मिली है। इलेक्ट्रिक पंप देश में उपलब्ध कुल पंपिंग ऊर्जा स्रोतों का लगभग 70 प्रतिशत कवर करते हैं। हालांकि, गंगा के मैदानी क्षेत्रों में डीजल पंपों का अधिक इस्तेमाल किया जाता है। इस शोध में पंजाब के 500 किसानों को लेकर एक क्षेत्रीय सर्वेक्षण भी किया गया। शोधकर्ताओं के अनुसार, ‘किसानों से एकत्र किए गए विशिष्ट आंकड़ों से यह पाया गया कि मिट्टी की नमी की जानकारी के आधार पर कम लागत वाली युक्ति अपनाकर योजनाबद्ध तरीके से सिंचाई द्वारा भूजल पंपिंग और कार्बन उत्सर्जन कम करके एक स्थाई समाधान निकाला जा सकता है।’ भारत दुनिया का सबसे बड़ा भूजल उपयोगकर्ता है। यहां सिंचाई के लिए 230 अरब घन मीटर भूजल प्रतिवर्ष दोहन होता है। भारत में कुल अनुमानित भूजल 122 से 199 अरब घन मीटर पाया गया है। देश के कुल सिंचित क्षेत्रफल के 60 प्रतिशत से अधिक भूभाग में सिंचाई के लिए भूजल का ही उपयोग किया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में सिंधु-गंगा के मैदान और भारत के उत्तर-पश्चिमी, मध्य और पश्चिमी भाग शामिल हैं। कुछ क्षेत्रों (पश्चिमी भारत और सिंधु-गंगा के मैदान) में 90 प्रतिशत से अधिक भाग भूजल द्वारा सिंचित किया जाता है। शोध टीम के एक सदस्य डॉ. विमल मिश्रा ने बताया कि ‘भारत में भूजल में गिरावट की पर्यावरणीय समस्या कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से अधिक गंभीर है। इसीलिए, भूजल के उपयोग का विनियमन करना आवश्यक है।’ यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के वायुमंडलीय एवं महासागर विज्ञान तथा पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के प्रोफेसर और वर्तमान में आईआईटी-बॉम्बे में अतिथि प्रोफेसर डॉ. रघु मुर्तुगुड्डे का कहना है कि भूजल दोहन से कार्बन उत्सर्जन की चेतावनी हमेशा यह याद दिलाती रहती है कि हर एक मानवीय गतिविधि के कई प्रभाव हो सकते हैं। इसके कई अनपेक्षित परिणाम भी हो सकते हैं। सभी के लिए जल की एक समान उपलब्धता और गहराई से भूजल दोहन के कारण फ्लोराइड और आर्सेनिक में वृद्धि जैसे अन्य कारकों पर पैनी नजर बनाए रखने की भी आवश्यकता है। शोधकर्ताओं में विमल मिश्रा और आकर्ष अशोक (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर); कमल वत्ता (कोलंबिया इंटरनेशनल प्रोजेक्ट ट्रस्ट, नई दिल्ली) और उपमन्यु लाल (कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क) शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित हुआ है। (इंडिया साइंस वायर)


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26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

प्रेम सबसे करो, भरोसा कुछ पर करो और कभी भी किसी के साथ बुरा मत करो

अभिमत

- विलयम शेक्सपियर

सुप्रसिद्ध सर्वोदय विचारक

धर्म, तरुण और ज.े कृष्णमूर्ति

मनुष्य की धार्मिकता का आरंभ संगठित धर्म के बाद होगा। इसको कहने वाला आधुनिक पैगब ं र तो जे. कषृ ्णमूर्ति हैं, जो आधुनिकतम बातें कहते हैं

रोजगार का नववर्ष

यु

दादा धर्माधिकारी

‘इंडिया स्किल रिपोर्ट’ के मुताबिक अगले वर्ष टेक्नोलॉजी सेक्टर में नौकरियों की बहार होगी

वाओं को रोजगार को लेकर देश में हमेशा एक शिकायत की स्थिति बनी रहती है। पर यह स्थिति अब बदल रही है। आज स्थिति यह है कि लगभग सभी सेक्टरों में युवाओं को बड़ी संख्या में नौकरियां मिल रही हैं। ‘इंडिया स्किल रिपोर्ट’ में कहा गया है कि अगले वर्ष 2019 में टेक्नोलॉजी सेक्टर में नौकरियों की बहार होगी। इसके साथ ही वाहन, यात्रा और आतिथ्य क्षेत्र में रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध होंगे। रिपोर्ट के अनुसार अगले वर्ष के लिए करीब 64 प्रतिशत एम्प्लॉयर्स का रुख रोजगार को लेकर पॉजिटिव है। 20 प्रतिशत का कहना है कि वे अगले साल भी 2018 के बराबर रोजगार देंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले वर्ष नई नौकरियों देने की इच्छा दोगुना से अधिक यानी 15 प्रतिशत हो गई है, जबकि 2017 में यह मात्र सात प्रतिशत थी। नववर्ष में विशेष रूप से टेक्नोलॉजी सेक्टर में नई नौकरियां बढ़ेंगी। देश में रोजगार सृजन का यह माहौल शिक्षा की गुणवत्ता के साथ कौशल और उद्यम पर जोर देने से बना है। इसका सबसे अच्छा और प्रभावी तौर पर नजर आने वाला असर मोबाइल निर्माण के क्षेत्र में दिख रहा है। अगर देश में मोबाइल और स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है तो इसी अनुपात में और इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। मोबाइल फोन एवं इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के शीर्ष संगठन द इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) ने कहा है कि देश में अभी 267 मोबाइल हैंडसेट एवं कलपुर्जे विनिर्माण संयंत्र हैं और उनमें 6.7 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। रोजगार की अनुकूलता इसी तरह अच्च तकनीक के दूसरे क्षेत्रों में भी देखी जा सकती है। देश में अगर शिक्षा और कौशल का साझा उद्यम से लेकर रोजगार के क्षेत्र में तेजी से बढ़ते ग्राफ के तौर पर दिख रहे हैं, तो यह देश के बढ़े सामर्थ्य की निशानी है।

टॉवर फोनः +91-120-2970819

(उत्तर प्रदेश)

सं

स्कृति, चाहे वह पश्चिम की हो या पूर्व की हो, अब उस मक ु ाम पर पहुंच गई है कि या तो उसमें वास्तविकता आएगी, नहीं तो वह नहीं रहेगी। यह बात आज की सारी सांस्कृतिक संस्थाओं को समझ लेनी चाहिए। इसीलिए तरुण आज विद्रोह में उठ खड़ा हुआ है। तरुण मनुष्य के दिल में भी मुक्ति की कामना है। वह कहता है कि अब तक संस्थाओं और संगठनों (राज्य-संस्था, धर्म-संस्था आदि) ने हमारा नियंत्रण किया है। अब हम इनमें से किसी के भी नियंत्रण में नहीं रहना चाहते। धार्मिक संस्थाओं ने सबसे अधिक नियंत्रण किया है। धर्म की जितनी पकड़ मनषु ्य के दिमाग पर है, उतनी और किसी की नहीं। जितने पाप धर्म करवा सकता है उतने और कोई नहीं करवा सकता। क्या मनषु ्य का स्वरूप अकर्म है या सहज कर्म है? ...और सहज कर्म की प्रेरणा क्या होगी? ये दो सवाल उठते हैं। यानी शास्त्रीय कर्म तो निकल जाता है कि करोगे तो पणु ्य लगेगा, नहीं करोगे, तो पाप लगेगा। शास्त्रीय कर्म का मतलब है,

वर्णाश्रम का कर्म। इसे आपको ठीक तरह समझ लेना चाहिए। यह न तो महर्षि अरविंद मान सकते थे, न लोकमान्य तिलक मान सकते थे, न गांधीजी मान सकते थे और न राजा जी मान सकते थे। यहां मैं दो-चार ही नाम ले रहा हूं। ऐसा तो कोई नेता नहीं है, जिसने गीता पर न लिखा हो। इन सबने वर्णाश्रम की बात कही है, लेकिन वर्ण को एक शास्त्रीय कर्म नहीं माना है। मनुष्य के लिए परेशानी का विषय यह है कि वह ऐसी कौन सी जगह बनवाए कि जहां सब लोग जाएं। आज तो लोग बाजार में भी बंट गए है, जैस,े हिंदू दुकानें, मुस्लिम दुकानें। तो मनुष्य बेचारे को कहीं जगह ही नहीं है तो क्या दुनिया में यह सेकल ु र धर्म या संप्रदाय-निरपेक्षता होगी? क्या इसी धर्म या संप्रदाय में रहने से शांति या मुक्ति मिल सकेगी? मैंने आपके पास केवल जिज्ञासाएं रखी हैं। आज का तरुण इस नतीजे पर पहुंचा रहा है कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता ही अकेले काफी नहीं है, इनके आगे भी कोई स्वतंत्रता है, जो मनुष्य के जीवन को संपन्न बनाती है। यूरोप और उत्तर

आज का तरुण इस नतीजे पर पहुंचा रहा है कि राजनीतिक, आर्क थि और सामाजिक स्वतंत्रता ही अकेले काफी नहीं है, इनके आगे भी कोई स्वतंत्रता है, जो मनुष्य के जीवन को संपन्न बनाती है


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018 अमेरिका के लोग इन तीनों स्वतंत्रता का उपयोग कर चुके हैं। ये लोग जिस संपन्नता का अनुभव कर चुके है, इस संपन्नता के बाद की जो खोज है, वह आधुनिक मानव की खोज है, जिसका आरंभ हमारे यहां होता है। कार्ल मार्क्स ने कहा था कि ऐतिहासिकता का आरंभ वर्ग विग्रह के बाद होगा। मैं निवेदन करना चाहता हूं कि राज्य-संस्थाओं और धर्म- संस्थाओं का जिस दिन अंत होगा, उस दिन धार्मिकता का आरंभ होगा। मनुष्य की धार्मिकता का आरंभ संगठित धर्म के बाद होगा। इसको कहने वाला आधुनिक पैगबं र तो जे. कृष्णमूर्ति हैं, जो आधुनिकतम बातें कहते हैं। जब ये सारे ‘हरे राम, हरे कृष्ण’ वाले थक जाएंग,े तब अंत में वे कृष्णमूर्ति के पास पहुंचेंग।े लेकिन पहुंचने वाले वहीं हैं, क्योंकि बीच में कहीं भी इस समस्या का समाधान नहीं है। यह आज की सांस्कृतिक समस्या है। इसी को आप आज की

आज के मनुष्य की खोज आध्यात्मिक खोज है। उसका आरंभ हुआ है भौतिकता की समाप्ति के बाद। हमारे यहां तो अभी भौतिकता की भी समाप्ति नहीं हुई है आधुनिकतम आध्यात्मिक समस्या समझ लीजिए। असल में यह एक जिज्ञासा है, जो सोचने वाले हैं, उनके सामने रखना चाहता हूं इस पर वे सोचें, यह रियलिटी (वास्ताविकता) है, डिस्कशन (वादविवाद) नहीं है। गीता में मानवेतर कर्मयोग है या नहीं है? संन्यास योग है या कर्मयोग है? फिर ईश्वर और जीव एक हैं या दो हैं? हमको पता नहीं। मनुष्य को मनषु ्य के साथ रहने में और जब तक मनुष्य भीतर से एक न हो, वह रह नहीं सकता। सुख-दुख की संवदे ना जब तक मनुष्यों की समान नहीं होगी, तब तक मनषु ्य साथ नहीं रह सकते। दूसरे के दुखों से मैं दुखी होऊं, दूसरे के सुख से सुखी बनू,ं यह तभी हो सकता है, जब हम दोनों में कहीं मौलिक एकता हो। आपकी संवदे ना और दूसरे की संवदे ना में समानता हो। दक्षिण अफ्रीका के एक नीग्रो नेता ने कहा कि मेरी चमड़ी काली है, तुम्हारी गोरी है। मेरे बाल घघुं राले हैं, तमु ्हारे सीधे हैं। मेरे होंठ कुछ बड़े हैं, तुम्हारे छोटे हैं। लेकिन इन सबके भीतर मूल में तुममें और मझ ु में एकता है, वही मानवता है। तो उससे पूछा गया कि तमु नीग्रो लोगों का उद्धार कैसे होगा? उसने कहा कि गोरे आदमी का दिल काला हो गया है, जिस दिन उसका दिल शुभ्र हो जाएगा, आपमें और हममें फर्क नहीं रहेगा। यह सवाल हमारे यहां भी है। कानून तो बन गया, लेकिन अछूत दबाए जा रहे हैं, उनके मकान ही नहीं, मनुष्य जलाए जा रहे हैं। यह तो धर्म के नाम पर ही तो हो रहा है न? आप इस पर सोचिए कि यह सब क्या हो रहा है? कहीं तो इसकी खोज होनी चाहिए। इन सारी समस्याओं को मैंने मूलभूत-समस्या के रूप में आपके सामने रखा। आज के मनुष्य की खोज आध्यात्मिक खोज है। उसका आरंभ हुआ है भौतिकता की समाप्ति के बाद। हमारे यहां तो अभी भौतिकता की भी समाप्ति नहीं हुई है।

सद्गुरु जग्गी वासुदेव प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु

खुला मंच

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ल​ीक से परे

खुद को जानने में दिलचस्पी लें!

चीजों को इस्तेमाल करने के लिए बनाया गया है और लोगों को प्रेम करने के लिए, लेकिन गलतफहमी इतने गहरे तक उतरी हुई है कि लोगों का इस्तेमाल किया जा रहा है और चीजों से प्रेम किया जा रहा है

ज्या

दातर लोगों को इस बात की जबरदस्त गलतफहमी होती है कि दूसरे लोगों को जान लेने से, समझ लेने से वे बहुत प्रभावशाली हो सकते हैं। दरअसल लोगों की सोच यह है कि अगर आप दूसरों को जान जाते हैं तो आप स्थिति को कुछ हद तक संभाल सकते हैं, नियंत्रित कर सकते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। अगर आप अभी खुद को जान लें तो आप इस दुनिया में बहुत प्रभावशाली बन सकते हैं। अगर आप कुछ पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं तो हो सकता है कि आप इसमें कामयाब हो जाएं, क्योंकि आपके पास दिमाग है और आप आकलन कर सकते हैं, किसी के बारे में कोई राय कायम कर सकते हैं, कोई निर्णय ले सकते हैं। देखा जाए तो आपकी राय या फैसलों का दूसरों से कोई लेना-देना नहीं होता है। आपकी राय सिर्फ यह बताती है आपके सोचने का तरीका क्या है। लेकिन सवाल यह है कि आप ऐसे आकलनों का, ऐसी राय का करेंगे क्या? आज मानव सभ्यता ऐसी हो गई है कि हम जो भी देखते हैं, चाहे वह पेड़ हो, कोई पत्थर हो या पानी या कुछ और, हम इस चक्कर में रहते हैं कि उसका अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कैसे किया जाए। ऐसा नहीं होता कि हम किसी चीज को बस देखें और छोड़ दें। यह बात केवल प्रकृति के साथ ही नहीं है, यह लोगों के मामले में भी उतनी ही सच है। एक बार अगर आपकी प्रकृति ऐसी हो गई तो आप हमेशा यह सोचेंगे कि लोगों को मैं अपने फायदे के लिए कैसे इस्तेमाल करूं। इस दुनिया में लोगों की समझ में एक बड़ी गंभीर विकृति आ गई है या कह सकते हैं कि लोगों में एक जबरदस्त गलतफहमी आ गई है। देखिए, चीजों को इस्तेमाल करने के लिए बनाया गया है और लोगों को प्रेम करने के लिए, लेकिन गलतफहमी इतने गहरे तक उतरी हुई है कि लोगों का इस्तेमाल किया जा रहा है और चीजों से प्रेम किया जा रहा है। जैसे ही आप किसी शख्स के शरीर को देखते हैं, आपके मन में फौरन यह बात आती है कि यह शख्स सुंदर है या बदसूरत है, जवान है या बूढ़ा है। यह सब सेकंड से भी कम समय में

मन में घटित होता है। अगर आप किसी शख्स के व्यवहार या बातचीत को आंकने की कोशिश करेंगे तो आप तमाम तरह के फैसलों पर पहुंच जाएंगे। आपको वे पसंद हो सकते हैं, नापसंद हो सकते हैं, आप उनसे नफरत कर सकते हैं, आप उनसे प्रेम कर सकते हैं। इसीलिए किसी के शरीर, मन या भावनाओं पर ध्यान मत दीजिए। शुरुआत आप इंसान के भीतर गहराई में मौजूद तत्व से कीजिए। सबसे पहले तो आप जीवन के उस बीज के प्रति सिर झुकाइए जो उस व्यक्ति के भीतर मौजूद है। जीवन का स्रोत चाहे जो हो, आप उसे ईश्वर कहते हैं। जीवन का स्रोत या बीज हम सभी के भीतर मौजूद है। सबसे पहले आप उसके आगे अपना सिर झुकाइए। आपका सबसे पहला जुड़ाव इसके साथ होना चाहिए। इसके बाद ही आप उस शख्स के भीतर दूसरी तमाम चीजों को देखिए। हो सकता है

किसी इंसान का शरीर या मन ठीक न हो, लेकिन आपको उससे कोई समस्या नहीं है। हो सकता है वह इंसान आपकी संस्कृति का न हो, हो सकता है आपको उसकी कुछ चीजें पसंद और कुछ नापसंद हों। ये सब ठीक है, क्योंकि सबसे पहले आपने जीवन के मूल स्रोत को देखा है। यह कोई आकलन या निर्णय नहीं है, यह जीवन की गहन समझ है कि जब भी आप किसी व्यक्ति से मिलें तो उसके भीतर मौजूद जीवन के स्रोत के प्रति अपना सिर झुकाएं। ऐसा करने से आप न तो कोई आकलन करेंगे और न ही आपके भीतर कोई द्वंद्व होगा। कोई भी इंसान हमेशा एक- सा नहीं रहता। हो सकता है कोई इंसान आज ऐसा हो कि आपको पसंद न आ रहा हो। बहुत संभव है कि कल को यही इंसान बहुत अच्छे मूड में हो, लेकिन अगर आपने पहले की

किसी घटना के आधार पर ही उस शख्स के बारे में एक राय बना ली है तो वह इंसान अभी जैसा है, आप उसका आनंद नहीं ले पाएंगे। एक बार अगर आप ऐसी स्थिति में आ गए तो यह एक तरह का फंदा होगा। देखा जाए तो आपकी राय या फैसलों का दूसरों से कोई लेना-देना नहीं होता है। आपकी राय सिर्फ यह बताती है आपके सोचने का तरीका क्या है। जब मन हमेशा चलता रहता है तो यह दुनिया के हर इंसान के और हर चीज के बारे में अपनी राय कायम करता रहता है। अगर आपका मन दूसरों के बारे में कोई राय बनाता भी है तो आप उसे कोई अहमियत न दें। जब आप राय बनाना शुरू कर देते हैं तो मोटे तौर पर दो तरह की राय होती हैं - यह अच्छा है, यह बुरा है। जिस किसी चीज को भी आप अच्छा समझते हैं, आप स्वाभाविक तौर पर उसकी ओर खिंचने लगते हैं और उससे जुड़ जाते हैं। जिस चीज को आप बुरा समझते हैं, उससे आप दूर होने लगते हैं और इसका नतीजा यह होता है कि आपके भीतर नकारात्मक भावों का संचार होने लगता है इसलिए दूसरों के बारे में राय बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको बस परिस्थितियों का आकलन करना है। लोगों का आकलन नहीं करना है। खास बात यह कि जो भी असंतुष्टि है, जो भी कड़वाहट है, जो भी नकारात्मकता है, वह आपकी खुद की कमियों की वजह से आती है, परिस्थितियों की वजह से नहीं। इस बात को महसूस करना परिपक्वता की निशानी है। राय हर कोई बना सकता है, लेकिन जिन लोगों के भीतर विकसित होने की इच्छा है, उन्हें दूसरों के बारे में राय बनाना बंद कर देना चाहिए। नहीं तो आगे बढ़ने के लिए उठाया गया आपका एक कदम आपको सौ कदम पीछे की ओर धकेल देगा। अभी आपको इसका अहसास नहीं होगा, लेकिन कुछ दिनों या महीनों के बाद आप यह महसूस करने लगेंगे। तो चाहे वह कोई नाशपाती हो या सेब, कोई शख्स हो या कोई अनुभव, वह जैसा है, उसे उसी रूप में अनुभव करें। यह आपके भीतर गहरे तक जाएगा। जब ऐसा होगा तभी आप जीवन को समझ पाएंगे।


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फोटो फीचर

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

इंडोनेशिया

कई संस्कृतियों का सुंदर मेल

प्राचीन काल का जावा द्वीप आज का इंडोनेशिया है। यहां की राजधानी जकार्ता से लेकर पूरे देश में जो एक बात खास बात दिखाई देती है कि वह है हिंदुओं के साथ इस्लामी, चीनी और पश्चिमी जीवनशैली का सुंदर मेल। फोटो : शिप्रा दास


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

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गुड न्यूज

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

फूलों में बसी सामाजिक एकता की महक

दिल्ली में हर वर्ष मानाया जाने वाला उत्सव फूलवालों की सैर सांप्रदायिक एकता और सौहार्द का प्रतीक है

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सिद्धि जैन

रहवीं सदी के सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की महरौली स्थित दरगाह के खादिम सैयद फरीदुद्दीन कुतुबी दरगाह से कुछ ही दूरी पर स्थित प्राचीन योगमाया मंदिर में फूलों की छतरी चढ़ाने के बाद जब बाहर आए तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि छोटे से मंदिर का गर्भगृह जिस प्रकार मोगरे की महक से आच्छादित है, उसी प्रकार की शांति और भव्यता और अदृश्य शक्ति का अनुभव वह दरगाह में भी करते हैं। यहां 18वीं सदी से हर साल 'फूल वालों की सैर' महोत्सव मनाया जाता है। यह महोत्सव सांप्रदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है। इस महोत्सव में कुतुबी जैसे अनेक लोग अपनी धार्मिक पहचान से ऊपर उठकर दूसरे समुदाय के लोगों को भी पूजा-स्थलों पर फूल और पंखा चढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस महोत्सव के पीछे एक कहानी है, जो अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के पिता अकबर शाह द्वितीय से जुड़ी हुई है। अकबर शाह को दरगाह के ही पास दफनाया गया था। कहा जाता है कि जब अकबर शाह द्वितीय के पुत्र मिर्जा जहांगीर को अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया था, तो उनकी बेगम ने मन्नत मांगी थी कि उनके बेटे की रिहाई होने पर वह सूफी संत की दरगाह पर चादर चढ़ाएंगी। शाही फरमान के अनुसार, योगमाया मंदिर में भी फूल चढ़ाए गए। इस आयोजन में हिंदूमुस्लिम सभी धर्मो के लोगों ने पूरे जोश के साथ हिस्सा लिया था। उसके बाद से ही यह उत्सव हर

साल मनाया जाने लगा। महोत्सव के आयोजक अंजुमन सैर-ए-गुल फरोशां के सचिव मिर्जा मोहतराम बख्त ने बताया कि ब्रितानी हुकूमत की 'फूट डालो और राज करो की नीति' के कारण भारत के दो बड़े धार्मिक समुदायों के बीच गहरी दरार पड़ जाने से 1940 में महोत्सव के आयोजन पर विराम लग गया। उन्होंने बताया कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दोबारा 1961-62 में महोत्सव शुरू करवाया। तब से यह महोत्सव लगातार मनाया जा रहा है, जहां भारी तादाद में दिल्लीवासी इकट्ठा होते हैं। परस्पर सद्भाव व भाईचारे का संदेश देने वाले इस महोत्सव का विशेष महत्व है। यह महोत्सव सप्ताह

भर चलता है। कुतुबी ने कहा, ‘जब हमारे हिंदू भाई दरगाह पर फूलों की चादर चढ़ाने आते हैं तो मुस्लिम समुदाय के सदस्य पीछे हटकर उनको आगे आने को कहते हैं। इसी प्रकार देवी योगमाया मंदिर में फूलों की छतरी चढ़ाते समय मुसलमानों को प्रोत्साहित किया जाता है। यह दिलों का मिलन है और यह तभी हो सकता है, जब लोगों के दिलों में पाकीजगी होगी।’ उन्होंने कहा कि वह सभी धर्मों के अतिवादियों से कहते हैं कि वे कम से कम एक बार दूसरी संस्कृति का अनुभव करके देखें। महरौली निवासी रजनीश जिंदल 15 साल से महोत्सव में जाते हैं। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों

व जीवन के हर क्षेत्र के लोगों का यह व्यक्तिगत व सहूलियत का मसला है। उन्होंने कहा, ‘आप गुरुद्वारा जाते हैं। आपको आनंद और आराम का अनुभव होता है। वह आपका मजहब है। मस्जिद या मंदिर या चर्च के साथ भी वही बात है। यह व्यक्तिगत आस्था का मसला है।’ इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि फूलवालों की सैर महोत्सव के आयोजन के मार्ग में भी कई बाधाएं आती रहती हैं। बख्त ने कहा, ‘लोग कहते हैं, तुम करके तो दिखाओ हम देखते हैं तुम कैसे करते हो। हर किसी को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र पसंद नहीं है, जिसमें सभी धर्मों का आदर किया जाता है।’ उन्होंने कहा, ‘आखिरी वक्त में अनुमति मिलना, उदासीन रवैया और बहानों से हमारे लिए बाधाएं उत्पन्न होती हैं, जबकि सीधे तौर पर कोई विरोध नहीं दिखता है।’ पूर्व भूविज्ञानी बख्त ने कहा, ‘हालांकि हमारे उत्साह में कोई कमी नहीं है। सत्य की हमेशा जीत होती है। वे हमारे कारवां को रोक नहीं सकते हैं।’ बख्त ने कहा कि उन्हें दिल्ली वाला कहलाने पर गर्व है। पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता, जुलूस, कुश्ती, कबड्डी, शहनाई वादन का कार्यक्रम चार दिनों तक चलता है। पांचवें और छठे दिन दरगाह और मंदिर में चादर व फूल चढ़ाए जाते हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने इस वर्ष दरगाह में फूलों की चादर चढ़ाई। दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने फूलों की छतरी चढ़ाई। उनके साथ दोनों समुदायों के लोग शामिल थे। फूल वालों की सैर मेले का समापन 11 राज्यों की झांकियां निकालकर हुई और रातभर कव्वाली का कार्यक्रम चलता रहा।

गुजरात में मिला प्रागैतिहासिक मानव जीवाश्म कच्छ में एक करोड़ दास लाख वर्ष पुराने मानव का जीवाश्म मिला है जिससे महाकपि के भारत में होने की पुष्टि होती है

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ज्ञानिकों को गुजरात के कच्छ में 1 करोड़ 10 लाख साल पुराना मानव जीवाश्म मिला है। खुदाई में मिला ऊपरी जबड़े का यह जीवाश्म मानव प्रजाति के पूर्वजों का प्रतीत होता है। जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार यह खोज भारतीय प्रायद्वीप में प्राचीन महाकपि की मौजूदगी की पुष्टि करता है। कपि या होमोनोइड्स, दक्षिणपूर्व एशिया और अफ्रीका से आई नरवानर की प्रजाति है जिससे बाद में गिब्बन्स और महाकपि वर्ग के चिंपैंजी, गोरिल्ला, ओरंगउटान और मनुष्य की उत्पत्ति हुई। प्राचीन नरवानर को भारत और पाकिस्तान के शिवालिक में मिओसेन की तलछटी में पाया गया जिसे मानव और महाकपि के बीच की

कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। देश में मनुष्य की उत्पत्ति और विकास के क्रम में समझने में शिवालिक रेंज से मिले जीवाश्म बहुत महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। यूपी के लखनऊ में बीरबल साहनी पुराविज्ञान इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने मानव जबड़े का अध्ययन किया। एक्स-रे कंप्यूटेड टोमॉग्राफी से मालूम चलता है कि संरक्षित जबड़ा सिवापिथेकस श्रेणी के किसी वयस्क आदिमानव का है, लेकिन इसकी प्रजाति की पहचान नहीं की जा सकी है। शोधकर्ताओं ने पूर्व में मिले स्तनधारी जीवाश्म के आधार पर इसे 110 से 100 लाख साल पुराना बताया। (एजेंसी)


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

स्वच्छ हवा देने वाला एयर फिल्टर तैयार

आईआईटी-कानपुर के सिडबी इनोवेशन एंड इंक्यूबेशन सेंटर में एक ऐसा एयर फिल्टर तैयार हुआ है जो श्वास नली में केवल स्वच्छ हवा ही जाने देगा

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दूषण की मार झेल रहे दिल्ली-एनसीआर और कानपुर के लिए वैज्ञानिकों की एक खोज वरदान बनकर आई है। वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला एयर फिल्टर तैयार किया है जो बारीक से बारीक धूलकण को आपकी सांस में जाने से रोकेगा और नाक पर टिका रहेगा। इसके पहले गर्दन अथवा कान के पीछे बांधे जाने वाले मास्क ही बाजार में मौजूद हैं। इस नेजल मास्क की खोज आईआईटीकानपुर के सिडबी इनोवेशन एंड इंक्यूबेशन सेंटर में हुई है। हाल ही में आईआईटी-दिल्ली ने भी पीएम 2.5 धूलकण रोकने वाले फिल्टर प्लग बना लेने का दावा किया था, लेकिन आईआईटी-कानपुर कई मायनों में उनसे एक कदम आगे निकल गया है। नाक के अंदर फिट होने वाला ये नोजल प्लग नैनो पार्टिकल पूरी तरह नहीं रोक पाते थे और दूसरा सांस लेने की गति भी धीमी हो जाती थी, लेकिन आईआईटी-कानपुर में तैयार हुए नेजल ब्रीथिंग फिल्टर के अंदर सिलीकॉन लगा है। यह नाक पर आसानी से टिकने में मदद करता है जिससे छींकने और दौड़ने पर भी मास्क नहीं गिरेगा। यह नेजल मास्क हवा में घुले बैक्टीरिया को मार देगा। यह अस्थमा मरीजों के लिए फायदेमंद होगा। इसके लिए फिल्टर के अंदर 70 प्रतिशत

इथाइल अल्कोहल जल का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा यह रजाई या गद्दे से निकलने वाले छोटे कण यानी कॉटन माइक्रोफाइबर को भी अंदर जाने से रोकेगा। कॉटन माइक्रोफाइबर के चलते अस्थमा के मरीजों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। वैज्ञानिकों की कोशिश इस फिल्टर की लागत काफी किफायती रखने की है ताकि यह आम आदमी की जेब की पहुंच में रहे। फिल्टर का प्रोटोटाइप मॉडल तैयार किया जा चुका है। पहले शहर के 200 लोगों को यह फिल्टर मुफ्त म ें दिया जाएगा। ये ट्रैफिक पुलिसकर्मी, आईआईटी के सिक्योरिटी गार्ड, अस्थमा पीड़ितों और पनकी में रहने वाले को बांटे जाएंगे। वे इसका प्रयोग करके अपना अनुभव बताएंगे। अगर कोई कमी होगी तो इसमें फिर से संशोधन किया जाएगा। इस फिल्टर की सबसे बड़ी खूबी यह भी है कि इसे डिटरर्जेंट से धोकर फिर से इस्तेमाल में लाया जा सकेगा। वैज्ञानिकों ने बाजार में उतारने के लिए चार आकार में फिल्टर बनाए हैं। पहला छोटे बच्चों के लिए होगा, दूसरा युवाओं के लिए, तीसरा बड़ों के लिए और चौथा उनके लिए जिनकी नाक बड़ी होती है। इसके उत्पादन के लिए कई बड़ी कंपनियों से बातचीत भी चल रही है। (एजेंसी)

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गुड न्यूज

सेल्फी विद गोमाता

गोरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए बंगाल के युवाओं ने ‘सेल्फी विद गोमाता’ नाम से एक कैंपेन की शुरुआत की है

श्चिम बंगाल में कुछ युवाओं का एक समूह गोसेवा परिवार के बैनर तले राज्यभर में गाय से होने वाले फायदे और उसे बेचने पर होने वाले नुकसान के बारे में लोगों को जागरूक कर रहा है। 2015 में गोरक्षा के लिए 'सेल्फी विद गोमाता' नाम से शुरू हुए इस कैंपेन ने 2018 में नया कैंपेन 'सेल्फी विद गोमाता' लॉन्च किया है। युवाओं का यह समूह गाय से होने वाले आर्थिक फायदे के बारे में भी लोगों को जागरूक कर रहा है। गोरक्षा के लिए किसी प्रकार की हिंसा की आलोचना करते हुए इस समूह के ललित अग्रवाल कहते हैं, 'धार्मिक उपदेशों के आधार पर गोरक्षा अब पुरानी बात हो गई है। गोरक्षा के लिए हिंसा कोई अच्छा तरीका नहीं है। हम हर किसान तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से हो। हम उन्हें गाय पालने के फायदे बता रहे

हैं। हमें उन्हें यह भी समझा रहे हैं कि अगर वे गाय बेचते हैं या उसे कसाईखाने में देते हैं तो उन्हें कितना आर्थिक नुकसान होता है। हम गाय की बिक्री और उन्हें काटे जाने को रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हमारा रास्ता हिंसा का नहीं है।' सेल्फी विद गोमाता कैंपेन में पिछले साल 10 हजार से ज्यादा एंट्री हुई, जिससे ऐप ही क्रैश हो गया था। कॉन्टेस्ट के इनचार्ज अभिषेक सिंह कहते हैं, 'इस साल एंट्री वॉट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक के माध्यम से स्वीकार की जाएगी। कॉन्टेस्ट आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य लोगों को गोरक्षा के बारे में जागरूक करना और उसके फायदे के बारे में बताना है।' ललित अग्रवाल आगे बताते हैं, 'हमने राज्य के चार जिलों- वेस्ट मिदनापुर, बांकुरा, पुरुलिया और बर्दवान में 70 बायो गैस प्लांट लगाए हैं। हम किसानों को यह समझा रहे हैं कि गाय से दूध के अलावा गोमूत्र और गोबर का भी इस्तेमाल आर्थिक तौर पर किया जा सकता है।' (एजेंसी)

खास बेल्ट से पता चलेगा बच्चों पर अस्थमा का दुष्प्रभाव

एम्स ने एक ऐसी बेल्ट का निर्माण किया है जो स्कूल, घर या बस में यात्रा करते समय बच्चों पर असर डालने वाले वायु प्रदूषण के स्तर को लगातार मापेगी

ढ़ते प्रदूषण के बीच एम्स ने एक शोध किया है। इस शोध के तहत एक खास बेल्ट का निर्माण किया गया है, जो यह बताने में मददगार साबित होगी कि अस्थमाग्रस्त बच्चों पर प्रदूषण के संपर्क में आने से क्या प्रभाव पड़ रहा है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान ने इसके लिए बहु-केंद्र अध्ययन शुरू किया। इसके लिए बच्चों को दिन में प्रदूषण के स्तर को मापने और अस्थमाग्रस्त बच्चों के प्रभाव को जानने के लिए एक बेल्ट देगा, जिसे दिन के दौरान पहनकर बाहर निकलने वाले बच्चों पर हो रहे प्रदूषण को मॉनिटर किया जाएगा। ये शोध विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग और ब्रिटेन के मेडिकल रिसर्च सेंटर द्वारा वित्त पोषित था। इस शोध के तहत चिकित्सा संस्थान बच्चों

को बेल्ट के रूप में एक पहनने योग्य सेंसर देगा, जो स्कूल, घर या बस में यात्रा करते समय वायु प्रदूषण के स्तर को लगातार मापेगा। इस शोध की शुरुआत करीब छह महीने पहले हुई थी। इसके लिए अब तक 10-15 छात्रों की पहचान की गई है। एम्स के निदेशक और अध्ययन के मुख्य जांचकर्ता डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने बताया कि ये मशीन निरंतर अस्थमा वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर एक्सपोजर की डिग्री और इसके प्रभाव की पहचान करेगी। इस वास्तविक डेटा से ये खुलासा होगा कि एक व्यक्ति वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से कितना प्रभावित होता है। उन्होंने बताया कि इस शोध के तहत एक बटन की तरह एक उपकरण भी एक बच्चे की छाती पर रखा जाएगा,

जो हमें समग्र स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में जानकारी देगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक, मशीन द्वारा दर्ज किए गए डेटा को देखने में कोई भी सक्षम नहीं होगा। शोधकर्ताओं ने ये विचार किया है कि एक बच्चे पर एक हफ्ते तक इसका प्रयोग करके देखा जाएगा और साल में दो से तीन बार तक इस तरह का प्रयोग किया जाएगा। मशीन में एक अंतर्निर्मित तंत्र होगा जो डेटा की निगरानी में मदद करेगा और डॉक्टरों को प्रवृत्ति की पहचान करने में मदद करने के लिए वास्तविक समय प्रदूषण की जानकारी लगातार दर्ज करेगा। संयुक्त रूप से यह शोध आईआईटी-दिल्ली, लंदन के इंपीरियल कॉलेज और चेन्नई के श्री रामचंद्र विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित

किया जा रहा है। एम्स के पल्मोनोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. करण मदान ने बताया कि इसके लिए वे उन बच्चों की पहचान कर रहे हैं जो अस्थमा से ग्रस्त हैं और इलाज के लिए उनके पास आते हैं। बच्चों की पहचान के बाद वे इस संबंध में अधिकारियों से संपर्क करेंगे और बच्चों के माता-पिता और स्कूल की सहमति लेकर बच्चे को एक सेंसर दिया जाएगा, जिसे एक हफ्ते तक पहनाया जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अध्ययन इनडोर और आउटडोर प्रदूषण के बीच एक लिंक भी स्थापित करेगा। डॉ. मदान ने कहा कि अध्ययन हमें यह जानने में मदद करेगा कि कैसे प्रदूषण के बदलते स्तर से बच्चे का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। (एजेंसी)


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पुस्तक अंश

गुरु बिन ज्ञान न होय

18 गांधी जी विलायत से कई तरह के अनुभव लेकर आखिरकार स्वदेश लौटे। यहां आने पर जाति जैसी रूढ़ि को लेकर जहां उनके अंदर आकर्षण और कम हो गया, वहीं काबिल लोग और बेहतर साहित्य को लेकर उनकी ललक बढ़ गई। ज्ञान को लेकर इसी ललक से आत्मज्ञान से भरे हीरा व्यापारी रायचंद भाई को उन्होंने गुरु जैसा आदर देना शुरू किया

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

दूसरा भाग

1. रायचंद भाई

हूं। पिता की मृत्यु से मुझे जो आघात पहुंचा, उसकी तुलना में माता की मृत्यु की खबर से मुझे बहुत आघात पहुंचा था। मेरे बहुतेरे मनोरथ मिट्टी में मिल गए। पर मुझे याद है कि इस मृत्यु के समाचार सुनकर मैं फूट-फूटकर रोया नहीं था। मैं अपने आंसुओं को भी रोक सका था और मैंने अपना रोज का कामकाज इस तरह शुरू कर दिया था, मानो माता की मृत्यु हुई ही न हो। डॉ. मेहता ने अपने घर जिन लोगों से मेरा परिचय कराया, उनमें से एक का उल्लेख किए बिना काम नहीं चल सकता। उनके भाई रेवाशंकर जगजीवन तो मेरे आजन्म मित्र बन गए। पर मैं जिनकी चर्चा करना चाहता हूं, वे हैं कवि रायचंद अथवा राजचंद। वे डॉक्टर के बड़े भाई के जामाता थे और रेवाशंकर जगजीवन की पेढ़ी के साक्षी तथा कर्ता-धर्ता थे। उस समय उनकी उमर 25 साल से अधिक नहीं थी। फिर भी अपनी पहली ही मुलाकात में मैंने यह अनुभव किया था कि वे चरित्रवान और ज्ञानी पुरुष थे। डॉ. मेहता ने मुझे शतावधान का नमूना देखने को कहा। मैंने भाषा ज्ञान का अपना भंडार खाली कर दिया और कवि ने मेरे कहे हुए शब्दों को उसी क्रम से सुना दिया, जिस क्रम में वे कहे गए थे! उनकी इस शक्ति पर मुझे ईर्ष्या हुई, लेकिन मैं उस पर मुग्ध न हुआ। मुझे मुग्ध करनेवाली वस्तु का परिचय तो बाद में हुआ। वह था उनका व्यापक शास्त्रज्ञान, शुद्ध चारित्र्य और आत्मदर्शन करने का उनका उत्कट उत्साह। बाद में मुझे पता चला कि वे आत्मदर्शन के लिए ही अपना जीवन बिता रहे थेहसतां रमतां प्रगच हरि देखुं रे, मारुं जीव्युं सफल तव लेखुं रे मुक्तानंदनो नाथ विहारी रे

पिछले प्रकरण में मैंने लिखा था कि बंबई में समुद्र तूफानी था। जून-जुलाई में हिंद महासागर के लिए वह आश्चर्य की बात नहीं मानी जा सकती। अदन से ही समुद्र का यह हाल था। सब लोग बीमार थे, अकेला मैं मौज में था। तूफान देखने के लिए डेक पर खड़ा रहता। भींग भी जाता। सुबह के नाश्ते के समय मुसाफिरों में हम सब एक या दो ही मौजूद रहते। जई की लपसी हमें रकाबी को गोद में रख कर खानी पड़ती थी, वरना हालत ऐसी थी कि लपसी ही गोद में फैल जाती! मेरे विचार में बाहर का यह तूफान मेरे अंदर के तूफान का चिह्नरूप था। पर जिस तरह बाहर तूफान के रहते मैं शांत रह सका, मुझे लगता है कि अंदर के तूफान के लिए भी वही बात कही जा सकती है। जाति का प्रश्न तो था ही। धंधे की चिंता के विषय में भी लिख चुका हूं। इसके अलावा, सुधारक होने के कारण मैंने मन में कई सुधारों की कल्पना कर रखी थी। उनकी भी चिंता थी। कुछ दूसरी चिंताएं अनसोची उत्पन्न हो गईं। मैं मां के दर्शनों के लिए अधीर हो रहा था। जब हम घाट पर पहुंचे, मेरे भाई वहां मौजूद ही थे। उन्होंने डॉ. मेहता से और उनके बड़े भाई से पहचान कर ली थी। डॉ. मेहता का आग्रह था कि मैं उनके घर ही ठहरूं, इसीलिए मुझे वहीं ले गए। इस प्रकार जो संबंध विलायत में जुड़ा था वह देश में कायम रहा। वह और अधिक दृढ़ बनकर दोनों कुटुंबों में फैल गया। माता के स्वर्गवास का मुझे कुछ पता न था। घर पहुंचने पर इसकी खबर मुझे दी गई और स्नान कराया गया। मुझे यह खबर विलायत में ही मिल सकती थी, माता के स्वर्गवास का मुझे कुछ पता न था। घर पहुंचने पर इसकी खबर मुझे दी पर आघात को हल्का करने के विचार से बंबई पहुंचने गई और स्नान कराया गया। मुझे यह खबर विलायत में ही मिल सकती थी, पर तक मुझे इसकी कोई खबर न देने का निश्चय बड़े भाई ने कर रखा था। मैं अपने दुख पर पर्दा डालना चाहता आघात को हल्का करने के विचार से बंबई पहुंचने तक मुझे इसकी कोई खबर न

देने का निश्चय बड़े भाई ने कर रखा था


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

ओधा जीवनदोरी हमारी रे। ( जब हंसते-हंसते हर काम में मुझे हरि के दर्शन हों तभी मैं अपने जीवन को सफल मानूंगा। मुक्तानंद कहते हैं, मेरे स्वामी तो भगवान हैं और वे ही मेरे जीवन की डोर हैं।) मुक्तानंद का यह वचन उनकी जीभ पर तो था ही, पर वह उनके हृदय में भी अंकित था। वे स्वयं हजारों का व्यापार करते, हीरे-मोती की परख करते, व्यापार की समस्याएं सुलझाते, पर यह सब उनका विषय न था। उनका विषय उनका पुरुषार्थ था और आत्मपरिचय हरिदर्शन। उनकी गद्दी पर दूसरी कोई चीज हो चाहे न हो, पर कोई न कोई धार्मिक पुस्तक और डायरी तो अवश्य रहती थी। व्यापार की बात समाप्त होते ही धर्म पुस्तक खुलती थी। उनके लेखों का जो संग्रह प्रकाशित हुआ है, उसका अधिकांश इस डायरी से लिया गया है। जो मनुष्य लाखों के लेन-देन की बात करके तुरंत ही आत्म-ज्ञान की गूढ़ बातें लिखने बैठ जाए, उसकी जाति व्यापारी की नहीं, बल्कि शुद्ध ज्ञानी की है। उनका ऐसा अनुभव मुझे एक बार नहीं, कई बार हुआ था। मैंने कभी उन्हें मूर्च्छा की स्थिति में नहीं पाया। मेरे साथ उनका कोई स्वार्थ नहीं था। मैं उनके बहुत निकट संपर्क में रहा हूं। उस समय मैं एक भिखारी बैरिस्टर था। पर जब भी मैं उनकी दुकान पर पहुंचता, वे मेरे साथ धर्म-चर्चा के सिवाय दूसरी कोई बात ही न करते थे। यद्यपि उस समय मैं अपनी दिशा स्पष्ट नहीं कर पाया था। यह भी नहीं कह सकता कि साधारणतः मुझे धर्म-चर्चा में रस नहीं था, फिर भी रायचंद भाई की धर्म चर्चा रुचिपूर्वक सुनता था। उसके बाद मैं अनेक धर्माचार्यों के संपर्क में आया हूं। मैंने हर एक धर्म के आचार्य से मिलने का प्रयत्न किया है। पर मुझ पर जो छाप भाई रायचंद भाई ने डाली, वैसी दूसरा कोई न डाल सका। उनके बहुतेरे वचन मेरे हृदय में सीधे उतर जाते थे। मैं उनकी बुद्धि का सम्मान करता था। उनकी प्रामाणिकता के लिए मेरे मन में उतना ही आदर था। इसीलिए मैं जानता था कि वे मुझे जानबूझकर गलत रास्ते नहीं ले जाएंगे और उनके मन में जो होगा वही कहेंगे। इस कारण अपने आध्यात्मिक संकट के समय मैं उनका आश्रय लिया करता था। रायचंद भाई के प्रति इतना आदर रखते हुए भी मैं उन्हें धर्मगुरु के रूप अपने हृदय में स्थान न दे सका। मेरी वह खोज आज भी चल रही है। हिंदू धर्म में गुरुपद को जो महत्व प्राप्त है, उसमें मैं विश्वास करता हूं। ‘गुरु बिन ज्ञान न होय’, इस वचन में बहुत कुछ सच्चाई है। अक्षर-ज्ञान देनेवाले अपूर्ण शिक्षक से काम चलाया जा सकता है, पर आत्मदर्शन करानेवाले अपूर्ण शिक्षक से तो चलाया ही नहीं जा सकता। गुरुपद संपूर्ण ज्ञानी को ही दिया जा सकता है। गुरु की खोज में ही सफलता निहित है, क्योंकि शिष्य की योग्यता के अनुसार ही गुरु मिलता है। इसका अर्थ यह कि योग्यता-प्राप्ति के लिए प्रत्येक साधक को संपूर्ण

प्रयत्न करने का अधिकार है और इस प्रयत्न का फल ईश्वराधीन है। तात्पर्य यह कि यद्यपि मैं रायचंद भाई को अपने हृदय का स्वामी नहीं बना सका, तो भी मुझे समय-समय पर उनका सहारा किस प्रकार मिला है, इसे हम आगे देखेंगे। यहां तो इतना कहना काफी होगा कि मेरे जीवन पर प्रभाव डालनेवाले आधुनिक पुरुष तीन हैं- रायचंद भाई ने अपने सजीव संपर्क से, टॉलस्टॉय ने ‘बैकुंठ तेरे हृदय में है’ नामक अपनी पुस्तक से और रस्किन ने ‘अंटु दिस लास्ट’ (सर्वोदय) नामक पुस्तक से मुझे चकित कर दिया। पर इन प्रसंगों की चर्चा आगे यथास्थान होगी।

2. संसार प्रवेश

बड़े भाई ने मुझसे पर बड़ी-बड़ी आशाएं बांध रखी थीं। उनको पैसे का, कीर्ति का और पद का लोभ बहुत था। उनका दिल बादशाही था। उदारता उन्हें फिजूलखर्ची की हद तक ले जाती थी। इस कारण और अपने भोले स्वभाव के कारण उन्हें मित्रता करने में देर न लगती थी। इस मित्रमंडली की मदद से वे मेरे लिए मुकदमे लानेवाले

पुस्तक अंश

अपनी बहन के घर मैं पानी तक न पीता था। वे छिपे तौर पर पिलाने को तैयार होते, पर जो काम खुले तौर से न किया जा सके, उसे छिपकर करने के लिए मेरा मन ही तैयार न होता था। मेरे इस व्यवहार का परिणाम यह हुआ कि जाति की ओर से मुझे कभी कोई कष्ट नहीं दिया गया। यहीं नहीं, बल्कि आज भी मैं जाति के एक विभाग में विधिवत बहिष्कृत माना जाता हूं, फिर भी उनकी ओर से मैंने सम्मान और उदारता का ही अनुभव किया है। उन्होंने कार्य में मदद भी दी है और मुझसे यह आशा तक नहीं रखी कि जाति के लिए मैं कुछ-न-कुछ करूं। मैं ऐसा मानता हूं कि यह मधुर फल मेरे अप्रतिकार का ही परिणाम है। यदि मैंने जाति में सम्मिलित होने की खटपट की होती, अधिक तहें पैदा करने का प्रयत्न किया होता, जातिवालों का छेड़ा-चिढ़ाया होता तो वे मेरा अवश्य विरोध करते और मैं विलायत से लौटते ही उदासीन और अलिप्त रहने के स्थान पर खटपट के फंदे में फंस जाता और केवल मिथ्यात्व का पोषण करनेवाला बन जाता। पत्नी के साथ संबंध अब भी जैसा मैं चाहता था वैसा बना नहीं था। विलायत जाकर भी मैं

साधारणतः मुझे धर्म-चर्चा में रस नहीं था, फिर भी रायचंद भाई की धर्म चर्चा रुचिपूर्वक सुनता था। उसके बाद मैं अनेक धर्माचार्यों के संपर्क में आया हूं। मैंने हर एक धर्म के आचार्य से मिलने का प्रयत्न किया है। पर मुझ पर जो छाप भाई रायचंद भाई ने डाली, वैसी दूसरा कोई न डाल सका। उनके बहुतेरे वचन मेरे हृदय में सीधे उतर जाते थे थे। उन्होंने यह भी मान लिया था कि मैं खूब कमाऊंगा, इसीलिए घरखर्च बढ़ा रखा था। मेरे लिए वकालत का क्षेत्र तैयार करने में भी उन्होंने कोई कसर नहीं रखी थी। जाति का झगड़ा मौजूद ही था। उसमें दो तहें पड़ गई थीं। एक पक्ष ने मुझे तुरंत जाति में ले लिया। दूसरा पक्ष न लेने पर डटा रहा। जाति में लेनेवाले पक्ष को संतुष्ट करने के लिए राजकोट ले जाने से पहले भाई मुझे नासिक ले गए। वहां गंगा-स्नान कराया और राजकोट पहुंचने पर जातिभोज दिया। मुझे इस काम में कोई रुचि न थी। बड़े भाई के मन में मेरे लिए अगाध प्रेम था। मैं मानता हूं कि उनके प्रति मेरी भक्ति भी वैसी ही थी। इसीलिए उनकी इच्छा को आदेश मानकर मैं यंत्र की भांति बिना समझे उनकी इच्छा का अनुसरण करता रहा। जाति का प्रश्न इससे हल हो गया। जाति की जिस तह से मैं बहिष्कृत रहा, उसमें प्रवेश करने का प्रयत्न मैंने कभी नहीं किया, न मैंने जाति के किसी मुखिया के प्रति मन में कोई रोष रखा। उनमें मुझे तिरस्कार से देखनेवाले लोग भी थे। उनके साथ मैं नम्रता का बर्ताव करता था। जाति के बहिष्कार संबंधी कानून का मैं संपूर्ण आदर करता था। अपने सास-ससुर के घर अथवा

अपने ईर्ष्यालु स्वभाव को छोड़ नहीं पाया था। हर बात में मेरा छिद्रान्वेषण और मेरा संशय वैसा ही बना रहा। पत्नी को अक्षर-ज्ञान तो होना चाहिए। मैंने सोचा था कि यह काम मैं स्वयं करूंगा, पर मेरी विषयासक्ति ने मुझे यह काम करने ही न दिया और अपनी इस कमजोरी का गुस्सा मैंने पत्नी पर उतारा। एक समय तो ऐसा भी आया जब मैंने उसे उसके मायके भेज दिया और अतिशय कष्ट देने के बाद ही फिर से अपने साथ रखना स्वीकार किया। बाद में मैंने अनुभव किया कि इसमें मेरी नादानी के सिवा कुछ नहीं था। बच्चों की शिक्षा के विषय में भी मैं सुधार करना चाहता था। बड़े भाई के बालक थे और मैं भी एक लड़का छोड़ गया था, जो अब चार साल का हो रहा था। मैंने सोचा था कि इन बालकों से कसरत कराऊंगा, इन्हें अपने सहवास में रखूंगा। इसमें भाई की सहानुभूति थी। इसमें मैं थोड़ी बहुत सफलता प्राप्त कर सका था। बच्चों का साथ मुझे बहुत रुचा और उनसे हंसी-मजाक करने की मेरी आदत अब तक बनी हुई है। तभी से मेरा यह विचार बना है कि मैं बच्चों के शिक्षक का काम अच्छी तरह कर सकता हूं। खाने-पीने में भी सुधार करने की आवश्यकता स्पष्ट थी। घर में चाय-कॉफी को जगह मिल चुकी थी। बड़े भाई

23 ने सोचा कि मेरे विलायत से लौटने से पहले घर में विलायत की कुछ हवा तो दाखिल हो ही जानी चाहिए। इसीलिए चीनी मिट्टी के बरतन, चाय आदि जो चीजें पहले घर में केवल दवा के रूप में और ‘सभ्य’ मेहमानों के लिए काम आती थीं, वे सबके लिए बरती जाने लगीं। ऐसे वातावरण में मैं अपने 'सुधार' लेकर पहुंचा। ओटमील पारिज (जई की लपसी) को घर में जगह मिली, चाय-कॉफी के बदले कोको शुरू हुआ। पर यह परिवर्तन तो नाममात्र का ही था, चाय-कॉफी के साथ कोको और बढ़ गया। बूट-मोजे घर में घुस ही चुके थे। मैंने कोट-पतलून से घर को पुनीत किया! इस तरह खर्च बढ़ा। नवीनताएं बढ़ीं। घर पर सफेद हाथी बंध गया। पर यह खर्च लाया कहां से जाए? राजकोट में तुरंत धंधा शुरू करता हूं, तो हंसी होती है। मेरे पास ज्ञान तो इतना भी न था कि राजकोट में पास हुए वकील से मुकाबले में खड़ा हो सकूं, तिस पर फीस उससे दस गुनी लेने का दावा! कौन मूर्ख मुवक्किल मुझे काम देता? अथवा कोई ऐसा मूर्ख मिल भी जाए तो क्या मैं अपने अज्ञान में धृष्टता और विश्वासघात की वृद्धि करके अपने ऊपर संसार का ऋण और बढ़ा लूं? मित्रों की सलाह यह रही कि मुझे कुछ समय के लिए बंबई जाकर हाईकोर्ट की वकालत का अनुभव प्राप्त करना और हिंदुस्तान के कानून का अध्ययन करना चाहिए और कोई मुकदमा मिल सके तो उसके लिए कोशिश करनी चाहिए। मैं बंबई के लिए रवाना हुआ। वहां घर बसाया। रसोइया रखा। ब्राह्मण था। मैंने उसे नौकर की तरह कभी रखा ही नहीं। यह ब्राह्मण नहाता था, पर धोता नहीं था। उसकी धोती मैली, जनेऊ मैला। शास्त्र के अभ्यास से उसे कोई सरोकार नहीं। लेकिन अधिक अच्छा रसोइया कहां से लाता? ‘क्यों रविशंकर (उसका नाम रविशंकर था), तुम रसोई बनाना तो जानते नहीं, पर संध्या आदि का क्या हाल है?’ ‘क्या बताऊं भाई साहब, हल मेरा संध्यातर्पण है और कुदाल खट-करम है। अपने राम तो ऐसे ही बाम्हन हैं। कोई आप जैसा निबाह ले तो निभ जाए, नहीं तो आखिर खेती तो अपनी है ही।’ मैं समझ गया। मुझे रविशंकर का शिक्षक बनना था। आधी रसोई रविशंकर बनाता और आधी मैं। मैंने विलायत की अन्नाहार वाली खुराक के प्रयोग यहां शुरू किए। एक स्टोव खरीदा। मैं स्वयं तो पंक्ति-भेद काे मानता ही न था। रविशंकर को भी उसका आग्रह न था। इसीलिए हमारी पटरी ठीक जम गई। शर्त या मुसीबत, जो कहो सो यह थी कि रविशंकर ने मैल से नाता न तोड़ने और रसोई साफ रखने की सौगंध ले रखी थी! लेकिन मैं चार-पांच महीने से अधिक बंबई में रह ही न सकता था, क्योंकि खर्च बढ़ता जाता था और आमदनी कुछ भी न थी। इस तरह मैंने संसार में प्रवेश किया। बैरिस्टरी मुझे अखरने लगी। आडंबर अधिक, कुशलता कम। जवाबदारी का ख्याल मुझे दबोच रहा था। (अगले अंक में जारी)


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स्वच्छता

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

बेल्जियम

स्वच्छता का लक्ष्य शतप्रतिशत पूरा करने वाला देश

बेल्जियम दुनिया के उन चंद देशों में शामिल है, जिसने अपने नागरिकों को शुद्ध पेयजल पहुंचाने का लक्ष्य पूरा कर लिया है। स्वच्छता के क्षेत्र में भी सौ फीसदी आंकड़े के करीब ही है

एसएसबी ब्यूरो

क आॉनलाइन सर्वे में बेल्जियम को उन टॉप 10 देशों में गिना गया है, जो काफी स्वच्छ और सुंदर हैं। इस सूची में बेल्जियम को 10वें स्थान पर रखा गया है। अन्य टॉप देशों के समान ही बेल्जियम में भी स्वच्छता और स्वास्थ्य सुरक्षा व सुविधा का स्तर काफी उन्नत है। साथ ही समानता और समृद्धि के चलते यहां के लोगों का जीवन-स्तर भी काफी बेहतर है। इसके अलावा इस देश को बेहतरीन क्रिएटिव गुड्स एक्सपोर्ट, क्रिएटिव सर्विस एक्सपोर्ट, प्रेस की स्वतंत्रता और लोगों को कहीं भी आने-जाने या रहने की छूट के कारण भी इस सूची में टॉप 10 देशों में स्थान दिया गया है।

स्वच्छता में अव्वल

बेल्जियम दुनिया के उन कुछ अन्यतम देशों में शामिल है, जिन्होंने अपने नागरिकों को शुद्ध पेयजल पहुंचाने का लक्ष्य पूरा कर लिया है। बात अकेले

एक ऐसे दौर में जब कई देश नाभिकीय ऊर्जा से पैदा होने वाले कचरे के निस्तारण के बारे में किसी पुख्ता प्रबंध तक भी नहीं पहुंचे हैं, बेल्जियम इस बारे में दुनिया को तकनीक निर्यात कर रहा है

स्वच्छता की करें तो इसमें भी सौ फीसदी का आंकड़ा तकरीबन पूरा ही है। यह बड़ी उपलब्धि है और इसके लिए बेल्जियम का विकेंद्रित शासकीय ढांचा तो प्रशंसा का पात्र है ही, इसके लिए वहां के लोगों की भी सराहना करनी होगी। इस सफलता का एक बड़ा रहस्य यह भी है कि बेल्जियम गरीबी और साधनहीनता की चुनौती पर बहुत पहले ही खरा उतर चुका है।

शहरी ढांचा

बेल्जियम के स्वच्छ और स्वस्थ होने के पीछे एक बड़ी वजह इस देश का शहरी ढांचा है। दस साल पहले इस देश की 97 फीसदी आबादी शहरों में रहती थी। आज यह आंकड़ा थोड़ा और ऊपर ही पहुंचा होगा। स्वाभाविक तौर पर शहरी क्षेत्रों में विकास कार्यों को अमलीजामा पहनाना आसान

खास बातें तो होता ही है, इससे इस तरह की विकास की अधोसंरचना की देखरेख भी आसान हो जाती है।

वेस्ट मैनेजमेंट

बेल्जियम में वेस्ट मैनेजमेंट से निपटने में यूरोपीय देशों की तरह कई कारगर कदम उठाए गए हैं। यहां 75 फीसदी कचरे को रीसाइ​क्लिंग करके खाद बनाई जाती है। बेल्जियम में दो वेस्ट मैनेजमेंट तकनीक अपनाई जा रही हैं। इसमें से एक है ईकोलाइजर, ग्रीन ईवेंट और मूल्यांकन गाइड। ईकोलाइजर सोर्स कचरे की समस्या का हल करता है। यह एक वेब आधारित कैलकुलेटर है जो टिकाऊ डिजाइन और कम वेस्ट उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद करता है जिससे डिजाइनरों और कंपनियों को उनके उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने में सहायता मिलती है।

दुनिया के टॉप-10 स्वच्छ देशों में बेल्जियम दसवें स्थान पर यहां लोगों का जीवन-स्तर काफी बेहतर है और लोग काफी उद्यमी है बेल्जियम की 97 फीसदी से ज्यादा आबादी शहरों में रहती है ग्रीन इवेंट एक डिजिटल टूल है, जिससे बेल्जियम में कचरे के उत्पादन के खिलाफ लड़ाई लड़ने में सहायता मिलती है। यह इवेंट आयोजकों को इकॉलोजिकल प्रभाव का हिसाब लगाने में मदद करता है।

नाभिकीय कचरे का निस्तारण

कमाल की बात यह भी कि एक ऐसे दौर में जब कई देश नाभिकीय ऊर्जा से पैदा होने वाले कचरे के निस्तारण के बारे में किसी पुख्ता प्रबंध तक भी नहीं पहुंचे हैं, बेल्जियम इस बारे में दुनिया को तकनीक निर्यात कर रहा है। यही नहीं, वह इस दिशा में लगातार नए अनुसंधान भी कर रहा है। नाभिकीय कचरा मौजूदा विश्व के आगे एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में बेल्जियम की तकनीकी दक्षता की इसमें बड़ी भूमिका है।

आबादी और संस्कृति

बेल्जियम उत्तर-पश्चिमी यूरोप का एक देश है। यह


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

मजबूत वैश्विक अर्थव्यवस्था

पेयजल और स्वच्छता स्वच्छ या शोधित शहरी : 100% आबादी ग्रामीण : 100% आबादी

(2015 तक अनुमानित)

(2015 तक अनुमानित)

शहरी : 0% आबादी ग्रामीण : 0% आबादी कुल : 0% आबादी

अस्वच्छ या पारंपरिक

शहरी : 0.5% आबादी ग्रामीण : 0.6% आबादी कुल : 0.5% आबादी

स्वच्छता सुविधाएं

कुल : 100% आबादी

अस्वच्छ या अशोधित

पेयजल स्रोत

स्वच्छ व उन्नत शहरी : 99.5% आबादी

ग्रामीण : 99.4% आबादी कुल : 99.5% आबादी

एक उच्च औद्योगिक हैसियत वाले देश के रूप में बेल्जियम एक दशक पहले ही दुनिया के 15वें सबसे बड़े व्यापारिक देशों में शामिल हो चुका था

स्रोत : सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक (जनवरी, 2018)

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स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए शिक्षा एक आवश्यक कारक है और बेल्जियम में इस पर खासा ध्यान दिया गया है। बेल्जियम में छह वर्ष से लेकर 18 वर्ष तक शिक्षा अनिवार्य है यूरोपीय संघ का संस्थापक सदस्य है और उसके मुख्यालय का मेजबान भी है। 11 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले बेल्जियम का क्षेत्रफल 30,528 वर्ग किलोमीटर (11,787 वर्ग मील) है। जर्मनी और लैटिन यूरोप के मध्य अपनी सांस्कृतिक सीमा को विस्तृत किए हुए बेल्जियम दो मुख्य भाषाई समूहों, फ्लेमिश और फ्रेंच-भाषी से बना है। बेल्जियम के दो सबसे बड़े क्षेत्र हैं, उत्तर में 59 फीसदी जनसंख्या सहित फ्लेंडर्स का डच भाषी क्षेत्र और वालोनिया का फ्रेंच भाषी दक्षिणी क्षेत्र, जहां 31 फीसदी लोग बसे हैं। इसके अतिरिक्त ब्रुसेल्स (राजधानी क्षेत्र), जो आधिकारिक तौर पर द्विभाषी है, वह मुख्यतः फ्लेमिश क्षेत्र के अंतर्गत एक फ्रेंच भाषी एन्क्लेव है और यहां 10 फीसदी जनसंख्या बसी है। पूर्वी वालोनिया में एक छोटा जर्मन भाषी समुदाय मौजूद है।

देश का नामकरण

बेल्जियम नाम गॉल के उत्तरी भाग में एक रोमन प्रांत गैलिया बेल्जिका से लिया गया है, जो केल्टिक और जर्मन लोगों के एक मिश्रण बेल्जी का निवास स्थान था। ऐतिहासिक रूप से बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग निचले देश के रूप में जाने जाते

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स्वच्छता

थे, जो राज्यों के मौजूदा बेनेलक्स समूह की तुलना में अपेक्षाकृत कुछ बड़े क्षेत्र को आवृत किया करते थे। मध्य युग की समाप्ति से लेकर 17 वीं सदी तक यह वाणिज्य और संस्कृति का एक समृद्ध केंद्र था।

समर की धरती

16वीं शताब्दी से लेकर 1830 में बेल्जियम की क्रांति तक यूरोपीय शक्तियों के बीच बेल्जियम के क्षेत्र में कई लड़ाइयां लड़ी गईं, जिससे इसे यूरोप के युद्ध मैदान का तमगा मिला। उसकी यह छवि दोनों विश्व युद्धों में बनी रही। अपनी स्वतंत्रता के बाद बेल्जियम ने उत्सुकता के साथ औद्योगिक क्रांति में भाग लिया और उन्नीसवीं सदी के अंत में अफ्रीका में कई उपनिवेशों पर अधिकार जमाया।

सांप्रदायिक संघर्ष

बेल्जियम के इतिहास में 20वीं सदी के उत्तरार्ध को फ्लेमिंग्स और फ्रैंकोफोन के बीच सांप्रदायिक संघर्ष की वृद्धि के लिए जाना जाता है, जिसे एक तरफ तो सांस्कृतिक मतभेद ने भड़काया, तो दूसरी तरफ फ्लेनडर्स और वालोनिया के विषम आर्थिक विकास ने। अब भी सक्रिय इन संघर्षों ने पूर्व में एक एकात्मक राज्य बेल्जियम को संघीय राज्य बनाने

ल्जियम एक मजबूत वैश्विक अर्थव्यवस्था है और इसकी बुनियादी परिवहन सुविधाएं यूरोप के साथ एकीकृत हैं। एक उच्च औद्योगिक हैसियत वाला यह देश एक दशक पहले ही दुनिया के 15वें सबसे बड़े व्यापारिक देशों में शामिल हो चुका था। इसकी अर्थव्यवस्था की विशेषताओं में शामिल हैं- उच्च उत्पादक कार्य बल, उच्च सकल राष्ट्रीय उत्पाद और प्रति व्यक्ति उच्च निर्यात। बेल्जियम के मुख्य आयात हैं- खाद्य उत्पाद, मशीनरी, कच्चे हीरे, पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद, रसायन, कपड़े और वस्त्र। इसके मुख्य निर्यात हैं- मोटर वाहन, खाद्य उत्पाद, लोहा और इस्पात, तराशे हीरे, वस्त्र, प्लास्टिक, पेट्रोलियम उत्पाद और अलौह के दूरगामी सुधारों को प्रेरित किया है। बड़ी बात यह है कि संघर्ष और बदलाव के कई दौरों से गुजरने के बाद बेल्जियम एक ऐसे सशक्त राष्ट्र के रूप में उभरा, जो अपने नागरिकों के हितों का खयाल करते हुए विकास के ऊंचे सोपान तक पहुंचा।

शिक्षा पर जोर

स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए शिक्षा एक आवश्यक कारक है और बेल्जियम में इस पर खासा ध्यान दिया गया है। बेल्जियम में छह वर्ष से लेकर 18 वर्ष तक शिक्षा अनिवार्य है। 2002 में 18-21 उम्र वाले माध्यमिकोत्तर शिक्षा में नामांकित लोगों के साथ बेल्जियम आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के देशों में 42 फीसदी अंकों के साथ तीसरे सर्वाधिक अनुपात पर था। ओईसीडी 35 सदस्य देशों का आर्थिक संगठन है, जिसकी स्थापना 1960 में आर्थिक प्रगति और विश्व

धातुएं। बेल्जियम की अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से सेवा उन्मुख है और दोहरी प्रकृति दर्शाती है- एक गतिशील फ्लेमिश इकोनॉमी और एक वलून इकोनॉमी, जो पिछड़ी है। यूरोपीय संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक बेल्जियम दृढ़ता से एक खुली अर्थव्यवस्था और यूरोपीय संघ के संस्थानों की शक्तियों के विस्तार करने का समर्थन करता है। 1922 से बेल्जियम और लक्जमबर्ग सीमा शुल्क और मुद्रा संघ के अंतर्गत एकल व्यापार बाज़ार रहे। यही नहीं, बेल्जियम पहला यूरोपीय महाद्वीपीय देश था, जो 1800 की शुरुआत में औद्योगिक क्रांति से गुजरा। बाद में इस सिलसिला ने बेल्जियम की आर्थिक सुदृढ़ता को नई वैश्विक पहचान दी। व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए की गई थी। साफ है कि बेल्जियम में शैक्षिक उपलब्धियों का ग्राफ काफी ऊपर है और इसीका नतीजा है कि वहां की 98 फीसदी वयस्क आबादी साक्षर है। कार्यात्मक निरक्षरता को लेकर चिन्ता बढ़ रही है। ओईसीडी ने ‘समन्वित अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी मूल्यांकन’ में बेल्जियम की शिक्षा को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ के हिसाब से 19वें स्थान पर रखा है, जो कि महत्वपूर्ण रूप से इस संगठन के औसत से अधिक है। गौरतलब है कि 19वीं शताब्दी के उदारवादी और कैथोलिक दलों की विशिष्टताओं के बीच बेल्जियम में शिक्षा प्रणाली को अलग से धर्मनिरपेक्ष चरित्र भी दिया गया। स्कूली शिक्षा की धर्मनिरपेक्ष शाखा का नियंत्रण समुदायों, प्रांतों या नगरपालिकाओं द्वारा किया जाता है, जबकि धार्मिक शाखा का मुख्य रूप से कैथोलिक प्रबंधन द्वारा होता है।


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व्यक्तित्व

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

कार्ल मार्क्स

श्रम की अस्मिता का तर्क जिस 19वीं सदी का इतिहास रक्तरंजित धार्मिक उन्मादों और औपनिवेशिक सनक के नाम है, उसी दौर में जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने काफी कुछ ऐसा लिखा-किया, जिसने वैचारिक स्तर पर दुनिया को झकझोर कर रख दिया

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एसएसबी ब्यूरो

ज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजविज्ञानी और पत्रकार कार्ल मार्क्स की इस वर्ष 200वीं जयंती मनाई गई। उनका जन्म 5 मई 1818 को जर्मनी के ट्रियर शहर में हुआ था। कार्ल मार्क्स ने दुनिया को समाज और आर्थिक गतिविधियों के बारे में अपने विचारों से आंदोलित कर दिया। उनके विचारों से प्रभावित होकर कई क्रांतियों की नींव पड़ी। वे ताउम्र कामकाजी तबके की आवाज बुलंद करते रहे। इसके कारण उन्हें पूंजीपति वर्गों का काफी विरोध भी सहना पड़ा। अपने क्रांतिकारी लेखों के कारण उन्हें जर्मनी, फ्रांस और बेल्जियम से निकाल दिया गया था। 1864 में लंदन में ‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ’ की

स्थापना में मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा था पूंजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है। दार्शनिक के तौर पर उनका मानना था कि लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता ‘धर्म का अंत’ है। इससे आगे उन्होंने यह भी कहा कि नौकरशाहों के लिए दुनिया महज एक हेर-फेर करने की वस्तु है। उनके ही शब्दों में, ‘अमीर गरीबों के लिए कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते।’

इतिहास को लेकर प्रसिद्ध उक्ति

उनकी एक दिलचस्प उक्ति इतिहास को लेकर है, जो बार-बार उद्धृत की जाती है। उन्होंने कहा था इतिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी की तरह, दूसरे एक मजाक की तरह। दरअसल, उनका जोर इतिहास से सबक लेने पर है। वे मानते हैं कि हम अतीत के अनुभवों से सीखते नहीं हैं, इसीलिए इतिहास की त्रासदी अगली बार और त्रासद अनुभव के तौर पर मानवता के सामने आती है। दिलचस्प है जिस 19वीं सदी का इतिहास

रक्तरंजित धार्मिक उन्मादों और औपनिवेशिक सनक के नाम है, उसी दौर में जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने काफी कुछ ऐसा लिखा-किया, जिसने वैचारिक स्तर पर दुनिया को झकझोर कर रख दिया। आज भी इसमें कोई विवाद नहीं है कि उनकी दो कृतियां ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ और ‘दास कैपिटल’ ने एक समय दुनिया के कई देशों और करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला था। रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ का उदय इस बात का उदाहरण था। कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि 20वीं शताब्दी के इतिहास पर समाजवादी खेमे का बहुत असर रहा है। हालांकि, जैसा मार्क्स और एंजिल्स ने लिखा था, उस तरह साम्यवाद जमीन पर नहीं उतर पाया।

राजनीतिक कार्यक्रम

‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ और अपने अन्य लेखों में मार्क्स ने पूंजीवादी समाज में ‘वर्ग संघर्ष’ की बात की है और बताया है कि कैसे अंततः संघर्ष से सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लेगा। अपनी सबसे प्रसिद्ध कृति ‘दास कैपिटल’ में उन्होंने अपने इन विचारों

‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ और अपने अन्य लेखों में मार्क्स ने पूंजीवादी समाज में ‘वर्ग संघर्ष’ की बात की है और बताया है कि कैसे अंततः संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लेगा

खास बातें कार्ल मार्क्स की इस वर्ष 200वीं जयंती मनाई गई 1864 में लंदन में ‘अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ’ की स्थापना में सहयोग मार्क्स की जीवनी ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक फ्रांसिस व्हीन ने लिखी है को बहुत तथ्यात्मक और वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषित किया है। उनके प्रतिष्ठित जीवनी ब्रिटेन के लेखक फ्रांसिस व्हीन कहते हैं, ‘मार्क्स ने उस सर्वग्राही पूंजीवाद के खिलाफ दार्शनिक तरीके से तर्क रखे, जिसने पूरी मानव सभ्यता को गुलाम बना लिया।’ 20वीं शताब्दी में मजदूरों ने रूस, चीन, क्यूबा और अन्य देशों में शासन करने वालों को उखाड़ फेंका और निजी संपत्ति और उत्पादन के साधनों पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में जर्मन इतिहासकार अलब्रेख्त रिसल कहते हैं- ‘भूमंडलीकरण के पहले आलोचक थे


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

मार्क्स। उन्होंने दुनिया में बढ़ती गैरबराबरी के प्रति चेतावनी दी थी।’ 2007-08 में आई वैश्विक मंदी ने एक बार फिर उनके विचारों को प्रासंगिक बना दिया। पूंजीवाद के पिता माने गए एडम स्मिथ के ‘वेल्थ ऑफ नेशन’ से उलट मार्क्स का मानना था कि बाजार को चलाने में किसी अदृश्य शक्ति की भूमिका नहीं होती। इस बारे में विचार करते हुए वे तार्किक तौर पर यहां तक कह जाते हैं कि मंदी का बार-बार आना तय है और इसका कारण पूंजीवाद में ही निहित है। अलब्रेख्त के अनुसार, ‘उनका विचार था कि पूंजीवाद के पूरी तरह खत्म होने तक ऐसा होता रहेगा।’

अकूत मुनाफा और एकाधिकार

मार्क्स के सिद्धांत का एक अहम पहलू है‘अतिरिक्त मूल्य।’ ये वे मूल्य हैं जो एक मजदूर अपनी मजदूरी के अलावा पैदा करता है। मार्क्स के मुताबिक, समस्या यह है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य को ले लेते हैं और सर्वहारा वर्ग की कीमत पर अपने मुनाफे को अधिक से अधिक बढ़ाने में जुट जाते हैं। इस तरह पूंजी एक जगह और कुछ चंद हाथों में केंद्रित होती जाती है और इसकी वजह से बेरोजगारी बढ़ती है और मजदूरी में गिरावट आती जाती है। ब्रिटिश पत्रिका 'द इकोनॉमिस्ट' के एक हालिया विश्लेषण के अनुसार, पिछले दो दशकों में अमेरिका जैसे देशों में मजदूरों का वेतन स्थिर हो गया है, जबकि अधिकारियों के वेतन में 40 से 110 गुना की वृद्धि हुई है।

भूमंडलीकरण और मार्क्स

'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' में उन्होंने तर्क किया है कि पूंजीवाद का वैश्वीकरण ही अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता का मुख्य कारण बनेगा और 20वीं और 21वीं शताब्दी के वित्तीय संकटों ने ऐसा ही दिखाया है। यही कारण है कि भूमंडलीकरण की समस्याओं पर मौजूदा बहस में मार्क्सवाद का बार-बार जिक्र आता है। उन्होंने उस वक्त ही इंसान के आधुनिक जीवन की अहम आर्थिक समीक्षा की। इस लिहाज से वे मानवीय जीवन और संवेदना के उन तहों तक भी पहुंचे जिसे सिर्फ परंपरा और संस्कृति के विमर्श के साथ हम नहीं समझ सकते। मार्क्स ने कहा कि आर्थिक दबाव के चलते इंसान ‘आखिरकार आपसी रिश्तों को व्यावहारिक नजरों से देखने के लिए बाध्य होंगे।’ दार्शनिक मार्क्स के मुताबिक पूंजीवाद और पुनर्जागरण के बीच एक खामोश रिश्ता बनेगा।

मार्क्सनामा

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व्यक्तित्व

कार्ल मार्क्स की कविताई

घुटनों के बल मत रेंगो

इतनी चमक-दमक के बावजूद तुम्हारे दिन तुम्हारे जीवन को सजीव बना देने के इतने सवालों के बावजूद तुम इतने अकेले क्यों हो मेरे दोस्त ? कोई काम है ? जिस नौजवान को कविताएं लिखने और बहसों में शामिल रहना था वो आज सड़कों पर लोगों से एक सवाल पूछता फिर रहा है महाशय, आपके पास क्या मेरे लिए

अदम्य रोशनी के बाकी विचार भी

शहरों में संगीतकार ने क्यों खो दिया है अपना गान? अदम्य रोशनी के बाकी विचार भी जब अंधेरे बादलों से अाच्छादित हैं जवाब मेरे दोस्त ...हवाओं में तैर रहे हैं

कोई काम है ?

वो नवयुवती जिसके हक में जिंदगी की सारी खुशियां होनी चाहिए थी इतनी सहमी-सहमी व इतनी नाराज क्यों है? मोजेल का लाल

कार्ल मार्क्स बेहद रूमानी प्राकृतिक खूबसूरती के बीच पले-बढ़े। उनका घर मोजेल नदी के किनारे बसे शहर ट्रियर में था। इसे आज भी जर्मनी के सबसे खूबसूरत इलाकों में गिना जाता है। ट्रियर से कुछ दूरी पर फ्रांस है, जहां 1789 में क्रांति हुई और उससे आजादी, समानता और भाईचारे के विचार निकले। बहुद जल्द ही ये नारे ट्रियर तक पहुंचे।

रोमांटिक कविताएं

अपने शुरुआती जीवन में कार्ल मार्क्स एक रोमांटिक कवि थे। उनकी एक कविता है, ‘मैं भीतरी इच्छाशक्ति, लगातार घुमड़ती दहाड़ों और हमेशा बनी रहने वाली चमक से अ​िभभूत हूं।’ ये पंक्तियां उन्होंने अपनी प्रेमिका जेनी फॉन वेस्टफेलन के लिए लिखी। जेनी ने प्यार की स्वीकृति दी और जून 1843 में दोनों ने शादी कर ली। मार्क्स ने पहले रजिस्ट्रार ऑफिस में शादी की और फिर, आप माने न मानें, चर्च में भी।

पूरा नाम : कार्ल हेनरिख मार्क्स जन्म : 5 मई 1818 ट्रियर, जर्मनी मृत्यु : 14 मार्च 1883 (उम्र 64), लंदन, ब्रिटेन धार्मिक मान्यता : पहले यहूदी, बाद में नास्तिक जीवनसाथी : जेनी वेस्टफेलन प्रसिद्धि : वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता प्रसिद्ध कृतियां : दास कैपिटल, कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो

'द इकोनॉमिस्ट' के एक हालिया विश्लेषण के अनुसार, पिछले दो दशकों में अमेरिका जैसे देशों में मजदूरों का वेतन स्थिर हो गया है, जबकि अधिकारियों के वेतन में 40 से 110 गुना की वृद्धि हुई है दोस्त और फाइनेंसर

अपने जीते जी मार्क्स पैसे का इंतजाम नहीं कर सके। उनका परिवार बुरी तरह कर्ज में डूबा था। लेकिन 1840 के दशक में मार्क्स की जिंदगी में फ्रेडरिक एंजेल्स आए। एंजिल्स एक बौद्धिक शख्सियत होने के साथ-साथ धनी फैक्ट्री मालिक के बेटे भी थे। उन्होंने ताउम्र मार्क्स की मदद की। मार्क्स को अब भी अक्सर साहूकारों से कर्ज की जरूरत होती, लेकिन पहले से बहुत कम।

स्वामित्व और स्वामी

कार्ल मार्क्स ने अपनी सबसे अहम किताब ‘दास कैपिटल’ में लिखा है कि पूंजीपतियों पर नियंत्रण के लिए ‘उत्पादन के साधनों का राष्ट्रीयकरण जरूरी है।’ वे कहते हैं, ‘ऐसा करने से ही आखिरकार पूंजीवादी कवच टूटेगा। फिर शोषण करने वालों के गिरेबान पकड़े जाएंगे, दूसरों को लूटने वाले खुद लुटेंगे।’ मार्क्स ने फ्रांस के राजा चार्ल्स लुई नेपोलियन बोनापार्ट का बड़ी गहराई से अध्ययन किया। नेपोलियन बोनापार्ट ने 1851 में खुद को फ्रांस का राजा घोषित किया। उसका आदर्श पूर्व राजा नेपोलियन

था। इतिहास को लेकर उनकी मशहूर टिप्पणी जर्मनी के इतिहास को लेकर ही की गई है।

तानाशाही उभार को बल

मार्क्स के नाम पर क्रांति का झंडा उठाकर दुनियाभर में कई तानाशाही ताकतें सत्ता में आईं। ताकत के बल पर उन्होंने मार्क्स के विचारों को अमल में लाने की कोशिश की। लेकिन मार्क्स इस खतरे को पहले ही भांप चुके थे। एक बार उन्होंने कहा, मैं जो कुछ भी जानता हूं, उसके आधार पर कहता हूं, ‘मैं कोई मार्क्सवादी नहीं हूं।’ हालांकि इस बयान की कभी पुष्टि नहीं हुई। मार्क्स अपने कार्य और विचार को उदारवाद से जोड़कर देखते थे। 1989 तक मार्क्स के सिद्धांतों के नाम पर पूर्वी यूरोप में कई तानाशाही सत्ताएं आईं। बाद में आर्थिक तंगी के चलते वे पस्त पड़ गईं। दुनिया को हैरान करते हुए समाजवादी ढांचे वाले देश धराशायी हो गए। हंगरी ने पश्चिम के लिए अपनी सीमा खोल दी। पूर्वी जर्मनी के नागरिक भी एक ही चीज चाहते थे, देश छोड़कर भागना। 1989 के बाद मार्क्स के​ िवचाराें को लेकर आसपास खामोशी छाने लगी।

आखिरी आह्वान

1883 में 64 साल की उम्र में लंदन में कार्ल मार्क्स ने आखिरी सांस ली। उनकी कब्र हाईगेट सिमेट्री में है। कब्र के ऊपर मार्क्स की प्रतिमा लगी है और नीचे लिखा है, ‘दुनियाभर के मजदूरों एक हो जाओ।’


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रूस

पुस्तक अंश

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

हम भारतीय भागीदारों के साथ दोस्ती, विश्वास और पारस्परिक समझ की अत्यधिक सराहना करते हैं। व्लादिमीर पुतिन रूस के राष्ट्रपति

प्र

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 23 से 24 दिसंबर, 2015 के बीच रूस की दो दिवसीय शिखर स्तरीय वार्षिक यात्रा की, जहां दोनों देशों के आपसी हितों के मुद्दों पर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ उनकी सारगर्भित और व्यापक चर्चा हुई। द्विपक्षीय आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए दोनों नेताओं ने निरंतर विनिमयों पर संतुष्टि व्यक्त की जिसमें पिछले वर्ष उच्च स्तरीय यात्राओं, संस्थागत आदान-प्रदान और अन्य संपर्क शामिल थे। वे इस बात पर सहमत हुए कि इन यात्राओं ने रूस और भारत की रणनीतिक साझेदारी को बहुत मजबूत किया है। इस दौरे के दौरान रूसी और भारतीय कंपनियों के बीच कई वाणिज्यिक समझौते हुए। साथ ही दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। प्रधानमंत्री मोदी ने रूस में भारतीय समुदाय के सदस्यों सहित भारत के मित्रों की एक सभा को भी संबोधित किया। दोनों पक्ष वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए सहमत हुए। साथ ही संस्थागत तंत्र के ढांचे के भीतर नियमित परामर्श के आधार पर अपनी संबंधित सरकारों द्वारा निरंतर सुविधा की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने 20 अक्टूबर, 2015 को मास्को में आयोजित रूसी-भारतीय अंतर सरकारी आयोग (आईजीसी) की इक्कीसवीं बैठक में व्यापारिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग पर आए परिणामों और आयोग के विभिन्न कार्यकारी समूहों द्वारा किए गए निर्णयों का स्वागत किया। ‘मेक इन इंडिया’ पहल का उल्लेख किया गया, जिसमें दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि तेजी से बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था में रूसी कॉरपोरेट संस्थाएं

मोदी की इस यात्रा ने अल्पावधि में रूसी असुरक्षा को निश्चित रूप से खत्म कर दिया है, लेकिन वास्तव में एक परिवर्तनीय कौशल का अभी भी इंतजार है। भारत-रूस संबंधों में सबसे बड़ा बदलाव रक्षा और शायद ऊर्जा क्षेत्र भी, से लेकर अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में भारतीय व्यापार का विस्तार है...यह न केवल दोनों देशों के संबंधों के लिए एक स्वस्थ आधार बनाएगा, बल्कि यह हथियारों के अनुबंध को न हासिल कर पाने के प्रभाव से रूस को प्रभावित नहीं करेगा। जयदीप प्रभु फर्स्टपोस्ट में

24 दिसंबर, 2015: रूस की राजधानी मॉस्को में राष्ट्रीय संकट प्रबंधन केंद्र (एनसीएमसी), ईएमईआरसीओएम का दौरा करते हुए 24 दिसंबर, 2015: रूस की राजधानी मॉस्को में एलेक्जेंडरोवस्की कैड (अंजान सैनिक के मकबरे) पर पुष्पांजलि अर्पण करने जाते हुए पीएम मोदी

रूस फेडरेशन के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 23 दिसंबर, 2015 को मॉस्को, रूस में गांधी जी के हस्तलिखित लेख वाली डायरी से एक पृष्ठ उपहार स्वरुप दिया।

साथ मिलकर एक नया और टिकाऊ ढांचा प्रदान करेंगी। उन्होंने दोनों देशों में तेल और गैस, फार्मास्यूटिकल्स, रसायन उद्योग, खनन, मशीन निर्माण, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कार्यान्वयन, रेलवे क्षेत्र में सहयोग, उर्वरक उत्पादन, ऑटोमोबाइल और विमान निर्माण जैसे संभावनाओं वाले क्षेत्रों और साथ ही एक दूसरे की औद्योगिक सुविधाओं के आधुनिकीकरण में, सहयोगी उद्यमों के क्षेत्रों में नए और महत्वाकांक्षी निवेश प्रस्तावों को अंतिम रूप देने के लिए दोनों देशों की कंपनियों से आग्रह किया। दोनों प्रतिनिधिमंडलों ने भारत और यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते की व्यवहार्यता पर विचार करने के लिए संयुक्त अध्ययन समूह (जॉइंट स्टडी ग्रुप) के सफल उद्घाटन का भी स्वागत किया और साथ ही मसौदा रिपोर्ट को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने के लिए कहा। उन्होंने थोक वस्तुओं और माल के साथ-साथ दोनों देशों के बीच व्यापार की सुविधा के लिए अपनी अर्थव्यवस्थाओं के बीच नई कनेक्टिविटी की खोज करने की सहमति जताई। इस संदर्भ में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) के कार्यान्वयन पर जोर दिया। परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोगों को सुविधाजनक बनाने में उनका सहयोग, रूस-भारत रणनीतिक साझेदारी का आधार है, इस बात की उन्होंने पुष्टि की। कुल मिलाकर 17 समझौते, प्रोटोकॉल और समझौते के ज्ञापन पर दोनों प्रतिनिधिमंडलों के बीच हस्ताक्षर किए गए।


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

अफगानिस्तान

अफगान समाज का सशक्तीकरण कर उसे सक्षम बनाने, अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण और विकास तथा इसकी राजनीति को मजबूत बनाने के जरिए भारत-अफगानिस्तान की साझेदारी अफगानिस्तान की कायापालट करने में सहायता कर रही है। ... ऐतिहासिक रूप से भारत के लिए अफगानिस्तान में सद्भावना का एक बड़ा समंदर है। अशरफ गनी अफगानिस्तान के राष्ट्रपति

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पुस्तक अंश

आपका दुख हमारे लिए भी एक दर्द है। आपके सपने हमारा कर्तव्य हैं। आपकी ताकत हमारा विश्वास है। आपका साहस हमारी प्रेरणा है। इन सबसे ऊपर, आपकी दोस्ती हमारा सम्मान है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

25 दिसंबर, 2015: अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भारत द्वारा निर्मित नई अफगान संसद के उद्घाटन समारोह में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

25 दिसंबर, 2015: अफगानिस्तान के काबुल में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ मुलाकात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी

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धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 दिसंबर, 2015 को अफगानिस्तान की आधिकारिक तौर पर बिना किसी पूर्व घोषणा के एकदिवसीय यात्रा की। यात्रा में तीन बातें अहम थी(1) भारतीय सरकार की वित्तीय सहायता से बनाए गए नए संसद भवन का उद्घाटन करना (2) चार एमआई-25 युद्धक हेलीकॉप्टरों को अफगानिस्तान को सौंपना (3) मौजूदा द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के तरीकों की तलाश करना, जिसमें संभावित रूप से कमी आई है राष्ट्रपति गनी और प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा कि दोनों देशों और उनके लोगों के बीच सहस्राब्दी के संबंधों ने न केवल अपने इतिहास और संस्कृति को समृद्ध किया है, बल्कि व्यापार मार्गों, अर्थव्यवस्था, कला, वास्तुकला, धर्म, साहित्य और संगीत में दुनिया को एक बहुमूल्य विरासत भी प्रदान की है। दोनों नेताओं ने दोनों देशों के बीच मौजूद सद्भावना के विशाल हृदयों की बात की और इस द्विपक्षीय और बहु-आयामी दोस्ती को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता जताई। प्रधानमंत्री मोदी ने एकजुट, लोकतांत्रिक, संप्रभु, सुरक्षित और समृद्ध अफगानिस्तान के लिए भारत के निरंतर मजबूत समर्थन को

25 दिसंबर, 2015: अफगानिस्तान के काबुल में नई अफगान संसद में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी

जाहिर किया। उन्होंने अपने बहादुर अफगान भाइयों और बहनों के आतंकवाद के सभी रूपों का मुकाबला करने के लिए भारत के लोगों की तरफ से गहरी प्रशंसा व्यक्त की। राष्ट्रपति गनी और प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति पर विचारों का आदान-प्रदान किया, जिसमें आतंकवाद, चरमपंथ और नशीले पदार्थों की गंभीर चुनौतियों का सामना करना शामिल था। साथ ही दोनों ने दोहराया कि अफगानिस्तान में शांति के लिए पवित्र स्थलों और सुरक्षित आश्रयों से पोषित और समर्थित आतंकवाद को खत्म करने की आवश्यकता है। दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान में विकास के लिए दो बिलियन अमेरिकी डाॅलर से

अधिक की भारत की सहायता के उपयोग के प्रमुख पहलुओं पर भी चर्चा की। भारत ने शिक्षा, शासन, उच्च शिक्षा, कौशल विकास और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में क्षमता विकसित करने की अपनी प्रतिबद्धताएं दोहराई। दोनों पक्ष द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को और बढ़ावा देने और भारत में व्यापार और निवेश करने के इच्छुक अफगान व्यापारियों के लिए वीजा प्रक्रियाओं को आसान बनाने पर सहमत हुए। भारतीय प्रतिनिधिमंडल अफगानिस्तान राष्ट्रीय खनन संस्थान स्थापित करने और खनन क्षेत्र के विशेषज्ञों के प्रशिक्षण के लिए विनिमय कार्यक्रमों को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए भी सहमत हो गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा कि दोनों देशों के लोगों के बीच दिलों के आपसी संबंधों ने जगह बनाई हुई है। प्रधानमंत्री ने नए अफगान संसद भवन का उद्घाटन किया। अफगान संसद भवन का निर्माण भारत द्वारा 90 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की सहायता राशि से किया गया है। मोदी ने कहा कि नए संसद भवन को भावनाओं और मूल्यों के संबंधों का एक स्थाई प्रतीक माना जाना चाहिए, जो स्नेह और आकांक्षाओं के साथ भारत और अफगानिस्तान को विशेष संबंध में बांधता है। उन्होंने अफगानिस्तान के लोगों के साहस और संघर्ष की इस बात के लिए प्रशंसा की कि उन्होंने बंदूक और हिंसा का सहारा न लेकर, वोट और बहस के माध्यम से अपने भविष्य को आकार देने का संकल्प किया हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्हें यह देखकर बहुत सुखद अहसास हुआ कि नई इमारत में एक ब्लॉक को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में 'अटल ब्लॉक' के रूप में नाम दिया गया है। उन्होंने अफगानिस्तान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अब्दुल्ला अब्दुल्ला और पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से भी मुलाकात की। (अगले अंक में जारी)


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सुलभ संसार

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

सुलभ अतिथि

डिकोब बेन मार्टिन्स (सांसद, दक्षिण अफ्रीका), डॉ. बुसिवाना विनी मार्टिन्स (डायरेक्टर, कम्युनिटी सेंटर फॉर जस्टिस एंड डेवलपमेंट, दक्षिण अफ्रीका) के साथ काम-एविडा इन्वायरो इंजीनियर्स के मनोहर कृष्ण (मैनेजिंग डायरेक्टर), स्मिता सिंह (जनरल मैनेजर, एचआर), अनुपम सुखेजा (रिजनल सेल्स मैनेजर) सत्यजीत वैष्णव (सर्विस इंजीनियर) का सुलभ ग्राम में स्वागत।

राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश के कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा के साथ कुछ अन्य अतिथियों ने सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स को रुचिपूर्वक देखा।

सुलभ ग्राम स्थित सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स को देखकर अभिभूत अनुपम सुखेजा।

सेंट स्टीफेन हॉस्पिटल, कॉलेज ऑफ नर्सिंग के 50 छात्रों और महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अनिल कुमार राय ने सुलभ परिसर का दौरा किया।

क्रौंच वध

मंजिल दूर नहीं सुनीता

हिमांशी

क बार वाल्मीकि जंगल में क्रौंच पक्षी के जोड़े को देखकर आनंद ले रहे थे, तभी अचानक एक शिकारी ने तीर चलाकर क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक पक्षी को मार दिया। तब दूसरा पक्षी पास के पेड़ पर बैठकर अपने मरे हुए साथी को देखकर विलाप करने लगा। इस करुण दृश्य को देखकर वाल्मीकि के मुख से अपने आप एक कविता निकल गई। संस्कृत श्लोकमा निषाद प्रतिष्ठाम त्वमगम: शाश्वती: समा: । यात्क्रौंचंमिथुनादेकं अवधी: काम मोहितं ।। हिन्दी अनुवाद-: हे शिकारी ! तुमने काम में मोहित क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया है, इसीलिए तुम कभी भी प्रतिष्ठा और शांति को प्राप्त नहीं कर सकोगे। इन्हीं वाल्मीकि ने आगे चलकर विश्वप्रसिद्ध

महाकाव्य रामायण की रचना की। महर्षि वाल्मीकि का जन्म हजारों वर्ष पूर्व भारत में हुआ था। वह कब और कहां जन्मे इस बारे में कुछ भी निश्चत नहीं कहा जा सकता। बचपन में महर्षि वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था। ईश्वरीय प्रेरणा से वह सांसारिक जीवन (मोह) को त्याग कर परमात्मा के ध्यान में लग गए। उन्होंने कठोर तपस्या की। तपस्या में वे इतने लीन हो गए की उनके पूरे शरीर में दीमक ने अपना वाल्मीकि बना लिया।

इसी कारण इनका नाम वाल्मीकि पड़ा। महर्षि वाल्मीकि कवि, शिक्षक और ज्ञानी ऋषि थे। उनके ग्रंथ रामायण में इसकी स्पष्ट छाप दिखती है। रामायण ग्रंथ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की एक बहुमूल्य कृति है। यह भारतीय साहित्य का एक श्रेष्ठ महाकाव्य है। महर्षि वाल्मीकि त्रिकालदर्शी ऋषि थे। उनकी इस रचना, नीति, शिक्षा और दूरदर्शिता के कारण ही उन्हें आज भी बड़े आदर और सम्मान के साथ याद किया जाता है।

पांव मिले चलने के खातिर, पांव पसारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो, हिम्मत हारे मत बैठो। तेज दौड़ने वाला खरगोश, दो पल चल कर हार गया धीरे-धीरे चलकर कछुआ, देखो बाजी मार गया चलो कदम से कदम मिलाकर, दूर किनारे मत बैठो आगे-आगे बढ़ना है तो, हिम्मत हारे मत बैठो। धरती चलती तारे चलते, चांद रात भर चलता है किरणों को उपहार बांटने, सूरज रोज निकलता है हवा चले तो महक बिखरे तो तमु प्यारे बैठो आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो।।


26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

जीवन मंत्र

आओ हंसें

ब्यूटी पार्लर

लड़की : मैं अभी-अभी ब्युटी पार्लर से आई हूं। लड़का : अच्छा... तो क्या आज भी बंद था ? लड़की गुस्से से लाल-पीला।

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इंद्रधनुष

सु

डोकू -50

प्रेम एक ऐसा अनुभव है, जो मनुष्य को कभी हारने नहीं देता और घृणा एक ऐसा अनुभव है, जो मनुष्य को कभी जीतने नहीं देता। रक्तदान

एक आदमी ने सौ बार रक्तदान करने का रिकॉर्ड बनाया। ब्लड बैंक वालों ने उसकी पत्नी का सम्मान यह कहकर किया कि आपने नहीं पीया तभी तो हमने लिया।

रंग भरो

महत्वपूर्ण तिथियां

• 26 नवंबर विद्यापति स्मृति दिवस, विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस • 01 दिसंबर विश्व एड्स दिवस, सीमा सुरक्षा बल स्थापना दिवस, नगालैंड स्थापना दिवस • 02 दिसंबर अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस

बाएं से दाएं

1. लज्जा, संकोच (3) 3. सज्जनता (5) 6. अनोखा (3) 7. मुंशी की पेटी, आभूषण की पेटी (5) 8. प्रतिष्ठा, इज्जत (3) 9. एक पेय (2) 10. आलता (4) 13. पन्ना (4) 15. जमीन (2) 16. जीत (3) 17. असमय आई मौत (5) 19. ध्यान देने योग्य (3) 20. गैर जरूरी (2,3) 21. योग्य (3)

सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

सुडोकू-49 का हल विजेता का नाम भागयांक्ष शहादरा, दिल्ली

वर्ग पहेली-49 का हल

ऊपर से नीचे

2. प्राप्त (3) 3. प्रियतम, पति (3) 4. दबाव (2) 5. यकायक (3,2) 6. अभिनेता (4) 7. लेखनी (3) 8. आचरण, चाल-चलन (3) 11. थप्पड़ मारना (5) 12. वृत्त की परिधि दायरा (3) 13. बड़ा काव्य ग्रंथ (4) 14. अंतर्गत (3) 17. आठ का समूह (3) 18. ऋतु (3) 19. नजारा (2)

कार्टून ः धीर

वर्ग पहेली - 50


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न्यूजमेकर

26 नवंबर - 02 दिसंबर 2018

अनाम हीरो

रामनारायण रूईया कॉलेज

पान के दाग से छुटकारा

मुंबई की छात्राओं ने निकाला पान के दाग छुड़ाने का आसान तरीका

पा

न के दाग को मिटाना आसान नहीं है, लेकिन मुंबई के रुईया कॉलेज की युवा शोधकर्ताओं के समूह ने इसे आसान कर दिया है। छात्राओं ने जैविक संश्लेषण के आधार पर पर्यावरण-पूरक एक तरीका खोज निकाला है। कॉलेज की प्रध्यापिका डॉ. मयूरी रेगे ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को खुद इसकी जानकारी दी। छात्राओं को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से इस तरह के शोध के लिए प्रेरणा मिली है।

प्रो. अंजु सेठ

मुंबई को अपने उपनगरीय रेलवे स्टेशनों की इमारतों और लोकल के डिब्बों में पान के दाग को साफ करने के लिए हर महीने करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। नई खोज से ये दाग आसानी से छूट जाएंगे। इस शोध परियोजना में ऐश्वर्या राजूरकर, अंजली वैद्य, कोमल परब, निष्ठा पांगे, मैथिली सावंत, मीताली पाटील, सानिका आंबरे और श्रृतिका सावंत शामिल थीं। मुख्यमंत्री ने इन छात्राओं से मुलाकात की। आठ छात्राओं की टीम का डॉ. अनुश्री लोकुर, डॉ. मयूरी रेगे, सचिन राजगोपालन और मुग्धा कुलकर्णी ने मार्गदर्शन किया था। इन छात्राओं के प्रतिनिधित्व से उनके कॉलेज को अमेरिका के बॉस्टन स्थित मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) की तरफ से आयोजित विश्व शोध प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल मिला है। इसमें विश्वभर में 300 से अधिक टीम शामिल हुई थीं।

न्यूजमेकर

आईआईएम-सी की पहली निदेशक प्रो. अंजु सेठ पांच दशक बाद आईआईएम-सी की पहली महिला निदेशक बनीं

में शुमार देशइंडिकेयनसबसेइंस्टीट्यूपुरटानेऑफबिजनेमैसनेजस्कूमेंटल- कलकत्ता

(आईआईएम-सी) का बीते पांच दशकों से श्रेष्ठ संस्थानों में स्थान रहा है। पर इस दौरान वहां कभी भी कोई महिला निदेशक कभी नहीं रही। पर इस प्रसिद्ध संस्थान की प्रतिष्ठा के साथ लंबे समय से चला आ रहा यह विरोधाभास अब जाकर टूटा है। आईआईएम-सी को अपना पहला महिला निदेशक मिला है। आईआईएम-सी से ही अपनी पढ़ाई पूरी करने वाली प्रो. अंजु सेठ अब वहां की नई निदेशक हैं। प्रो. सेठ का चुनाव भी यों ही नहीं हुआ, बल्कि नियम के मुताबिक इसके लिए जरूरी चयन प्रक्रिया

अपनाई गई। इसके लिए संस्थान के नियामक मंडल ने एक चयन समिति बनाई। इस समिति ने पहले प्रो. सेठ का नाम अन्य कुछ नामों के साथ छांटा। फिर आखिरी दौर के चयन में सबकी सहमति उनके नाम पर बनी। प्रो. अंजु सेठ ने आईआईएम-सी से ही 1978-79 में एमबीए की पढ़ाई पूरी की थी। अपने चयन पर प्रो. सेठ ने खुशी का इजहार करते हुए कहा, ‘यह मेरे लिए सम्मान की बात है कि आईआईएम-सी को मैं निदेशक के तौर पर अपनी सेवाएं दूंगी। यहां के अध्यापकों, अधिकारियोंकर्मचारियों, नियमक सदस्यों और छात्रों के साथ कार्य करना मेरे लिए एक अच्छा अनुभव होगा।’

अरूप मुखर्जी

गरीब बच्चों के लिए स्कूल उधार पैसे लेकर गरीब बच्चों के लिए स्कूल चला रहा ट्रैफिक कांस्टेबल

श्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में ट्रैफिक विभाग में कांस्टेबल अरूप मुखर्जी ने अपनी तनख्वाह और मां से लिए गए पैसों से गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनवा दिया है। इस स्कूल का नाम पुंचा नबादिशा मॉडल स्कूल है, जिसकी शुरुआत 2011 में हुई थी। यहां पढ़ने वाले बच्चे खास तौर पर अनुसूचित जाति के हैं। अरूप ने अपनी मां से 2.5 लाख रुपए उधार लिए थे, ताकि वह स्कूल बनवा सकें। नेल्सन मंडेला ने कहा था, ‘शिक्षा वह शक्तिशाली हथियार है जिसकी बदौलत दुनिया बदली जा सकती है।’ भारत में शिक्षित समाज बनाने के लिए वैसे तो कई प्रयास किए गए, लेकिन आज भी एक बड़ी आबादी शिक्षा के अधिकार से वंचित है। इस आबादी में दलित, पिछड़े और आर्थिक रूप से विपन्न लोगों की संख्या ज्यादा है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में ट्रैफिक विभाग में कांस्टेबल अरूप मुखर्जी ने अपनी तनख्वाह और मां से लिए पैसों की मदद से गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनवा दिया है। वह हर महीने अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा इस स्कूल में लगा देते हैं, ताकि गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा मिल सके और उनका भविष्य संवर सके। पुंचा नबादिशा मॉडल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे खास तौर पर अनुसूचित के हैं। अरूप ने अपनी मां के अलावा कुछ और लोगों से उधार पैसे लिए और तब जाकर यह स्कूल तैयार हुआ। यह स्कूल बोर्डिंग स्कूल के जैसा है, जिसमें 112 बच्चों के रहने की सुविधा है। अरूप बताते हैं कि पहले 15-20 लड़कों के साथ शुरुआत हुई थी, लेकिन साल दर साल बच्चों की संख्या बढ़ती गई। बच्चों को पढ़ाने के अलावा उनके शारीरिक विकास पर भी उचित ध्यान दिया जाता है और उन्हें खेलकूद में भी हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। अरूप के इस नि:स्वार्थ काम ने कई अध्यापकों को प्रोत्साहित भी किया, जिन्होंने इस स्कूल में आकर बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने का जिम्मा संभाला। स्कूल के शिक्षक पीयू प्रमाणिक ने कहा, ‘ये बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं जिनके पास पैसों की भारी कमी होती है और इस वजह से वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते। हम उन्हें देश के लिए एक बहुमूल्य संसाधन के तौर पर तैयार कर रहे हैं। ताकि वे देश के विकास में अपना योगदान दे सकें।’ इस स्कूल को पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली की चैरिटी संस्था द्वारा भी 25,000 रुपए मिलते हैं। अरूप से सौरव की मुलाकात एक टीवी शो में हुई थी। जहां सौरव इस स्कूल के बारे में जानकर काफी खुश हुए थे और उन्होंने अपनी संस्था द्वारा हरसंभव मदद का आश्वासन दिया था।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 50


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